माफिया को नहीं भाया धनबाद के राजू यादव का उदय : 1991 विधानसभा चुनाव से पहले हत्या | raju yadav biography

विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे राजू यादव की गोली मारकर हत्या

धनबाद का सियासी इतिहास हमेशा से खून-खराबे और माफिया राजनीति से जुड़ा रहा है। इसी कड़ी में 26 सितंबर 1991 को झरिया के लोकप्रिय मजदूर नेता और उभरते हुए राजनेता राजू यादव की हत्या कर दी जाती है। बताया जाता है कि राजू यादव उस समय 1991 विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में थे और लगातार क्षेत्र में अपनी पकड़ मज़बूत कर रहे थे। मजदूरों और आम जनता के बीच उनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही थी, जिससे विरोधी गुट और माफिया असहज हो गए थे।

राजू यादव धनबाद से नई दिल्ली जा रहे थे। ट्रेन जब मुगलसराय स्टेशन पर रुकी, तो वे पानी पीने और हाथ-मुंह धोने के लिए प्लेटफार्म पर उतरे। तभी अपराधियों ने उन पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। इस हत्या से पूरे धनबाद और झरिया इलाके में आक्रोश फैल गया। माना जाता है कि माफिया गिरोह उनकी बढ़ती राजनीतिक और सामाजिक ताकत से घबरा गए थे। राजू यादव के निधन के बाद उनकी पत्नी आबो देवी राजनीति में उतरीं और झरिया से विधायक बनीं।

आज भी राजू यादव को धनबाद की राजनीति में एक साहसी और जनप्रिय नेता के रूप में याद किया जाता है। हर वर्ष उनकी पुण्यतिथि पर कार्यकर्ता उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। तो चलिए इनके बारे कुछ खास बाते आपको बताते हैं। जिनको नहीं पता है तो वो जरूर पढे।

1991 झरिया विधानसभा प्रत्याशी बनने वाले राजू यादव की दिनदहाड़े हत्या कैसे हुई? जाने पूरी कहानी।

तो इस कहानी बहुत से लोगों का नाम आएगा, जिसमे आपने कुछ के नाम सुने होंगे। पहले मुग़लसराय स्टेशन जो था जीसे अब दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन कहा जाता है। तब बिहार अविभाजित था, झारखंड बिहार एक ही था।

अगर धनबाद की बात करे तो उसमे सूर्यदेव सिंह का नाम न आए ऐसा हो ही नहीं सकता है। सूर्यदेव सिंह उत्तर प्रदेश के बलिया के रहने वाले थे। ये मजदूरी और लोडर के रूप में काम करना शुरू किए थे। बाद में धीरे धीरे अपना वर्चस्व स्थापित किया। धनबाद एक ऐसी नगरी जिससे बिहार की सत्ता भी संभाली जाती थी। जब कभी भी बिहार में चुनाव होता था तो सभी पार्टियों को राजनैतिक चन्दा सबसे ज्यादा धनबाद से ही जाता था। सूर्यदेव सिंह की हैसियत ऐसी थी, कि देश के प्रधानमंत्री रहे चंद्रशेखर यह जानते हुए भी कि सूर्यदेव सिंह को लोग माफिया और डॉन कहते हैं।

सूर्यदेव सिंह के खिलाफ कई हत्या का मुकदमा दर्ज है। बावजूद इसके प्रधानमंत्री चंद्रशेखर इन्हे अपना दोस्त कहते थे। वे उनके घर तक चले जाते थे, खुलेआम सूर्यदेव सिंह से जरूरत होने पर चंद्रशेखर राजनैतिक चन्दा ले लिया करते थे, जिससे वो चुनाव लड़ते थे। तो साल 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बनते हैं लालू यादव। लालू यादव ने देखा की सभी बड़े शहरों में सिंह मेन्शन का कब्जा है। धनबाद सबसे अधिक मालदार शहर था, तो धनबाद पर लालू यादव की नजरे गई। और उन्हे लगा की यहाँ भी हमारी जाति के लोग है हमारे पार्टी के लोग हैं उनका कब्जा होना चाहिए।

तो धनबाद के एक राजू यादव नाम के व्यक्ति थे, जो पहले तो बहुत साधारण से व्यक्ति थे। लेकिन जब लालू यादव मुख्यमंत्री बने, तो राजू यादव का पॉलिटिकल क्षेत्र में रुत्वा अचानक बढ़ने लगा। राजू यादव देखते देखते धनबाद में एक बड़ी हस्ती बन गए। जिससे उसके विपक्षी दल को ये चीजें खटकने लगे। लालू यादव का सिक्का चलने लगा, बिहार झारखंड एक था तो सरकार पूरे बिहार में जनता दल के लालू यादव का था। तो राजू यादव की चर्चा होने लगी, राजू यादव ने ये सोचा कि यदि धनबाद का राजा मुझे बनना है, तो मुझे सबसे बड़े माफिया सूर्यदेव सिंह को ही चुनौती देनी होगी। 

तो सूर्यदेव सिंह सबसे पहले 1977 में mla बने थे, और अंतिम सांस तक 15 जून 1991 को मौत हुई तब तक वो झरिया के विधानसभा क्षेत्र से mla थे। तो राजू यादव ने सोचा कि हम झरिया विधानसभा क्षेत्र से ही चुनाव लड़ेंगे। सूर्यदेव सिंह को चुनौती देंगे, सूर्यदेव सिंह की मौत अचानक हो जाएगी किसी को अंदाजा ही नहीं था। उनकी मौत तब हुई जब वो धनबाद से रांची जा रहे थे रांची हाईकोर्ट के एक मामले में उन्हे वहाँ हाजिर होना था। तब रास्ते में हार्ट अटैक हुआ और मौत हो गई। तब झरिया में विधानसभा का उपचुनाव होना था, तो सूर्यदेव सिंह जी के भाई बच्चा सिंह उनके राजनैतिक उतराधिकारी माने जा रहे थे और यह माना जा रहा था कि बच्चा सिंह ही झरिया विधानसभा क्षेत्र का उपचुनाव लड़ेंगे। 

लेकिन राजू यादव जिन्हे धनबाद में लालू यादव का सबसे बड़ा पॉलिटिकाल लेफ्टिनेंट कहा जाने लगा था। वे भी कमर कस चुके थे, हालांकि जो जनता दल था उस वक्त धनबाद में, जिला जनता दल क प्रेसीडेंट राजू यादव नहीं थे, उस समय जिला जनता दल क प्रेसीडेंट सकलदेव सिंह थे। जो आज के रणविजय सिंह जी के पिताजी थे। और ये एक बहुत बड़े कोयला व्यापारी थे। उनकी भी हत्या हुई थी चलती हुई गाड़ी में उसे गोलियों से छलनी कर दिया था। जिस तरह से 2017 में डिप्टी मेयर नीरज सिंह की हत्या हुई थी। जनता दल क जिला अध्यक्ष सकलदेव सिंह थे, लेकिन चलती थी राजू यादव की। राजू यादव जो कह दे वह पटना से लालू यादव के सेकेट्री से पारित किया हुआ आदेश माना जाता था धनबाद में।

तो उस बात से आप सामझ सकते थे, कि किस हद तक कुछ लोग उससे जलन, ईर्ष्या करते होंगे। सिंह मेन्शन को इस बात का एहसास था, राजू यादव को इस बात का भी एहसास था, कि जब हम इस तरीके से सिंह मेन्शन को चुनौती दे रहे हैं तो जान को खतरा भी है। उन्हे सरकारी बॉडीगार्ड लालू यादव ने दिया था। लेकिन इसके अलावा भी उनके साथ निजी हथियारबंद बॉडीगार्ड हुआ करते थे। और राजू यादव ने न सिर्फ राजनीति में कोयलांचल के पॉलिटिक्स में मतलब कोयले की राजनीति में कोयले की मजदूरी में भी दखल देना शुरू कर दिया था। जिसके जीतने भी कोल माफिया थे, वे सब नाराज हो गए।

लेकिन देखिए होता क्या है होना क्या होता हैं? 27 सितंबर 1991 को नई दिल्ली में एक बहुत बड़ी रैली बुलाई गई। देखिए ये वो वक्त था जब आरक्षण के मुद्दे पर देश भर में आंदोलन चल रहे थे। देश जल रहा था, जगह जगह हिंसा हो रही थी, और आरक्षण के समर्थन मे आरक्षण के विरोध मे सभी पोलिटिकल पार्टियां अपनी अपनी रोटियाँ सेंक रही थी। तो 27 सितंबर 1991 को जनता दल के लालू यादव की रैली का आयोजन, लालू यादव ने अपने समर्थकों से कहा, बाहुबल के धनियों से कहा कि दिल्ली चलो। जब लालू यादव का आदेश हो गया, तो हुआ ऐसा कि लोग गाड़ियां बुक करा कर, ट्रेन बुक कराकर हजारों हजार की संख्या में अपने अपने शहर से निकलने लगे।

तो धनबाद से राजू यादव की रैली की रवानगी हुई, हजारों लोगों के साथ खुद राजू यादव 26 सितंबर 1991 निलांचाल एक्सप्रेस में सवार हुए। साथ में उसका सरकारी बॉडीगार्ड ब्रजेश यादव और साथ में बहुत से समर्थक, ठीक उसी प्रकार पटना से दो गाड़ियों पर चले पप्पू यादव जो बिहार के उस समय के सबसे बड़े बाहुबली थे। लेकीन उसकी लड़ाई चल रही थी आनंद मोहन से, तो ट्रेन आगे चलकर कई घंटों के सफर के बाद ट्रेन रुकी मुगलसराय जंक्शन पर, तो राजू यादव प्लाटफ़ार्म पर उतरकर नल पर हाथ मुंह धोने लगते हैं। जब वो हाथ मुंह धो रहे थे तभी प्लाटफ़ार्म पर गोलियों की बरसात शुरू हो गई। और गोलियों की बरसात ऐसे हुई मुगलसराय जंक्शन के प्लाटफ़ार्म पर राजू यादव को ढेर कर दिए गए। और बॉडीगार्ड ब्रजेश यादव को भी गोली लगी।

इसके बाद आप समझ सकते हैं किस तरह हड़कंप मचा होगा वहाँ पर। किस तरीके से भगदड़ मची होंगी, राजू यादव की हत्या की खबर आग की तरह फैल गई, मुलायम सिंह यादव पहुंचे, लालू यादव पहुंचे, पटना से लेकर मुगलसराय और धनबाद तक तनातनी का माहौल अगले दिन 27 सितंबर 1991 को धनबाद बंदी का ऐलान कर दिया। धनबाद का माहौल तनावपूर्ण हो गया, सड़कों पर अतिरिक्त पुलिस बाल बुलाना पड़ गया। और निशाने पर थे सिंह मेन्शन, अब सवाल ये उठता कि राजू यादव की हत्या किसने की? और हत्या के लिए मुगलसराय जंक्शन को ही क्यों चुना गया? यह कैसे मालूम हुआ की राजू यादव मुगलसराय जंक्शन पर उतरेंगे? अगर नहीं उतरते तो क्या उसकी हत्या होती या फिर उसे ट्रेन में ही मारने की साजिश रची गई।

तो राजू यादव के भाई महेंद्र यादव ने जो प्रथिमकी दर्ज कारवाई, उसमे जिन लोगों का नामजद किया गया था, उसमे दिवंगत सूर्यदेव सिंह के 3 भाई साथ में रघुनाथ सिंह, और सुभाष ठाकुर, जो सूर्यदेव सिंह के पुराने सहयोगी पुराने बॉडीगार्ड थे। लेकिन आपको यह भी पता है की सुभाष ठाकुर आनेवाले वर्षों में कितना बड़ा माफिया और डॉन उत्तर प्रदेश में तो कम महाराष्ट्र में बन गया। दाऊद इब्राहीम के करीबी हो गया। बाद में दाऊद इब्राहीम से झगड़ा हुआ। जब राजू यादव का शव मुगलसराय से अब दिल्ली जाने की बात अब कहाँ रह गई। वापस धनबाद लाया गया, धनबाद में अब ये कहा जाने लगा राजू यादव के समर्थकों की तरफ़ से जो उनकी जाति के जो लोग थे।खेला हो गया , विश्वासघात हो गया, तो देखिए शक की सुई कई जगहों पर घुमने लगी।

FIR तो सिंह मेन्शन पर हुई और लोग यह कहने लगे कि कुछ भीतर के लोग भी हैं। जिन्हे राजू यादव की तरक्की से लालू यादव के पोलोटिकल लेफ्टिनेंट बनने से बहुत ही अधिक कम था। वे कौन थे राज नहीं खुला तब धनबाद के उपायुक्त व्यास जी थे, जब FIR हुई तब सिंह मेन्शन पर छापेमारी हुई। नामजद की तलाश हुई कोई नहीं मिला डिप्टी कमिश्नर व्यास जी का कहना था कि जिसको पूछताछ के लिए गिरफ्तार किया गया था उससे कुछ खास जानकारी नहीं मिली। इस कांड के बाद आप समझ सकते हैं कि धनबाद का माहौल उस समय किस तरह से रहा होगा। एक कहानी और चल रही थी। जो हत्या हुई राजू यादव की, जिन लोगों का नामजद किया गया था। यदि उन लोगों ने हत्या की होती खासकर सुभाष ठाकुर और पहले से ट्रेन में सवार होते तो राजू यादव के लोग पहचान लेते।

मतलब ये था की हत्यारे मुगलसराय स्टेशन पर इंतेजार कर रहे थे। तो ये सुपारी देकर हत्या कारवाई गई है, हत्यारा कोई और है।

एक कहानी ये भी हैं हत्या तो राजू यादव की हो गई लेकिन हत्या होनी थी पप्पू यादव की। पप्पू यादव सांसद विधायक उस जमाने के सबसे बड़े बाहुबली थे। आरक्षण समर्थन आंदोलन में मुख्य भूमिका, तो पप्पू यादव को इस बात का एहसास हो गया था, कि उन्हे आगे टारगेट किया जाना है।और कुछ सुपारी किलर है जो उनको मारने के लिए घूम रहे हैं। तो ये बात की भनक पप्पू यादव को लगी थी। पप्पू यादव किसी को बेगैर कुछ बताए, पटना से दिल्ली के लिए चले थे ट्रेन से बक्सर में ही उतर गए। और बक्सर से उतरने के बाद वापस पटना के लिए चल दिए, उनका प्लान ये था कि रैली में पहुंचेंगे। लेकिन हवाई जहाज से दिल्ली जाएंगे, लेकिन तब तक तो राजू यादव की हत्या हो गई।

धनबाद में लालू यादव को कितना बड़ा झटका लगा होगा आप सोच सकते हैं, कि जिस राजू यादव के सहारे, बाल बूते धनबाद पर कब्जा करना चाहते थे, सिंह मेन्शन के प्रभुत्व को खत्म करना चाहते थे। उसके खात्मे से पहले ही उसका नायक जिसे सरकार स्थापित कर रही थी। गोलियों से भून दिया गया, आगे जब झरिया का उपचुनाव हुआ, तो लालू यादव ने भी फैसला किया राजू यादव को श्रद्धांजलि दी, राजू यादव की पत्नी आबो देवी को चुनाव लड़वाया, आबो देवी को चुनाव जितवाने का जिम्मा पप्पू यादव को दी गई। बीच बीच में पप्पू यादव की मनाही के बाद भी मधेपुरा चले आते। तब शरद यादव भी मधेपुरा से संसदीय उपचुनाव लड़ने के लिए आए हुए थे। लेकिन आबो देवी की जीत हुई, बाद में बिहार सरकार में मंत्री भी बनी। राजू यादव के असली हत्यारे, साजिश किसने की ये स्पष्ट था, लेकिन असली हत्यारों के बारे में अंत तक बहुत महत्वपूर्ण साक्ष्य नहीं मिले। तो इस तरीके से राजू यादव की हत्या हुई।

Anshuman Choudhary

I live in Jharia area of ​​Dhanbad, I have studied till Intermediate only after that due to bad financial condition of home I started working, and today I work and write post together in free time............