लोकनायक जय प्रकाश नारायण का जीवनी | Jay Prakash Narayan Biography in hindi

जय प्रकाश नारायण का जीवन परिचय

लोकनायक के नाम से प्रसिद्ध जय प्रकाश नारायण महान स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक एवं राजनेता थे।  जय प्रकाश नारायण का आधुनिक भारत के इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। वे अकेले ऐसे शख्स है जिन्हे देश के तीन बहुत ही लोकप्रिय आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने का गौरव प्राप्त है। अंग्रेजों के खिलाफ अपनी जान की बाजी लगाकर अंग्रेजों से लड़ाई की। 1950 से 1960 तक भुदान आंदोलन में भाग लिया और सन् 1970 में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया। और बहुत बड़े सामाजिक परिवर्तन लाया,  जय प्रकाश नारायण इंदिरा गांधी के प्रशासनिक नीतियों के खिलाफ थे।

तबीयत खराब होने के बावजूद भी इन्होंने 1976 – 1977 में विपक्ष को एकत्रित कर इंदिरा गांधी को सरकार से गिरा दिया। आजादी के बाद राजनीतिक क्षेत्र में बड़े बड़े पद ले सकते थे, लेकिन इन्होंने गांधी जी की तरह सादा जीवन जीना पसंद किया।बिहार के छोटे से गाँव में जन्मे जय प्रकाश नारायण के लोकनायक बनने की कहानी बहुत ही दिलचस्प है। जीवन भर समाजवादी विचारधारा के जरिए समाज मे बदलाव लाने का काम करने वाले, जय प्रकाश नारायण ने उम्र के ऐसे पड़ाव पर भारतीय राजनीति में वापसी की। जब देश के बहुत से युवा छात्र परिवर्तन की राह पर बेगैर किसी के नेतृत्व के उस राह पर चल पड़े थे।

लोकनायक जय प्रकाश नारायण का जीवनी | Jay Prakash Narayan Biography in hindi

जय प्रकाश नारायण जी राजनीति से कब के सन्यास ले चुके थे। लेकिन लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए उन्होंने वापसी की और पूरे जोर शोर से क्रांति के नारे के साथ आंदोलन में कूद पड़े। 

जय प्रकाश नारायण का जन्म परिवार व शिक्षा

जय प्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर सन् 1902 को बिहार के सारण जिले के सिताब दियारा गाँव में हुआ। पिताजी का नाम हरसू दयाल श्रीवास्तव और माता का नाम फूल रानी देवी थी। ये परिवार के चौथे संतान थे, जय प्रकाश नारायण जब 9 साल के थे तब वो घर छोड़कर कॉलेज की पढ़ाई के लिए दाखिला के लिए पटना चले गए थे। बचपन में उन्हें 4 वर्ष तक दांत नहीं आने के कारण उनकी माताजी उन्हें ‘बऊल कहती थीं। जय प्रकाश नारायण 1920 में जब 18 साल के हुए तब उनकी शादी प्रभावती देवी से हुई। मौलाना अबुल कलाम आजाद के भाषण से प्रभावित होकर जय प्रकाश नारायण ने पटना कॉलेज छोड़कर बिहार विधापीठ में दाखिला ले लिया।

मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपने भाषण में कहा की मेरा भाई जहर पी रहा है और मैं उसको क्या कहूं? क्या उसको कहूँ की जहर पीते रहो जब तक दूध का प्याला नहीं मिल जाता। ये वाक्य मौलना ने इसलिए कहा क्योंकि गांधी जी ने अध्यापकों से छात्रों से वकीलों से सब से बहिष्कार की अपील की थी। जय प्रकाश नारायण तब इन्टर के विज्ञान के विधार्थी थे, 20 दिनों के बाद परीक्षा होनेवाली थी। उनकी अच्छी तैयारी थी, लेकिन स्कूल कॉलेज छोड़ दी, और जब आंदोलन मंद पड़ गया। तब जय प्रकाश नारायण ने विदेश में पढ़ने का इरादा किया। बिहार विध्यापिठ की पढ़ाई के बाद 1922 में अपनी पत्नी प्रभावती देवी को गांधी जी के साबरमती आश्रम में छोड़ कर जय प्रकाश नारायण कर्लीफोनिया के यूनिवर्सिटी में चले गए।

जय प्रकाश नारायण का कांग्रेस में शामिल होना

1922 से 1929 के बीच अमेरिका में रहे, और पढ़ाई के खर्चा उठाने के लिए कंपनियों, होटलों खेतों आदि में काम किया। और वहीं से श्रमिक वर्ग की कठिनाइयों को करीब से समझा। और साथ में अमेरिका से ही BA और MA की डिग्री प्राप्त की लेकिन किसी कारणवश  p.Hd नहीं कर पाए। माताजी का तबीयत खराब रहने के कारण उनको भारत वापस लौटना पड़ा।  और पढ़ाई पूरा होने के बाद जब 1929 में जय प्रकाश नारायण वापस भारत लौटे। तो उनका विचार और दृष्टिकोण बदल चुका था, भारत आते वक्त लंदन में और भारत में उनकी मुलाकात कई कम्युनिष्ट नेताओं से हुई। जिसके साथ उन्होंने भारत की स्वतंत्रता और कई क्रांति के मुद्दों पर चर्चा की।

जवाहरलाल नेहरू के आमंत्रण पर 1929 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। और उसके बाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। ब्रिटिश शासन के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया। जिसके कारण उन्हे साल 1932 में नासिक के जेल में बंद कर दिया गया। और जेल में बंद के दौरान राम मनोहर लोहिया, अशोक मेहता, मीनू मसानी, अच्युत पटवर्धन सीके नारायण स्वामी के संपर्क में आए। इस संपर्क ने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

दिसंबर 1939 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव के रूप मे जय प्रकाश नारायण ने लोगों के बीच आवाज उठाई कि दूसरे विश्व युद्ध का फायदा उठाते हुए भारत में ब्रिटिश शोषण को रोका जाए। और ब्रिटिश सरकार को यहाँ से उखाड़ कर फेंक दो। इस कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हे 9 महीने के लिए जेल में डाल दिया। जेल से छूटने के बाद जय प्रकाश नारायण गांधी जी और सुभाष चंद्र बॉस से मुलाकात की। स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत करने के लिए जय प्रकाश नारायण ने दोनों नेताओ के बीच मित्रता करवाने की पूरी कोशिश की लेकिन नहीं हुई।

1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भागीदारी

अगस्त 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान नेतृत्व करने का मौका मिला जब महात्मा गांधी और बाकी वरिष्ट नेताओ को पकड़कर जेल में डाल दिया। और राम मनोहर लोहिया और अरोड़ा आसफअली के साथ मिलकर आंदोलन को संभाला। हालांकि जय प्रकाश नारायण ज्यादा दिन तक बाहर नहीं रह पाए। और जल्द ही उनको भी पकड़कर हजारीबाग के सेंट्रल जेल में डाल दिया गया। इन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर जेल से भागने की योजना बनाई। और भागने का मौका भी इनको मिला। वो दिन था 9 नवंबर 1942 को दिवाली के मौके पर वो अपने 6 साथियों के साथ बहुत ही ऊंची दीवार को फांग कर भाग गए। माना जाता है की ये दीवार तकरीबन 50 फिट ऊंची थी।

उसके बाद जेल से भागने के बाद स्वतंत्रता आंदोलन के लिए भूमिगत होकर काम किया। ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने के लिए नेपाल में आजाद दस्ता बनाया। कुछ महीने बाद सितंबर 1943 में ट्रेन में यात्रा के दौरान उन्हे पंजाब से गिरफ्तार कर लिया गया। और स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी खुफिया जानकारी जानने के लिए अंग्रेजों ने जय प्रकाश नारायण को खूब यातनाएं भी दी। जनवरी 1945 में उन्हे लाहौर किले से आगरा जेल में डाल दिया गया। जब गांधी जी ने जोर देकर कहा की वो सिर्फ राम मनोहर लोहिया और जय प्रकाश नारायण की बिना शर्त रिहाई के बाद ही ब्रिटिश सरकार से बात करेगी। 

तब उसके बाद अप्रैल 1946 को  रिहा कर दिया गया, उधर गांधी जी कह रहे थे अंग्रेजो भारत छोड़ो और उधर जय प्रकाश कह रहे थे हमे पूर्ण आजादी चाही। गरीबों के लिए प्रतिबद्धता कम नहीं हुई। और यही उन्हें विनोबा भावे के भूदान आंदोलन के करीब लाया। ये उनके जीवन का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण चरण था। 70 के दशक की शुरुआत में तीसरा चरण आया, जब आम आदमी बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचारी से जूझ रहे थे।

गुजरात नवनिर्माण आंदोलन के नेतृत्व

1974 में गुजरात के छात्रों ने उनसे नवनिर्माण आंदोलन के नेतृत्व करने के लिए निवेदन किया। उसी वर्ष जून 1974 में पटना के गांधी मैदान में शांतिपूर्ण सम्पूर्ण क्रांति का आह्वान किया। उस भ्रष्ट राजनीतिक संस्थाओ के खिलाफ खड़े होने के लिए जागरूक किया। और एक दल के लिए कॉलेज और यूनिवर्सिटी बंद करने की अपील की। वे चाहते थे की छात्र राष्ट्र के पूर्णनिर्माण के लिए अपने आप को समर्पित करे। और ये वही समय था जब उन्हे लोकप्रिय रूप से जेपी नाम से बुलाया जाने लगा। इस आंदोलन के अंतिम चरण में देश में आपातकाल लगा दिया गया। जिसके बाद चुनाव हुआ और जनता दल की सरकार बनी।

मार्च 1977 में पहली बार केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार बनी, जनता पार्टी के तले सभी गैर कांग्रेसी को एकजुट करने का श्रेय जय प्रकाश नारायण को ही जाता है। संपूर्ण क्रांति के दौरान जेपी का तबीयत खराब रहने लगा था। और आपातकाल के दौरान जेल में बंद रहने के दौरान अचानक 24 अक्टूबर 1976 को तबीयत खराब हो गई। और 12 नवंबर 1976 को उन्हे जेल से रिहा कर दिया गया। मुंबई के अस्पताल में जांच के बाद पता चला की उनकी एक किडनी खराब हो गई। और उन्हे डाइलिसिस पर रखा जा रहा था। 8 अक्टूबर 1979 को पटना में जय प्रकाश नारायण जी का निधन हो गया।

1965 में उन्हे लोकसेवा के लिए मैग्सेस पुरस्कार (एशिया के व्यक्तियों और संस्थाओं को उनके अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने के लिए दिया जाने वाला एक वार्षिक पुरस्कार है) से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने 1999 में मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। 

5 जून 1974 का जेपी की संपूर्ण क्रांति का आह्वान, जेपी आंदोलन

जात पात तोड़ दो, तिलक दहेज छोड़ दो

समाज क प्रवाह को नई दिशा में मोड़ दो।

5 जून 1974 को पटना के गांधी मैदान में जय प्रकाश नारायण ने जब संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया तो यही नारा पूरे गांधी मैदान के साथ साथ पूरे देश में गुंजा था। 1974 में शुरू हुआ छात्र आंदोलन बाद में एक बड़ा रूप धारण कर लिया और संपूर्ण क्रांति मे तब्दील हो गया। संपूर्ण क्रांति इतनी ज्यादा प्रभावशाली थी की केंद्र से कांग्रेस को भागना पड़ गया और उनकी सरकार खतम हो गई। जय प्रकाश नारायण के नारे से युवा सड़कों पर उतार आए थे। बिहार से उठी संपूर्ण क्रांति की चिंगारी भारत देश के कोने कोने में आग की तरह फैल गई। दरअसल संपूर्ण क्रांति जय प्रकाश नारायण का विचार और नारा था। जिसका आह्वान उन्होंने इंदिरा गांधी को उसका सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए किया  था। 

जय प्रकाश नारायण ने कहा की संपूर्ण क्रांति से मेरा तात्पर्य समाज के सबसे अधिक दबे कुचले निचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना है। दरअसल आजादी के दो दशक के बाद राजनीतिक और आर्थिक हालातों ने जय प्रकाश नारायण को विचलित कर दिया। और यही वजह थी की सक्रिय राजनीति से सन्यास ले चुके जय प्रकाश नारायण ने दोबारा राजनीति में आने का फैसला लिया। दिसम्बर 1973 में जेपी ने यूथ फॉर डेमोक्रेसी नाम से एक संगठन बनाया और देश भर के युवाओ से अपील की वे लोकतंत्र की रक्षा के लिए आगे आए। गुजरात के छात्रों ने जब 1974 में चिमनभाई पटेल के सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू किया तो जेपी वहाँ गए और नवनिर्माण आंदोलन का समर्थन किया नेतृत्व किया।

इसके बाद मार्च 1974 में पटना में छात्रों ने आंदोलन की शुरुआत की, तब छात्रों के जोर देने पर जेपी ने बिहार में आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए राजी हो गए। और यही बिहार आंदोलन बाद में सम्पूर्ण क्रांति में बदल गया। 

साल 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के बाद गुजरात और बिहार में व्यवस्था परिवर्तन को लेकर 1974 में शुरू हुआ छात्र आंदोलन स्वतंत्र भारत के लिए अनोखी घटना थी। दरअसल बिहार का छात्र आंदोलन उस समस्याओ का परिणाम था जिन्हे लेकर छात्रों और जनता में जबरदस्त आक्रोश असंतोष था। महंगाई, बेकरी, शासकीय अराजकता और राजनीति में बढ़ता अपराध ऐसे ये मुद्दे थे जिन्हे लेकर आम आदमी परेशान था। ऐसे में छात्र युवाओ का संगठित आंदोलन एक स्वाभाविक घटना थी। लिहाजा मार्च 1974 में पटना में शुरू हुआ ये आंदोलन ऐसा आंदोलन बन गया, जिसका प्रभाव पूरे भारत देश पर पड़ा।

18 – 19 मार्च 1974 को छात्रों ने बिहार विधानसभा को घेर लिया। 18 मार्च को पुलिस की गोली से 50 से अधिक छात्र मारे गए। बिहार विधानसभा के चारों तरफ आगजनी कर दी गई थी, जेपी ने बयान दिया की इस हिंसा का जिम्मेदार खुद पुलिस है। कम्युनिष्ट पार्टी है, और कांग्रेस पार्टी है। वो बयान ऐसा था, जिसने छात्र आंदोलन का शांतिप्रियता का समर्थन किया और जेपी को लोगों ने निवेदन किया आप आंदोलन का नेतृव करे। उस समय जेपी की उम्र हो चुकी थी और साथ में बीमार भी थे। उस परिस्थिति में भी जेपी ने आंदोलन का नेतृत्व किया। और जैसे ही आंदोलन की बागडोर संभाली, उस आंदोलन को एक स्थायी मान्यता मिली, और एक ताकत मिली।

नहीं तो ये आंदोलन इतना बड़ा नहीं होता और आंदोलन बिखर जाता। और उसके बाद जय प्रकाश नारायण ने 5 जून 1974 को पटना के गांधी मैदान में सम्पूर्ण क्रांति का आह्वान किया। उस वक्त उस मैदान में तकरीबन 5 लाख के आसपास लोग मौजूद थे। जेपी ने कहा था – यह क्रांति है मित्रों, और संपूर्ण क्रांति है, विधानसभा का विघटन ( तोड़ना, अलग करना) मात्र इसका मकसद नहीं है। यह तो मात्र मील का पत्थर है, हमारी मंजिल तो बहुत दूर है। और हमे अभी बहुत दूर तक साथ जाना है। 5 जून 1974 को जेपी ने कहा की हमे भ्रष्टाचार मिटाना है, बेरोजगारी दूर करना है, शिक्षा में क्रांति लाना। ये ऐसी चीजे हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकती है।

क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज है, वे तभी पूरी हो सकती है, जब संपूर्ण व्यवस्था बादल दी जाए। और संपूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रांति, सम्पूर्ण क्रांति आवश्यक है। इस व्यवस्था से जो संकट पैदा किया है, वह सम्पूर्ण और बहुमुखी है। इसलिए इसका समाधान संपूर्ण और बहुमुखी ही होगा। व्यक्ति का अपना जीवन बदले, समाज की रचना बदले, राज्य की व्यवस्था बदले, तब कहीं बदलाव पूरा होगा। तब मनुष्य सुख और शांति का मुक्त जीवन जी सकेगा।

संपूर्ण क्रांति में शामिल क्रांतियों की प्रमुख बिन्दु क्या क्या थी?

  • आर्थिक 
  • राजनीतिक 
  • सामाजिक 
  • सांस्कृतिक 
  • बौद्धिक
  • शैक्षणिक 
  • आध्यात्मिक शामिल है

इंदिरा गांधी ने आपातकाल क्यों लगाया?

जेपी ने उस संपूर्ण क्रांति को समझाने की भी कोशिश को थी। लेकिन इंदिरा गांधी इस संपूर्ण क्रांति के नारे से इतनी डरी हुई थी। की लोकतंत्र का गला घोंटा, तानाशाही थोप दी और ऊपर से आपातकाल घोषित कर दिया। संपूर्ण क्रांति आंदोलन को जनता का पूरा समर्थन मिल रहा था। जेपी अब लोगों के मसीहा बन गए थे, उनके जनसभाओ में उमड़ती भीड़ से केंद्र की सरकार में बैठी इंदिरा गांधी हिल गई थी। आंदोलन को कुचलने के लिए तत्कालीन सरकार ने हर संभव उपाय अजमाएं लेकिन कुछ नहीं हुआ। इस बीच जून 1975 में गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हार गई। और जनता पार्टी सत्ता में आ गई, इधर इलाहाबाद कोर्ट ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया।

और इसके साथ ही जेपी आंदोलन को मिल रहे भारी समर्थन से घबराकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 – 26 जून 1975 की आधी रात से आपातकाल की घोषणा कर दी। देश भर में सेंसरशिप लागू कर दी गई, और जय प्रकाश नारायण सहित अन्य सैकड़ों बड़े नेताओ को मिसा और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार करके जेलों में बंद कर दिया गया। 19 महीने के काले कानून के बाद जनवरी 1977 में इंदिरा गांधी ने देश में आम चुनाव की घोषणा कर दी। उस वक्त तक भी जेपी की हालत खराब थी वो ठीक नहीं थे। बावजूद इसके उन्होंने चुनाव करवाना स्वीकार किया, और चुनाव में उत्तर भारत में कांग्रेस बुरी तरह से हार गई।

आजादी के बाद पहली बार केंद्र में गैरकांग्रेसी सरकार का गठन हुआ। लोकनायक जय प्रकाश नारायण के आंदोलन ने केंद्र से सरकार को ही बदल कर रख दिया।

आजादी के बाद हुए पहले आम चुनाव से ही जय प्रकाश नारायण जी मानने लगे थे कि

  • राजसत्ता चाहे जिस रूप में हो, वो कल्याणकारी नहीं हो सकती है।
  • सत्ता में जनता की भागीदारी का कोई प्रभाव नहीं होता है। 

अपने इन्ही विचारों का अनुसरण करते हुए जब उन्होंने देखा कि राजसत्ता आक्रमक तानाशाह की तरह काम करने लगी है। जिसमे लोकतंत्र सिर्फ ओट भर रहा है तो वो उठ खड़े हुए और उसे उखाड़कर फेंकने में भी सफल हुए।

पंडित जवाहरलाल के नीतियों से असहमति के कारण ही उन्होंने केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होना स्वीकार नहीं किया। सत्ता को अपने स्वभाव के विपरीत मानकर ही उससे दूरी बनाई रखी। वे सही मायने में गांधी जी के उस उतराधिकार को मानते थे जिसमे बिना स्वार्थ के सेवा भाव था। यही वजह है जब उन्हे 1967 में सर्वसंमिति से देश के उन्हे राष्ट्रपति पद पर बैठाने की बात आई तो उन्होंने बैठने से इनकार कर दिया। इस इनकार के जरिए उन्होंने जो आदर्श पेश किया उनके जैसा आज के दौर में न उस दौर में कोई नेता होगा। उनकी जीवनी, जयप्रकाश, उनके राष्ट्रवादी मित्र और हिंदी साहित्य के लेखक, रामब्रीक्ष बेनीपुरी ने लिखी थी।

जय प्रकाश नारायण का संपूर्ण क्रांति का दर्शन जिस सप्त क्रांति का संकल्प लेकर चलता है उसमे

  • सामाजिक
  • आर्थिक
  • राजनीतिक
  • सांस्कृतिक
  • शैक्षिक
  • नैतिक
  • बौद्धिक और
  • क्रांति का समग्र दर्शन है।

इस दर्शन के जरिए- 

  • जय प्रकाश नारायण देश में आमूलचूल (जड़ से लेकर शिखा तक) परिवर्तन चाहते थे। 
  • जिसमे सामाजिक जीवन का कोई पक्ष अछूता नहीं था।
  • वे सामान भाव से सभी वर्गों और जातियों को देखते हुए उन्हे बराबर के अधिकार देने के पक्षधर थे।

लोक नायक का असली नाम क्या है?

जय प्रकाश नारायण

जयप्रकाश नारायण ने कौन सी क्रांति चलाई थी?

संपूर्ण क्रांति, जेपी आंदोलन

संपूर्ण क्रांति का विचार किसने दिया था?

जय प्रकाश नारायण ने

जयप्रकाश नारायण क्यों प्रसिद्ध हैं?

लोकनायक के नाम से प्रसिद्ध जय प्रकाश नारायण महान स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक एवं राजनेता थे। इनका आधुनिक भारत के इतिहास में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। वे अकेले ऐसे शख्स है जिन्हे देश के तीन बहुत ही लोकप्रिय आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने का गौरव प्राप्त है

जयप्रकाश दिवस कब मनाया जाता है?

14 मार्च, 1940 से पूरे बिहार में “जयप्रकाश नारायण दिवस’ मनाया जा रहा है।

जयप्रकाश नारायण को भारत रत्न कब मिला था?

सामाजिक सेवा के सम्मान में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से 1999 को सम्मानित किया गया।

जयप्रकाश नारायण का जन्म स्थान कहां है?

बिहार के सारण जिले के सिताब दियारा गाँव में

जयप्रकाश नारायण को समाज सेवा के लिए 1965 में कौन सा पुरस्कार मिला था?

 1965 में लोक सेवा के लिए मैग्सेसे पुरस्कार दिया गया

जयप्रकाश नारायण की पत्नी का नाम क्या था?

प्राभवती देवी (1920)

सम्पूर्ण क्रांति या जेपी आंदोलन कब हुई थी?

साल 1974 में

जयप्रकाश नारायण का निधन कब हुआ?

8 अक्टूबर 1979 को

जयप्रकाश नारायण ने छात्र आंदोलन का नेतृत्व कब किया था?

1974 में

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Dipu Sahani
Dipu Sahani

I live in Jharia area of ​​Dhanbad, I have studied till Intermediate only after that due to bad financial condition of home I started working, and today I work and write post together in free time............

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