पप्पू यादव का जीवन परिचय : Mp MLA Pappu Yadav (Rajesh Ranjan) biography
तो आज हम बिहार के सबसे बड़े बाहुबली नेता पप्पू यादव (Pappu Yadav) के बारे में जानेंगे। पप्पू यादव, जिनका असली नाम राजेश रंजन है। कैसे बिहार के एक छोटे से गाँव का लड़का स्कूल के दिनों में ही जेल की हवा खाता है। और कॉलेज तक आते – आते मर्डर के चार्ज में गिरफ्तार भी होता है। और जब लालू यादव की पार्टी उसे विधायक का टिकट देने से मना करती है। तो महज 23 साल की उम्र में निर्दलीय चुनाव लड़कर विधायक बन जाता है। यही नहीं जब लालू यादव को मुख्यमंत्री बनने के लिए 41 विधायकों की समर्थन की जरूरत थी। तब पप्पू यादव ने ही 11 विधायकों का समर्थन जुगाड़ कर लालू यादव को पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया।
बिहार की राजनीति में पप्पू यादव (Pappu Yadav) का जलवा ऐसा था, कि 21 साल की उम्र में जब वह विधायक भी नहीं थे तब भी पप्पू यादव ने लालू को नेता प्रतिपक्ष बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। एक ऐसा युवा नेता जिसके क्षेत्र में 90 के दशक में भी 24 घंटे बीजली आती थी। अधिकारी इस डर से बीजली सप्लाइ करते थे, कि अगर बिजली नहीं दी तो पप्पू यादव पूरे पावर स्टेशन को आग लगा देंगे। एक ऐसा नेता जो एक तरफ गरीबों का मसीहा भी कहा जाता है तो दूसरी तरफ “अटेम्प्ट टु मर्डर आर्म्स एक्ट एक्सटेंशन” सहित 41 गंभीर धाराओं मे नामजद है।
फिर एक वक्त वो भी आया जब लगभग तीन दशक तक बिहार की राजनीति पर अपना दबदबा रखने वाले पप्पू यादव लारेंस बिश्नोई को धमकी देते हैं। और जब एक शख्स खुद को लारेंस का आदमी बताकर कॉल करके पप्पू यादव को धमकी देते हैं तो पप्पू यादव डर कर अपने शब्द वापस ले लेते हैं। पप्पू यादव की एक छवि भले ही आपराधिक रही हो लेकिन जनता के बीच उनकी पसंद को नकारा नहीं जा सकता है।
पप्पू यादव का जन्म, परिवार व शिक्षा
पप्पू यादव का जन्म 24 दिसंबर 1967 को बिहार के मधेपुरा जिले के खुर्दा कड़वेली गांव में हुआ था। उनका असली नाम राजेश रंजन है, लेकिन उनके दादाजी उन्हें बचपन से ‘पप्पू’ कहकर बुलाते थे, और यही नाम उनकी पहचान बन गई। उनके पिताजी गांव के ज़मींदार थे और उनकी अच्छी खासी खेती थी, जिससे वह एक धनी परिवार से आते हैं। उनकी पत्नी का नाम रंजीता रंजन है, जो स्वयं राजनीति में सक्रिय हैं और कांग्रेस की प्रवक्ता भी रह चुकी हैं। वह मधेपुरा से सांसद भी रह चुकी हैं। पप्पू यादव के बेटे का नाम सार्थक रंजन है, जो एक टी-20 खिलाड़ी हैं, और दिल्ली टीम के लिए खेलते हैं। और उनकी बेटी का नाम प्राकृति रंजन है।
पप्पू यादव (Pappu Yadav) काफी समृद्ध परिवार से आते हैं। उनके परदादा विनायक मंडल बांका से मधेपुरा आकर बसे थे। उनके दादा लक्ष्मी मंडल अपने गांव के सरपंच थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सुपौल के आनंद पल्ली स्कूल से की थी। उन्होंने बी एन मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा से राजनीति विज्ञान में ग्रेजुएशन (बीए) किया। इसके बाद, उन्होंने इग्नू से आपदा प्रबंधन और मानवाधिकार में डिप्लोमा भी लिया।

पप्पू यादव का राजनीतिक सफर : आपराधिक दुनिया में प्रवेश
पप्पू यादव ने अपने किशोरी अवस्था में ही बिहार के दिग्गज नेताओं का ध्यान अपनी और खींच लिया था। पप्पू यादव अपने स्कूल के शुरुआती दिनों में ही काफी चर्चा में आ गए थे। स्कूल के दिनों से ही दूसरे गुटों के साथ आए दिन झगड़े होते रहते थे। अपनी इन्हीं हरकतों की वजह से पप्पू ने स्कूल के दिनों में ही पहली बार जेल की हवा खाई। जेल जाने के बाद वह पूर्णिया के एक दबंग स्थानीय नेता अर्जुन यादव के संपर्क में आते हैं। और वहीं से पप्पू यादव अपराध और राजनीति की दुनिया में प्रवेश करते हैं। बिहार के जातिगत, राजनीति और अपराध पर किताब लिख चुके मृत्युंजय शर्मा अपनी किताब “ब्रोकन प्रोमिश” में लिखते कि अर्जुन यादव उसे दौर में पूर्णिया के अंदर समानांतर सरकार चलाते थे।
पप्पू यादव का काम युवाओं को उनके टीम से जोड़ने का का था। इन गतिविधियों में शामिल रहने के कारण पप्पू यादव को स्कूल से निकाल दिया गया। पहली बार पप्पू यादव पर कोई बड़ा अपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ, जब वह 12वीं में थे। कटिहार कॉलेज के एक अपर कास्ट स्टूडेंट के मर्डर केस में पप्पू यादव को आरोपी बनाया गया। इस घटना के बाद उन्हें अपनी 12वीं की परीक्षा जेल से ही देनी पड़ी थी। फिर 1987 में राजपूत गैंग द्वारा उनके पहले गुरु अर्जुन यादव की हत्या कर दी जाती है। इसके बाद पूरी कमान पप्पू यादव के हाथ में आ जाती है। बाहुबली नेता आनंद मोहन के साथ दुश्मनी की शुरुआत यहीं से होती है।
छोटे-मोटे अपराधों को अंजाम देने के बाद अब बारी थी पप्पू यादव की राजनीति में घुसने की। साल 1988 बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष कपूरी ठाकुर की संदेहास्पद मौत हो जाती है। उनकी मौत के बाद नेता प्रतिपक्ष का पद खाली हो जाता है। उस वक्त लालू यादव नेता प्रतिपक्ष बनना चाहते थे। लेकिन तब लालू के लिए यह सोचना भी बड़ी बात थी। क्योंकि पार्टी में उनसे बड़े कई बड़े नेता थे, लालू यादव के सामने मुख्य प्रतियोगी (competitor) थे अनूप लाल यादव, जो की कपूरी ठाकुर की सरकार में मंत्री भी थे। वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह किताब “रूल और मिसरूल बिहार” में पप्पू यादव कहते हैं की पहली बार लालू यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाने में उनकी भी बड़ी भूमिका थी।
तब पप्पू यादव (Pappu Yadav) की उम्र में 21 साल थी। इतनी छोटी उम्र में भी वह लालू यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाने के लिए पैरवी कर रहे थे। जबकि अनूप लाल यादव उनके फूफा थे, पप्पू यादव लालू यादव का अपना आदर्श नेता मानते थे। और 1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल से टिकट चाहते थे। लेकिन लालू यादव नेता प्रतिपक्ष बनने के बावजूद भी लालू ने पप्पू यादव को टिकट नहीं दी। 1990 के विधानसभा चुनाव में पप्पू यादव निर्दलीय ही चुनाव में उतर गए। और मधेपुरा के सिंघेश्वर विधानसभा सीट से बड़े अंतर से जीतकर 23 साल की उम्र में पहली बार विधायक बन गए।
संतोष सिंह की ही किताब “बिहार रूल और मिसरूल” में पप्पू यादव कहते हैं कि 1990 में जब वे नवगछिया नरसंहार में पीड़ितों से मिलने गए थे। तो लालू यादव ने उनसे कहा था कि वह यादवों का नेता बनने की कोशिश न करे। यह एक ऐसा वक्त था जब बिहार की राजनीति में लालू यादव खुद अपने लिए जगह तलाश रहे थे। और ऐसे में पप्पू यादव का उदय उन्हें थोड़ा असहज और परेशान कर रहा था। 1990 का बिहार विधानसभा चुनाव तब झारखंड बिहार का हिस्सा हुआ करता था। कुल विधानसभा सीटें थी 324 और बहुमत के लिए किसी गठबंधन को 163 सीटें चाहिए थी। इस चुनाव में जनता दल 122 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी।
नीतीश कुमार गुट के समर्थन से लालू यादव अपनी पार्टी के नेता बन चुके थे। लेकिन उन्हें अभी भी 41 विधायकों की समर्थन चाहिए था। पप्पू यादव (Pappu Yadav) तब 23 साल की उम्र में पहली बार निर्दलीय लड़कर विधायक बने थे। जनता दल से टिकट न मिलने के बावजूद भी लालू यादव को अपना आदर्श नेता मानते थे। पप्पू यादव (Pappu Yadav) ने चुनाव से पहले की बातें भूलाकर लालू यादव को 11 निर्दलीय विधायक को समर्थन दिलाया। और लालू यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बनाया। लालू यादव और पप्पू यादव कितनी बार एक दूसरे के साथ आए या आना चाहते थे इसकी कोई गिनती नहीं है।
बाहुबली पप्पू यादव और आनंद मोहन की दुश्मनी कारण
अब बारी आती है उस दौर में राजपूतों के सबसे बड़े नेता आनंद मोहन और पप्पू यादव के बीच की दुश्मनी की। बीते दो दशकों में कोसी सीमांचल का एरिया हमेशा से भीषण बाढ़ के चलते खबरों में रहा है। मगर 90 के दशक में यह क्षेत्र गैंगवार के लिए भी जाना जाता है। यह गैंगवार था तब के राजपूतों के उभरते नेता आनंद मोहन और पप्पू यादव के बीच। इसकी एक शुरुआत अर्जुन यादव की हत्या के साथ शुरू हो चुकी थी। बस इंतजार था आग में घी डालने का। पप्पू यादव सिर्फ एक साल के भीतर मधेपुरा के सिंघेश्वर विधानसभा और पूर्णिया से लोकसभा का चुनाव निर्दलीय ही जीत चुका था। इसलिए कोशी सीमांचल के हर जिले में उनका प्रभाव बढ़ता जा रहा था।
पप्पू यादव का विस्तार आनंद मोहन के लिए बड़ी चुनौती था। मंडल आंदोलन के दौरान कोशी सीमांचल से दो चेहरे उभर रहे थे। जिसमें पप्पू यादव मंडल समर्थक और आनंद मोहन मंडल विरोधी थे। दोनों के बीच की यह पॉलिटिकल दुश्मनी जल्द ही गैंगवार की शक्ल लेने वाली थी। इस गैंगवार में वजह बना पप्पू यादव का शरद यादव को समर्थन करना। 1991 लोकसभा चुनाव में मधेपुरा सीट पर एक उम्मीदवार की मौत के कारण चुनाव रद्द हो गया था। बिहार में सभी सीटों पर चुनाव खत्म होने के बाद यहां चुनाव की घोषणा हुई। आनंद मोहन ने अपनी पार्टी “बिहार पीपुल्स पार्टी” से शरद यादव के सामने चुनाव में ताल ठोक दी।
मधेपुरा को लेकर एक कहावत काफी चर्चित है, रोम पोप का मधेपुरा गोप (यादव) का। मधेपुरा के इतिहास में यह पहली बार था, जब कोई गैर यादव लोकसभा का चुनाव लड़ने जा रहा था। मंडल आंदोलन के दौरान और चुनाव से ठीक पहले आनंद मोहन के दो समर्थकों की हत्या कर दी गई। जिसके चलते यह पूरा आंदोलन फॉरवर्ड वर्सेस बैकवर्ड हो गया। शरद यादव एक स्थापित नेता थे और इसलिए यह चुनाव उनके लिए प्रतिष्ठा का विषय बन चुका था। यहां तक सब कुछ ठीक था मगर पूर्णिया से निर्दलीय चुनाव जीतकर Pappu Yadav अब मधेपुरा में थे। पप्पू यादव शरद यादव को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।
इसलिए शरद यादव के बूथ मैनेजमेंट की जिम्मेदारी अब Pappu Yadav ने अपने हाथों में ले ली थी। आनंद मोहन को यह रास नहीं आया। पप्पू यादव की लोकप्रियता की वजह से एक बड़ा वोट बैंक शरद यादव की तरफ शिफ्ट हो रहा था। आनंद मोहन बुरी तरह से चुनाव हार गए। और फिर शुरू हुआ गैंगवॉर का सिलसिला जिसके चलते मधेपुरा, सहरसा का क्षेत्र पप्पू यादव और आनंद मोहन के गैंगवॉर से त्रस्त रहा। 1991 से 1994 तक दोनों के बीच गैंगवॉर चरम पर थी। हालांकि इस चुनाव में हार की वजह से आनंद मोहन की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं हुई। आनंद मोहन न सिर्फ राजपूतों के बल्कि अगड़ी जातियों के भी नेता बनना चाहते थे।
आनंद मोहन लालू के खिलाफ एक विकल्प के रूप में खुद को पेश कर रहे थे। वह इसके लिए पूरे बिहार भर में रैलियां भी कर रहे थे। 1995 विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने पटना साइंस कॉलेज में लालू यादव को चैलेंज करते हुए एक रैली की। जिसमें उन्होंने कहा था चंद्रगुप्त तैयार है, बस चाणक्य की तलाश है। 1994 इस उपचुनाव में पहली बार बीपीपी ने जीत का स्वाद चखा। आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद वैशाली से लड़कर सांसद बनी। उन्हें भूमिहार और ब्राह्मणों का भी समर्थन मिला। वैशाली मुजफ्फरपुर क्षेत्र का एक चर्चित गैंगस्टर छोटन शुक्ला तब आनंद मोहन से काफी प्रभावित था। और उसने लवली आनंद के लिए दिन रात चुनावी प्रचार भी किया था।
उसके अगले ही साल 1996 के लोकसभा चुनाव में आनंद मोहन भी शिवहर से सांसद बने। अगड़ी जातियों में आनंद मोहन का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। फिर भी लालू यादव, आनंद मोहन से उतने असहज नहीं थे। जितना कि अपनी ही जाति से आनेवाले पप्पू यादव से थी। 1992 में पप्पू यादव और आनंद मोहन गुट में एक हिसंक झड़प हुई, इस झड़प में पप्पू यादव का भी नाम आया। लालू यादव ने पप्पू यादव की गिरफ्तारी के लिए तब विशेष आदेश जारी किया था। पप्पू यादव पर NSA के तहत मुकदमा दर्ज हुआ। इसके बाद पप्पू यादव गिरफ्तारी से बचने के लिए अंडरग्राउंड हो गए। और छुप छुप कर इधर उधर आने जाने लगा।
पप्पू यादव और लालू यादव (Pappu Yadav) के रिश्ते कुछ ऐसे रहे जहां बातचीत और समझौते का रास्ता हमेशा खुला था। निर्दलीय लोकसभा चुनाव जीतने के बाद पप्पू यादव ने 1993 में अपनी एक पार्टी बनाई जिसका नाम था “बिहार विकास पार्टी” बाद में पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का विलय समाजवादी पार्टी के साथ कर दिया। 1995 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने 2 सीटें भी जीती, 1996 लोकसभा चुनाव से पहले पप्पू यादव लालू यादव के साथ आए लेकिन चुनाव से ठीक पहले अलग हो गए। 1996 में समाजवादी पार्टी के सिंबल पर पूर्णिया सीट से चुनाव लड़कर पप्पू यादव दूसरी बार सासंद बने।
2013 में अजित सरकार हत्याकांड में पप्पू यादव की रिहाई।
पप्पू यादव लगभग 10 सालों से जेल में थे, इस बीच उन्होंने अपनी राजनीतिक नेतृत्व भी पूरी तरह खो चुकी थी। 17 मई 2013 को पटना हाइकोर्ट ने अजित सरकार हत्याकांड में पप्पू यादव को बरी कर दिया। जस्टिस वीएन सिंह और जस्टिस केके लाल की बेंच ने सबूतों के अभाव में पप्पू यादव और उनके दो साथियों को बरी करते हुए फैसला सुनाया कि चूंकि पप्पू यादव इसके अलावा किसी और केस में वांटेड नहीं है तो उन्हें तत्काल प्रभाव से रिहा कर दिया जाए। जेल से बाहर आने के बाद पप्पू यादव के सामने अब चुनौती थी खुद को राजनीति में जिंदा रखने की। पप्पू यादव के जेल से बाहर निकलते ही उन्हें फिर से राजेडी में शामिल होने का न्योता मिला।
जेल से रिहा होने के बाद 2014 बिहार लोकसभा चुनाव उतरे
2014 में जब भाजपा और जेडीयू ने अलग अलग चुनाव लड़ा तब शरद यादव को जेडीयू (JDU) ने मधेपुरा से चुनाव मैदान में उतारा। लालू प्रसाद यादव ने पप्पू यादव को मधेपुरा सीट से चुनाव लड़ने को कहा, लेकिन पप्पू यादव अपने राजनीतिक गुरु के खिलाफ चुनाव में नहीं लड़ना चाहते थे। पप्पू यादव चाहते थे कि उन्हें पूर्णिया से टिकट मिले, जहां से अब तक वह जीतते आ रहे थे। लेकिन लालू यादव ने कहा कि वह कांग्रेस को पूर्णिया सीट देने का वादा कर चुके हैं। इसलिए उनके पास बस यही एक विकल्प बचा है, खैर पप्पू यादव मधेपुरा से चुनाव लड़े और लगभग 1 लाख वोटो से जीतकर चौथी बार सांसद बने।
इसी चुनाव में पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन भी सुपौल से लड़कर दोबारा सांसद बनी। राजनीति में इंसान किस कदर समझौते कर सकता है, इसकी बानगी 2014 लोकसभा चुनाव के प्रचार में दिखी। चुनाव से एक दिन पहले ही शरद यादव एक महिला से जीत का आशीर्वाद लेने जाते हैं, यह महिला कोई और नहीं बल्कि आनंद मोहन की मां गीता देवी थी।
2014 लोकसभा चुनाव के बाद Pappu Yadav ने एक ऐसा फैसला लिया, जिसे हम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना कहते हैं। पप्पू यादव हमेशा से लालू यादव की राजनीति विरासत को संभालना चाहते थे। मगर शुरुआती दिनों में खुद लालू यादव उनसे असहज रहते थे। लालू अपने बेटे तेजस्वी यादव को राजनीति में लाने की तैयारी कर रहे थे। लोकन चुनाव के बाद नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के बीच 15 सालों का तकरार खत्म हुआ। 2015 विधानसभा चुनाव को लेकर गठबन्धन बना। तय हुआ कि जीत के बाद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनेंगे। तेजस्वी उपमुख्यमंत्री इस फैसले से पप्पू यादव काफी नाराज हुए। इसके बाद पप्पू यादव, नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के खिलाफ लड़े।
आरजेडी ने पप्पू यादव को पार्टी से निकाला
7 मई 2015 को एंटी पार्टी एक्टिविटीज के कारण पप्पू यादव (Pappu Yadav) को पार्टी से 6 सालों के लिए निष्कासित कर दिया गया। निष्कासन के बाद पप्पू यादव ने बयान दिया कि लालू यादव अपने बेटे को अपना उतराधिकारी बनाना चाहते हैं। और इसी वजह से ही उन्हें पार्टी से निकाला गया। इसके बाद पप्पू यादव ने अपनी एक अलग पार्टी बनाई जिसका नाम था “जन अधिकार पार्टी“(जाप)। पप्पू यादव ने 2015 में कई सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाये। पप्पू यादव के लिए बस एक अच्छी चीज ये थी कि दोनों पति पत्नी अभी भी सांसद थे। फिर आया 2019 का लोकसभा चुनाव। पप्पू यादव के लिए फिर से राजनीति में बने रहने की चुनौती थी।
2020 विधानसभा चुनाव : पप्पू यादव
राजद के साथ भी संबंध इतने खराब हो चुके थे कि आगे की राह मुश्किल लग रही थी। पप्पू यादव मधेपुरा से निर्दलीय ही चुनाव में उतर गए। यह उनके राजनीतिक करियर की सबसे बड़ी भूल थी। इस चुनाव में उनकी जमानत जब्त हो गई, सुपौल सीट से रंजीत रंजन भी चुनाव हार गई। लेकिन सुकून की बात यह रही कि जून 2022 में कांग्रेस ने उनकी पत्नी रंजीत रंजन को छत्तीसगढ़ से राज्यसभा भेज दिया। पप्पू यादव ने अपनी राजनीति बचाने के लिए 2020 में बिहार विधानसभा का भी चुनाव लड़ा, जिस कोशी क्षेत्र से पप्पू यादव ने 23 साल की उम्र में निर्दलीय चुनाव जीता था। उसी क्षेत्र के मधेपुरा सीट पर एक और उनकी जमानत जब्त हो गई।
इसके बाद लोगों ने यह मान लिया था कि पप्पू यादव की राजनीति अब पूरी तरह खत्म हो चुकी है। बस वह अपनी मौजूदगी दिखाने के लिए बने हुए थे, मगर खेल अभी बाकी था।
2024 लोकसभा चुनाव : पप्पू यादव पार्टी का विलय
अब बारी थी 2024 लोकसभा चुनाव की, जब पप्पू यादव की जीत को तेजस्वी की सबसे बड़ी हार के रूप में देखा गया। लोकसभा चुनाव अपने पिक पर था, लेकिन तेजस्वी यादव एक सप्ताह तक पूर्णिया में ही अपने उम्मीदवार के लिए कैंपेन करते रहे, उम्मीदवार थी बीमा भारती जो कभी जेडीयू की विधायक हुआ करती थीं। बिहार विधानसभा में जेडीयू विधायक बीमा भारती फ्लोर टेस्ट के दौरान सदन में मौजूद नहीं थी। बाद में पता चला कि वह नीतीश सरकार को अपना समर्थन नहीं देना चाहती थी। उनकी इस वफादारी का इनाम था राजद के सिंबल पर पूर्णिया लोकसभा का टिकट। पप्पू यादव बीते 2 साल से उस सीट पर अपनी तैयारी कर रहे थे।
पप्पू यादव पूर्णिया को लेकर इतने Desperate थे कि वो अपने पार्टी का विलय राजेडी में करने को तैयार हो गए थे। मगर लालू यादव को यह मंजूर नहीं था। लोकसभा चुनाव से पहले लालू यादव और पप्पू यादव की एक मुलाकात हुई। जिसके बारे मे पप्पू यादव ने कहा कि उन्हें पूर्णिया छोड़ने के लिए मधेपुरा और सुपौल दो सीटें दी जा रही थीं। लेकिन वो कहते रहे कि पूर्णिया उनकी मां है और वह अगर चुनाव लड़ेंगे तो यहीं से लड़ेंगे। लेकिन जानकारों की माने तो लालू यादव बीमा भारती का नाम तय कर चुके थे। यही कारण रहा कि इंडिया गठबन्धन में सीटें तय होने से पहले ही बीमा भारती को राजेडी का सिंबल दे दिया गया।
पप्पू यादव समझ गए कि वह पूर्णिया में इंडिया गठबन्धन के उम्मीदवार तो नहीं हो सकते, पप्पू यादव ने कांग्रेस की टॉप लीडरशिप से मुलाकात की। और अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया। इसके पीछे एक बड़ी भूमिका उनकी पत्नी रंजीत रंजन की रही। रंजीत कांग्रेस लीडरशिप में प्रियंका गांधी की करीबी हैं। इन्होंने ही पप्पू यादव को कांग्रेस में शामिल करने की पैरवी की। जिसके बाद 20 मार्च 2024 को पवन खेड़ा की उपस्थिति में पप्पू यादव को कांग्रेस में शामिल कराया गया। लेकिन पप्पू यादव के दिमाग में एक चीज साफ थी कि वह चुनाव लड़ेंगे तो सिर्फ पूर्णिया सीट से।
तब कांग्रेस लीडरशिप के लिए भी पप्पू यादव को अपनी पार्टी में शामिल कराना एक साहसी फैसला था। चुनाव में पप्पू यादव ने पूर्णिया सीट से ही निर्दलीय चुनाव लड़ा और लगभग 25000 वोटों से चुनाव जीत गए। चुनावी नतीजों में आरजेडी उम्मीदवार बीमा भारती अपनी जमानत तक नहीं बचा सकी। खुद तेजस्वी यादव ने उनके लिए एक सप्ताह तक कैंपेन किया था। जिसकी वजह से यह हार सिर्फ और सिर्फ तेजस्वी यादव की मानी गई। पप्पू यादव ने निर्दलीय चुनाव जीतकर लोगों को फिर से यह एहसास दिला दिया कि अपने क्षेत्र के मास लीडर वही है। यहां तक कि राजनीति यात्रा में पप्पू यादव की छवि को पूरी तरह से बदलते हुए देखा।
और इसका कारण भी था, बिहार बदल रहा था और उसके साथ राजनीति के तौर तरीके भी बदल रहे थे। पहले नेताओं को लगा कि जनता को काबू में रखने के लिए उन्हें बाहुबलियों की जरूरत है। लेकिन बाहुबलियों ने सिर्फ लठ नहीं चलाया बल्कि दिमाग भी चलाया। वह यह जान गए कि अगर उनके पास ताकत है तो, उन्हें नेताओं की जरूरत नहीं है। बाहुबली तब खुद ही नेता हो गए और वो भी बाहुबली नेता। पप्पू यादव इसी फिनॉमिना के नतीजा थे। लेकिन जेल से बाहर आने के बाद पप्पू यादव ने देखा कि राजेडी में संक्रमण काल चल रहा है। आरजेडी अब लालू की जगह तेजस्वी की पार्टी होती जा रही थी।
इसलिए पप्पू यादव ने अपनी अलग पहचान गढ़ने शुरू की। वह देख पा रहे थे कि सोशल मीडिया की दुनिया बाहुबलियों की जगह सीमित है। तो वह मसीहा के अवतार में आए, बाढ़ में ट्रैक्टर चलाकर खुद लोगों की मदद करने लगे। सांसद में रिनिट का मुद्दा उठाने लगे।
उन्होंने अपने 36 साल के राजनीतिक करियर की शुरुआत 1990 में की, जब उन्होंने पहली बार मधेपुरा के सिंहेश्वर विधानसभा सीट से एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता।
1990 सिंघेश्वर विधानसभा चुनाव परिणाम
उम्मीदवार | वोट (%) |
---|---|
राजेश रंजन (पप्पू यादव ) (IND) | 57,759 (46.36%) |
सिया राम प्रसाद यादव (JD) | 36,381 (29.2%) |
पप्पू यादव का 1991 – 2024 पूर्णिया लोकसभा चुनाव परिणाम
साल | उम्मीदवार | वोट (%) |
---|---|---|
1991 (1995) | राजेश रंजन (पप्पू यादव ) (IND) | |
1996 | राजेश रंजन (पप्पू यादव ) (SP) राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता (BJP) | 4,43,111 ( 1,26,956 ( |
1998 | जय कृष्ण मण्डल (BJP) राजेश रंजन (पप्पू यादव ) (SP) | 2,65,096 ( 1,29,279 ( |
1999 | राजेश रंजन (पप्पू यादव ) (IND) जय कृष्ण मण्डल (BJP) | 4,38,193 ( 1,85,627 ( |
2004 | उदय सिंह (पप्पू सिंह) (BJP) राजेश रंजन (पप्पू यादव ) (LJSP) | 2,44,426 ( 2,31,543 ( |
2009 | उदय सिंह (पप्पू सिंह) (BJP) शांति प्रिया (पप्पू यादव की माँ) (IND) | 3,62,952 ( 1,76,725 ( |
2014 | संतोष कुशवाहा (JDU) ` उदय सिंह (पप्पू सिंह) (BJP) | 4,18,826 ( 3,02,157 ( |
2019 | संतोष कुशवाहा (JDU) ` उदय सिंह (पप्पू सिंह) (CONG) | 6,32,924 ( 3,69,463 ( |
2024 | राजेश रंजन (पप्पू यादव ) (IND) संतोष कुशवाहा (JDU) ` बीमा भारती (RJD) | 5,67,556 ( 5,43,709 ( 27,120 ( |
- पप्पू यादव कुल 6 बार सांसद और एक बार विधायक चुने गए।
- वह तीन बार निर्दलीय सांसद बने, जो उनके नाम एक रिकॉर्ड है।
- वह तीन बार पूर्णिया और दो बार मधेपुरा लोकसभा सीट से सांसद रह चुके हैं।
- वह 1991 (उपचुनाव) में पूर्णिया से पहली बार निर्दलीय सांसद बने।
- वह 1996 में समाजवादी पार्टी (सपा) के उम्मीदवार के तौर पर पूर्णिया से सांसद चुने गए।
- वह 2004 में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से मधेपुरा (उपचुनाव) से सांसद बने।
- वह 2014 में मधेपुरा से सांसद बने।
- लोकसभा चुनाव 2024 में, वह पूर्णिया से फिर से चुनाव जीत गए हैं और वर्तमान में सांसद हैं।
- उन्होंने अपने करियर में निर्दलीय उम्मीदवार, समाजवादी पार्टी (सपा), और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के बैनर तले चुनाव लड़ा है।
- वह एक समय में लालू प्रसाद यादव के करीबी माने जाते थे, लेकिन बाद में राजद से उनका मतभेद हो गया।
- उन्होंने 2015 में राजद से अलग होकर अपनी पार्टी जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) (जापलो) बनाई।
- करीब 9 साल तक पार्टी चलाने के बाद, उन्होंने 20 मार्च 2024 को अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया।
पप्पू यादव का लारेंस बिश्नोई पर टिप्पणी
13 अक्टूबर 2024 की शाम मुंबई में एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी हत्या हो गई। इल्ज़ाम लगा लॉरेंस बिश्नोई गैंग पर, 13 अक्टूबर को पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव ट्वीट करते हैं। यह देश है या हिजड़ों की फौज एक अपराधी जेल में बैठकर चुनौती दे रहा है। लोगों को मार रहा है, लेकिन सब मूक दर्शक बने हैं। कभी मुसेवाला कभी करनी सेना के मुखिया और एक उद्योगपति राजनेता को मरवा डाला। कानून अनुमति दे तो 24 घंटे में लॉरेंस बिश्नोई जैसे दो टके के अपराधी के पूरे नेटवर्क को खत्म कर दूंगा। उन दिनों लॉरेंस बिश्नोई का नाम लेकर वायरल होने का एक ट्रेंड सा चल रहा था। ऐसे में इस ट्वीट को किसी ने अन्यथा नहीं लिया।
लेकिन इसके बाद एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें पप्पू यादव किसी शख्स से व्हाट्सएप कॉल पर बात कर रहे थे। फोन के दूसरी ओर के शख्स को लॉरेंस बिश्नोई के गैंग का मेंबर बताया। कथित गुर्गा कहता है कि पप्पू यादव उनके रास्ते में न आए, नहीं तो वह कर्म और कांड दोनों करते हैं। पप्पू यादव अपने ट्वीट को एक राजनीतिक बयान कह देते हैं। उसके बाद एक और लेटर वायरल हुआ जिसमें पप्पू यादव अपनी जान का खतरा बताते हुए गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर Z plus security KI मांग करते हैं। इसके बाद पप्पू यादव एक बार फिर मीडिया के सामने आए, बात वही थी लेकिन इस बार उन्होंने लॉरेंस का नाम नहीं लिया।
हमको किसी के निजी जिंदगी से कोई मतलब नहीं है मारो बाबा सिद्दीकी को मारे हो, सलमान को मारो, जिसको मारना है मारो लेकिन अपना दायित्व तो करूंगा न भाई, सरकार को तो मैं जगाऊंगा न भाई, यह गलत है। किससे किसकी निजी दुश्मनी है पप्पू यादव को कोई लेना देना नहीं है।फिर पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन भी बयान देकर यह कह दिया कि उनका और उनके बच्चों का पप्पू यादव के बयान से कोई लेना देना नहीं है। उनका और मेरा राजनीति करियर अलग अलग है, और कुछ आपसी मतभेद भी है, और हमलोग डेढ़ दो सालों से तो अलग अलग ही रह रहे हैं।
मगर पुलिस ने जब जांच किया तो मामला कुछ और ही निकला।
दिल्ली पुलिस ने 2 नवंबर 2024 को मोहित पांडे नाम के एक व्यक्ति को पकड़ा जिसका लॉरेंस बिश्नोई गैंग से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं था। एक महीने के बाद 1 दिसम्बर 2024 को एक और वीडियो वायरल होता है जिसमें एक शख्स पप्पू यादव को मारने की धमकी देता है। लेकिन पुलिस उसे 24 घंटे के अंदर पकड़ लेती है। आरोपी का नाम राम बाबू बताया जाता है। और जांच में पता चलता है कि वह पप्पू यादव द्वारा बनाई गई पार्टी का मेंबर रह चुका है। और उसे पैसे और पार्टी में पद का लालच देकर पप्पू यादव के किसी करीबी द्वारा धमकी दिलवाई गई थी। और ये सारा प्रपंच इसलिए रची गई, ताकि पप्पू यादव को Z plus security मिल सके।
पप्पू यादव की प्रेम कहानी और विवाह कैसे हुआ?
पप्पू यादव के अपराध और राजनीति के किस्से तो मशहूर थे ही साथ ही उनकी प्रेम कहानी भी काफी सुर्ख़ियों में थे। पप्पू यादव अपनी आत्मकथा “द्रोहकाल का पथिक” में अपनी प्रेम कहानी के बारे में विस्तार से बताते हैं। कैसे 3 साल के प्रेम प्रसंग के बाद 1994 में पप्पू यादव की शादी रंजीत रंजन से हुई। बांकीपुर जेल में बंद पप्पू अक्सर जेल अधीक्षक के आवास से लगे मैदान में लड़कों को खेलते देखते थे। इन्हीं लड़कों में से एक थे रंजीत रंजन के छोटे भाई विक्की। वहीं पर पप्पू यादव की दोस्ती विक्की से हुई। तब वह उसकी बहन रंजीत रंजन को नहीं जानते थे। लेकिन कहानी में ट्विस्ट उस वक्त आया जब पप्पू यादव ने विक्की के फैमिली एल्बम में उसकी बहन रंजीत रंजन को टेनिस खेलते हुए तस्वीर देखी।
पप्पू यादव फोटो देखकर रंजीत पर फिदा हो गए, पप्पू यादव जेल से छूटने के बाद रंजीत से मिलने अक्सर टेनिस क्लब में पहुंच जाते थे। रंजीत को पप्पू का बार बार आना पसंद नहीं था। उन्होंने पप्पू यादव को कई बार मना भी किया, लेकिन वह नहीं माने रंजीत ने एक बार तंग आकर स्पष्ट कह दिया कि वह सिख है। और पप्पू यादव हिंदू, इसलिए उनके रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है। रंजीत रंजन के पूर्वज कश्मीरी पंडित थे, जो सिख धर्म अपनाकर पंजाब में बस गए थे । रंजीत रंजन के पिता ग्रंथि थे, और शुरू में इस विवाह के खिलाफ थे। पप्पू अपनी किताब में लिखते है कि रंजीत का जवाब सुनकर उन्होंने एक बार नींद की ढेर सारी गोलियां खा ली थी।
पप्पू यादव के पिता चंद्र नारायण प्रसाद और माता शांति प्रिया की ओर से कोई समस्या नहीं थी। वह दोनों शादी के पक्ष में थे, जब रंजीत के घरवालों की ओर से शादी को मंजूरी नहीं मिली। तो पप्पू यादव ने कई जगह हाथ पैर मारे। इसी बीच किसी ने उन्हें सलाह दी कि उस वक्त कांग्रेस में रहे एसएस आहलुवालिया उनकी मदद कर सकते हैं। पप्पू यादव उनसे मिलने दिल्ली जा पहुंचे और उन्होंने मदद की गुहार लगाई। पप्पू यादव ने अपनी किताब में इसका भी जिक्र किया है। कि कैसे एसएस आहलुवालिया की पहल से रंजीत के सिख परिजनों को मनाने में मदद मिली। पप्पू यादव अपने प्रेम को पाने के लिए सिख धर्म अपनाने को भी राजी थे। आखिर में बहुत संघर्ष के बाद पप्पू यादव रंजीत रंजन से शादी करने में सफल रहे।
पप्पू यादव का आपराधिक इतिहास : अजित सरकार हत्याकांड में पप्पू यादव को जेल
पप्पू यादव जब अपनी राजनीति में आगे बढ़ रहे थे तभी एक केस ने उन्हें बैकफुट पर धकेल दिया। यह घटना थी अजित सरकार हत्याकांड। अजित सरकार बिहार में सीपीआईएम (CPI-M ) यानी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया मार्क्सिस्ट के एक चर्चित नेता थे। अजित सरकार की राजनीति में एंट्री सीपीआईएम के स्टुडेंट विंग, स्टुडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) से हुई थी। वो 1980 से 1998 तक चार बार पूर्णिया सीट से विधायक रहे हैं। अजित सरकार के पास लोगों का भारी जनसमर्थन था। 90 के दशक में वह बिहार एक चर्चित कम्युनिस्ट लीडर हुआ करते थे। उस दौर में पूर्णिया की पिछड़ी जाति के लोग और दलित जमींदारों के खिलाफ लगातार संघर्ष कर रहे थे।
ऐसे में उनकी आवाज बने अजित सरकार, जमींदारों ने अजित सरकार को चुनौती देने के लिए पप्पू यादव को अपना समर्थन देना शुरू किया। तब पूर्णिया में पप्पू यादव न सिर्फ यादव बल्कि भूमिहार और राजपूतों के भी नेता बन चुके थे। अजित सरकार के पास जनसमर्थन था, तो पप्पू यादव के पास जनसमर्थन के साथ साथ बाहुबल भी था। अजित सरकार अपना चुनाव भी जनता के पैसे से लड़ते थे। चुनाव प्रचार के दौरान वह अपना गमछा आगे कर देते और लोगों से पैसे मांगते। किसी को भी एक रुपया से ज्यादा देने की मनाही थी। घर पहुंचकर वो उन सिक्कों को गिनते थे। और इससे ही उन्हें मिलने वाले वोट का भी पता चल जाता था।
पूर्णिया कि राजनीतिक जमीन अब बहुत टफ होने जा रही थी। क्योंकि अजित सरकार की लोकप्रियता अब पप्पू यादव के लिए चुनौतियां बढ़ा रही थी।फिर आया 14 जून 1998 का दिन अजित सरकार अपने ड्राइवर हरेंद्र शर्मा और पार्टी वर्कर असफरुल* रहमान के साथ अपनी कार में जा रहे थे। पूर्णिया के सुभाष चौक पर एक गैंग ने उन्हें घेर लिया। और दिन के उजाले में लगभग 10 मिनट तक एक सीटिंग विधायक पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाती रही। अजित सरकार को 107 गोलियां मारी गई, इस हत्याकांड में नाम आया पप्पू यादव का, उन्हें इस मामले में मुख्य आरोपी बनाया गया। इस हत्याकांड की वजह से पप्पू यादव की राजनीति को एक बड़ा दाग लगा और वह ऐसा खुद कहते हैं।
6 साल तक ट्रायल चलने के बाद मार्च 2004 में पप्पू यादव की गिरफ्तारी हुई। इसके बाद पप्पू यादव लगभग एक दशक तक जेल में ही रहे। 2004 में पप्पू यादव को एक बार बेल भी मिली, जिसकी खुशी में उन्होंने जेल के अंदर अपने साथियों को एक बड़ी पार्टी दी। उनकी यह जेल पार्टी काफी सुर्ख़ियों में रही। जिसके चलते बाद में सुप्रीम कोर्ट ने पप्पू यादव की बेल को रद्द करते हुए उन्हें बड़े निगरानी में तिहाड़ जेल शिफ्ट कर दिया। जेल के अंदर उनकी लग्जरी लाइफ को मीडिया वालों ने काफी ज्यादा प्रकाशित कर दिया। पप्पू यादव के पास जेल में फोन भी था। जब उसकी कॉल डिटेल निकाली गई, तो उसमें कई अधिकारियों और मंत्रियों के नंबर शामिल थे।
पप्पू यादव तब तक राजद में शामिल हो चुके थे। और मधेपुरा से राष्ट्रीय जनता दल के सांसद चुनकर आए थे। इस मामले के बाद लालू यादव को भी अपनी चुप्पी तोड़नी पड़ी थी। लालू यादव ने मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए कहा था कि सांसद है तो अधिकारी मंत्रियों से बात नहीं करेगा इसमें कौन सी बड़ी बात है। पप्पू यादव को बड़ा झटका तब लगा जब साल 2009 में पटना हाईकोर्ट ने उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। इसके बाद राजद ने भी पप्पू यादव को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। पप्पू यादव के लिए अब चुनौती थी अपनी पूर्णिया सीट बचाने की, उन्होंने अपनी मां शांति प्रिया को निर्दलीय चुनाव में उतार दिया।
शांति प्रिया लगभग 2 लाख वोटो से यह चुनाव हार गई। तब पूर्णिया से भाजपा की टिकट पर उदय सिंह सांसद बने थे हालांकि 2004 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव अपने राजनीतिक विरासत के लिए दूसरा विकल्प तैयार कर चुके थे। पप्पू यादव ने अपनी पत्नी रंजीत रंजन की भी सक्रिय राजनीति में एंट्री करा दी थी। हालांकि अपनी शादी के साल भर बाद 1995 में ही पप्पू यादव ने रंजीत को विधानसभा का चुनाव लड़वाया था। जिसमें वह हार गई थी, मगर इस बार पप्पू यादव ने अपनी पहुंच का फायदा उठाते हुए रंजीत रंजन को कांग्रेस के टिकट पर सुपौल से चुनाव लड़वाया।
जिसमें वह बड़े अंतर से जीतकर सांसद बनी। लेकिन 2009 के चुनाव में पप्पू यादव के जेल में होने से उनका कैंपेन काफी प्रभावित हुआ। 2009 लोकसभा चुनाव के बाद उनके पास न पूर्णिया रहा और न ही सुपौल। मां और पत्नी दोनों चुनाव हार चुकी थी। यहां से पप्पू यादव का राजनीतिक करियर कैसे पटरी पर लौटा।
पप्पू यादव का आपराधिक इतिहास : पश्चिम बंगाल पुरुलिया आर्म्स ड्राप केस : इसके पीछे की कहानी? पप्पू यादव का हाथ?
पप्पू यादव पर पुरुलिया आर्म्स ड्राप केस के मुख्य अभियुक्त किम डेवी को देश से भागने में मदद करने का आरोप लगा था। 17 दिसंबर 1995 को एक रूसी प्लेन कराची के रास्ते इंडियन एयर स्पेस में हुआ। यह प्लेन पश्चिम बंगाल की सीमा में घुसता है। और पुरलिया जिले में यह प्लेन देर रात आसमान से कई बड़े बक्से गिराकर वापस चला जाता है। सुबह गांव के लोग अपने खेतों में वो बक्सों को देखकर हैरान हो जाते हैं। और जब इन बक्सों को खोलते हैं, तो उनकी आंखे फटी की फटी रह जाती है। उसमे लगभग 300 से ज्यादा एके 47, और एके 56 राइफल्स होती है। राकेट लांचर, नाइट विजन गॉगल्स, 30000 राउंड से भी ज्यादा गोलियों के साथ और कई छोटे छोटे हथियारों का जखीरा भी मिलता है।
गांव के लोग उसे लूटकर अपने अपने घर ले जाने लगे और कुछ ने तो घर भी लेकर चले गए। जिसे जब्त करने में पुलिस को भी काफी मशक्कत करनी पड़ी। और कुछ समय मे यह बात पूरे देश में फैल जाती है। लेकिन किसी को पता नहीं चलता की आखिर यह हथियार थे किसके। फिर से यह प्लेन 4 दिनों के बाद 21 दिसंबर को इंडियन एयरस्पेस में घुसता है। लेकिन इस बार इस प्लेन को मुंबई में जबरन लैंड कराया गया। उस प्लेन में 7 लोग सवार थे, जिनमें से 5 लोग लाविया देश के नागरिक थे, एक शख्स पीटर ब्लीच था जो ब्रिटिश खुफिया एजेंसी MI 5 का एजेंट था।
और एक शख्स किम डेवी था जो डेनमार्क का नागरिक था। और इस घटना का मास्टरमाइंड भी, पायलट को रात के अंधेरे में कन्फ्यूजन हुई और हथियारों को गलत जगह गिरा दिया। लेकिन हैरान करने वाली बात यह थी कि इन सात लोगों में से जो मास्टरमाइंड किम डेवी था मौके से फरार हो जाता है। और भारत से भागकर नेपाल पहुंच जाता है। बाद में किम डेवी ने बताया था कि जब प्लेन की लैंडिंग हुई थी तो उस वक्त आसपास कोई हाई सिक्योरिटी नहीं थी। जिसके चलते वह वहां से भाग पाने में सफल रहा। मगर डेनमार्क की एजेंसियों को जो उसने बताया वह काफी चौंकाने वाला था।
उसने कहा कि वह यह जखीरा पश्चिम बंगाल में आनंद मार्ग संगठन के लोगों को पहुंचाने आया था। यह हथियार पश्चिम बंगाल की आम सरकार को गिराने के लिए भेजे गए थे। ताकि यह संगठन लेफ्ट सरकार के खिलाफ विद्रोह कर सके। पश्चिम बंगाल में तब ज्योति बसु की सरकार थी, कम्युनिस्टो और आनंद मार्गियों के बीच हिंसा चरम पर थी।
इस मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के साथ साथ एक और सांसद का नाम सामने आता है और बिहार की राजनीति में खलबली मच जाती है। यह नाम था बिहार के बाहुबली नेता राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव का। डेवी ने बताया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में सांसद पप्पू यादव ने इंडिया से उसके सेफ एक्जिट का वादा किया था। उसने यह भी कहा कि पप्पू यादव की मदद से ही वह मुंबई से भाग पाने में कामयाब रहा। पप्पू यादव ने आजतक इस सवाल पर कोई सफाई नहीं दी। जब भी किसी पत्रकार ने यह सवाल पूछा तो वह इगनोर करके भागते नजर आते हैं।
पप्पू यादव पर यह आरोप इस वजह से गहराने लगा था क्योंकि वो और उनका परिवार आनंद मार्ग से जुड़ा रहा है। पश्चिम बंगाल की लेफ्ट सरकार ने भी खुलकर केंद्र सरकार और पप्पू यादव पर सवाल खड़े किए थे। लेकिन आगे उसने कहा वह आज तक एक रहस्य है, डेवी ने कहा कि यह योजना खुद भारत सरकार की थी। जिसकी जानकारी रॉ और MI 5 दोनों को बराबर थी, केंद्र सरकार किसी भी तरह पश्चिम बंगाल से कम्युनिस्ट सरकार को खत्म करना चाहती थी।
पप्पू यादव और आनंद मोहन के बीच गैंगवर
पप्पू यादव और आनंद मोहन के बीच गैंगवार की शुरुआत इसलिए हुई थी कि पप्पू यादव चुनाव में शरद यादव की मदद कर रहे थे। अब जब पप्पू यादव और शरद यादव आमने सामने थे, तो अगड़ी जातियों विशेषकर राजपूतों का वोट लेने के लिए शरद यादव ने यह मास्टर स्ट्रोक चला था। लेकिन वो फेल हो गया। हालांकि लंबे समय तक जब आनंद मोहन और पप्पू यादव दोनों जेल में बंद रहे, और यह गैंगवॉर खत्म हुई तो दोनों की दुश्मनी भी खत्म होती चली गई। 15 फरवरी 2023 बिहार की राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए यह दिन काफी चौंकाने वाला था। इस तारीख को आनंद मोहन की बेटी सुरभि आनंद की शादी थी, इसमें पप्पू यादव भी बतौर मेहमान शरीक हुए। शादी से ऐसी तस्वीर भी आई जिसमें पप्पू यादव आनंद मोहन और उनके बेटे से गले मिल रहे हैं।
पप्पू यादव की छवि : विवाद
पप्पू यादव बाढ़ कोरोना या अन्य आपदाओं के वक्त भी जनता के बीच रहे। पप्पू यादव ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल आपदा के समय अच्छे से किया। जिससे उनके पक्ष में काफी अच्छा नेरेटिव बना।
पप्पू यादव ने रिनीट की t-shirt पहनकर संसद में सपथ ली। सपथ ग्रहण के बाद पप्पू यादव ने बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा मांगा। इसके बाद जब उन्होंने सीमांचल जिन्दाबाद मानवता जिन्दाबाद के नारे लगाए। किरण रिजिजू ने उन्हे टोक दिया, पप्पू यादव ने पलटवार करते हुए कहा आपसे ज्यादा छठी बार सांसद रहा हूँ। आप हमको सिखाईएगा आप किसी की कृपया पर बनते होंगे। मैं अपने दम पर जीतता हूँ, जिसमे 4 बार निर्दलीय भी जीता हूँ।
सम्मान/पुरस्कार
- 2015 में पप्पू यादव को सांसद से बेस्ट परफ़ोर्मेंस एमपी का अवॉर्ड भी दिया गया।
- हालांकि, आपदाओं में उनकी सक्रियता और जरूरतमंदों में अपनी पुश्तैनी संपत्ति से होने वाली आय को बांटने के कारण उन्हें अब बिहार के ‘रॉबिनहुड’ के रूप में जाना जाता है।
- 2001 मे जब भुज में भूकंप आया था तो पप्पू यादव और उनकी टीम वहाँ भी लोगों की मदद के लिए पहुंची थी। तब तत्कालीन लोकसभा स्पीकर जीएमसी बाला योगी ने उनकी तारीफ करते हुए उन्हे प्रशस्ति पत्र भी सौंपा था।
- 2014 से 2019 के बीच लोकसभा सांसद रहने के दौरान उन्हें दो बार ‘सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले’ सांसदों में से एक माना गया और उन्हें बेहतरीन सांसद का अवार्ड भी दिया गया।
पप्पू यादव पर लगे आपराधिक मामले
- शुरुआती दौर में पप्पू यादव अपराध की दुनिया में सबसे आगे थे और बिहार राज्य का पूर्वांचल का क्षेत्र उनके आतंक से भरा हुआ था। उनका राजनीतिक सफर आपराधिक मामलों और हिंसक इतिहास के कारण विवादों से भरा रहा है।
- 2024 लोकसभा चुनाव तक पप्पू यादव पर अधिकारियों के साथ दुरव्याहर या मारपीट के 6 मामले दर्ज थे।
- उन्हें 2008 में हत्या के एक मामले में दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, लेकिन 2013 में वह बरी हो गए और 2014 में चुनाव लड़ा।
पप्पू यादव के बारे में कुछ दिलचस्प कहानी
1991 में जब पप्पू यादव पहली बार पूर्णियाँ से सांसद बने तो वहाँ 24 घंटे बीजली रहती थी। बीजली विभाग के अधिकारी उससे डरते थे। अगर बीजली कटी तो पप्पू यादव पूरे पावर स्टेशन को आग लगा देंगे। और पूर्णियाँ हेल्थ सेक्टर का एक बड़ा हब था उस वक्त वहाँ कई बड़े अस्पताल है, कोसी सीमांचल के लोग गंभीर बीमारियों के दौरान पटना की बजाय पूर्णियाँ जाना पसंद करते थे।। सांसद बनते ही वहाँ के डाक्टरों पर नकेल कसी और गरीबों का मुफ़्त इलाज करने को कहा। पप्पू यादव भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ थे। वह हमेशा उन पर दबाव बनाकर रखते थे, और लोगों से कहा जो भ्रष्टाचारी को पकड़ कर लाएगा और जो उसे खत्म करेगा, पप्पू यादव इनाम देगा।
भ्रस्टाचारी का टेप लाएगा, उसे हम 25000 देंगे, और जो उसे समाज के बीच में पीटते पीटते मार देगा उसको हम देंगे 10 लाख। पप्पू यादव की इस कार्यशैली से ही क्षेत्र की जनता उन्हे मॉर्डन रॉबिनहूड समझते।
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पप्पू यादव अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि एक बार उनके भरोसे केंद्र की भी सरकार टिकी थी। साल 2008 के विश्वास मत के दौरान यूपीए और एनडीए दोनों ने समर्थन करने के एवज में उन्हें और उनके करीबी सांसदों को 40 –40 करोड़ की धनराशि देने की पेशकश की थी। यह फ्लोर टेस्ट तब हुआ था जब 4 कम्युनिस्ट पार्टियों ने अपना समर्थन यूपीए से वापस ले लिया था। मामला था भारत और अमेरिका के बीच एक न्यूक्लियर डील का लेकिन कांग्रेस किसी भी स्थिति में यह डील नहीं रोकना चाहती थी। इसलिए मनमोहन सिंह ने दो टेस्ट के लिए एक स्पेशल सेशन की मांग की। तब कांग्रेस की सरकार बचाने में मुलायम सिंह यादव का बड़ा रोल रहा।
उन्होंने कहा था कि एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें भरोसा दिलाया कि यह डील भारत के लिए बेहतर साबित होगी। और इसलिए पार्टी ने मनमोहन सिंह का समर्थन किया। पप्पू यादव ने एक और दावा किया कि 2001 में अटल जी की सरकार का समर्थन करने के लिए भी यशवन्त सिन्हा ने उन्हें और उनके करीबी सांसदों को पैसे देने की कोशिश की थी। लेकिन यशवन्त सिन्हा ने पप्पू यादव के इस दावे को खारिज कर दिया था।
पप्पू यादव का जन्म स्थान कहाँ है
मधेपुरा जिले के खुर्दा कड़वेली गांव में।
पप्पू यादव की बेटी
प्राकृति रंजन
पप्पू यादव का जन्म कब हुआ था
24 दिसंबर 1967 को