रॉ एजेंट रविन्द्र कौशिक का जीवन परिचय, पत्नी बच्चे, उम्र
बहुत से लोगो को भारतीय जासूस रविन्द्र कौशिक के जीवन और उनकी जासूस करने की कहानी के बारे में अच्छे से पता होगी। भारत के ऐसे कई जासूस थे और आज भी ऐसे कई जासूस जिन्दा है जिसने पाकिस्तान में रहकर भारत के लिए जासूसी का काम किया। बहुत से ऐसे जासूस है जो पकड़े गए तो कुछ ऐसे भी जासूस है जो अपनी चतुराई से पाकिस्तान को धोखा देकर पाकिस्तान से भाग निकला। तो ऐसे एक जासूस रविन्द्र कौशिक के जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बाते जानेंगे की आखिर रविन्द्र कौशिक जासूसी की दुनिया में किस प्रकार घुसे। और आज के समय में अजीत डोभाल के बारे में भी जानते ही होंगे। अगर नहीं जानते है तो उनके लिंक पर क्लिक करके उनके बारे में भी पढ़ सकते हैं। रविन्द्र कौशिक आखिर किस तरह एक जासूस बनकर पाकिस्तान में घुसा। वहां किसी को शक न हो उसके लिए पाकिस्तान के एक कॉलेज में दाखिला लिया। पाकिस्तान के कॉलेज की डिग्री लेता है, फिर कैसे वहां पाकिस्तान की फ़ौज में शामिल होता है।
उसके बाद पाकिस्तान की ही एक लड़की से शादी भी करता है। और उनसे उनके बच्चे भी होते है। सब कुछ ठीक चल रहा होता है, लेकिन भारत सरकार की एक गलती से जासूस रविन्द्र कौशिक पकड़ा गयाने जाता है। और उसके बाद उसे जेल में बंद जार दिया जाता है। रविन्द्र कौशिक की सच्चाई पता चलने के बाद उनकी बीबी छोड़ देती है। रॉ एजेंट रविन्द्र कौशिक पाकिस्तान में करीब 25 साल गुजारा और उस 25 साल में रविन्द्र कौशिक कई बार भारत भी आये। वो अपने भाई के शादी में भी आया था। फिर अपने मिशन के तहत पाकिस्तान चला जाता है। और शायद उसके बाद कभी रविन्द्र कौशिक भारत नहीं आ पाया। रवीन्द्र कौशिक की मौत पाकिस्तान में ही हुई। भारत सरकार को सब पता होने के बावजूद भी उनके परिवार द्वारा दर दर ठोकरे खाने के बाद भी उनके परिवार को इंसाफ नहीं मिला। उनेक मृत शरीर को पाकिस्तान में ही दफ़न कर दिया गया। उनको अपने देश की मिट्टी तक नसीब नहीं हुई।

और उसका कारण सरकार का गलत फैसला और उसके बाद उनका किसी भी तरह का मदद न करना। उसके बाद रविन्द्र कौशिक के परिवार के साथ पाकिस्तानी सेना क्या करते है? आज के वक्त में रवीन्द्र कौशिक का परिवार कहाँ है। रवीन्द्र कौशिक के बच्चे कहाँ हैं उनकी बीबी कहाँ है क्या वो जिन्दा है इसको लेकर पाकिस्तानी रिपोर्ट का क्या कहना हैं? जानेंगे पुरे विस्तार से रविन्द्र कौशिक से जुड़ी हर पहलु के बारे में। रविन्द्र कौशिक ने पाकिस्तान में तकरीबन 8 साल तक रहे।
रवीन्द्र कौशिक का जन्म | 11 अप्रैल सन् 1952 |
उम्र | 49 वर्ष (2001) |
जन्मस्थान | राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में |
शिक्षा | B.com |
कॉलेज | सेठ जी. एल. बिहानी कॉलेज गंगानगर |
पेशा | Raw Agent (जासूस) |
रवीन्द्र कौशिक की पत्नी का नाम | अमानत |
रवीन्द्र कौशिक के बच्चे | son – Aareeb (आरिब) |
रवीन्द्र कौशिक का मृत्यु/पुण्यतिथि | 21 नवम्बर 2001 |
रवीन्द्र कौशिक के पिता का नाम | जे एम कौशिक |
माता का नाम | अमला देवी |
रवीन्द्र कौशिक का भाई – बहन | 2 बख़ान एक बहन |
रवीन्द्र कौशिक का जन्म व परिवार
रविन्द्र कौशिक का जन्म राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में 11 अप्रैल सन् 1952 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। श्रीगंगानगर जिला पाकिस्तान से सटा हुआ मालूम पड़ता है। रवीन्द्र कौशिक के पिता का नाम जे एम कौशिक है, जो एयर फ़ोर्स में रह चुके हैं। रविन्द्र कौशिक के पिता कब के रिटायर हो चुके थे। और एक मिल में काम किया करते थे। रविन्द्र कौशिक 4 भाई बहन थे, जिसमे ये दूसरे नंबर पर थे। रविन्द्र कौशिक के माता जी का निधन 2006 में हो चुका था। रवीन्द्र कौशिक का एक भतीजा भी था, जिसका नाम विक्रम वशिष्ट है। जो शायद अभी जयपुर में ही रहता हैं। रवीन्द्र कौशिक के परिवार में बच्चों में सबसे बड़े रवीन्द्र कौशिक की बहन थी। रविन्द्र को बचपन से ही थियेटर (नाटक) करने का बड़ा शौक़ था।

1970 में 12th पास किया, और जब रविन्द्र कौशिक कॉलेज में पढाई करता था। तब भी वो खूब थियेटर किया करता था। रविन्द्र कौशिक ने अपनी पढाई श्रीगंगानगर (राजस्थान) के गवर्नमेंट स्कूल से की। उसके बाद रविन्द्र कौशिक ने B.com किया, और जब पाकिस्तान गए थे तब रविन्द्र कौशिक ने वहां से LLB की डिग्री हासिल की।
रविन्द्र कौशिक का जासूस बनने की कहानी
रविन्द्र कौशिक का जासूस बनने की कहानी एक थियेटर से ही शुरू होती है। और उसकी थियेटर ही उन्हें एक जासूस बनने का मौका देती है। एक दिन लखनऊ में सन् 1975 में थियेटर का कार्यक्रम होने जा रहा था। जिसमे रविन्द्र कौशिक भी अपना एक्टिंग का प्रदर्शन करते हैं। उस थियेटर में कुछ रॉ (raw – Research and Analysis Wing ) के कुछ ऑफिसर भी कार्यक्रम देखने आये थे। जो पहले भी रविन्द्र कौशिक का थियेटर देख चुके थे। तो इस थियेटर में रविन्द्र कौशिक एक भारतीय जासूस का किरदार निभा रहे थे। और इन्होने इस किरदार को इतने बेहतर ढंग से निभाया कि वहां बैठे रॉ के ऑफिसर को उसकी अभिनय बेहद ही पसंद आया। रविन्द्र कौशिक उस थियेटर में एक भारतीय जासूस का किरदार कर रहे थे जिसे चीन ने पकड़ लिया था।
और उससे सच्चाई उगलवाने के लिए उस जासूस को बेरहमी से पिट रहा था। लेकिन वो जासूस कुछ भी नहीं बताता है। अपनी जुबान तक नहीं खोलता है जिसे देखकर रॉ के अधिकारी को उसकी एक्टिंग बहुत पसंद आ जाति है। उसके बाद वो रॉ के अधिकारी उससे अकेले में मिलने के लिए कहता है। और मिलने के बाद रॉ के अधिकारी रविन्द्र कौशिक से कहता है, कि तुमने बहुत ही अच्छी एक्टिंग की है। लेकिन ये तुम कब तक थियेटर में एक्टिंग करते रहोगे। अगर तुम इससे बड़ा कुछ करना चाहते हो तो तुम हमारे दिल्ली के ऑफिस में मिलो। वहां तुम्हारे लिए हमारे पास इससे भी बड़ा काम है। तो रविन्द्र कौशिक नवम्बर – दिसम्बर 1975 में उससे मिलने के लिए दिल्ली पहुँच जाता है। वहां पहुँचने के बाद रविन्द्र कौशिक से दो लोग मिलते हैं जो ऑफिस तक ले जाते हैं।
वहां जाने के बाद पहली बार रविन्द्र कौशिक को देश की खुफिया एजेंसी के बारे में पता चलती है। तो वहां पर रविन्द्र कौशिक से बातचीत होती है और उसके बाद रविन्द्र कौशिक से रॉ के ऑफिसर कहते हैं। क्या तुम सच में एक रॉ के अधिकारी यानि एक जासूस बनना चाहते हो? उसके बाद बहुत सोच विचार करने के बाद रवीन्द्र कौशिक हाँ कर देता है। और भारत का जासूस बनने के लिए तैयार हो जाता है। और उसके बाद रवीन्द्र कौशिक को बाकायदा दिल्ली और कुछ जगहों पर ट्रेनिंग दी जाती है। रवीन्द्र कौशिक पंजाबी अच्छे से बोल सकता था। तो पाकिस्तान में ज्यादा उर्दू और पंजाबी ही बोली जाती थी। तो उर्दू सिखाने के लिए रवीन्द्र कौशिक को उर्दू बोलना सिखाया जाता है। रवीन्द्र कौशिक को इस्लाम की एक – एक चीज की तालीम दी जाती है।
उसे अरबी सिखाई जाती है, कुरान सरीफ पढाई जाती है, नमाज कैसे पढ़ा जाता है, वो तक सिखाई जाती है। उसके बाद रविन्द्र कौशिक का बाकायदा नाम बदला जाता है और उसी नाम से पाकिस्तान के पते पर एक नकली पहचान पत्र भी बनाया जाता है। तो पाकिस्तान में पहले से ही कुछ भारतीय जासूस मौजूद थे। जो पाकिस्तान में घुसने के लिए रविन्द्र कौशिक का पूरा इन्तेजाम करती है। उसे वो हर छोटी छोटी चीज सिखाई जाती है जो प्रतिदिन इस्लाम धर्म में प्रयोग मे आता है। उसके बाद आखिरी में रविन्द्र कौशिक का खतना भी किया जाता है। रविन्द्र कौशिक से रॉ अधिकारी पहले ही कहते है कि इसके बारे किसी को भी नहीं बताना है और न ही अपने घर वालो को कि तुम एक जासूस हो। और तुम क्या करते हो, तुम्हारी तनख्वाह तुम्हारे घर वालो की मिलती रहेगी उसके लिए तुम बेफिक्र रहो।
रविन्द्र कौशिक को जब एक जासूस के तौर पर ट्रायल पर भेजा गया
रविन्द्र कौशिक का ट्रेनिंग पूरा हो जाने के बाद अब वक्त था परीक्षा लेने का। तो इसके लिए रविन्द्र कौशिक को कई देशो में एक जासूस के रूप में उसकी परीक्षा लेने के लिए भेजा जाता है। जिसमे रविन्द्र कौशिक पास हो जाता है। उसके बाद रविन्द्र कौशिक को एक छोटे से मिशन पर पाकिस्तान भी भेजा जाता है। और इसमें भी सफल हो जाता है, करीब 1975 से 1977 तक रविन्द्र कौशिक की प्रशिक्षण चला था। और उसके बाद रविन्द्र कौशिक को एक लम्बे मिशन पर भेजने की तैयारी होती है। जिसमे उसे पाकिस्तान भेजने की तैयारी की जा रही थी। रविन्द्र कौशिक को पाकिस्तान में एक लम्बे समय तक रहकर भारत तक पाकिस्तान की सारी ख़ुफ़िया जानकारी भेजने की जिम्मेवारी दी गई। रविन्द्र कौशिक को पाकिस्तान भेजने का मकसद बहुत बड़ा था।
वो था 1965 मे पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाई, और उसके बाद 1971 में पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान से अलग करने का सबसे बड़ा श्रेय भारत को ही जाता है। जिसमे भारत के सैनिक पाकिस्तान के सेना को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया था। जिसको लेकर पाकिस्तान बहुत अलबला गया था भारत के खिलाफ साजिश करने लगा था। तो आखिर पाकिस्तान, भारत के खिलाफ क्या क्या साजिश कर रहा है? और किस तरह का प्लानिंग कर रहा है। तो खास करके इस मकसद से रविन्द्र कौशिक को पता लगाने के लिए पाकिस्तान भेजा गया था। जिसमे रविन्द्र पूरी तरह सफल होते है। यूँ कहें कि जितना भारत के रॉ अधिकारी सोचा भी नही था उससे कई गुणा ज्यादा काम कर जाता है।
रविन्द्र कौशिक का पाकिस्तान में प्रवेश
रविन्द्र कौशिक का पाकिस्तान घुसने से पहले ही रविन्द्र कौशिक का पाकिस्तान का लगभग सारा ID Card बन चुका था। चूँकि पाकिस्तान में पहले से ही कुछ छोटे मोटे जासूस अपने पैर जमा चुके थे। तो उसकी मदद से ये सब आसान हो गया था। तो रविन्द्र कौशिक पाकिस्तान आसानी से प्रवेश कर जाता है। उसके बाद रविन्द्र कौशिक धीरे धीरे अपना पैर भी जमाना शुरू करता है। जब रविन्द्र कौशिक पाकिस्तान गया था, उस वक्त उसकी उम्र सिर्फ 23 से 24 साल ही थी। रविन्द्र कौशिक जिस नाम से पाकिस्तान घुसता है। पाकिस्तान में उसका नाम नबी अहमद शाकिर था, और उसके पहचान पत्र मे भी यही नाम था। तो पाकिस्तान में कुछ समय रहने के बाद रविन्द्र कौशिक करांची के Law Collage में दाखिला लेता है। उसके बाद रविन्द्र कौशिक की लॉ की डिग्री लेता हैं।
और उसके बाद स्नातक (Graduation) करता है। एक दिन पाकिस्तान के एक अख़बार में एक विज्ञापन दिखता है। जिसमे आर्मी की वेकेंसी निकलीं हुई थी। तो यहाँ पर रविन्द्र कौशिक को एक आईडिया आता और कहता है कि इससे बेहतर मौका कभी मिल ही नहीं सकता है। तो रविन्द्र कौशिक आर्मी के लिए फॉर्म भरता है। जिसमे रविन्द्र कौशिक का सिलेक्शन हो जाता है। और उसके बाद आर्मी की ट्रेनिंग होती है। उसके बाद रविन्द्र कौशिक पाकिस्तान की सेना में नबी अहमद शाकिर के नाम से एक अफसर भी बन जाता है। अब तो रवीन्द्र कौशिक के लिए हर चीज आसान हो चुका था। जो किसी ने कभी सोचा भी नहीं था। जब इस बात की खबर भारतीय रॉ अफसर को होता है तो उसकी खुशी का ठिकाना सातवाँ आसमान पर होता है। उसके बाद रविन्द्र कौशिक का प्रमोशन तक भी ही जाता है, और एक मेजर का पद चले जाते है।
उसके बाद रविन्द्र कौशिक बाकि के जासूस की मदद से पाकिस्तान की सारी ख़ुफ़िया जानकरी भारत तक पहुंचाता है। धीरे धीरे समय समय पर रविन्द्र कौशिक पाकिस्तान की डिफेन्स आर्मी की सारी महत्वपूर्ण जानकरी भारत भेजती रहती है। जिससे भारत की सेना को पाकिस्तान फ़ौज की चाल पहले ही पता चल जाती थी। जिससे भारतीय सेना को बहुत मदद मिल जाती थी, और अपने आप को उससे सुरक्षित कर लेते थे।
रविन्द्र कौशिक को जब पाकिस्तान की एक लड़की से प्यार हुआ
रविन्द्र कौशिक को उसी आर्मी में एक टेलर की बेटी से बेइन्तिहा मोहब्बत हो जाती है। और उसकी बेटी से शादी भी करना चाहता था। उस लड़की का नाम अमानत होता है और अमानत भी रविन्द्र कौशिक से बेइंतिहा प्यार करती थी। शादी करने के लिए रविन्द्र कौशिक सबसे पहले रॉ के ऑफिसर से इजाजत लेते हैं, और रॉ के अधिकारी शादी के लिए इजाजत दे देती है। उसके बाद रविन्द्र कौशिक और अमानत की इस्लामिक रीति रिवाज से शादी कर दी जाती है। और इस तरह रविन्द्र कौशिक के 5 से 6 साल बीत चुके होते हैं। और उस दौरान एक बार भी रविन्द्र कौशिक घर नहीं गया। इधर रवीन्द्र के सपरिवार बहुत परेशान हो रहे थे। दरअसल रविन्द्र अपने पूरे परिवार को ये बता कर गया था कि वो काम करने दुबई जा रहा है।
बीच में कई दफा रविन्द्र कौशिक पत्र भी भेजता था। अब वो भी नहीं आ रहा है, तो रविन्द्र कौशिक के बड़े भाई की शादी होनेवाली थी। साल 1981 में इनके भाई का शादी होनेवाला था, जिसमे रविन्द्र को शामिल होना था। जब ये बात रविन्द्र कौशिक को पता चली तो वो भी शादी में शामिल होना चाहता था। इसके लिए रविन्द्र कौशिक रॉ के अफसर से इजाजत मांगी और रॉ के अधिकारी मान गए। और किसी तरह रॉ अधिकारी रविन्द्र कौशिक को भाई के शादी में शामिल होने का इन्तेजाम करती है। भारत में भी कुछ पाकिस्तानी जासूस है और गर रविन्द्र की सच्चाई लीक हो जाती, गर उसको कोई पहचान लेता। तो उसके पुरे परिवार को खतरा हो जाता। तो रविन्द्र कौशिक हिजाज ( इस्लामिक तीर्थयात्रा ) के बहाने सऊदी अरब फिर वहां से दुबई और फिर वहां से भारत आते हैं, और श्रीगंगानगर अपने घर पहुँचता है।
(उम्रह - हिजाज,मक्का,सऊदी अरब के लिए इस्लामिक तीर्थयात्रा होता है,जो मुसलमानों द्वारा कभी भी किसी वक्त भी जा सकता है।)
और अपने भाई के शादी में साल 1981 में शामिल हो पाता है। और शादी खत्म होने के बाद रविन्द्र को उनके माता पिता कहते हैं बेटा तुम्हे भी अब शादी कर लेनी चाहिए। उसके बाद रविन्द्र कौशिक किसी तरह हिम्मत जुटा कर कह पाता है कि मैंने दुबई में ही शादी कर ली है। रवीन्द्र कौशिक ने शादी तो की थी ये सच थी लेकिन दुबई में नहीं पाकिस्तान में एक मुस्लिम लड़की से जिसके बारे में नहीं बताता है। सच्चाई आखिरी में बताता है जब रवीन्द्र को भारत सरकार की गलती से पाकिस्तानी सेना के द्वारा पकड़ लिया गया था। शादी खत्म होने के बाद रविन्द्र कौशिक का परिवार के साथ बात विचार होने के बाद सन् 1981 अपने परिवार से बिदा लेने का वक्त आ गया था। रविन्द्र अपने परिवार से कहता है कि वो वापस दुबई जा रहा है काम करने के लिए उसके बाद दुबई के लिए रवीन्द्र कौशिक रवाना हो जाता है।
वहां से दुबई फिर वहां से पाकिस्तान पहुँच जाता है, ये शादी ही रविन्द्र कौशिक का अपने परिवार के साथ आखिरी मुलाकात थी। इसके बाद से रविन्द्र कौशिक कभी भी भारत नहीं आ पाए और न ही कभी अपने परिवार वालो से मिल पाते हैं। साल 1981में रविन्द्र कौशिक का परिवार के साथ ये आखिरी मुलाकात थी। इसके बाद रविन्द्र कौशिक अपने परिवार से कभी भी मुलाकत नहीं हो पाती है। जिंदगी के आखिरी समय में भी अपने देश अपने परिवार से नहीं मिल पाते हैं, कुछ ऐसी जिंदगी रविन्द्र की हो गई थी। रविन्द्र कौशिक का फिर से 1981 में पाकिस्तान पहुँचने के बाद बगैर किसी को कुछ पता लगे शक हुए अपने काम में लग जाता है। कुछ सालो तक सब ठीक ठाक चल रहा था। लेकिन सन् 1983 में भारत सरकार की एक गलती से रविन्द्र कौशिक को पाकिस्तानी सेना द्वारा पकड़ लिया जाता है।
Ravindra kaushik को पाकिस्तानी सेना कैसे पकड़ लेती है?
अगर भारत सरकार ये गलती नहीं की होती, तो शायद रविन्द्र कौशिक आज तक पकड़ में नहीं आता। लेकिन यहाँ सरकार की एक गलती से रविन्द्र कौशिक के खिलाफ पाकिस्तान को पुख्ता सबूत मिल जाता है। और रविन्द्र कौशिक को रंगे हाथ पकड़ लिया जाता है। तो यहाँ भारत सरकार की गलती ये थी कि न जरुरत होते हुए भी रविन्द्र कौशिक का न कहने पर भी भारत सरकार ने जबरदस्ती उसके पास एक भारतीय जासूस को भेज दिया। जिसको शायद जासूसी के बारे में कुछ भी पता ही नहीं था। की वो एक नाम से कितने लोगो को जान जोखिम में डाल रहा था। तो यहाँ पर होता ये है कि भारत सरकार के आग्रह से रॉ के अफसर एक जासूस को किसी छोटे काम से साल 1983 में पाकिस्तान भेजता है। जिसमे उससे कहा जाता है तुम्हे पाकिस्तान में जाकर नबी अहमद शाकिर से मिलना है। जो भारत के लिए ही काम करता है। और उससे मिलकर तुम्हे एक डॉक्यूमेंट देना है और नबी अहमद शाकिर को कुछ संदेश भी देना है।
इनायत मसीह (Inayat Masih) कौन था?
जिस जासूस को पाकिस्तान भेजना जाना था रविन्द्र कौशिक से मिलने के लिए उस जासूस का नाम ही इनायत मसीह (Inayat Masih) था। ये बदला हुआ नाम है इनायत मसीह पंजाब का रहने वाला था। करांची में दोनों की मुलाकात होने वाली थी। लेकिन इनायत मसीह की किस्मत ही खराब थी। इनायत मसीह जैसे ही पाकिस्तान सीमा को पार करता है। वहां पर किसी को शक होता है और उससे पूछताछ करते हैं। उसके बाद उसको पाकिस्तानी सेना के हवाले कर देता है। उसे पाकिस्तानी आर्मी गिरफ्तार कर लेती है। गिरफ्तार करने के बाद पाकिस्तानी आर्मी उससे पहले नरमी दिल से पेश आते है। लेकिन इनायत मसीह कुछ भी नहीं बताता है। लेकिन फिर उसके बाद इनायत मसीह के साथ सेना सख्ती से पेश आते है। और पीटना शुरू करते हैं इनायत मसीह को टॉर्चर किया जाता है। उसके बाद इनायत मसीह टूट जाता है और सब सच्चाई बता देता है
कि वो एक भारतीय जासूस से मिलने आया है। जो आपकी ही सेना में एक मेजर के पद पर है। ये सब सुनने के बाद पाकिस्तानी के नीचे से जमीन जी खिसक जाती है। आर्मी अचंभित हो जाती है और सोचता है कि ये कैसे हो सकता है? उसके बाद इनायत मसीह रवीन्द्र कौशिक के बारे में बताता है। कि नबी अहमद शाकिर के नाम से रविन्द्र कौशिक जो की जासूस है वो आपके आर्मी में बहुत सालो से भारत के लिए काम कर रहा है। भारतीय रॉ के कहने पर मैं उसी से मिलने के लिए यहाँ आया था। ये सब पता चलने के बाद पाकिस्तान की सेना रंगे हाथ पकड़ने के लिए एक जाल बिछाता है। और उसके बाद इनायत मसीह से कहता है तुम अपने साथी से जरुर मिलोगे लेकिन मेरे हिसाब से जो तुम्हारा मिलने का समय है और जिस जगह पर तुम वहीं मिलोगे लेकिन तुम दोनों पर हमारी नजर रहेगी।
अगर तुमने जरा सा भी चालाकी करने की कोशिश की तो तुम दोनों अपनी जान से जाओगे। इसलिए तुम मेरी बात याद रखना। तो दोनों की करांची का एक जिन्ना गार्डन है उसमे मुलाकात करने की बात हुई थी। दिन शुक्रवार (जुम्मा) था, अप्रैल 1983 का वो दिन था तो करीब सुबह साढ़े सात बजे (7:30 AM) इनायत मसीह करांची के जिन्ना गार्डन में पहुंचता है। उसके बाद वहां पर थोड़ी देर बाद रविन्द्र कौशिक भी पहुँचता है। दोनों बेंच पर बैठते हैं इनायत मसीह रविन्द्र कौशिक को वो डॉक्यूमेंट देता है जिसको देने के लिए इनायत मसीह आया था। डॉक्यूमेंट देने के बाद वहां गार्डन में छिपे पाकिस्तानी सेना आते है और रविन्द्र कौशिक और इनायत मसीह को गिरफ्तार कर लेते हैं। रविन्द्र कौशिक और इनायत मसीह को गिरफ्तार करने के बाद रविन्द्र कौशिक से बड़े सख्ती से पाकिस्तानी सेना पूछताछ की प्रक्रिया शुरू करती है।
जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल है कि आखिर रविन्द्र के साथ पाकिस्तानी सेना ने क्या क्या नहीं किया होगा। रविन्द्र कौशिक से सच जानने के लिए पाकिस्तानी सेना हर वो टॉर्चर करता है जिससे आदमी सच बोलने लगता है। लेकिन यहाँ पर रविन्द्र कौशिक एक शब्द तक नहीं बोला और मरते दम तक एक शब्द नहीं बोला। की वो एक जासूस है और वो भारत के लिए जासूसी का काम करता है।
रविन्द्र कौशिक के साथ पाकिस्तानी आर्मी क्या सलूक करती है?
रविन्द्र को बहुत सी यातनाएं दी गई। कई कई दिन तक रवीन्द्र को भूखा प्यासा रखा जाता था। कुछ समय के बाद रविन्द्र कौशिक की जो बीबी (बेगम) थी अमानत रविन्द्र कौशिक की सच्चाई के बारे में पता चल जाती है। और ये भी पता चल जाता है कि नबी अहमद शाकिर (रवीन्द्र) एक हिन्दू हैर। और वो भी भारत का रहने वाला है, और एक जासूस है।रवीन्द्र की बीबी रवीन्द्र से मिलने के लिए पाकिस्तान के सियालकोट जेल में गई। और तब तक रविन्द्र कौशिक का अमानत से एक बेटा भी हो चुका था। जिसका नाम आरिब (Aareeb) था। जब रवीन्द्र से मिलने के लिए उसकी बीबी अमानत जेल पहुंची तो साथ में उसका बेटा भी था। उसके बाद से रवीन्द्र कौशिक की बीबी अमानत कभी भी जेल में रवीन्द्र कौशिक से मिलने के लिए नहीं गई।
एक रिपोर्ट के मुताबिक रविन्द्र कौशिक ने अपनी पत्नी को एक पत्र भी लिखा था। जिसमे वो लिखते हैं कि मेरी वजह से आपकी जिंदगी ख़राब हुई है। हो सके तो मुझे माफ़ कर देना और जब कुछ समय के बाद पाकिस्तान के लोगो को पता चली की अमानत उस जासूस की बेगम है। तो उसके साथ हर वक्त गलत व्यवहार करना शुरू कर दिया था। पर इसमें रविन्द्र कौशिक की बीबी अमानत की कोई गलती नहीं थी। ये वहां के लोगों की गलत मानसिकता थी सोच ही वैसी थी। उसकी बीबी पर आये दिन जुल्म किया जाने लगा उन्हें गलत नजर से देखा जाने लगा। इधर पाकिस्तानी सेना रविंद्र से हर तरीका अपनाया, लेकिन वो एक शब्द कुछ नहीं बोला। पाकिस्तानी सेना हर बार पूछता कि बताओ तुमने पाकिस्तान की कौन कौन सी ख़ुफ़िया जानकारी भारत तक पहुंचाई है।
Ravindra Koushik को जब पाकिस्तान कोर्ट ने फांसी की सजा दी
लेकिन रविन्द्र कौशिक कुछ नहीं बताया जिस तरह वो कॉलेज में कभी थियेटर में नाटक किया करता था। आज सच में वो साबित कर रहा था उसे अपने आप पर गर्व हो रहा था। कि वो देश के लिए कुछ कर पा रहा है और रविन्द्र कौशिक को ये भी पता था कि अगर वो सच्चाई बता भी दे उसे पाकिस्तानी सेना नहीं छोडने वाला। रविन्द्र कौशिक का आर्मी कोर्ट में जासूसी करने के जुर्म में और आर्मी की सारी ख़ुफ़िया जानकरी बाहर भेजने के जुर्म में उस पर मुकदमा चलता है। और आखिरकार में रविन्द्र को जासूसी करने के जुर्म में पाकिस्तान की कोर्ट फांसी की सजा सुनाती है। रवीन्द्र को लगता था कि उसे भारत सरकार यहां से छुड़ा लेगी। लेकिन रविन्द्र कौशिक का ये बस एक वहम बन कर रह जाता है। भारत सरकार मरते दम तक रवीन्द्र कौशिक की मदद नहीं करता है।
अगर पाकिस्तान के साथ अच्छे रिश्ते होते ये फिर अच्छे रिश्ते बनाने की कोशिश करते और कुछ बात विचार कारते तो शायद रविन्द्र को छुड़ाया जा सकता था। जब इस तरह का मामला होता है तब दोनों देशो के बीच बात विमर्श करके सुलझाया जाता है। और ऐसा कई बार हुआ भी है, दोनों देशो के मुजरिमों या फिर गलती से कोई इंसान दूसरे देश में घुस जाता है तो एक समझौता के तहत लोगो की अदला बदली किया जाता है। इस केस में भी रविन्द्र कौशिक के साथ किया जा सकता था लेकिन भारत सरकार ऐसा नहीं किया। ये सब चीजो के बारे में रविन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) को भी अच्छे से पता था और एक उम्मीद थी। ऐसा करके उसे भारत सरकार बचा लेगी लेकिन अफ़सोस ऐसा कभी नहीं हुआ।
रविन्द्र कौशिक के घर वालो कब और कैसे सच्चाई पता चली?
रविन्द्र अपनी सूझ बूझ से भारत सरकार को पत्र लिखा। और साथ में एक पत्र अपने घर भी लिखा। ये पत्र उर्दू में लिखी गई थी और रविन्द्र कौशिक के घर उर्दू सिर्फ उनके पिताजी को ही पढ़नी आती थी। जब एक रविन्द्र कौशिक के द्वारा लिखा गया पत्र उसके घर पहुँचता है तो वह पत्र रवीन्द्र के पिताजी को मिला। उसके बाद उनके पिता पत्र पढ़ते है और उस पत्र से उन्हें पता चला की उनका पुत्र रवीन्द्र पाकिस्तान की जेल में बंद है। और रवीन्द्र को जासूसी के जुर्म पाकिस्तान कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है। जब ये सब रविन्द्र पिताजी ने पढ़ा तो उन्हें तुरंत हार्ट अटैक आ गया और उनकी मृत्यु हो गई। रविन्द्र का पत्र सिर्फ उनके पिताजी ने ही पढ़ा था बाकि के घर वालो को पता भी नहीं चला। कि आखिर पिताजी को अचानक हार्ट अटैक क्यों और कैसे आया?
वो पत्र अभी भी घर में ही कहीं पड़ा रहता है। बहुत समय तक वो पत्र वैसे ही घर के एक कोने में पड़ा था। किसी की भी नजर उस पत्र पर अभी तक नहीं पड़ी थी। और किसी को कुछ पता ही नहीं चल पाता, लेकिन कुछ दिन बाद आखिरकर उस पत्र पर घर वालो की नजर पड़ ही जाती है। पत्र उठाया खोला तो देखा कि वो पत्र तो उर्दू में है, तो उसके घर में उनके पिता के आलावा उर्दू पढने किसी को नहीं आती थी। तो एक उर्दू पढने वाले को पकड़ कर वो पत्र पढाया गया। तब जाकर रविन्द्र कौशिक के बारे में पूरे परिवार वालों को पता चला की रविन्द्र पाकिस्तान की जेल में बंद है। और इसी पत्र की वजह से उनके पिताजी को भी हार्ट अटैक आया था।
ये सब पता चलने के बाद पूरा परिवार दिल्ली पहुँच गया रविन्द्र कौशिक को पाकिस्तान जेल से रिहा करने का दरख्वास्त लेकर।वो पत्र में लिखा था कि वो दिल्ली जाकर होम सेकेट्री से जाकर मिले वो कुछ न कुछ जरुर मदद करेगा। और रविन्द्र कौशिक अपने घर भेजे गए पत्र में लिखता है कि वो भारत सरकार से मेरे रिहाई बारे में बात करे। और साथ में मीडिया वालो से भी मेरे बारे में बताये और मेरी आवाज सरकार तक पहुँचाने की कोशिश करे। अगर सरकार चाहेगी तो हमें यहाँ से निकाल सकती है। लेकिन वहां उनकी मदद करने से हर सरकारी दफ्तर इंकार कर देती है, कोई भी इस झमेले मे नहीं पड़ना चाह रहा था। उसकी कोई मदद ही नहीं करना चाहता था।
फिर यहाँ से भी रविन्द्र कौशिक को कुछ पत्र लिखे जाते है और उन्हें बताया जाता है उनकी यहाँ कोई मदद करने के लिए तैयार नहीं हो रहा है। उसके बाद रविन्द्र भी कुछ पत्र लिखते है सरकार से बड़ी मिन्नतें करते हैं लेकिन कोई फायदा नजर नहीं आ रहा था। और कुछ ऐसे भी पत्र लिखे थे जिसमे रविन्द्र लिखता है सरकार की नीतियों पर सवाल खड़ा करते है। और कहते है कि अगर एक सच्चे देशभक्त की ऐसी हालात होती है तो शायद मैं कभी ये काम करता ही नही। मुझे सरकार से ऐसी कुछ उम्मीद नहीं थी और न ही अब मुझे करनी चाहिए। की अब वो किसी तरह की मदद हमारी कर सकती है, मैंने अभी तक अपनी जुबान से एक शब्द तक नहीं निकाला की मैं कौन हूँ? अब वैसे भी सरकार को मेरी जरुरत भी क्या है? रविन्द्र कौशिक जब सियालकोट जेल में था।
तब न जाने कहाँ से दो भारतीय जासूस को पाकिस्तानी सेना पकड़ लेती है। उन दो भारतीय जासूसों में एक का नाम गोपाल दास और दूसरा का नाम करामत त्राहि था। दोनों जासूस को पता चला की इसी जेल में एक और भारतीय जासूस को पकड़ कर रखा गया है। तो किसी तरह रविन्द्र से वो दोंनो जासूस मिलता है बातचीत होती है धीरे धीरे उसके बारे में सब चीजे पता चलती है। उस दरमियान रविन्द्र का तबियत भी बहुत नाजुक हो चुका था। बहुत कमजोर हो चुका था क्योंकि उसे वहां पर सही से खाना-पीना नहीं मिल रहा था। और बाद में पता चलता है कि रविन्द्र कौशिक को हेल्थी खाना न मिलने की वजह से टीबी हो गया है। फिर एक दिन उन 2 भारतीय जासूसों को छोड़ दिया जाता है आखिर कैसे? उन 2 जासूसों को पाकिस्तानी सेना छोड़ देती है इसके पीछे क्या वजह थी।
और जब दोनों भारतीय जासूस पाकिस्तान की जेल से रिहा होकर भारत लौटता है। तो उसमे से एक करामत त्राहि रविन्द्र की जेल की दास्ताँ लोगों तक पहुंचाती है। रिहा होते समय करामत त्राहि को रविन्द्र ने कुछ पत्र अपने परिवार के लिए भेजे थे। और साथ में शायद अपनी बीबी बच्चे की एक फोटो भी दिया था। ताकि अगर कभी उसके बीबी बच्चे भारत आये तो उसे पहचान सके। और कुछ साल फिर ऐसे ही बीत जाता है, रविन्द्र का जेल में हालात और भी नाजुक होती जा रही थी। उसके बाद पाकिस्तान के कोर्ट में फांसी के खिलाफ अपील की जाती है। जिसके बाद पाकिस्तान कोर्ट इस फांसी की सजा को 25 साल की उम्रकैद में बदल देता है। और एक पत्र अपने परिवार वालो को लिखता है, जिसमे रविन्द्र अपने खराब तबियत के बारे में बताता है और लिखता है उन्हें टीबी हो गया है।
और यहाँ टीबी की दवाई सही नहीं मिलती है आप लोग वहां से कुछ टीबी की दवाई भेज दो।
रविन्द्र कौशिक का दिमाग कबीले तारीफ
रविन्द्र जी (Ravindra kaushik) के परिवार वाले किसी तरह रवीन्द्र के लिए दवाई का प्रबंध करके पाकिस्तान जेल भेजवाता है। रविन्द्र जी के पास दिमाग बहुत था कुछ न कुछ हर चीज का समाधान निकाल ही लेता था। रविन्द्र कौशिक को एक बहुत ही बेहतरीन आईडिया आया। दरअसल रवीन्द्र जी जिस जेल में बंद था वहां पर उस समय रेडियो से कैदियों को अलग अलग प्रोग्राम सुनाया जाता था। जिसमे एक प्रोग्राम था मिट्टी दी खुशबू उस समय जेल के कैदियों को मिट्टी दी खुशबू जो भारत से प्रसारण होता था। यह प्रोग्राम को लोग बड़े चाव से सुनते थे और पड़ोसी देश भी इस प्रोग्राम को सुनते थे। इस प्रोग्राम को राजस्थान के बहुत से हिस्सों में सुना जाता था इसके आलावा हरियाणा, पंजाब आदि कई हिस्सों में भी सुना जाता था।
उस समय ये प्रोग्राम लोगों का एकमात्र साधन था, और इसके ऑफिस में लोगो द्वारा बहुत से पत्र भी लिखे जाते थे। इस रेडियो प्रसारण केंद्र की एक सबसे बड़ी खासियत ये थी। की इसका प्रसारण रेडियो की फ्रीक्वेंसी 300 किलोवाट थी। जो 3000 किलोमीटर क्षेत्र के दायरे में रेडियो प्रोग्राम को बड़े आसानी से लोग इसे सुन सकते थे। तो यहाँ पर रविन्द्र कौशिक ने दिमाग लगाया और किसी तरह एक संदेश एक पत्र के माध्यम से अपनी बात बाहर तक पहुंचाया। जिसमे रवीन्द्र कौशिक ने कहा कि उसके परिवार वालो को किसी तरह मिट्टी दी खुशबू के प्रोग्राम के दफ्तर में ले जाये। और वहां से अपने बारे कुछ बोले अपना परिचय दे। उसके बाद रविन्द्र कौशिक के परिवार वाले को उस मिट्टी दी खुशबू के प्रोग्राम में कोई लेकर जाया जाता हैं।
और रेडियो पर अपना परिचय का संदेश देते है और अपने बारे में सब कुछ बताते हैं। और उस समय रविन्द्र कौशिक पहली बार रेडियो के द्वारा अपने घर वालो की आवाज सुनते हैं और उनकी हालात के बारे में पता चलता है। रविन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) को उसी रेडियो प्रोग्राम के द्वारा उनके परिवार वालो के बारे पता चलता है और साथ में पहली बार ये भी पता चलता है कि उनके पिताजी का हार्ट अटैक से मौत हो चुकी है। ये सुनकर रविन्द्र कौशिक को बड़ा दुःख होता है उनके परिवार की हालत भी बहुत खराब थी। और पूरा परिवार अब जयपुर में रहता है श्रीगंगानगर वाले घर में अब कोई नहीं रहता ये सब खबर उसी रेडियो से रविन्द्र कौशिक जी को पहली बार मिली थी।
रविन्द्र कौशिक की मृत्यु कब और कैसे हुई?
रविन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) को जेल में रहने के दरमियान अच्छा खान पान नहीं मिलने के कारण टीबी की बीमारी हो चुकी थी। और धीरे धीरे रविन्द्र कौशिक को बहुत सी बिमारियों ने घेर लिया और एक दिन आख़िरकार 21 नवम्बर 2001 को पाकिस्तान के मुल्तान जेल में रविन्द्र कौशिक की मृत्यु हो जाती है। रविन्द्र कौशिक के परिवार वाले करीब 16 साल तक भारत सरकार से मदद मांगती रही। हर दफ्तर में अपने बेटे की दास्ताँ सुनाती रही मिन्नतें करती रही लेकिन किसी ने रविन्द्र कौशिक के परिवार वालो की एक नहीं सुनी। जिस समय रविन्द्र कौशिक को जिस सरकार की गलती से पकड़ा गया था उस समय इंदिरा गाँधी की काग्रेस की सरकार थी।
और खुद इंदिरा गाँधी ने बाकायदा रविन्द्र कौशिक को उसके कारनामे, उसकी मेहनत पर उसकी महानता पर ब्लैक टाइगर का ख़िताब भी दिया था। लेकिन वही सरकार जब अपने जाबांज फौजी की मदद नहीं करे तो आप क्या करेंगे? ये अपने आप में एक बड़ा सवाल खड़ा करती है। कई सरकार आई और गई लेकिन रविन्द्र कौशिक को पाकिस्तान से लाने के लिए किसी ने भी जरा सा रूचि नहीं दिखाया इसे आप क्या कहेंगे? रविन्द्र कौशिक ने जिस तरह अपनी जान जोखिम में डालकर देश की सेवा की है। शायद ही अब तक किसी ने इस तरह से देश की सेवा की होगी। न जाने कितने ही भारतीय सैनिकों की जान बचाई है। और उसके बदले में रविन्द्र कौशिक को क्या मिला कुछ भी नहीं, उसके परिवार वालो को क्या मिला कुछ भी नहीं।
रविन्द्र कौशिक आखिरी पत्र में क्या लिखता है?
रविन्द्र कौशिक की मृत्यु के बाद उसी पाकिस्तान की मुल्तान जेल के पीछे के एक जंगल में इस्लामिक रीति रिवाज से रविन्द्र कौशिक के मृत शरीर को दफ़न कर कर दिया गया। रविन्द्र कौशिक (Ravindra kaushik) ने मरने से करीब 3 दिन पहले अपने घर वालो को एक आखिरी पत्र लिखा था। जिसमे उसने लिखा था की जिस देश के लिए मैंने इतना कुछ किया वो देश के लिए शायद अब मैं बेकार हो गया हूँ। अब मेरा कोई काम नहीं है अब मेरी कोई जरुरत नहीं है क्योंकि अब मैं उसके अधीन नहीं हूँ। शायद इसलिए वो मुझे ठुकरा रहा है, ऐसा नसीब दोबारा किसी को न मिले की किसी को उसके अपने देश की मिट्टी भी नसीब न हो। और रविन्द्र कौशिक कहते है कि ऐसी जिंदगी किसी को न मिले, कि उसे वो इज्जत ही न मिले जो इज्जत एक सच्चे देशभक्त को नसीब मे होनी चाहिए।
साल 2006 में रविन्द्र कौशिक कि माताजी का निधन हो गया।