नीतीश कुमार का जीवन परिचय : Nitish kumar biography
आज हम जानेंगे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish kumar) के बारे में, नीतीश कुमार जी बिहार में सबसे ज्यादा समय तक सरकार में रहने वाले मुख्यमंत्री है। नीतीश कुमार के राजनीतिक सफर कैसा रहा आखिर राजनीति में कैसे आए। नीतीश कुमार के पास चुनाव लड़ने के पैसे तक नहीं थे। बावजूद इसके इन्होंने चुनाव लड़ा और चुनाव जीता भी और मुख्यमंत्री बने। इनके पास पैसे कहाँ से आए किसने दिए। शादी भी नहीं करना चाहते थे लेकिन इन्होंने शादी की। एक समय तो इनको नरेंद्र मोदी का प्रतिद्वंदी माना जाता था। अगर मोदी जी को कोई टक्कर दे सकता है तो वह है नीतीश कुमार।
चाहते तो Nitish kumar इंजीनियरिंग के क्षेत्र में जा सकते थे क्योंकि उनके पास इंजीनियरिंग की डिग्री थी। नीतीश कुमार पढ़ने में बहुत तेज थे। मैथ में इन्होंने 100 में से 100 तो नहीं ला पाए लेकिन 99 अंक लाए क्योंकि कॉपी छीन ली गई थी। नीतीश कुमार जी एक इंजीनियरिंग थे और यह सरकारी विभाग में काम करते थे। और वहां पैसा भी बहुत था। लेकिन नीतीश कुमार ने सब कुछ छोड़-छाड़ के राजनीति में जाना पसंद किया। नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर 1977 में शुरू हुआ जब उन्होंने समाजवादी पार्टी (सपा) में शामिल होकर राजनीति में कदम रखा। नीतीश कुमार का असली पहचान उनके मुख्यमंत्री पद की आवधि में हुआ, जो 2005 से 2014 तक रही।

| नीतीश कुमार का पूरा नाम | नीतीश कुमार सिंह |
| नीतीश कुमार का जन्म | 1 मार्च सन् 1951 |
| जन्मस्थान | बिहार के बख्तियारपुर में |
| उम्र | 73 साल (2024 में ) |
| पिता का नाम | राम लखन सिंह (एक आयुर्वेदिक डॉक्टर) |
| माता का नाम | परमेश्वरी देवी |
| कॉलेज | बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग |
| शिक्षा | मैकैनिकल इंजीनियरिंग, |
| पत्नी का नाम | मंजू कुमारी सिन्हा (2007 में निधन) – सरकारी स्कूल टीचर (शादी 22 फरवरी 1973) |
| बच्चे | एक बेटा – निशांत कुमार |
| जाति | कुर्मी ( महतो मे आते हैं शायद) |
| नीतीश कुमार के भाई | 5 भाई बहन है – बड़े भाई सतीश कुमार किसान हैं। और तीन छोटी बहनें उषा देवी, इंदु देवी और प्रभा देवी हैं। |
Nitish kumar Birth, family, education : जन्म परिवार व शिक्षा
नीतीश कुमार जी का जन्म 1 मार्च 1951 को बिहार के बख्तियारपुर में हुआ था। नीतीश कुमार का पूरा नाम नीतीश कुमार सिंह है। नीतीश कुमार जी की मां का नाम परमेश्वरी देवी था। पिता राम लखन सिंह जो एक आयुर्वेदिक डॉक्टर थे। , इन्होंने अपने नेतृत्व के माध्यम से राजनीति में अपनी पहचान बनाई। कुर्मी (पिछड़ी) जाति से आने वाले नीतीश कुमार जी की दसवीं तक की पढ़ाई लिखाई गांव के ही स्कूल और कॉलेज में हुई। उस वक्त उनके गांव में सरकारी कॉलेज हुआ करती थी। फिर कॉलेज के छात्र नेतृत्व में भी उन्होंने अपने दम पर अपनी छवि बनाई।
नीतीश जी को इलेक्ट्रिकल इंजीनियर डिग्री मिली
तो दसवीं कक्षा पास करने के बाद Nitish kumar जी पटना साइंस कॉलेज चले गए। उसके बाद वहीं से 11वीं और 12वीं की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद नीतीश कुमार जी बिहार आफ इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया। जिसे आज नेशनल आफ टेक्नोलॉजी कॉलेज (NIT) कहते हैं। पहले बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज बाद में उसे नेशनल आफ टेक्नोलॉजी कॉलेज में बदल दिया। बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से मैकैनिकल इंजीनियरिंग किया। यहीं से नीतीश जी ने 1972 में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की डिग्री ली।
नीतीश कुमार की शादी: दहेज के लिए लड़ाई
जब नीतीश कुमार जी की शादी हुई, मंजु कुमारी सिन्हा से 22 फरवरी 1973 में, इनकी शादी का किस्सा भी बहुत अलग है। मंजु कुमारी वहाँ के प्रिन्सपल की बेटी थी। तो नीतीश कुमार जी के घर वालों ने दहेज मांग लिया। नीतीश कुमार तो भाई लोहिया वादी थे मतलब एकदम दहेज के सख्त खिलाफ। इन्होंने तो कह दिया मुझे दहेज नहीं चाहिए पहले तो नीतीश कुमार शादी के लिए ही नहीं तैयार थे। उनको पता था कि वो शादी के बाद अपनी पत्नी जो ज्यादा समय नहीं दे पाएंगे। जब किसी तरह मंजु सिन्हा के द्वारा नीतीश कुमार को मनाया गया। दहेज के लिए नीतीश कुमार अपने परिवार वालों से लड़ गए थे, की मैं दहेज नहीं लूँगा मतलब नहीं लूँगा।
और जब मंजु देवी इनके जीवन में आई तो इनका जीवन आसान नही था। लड़की वाले अपनी मर्जी से स्वेच्छा से पैसा दे रहे थे लेकिन इन्होंने लौटा दिया। और कहा की मुझे सिर्फ आपकी बेटी चाहिए। और जब शादी हुई तो शादी बड़े धूमधाम से नहीं हुई, न ढोल बजा बहुत ही सामान्य तरीके से इन्होंने शादी की। इन्होंने शादी कोर्ट मेरिज की कोई खर्चा नहीं, आज कल शादी में इतना खर्च होता है की आम आदमी तो शादी कर ही नहीं सकता है। और अगर करता है तो समझ लो उन्होंने शादी कर्जा लेकर किया और कुछ पैसा इन्होंने दहेज के खर्च किये। आज शादी में इतना फालतू खर्च होता है जिसका अनुमान लगाना ही मुश्किल है।
जब बिहार स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में काम करना शुरू किया
नीतीश कुमार इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बने और बिहार स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में काम करना शुरू किया। लेकिन वहां पर नीतीश कुमार को मन नहीं लग रहा था काम करने में। तो उन्होंने पॉलिटिक्स में जाने का मन बनाया। तो वहाँ जयप्रकाश नारायण बिहार में सक्रिय थे और छात्र आंदोलन कर रहे थे। जयप्रकाश नारायण अकेले खड़े थे इंदिरा गांधी जी के सामने। आज आप बड़े बड़े नेता देख रहे हैं, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, सुशील मोदी हो गए रामविलास पासवान हो गए चंद्रशेखर हो गए, ये सब यहीं से उठकर तो राजनीति में आए, जेपी आंदोलन से। तो नीतीश कुमार, राम मनोहर लोहिया से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। ये भी कमाल, जबरदस्त के राजनीतिज्ञ थे।
जब बड़े नेता अनुग्रह नारायण का इनके यहाँ आना जाना था
जब नीतीश कुमार के पिता आयुर्वेदिक डॉक्टर थे उस दरमियान ही उनके यहाँ अनुग्रह नारायण का आना जाना था। जो उस वक्त के बहुत बड़े राजनीतिज्ञ थे, गांधीवादी विचारधारा के थे। उनसे अच्छा रिश्ता बन गया था, और जब नीतीश कुमार उनको बचपन में देखते थे। उनसे बहुत प्रभावित होते थे और उन्हीं की तरह बनना चाहते थे। एक बड़े पॉलीटिशियन (राजनीतिज्ञ), नीतीश कुमार ने ठान लिय की अब वो एक राजनीतिज्ञ ही बनेंगे। ये बात किसी को पता नहीं था कि नीतीश कुमार एक पॉलिटिशियन बनना चाहते। और नीतीश ने भी कभी किसी को कुछ नही बताया। उनके स्कूल के टीचर यह बताते हैं कि उनको कभी ये लगा ही नहीं कि वह कभी राजनीति में जाएंगे।
वह तो एक बहुत ही होनहार और ब्रिलिएंट छात्र थे खास करके साइंस में। उनको कभी यह लगा ही नहीं की एक दिन बिहार के सीएम भी बनेंगे। यह उनके सोच से बाहर था एकदम।
नीतीश कुमार का राजनीति में प्रवेश: पहला चुनाव
नीतीश कुमार ने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी, इनको बहुत दिक्कत हो गई, उसके बाद नीतीश कुमार राजनीति में घुस गए। और जो 1974 का जेपी (JP Movement) आंदोलन हो रहा था, जिसमे जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, एस एन सिन्हा, कर्पूरी ठाकुर, और वी. पी. सिंह कुमार शामिल थे। नीतीश जी भी कूद पड़े और 1975 से 1977 तक आंदोलन चला नीतीश कुमार जेल भी गए। आपातकालीन भी लगा, जेल जाने के बाद इन्होंने जेल मे बहुत सी किताबे भी पढ़ी। जिससे इनका विज़न और भी बढ़ा, और जब नीतीश कुमार जेल से बाहर निकले। तब ये जनता पार्टी से 1977 में चुनाव लड़े लेकिन ये चुनाव हार गए। और जब ये दूसरी बार चुनाव लड़े तब भी ये हार गए।
जब 1985 में चुनाव हुआ, 1983 में नीतीश कुमार चंद्रशेखर जी के संपर्क में आए। चंद्रशेखर जी इतने डाउन टू अर्थ थे कि मत पूछो ये कभी मिनिस्टर बने ही नहीं। बने तो सीधे प्राइम मिनिस्टर और अगर किसी को पैसे कि जरूरत पड़ती थी तो वो अपने पैसे दे देते थे।
नीतीश जी जब तीसरी बार चुनाव लड़े
जब नीतीश कुमार तीसरी बार 1985 मे चुनाव लड़ने गए तो, तब ये अपनी पत्नी को एकदम वक्त नहीं दे पाते थे। तो इनकी पत्नी इनसे बहुत गुस्सा रहती थी। तब नीतीश कुमार ने कहा था कि ये 1985 का आखिरी चुनाव लड़ रहा हूँ, मैं वादा करता हूँ। अगर ये चुनाव हारा तो मैं हमेशा के लिए चुनाव और राजनीति से दूर हो जाऊंगा छोड़ दूंगा। और आम आदमी की तरह नौकरी करूंगा। और जब 1985 में चुनाव हुआ तो यहाँ पर चंद्रशेखर जी ने चुनाव लड़ने के लिए नीतीश कुमार जी को पैसे दिए। क्योंकि नीतीश के पास पैसे नहीं थे चुनाव लड़ने के लिए। और कहा जाओ चुनाव लड़ो, और जब 1985 का चुनाव हुआ और जब चुनाव का रिजल्ट आया, तो भाई ये चुनाव नीतीश कुमार जी जीत गए। और 1985 से लेकर 1989 तक द लेजिस्लेटिव असेंबली ऑफ बिहार के मेम्बर रहे। और 1987 से लेकर 1988 तक बिहार लोक दल के प्रेसीडेंट भी रहे।
जब राजीव गांधी को हटाने का नारा लगने लगा हटाने का
1989 में जगह जगह नारे लगने लगे कि राजीव गांधी को हटाओ। वीपी सिंह जो पहले काँग्रेस में थे, वो डिफेन्स मिनिस्टर थे, बाद में इन्होंने जनता दल बना लिया। ये जो दल था ये सारी एक साथ हो गए, कम्युनिष्ट पार्टी थी, बीजेपी थी, और कई पार्टी थी ये सब एक साथ हो गए कांग्रेस के खिलाफ खड़े हो गए। और चुनाव जीत भी गए, और यहाँ से बिहार की राजनीति शुरू होती है। सेंट्रल यानि केंद्र सरकार में कुछ और चल रही थी, बिहार मे देखा जाए 1967 तक कांग्रेस की ही सरकार थी। फिर उसके बाद कांग्रेस की सरकार खत्म हो गई।
राजनीति में जब लालू यादव का उदय होता है
1977 में कर्पूरी ठाकुर आए, वो चीफ मिनिस्टर बने जनता पार्टी के टिकट पर। लेकिन हुआ क्या कि यहाँ पर लालू यादव जी का उदय होता है। और यहाँ पर लालू यादव जी अपना कास्ट वाला कार्ड फेंकता है और यादव और मुस्लिम समुदाय के लोगों को अपनी तरफ कर लेते हैं। और मुस्लिम और यादवों का वोट इन्हे भर भर के मिलते हैं। बिहार में ज्यादा वोट लोग अपनी जाति के लोगों को ही देते हैं। पहले तो नीतीश कुमार और लालू यादव के आपस मे अच्छे रिश्ते थे। बल्कि बिहार असेंबली में नेता प्रतिपक्ष बनाने का नीतीश कुमार का बड़ा हाथ था। लालू यादव जो नेता बने थे, लालू यादव को नीतीश कुमार जी बहुत मानते थे। लेकिन धीरे धीरे नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच दूरियाँ बढ़ती गई।
लालू यादव नीतीश कुमार के खिलाफ भर भर के बोलते थे। और एक असेंबली में नीतीश कुमार ने भी लालू यादव को दम भर सुनाया। और यहाँ से नीतीश कुमार और लालू यादव अलग हो गए। 1989 से लेकर 1991 तक जनता दल और चंद्रशेखर और वीपी सिंह का समय हो गया खराब। बीपी नरसिमहा राव आ गए, 1991 से 1996 सेंट्रल में अलग कांग्रेस की सरकार वापस आ गई। 1990 से लेकर 2005 तक बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी ) जो लालू यादव कि पार्टी है इन्होंने शासन किया। लालू यादव मुख्यमंत्री थे इनपर भ्रष्टाचार का आरोप लगा उसके बाद ये हट गए उसके बाद इनकी पत्नी राबड़ी देवी जी मुख्यमंत्री बनी।
जब लालू यादव ने लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को रोकी
1990 के दौर में उस समय बीजेपी राम रथ पर सवार थी, राम लला हम आएंगे मंदिर वहीं हम बनाएंगे। 1990 में जो रथयात्रा निकली थी, उस समय बिहार के चीफ मिनिस्टर लालू यादव ही थे। बिहार से रथयात्रा जाना था, उसपर लाल कृष्ण आडवाणी जी सवार थे। लालू यादव ने उस रथयात्रा को रोक दिया, और जब लालू यादव ने उस रथयात्रा को रोका। तो यहाँ पर वीपी सिंह का जो दल था उसको सपोर्ट कर रही थी बीजेपी, तो यहाँ पर बीजेपी ने सपोर्ट वापस ले लिया। और जैसे ही सपोर्ट वापस ले लिया वैसे ही वीपी सिंह की सरकार 1989 में ही गिर गई। चंद महीनों में ही उसकी सरकार गिर गई, और यहाँ से बिहार की राजनीति शुरू होती है।
जो लालू प्रसाद यादव से, जो लोग इत्तेफाक नहीं रखते थे, उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली। जनता दल के बहुत सारे दल बने जिसमे से एक आरजेडी (RJD) पार्टी थी, जो लालू प्रसाद यादव की पार्टी थी। इससे पहले ये जनता दल में थे, 1997 में इस पार्टी को बनाया गया था। और उसके बाद जनता यूनाइटेड दल (JDU) जो नीतीश कुमार कि थी। इसको 2003 में बनाया गया, फिर उसके बाद जनता दल सेकुरल (JDS) वही दल जो बहुत काम कि साबित होनेवाली थी। समता पार्टी जार्ज फर्नांडीज की जो नीतीश कुमार के राजनीतिक गुरु कह सकते हैं।
समता पार्टी का उदय
जार्ज फर्नांडीज बहुत बड़े नेता थे बीजेपी के, और दिग्विजय सिंह जो शाही परिवार में जन्मे और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की। गजब का विज़न था इनका, इनके नाम के भी एक समय खूब नारे लगते थे। बहुत ही पढे लिखे नेता थे अबतक के राजनीति में। और जब समता पार्टी का उदय हुआ, बाद में जब 2003 आया और जब जनता दल यूनाइटेड बनी, नीतीश कुमार ने जब पार्टी बनाई। तो इसी मे मिल गई, 1990 से जब चुनाव शुरू हुआ। इससे पहले 1980 में जब लालू यादव ने कहा कि हम बिहार का चुनाव जीतेंगे ही जीतेंगे। तो उस समय बूथ capturing बहुत होती थी, जिस क्षेत्र में चुनाव हो रहा होता है उसे अपने कब्जे में ले लिया जाता था।
उस वक्त इलेक्शन कॉमिश्नर कौन थे? जिससे थर थर काँपते थे राजनेता वो थे टीएन शेषन भारत के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त थे। इनका कार्यकाल 12 दिसम्बर 1990 से लेकर 11 दिसम्बर 1996 तक था, उन्होंने बिहार में उस चुनाव को रोक दिया था। फिर उसके बाद पारदर्शी तरीके से चुनाव हुआ। 1990 के बाद से लालू प्रसाद यादव 15 साल तक रहे। तो यहाँ पर नीतीश कुमार बीजेपी के साथ हो लिए, और जब अटल बिहारी वाजपेयी की कैबिनेट बनी। तो उसमे नीतीश कुमार को जगह दी गई, और वो लोकसभा से चुनाव भी जितने लगे। 1999 में रेल्वे मिनिस्टर बन गए, फिर रेल घटना हुआ उसके बाद नैतिक जिम्मेवारी देते हुए रिजाइन दे दिया।
नीतीश कुमार जब चीफ मिनिस्टर बने
2001 से लेकर 2004 तक ये रेल्वे मिनिस्टर थे, लेकिन 2004 के बाद बीजेपी हार गई। और अब यहाँ से एक नई जर्नी शुरू होती है नीतीश कुमार जी की। तो बिहार की विधानसभा की सीटें 243 हैं, और जब 2005 में चुनाव हुआ। तो जनता दल यूनाइटेड (JDU) आ गई सरकार में पार्लियामेंट में नीतीश कुमार चीफ मिनिस्टर बन गए। 2005 से लेकर 2010 तक नीतीश जी मुख्यमंत्री रहे और बिहार में बहुत बदलाव देखने को मिला।
उपलब्धियां
नीतीश कुमार जी ने बहुत कुछ किया बिहार के लिए, बीजेपी और जनता दल यूनाइटेड (JDU) साथ में थे। अभी तक कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन 2010 के बाद दिक्कत आ गई। नीतीश का बीजेपी से रिश्ता खराब हो गया, पहले चुनाव की बात करते हैं। जब 2009 में चुनाव हुआ तो 243 सीटों में से 206 सीटें मिली नीतीश कुमार को। बीजेपी और JDU के गठबंधन को मिलाकर। 2005 में बीजेपी को 37 सीटें मिली थी। JDU को 55 और आरजेडी (RJD) को 75, तो वहाँ पर JDU को कांग्रेस और छोटी छोटी पार्टियों की सपोर्ट मिल गई। उसके सपोर्ट से नीतीश कुमार 2005 में चीफ मिनिस्टर बन गए। लेकिन 2010 में काम इन्होंने 206 सीटें जीत लिए।
और ये दोबारा चीफ मिनिस्टर बन गए, नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी से ज्यादा इत्तेफाक नहीं रखते थे। बीजेपी से निकलकर JDU पार्टी अलग हो गई।और नीतीश जी ने इस्तीफा दे दिया, इस्तीफा देने का एक और कारण था। जब 2014 में जो चुनाव हुए, जो लोकसभा की सीट है बिहार की। वो बहुत ही खराब स्थिति थी नीतीश कुमार की। बुरी तरह से हारी थी JDU पार्टी। इसलिए इन्होंने नैतिक जिम्मेवारी देते हुए इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफा देने के बाद और दिक्कत हो गई, और जब 2015 में जब विधानसभा के चुनाव हुए इससे पहले महागठबंधन बना लिया था। नीतीश कुमार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और बेरोजगारी के क्षेत्र में विकास के लिए कई योजनाएं शुरू की और राज्य को एक नए दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया।
नीतीश बाबू बीजेपी से क्यों अलग हुए?
तो यहाँ पर नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया था। और कहा था जब तक नरेंद्र मोदी प्राइम मिनिस्टर रहेंगे तब तक इनके साथ नहीं आऊँगा। मैं इनको सपोर्ट नहीं करता, तो 2015 में इन्होंने बहुत बड़ा जनता परिवार बना लिया जिसमे 6 पार्टियों शामिल थी उसका गठबंधन बना लिया। जिसमे JDU मेन पार्टी तो थी, जनता दल सेकुलर (JDS), इंडियन नैशनल लोक दल, समाजवादी पार्टी, समाजवादी जनता पार्टी, राष्ट्रीय आरजेडी। जिस लालू प्रसाद यादव की पार्टी को नीतीश कुमार जी बिल्कुल फूटे आँख नहीं सुहाती थी, उसी के साथ नीतीश जी ने गठबंधन कर लिया। और 2015 के चुनाव में सीट मिलकर जीते, लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार 2015 के चुनाव में साथ आ गए। नहीं आते तो सरकार नहीं बनती, ये होती है राजनीति।
नीतीश ने इस्तीफा दिया जितन राम माँझी को सीएम बनाया
चुनाव हुआ JDU को मिली 71 सीट, आरजेडी (RJD) ओ 80 और बीजेपी को 53 सीट मिली। 71 + 80 = 123 जरूरी 122 सीटें थी, गठबंधन करके नीतीश और लालू यादव ने सरकार बना लिया। सरकार तो इनकी बन गई लेकिन यहाँ हुआ क्या? तो यहाँ पर deputy chief minister तेजस्वी यादव बने। तेजस्वी यादव के खिलाफ बहुत से आरोप लग रहे थे। और नीतीश कुमार जी को बोला जाता था की ये तो धृतराष्ट्र हो गए। ये देख रहे हैं फिर भी नीतीश कुमार कोई कारवाई नहीं कर पा रहे हैं। जिस कारण नीतीश कुमार ने ही इस्तीफा दे दिया। क्यों इस्तीफा दे दिया? क्योंकि 2014 में इसकी पार्टी का प्रदर्शन बहुत ही खराब था। उसके बाद जितन राम माँझी को बिहार का चीफ मिनिस्टर बना दिया गया।
जितन राम माँझी को सीएम पद से इस्तीफा क्यों देना पड़ा
जितन राम माँजी को तो चीफ मिनिस्टर बना दिया था। लेकिन फिर से नीतीश कुमार को मनाया जा रहा था। और कहा कि आप वापस पार्टी में आ जाईए। वापस चीफ मिनिस्टर बनिए, और जब नीतीश कुमार वापस 10 महीन बाद दोबारा अपनी पार्टी में आया। तो जितन राम माँझी ने कहा कि मैं हटूँगा ही नहीं चीफ मिनिस्टर के पद से, जो करना है कर लो। मूड खराब हो गया नीतीश कुमार जी का और पार्टी का, ये क्या बकवास है। तो यहाँ पर जितन राम माँझी को बीजेपी ने सपोर्ट किया, क्योंकि JDU से तो उनकी दुश्मनी हो गई है। यहाँ पर पार्टी ने जितनराम माँझी को कहा कि आप रिजाइन कर दो लेकिन इन्होंने रिजाइन नहीं दिया।
तो यहाँ पर नीतीश कुमार की पार्टी governor के पास चली गई, और कहा कि इनसे कहो कि ये अपना बहुमत साबित करे। नो कॉन्फिडेंस वोट आया लेकिन उससे पहले ही जितन राम माँझी ने इस्तीफा दे दिया। जितन राम माँझी को निष्कासित (expelled) कर दिया गया। और फिर से नीतीश कुमार जी चीफ मिनिस्टर बा गए, और 2015 से लेकर 2019 तक सीएम पद पर रहे।
आते हैं 2017 में आरजेडी (RJD) और JDU कि कहानी पर जब दिक्कते बहुत ज्यादा बढ़ गई थी, तो 2017 में RJD से JDU ने रिश्ता तोड़ लिया। लालू प्रसाद यादव जेल चले गए चारा घोटाले में, और ये जो गठबंधन था ये टूट गया। तो उन्होंने RJD को अलग कर दिया और 2017 में वापस नीतीश बाबू बीजेपी मे आ गए। पहले बीजेपी से रिश्ता तोड़ा RJD से हाथ मिलाया और फिर से RJD से रिश्ता तोड़कर फिर बीजेपी से हाथ मिलाया। जिस नीतीश कुमार ने 2014 में बोला था कि जा तक नरेंद्र मोदी प्राइम मिनिस्टर है हम इस्तीफा दे रहे हैं। हम इसको बर्दास्त नहीं करेंगे और आज वही नीतीश कुमार बीजेपी के साथ है। और नरेंद्र मोदी के साथ मंच साझा करते हैं वाह रे राजनीति। बिहार लोग ठीक ही कहते हैं पलटू राम ये नाम बिहार के लोगों ने ही दिया है।
आजाद भारत के बाद बिहार की स्थिति
एक समय बिहार में जंगल राज था ऐसा जंगल राज था कि अगर कोई सुबह काम करने के लिए घर से निकलता था। तो शाम को घर वापस आएगा कि नहीं आएगा ऐसी कोई उम्मीद नहीं होती थी। बिहार में उस वक्त अपराध देखा जाए तो बहुत ज्यादा थी। अभी के मुकाबले, इतने अपहरण होते थे साल 1990 के आसपास में बताना मुश्किल है। लेकिन आज बिहार की हालत बहुत अलग है। भारत के आजाद होने के बाद बिहार की स्थिति बहुत ही खराब हो चुकी थी। बहुत निचले स्तर पर पहुंच गई बिहार कि स्थिति। उस समय बिहार में गुंडों और माफिया को बहुत संरक्षण दिया जाता था। उस वक्त देखा जाए तो साल 1990 में बिहार में क्राइम रेट बहुत ही ज्यादा बढ़ चुकी थी। और जब नीतीश कुमार राजनीति में आए तो यह सब चीजों पर थोड़ी सी लगाम लगी कंट्रोल हुआ।
जब 2020 में नीतीश ने इस्तीफा दिया
हालांकि, नीतीश कुमार के नेतृत्व में कई समर्थन भी मिले, कुछ विवाद भी उनके साथ जुड़े रहे हैं। 2020 में उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया लेकिन फिर भी राजनीतिक समीकरणों में बदलाव का हिस्सा रहे। नीतीश कुमार को उनकी सख्त और निष्ठापूर्ण नेतृत्व की मिसाल माना जाता है। उनका संघर्ष, समर्पण, और विकास के प्रति समर्पित योगदान ने उन्हें बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली व्यक्ति बना दिया है। नीतीश कुमार का संघर्ष और उनका समर्थन बिहार के लोगों के बीच एक विशेष स्थान बना चुका है। उनका नेतृत्व एक समाजवादी दृष्टिकोण के साथ है, जिसमें विकास और सामाजिक न्याय को महत्वपूर्ण रूप से लिया जाता है।
उन्होंने बिहार को विभिन्न क्षेत्रों में सुधार की दिशा में कई कदम उठाए हैं। नीतीश कुमार ने प्रमुख बिहार विकास योजनाओं को स्थापित किया, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, और बेरोजगारी के क्षेत्र में विशेष ध्यान दिया गया। उन्होंने समाजवादी दृष्टिकोण के साथ गरीबी और असहिष्णुता के खिलाफ संघर्ष किया और बिहार की आर्थिक स्थिति में सुधार करने के लिए कई पहलूओं पर ध्यान दिया। नीतीश का नेतृत्व विभिन्न चुनौतियों का सामना करने में साबित हुआ है। उन्होंने बिहार के विकास में सामंजस्य और सहयोग की भावना को मजबूत किया है। नीतीश की राजनीतिक दृष्टिकोण और उनके कार्यों के माध्यम से उन्होंने एक नए बिहार की रूपरेखा बनाई है। उनकी नेतृत्व शैली और उनका समर्थन उन्हें बिहार के लोगों के बीच एक लोकप्रिय नेता बनाए रखता है।
नीतीश कुमार जी की कुछ रोचक जानकारियाँ
- तो उनके पिता जो डॉक्टर थे, गांव में बहुत ही प्रचलित हुआ करते थे। जब इसके पास कोई मरीज आता था इलाज के लिए दिखाने के लिए जब इनके पिता दवाई देते थे। तो उनका बेटा नीतीश कुमार जी कागज में दवाई की पुड़ियां बनाकर मरीज को देते थे। नीतीश कुमार जी उस वक्त के कुछ बातें बताते और कहते हैं कि जब पिता दवाई देने को कहते थे। तो मैं दवाई की पुड़िया को इस तरह बांधकर देता था कि अगर आप उसे जमीन पर फेंक दो तो वह खुलकर बिखरता नहीं था। ऐसी पुड़िया नीतीश जी बनाते थे, जब नीतीश कुमार जी की स्कूल से छुट्टी हो जाती थी तो वो अपने पिताजी के कामों में हाथ बटाया करते थे।
- नीतीश कुमार जी जब छोटे थे तब उनके घर में एक छोटा कुआं था, तो छोटे में नीतीश कुमार जी बहुत चुलबुल भी थे। और घर के सारे बर्तन और अन्य सामान कुएं में फेंक देते थे। और वहां पर नीतीश कुमार जी की माता जी घर का बर्तन खोजती रहती थी कि आखिर बर्तन सारा गया तो गया कहा? उन्हें बाद में पता चलता था कि सारा बर्तन उनके बेटे नीतीश कुमार जी ने कुएं में फेंक दिया जब मां साल में एक बार कुएं की सफाई करवाती थी।
- जब मैट्रिक की परीक्षा हो रही थी तब इनके एग्जाम के पेपर छीन लिए गए थे। जिस कारण उनके मैथ के विषय में 100 में से 99 अंक आए थे। नहीं तो यह उसमें भी 100 अंक ले आते, उस समय नीतीश कुमार जी बहुत दुखी हुए थे क्योंकि जैसे ही मैट्रिक परीक्षा की समय सीमा खत्म हुई वैसे ही मास्टर जी नीतीश कुमार जी से एग्जामिनेशन पेपर छीन लिया। बहुत ही दुखी मन से जब स्कूल गया तो जब स्कूल मास्टर ने देखा तो पूछा तो बताया ऐसा ऐसा हुआ है।
- जब आगे चलकर नीतीश कुमार जी मुख्यमंत्री बनते हैं तो वे नया नियम लागू करते हैं। और शिक्षा के क्षेत्र में वह मैट्रिक की परीक्षा में 15 मिनट एक्स्ट्रा देने का प्रावधान शुरू करते हैं। ताकि कोई भी बच्चा अच्छे से लिख सके और पास हो सके। उनकी जिंदगी में जो जो भी समस्याएं आई उन्होंने उस क्षेत्र की समस्या का समाधान करते गया।
- एक बार हुआ क्या कि जब नीतीश जी और उनके दोस्त एक बार स्कूल से आ रहे थे तो उनके रास्ते में रेलवे क्रॉसिंग पड़ती है। क्रॉसिंग पर मालगाड़ी खड़ी थी तो उनका दोस्त मालगाड़ी के नीचे से किसी तरह पार हो गए। और जब नीतीश कुमार जी की पारी आई जब वह मालगाड़ी के नीचे से पार हो रहे थे अचानक से मालगाड़ी चलने लगी। उनका दिल बड़ा जोरों से धड़कने लगा और किसी तरह वह बचते बचाते खुद को वहां से निकाले। और जब जैसे ही नीतीश कुमार जी मुख्यमंत्री बने। तो सबसे पहले वह रेलवे क्रॉसिंग जो थी बचपन की वहां पर इन्होंने फ्लाई ओवर ब्रिज बनवाया। ताकि लोग ऊपर से आसानी से आ जा सके किसी को जान की बाजी ना लगानी पड़े।
- नीतीश कुमार जी को खेलने कूदने का भी बड़ा शौक था, तो अपने गांव में अपने दोस्तों के साथ बहुत खेलते थे। और खास करके गिल्ली डंडा बहुत ज्यादा खेलते थे। और जब दोस्तों में कभी-कभी झगड़ा हो जाता था तो नीतीश कुमार पंचायत बुलाते थे। नीतीश कुमार जी सब दोस्तों को इकट्ठा करते थे यह मुखिया रहते थे। और उसके बाद यह फैसला करते थे और कहते थे कि कोई बात नहीं सब मिलजुल खेलो झगड़ा हो गया तो क्या हो गया।
- जब ये साल 1965 में पढ़ रहे थे, तब ये नवमी कक्षा में थे। तो साल 1965 में ताशकंद का समझौता हुआ, और उस समय के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु हो गई। तो इन्होंने रेडियो पर समाचार सुना, इनको इतना ज्यादा दुख हुआ की रात के 3 बज रहे थे। रात के 3:00 बजे वह भागते-भागते अपने गुरु जी के घर गए। उनको जगाया और बोला हमारे शास्त्री जी का निधन हो गया है। तो मास्टर जी ने पूछा कि यह तुम्हें कैसे पता? तो नीतीश कुमार जी ने कहा कि मैंने रेडियो पर सुना। उनके गुरु ने कहा कि तो भाई इतनी रात को कौन बताता है, सुबह भी बता सकते थे।
- और ये जब कालेज में थे तब भी ये राजनीति में सक्रिय थे। यह हमेशा सच बोलते थे इनका तीन लोगों का ग्रुप था 3 इडियट्स के जैसा। तो ही हमेशा सच बोलते थे जिसके कारण बच्चे इनसे परेशान रहा करते थे। कि आखिर इतना कड़वा कैसे बोल सकते हैं इतने सच कैसे बोल सकते हैं।
बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री का नाम क्या है?
डॉ. श्रीकृष्ण सिंह (श्री बाबू) (1887–1961), अखंड बिहार राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री।
नीतीश कुमार का बेटा क्या कर रहा है?
फिलहाल राजनीति से दूर है।
नीतीश कुमार कितनी बार बिहार के मुख्यमंत्री बने?
तकरीबन 8 बार – 2005, 2010, 2013, 2015, 2017, 2020 में और 2022 और अब 2024 में।
बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री कौन है?
राबड़ी देवी 25 जुलाई 1997 को।
नीतीश कुमार की बेटी
बेटी नहीं है
नीतीश कुमार की पत्नी
मंजू कुमारी सिन्हा