भारत के मौलिक अधिकार

हमारे भारत देश के मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे, लेकिन 44वें संविधान संशोधन के तहत संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार की सूची से हटाकर इसे संविधान के अनुच्छेद 300 (a) के अंतर्गत कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया है।
Rights of Indian Citizens भारत देश के नागरिकों को प्राप्त 6 प्रकार के मूल/मौलिक अधिकार : –
- समानता या समता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से लेकर अनुच्छेद 18 तक) – Article 14 – 18
- स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से लेकर 22 तक) – Article 19 – 22
- शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से लेकर 24 तक) – Article 23 – 24
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से लेकर 28 तक) – Article 25 – 28
- संस्कृति और शिक्षा संबंधी का अधिकार (अनुच्छेद 29 से लेकर 30 तक) – Article 29 – 30
- संवैधानिक का अधिकार (अनुच्छेद 32) – Article 32
Types of human rights : Rights of Indian Citizens – भारतीय नागरिकों के अधिकार
1. समानता या समता का अधिकार : अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18 तक
अनुच्छेद 14 : – विधि के समक्ष समानता – इसका तात्पर्य यह है कि राज्य के सभी व्यक्तियों के लिए एक समान कानून बनाई गई है। और उन पर एक समान ढंग से ही लागू होती है, किसी भी स्थिति में इस कानून के तहत किसी भी गलती की सजा सभी व्यक्तियों पर एक समान ही लागू होगी।
अनुच्छेद 15 (Article 15) : – धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के आधार पर भेद-भाव पर निषेध – धर्म, जाति, लिंग एवं जन्म – स्थान आदि के आधार पर किसी भी नागरिकों साथ भेदभाव नहीं किया जायेगा। और जो करता है या करने की कोशिश करता है तो उसे कानूनी धारा तहत सजा दी जाएगी।
अनुच्छेद 16 (Article 16) : – लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता – राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर एक समान होग। अपवाद- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ा सभी वर्गो के लिए एक समान होगी।
अनुच्छेद 17 (Article 17) : अस्पृश्यता का अंत- अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए इससे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है
अनुच्छेद 18 (Article 18) : उपाधियों का अंत- सेना या विधा संबंधी सम्मान के सिवाए अन्य कोई भी उपाधि राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जाएगी। भारत का कोई नागरिक किसी अन्य देश से बिना राष्ट्रपति की आज्ञा के कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता है।
2. स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22 तक (back bone of Constitution) Rights of Indian Citizens
अनुच्छेद 19 में स्वतंत्रता का अधिकार में 7 अधिकार थे अब 6 है संपति का अधिकार को हटा दिया गया है
- अभिव्यक्ति (Expression ) बोलने, मौन, मीडिया, पुतला, झंडा, RTI
- सभा ( Assemble )
- संगठन (Association)
- संचरण (freely move)
- निवास व निवास ( reside & settle)
संपति ( ये खरीदी हुई संपति है)- व्यापार (Profession)
1. अभिव्यक्ति (Expression ) – इसमें बोलने की आजादी मिलती है, आप झंडा लहरा सकते हैं, सरकार के काम से नाखुश होकर आप नेता का पुतला जला कर अपना विरोध दिखा सकते हैं, बोलने की आजादी है, RTI (Right to Information) के तहत बोलने और पूछने की पूरी आजादी है, आप मौन भी रह सकते हैं, मीडिया भी कुछ कह सकते है लेकिन एक दायरे में रहकर (एकता अखंडता, सुरक्षा, public, Moral, Court, विदेशी संबंध आदि को ठेस नहीं पहुंचना चाहिए, इसक उल्लंघन नहीं होना चाहिए) विदेश संबंध के बारे में आप नहीं बोल सकते है।
मीडिया – एकता और अखंडता के खिलाफ मीडिया को कुछ भी बोलने का अधिकार नहीं है, सुरक्षा के खिलाफ नहीं बोल सकते हैं, किसी से अभद्र भाषा में नहीं बोल सकते हैं। अगर किसी ने गलती है और लगता है की वह सजा पाने के लायक है तो आप उसके खिलाफ बोल सकते हैं।
2. सभा ( Assemble ) – अगर आप अच्छा बोलने की काबिलियत रखते है और आपको लोग सुनने में ज्यादा इंटरेस्ट दिखाते हैं तो आप सभा भी कर सकते है।
3. संगठन (Association) – और गर आपके साथ बहुत संख्या में लोग जुटने लगे तो आप अपनी खुद की संगठन भी बना सकते हैं।
4. संचरण (freely move) – आपको पूरी आजदी है की आप भारत में कहीं भी घुम सकते है, लेकिन एक दायरे में रहकर जिससे की किसी को भी समस्या नहीं हो। जैसे की एकता अखंडता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए, किसी के भी सुरक्षा में बाधा नहीं आना चाहिए, लोगो को आपत्ति नहीं होना चाहिए, किसी के Moral को ठेस नहीं पहुंचना चाहिए, और जहाँ घुमने पर पाबंदी लगी हुई आप वहां पर नहीं घूम सकते हैं।
5. निवास व निवास ( reside & settle) – आप भारत में कहीं भी बस सकते है रह सकते है, आपको पूरी आजादी है अब आप जम्मू कश्मीर में भी रह सकते हैं।
6. संपति ( ये खरीदी हुई संपति है – अब आप जहाँ बसना चाहते है वहां पर आप संपत्ति भी खरीद सकते हैं,
लेकिन संपति के अधिकार में थोड़ा बदलाव किया गया है, सरकार को इसमें थोड़ा दिक्कत यहाँ आने लगी थी। जब सरकार रेलवे बिछाने का काम करती है, तो उस दौरान अगर किसी का जमीन सरकार लेना चाहती तो वो उस आदमी से संपत्ति के अधिकार के तहत नहीं ले पाती थी जिससे सरकार को रेलवे बिछाने में बाधा आने लगी। अधिकांश लोग जमीन देने से इंकार कर देती थी जिससे सरकार को यहाँ समस्या आने लगी, तो मोरारजी देशाई ने एक सविंधान संशोधन कराया। जिसके तहत 44वें सविंधान संशोधन अधिनियम 1978 के तहत संपति के अधिकार को मूल अधिकार से हटा दिया।
इसे क़ानूनी अधिकार बना दिया गया मूल अधिकार वो होती है जो सरकार कभी नहीं छीन सकती है, और क़ानूनी अधिकार वो होती है जिसे सरकार कभी भी छीन सकती है। अब मूल अधिकार से संपत्ति के अधिकार को हटा दिया गया है, इस कानून के तहत सिर्फ सरकार ही आपकी संपत्ति को छीन सकती है, कोई दूसरा नहीं। और उसके बदले सरकार आपको मुआवजा भी देगी, वर्तमान समय में अनुछेद 3 में 6 प्रकार के ही स्वतंतत्रा का अधिकार है। अनुच्छेद 31 में एक संपति का अधिकार है जो खानदानी संपति है इसे भी क़ानूनी अधिकार में डाल दिया गया है।
7. व्यापार (Profession) – आपको किसी भी तरह का लीगल व्यापार करने का अधिकार है अपना जीवनयापन करने लिए।
अनुच्छेद 20 – दोषसिद्धि में संरक्षण (Protection from conviction) – Types of human rights, Rights of Indian Citizens
- अपराध के समय का कानून –
- एक अपराध की एक ही सजा –
- खुद के विरुद्ध गवाही पर मजबूर नहीं किया जा सकता –
किसी भी व्यक्ति पर मात्र FIR हो जाने से और उसे गिरफ्तार कर लेने से उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। जब तक उस पर जुर्म साबित नहीं हो जाता और अदालत में जज उसे दोषी नहीं ठहरा देता। उसे कोई भी दोषी नहीं ठहरा सकता है उसे कोई दोषी नहीं कह सकता है।
1. अपराध के समय का कानून – अगर कोई अपराधी एक साल पहले कोई अपराध करती है और उस अपराधी को एक साल बाद सजा दी जाती है, (ऐसा होता है अधिकांश केस की सुनवाई में इतना समय लग ही जाता है) अपराध की सजा में कुछ बदलाव आ जाता है कुछ फेर बदल हो होता है। तो उस स्थिति में उस अपराधी को पुराने कानून के हिसाब से ही सजा दी जाएगी न कि जो बदलाव किया गया कानून के हिसाब से दिया जायेगा।
2. एक अपराध की एक सजा – एक अपराध की एक सजा ही दी जाएगी अगर आप दो अलग अलग मर्डर किये हैं तो आप पर दो अलग अलग केस होगा। और दो मुकदमा चलेगा और दोनों साबित होने पर जो सजा होगा, दोनों केस का सजा एक साथ ही मिलेगी।
3. खुद के विरुद्ध गवाही नहीं – आप खुद के विरुद्ध गवाही नहीं दे सकते हैं आपको कोई भी मजबूर नहीं कर सकता है, पुलिस रिमांड में पुलिस के सामने दिया गया बयान कोर्ट में नहीं माना जाता है। पुलिस रिमांड में तो पुलिस मार मार के कबूल करवा देती है, लेकिन आप कोर्ट में पलट सकते है। और आप बोल सकते हैं कि पुलिस ने जबरदस्ती आपके साथ मारपीट करके मजबूर किया गवाही देने पर। आप अपनी असलियत कोर्ट में बता सकते हैं, आपको खुद के विरुद्ध गवाही देने के लिए मजबूर नहीं कर सकती है।
अनुच्छेद 21 – प्राण एवं दैहिक स्वतंतत्रा (Life & Personal liberty)
Life के अंतर्गत आने वाले क़ानूनी अधिकार
- पर्यायावरण
- आत्महत्या (IPC 309 )
- हेल्थ
(i) पर्यायावरण – आपको स्वच्छ पर्यावरण पाने का अधिकार है, अगर कोई पर्यावरण को दूषित करता है या फिर उसकी गाड़ी बहुत धुआं करती है तो इस कानून के तहत पुलिस गाड़ी जब्त कर सकती है।
(ii) आत्महत्या (IPC 309 ) – इस अनुच्छेद में आपको पूरा जीने का अधिकार दिया गया है कोई आपसे जीने का अधिकार नहीं छीन सकता है। आपकी कोई जान नहीं ले सकता है, और न ही खुद ले सकते हैं आप आत्महत्या नहीं कर सकते है। लेकिन गर आप आत्महत्या करते समय बच जाते है तो आपको पुलिस IPC धारा 309 के तहत गिरफ्तार कर सकती है, और आत्महत्या करना पूरी तरह से गैर क़ानूनी है in legal है।
(iii) हेल्थ – सरकार आपकी स्वास्थ्य/हेल्थ पर पर पूरा ध्यान देने की कोशिश करती है, और समय समय पर सरकार बहुत सी हेल्थ कार्यक्रम भी चलाती है।
Personal liberty के अंतर्गत आने वाले आपके क़ानूनी अधिकार
- एकान्त और विदेश यात्रा
- निजता (Privacy)
- व्यभिचार (Adultery) धारा 497
- एकान्त और विदेश यात्रा – इस कानून के तहत अगर आप अकेला रहना चाहते हैं तो आप अकेला रह सकते हैं, इस पर कोई पाबंदी नहीं है। और गर आप विदेश भी यात्रा करना चाहते हैं बाहर कहीं घूमना जाना चाहते हैं तो आप जा सकते हैं, इस पर किसी भी तरह का पाबंदी नहीं है।
- निजता (Privacy) – निजता कानून के तहत अगर आप कुछ छिपाना चाहते हैं तो आप छिपा सकते हैं, ये आपकी Privacy है कि आप चाहे तो अपना किसी चीज का पासवर्ड नहीं बता सकते हैं। इस कानून के तहत आप कोई जोर जबरदस्ती नहीं कर सकती है।
- व्यभिचार (Adultery) धारा 497 – सुप्रीम कोर्ट ने Adultery यानि व्यभिचार को खत्म कर दिया है, जिसके अंतर्गत पहले जो कानून था। अगर किसी शादीशुदा महिला से कोई मर्द गुप्त तरीके से उसके पत्ति के नामौजूदगी में यानि चोरी छुपे किसी महिला से अवैध संबंध बनाता है। और पकड़ाने पर सिर्फ मर्द को ही सजा दी जाती थी, महिला को नहीं दी जाती थी छोड़ दी जाती थी। लेकिन अब इस धारा 497 को हटा दिया गया अब दोनों आजाद है, अब जितना भी गुटुर गूं कर सकते है, महिला के मर्जी से उसके साथ अवैध संबंध बना सकते है। पुलिस भी अब इस कानून के तहत दोनों को कुछ नहीं कर सकती है आप बिंदास संबंध बना सकते हैं। लेकिन उस महिला के पत्ति के द्वारा सबूत रहने पर वह FIR कर तलाक के लिए Complaint कर सकता है और तलाक ले सकता है।
बाद में इसी में एक अनुच्छेद को जोड़ गया अनुच्छेद 21(क) शिक्षा का अधिकार (Right to Education) 86वां संशोधन (2002) के तहत
शिक्षा का अधिकार (Right to Education) – 6 से 14 साल के उम्र के बच्चो को फ्री शिक्षा दी जाएगी, किसी भी तरह आंगनबाड़ी सरकारी स्कूल में कोई पैसा नहीं लिया जायेगा एकदम निशुल्क है। और 6 साल की उम्र के नीचे के बच्चो को हेल्थ पर ध्यान भी देगी, और समय समय पर टीकाकरण भी करेगी।