झरिया का इतिहास | झरिया में राजाओं का इतिहास | Jharia ka itihas
झरिया का इतिहास बहुत ही पुराना है और झरिया के राजाओं का इतिहास भी बहुत पुराना है, झरिया झारखण्ड राज्य के धनबाद जिले से 8 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। एक वक़्त ऐसा भी था जब यहाँ पर भी राजा महाराजाओं का राज हुआ करता था। जिसके किले आज भी झरिया में जर्जर हालत में खड़ी है जिसे आज भी देखा जा सकता है। झरिया में मौजूद पुराने किले को देख कर आप भी अंदाजा लगा सकते हैं, ये किले बहुत पुराने है, आज भी झरिया में अनगिनत ऐसे बहुत से पुराने और जर्जर खंडर किले आज भी मौजूद हैं।
झरिया का इतिहास बहुत ही पुराना है और झरिया के राजाओं का इतिहास भी बहुत पुराना है, झरिया झारखण्ड राज्य के धनबाद जिले से 8 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। एक वक़्त ऐसा भी था जब यहाँ पर भी राजा महाराजाओं का राज हुआ करता था। जिसके किले आज भी झरिया में जर्जर हालत में खड़ी है जिसे आज भी देखा जा सकता है। झरिया में मौजूद पुराने किले को देख कर आप भी अंदाजा लगा सकते हैं, ये किले बहुत पुराने है, आज भी झरिया में अनगिनत ऐसे बहुत से पुराने और जर्जर खंडर किले आज भी मौजूद हैं।
जो ये दर्शाती है कि राजा महारजाओं के है जब भारत में अंग्रेजो और राजाओ का शासन हुआ करता था। झरिया का इतिहास में अंग्रेजों से पहले झरिया में राजा महाराजाओं का ही शासन हुआ करता था और आज भी उसके कुछ वंश यहाँ रहते हैं। तो आज इस ब्लॉग में हम जानेंगे झरिया का इतिहास के बारे में झरिया का इतिहास के बारे में बहुत ही कम लोगों को पता है।
झरिया का इतिहास लगभग 120 साल पहले झरिया में किसका शासन था?
झरिया राज स्टेट ब्रिटिश भारत में एक ज़मींदारी स्टेट (state) था, जो बंगाल प्रांत के बिहार प्रांत में स्थित था। और उस वक़्त बिहार और उड़ीसा ब्रिटिश भारत का एक ही प्रांत था, जो ब्रिटिशों के अधीन में ही था। 18वीं तथा 19वीं सदी में अंग्रेजों ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर अपने कब्जे में कर लिया था। भारत के सबसे बड़े ब्रिटिश प्रांत बंगाल को प्रेसीडेंसी का हिस्सा बनाया। 1 अप्रैल 1912
को बिहार और उड़ीसा विभाजन (अलग, बंटवारा) कर दोनों बिहार और उड़ीसा प्रांत के रूप में पश्चिम बंगाल प्रेसीडेंसी से अलग कर दिया गया। 22 मार्च सन् 1936 को बिहार और उड़ीसा को विभाजन कर अलग – अलग प्रांत बनाया गया।
आज भी झरिया राज परिवार का पैतृक घर सह किला कटरा (जम्मू कश्मीर) में स्थित है। पारिवारिक इतिहास के अनुसार, जमींदार मूल रूप से मध्य भारत के रीवा (मध्य प्रदेश) के रहने वाले थे। और सन् 1763 में झरिया के आसपास के क्षेत्र में अपना राज्य स्थापित किया था। सन् 1864 में जयनगर की संपत्ति झरिया स्टेट ने खरीदी थी। कटरा गांव में जमींदार का निवास स्थान है, जो परंपरा के अनुसार पहले झरिया राज का मुख्यालय हुआ करता था। आज भी उनके कुछ वंशज झरिया में निवास करते हैं।
राजा श्री काली प्रसाद सिंह जी
इससे पहले यह कटरा, झरिया और नवागढ़ गांव (बेमेतरा ज़िला भारत के छत्तीसगढ़ राज्य का एक ज़िला है) के अलग – अलग घरों में विभाजित हो गया था। यह बंगाल प्रेसीडेंसी के सबसे अमीर जमींदारी सम्पदाओं में से एक बन गया था।
रानी श्रीमती स्नेहलता देवी राजा बिशेश्वर प्रसाद सिंह की पत्नी, राजा काली प्रसाद सिंह की बहू (बायीं तरफ) और दायीं तरफ उसकी बहन
जब इस क्षेत्र में कोयले की खोज हुई और सन् 1890 के दशक में इस क्षेत्र में कोयला खनन शुरू हुई तो झरिया राज के उल्लेखनीय जमींदार राजा दुर्गा प्रसाद सिंह ही का ही नाम पहले आता है। जिन्हें सन् 1850 के दशक में संपत्ति मिली थी, वह उस वक़्त नाबालिग थे, सन् 1916 में राजा दुर्गा प्रसाद सिंह की मृत्यु हो गई। जनवरी 1947 में राजा शिव प्रसाद की मृत्यु हो जाती है और उनके सबसे बड़े पुत्र, श्री काली प्रसाद सिंह झरिया के अंतिम राजा बनते हैं, जब तक कि 1952 में सरकार द्वारा जमींदारी समाप्त नहीं कर दी गई।
झरिया में कोयले का इतिहास
प्रमुख कोयला खनन क्षेत्र में पाँच बड़े सम्पदाओं में से एक था, झरिया राज, नवागढ़ राज, कटरासगढ़ राज, टुंडी राज और पांडरा राज, दामोदर और बराकर नदियों के बीच के क्षेत्र मानभूम जिले के अन्दर ही आते थे, जो बाद में धनबाद जिला बनाया गया। इस क्षेत्र का सर्वेक्षण सबसे पहले टी.डब्ल्यू.एच (TWH ) केद्वारा किया गया था। सन् 1866 में ह्यूजेस, और सन् 1890 मेंटी. एच. वार्ड. के द्वारा जिन्होंने करीब 850 मिलियन टन अच्छे Quality वाला कोयला रिजर्व का अनुमान लगाया था। इससे पहले, सन् 1858 मेसर्स में बोरोदेल और कंपनी ने पूरे झरिया स्टेट के लिए पट्टे के लिए आवेदन किया था।
स्टेट या राज उस वक़्त कोर्ट ऑफ वार्ड्स के तहत झरिया स्टेटमें खदान के लिए लीज के लिए मंजूर नहीं किया जाता था। पहला पट्टा सन् 1890 से पहले नही दिया गया था। सन् 1895 में, धनबाद, झरिया, कतरास, कुसुंडा और पाथरडीह आसनसोल से कलकत्ता तक रेलवे लाइनों से जुड़ी हुई थी। और इसने इस क्षेत्र के खनन उद्योग को बड़े पैमाने पर विस्तार करने में मदद की। रेलवे के साथ ठाणे में रेलवे निर्माण कार्य के अनुभव के साथ एक विशेषज्ञ रेलवे ठेकेदार के रूप में अब गुजराती लोग भी यहाँ आने लगे थे।
झरिया से कितना कोयला निकलता है?
कुछ खदानें कई सालो से बंद पड़ा है इसका मुख्य कारण खदानों में पानी घुस जाना, जिसके कारण कोयले का उत्पादन कई सालो से रुका हुआ है। अब इसके आसपास के इलाकों से खुदाई करके के कोयला निकालने की प्लानिंग की जा रही है और वहां से लोगो को हटाने की कोशिश में लगी हुई है। वे झरिया के तत्कालीन राजा से मिले और पट्टे पर कोयला क्षेत्र यानी जहां पर जिस ज़मीन मे अधिक कोयलें होने की अनुमान था वहां जमीने खरीदी। उनमें से अग्रणी भारतीय खोरा रामजी थे, जिसे ब्रिटिश राजपत्रकर्ता भी स्वीकार करते थे।
सन् 1900 की शुरुआत में झरिया कोयला क्षेत्र में कई कोयला खदानें चलने लगी थी, जो अब ट्रेन लिंक के द्वारा कलकत्ता से जुड़ी जा चुकी थी। और झरिया राज रॉयल्टी और प्रवासी आबादी से आने वाली आय से समृद्ध होने लगी और झरिया एक प्रमुख कोयला खनन हब और व्यवसाय क्षेत्र बन चुका था।
रानीगंजकोयला क्षेत्र के केंद्र में प्रमुख कोयला क्षेत्रों, झरिया और रानीगंज के खदान मालिकों के बीच खूब competition चलती थी। और सन् 1907 तकभारत में कोयला उत्पादन में झरिया का 50 % का योगदान था। इसकी सबसे पुरानी खानों में से एक थी ख़ास खोरा रामजीके स्वामित्व वाली ख़ास झरिया कोलिएरी जो आज भी मौजूद है। और आज भी यहाँ लोग रहते है लेकिन फ़िलहाल उत्पादन वहाँ बंद है अब इस क्षेत्र को खुदाई करके कोयला निकालने पर बात चल रही है हो सकता है कुछ सालो में कोयले की खुदाई शुरू कर दी जाये।
पहले झरिया किस क्षेत्र में आता था
झरिया राजपहले मानभूम जिले का हिस्सा हुआ करता था, जिसका मुख्यालय बंगसोर्ना बाद में गोविंदपुर में Transfer (स्थानांतरित) कर दिया गया था। सन् 1904 में बंगाल के उपराज्यपाल सर एंड्रयू फ्रेजर द्वारा यह निर्णय लिया गया कि उपखंड का मुख्यालय गोविंदपुर से धनबाद Transfer किया जाए। हालांकि, वास्तविक हस्तांतरण 27 जून सन् 1908 को किया गया था, धनबाद में मुख्यालय के Transfer के साथ ही विभिन्न सुविधाएं भी प्रदान की गईं, जिससे लोग धनबाद में निवास करने के लिए आकर्षित हुए।
राजाओ द्वारा स्थापित की गए कुछ स्कूल और कॉलेज –
विरासत और स्मारकों में, जो आज भी झरिया में खड़े हैं
एक विशाल पानी की टंकी, जिसे अब संरक्षित किया जा रहा है, जिसे सन् 1912 – 13 में राजा दुर्गा प्रसादसिंह ने अपने क्षेत्र में रहने वाले लोगों की पानी की समस्या से मुक्ति पाने के लिए पानी की पूर्ति के लिए उसके जरूरतों को पूरा करने के लिए बनवाया था।
क्षेत्र का सबसे पुराना स्कूल, राजा शिव प्रसाद कॉलेज – जो सन् 1951 मेंराजा काली प्रसाद सिंह द्वारा अपने पिता राजा तालाब (Raja Talab) की याद में स्थापित किया गया था।
और सन् 1985 के अंत में, राजा काली प्रसाद सिंह ने झरिया में किड्स गार्डन सेकेंडरी स्कूल ( Kids Garden Secondary schoolJharia Dhanbad )शुरू करने में भी बहुत मदद की थी।
राजाओ के द्वारा झरिया में परंपरागत रिवाजों शुरू की गई दुर्गा पूजा
इसके अलावा शाही परिवार के द्वारा सन् 1861 में शुरू की गई पारंपरिक दुर्गा पूजा आज भी झरिया शहर का एक आकर्षण केंद्र है, जो परंपरागत रूप से आज भी मनाया जाता है। और पुराने किले – पुराना राजागढ़,परिवार के पैतृक महल हुआ करती थी, आज भीयहाँ बहुत से शाही किले मौजूद हैं। पूजा तीन स्थानों पर की जाती है – पुराने किले के पास के मंदिर में, नए किले में मंदिर और शिरा घर में, जिस स्थान पर कुलदेवता और शाही परिवार के हथियार रखे जाते हैं।
राजाओ का राजनीति सफ़र
राजा काली प्रसाद सिंह ने राजनीति में अपने हाथ आजमाए और सन् 1952 के चुनाव में बिहार विधानसभा के लिए चुनाव भी लड़ा। हालांकि, वह एक प्रभावशाली व्यक्ति था और उस क्षेत्र में प्रमुख दबदबा हुआ करता था, जो कभी उसका राज था लेकिन वह धनबाद के एक लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी, कोयला खननकर्ता और श्रमिक नेता पुरुषोत्तम के चौहान द्वारा पराजित हो गए थे।
हालांकि वेझारखंड पार्टी के टिकट पर सिंदरी के पास बलियापुर से जीते थे, उसके परिवार ने कभी भी चुनाव नहीं लड़ा। लेकिन अब भी क्षेत्र में एक मजबूत दबदबा और प्रभाव जारी था, वर्तमान में झरिया के शाही परिवार के सदस्य सुजीत प्रसाद सिंहकी पत्नी माधवी सिंह राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं। साथ ही राजा काली प्रसाद सिंह की बेटी स्नेहलता कुमारी देवी, राजा बिशेश्वर प्रसाद सिंह की पत्नी राजनीति में सक्रिय हैं। वह भाजपा (उड़ीसा) संबलपुर की महासचिव हैं।
खोरा रामजी चावड़ा कोयला खान, बैंकर, रेलवे ठेकेदारी किया करते थेI
खोरा रामजी चावड़ा (सन् 1860 – 1923) जिन्हें सेठ खोरा रामजी के नाम से जाना जाता था
भारत में 20 वीं सदी के एक प्रतिष्ठित रेलवे ठेकेदार, कोयला खदानों के मालिक, बैंकर और परोपकारी थे, जिन्होंने धनबादऔर झरिया में काम किया था।
बोर्नखोरा रामजी चावड़ा 1860 सिनुगरा, कच्छ मृत्यु – 1923 झरिया, ब्रिटिश भारत राष्ट्रीयता – भारतीय अन्य नाम – खोरा रामजी Occupation – Coal miner, banker, railway contractor कोयला खनिक, बैंकर, रेलवे ठेकेदार व्यवसाय – कोयला खनन अग्रणी, रेलवे पुल निर्माण करने के लिए जाना जाता था।
झरिया का इतिहास, झरिया राजा का पैतृक घर
वह कच्छ के सिनुगरा नामक एक छोटे से गाँव में पैदा हुए थे, और वह छोटा लेकिन मनोरंजक मिस्त्री समुदाय का था। वह अपने समय के प्रतिष्ठित रेलवे ठेकेदारों में से एक थे। और उनके कारनामों का उल्लेख ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा किया जाता था। उन्हें झरिया कोयला क्षेत्रों में यूरोपियों के एकाधिकार को तोड़ने वाले पहले भारतीय होने का श्रेय भी दिया जाता है। उन्होंने सन् 1895 में अपना पहला कोलियरी जिसका नाम खास झरिया है में कोलियरी स्थापित किया। और सन् 1910 तक पांच और कोलियरी स्थापित करने के लिए चले गए थे।
वह झरिया कोयला बेल्ट के कई कोलफील्ड्स में एक वित्तपोषण भागीदार भी थे। और इसके अलावा एक निजी बैंकर के रूप में काम किया करते थे। अपने सौतेले भाई जेठाभाई लीरा जेठवा (1862 – 1932) के साथ, उनके पास खास नागोराकोलियरी थी। जो जे. एंड के. रामजी के नाम और शैली के तहत संचालित होता था। सेठ खोरा रामजी ने महान परिमाण के कार्य किए हैं : –
सिन्ध और उत्तर पश्चिम भारत में रेलवे के 100 मील,
20 मील रेलवे लाइनों पर एस.एम. रेलवे ईस्ट
बंगाल रेलवे पर रेलवे की दो मील की दूरी पर हुबली में लोको क्वार्टर सहित कई बड़े पुल भी बनाये ।
उनके बड़े भाई भी उसी समय भारत में रेलवे के काम कर रहे थे और उन्होंने सफल ठेकेदारों के रूप में नाम उभरा। सभी ने व्यवसाय में हाथ मिलाया और खुद को सिंडिकेट में गठित किया और MSM रेलवे में काम पूरा किया लेकिन बाद में दुर्भाग्य से उसने सभी भाइयों को खो दिया। इसलिए उन्हें लगभग अकेला ही छोड़ दिया गया था। हालांकि अशिक्षित होने के कारण उन्होंने इन निर्माणों को अंतर्निहित सभी प्राचार्यों को स्पष्ट रूप से समझ लिया और रेलवे के अधिकारियों की संतुष्टि के लिए उन्हें सौंपे गए सभी अनुबंधों पर काम किया।
सन् 1900 में उनके व्यावसायिक जीवन में एक मोड़ आया, बस उस समय झरिया कोयला क्षेत्रों का यूरोपीय लोगों द्वारा शोषण किया जाने लगा था और सेठ खोरा रामजी अवसर को जब्त करने वाले पहले भारतीय थे। कई जिला अधिकारी ने उन्हें “मल्टी-मिलियन, झरिया में प्रथम श्रेणी की पार्टियों में से एक” के रूप में टिप्पणी की थी।
सिनुगरा के खोरा रामजी चावड़ा द्वारा किए गए कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य हैं –
सन् 1880 – हुबली लोको शेड और अन्य वर्क्स, उत्तर पश्चिम में 100 मील का रेलवे लाइन का काम किया।
दक्षिणी मराठा रेलवे में 20 मील रेलवे लाइन का काम किया।
सन् 1882 – 84 में 177 मील की दूरी पर होटगी, SMR में अपने भाइयों के साथ गदग (Gadag) में ईस्ट बंगाल रेलवे में 22 मील रेलवे लाइन काम किया)।
सन् 1888 – बिलासपुर में झारसुगुड़ा (Jharsuguda)-(उड़ीसा में ) में 128 मील की दूरी पर बीएनआर में चंपा नदी पर पुल सहित साथी मिस्त्री खंड के साथ, 1894 में EIR की झरिया शाखा लाइन बनाया था ।
सन् 1895 – पूर्वी तट रेलवे में रेलवे लाइन और गंजम पर पुल बनाया गया था।
उनका अंतिम रेलवे कार्य सन् 1903 में किया गया था, इलाहाबाद – लखनऊ खंड में गंगा नदी पर पुल बनाया। इस पुल के लिए काम करते समय, उन्हें इंजीनियर आई.एल. गेल के द्वारा परेशान किया जाने लगा था इसलिए उन्होंने रेलवे कॉन्ट्रैक्ट्स को रोकने का फैसला किया। अब वह एक निजी बैंकर बन गया था ।
खोरा रामजी द्वारा स्थापित कुछ कोलियरियां झरिया में कोयले की खोज का प्रारंभिक संकेत –
ब्रिटिश रिकॉर्ड के अनुसार – कुछ पंक्तियों को उद्धृत किया गया है – सेठ खोरा रामजी ने उपरोक्त कार्यों के संतोषजनक पूर्ण होने के लिए बहुत श्रेय प्राप्त किया, क्योंकि उनमें बहुत कौशल और श्रम और कई गणितीय गणनाएँ गुण थी। उन्होंने शुरू करने के लिए पहले दो कोलियरी खरीदीं थी, धीरे – धीरे कच्छ और गुजरात के अन्य लोगों ने साइट का अनुसरण किया और अब झरिया को एक गुजराती बस्ती में बदल दिया गया था। जिसमें सेठ खोरा रामजी के साथ 92 गुजराती कोलियरियों के करीब 50 कच्छी थे।
वह अब दो कोलियरियों का एकमात्र मालिक था और लगभग आठ कोलरीज ( collieries) का वित्तपोषण सदस्य था। खोरा रामजी एंड ब्रदर्स ने खास झरिया, जेनागोरा, जामाडोबा, बलिहारी, फतेहपुर, गरेरिया, बांसजोरा और भगतडीह में कोलियरियों की स्थापना की। खास झरिया कोलियरी में खोरा रामजी और भाई दीवान बहादुर डी.डी. ठाकर, खोरा रामजी खिमजी वालजी एंड कंपनी केतीसरा ( मुकुन्दा) स्थित भारतीय झरिया कोलियरी में भी भागीदार थे। खोरा रामजी के जीवन काल में, अंग्रेजों ने इस तथ्य को वर्ष 1920 में नोट किया है।
Jharia Coal Field में वह अवसर पर कब्जा जमाने वाले पहले भारतीय थे, और कोलियरी व्यवसाय में अपनी बहुत तेजी से प्रवेश कर रहे थे। 1894 – 95 में ईस्ट इंडियन रेलवे ने बाराकर से धनबाद होते हुए कटरा और झरिया तक अपनी लाइन का विस्तार किया। मेसर्स 1894 में खोरा रामजीझरिया शाखा लाइन के रेलवे लाइन अनुबंध और अपने भाई जेठा लीरा के साथ काम कर रहे थे। वह झरिया रेलवे स्टेशन भी बना रहा था। इस रेलवे लाइन को बिछाने के लिए जमीन की खुदाई करते समय झरिया में कोयले की खोज हुई थी।
खोरिया रामजी ने झरिया रेलवे स्टेशन के पास काम करते हुए महसूस किया कि यहाँ कोयला भारी मात्रा में हैं तो उन्होंने झरिया के राजा से जमीनें खरीदीं। उन्होंने सन् 1895 – 1909 तक लगभग आठ कोयला क्षेत्र खरीदे, इसके अलावा, उन्होंने साथी मिस्त्री ठेकेदारों को जमीन खरीदने के लिए प्रोत्साहित भी किया। और उन्हें ऐसा करने के लिए वित्त भी दिया, बाद में उन्होंने खनन अधिकारों के पट्टे के लिए झरिया के राजा से संपर्क किया और अपने कोलियरी व्यवसाय की नींव रखी। जीनागोरा, ख़ास झरिया, गेरेरिया नाम की उनकी तीन कोलियरियों का स्थान बंगाल, असम, बिहारऔर उड़ीसा के 1917 गजेटियर्स में भी वर्णित है।
झरिया में स्वर्णिम दिनों की डायरी में दिए गए विवरणों के अनुसार – नटवरलाल देवराम जेठवा द्वारा लिखे गए झरिया के कोलफील्ड्स में कच्छ के गुर्जर कक्षत्रिय समाज का एक संस्मरण और इतिहास – सेठ खोरा रामजीने ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा उल्लिखित पहले संघ का नेतृत्व किया।
विश्वकोश बंगाल, बिहार और उड़ीसा (1920)
खोरा रामजी की मृत्यु वर्ष 1923 में हुई थीl, उनकी मृत्यु के बाद उनके दो साथियों, खास झरिया और स्वर्ण झरिया, जो अधिकतम 260 फुट गहरे शाफ्ट पर काम करते थे, अब कुख्यात भूमिगत तारों के कारण ढह गए, जिसमें उनका घर और बंगला भी ढह गया। 8 नवंबर 1930, जिसके कारण 18 फीट उप-विभाजन और व्यापक विनाश हुआ। उस समय की कोयला खदानें उनके बेटे करमशी खोरा, अंबालाल खोरा और अन्य द्वारा चलाई जाती थीं। अंबालाल खोरा ने रेलवे ठेकेदार के रूप में पिता की विरासत को भी आगे बढ़ाया, जिनकी रेलवे दुर्घटना में मृत्यु हो गई।
खास जीनागोराखदान बाद में 1938 – 39 तक केवल जेठा लीरा जेठवा, करसंजी जेठाभाई और बाद मेंदेवराम जेठाभाई जेठवा के बेटों द्वारा चलायी जा रही थी, जिसके बाद खदान को बेच दिया गया और परिवार कलकत्ता में कोयला खनन मशीनरी के आयातकों के रूप में स्थापित हो गया। हालाँकि, सेठ खोरा रामजी की कुछ अन्य कोयला खदानों का व्यवसाय उनके भाइयों और उत्तराधिकारियों द्वारा चलाया जाता जा रहा था, जिन्हें अंततः सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया जब भारत में कोयला खानों का राष्ट्रीयकरण 1971 – 72 में किया जा रहा था। यह राष्ट्रीयकरण इंदिरा गांधी के सरकार राज में हुआ था ।
एक परोपकारी व्यक्ति के रूप में, अपने पैतृक गांवसिनुगरा में उन्होंने 1910 में एक हिंदू मंदिर, कुओं, स्वागत द्वार, चबुतरो और एक प्राथमिक विद्यालय का निर्माण और दान किया था। जिसे अब सेठ खोरा रामजी प्रचारक शाला नाम दिया गया है, उन्होंने 1905 में झरिया एंग्लो-गुजराती स्कूल के नाम से एक गुजराती स्कूल शुरू करने के लिए कुछ अन्य मिस्त्री कोलियरी मालिकों के साथ प्रमुख निधि भी दान भी की थी। उनके पास खेत – ज़मीन भी थी, जिसका उत्पादन गरीब और ज़रूरतमंदों को दिया जाता था।
वर्ष 1920 में, जब उन्होंने सिनुग्रा में एक बड़े सार्वजनिक दान कार्यक्रम और एक यज्ञ का आयोजन किया, तो उन्हें कच्छ के महाराज, खेंगारजी III द्वारा सम्मानित किया गया, जिन्होंने उन्हें एक पगड़ी भेजी। इसके अलावा, मथुरा में उन्होंने सिनुगरा के जेठा लीरा जेठवा के साथ मिलकर 1889 -1900के वर्षों में कच्छ कड़िया धर्मशाला नाम की एक धर्मशाला का निर्माण और दान दिया, जब वे रेलवे अनुबंध की नौकरी के लिए वहां तैनात थे।
What is Jharia famous for?
Jharia famous basically Black Diamonds mean Coal.
झरिया कहां है
झरिया झारखंड राज्य के धनबाद जिले में स्थित है।
झरिया किसके लिए प्रसिद है?
काला हिरा के लिए यानि कोयला
In which state Jharia is located?
Jharia located in Jharkhand state & Dhanbad District.
Is Jharia coal mine still burning?
Somethings 110-120 years before.
Is Dhanbad Safe?
yes
What is special in Dhanbad?
First Fire Coal mines & than Dhanbad Mall, Dam, Park, Purana Bazar etc.