झरिया विधायक सूर्यदेव सिंह का जीवन परिचय : Singh Mansion Dhanbad History In hindi
सूर्यदेव सिंह झरिया विधानसभा क्षेत्र के एक प्रमुख राजनेता और प्रभावशाली व्यक्तित्व थे। वर्ष 1977 से 1991 तक 14 वर्षों तक लगातार झरिया के विधायक के रूप में सूर्यदेव सिंह ने यहां के लोगों की सेवा की। सूर्यदेव सिंह जी का जन्म सन् 1939 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के गोन्हिया छपरा गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। सन् 1961 में करीब 22 साल की उम्र में काम की तलाश में धनबाद के झरिया इलाके में (झारखंड) आए थे।
सूर्यदेव सिंह धनबाद कैसे पहुंचे? क्या काम करते थे? सिंह मेंसन का इतिहास, नींव किसने डाली?

1960 का दशक रहा होगा जब उत्तर प्रदेश के बलिया से सूर्यदेव सिंह जिसकी उम्र 14 साल रही होगी, कोई 22 साल भी कहता है। काम की तलाश में धनबाद पहुंचा। धनबाद से कुछ दूरी पर भौंरा के एक इलाके में अपने एक दूर के रिश्तेदार के यहां सबसे पहले आए थे। अभी कुछ दिन ही हुए थे रिश्तेदार के यहाँ, कि एक रात रिश्तेदार ने उनको शायद कुछ कह दिया जिससे उनको इतना बुरा लगा कि आधी रात को ही सूर्यदेव सिंह उनका घर छोड़ दिया। और आधी रात को धनबाद की सुनसान सड़कों पर भटकता रहा। न तो उसके पास कोई रोजगार था न ही कोई अब उसका कोई सहारा। अब कुछ था तो कुछ बड़ा कर गुजरने का इरादा। और इसी इरादे के साथ अंधेरी रात में भटकते भटकते सूर्यदेव सिंह जी बोर्रगढ़ इलाके में पहुंच गए।
यहां रहने वाले एक बंगाली परिवार की नजर सूर्यदेव सिंह पर पड़ी। और फिर उसने सूर्यदेव सिंह की मदद की और उसी ने सबसे पहले इनको काम दिलवाया। काम क्या था तो कोयले के खदानों में काम करने वाले मज़दूरों की हाजिरी बनाना था। और उनको जो पैसा सैलरी मिलता आधा से ज्यादा अपने घर बलिया भेज देते थे। ताकि की परिवार की आर्थिक ठीक हो सके। सूर्यदेव सिंह को पहलवानी करने का भी बड़ा शौक था। और कद काठी के भी लंबे चौड़े, हट्टे कट्टे, तगड़े और मजबूत थे। सूर्यदेव सिंह ने बहुत कम उम्र में कई बड़े बड़े पहलवानो को कुश्ती के दंगल में धूल चटा चुके थे। उनकी कुश्ती के चर्चे हर तरफ हुआ करते थे।
सूर्यदेव सिंह जन्म परिवार व शिक्षा ( Suryadev Singh Family, Son)
सूर्यदेव सिंह जी का जन्म 27 दिसम्बर सन् 1939 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के गोन्हिया छपरा गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। सूर्यदेव सिंह जी के पिता का नाम चंडी प्रसाद सिंह और माताजी का नाम नंजहारो देवी है। 27 साल की उम्र में ही कुंती सिंह से शादी हुई। एक रिपोर्ट की माने तो कुंती सिंह 14 साल में सूर्यदेव सिंह के साथ शादी हुई थी। तब उनक परिवार बोर्रगढ़ इलाके में रहता था। और उनसे 5 बच्चे (किरण सिंह, राजीव रंजन सिंह, ज्योति सिंह, संजीव सिंह, और मनीष सिंह ( सिद्धार्थ गौतम) हुए। और उनके साथ में बच्चा सिंह और राजन भी रहते थे उनको अपने हाथों से खाना खिलाई। शादी के कुछ वक्त बाद ही अपनी पत्नी और 3 छोटे भाईयों को धनबाद बुला लिया। ताकि उनको एक सुरक्षित भविष्य दिया जा सके।

सूर्यदेव सिंह ने पिता की तरह तीनों भाईयों की परवरिश की। गुजरते वक्त के साथ सूर्यदेव सिंह पर परिवार और समाज की जिम्मेवारी भी बढ़ती चली गई। लेकिन तमाम चुनौतियों के बावजूद भी इन्होंने सभी का भरपूर ख्याल रखा। सभी भाइयों की शादी हो चुकी थी, लेकिन बच्चा सिंह का व्यवहार इस दौरान पूरी तरह से बदल गया। एक साथ बैठकर खाना खाने वाला परिवार एक समय एक एक करके तितर बितर हो गया।

सूर्यदेव सिंह पांच भाई थे – Singh Mansion Dhanbad Family Tree
- सूर्यदेव सिंह – पांच संतान
- विक्रम सिंह – 12 संतान
- बच्चा सिंह – एक भी संतान नहीं
- राजनारायण सिंह (राजन सिंह) – चार संतान (नीरज सिंह, अभिषेक सिंह उर्फ गुड्डू, मुकेश सिंह, एकलव्य सिंह उर्फ छोटे)
- रामाधीर सिंह – चार संतान ( शशि सिंह, संध्या सिंह, छाया सिंह, श्वेत शिखा सिंह)
विक्रम सिंह का धनबाद से कोई लगाव नहीं था। लेकिन बाकी के चारों भाई किसी ने किसी प्रकार से कोल नगरी धनबाद से जुड़ा रहा। जब तक सूर्यदेव सिंह जिंदा थे तब तक सब ठीक ठाक सब मिलजुल कर चल रहे थे। लेकिन जब सूर्यदेव सिंह की मौत हुई। तब उसके बाद राजनीतिक विरासत को लेकर आपस में चारो भाईयो के परिवार में तनाव शुरू हुआ।
राजनीतिक सफर : सूर्यदेव सिंह मजदूरों के नेता कैसे बने?
70 के दशक का ये वो दौर था जब कोयले के निजी खदानों में मजदूरों का खूब शोषण हुआ करता था। खदान मालिकों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत किसी में भी नहीं होती थी। मजदूरो के साथ शोषण दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही थी। इस घटना ने इन्हें अंदर से इस कदर झकझोर दिया। इन्होंने शोषण के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया और ये आंदोलन धीरे धीरे तेज होता गया। अब सूर्वदेव सिंह मजदूरों के मसीहा गए, और पूरे कोयलांचल में अपनी एक अलग पहचान बना ली। 1970 के दशक में सूर्यदेव सिंह ने झरिया के कोयला मजदूरों की सेवा के लिए जनता मजदूर संघ का गठन किया। इसके माध्यम से वे मजदूरों की समस्याओं को लेकर हमेशा लड़ते रहे। उन्हें उनका हक दिलाया।
इसी दौर में सूर्यदेव सिंह की पहचान पूरे कोयलांचल में मसीहा के तौर होने लगी। मजदूरों की हक की लड़ाई लड़ने वाले सूर्यदेव सिंह को अब यहां के लोग अपना सरंक्षक मान चुके थे। बेबस और गरीब लोगों को न्याय के साथ आर्थिक मदद देना सूर्यदेव सिंह के जीवन का एक मात्र मकसद था। जरूरतमंदों कि पढ़ाई लिखाई, शादी विवाह से लेकर इलाज तक में वे भरपूर सहयोग करने से कभी भी पीछे नहीं हटते थे। कहते है कि इनके दरवाजे से कभी कोई निराश नहीं लौटता था। शरीर, दिमाग, और चरित्र से मजबूत सूर्यदेव सिंह का रुतबा ऐसा था, कि जब कभी भी धनबाद इलाके में हालात बिगड़ते थे पुलिस प्रशासन के हाथ से बाहर हो जाता था तो सबकी आखिरी उम्मीदें सिंह मेंशन पर ही होती थी। सूर्यदेव सिंह ने बिना जातपात भेदभाव के हर किसी की मदद किया करते थे।
झरिया आने के बाद सूर्यदेव सिंह ने अपनी शारीरिक शक्ति और गठीले शरीर के कारण पहलवानी में कदम रखा। उन्होंने कई स्थानीय पहलवानों को हराकर अपनी पहचान बनाई। इसके बाद वे कोयला खदानों में मजदूरों के बीच काम करने लगे और धीरे-धीरे मजदूर संगठनों से जुड़ गए। 1960 और 1970 के दशक में उन्होंने मजदूरों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई और उनकी समस्याओं के समाधान करने की कोशिश करने लगे। इस दौरान देश में आपातकाल घोषित हो गया, तानाशाही के खिलाफ आंदोलन में इन्होंने ऐसी भूमिका अदा की। चंद्रशेखर सिंह जैसे बड़े नेताओं की नजर इनपर पड़ी। और सूर्यदेव सिंह जेपी आंदोलन के समय समाजवादी नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) और चंद्रशेखर जैसे प्रभावशाली नेताओं के संपर्क में आए।
चंद्रशेखर सिंह के कहने पर ही सूर्यदेव सिंह ने साल 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर झरिया विधानसभा से सबसे पहला चुनाव लड़ा और विधायक बने। उनके करीबी दोस्त और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा था। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सूर्यदेव सिंह को काफी मानते थे। चंद्रशेखर जब प्रधानमंत्री बने, तो सूर्यदेव सिंह जी के कहने पर वे कई बार झरिया और धनबाद आए। इसके बाद वे 1980, 1985 और 1990 में भी लगातार विधायक चुने गए। झरिया से चार बार विधायक बनने का रिकॉर्ड उनके नाम दर्ज है, जो उनकी लोकप्रियता और जनता के बीच प्रभाव को दर्शाता है। वे तीन बार जनता पार्टी और एक बार जनता दल से चुनाव जीते। उनकी राजनीति का आधार मजदूरों और गरीबों की सेवा था।
निधन और विरासत : सूर्यदेव सिंह की मृत्यु कब और कैसे हुई? उसके बाद झरिया के विधायक कौन बना?
15 जून 1991 में आरा में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। यही वो मनहूस लम्हा था जब सूर्यदेव सिंह का साया कोयलांचल के सिर से उठ गया। मजदूरों का मसीहा अब हमेशा के लिए उनसे दूर जा चुका था। कल तक जो शख्स दूसरों की मदद किया करता था। उस वक्त मुसीबत की घड़ी में उसके बीबी बच्चे वक्त के मोहताज हो चुके थे। अपनो के सितम और मुफलिसी के दौर से गुजरते हुए सूर्यदेव सिंह के अधूरे सपने को पूरा करने का जिम्मा बड़े बेटे राजीव रंजन सिंह ने उठाया। जनता को भी राजीव रंजन सिंह के अंदर सूर्यदेव सिंह का ही अक्स दिखता था। यही वजह थी कि उस वक्त के युवा पीढी राजीव रंजन के साथ थे। इससे पहले कि राजीव रंजन अपनी मंजिल पर पहुंचते वक्त की अंधेरी गलियों में हमेशा के लिए ओझल हो गए।
(राजीव रंजन का नाम कोयला कारोबारी प्रमोद सिंह के हत्याकांड में नाम आया था। जिस दिन ये घटना घटी थी, उस दिन रात को राजीव रंजन अपने घर सिंह मेंशन से अकेले निकला था। और आज तक लौट कर नहीं आया। राजीव रंजन के दो दशक के बाद धनबाद नगर निगम ने मृत्यु प्रमाणपत्र जारी किया है। 3 अक्टूबर 2003 से लापता है। और आजतक उनका कोई पता नहीं लग पाया है।)
मुसीबत की इस घड़ी में सूर्यदेव सिंह के कुछ भाईयों ने भी उनके परिवार का साथ छोड़ दिया। ऐसे हालात में सिंह मेंशन की गरिमा बनाए रखने और जनता की मदद के लिए कुंती देवी को सामने आना पड़ा। कुंती देवी जी को 2005 में झरिया विधानसभा चुनाव में एक बड़ी जीत हासिल की। बेशक सिंह मेंशन झरिया विधानसभा से चुनाव लड़ता रहा हो लेकिन जनता का प्यार पूरे कोयलांचल वासीयों से मिला है। सूर्यदेव सिंह के निधन के बाद उनकी विरासत को उनके परिवार ने आगे बढ़ाया। बाद में अपनो ने ही कब्जा कर लिया। उनके छोटे भाई बच्चा सिंह, पत्नी कुंती देवी और फिर बेटे संजीव सिंह झरिया के विधायक बने। उस दौरान नीरज सिंह की हत्या हो जाती है और उसकी हत्या के इल्जाम में संजीव सिंह जेल जाते हैं।
फिर उसके बाद सूर्यदेव सिंह के चचरे भाई के पुत्रवधू यानि स्व. नीरज सिंह की पत्नी पूर्णिमा सिंह विधायक बनती है। उसके बाद फिर संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह वर्तमान में भाजपा की सक्रिय नेता हैं, और वर्तमान (2025) में विधायक है। सूर्यदेव सिंह का नाम आज भी झरिया कोयलांचल में सम्मान के साथ लिया जाता है। उनकी पुण्यतिथि पर हर साल हजारों लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए एकत्र होते हैं, जो उनके दीर्घकालिक प्रभाव को दर्शाता है।
संजीव सिंह पर किनके हत्या का आरोप है?
2014 में सूर्यदेव सिंह के बेटे संजीव सिंह झरिया से विधायक बनते हैं। लेकिन कुछ समय बाद ही नीरज संजीव सिंह के चचेरे भाई और डिप्टी मेयर नीरज सिंह की हत्या हो जाती है। जिसका इल्जाम विधायक संजीव सिंह पर ही लगा और आज वर्तमान समय में भी वो जेल में बंद है। नीरज सिंह की जनता में अच्छी खासी लोकप्रियता थी। नीरज सिंह को चाहने वालों की कमी नहीं थी, और साथ में न जाने कितने दुश्मन भी थे जो ताक में थे। तमाम मुसीबतों और साजिशों के बावजूद सिंह मेंशन पूरी मजबूती के साथ जनता की बीच खड़ा है। आखिर यहाँ कौन गलत है कौन सही साबित करना बहुत ही मुश्किल है। क्योंकि अभी तक नीरज हत्याकांड का फैसला नहीं आया है अभी तक ये साबित नहीं हो पाया है की आखिर नीरज सिंह जी का हत्यारा कौन है?
संजीव सिंह के जेल जाने के बाद झरिया का विधायक कौन बना?
नीरज सिंह के निधन के बाद स्व. नीरज सिंह की पत्नी पूर्णिमा सिंह ने राजनीति में जाने का फैसला किया। और और विधानसभा के चुनाव में खड़ी हुई और जनता ने उन्हे विधायक बना दिया। जब पूर्णिमा नीरज सिंह जी का 5 साल का कार्यकाल खत्म हुआ और जब अगला विधानसभा का चुनाव हुआ तो नीरज सिंह के चचा स्वर्गीय सूर्यदेव की बहु यानि संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह जी जीत जाती है और विधायक बन जाती है। गरीब लाचार और मजलूम जनता की सेवा का जो सिलसिला सूर्यदेव सिंह ने शुरू किया था, अब वो खतम हो चुका है। पिछले कई दशक से सिंह मेंशन के दरवाज़े आम जनता के लिए हमेशा से खुले रहे हैं। और आगे भी रहेंगे, ऐसा सिंह मेंसन कहती है। न्याय के साथ क्षेत्र का सम्पूर्ण विकास ही इस परिवार का एकमात्र मकसद था, जब सूर्यदेव सिंह जी जिंदा थे।
झरिया के लोगों को सूर्यदेव सिंह एकजुट रखते थे –
झरिया और इसके आसपास क्षेत्रों में जब भी आपसी सौहार्द बिगड़ा यानि धार्मिक गुटों में झगड़ा होता तो सूर्यदेव सिंह आगे आकर हिंदू, मुस्लिम, सिख ईसाई सभी लोगों को एकजुट कर सांप्रदायिक सौहार्द को कायम करते थे। 1984 में सिखों पर जब अत्याचार हुआ था तो उन्होंने सड़क पर आ कर उनकी रक्षा की। सिंदरी में जब बाहरी-भीतरी को लेकर बवाल हुआ तो वहां पहुंचकर उसे शांत किया। झरिया में जब हिंद- मुस्लिम एकता पर आंच आई तो वे सभी धर्म के लोगों को एकजुट कर एकता की मिसाल पेश करते थे। कुछ वर्षों में ही मजदूर नेता के रूप में अपनी कार्यकुशलता से सबका दिल जीत लिया। मजदूरों और यहां के लोगों के दिलों में ऐसी पहचान बनाई कि जीवन के अंतिम समय तक झरिया के विधायक बने रहे।
व्यक्तित्व और योगदान
सूर्यदेव सिंह को उनकी दबंग और बाहुबली छवि के लिए जाना जाता था, लेकिन मजदूरों के बीच वे “मसीहा” के रूप में लोकप्रिय थे। उनकी एक कॉल से कोयला क्षेत्र के अधिकारी तुरंत हरकत में आते थे, और मजदूर उनके नाम पर ही अपने काम करवा लेते थे। उन्होंने झरिया की राजनीति में “सिंह मेंशन” की नींव रखी, जो आज भी क्षेत्र में प्रभावशाली है।
Who is the father of Sanjiv Singh Dhanbad?
late Suryadev Singh
Whi is Suryadev Singh Dhanbad?
Suryadev Singh was continuously elected MLA from 1977 to 1990.
Who is the MLA of Dhanbad?
Ragini Singh (Sanjiv singh’s Wife) (2025)
Suryadev Singh Son Name?
Rajiv Ranjan Singh, Sanjiv Singh & Manish Singh (Siddharth Goutam)
Suryadev Singh Brother Name?
Vikram Singh, Bachcha Singh, Rajnarayan Singh & Ramadhir Singh