करीमुद्दीन आसिफ का जीवनी | Karimuddin Asif Biography in Hindi
आज हम फिल्म डायरेक्टर करीमुद्दीन आसिफ (Karimuddin Asif) के बारे में जानेंगे जिनको फिल्म डायरेक्शन के बारे में कुछ भी पता नहीं था बावजूद इसके उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में घुसकर एक ऐसी बड़ी ब्लॉकबस्टर फिल्म डायरेक्ट की कि आज लोग इनको फिल्म इंडस्ट्री के महान डायरेक्टरो में से एक के रूप में जानते हैं
आज हम फिल्म डायरेक्टर करीमुद्दीन आसिफ (Karimuddin Asif) के बारे में जानेंगे जिनको फिल्म डायरेक्शन के बारे में कुछ भी पता नहीं था बावजूद इसके उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में घुसकर एक ऐसी बड़ी ब्लॉकबस्टर फिल्म डायरेक्ट की कि आज लोग इनको फिल्म इंडस्ट्री के महान डायरेक्टरो में से एक के रूप में जानते हैं। हम बात करने जा रहे हैं करीमुद्दीन आसिफ के बारे में। उन्होंने मात्र पहली बार में एक ऐसी फिल्म बना दी कि लोगों के बीच अपनी एक बड़ी पहचान बना ली। और इस फिल्म का नाम था mughal-e-azam. करीमुद्दीन आसिफ डायरेक्टर के साथ-साथ प्रोड्यूसर और लेखक भी थे।
करीमुद्दीन आसिफ का जन्म, परिवार व शिक्षा (Karimuddin Asif birth & family)
के आसिफ का असली नाम
करीमुद्दीन आसिफ
करीमुद्दीन आसिफ का जन्म
14 जून सन 1922
जन्मस्थान
उत्तर प्रदेश के इटावा जिला में
उम्र
49 साल कि उम्र में निधन
करीमुद्दीन आसिफ कि पत्नी का नाम
अख्तर आसिफ (जो अभिनेता दिलीप कुमार की बहन थी) निगर सुल्ताना, सितारा देवी
करीमुद्दीन आसिफ का जन्म 14 जून 1922 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में हुआ। सिर्फ आठवीं जमात तक पढ़े थे, इनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब थी। और ये सिलसिला करीमुद्दीन आसिफ की जवानी तक बनी रही। पुरा जीवन इन लोगों का गरीबी में गुजरा। यह बहुत जिद्दी किस्म के इंसान थे। और उन्होंने फिल्म मुग़ल-ए-आज़म भी अपनी जिद के कारण बनाई थी। करीमुद्दीन आसिफ (के आसिफ) जी का निधन 9 मार्च 1971 को महाराष्ट्र के मुंबई में हुआ। करीमुद्दीन आसिफ की पत्नी का नाम अख्तर आसिफ है जो अभिनेता दिलीप कुमार की बहन थी। उसके बाद निगर सुल्ताना, सितारा देवी भी इनकी पत्नी रह चुकी हैं। करीमुद्दीन आसिफ के बच्चे अकबर आसिफ़, शबाना आसिफ़, शौकात आसिफ़, मुनाज़ा आसिफ़, ताबीर कुरैशी है।
करीमुद्दीन आसिफ का फिल्मी सफर (Karimuddin Asif Filmi Career)
के आसिफ/करीमुद्दीन आसिफ (Karimuddin Asif) अपने पूरे जीवन में मात्र दो फिल्में बनाई पहली फुल 1945 में दूसरी मुग़ल-ए-आज़म 1960 में। ये ऐसी पहली फिल्म थी जिसको बनने में के आसिफ 14 साल लग गए थे। उस वक्त जब मुग़ल-ए-आज़म फिल्म बनी तो उस वक्त इस फिल्म को बनाने में तकरीबन डेढ़ सौ करोड़ रुपए खर्च हुए। जो उस दौर की सबसे महंगी फिल्म थी, जबकि उस दौर में 5 से 10 लाख रुपये के बीच में फिल्म बन जाती थी। करीमुद्दीन आसिफ इस फिल्म को अपने दोस्त सिराज अली हाकिम के साथ मिलकर बना रहे थे। मुग़ल-ए-आज़म फिल्म के लिए करीमुद्दीन आसिफ ने चंद्रबाबू, डीके सप्रू और नरगिस को साइन किया था। इस फिल्म की शूटिंग मुंबई के बॉम्बे टॉकीज के स्टूडियो में 1946 में शुरू की गई थी।
लेकिन कुछ वक्त बाद ही इंडिया और पाकिस्तान का बंटवारा हो गया। जिसके कारण उसका दोस्त सिराज पाकिस्तान चले गए। जिसके बाद फिल्म की शूटिंग रुक गई। कुछ सालों के बाद साल 1952 में नए प्रडूसर के साथ इस फिल्म की शूटिंग शुरू की गई।
करीमुद्दीन आसिफ
करीमुद्दीन आसिफ (Karimuddin Asif) ने फिल्म की एक एक चीज पर बहुत ही बारीकी से काम किया था। फिल्म का म्यूजिक नौशाद जी ने दिया, जिसको मनाने के लिए करीमुद्दीन आसिफ को बहुत मशक्कत करनी पड़ी। और इस फिल्म के गीत गुलाम अली ने गाए थे। इस फिल्म के गाने के लिए गुलाम अली ने 25000 रुपए लिए थे। लेकिन वही देखा जाए तो उस दौर में लता मंगेशकर रफी जी जो गाना गाते थे उसको मात्र 300 से ₹400 ही मिलते थे। ये एक ऐसी फिल्म थी जिसकी शूटिंग के लिए इंडियन आर्मी के घोड़े हाथी और सैनिक का इस्तेमाल किया गया था। सलीम अकबर के बीच युद्ध के सीन को सूट करने के लिए करीमुद्दीन आसिफ ने उस वक्त के इंडियन डिफेंस मिस्टर कृष्णा मेनन से भी इजाजत ली थी।
एक गाने के लिए लाखो खर्च किए उस वक्त
फिल्म मुग़ल-ए-आज़म के सबसे प्रसिद्ध गाना प्यार किया तो डरना क्या को शूट करने के लिए 10,000,00 रुपए खर्च किए थे। उस वक्त इतनी बड़ी रकम से पूरी फिल्म ही बन जाती थी। इस फिल्म के म्यूजिक को म्यूजिक स्टूडियो में नहीं बल्कि म्यूजिक स्टूडियो के बाथरूम में रिकॉर्ड किया गया था। इस फिल्म में मोहम्मद रफी के अलावा 100 सिंगर के साथ कोरस करवाया गया था।
शीश महल की डुप्लीकेट कैसे बनाई
फिल्म की कुछ खास हिस्सो की शूटिंग के लिए पाकिस्तान के शीश महल का डुप्लीकेट बनाया था। शीश महल में शूटिंग करने के दौरान शूटिंग करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ा था क्योंकि उसमें शीशे ज्यादा लगे हुए थे जिससे रोशनी रिफ्लेक्ट हो रही थी। जिसके बाद उस वक्त के ब्रिटिश डायरेक्टर David lean को भी बुलाया गया था। फिर उसने भी इस स्थिति में शीश महल में शूट करने से मना कर दिया। करीमुद्दीन आशिक के सिनेमैटोग्राफर आरडी माथुर ने शीशे पर कपड़ा ढककर शूटिंग शुरू कर दी। उसके बाद शीश महल को 500 ट्रकों की हेडलाइट और 100 रिफ्लेक्टर्स से रोशन किया गया था।
इस फिल्म को देखने कौन कौन आए थे?
मुंबई में 5 अगस्त 1960 को रात को 9 बजे हाथी पर सवार मुगले आज़म की प्रिंट लाई गई थी। उस समय मुख्यमंत्री यशवंत राव चौहान के साथ और भी कई जानी मानी हस्तियों को न्योता दिया गया था। फिल्म देखने के बाद लोगों ने कहा था कि यह फिल्म फ्लॉप है। सिर्फ करीमुद्दीन आसिफ को यकीन था कि ये फिल्म सुपरहिट होगी। लोगों की बातों पर करीमुद्दीन आसिफ पर कोई भी असर नहीं पड़ता था। और वहीं पर दूसरी और फिल्म को देखने को लेकर लोगों में एक अलग ही जुनून था। कि इस फिल्म को देखने के लिए पाकिस्तान म्यांमार और तो और श्रीलंका तक से लोग आ रहे थे। और फिल्म की टिकट लेने के लिए दो दो तीन तीन दिन तक लाइन लगाए अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे।
करीमुद्दीन आसिफ को (Karimuddin Asif) बॉलीवुड का पागल डॉयरेक्टर के नाम से भी जाना जाता है। डायरेक्टर करीमुद्दीन आसिफ ने 3 ही फिल्में निर्देशित की जिनमें से एक फिल्म पूरी भी नहीं हो सकी। करीमुद्दीन आसिफ अपने काम करने के अंदाज के लिए मशहूर है। आसिफ अपनी फिल्म मुगल-ए-आजम से मशहूर हुए थे। मुगल-ए-आजम से 15 साल पहले उन्होंने फिल्म ‘फूल’ बनाई थी। इसके अलावा उन्होंने ”लव एंड गॉड” बनाई जो कि अधूरी थी। ये फिल्म 23 साल बाद सन् 1986 में सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई। करीमुद्दीन आसिफ की पहली फिल्म कुछ खास नहीं चली थी। लेकिन दूसरी फिल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म’ ने इतिहास रच दिया।
मुगल-ए-आजम को बनने में 14 साल क्यों लगे?
फिल्म मुगल-ए-आजम की शुटिंग के कुछ वक्त बाद ही इंडिया और पाकिस्तान का बंटवारा हो गया। जिसके कारण उसका दोस्त सिराज पाकिस्तान चले गए। जो सिम को प्रोड्यूस कर रहे थे, जिसके बाद फिल्म की शूटिंग रुक गई। जब फिल्म की शूटिंग हुई थी तब हमारे देश में अंग्रेजों का शासन चल रहा था हमारा देश भारत आजाद नहीं हुआ था। जब भारत आजाद हुआ तो कुछ सालों के बाद साल 1952 में नए प्रडूसर के साथ इस फिल्म की शूटिंग शुरू की गई। mughal-e-azam उस दौर की सबसे महंगी फिल्म थी।
बॉलीवुड फिल्म के इतिहास में करीमुद्दीन आसिफ(Karimuddin Asif) ऐसा डायरेक्टर था जो अपनी सिर्फ एक फिल्म के लिए जाना जाता है। करीमुद्दीन आसिफ को फिल्म बनाने की कोई खास जानकारी नहीं थी। बावजूद अपने वक्त के सबसे बड़े बड़े हस्तियों को अपने हाथ में ले के कर घूमता था।
बड़े गुलाम अली खान से अपने बतरस से लेकर अपनी फिल्म में बड़े-बड़े गीतकारों से ‘मुग़ल-ए-आज़म’ के लिए 72 गाने लिखवाने की कहानियां हैं। करीमुद्दीन आसिफ की 9 मार्च 1971 को दिल का दौरा पड़ने से के आसिफ का निधन हो गया।
मुग़ल-ए-आज़म फिल्म बनाने का आइडिया कहां से आया
मुग़ल ए-आज़म फिल्म बनाने का आइडिया करीमुद्दीन आसिफ (Karimuddin Asif) को आर्देशिर ईरानी की फिल्म ‘अनारकली’ को देखकर आया था। इस फिल्म को देखने के बाद उन्होंने अपने अपने दोस्त शिराज़ अली हाकिम के साथ मुग़ल-ए-आज़म फिल्म बनाने का फैसला किया।
मुग़ल-ए-आज़म फिल्म के कुछ रोचक तथ्य
इस फिल्म में अकबर के रोल के लिए करीमुद्दीन आसिफ उस वक्त के मशहूर एक्टर चंद्रमोहन को लेने वाले थे। लेकिन चंद्रमोहन ने इनकी फिल्म में काम करने से इंकार कर दिया। क्योंकि वो कोई दूसरी फिल्म की शुटिंग में व्यस्त थे। के आसिफ को चंद्रमोहन की आंखें बहुत पसंद थी। के आसिफ ने कहा कि मैं दस साल इंतजार करूंगा लेकिन फिल्म तो आपके साथ ही शुरु करूंगा। करीमुद्दीन आसिफ की किस्मत इतनी खराब थी की कुछ समय बाद एक सड़क हादसे में चंद्रमोहन की आंखें ही चली गईं।
के आसिफ़ फिल्म मुग़ल-ए-आज़म के म्यूजिक को लेकर बड़े ही गंभीर थे। उन्हें इस फिल्म के लिए बहुत ही जबरदस्त और यादगार संगीत बनाना चाहते थे। के आसिफ़ रुपए से भरे बैग लेकर सीधे मशहूर संगीत डायरेक्टर नौशाद जी के पास पहुंच गए। और बैग थमा दिया और कहा कि उन्हें अपनी फिल्म के लिए बहुत ही शानदार और यादगार संगीत बना कर दो। ये बात नौशाद जी को बिलकुल नही जची। उन्होंने नोटों से भरे बैग को खिड़की से बाहर फ़ेंकते हुए कहा संगीत की गुणवत्ता रुपयों से नही बनती। उसके बाद के आसिफ ने नौशाद से माफी मांगी। उसके बाद नौशाद जी भी हंसते हंसते मान गए। मनाने का वो अंदाज ही ऐसा था कि नौशाद हंस के मान गए।
संगीतकार नौशाद फिल्म में बड़े गुलाम अली साहब की आवाज़ चाहते थे, लेकिन गुलाम अली साहब ने सीधा इंकार कर दिया। ये कहकर मना कर दिया कि वो फिल्मों के लिए नहीं गाते। लेकिन के आसिफ ज़िद पर अड़ गए कि गाना तो उनकी ही आवाज में रिकॉर्ड होगी। के आसिफ़ को मना करने के लिए गुलाम साहब ने एक गाने के 25000 रुपये की डिमांड कर दी। उस दौर में बहुत सारे सिंगर जैसे लता मंगेशकर और रफ़ी जी को एक गाने के लिए 300 से 400 रुपये मिलते ही थे।
के आसिफ जी ने गुलाम जी से कहा कि गुलाम साहब आप बेहद ही बेशकीमती हैं। के आसिफ़ ने गुलाम अली जी को 10,000 रुपये एडवांस में दीया। उनका गाना फिल्म में सलीम और अनारकली के बीच हो रहे प्रणय सीन के बैकग्राउंड में शूट किया गया है।
फिल्म मुग़ल-ए-आज़म के एक सीन के शूट में पृथ्वीराज कपूर जी को रेत पर नंगे पांव चलना था। शूटिंग राजस्थान में हो रही थी जहां की रेत दिन में बहुत गर्म होती है। उस सीन को शूट करने में पृथ्वीराज कपूर के पांव पर छाले पड़ गए थे। जब ये बात के आसिफ को पता चली तो उन्होंने भी अपने जूते उतार कर दे दी। और खुद के आसिफ नंगे पांव गर्म रेत पर कैमरे लेकर पीछे चलने लगे।
सोहराब मोदी की ‘झांसी की रानी'(1953) भारतीय सिनेमा की पहली रंगीन फिल्म थी। साल 1955 आते-आते रंगीन फ़िल्में बननी शुरु हो गई थी। इसी को देखते हुए के आसिफ ने भी ‘मुग़ल-ए-आज़म’ के गाने ‘प्यार किया तो डरना क्या’ सहित फिल्मों के कुछ हिस्सों की शूटिंग टेक्निकलर में किया। जो उन्हें काफी पसंद आई। इसके बाद उन्होंने पूरी फिल्म को टेक्निकलर में दोबारा शूट करने का फैसला किया था।