भारत के 6 मौलिक अधिकार कौन कौन से हैं?

भारत के मौलिक अधिकार अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 32

Fundamental Rights of Indian Citizens | भारत के नागरिकों के मूल/मौलिक अधिकार

आज हम इस आर्टिकल में भारत के 6 मौलिक अधिकार कौन कौन से उसके बारे जानेंगे, और इसे जानना हम सब के लिए बहुत ही जरूरी है। अगर आप इस मौलिक अधिकार के बारे जान लेंगे तो आप कानूनी तरीके से किसी से भी आसानी से लड़ सकते है। और पढे लिखे लोगों को तो इसे जानना बेहद जरूरी हो जाता है, ये मौलिक अधिकार हमारे जीवन हर किसी का बहुत काम आता है। तो इसे ध्यानपूर्वक पढे और थोड़ी बहुत कुछ बदलाव हो इसमे हो सकता है तो ये चीज जरूर दे और बताएं वैसे तो बहुत ही बारीकी से लिखा है।

हमारे भारत देश के मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे, लेकिन 44वें संविधान संशोधन के तहत संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार की सूची से हटाकर इसे संविधान के अनुच्छेद 300 (a) के अंतर्गत कानूनी अधिकार के रूप में रख दिया गया है। अगर इसे अनुच्छेद 14 से 35 के बीच रखता तो ये हमारे लिए मौलिक अधिकार हो जाता है और सरकार हमसे इस कानून के तहत संपाति के अधिकार को नहीं छिन सकता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है।

Rights of Indian Citizens भारत देश के नागरिकों को प्राप्त 6 प्रकार के मूल/मौलिक अधिकार : –

  1. समानता या समता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18 तक) – Article 14 – 18
  2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22 तक) – Article 19 – 22
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से अनुच्छेद 24 तक) – Article 23 – 24
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से अनुच्छेद 28 तक) – Article 25 – 28
  5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी का अधिकार (अनुच्छेद 29 से अनुच्छेद 30 तक) – Article 29 – 30
  6. संवैधानिक का अधिकार (अनुच्छेद 32) – Article 32

Types of human rights : Rights of Indian Citizens – भारतीय नागरिकों के अधिकार

1. समानता या समता का अधिकार : अनुच्छेद 14 से 18

अनुच्छेद 14 : – विधि के समक्ष समानता – इसका तात्पर्य यह है कि राज्य के सभी व्यक्तियों के लिए एक समान कानून बनाई गई है। और उन पर एक समान ढंग से ही लागू होती है, किसी भी स्थिति में इस कानून के तहत किसी भी गलती की सजा सभी व्यक्तियों पर एक समान ही लागू होगी।

अनुच्छेद 15 : – धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के आधार पर भेद-भाव पर निषेध – धर्म, जाति, लिंग एवं जन्म – स्थान आदि के आधार पर किसी भी नागरिकों साथ भेदभाव नहीं किया जायेगा। और जो करता है या करने की कोशिश करता है तो उसे कानूनी धारा तहत सजा दी जाएगी।

अनुच्छेद 16 : – लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता – राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर एक समान होग। अपवाद- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ा सभी वर्गो के लिए एक समान होगी।

अनुच्छेद 17 : अस्पृश्यता का अंत- अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए इससे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है

अनुच्छेद 18 : उपाधियों का अंत- सेना या विधा संबंधी सम्मान के सिवाए अन्य कोई भी उपाधि राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जाएगी। भारत का कोई नागरिक किसी अन्य देश से बिना राष्ट्रपति की आज्ञा के कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता है।

2. स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद 19 से 22

अनुच्छेद 19 में स्वतंत्रता का अधिकार में 7 अधिकार थे अब 6 है संपति का अधिकार को हटा दिया गया है

19 (a) बोलने की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति (Expression), मीडिया/प्रेस, पुतला, झंडा, मौन, RTI (Right to Information) सभा ( Assemble )
19 (b) शांतिपूर्वक बिना हथियारों के एकत्रित होने और सभा करने की स्वतंत्रता।
19 (c) संघ बनाने की स्वतंत्रता, (Association – संगठन बनाना)
19 (d) देश के किसी भी क्षेत्र में आवागमन की स्वतंत्रता, संचरण (freely move)
19 (e) देश के किसी भी क्षेत्र में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता, (अपवाद जम्मू-कश्मीर) निवास व निवास (reside & settle)
19 (f) संपत्ति का अधिकार, संपति ( ये खरीदी हुई संपति है)
19 (g) कोई भी व्यापार एवं जीविका चलाने की स्वतंत्रता। व्यापार (Profession)

1. 19 (a) बोलने की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति (Expression), मीडिया/प्रेस, पुतला, झंडा, RTI (Right to Information), सभा (Assemble) – इसमें बोलने की आजादी मिलती है, आप झंडा लहरा सकते हैं, सरकार के काम से नाखुश होकर आप नेता का पुतला जला कर अपना विरोध दिखा सकते हैं, बोलने की आजादी है, RTI (Right to Information) के तहत बोलने और पूछने की पूरी आजादी है, आप मौन भी रह सकते हैं, मीडिया भी कुछ कह सकते है लेकिन एक दायरे में रहकर (एकता अखंडता, सुरक्षा, public, Moral, Court, विदेशी संबंध आदि को ठेस नहीं पहुंचना चाहिए, इसक उल्लंघन नहीं होना चाहिए) विदेश संबंध के बारे में आप नहीं बोल सकते है।

मीडिया  – एकता और अखंडता के खिलाफ मीडिया को कुछ भी बोलने का अधिकार नहीं है, सुरक्षा के खिलाफ नहीं बोल सकते हैं, किसी से अभद्र भाषा में नहीं बोल सकते हैं। अगर किसी ने गलती है और लगता है की वह सजा पाने के लायक है तो आप उसके खिलाफ बोल सकते हैं।

2. सभा ( Assemble ) – अगर आप अच्छा बोलने की काबिलियत रखते है और आपको लोग सुनने में ज्यादा इंटरेस्ट दिखाते हैं तो आप सभा भी कर सकते है।

3. संगठन (Association) – और गर आपके साथ बहुत संख्या में लोग जुटने लगे तो आप अपनी खुद की संगठन भी बना सकते हैं।

4. संचरण (freely move) – आपको पूरी आजदी है की आप भारत में कहीं भी घुम सकते है, लेकिन एक दायरे में रहकर जिससे की किसी को भी समस्या नहीं हो। जैसे की एकता अखंडता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए, किसी के भी सुरक्षा में बाधा नहीं आना चाहिए, लोगो को आपत्ति नहीं होना चाहिए, किसी के Moral को ठेस नहीं पहुंचना चाहिए, और जहाँ घुमने पर पाबंदी लगी हुई आप वहां पर नहीं घूम सकते हैं।

5. निवास व निवास ( reside & settle) – आप भारत में कहीं भी बस सकते है रह सकते है, आपको पूरी आजादी है अब आप जम्मू कश्मीर में भी रह सकते हैं।

6. संपति ( ये खरीदी हुई संपति है – अब आप जहाँ बसना चाहते है वहां पर आप संपत्ति भी खरीद सकते हैं।

लेकिन संपति के अधिकार में थोड़ा बदलाव किया गया है, सरकार को इसमें थोड़ा दिक्कत यहाँ आने लगी थी। जब सरकार रेलवे बिछाने का काम करती है, तो उस दौरान अगर किसी का जमीन सरकार लेना चाहती तो वो उस आदमी से संपत्ति के अधिकार के तहत नहीं ले पाती थी जिससे सरकार को रेलवे बिछाने में बाधा आने लगी। अधिकांश लोग जमीन देने से इंकार कर देती थी जिससे सरकार को यहाँ समस्या आने लगी, तो मोरारजी देशाई ने एक सविंधान संशोधन कराया। जिसके तहत 44वें सविंधान संशोधन अधिनियम 1978 के तहत संपति के अधिकार को मूल अधिकार से हटा दिया।

इसे क़ानूनी अधिकार बना दिया गया मूल अधिकार वो होती है जो सरकार कभी नहीं छीन सकती है, और क़ानूनी अधिकार वो होती है जिसे सरकार कभी भी छीन सकती है। अब मूल अधिकार से संपत्ति के अधिकार को हटा दिया गया है, इस कानून के तहत सिर्फ सरकार ही आपकी संपत्ति को छीन सकती है, कोई दूसरा नहीं। और उसके बदले सरकार आपको मुआवजा भी देगी, वर्तमान समय में अनुछेद 3 में 6 प्रकार के ही स्वतंतत्रा का अधिकार है। अनुच्छेद 31 में एक संपति का अधिकार है जो खानदानी संपति है इसे भी क़ानूनी अधिकार में डाल दिया गया है।

7. व्यापार (Profession) – आपको किसी भी तरह का लीगल व्यापार करने का अधिकार है अपना जीवनयापन करने लिए।

अनुच्छेद 20 – दोषसिद्धि में संरक्षण (Protection from conviction) –

  1. अपराध के समय का कानून  –
  2. एक अपराध की एक ही सजा –
  3. खुद के विरुद्ध गवाही पर मजबूर नहीं किया जा सकता –

किसी भी व्यक्ति पर मात्र FIR हो जाने से और उसे गिरफ्तार कर लेने से उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। जब तक उस पर जुर्म साबित नहीं हो जाता और अदालत में जज उसे दोषी नहीं ठहरा देता। उसे कोई भी दोषी नहीं ठहरा सकता है उसे कोई दोषी नहीं कह सकता है।

1. अपराध के समय का कानून  – अगर कोई अपराधी एक साल पहले कोई अपराध करती है और उस अपराधी को एक साल बाद सजा दी जाती है, (ऐसा होता है अधिकांश केस की सुनवाई में इतना समय लग ही जाता है) अपराध की सजा में कुछ बदलाव आ जाता है कुछ फेर बदल हो होता है। तो उस स्थिति में उस अपराधी को पुराने कानून के हिसाब से ही सजा दी जाएगी न कि जो बदलाव किया गया कानून के हिसाब से दिया जायेगा।

2. एक अपराध की एक सजा  – एक अपराध की एक सजा ही दी जाएगी अगर आप दो अलग अलग मर्डर किये हैं तो आप पर दो अलग अलग केस होगा। और दो मुकदमा चलेगा और दोनों साबित होने पर जो सजा होगा, दोनों केस का सजा एक साथ ही मिलेगी।

3. खुद के विरुद्ध गवाही नहीं  – आप खुद के विरुद्ध गवाही नहीं दे सकते हैं आपको कोई भी मजबूर नहीं कर सकता है, पुलिस रिमांड में पुलिस के सामने दिया गया बयान कोर्ट में नहीं माना जाता है। पुलिस रिमांड में तो पुलिस मार मार के कबूल करवा देती है, लेकिन आप कोर्ट में पलट सकते है। और आप बोल सकते हैं कि पुलिस ने जबरदस्ती आपके साथ मारपीट करके मजबूर किया गवाही देने पर। आप अपनी असलियत कोर्ट में बता सकते हैं, आपको खुद के विरुद्ध गवाही देने के लिए मजबूर नहीं कर सकती है।

अनुच्छेद 21 – प्राण एवं दैहिक स्वतंतत्रा (Life & Personal liberty)

प्राण एवं दैहिक स्वतंतत्रा के अंतर्गत आने वाले क़ानूनी अधिकार

  1. पर्यायावरण
  2. आत्महत्या (IPC 309 )
  3. हेल्थ

(i) पर्यायावरण – आपको स्वच्छ पर्यावरण पाने का अधिकार है, अगर कोई पर्यावरण को दूषित करता है या फिर उसकी गाड़ी बहुत धुआं करती है तो इस कानून के तहत पुलिस गाड़ी जब्त कर सकती है।

(ii) आत्महत्या (IPC 309 ) – इस अनुच्छेद में आपको पूरा जीने का अधिकार दिया गया है कोई आपसे जीने का अधिकार नहीं छीन सकता है। आपकी कोई जान नहीं ले सकता है, और न ही खुद ले सकते हैं आप आत्महत्या नहीं कर सकते है। लेकिन गर आप आत्महत्या करते समय बच जाते है तो आपको पुलिस IPC धारा 309 के तहत गिरफ्तार कर सकती है, और आत्महत्या करना पूरी तरह से गैर क़ानूनी है in legal है।

(iii) हेल्थ – सरकार आपकी स्वास्थ्य/हेल्थ पर पर पूरा ध्यान देने की कोशिश करती है, और समय समय पर सरकार बहुत सी हेल्थ कार्यक्रम भी चलाती है।

Personal liberty के अंतर्गत आने वाले आपके क़ानूनी अधिकार

  1. एकान्त और विदेश यात्रा
  2. निजता (Privacy)
  3. व्यभिचार (Adultery) धारा 497
  1. एकान्त और विदेश यात्रा – इस कानून के तहत अगर आप अकेला रहना चाहते हैं तो आप अकेला रह सकते हैं, इस पर कोई पाबंदी नहीं है। और गर आप विदेश भी यात्रा करना चाहते हैं बाहर कहीं घूमना जाना चाहते हैं तो आप जा सकते हैं, इस पर किसी भी तरह का पाबंदी नहीं है।
  2. निजता (Privacy) – निजता कानून के तहत अगर आप कुछ छिपाना चाहते हैं तो आप छिपा सकते हैं, ये आपकी Privacy है कि आप चाहे तो अपना किसी चीज का पासवर्ड नहीं बता सकते हैं। इस कानून के तहत आप कोई जोर जबरदस्ती नहीं कर सकती है।
  3. व्यभिचार (Adultery) धारा 497 – सुप्रीम कोर्ट ने Adultery यानि व्यभिचार को खत्म कर दिया है, जिसके अंतर्गत पहले जो कानून था। अगर किसी शादीशुदा महिला से कोई मर्द गुप्त तरीके से उसके पत्ति के नामौजूदगी में यानि चोरी छुपे किसी महिला से अवैध संबंध बनाता है। और पकड़ाने पर सिर्फ मर्द को ही सजा दी जाती थी, महिला को नहीं दी जाती थी छोड़ दी जाती थी। लेकिन अब इस धारा 497 को हटा दिया गया अब दोनों आजाद है, अब जितना भी गुटुर गूं कर सकते है, महिला के मर्जी से उसके साथ अवैध संबंध बना सकते है। पुलिस भी अब इस कानून के तहत दोनों को कुछ नहीं कर सकती है आप बिंदास संबंध बना सकते हैं। लेकिन उस महिला के पति के द्वारा सबूत रहने पर वह FIR कर तलाक के लिए Complaint कर सकता है और तलाक ले सकता है।

बाद में इसी में एक अनुच्छेद को जोड़ गया,

अनुच्छेद 21(क) शिक्षा का अधिकार (Right to Education) 86वां संशोधन (2002) के तहत

शिक्षा का अधिकार (Right to Education) 6 से 14 साल के उम्र के बच्चो को फ्री शिक्षा दी जाएगी, किसी भी तरह आंगनबाड़ी सरकारी स्कूल में कोई पैसा नहीं लिया जायेगा एकदम निशुल्क है। और 6 साल की उम्र के नीचे के बच्चो को हेल्थ पर ध्यान भी देगी, और समय समय पर टीकाकरण भी करेगी।

अनुच्छेद 22  गिरफ्तारी से संरक्षण एवं निवारक निरोध ( Protection againts Arrest ) 

  • Warrant 
  • 24 घंटे
  • वकील

जब अनुच्छेद 21 लिखा गया कि ये जरूरी है किसी व्यक्ति के लिए। नही तो कोई भी किसी की जान ले लेगा। लेकीन उसी वक्त बहस हो गई भीम राव अम्बेडकर और बी एन राव के बीच में, दोनो के बीच में टकराव ये हो गया कि दोनो मे बात ये आने लगी कि अगर यहां हम किसी की जान नही ले सकते तो अगर कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की हत्या कर देता है तो उसको हम फांसी कैसे देंगे। अगर हम उसे फांसी देने जाएंगे तो वो कह देगा कि अनुच्छेद ( 21 ) कहता है कि हम किसी की जान नही ले सकते। 

इसके लिए अनुच्छेद 22 जोड़ा गया और अनुच्छेद 22 कहता है अगर आप कानून के खिलाफ जाते हैं तो आपको अनुच्छेद (21) नही दिया जायेगा। तब उस परिस्थिति में आपकी जान ली जा सकती हैं यानि कानूनी तरीके से फांसी दी जा सकती है।

ये हमे गिरफ्तारी से कैसे बचाएगी इसमें दो तरह की बाते कही गई है, 

पहला जब आपने अपराध कर दिया तो उसपर अलग नियम कानून लागू होती है इसमें 3 बाते कही गई है। और दूसरी में परिस्थिति ये है कि आप अपराध करने वाले हैं। उससे पहले भी पुलिस आपको गिरफ्तार कर सकती हैं। आपको लग रहा होगा कि ये कैसे संभव है। तो यहां पर आपको अरेस्ट करने के लिए कारण बताना पड़ेगा। Arrest Warrant दिखाना होगा लेकीन कभी कभी पुलिस आपको बिना किसी Arrest Warrant के गिरफ्तार कर सकती हैं। वो इस पर निर्भर करता है की आपका अपराध cognizable crime ( संज्ञेय अपराध ) है या Non cognizable crime है ( असंज्ञेय अपराध ) है। 

अपराध के बाद – दण्डात्मक निरोध/दंडात्मक हिरासत ( punitive detention ) जब कोई अपराध कर देता है उसे दण्डात्मक निरोध/ दंडात्मक हिरासत ( punitive detention ) कहते हैं। इसके तहत आपकी गिरफ्तारी पक्की है। 

cognizable crime ( संज्ञेय अपराध ) – cognizable crime का मतलब की आपने किसी का हाथ पैर तोड़ दिया है, चांटा मार दिया हो।

Warrant 

Non cognizable crime ( असंज्ञेय अपराध ) – Non cognizable crime का मतलब आपने किसी का घर ही जला दिया हो, किसी को जलाकर मार दिया हो, किसी की हत्या कर दिया हो। किसी को गोली मार दिए हो तो उस स्थिति में पुलिस आपको बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर जेल ले जाएगी। ‌ 

24 घंटे

अपराध किए जाने के बाद 24 घंटे के अंदर आपको किसी मजिस्ट्रेट ( जज ) के सामने पेश करना होता है। लेकिन इस 24 घंटे में दो चीजों को नहीं जोड़ा जाता है। जब अपराधी को गिरफ्तार किया जाता है तो थाने के रजिस्टर में यह लिखा जाता है कि अपराधी को किस वक्त पकड़ा गया है वह समय लिखना पड़ता है। जब पुलिस आपको मजिस्ट्रेट के सामने ले जाती है तो उसके दौरान जो जाने में समय लगता है उस समय को 24 घंटा में नहीं जोड़ा जाता है। क्योंकि जाते समय हो सकता है सड़क पर ट्रैफिक जाम हो और उस वजह से दो-तीन घंटा लेट भी हो सकता है इसलिए इस समय को नहीं जोड़ा जाता है। 

दूसरा अगर अपराधी को 24 घंटे के अंदर पेश करना है और अगले दिन कोई हॉलीडे हो, छुट्टी हो तो उसी दिन मजिस्ट्रेट के पास पेश करने की जरूरत नहीं होती है, उसे अगले दिन पेश कर सकते हैं।  पुलिस आपको 24 घंटे से ज्यादा गिरफ्तार करके थाने में नहीं रख सकती है। 

वकील

इसमें आपको वकील रखने की आजादी है इजाजत है। इसमें भी दो चीज हैं एक तो आप अपनी पसंद के वकील रख सकते हैं, आप जितना से जितना अच्छे वकील को कर सकते हैं। और वहीं पर अगर कोई गरीब आदमी है जो वकील अफोर्ड ही नहीं कर सकता है उसके पास पैसे है ही नहीं। उस स्थिति में सरकार उसे सरकारी वकील देती है जो उसके तरफ से केस लड़ती है। और उस वकील को फीस सरकार देती है यानी कि सरकारी वकील को सरकार पैसे देती है जो सैलरी उसकी फिक्स हो सकती है। 

सरकारी वकील देखा जाए तो वह किसी भी केस को वह सीरियस नहीं लेते हैं‌। सरकारी वकील तो अधिकांश केस हार जाती है, उन्हें मालूम है कि उन्हें वहाँ कुछ मिलने वाला नहीं है। 

Non cognizable crime ( असंज्ञेय अपराध ) – तो पुलिस को एक पावर है कि किसी भी व्यक्ति को अपराध करने से पहले शक के आधार पर पुलिस आपको गिरफ्तार कर सकती है। आपको कोई वारंट नहीं है दिखाएगी, और ना ही वहां पर आपकी कोई दलील और अपील सुनेगी। उसे परिस्थिति में आपको 30 दिन या 3 महीने तक भी बिना किसी वारंट के बिना कोर्ट में पेश किये बिना वकील के थाने में कैद करके रख सकती है। 

कभी-कभी तो पुलिस आपको बिना वारंट के 3 महीने तक भी जेल में बंद करके रख सकती है। अगर राज्य सरकार के एडवाइजरी कमेटी यह कहती है कि नहीं इसे अभी छोड़ना मुनासिब नहीं है तो यह एक महीने से बढ़ाकर 3 महीने भी कर दिया जा सकता है। एक तरह से देखा जाए तो यह एक रोलेट एक्ट का नया रूप है जो 1919 से चला रहा है। जो 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था जिसे अंग्रेजों ने लाया था। यह आज भी चल रहा है भले यह किसी को पता नहीं, इसे निवारक निरोध कहते हैं। देखा जाए तो यह रोलेट एक्ट के ही समान है। जिसे हम निवारक निरोध ( Preventive Detention ) कहते हैं। 

और अगर फिर 3 महीने से ज्यादा उसे रखना तो फिर उसे एडवाइजरी बोर्ड से इजाजत लेनी पड़ेगी। लेकिन इस बीच उसको अधिकार है कि वह अपना वकील रख सकता है और उसे कोर्ट में कह सकता है उसे बेवजह पकड़ कर रखा गया है। यह सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पुलिस ये कदम उठाती है।

इसका एक बहुत ही अच्छा उदाहरण है अगस्त 2019 मे जब धारा 370 जम्मू कश्मीर से हटाई गई थी। उस वक्त जम्मू कश्मीर के बड़े-बड़े मुस्लिम नेताओं ( महबूबा मुफ्ती, जम्मू कश्मीर के पुराने मुख्यमंत्री, उमर अब्दुल्ला के पिता फारूक अब्दुल्ला, और इनके पिता शेख अब्दुल्ला जिन्होंने धारा 370 को संविधान में जोड़वाया था ) को नजर बंद किया गया। उन पर prevantive Detention लगा दिया गया। उन्हें घर के अंदर पुलिस के निगरानी में रखा गया था उन्हें घर से निकलने पर पाबंदी लगा दी गई थी, कुछ वक्त तक के लिए। क्योंकि अगर वह बड़े-बड़े नेता बाहर होते हैं और कोई भड़काऊ भाषण दे देते तो आज जम्मू कश्मीर से धारा 370 नहीं हटती।

370 धारा क्या है आपको यह विस्तार से हम बताएंगे।  prevantive Detention कानून के तहत 3 महीने क्या इन लोगों को तो 6 – 6  महीने तक घर के अंदर नजर बंद कर दिया गया था। सरकार को पता था कि अगर यह घर से बाहर निकले और भड़काऊ भाषण दिए तो लोग वहां भडक जाएंगे बहुत बड़ी हिंसा हो जाएगी। तो इन लोगों का हाउस अरेस्ट कर दिया गया यानी नजरबंद। इस परिस्थिति में घर का फोन की सुविधा बंद कर दी जाती है। अगल-बगल पड़ोसी किसी से भी बात नहीं करने दिया जाता है, बस अपने घर में रहिए, खाई, अपने परिवार के साथ रहिए जब तक की यह कानून आप पर लागू रहती है। 

इस कानून का इस्तेमाल कभी-कभी सरकार द्वारा मिसयूज हो जाता है। गलत जगह इस्तेमाल कर देती है और कर चुकी है जिसका उदाहरण यह है।

जब से देश बना है Preventive Detention का स्वरूप भी बदला है। और अभी तक Preventive Detention के अलग अलग कई कानून लाए गए। ताकि अपराध को रोका जा सके। जैसी जैसी सरकार आती है वैसी वैसी कानून का स्वरूप बदल दिया जाता है। 

अभी तक कौन-कौन से प्रीवेंटीव डिटेंशन को बनाया गया हैं?

  • सबसे पहले आया था 1950 में जो भारत का पहला निवारक निरोध नियम था। जिसका नाम था PDA – Preventive Detention Act ये अभी लागू नहीं है।
  • उसके बाद 1958 में आया AFSPA – Armed Forces Special Powers Act ये कश्मीर में लगा है, अरुणाचल प्रदेश में भी लगा है। 

इसमें सैनिको को विशेष अधिकर छूट दिया जाता है जिसके अंतर्गत जिस क्षेत्र में भी AFSPA लग जायेगा उस क्षेत्र के किसी के भी घर मे रात के 2 बजे फोर्स वाले घुस जाता है, तलाशी के लिए। लेकीन यहां पर कुछ मानवाधिकार वालो ने इसका निंदा की विरोध किया। क्यों? क्योंकि कहा गया कि आर्मी वालो ने कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्र में घर में घुसकर तोड़ फोड़ किया है। उनके साथ बतमीजी करने का आरोप है। फौजियों के कोर्ट में तकरीबन 25 फौजियों के ऊपर रेप का आरोप चल रहा है ऐसा खुद फोर्स के कोर्ट ने बयान दिया है। 

  • उसके बाद आया 1967 में UAPA ( Unlawful Activities Prevention Act) ऐसा काम जो कानून के खिलाफ है। आप किसी के ऊपर बेवजह पत्थर मारे, किसी बड़े आदमी को गाली दे दे। जिसके अंतर्गत 3 महीने का सजा का प्रावधान था। 

उसके बाद आया अब तक सबसे खतरनाक कानून MISA जो 1971 से 1977 तक प्रावधान में रही। Misa का मतलब Maintenance of internal security Act (आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम ) अभी तक जितने भी Preventive Detention आया उसमे से इसका मिसयूज सबसे ज्यादा हुआ है। 

  • उसके बाद आया 1980 में NSA –  National Security Act ( राष्ट्रीय सुरक्षा कानून  – रासुका ) ये अभी भी चालू है। 
  • उसके बाद आया 1985 में TADA (Terrorist and Disruptive Activities (Preventive) Act जो 1995 तक प्रावधान में रहा और 10 साल बाद यानी 1995 में इसे खत्म कर दिया गया। ये कानून अतंगवादियों पर लगाया जाता था। इसका मिसयूज होने लगा था। ये कानून किसी के ऊपर लग जाने के बाद उसकी कोई सुनता ही नही था। 
  • उसके बाद साल 2001 मे आया POTA ( Preventive of Terrorism Act ) ये एकदम TADA से मिलता जुलता है। इसका भी मिसयूज होने लगा जिसके बाद इसको भी साल 2004 में खत्म कर दिया गया।

एनकाउंटर क्या है कैसे किया जाता है?

तो पुलिस एनकाउंटर कब करती है और कभी कभी सही भी करती हैं और कभी कभी फर्जी एनकाउंटर भी करती है। 

एनकाउंटर तब किया जाता जब कोई अपराधी पुलिस की कस्टडी से भाग रही हो, आप पुलिस पर हमला कर रहे हो, पुलिस आपको रुकने को कह रही है लेकिन आप नहीं रूक रहे हैं। तो पुलिस सबसे पहले हवाई फायरिंग करती है और रुकने को कहती है नही रुकने पर सबसे पहले गोली पैरो में मारती है उसके बाद ऊपर के हिस्से में। और सबसे अहम बात एनकाउंटर करते समय गोली हमेशा दूर से ही मारी जाती हैं नही तो पोस्ट मार्टम में पता चल जाता है कि गोली बहुत नजदीक से मारी गई है। 

  • Interrogation ( सामान्य पूछताछ) 
  • Custody ( हिरासत) सामान्य मैटर 
  • Arrest ( गिरफ्तार) सीरियस मैटर ( 24 घंटा) 
  • Police Remand ( 15 दिन ) जांच – सबूत 
  • Judicial custody ( जेल – जेलर )

1.  Interrogation ( सामान्य पूछताछ ) – पुलिस आपको इंट्रोगेशन के लिए बुलाती है यानी पूछताछ के लिए बुलाती है। आपके घर के आसपास झगड़ा हुआ हो, चोरी हुआ हो, छोटी मोटी कोई घटना हुई हो, उसके लिए बस आपसे पूछताछ करने के लिए बुलाती है। और गर आपने किसी से झगड़ा किया तो उसके लिए भी पूछताछ करने के लिए बुलाती है। और दोनो को सुलहनामा करवा कर खर्चा पानी लेकर और वार्निंग दे कर छोड़ देती हैं। 

एक सामान्य उद्धहरण अर्णव गोस्वामी से मुंबई पुलिस ने तकरीबन 8 घंटे पूछताछ किया। 

2.  Custody ( हिरासत ) सामान्य मैटर – हिरासत में लेना, गिरफ्तार करना नही, जब अप आंदोलन करते हैं, प्रोटेस्ट, झगड़ा शांत करवाने, तो पुलिस आपको हिरासत में लेकर पुलिस थाने में ले जाती है और उसे समझती है पूछताछ करती है। 4– 5 घंटे रखती है उसके बाद छोड़ देती है, इसमें FIR नही लिखी जाती है। 

3. Arrest ( गिरफ्तार ) सीरियस मैटर ( 24 घंटा)  – इसमें पुलिस FIR होने के बाद गिरफ्तार करती हैं आपको किस जुर्म में गिरफ्तार किया है ये FIR में साफ साफ लिखा होता है। और कभी कभी FIR से पहले भी गिरफ्तार कर सकती हैं। उसके बाद FIR दर्ज किया जा सकता है। इसमें आपको सीरियस मेटर के लिए गिरफ्तार करती है। 

अब Arrest किया है तो उस परिस्थिति में अपराधी को 24 घंटे के अन्दर मजिस्ट्रेट यानी जज के पास पेश करना होता है। थाने में किसी भी तरह का खाने की व्यवस्था नहीं होती है। जज के पास ले जाने के बाद पुलिस अपराधी के अपराध के बारे में बताते हैं उसके बाद जज निर्णय करते हैं और उसके बाद उसे जेल मे भेज दिया जाता है। जेल में आप ऐसे ही नही घुस सकते हैं। अपराधी को जज अपने कस्टडी में ले लेता है और उसे जेल में डाल दिया जाता है जिसे जुडिशल कस्टडी (Judicial custody ) कहा जाता है। 

Judicial custody – जेल में होता है, जिसका मालिक जेलर होता है। 

जेल जो बहुत बड़ा होता है और वहां पर और भी बहुत से अपराधी होते हैं। और ये जेल जज के अधीन कार्य करती है। किसको बाहर करना है किसको अन्दर डालना है ये जज तय करता है। और जेल में जाने के बाद वहां पर आपको कोई भी मारता पीटता नहीं है वहां पर आप आराम से रह सकते हैं। 

हां वहां पर दिक्कत होता है तो पुराने और सीनियर अपराधी से जो बहुत बड़ा अपराध करके आए हैं वहां पर उनको उनसे दिक्कत हो सकती है और होती भी है अगर उनकी बात नहीं मानते हैं तो। 

जिसने मर्डर किया है उससे पूछताछ भी तो करनी है, उसने कैसे मर्डर किया है किस हथियार से किया है। और ये काम पुलिस करती है। तो वो अपराधि तो जुडिशल कस्टडी में यानि जज के अधीन मे है। तो दरोगा जायेगा जज के पास और कहेगा की जो कल आपको अपराधी दिए थे जुडिशल कस्टडी में रखा है उसे हमे दे दिजिए उससे पूछताछ करनी है। 2–4 गो गवाह मिला है जिसने देखा है कि किसने मारा है। तो पहचानने के लिए इसको ले जाना जरूरी है।

तो हमको पूछताछ के लिए दे दिजिए ताकि सबूत इकट्ठा कर सके और सीन को रीक्रिएट कर सके। तो उसको हमे दे दिजिए डिमांड नही करती है रिमांड करती हैं। क्योंकि उस अपराधी को पुलिस ने ही जज के हवाले किया था। तो जज जेलर को लिखता है की पुलिस को वो अपराधी रिमांड पे दे दो। उसका एक रसीद बनता है जिसको जेल में दिखाया जाता है उसके बाद ही उस अपराधी को रिमांड पर दिया जाता है। तो वहां पर अपराधी के जुडिशल कस्टडी से उठाकर पुलिस रिमांड पर लाती है।

तो रिमांड पर लेकर छानबीन करती है सबूत जुटाती है और सीन को रीक्रिएट करती है और अगर उस दरमियान अपराधी भागने की कोशिश करता है तो वहां पर उस अपराधी को एनकाउंटर कर देती है। तो जज वहां पर पूछती है कि उस वक्त ड्यूटी पर कौन कौन था और उसको बुलाकर भी पूछती है कि सच में वो अपराधी भागने की कोशिश कर रहा था। 

पुलिस उस परिस्थिति में रिमांड पर नही लेती है जहां पर सब कुछ निष्पक्ष होता है, सबूत सामने होता, गवाह होता है। 

पुलिस कस्टडी मैक्सिसम 15 दिन का होता है, हालांकि महाराष्ट्र का एक क्रिमनल कानून है मकोका वो भी निवारक निरोधक कानून है। उसमे 1 साल तक पुलिस रिमांड में रखने का प्रावधान है। जज को आधिकार है की 15 दिन तक पुलिस रिमांड पर दे सकती है। लेकीन 15 दिन देते नही है, जज 14 दिन ही पुलिस रिमांड पर देती हैं 

शोषण के विरुद्ध आधिकार (Exploitation) अनुच्छेद (23 से 24 )

अनुच्छेद (23) 

  • Traffecking – दुर्व्यवाहर, मानव तस्करी
  • Banded – बेगारी, बंधुआ
  • Forced – बलात श्रम 

Traffecking – ( दुर्व्यवाहर, मानव तस्करी ) – किसी भी व्यक्ति का Traffecking नही कर सकते है। यानि उसका तस्करी (बेच) नहीं कर सकते हैं, दुर्व्यवाहर नही कर सकते हैं। Traffecking के अंतर्गत होता ये है कि इसमें छोटे बच्चो को बेच दिया जाता है। भीख मांगवाने के लिए और छोटी छोटी बच्चियों को देह व्यापार के लिए सबसे ज्यादा बेचा जाता है तो इसे रोकने के लिए इस कानून को लाया गया है। 

Banded – बेगारी, बंधुआ) – इसमें आप किसी से बेगारी नही करा सकते हैं, यानी काम करवा लिए और पैसे नही दिए, ज्यादा काम करवा के कम पैसे नही दे सकते हैं।

Forced – ( बलात श्रम) – आप किसी मजदूर से बलात श्रम नही करवा सकते हैं। यानी किसी मजदूर को आप सुबह 8 बजे से 5 तक काम करवा रहे हैं और वो थक चुका है उसके बाद भी आप उससे काम करवा रहे हैं। तो आप जबरदस्ती उससे काम नही करवा सकते हैं। उसका जितना पैसे हुआ है उतना ही दे लेकीन काम जबरदस्ती नहीं करा सकते हैं, उसको मार मार के भी काम नही करवा सकते हैं तो ये सब इनलीगल हैं, सके लिए आपको सजा भी हो सकता है और साथ में जुर्माना भी। 

तो इसी अनुच्छेद के लिए जब संविधान में बहस हो रही थी तब संविधान के सलाहकार डा भीमराव अंबेडकर ने कहा कि देश कई सौ साल चलेगा और उस दरमियान परिस्थियां ऐसी भी आएगी की देश की सुरक्षा के लिए इमरजेंसी में लोगों से जबरदस्ती काम करवाना पड़ सकता है, तब क्या करना पड़ेगा? लेकीन यहां मूल आधिकार इसे करने से रोकती हैं। न ही अन्य लोग इसे छीन सकती हैं और न ही सरकार। 

तो बहुत बहस होने के बाद इसमें पार्ट 2 जोड़ा गया यानी अनुच्छेद 23 ( II ) यदि कोई राष्ट्रीय हित और आपात काल (इमरजेंसी) आ गया आ गया तो इसके तहत आपसे फ्री में और जबरदस्ती भी काम करवाया जा सकता है गर ऐसी स्थिति आती हैं तो। कोरोना काल में जिस तरह से डॉक्टरों से ओवर टाइम कराया गया और उसका भुगतान भी नही किया गया, सैलरी भी काटी गई।

अनुच्छेद 24 (Article 24) बाल नियोजन पर प्रतिबंध

14 वर्ष से कम के आयु के बच्चो को इस 3 कामों में नही लगा सकते हैं। जिसे खतरनक श्रेणी में रखा गया है –

  • Factory ( कारखाना )
  • Mine ( खदान )
  • Danger ( खतरनाक )

किसी बालक को फैक्ट्री में काम में नही लगा सकते हैं। 

सबसे ज्यादा बच्चो को किस काम में झोंका जाता है तो सबसे ज्यादा बच्चों को कालीन उद्योग में लगाया जाता है। ये कालीन ज्यादातर मिर्जापुर और भदोई में बनता है। कालीन उद्योग में बाल श्रम ज्यादा लगता है जो इनलिगल हैं इसमें बच्चों को काम में नही लगा सकते हैं। माइनिंग, खदान में नही लगा सकते हैं, क्योंकि खदान में ब्लास्टींग होती रहती है, खदान में भारी मात्रा में मिथेन (CH4 ) गैस पाया जाता है। जो बहुत ही जहरीली गैस होती है जो आग बहुत जल्दी पकड़ लेती है

खतरनाक काम में बच्चो को काम में नही लगा सकते हैं जैसे – कहीं पुल बन रहा हो उसमे बच्चो को काम में नही लगा सकते हैं। उससे ज्यादा खतरनाक काम तो पटाखा उद्योग है, बच्चों को इस उद्योग में भी लगा सकते हैं। ये काम तो बहुत ही खतरानक हैं। 

अनुच्छेद 25 26 27 28 में क्या है?

धार्मिक स्वतंत्रता का आधिकार (अनुच्छेद 25 – 28)

धार्मिक स्वतंत्रता का आधिकार – अनुच्छेद (25)

  • अन्त: करण ( Conscience ) 
  • धार्मिक कार्य/ रिवाज
  • धार्मिक प्रचार

अन्त: करण (मानना ) ( Conscience ) – आप किसी भी धर्म को मान सकते हैं, धर्म परिवर्तन का स्वतंत्रता इसमें नही है, इसपर बहस भी बहुत हुई है। आप कोई भी धर्म के गाने को गुनगुना सकते हैं। बहुत सारे ऐसे मुस्लिम सिंगर है जिन्होंने हिंदू भक्ती गाने गाए हैं। और ऐसे बहुत सारे हिंदू सिंगर है जिन्होंने इस्लामिक गाने, गजल, कवाली गाए हैं। 

व्यक्तिगत स्वतंत्रता ( Individual freedom)

भारतीय संविधान में हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई के लिए अलग अलग (Personal law) कानून है। इसी के तहत सिखों को तलवार रखने का आधिकार है जिसे कृपाण कहते हैं। सिखों को 5 चीजे रखने का आधिकार है, केश, कंघा, कृपाण, कच्छा और कड़ा। सिख तलवार को हवाई सफर में भी ले जा सकता है। हां वहां तलवार थोड़ा छोटा होता है और अगर कहीं विदेश भी जाते हैं तो छोटा तलवार ले के जाते हैं, बकायदा भारत सरकार सर्टिफिकेट देती है। 

भारत में मुस्लिम महिलाओं को हिजाब पहनने का आधिकार है, हिंदू महिलाओं को सिंदूर लगाने का आधिकार है। 

अनुच्छेद ( 26 )

  • धार्मिक कार्यों का प्रबंधन
  • स्थापना, संपत्ति, वैधानिक खर्च
  • सामूहिक स्वतंत्रता 

धार्मिक कार्यों का प्रबंधन सामूहिक लोग मिलकर कर सकेंगे। आप अपनी जमीन पर मंदिर बनाए मस्जिद की स्थापना करे आपको आजादी है। आप संपति रखिए ट्रस्ट खोल दीजिए। उसमे लोग पैसे डोनेट कर सकते हैं, उस पैसे को वैधानिक खर्च करिए, कानूनी तरीके से खर्च करिए भंडारण करवाइए, खाना खिलवा दिजिए, ठंड के मौसम में कंबल का वितरण करवा दिजिए। 

अनुच्छेद ( 27 )

  • धार्मिक कार्य का धन tax free 
  • But entry fees

धार्मिक कार्य के लिए जमा धन पर टैक्स नहीं लगता है tax free होता है। मंदिर मे चाहे कितना भी धन जमा हो जाए उस पर टैक्स नही लगता है। इसका कई लोग मिसयूज भी करते हैं, मिसयूज कैसे करेंगे, तो एक ट्रस्ट बना देंगे आपके पास 1 करोड़ है तो 50–60 लाख झूट मुठ के मंदिर के ट्रस्ट में जमा करवा देंगे बाकी के बचे पैसे पे कम टैक्स देने पड़ेंगे, और मंदिर के ट्रस्ट चलाने वाले से पहले से सेटिंग रहती है, वहां थोड़ा बहुत पैसे देकर वो पैसा वापिस ले लेगा। but entry fees लगती है।

अनुच्छेद ( 28 ) 

  • सरकारी खर्च से चलने वाले संस्थान में धार्मिक शिक्षा नही। 
  • संस्थान में किसी को भी धार्मिक कार्य के लिए बाध्य नहीं।

सरकारी खर्च से जीतने भी स्कूल, कॉलेज या जीतने भी शिक्षण संस्थान चल रहे हैं, उसमें धार्मिक शिक्षा नही दी जाती है। और न ही उस स्कूल या कॉलेज के बच्चों को जबर्दस्ती बाध्य ( Force) किया जा सकता है कि तुम धार्मिक कार्यक्रम में भाग लो। भले उस स्कूल या कॉलेज में प्राथनाएं किसी भी भाषा में हो सकती है, क्योंकि वो चीज पुरानी संस्कृति से जुड़ी होती है वो शुरु से चला आ रहा होता है। 

शिक्षा एवं संस्कृति का आधिकार अनुच्छेद Education & Culture ( 29 – 30 )

अनुच्छेद ( 29 )

  • अल्पसंख्यक के हितों की रक्षा
  • संस्कृति, भाषा, लिपि, धर्म, जाति के आधार पर संस्थान से वंचित नही। 

अल्पसंख्यक के हितों की रक्षा – अल्पसंख्यक क्या होता है? जिन समुदाय के लोगों कि संख्या कम होती है वह अल्पसंख्यक में आती हैं। आप कहीं भी चले जाइए जिन धर्मो के लोगों की संख्या कम है उनको थोड़ा सा सुविधा ज्यादा मिलनी चाहिए। क्योंकि ऐसा देखा गया है। अक्सर छोटे लोगो को बड़े लोग दबा कर रखते हैं। तो ऐसा नही होना चाहिए, उन्हे भी आगे बढ़ने का मौका मिलना चाहिए। Mizority जब भी रहेगी वहां minority को दबा देगी, और mizority को इनडायरेक्ट सारी सुविधाएं मिल ही जाता हैं। 

Minority देश में नही गिना जाता है राज्य में गिना जाता है। अगर आपका धर्म किसी जगह पर 10% से कम है तो उस माइनोरिटी में गिना जाएगा। 

नागालैंड में हिंदू माइनोरिटी है क्योंकी वहां पर 80 से 85% लोग ईसाई धर्म को मानने वाले हैं। और मिजोरम में तो 90% से अधिक लोग क्रिश्चन धर्म के लोग हैं। 

ईसाईयों ने ही देश के 30% शिक्षा को अकेले संभाल के रखा है। आप कहीं भी रहते हों खासकर शहर में तो टॉप 5 स्कूल में 2 से 3 स्कूल तो ईसाईयों का ही होता है मेरे ग्रामीण क्षेत्र में ही एक है संत थॉमस स्कूल । 

अल्पसंख्यक पहला धर्म के आधार पर होता है दूसरा भाषा के आधार पर होता है। 

हमारी भाषा तो हिंदी है ही लेकीन लिपि क्या है तो हमारी लिपि ( script ) देवनागरी है जिसे हम बाएं से दाएं तरफ लिखते हैं। जिसे देवनागरी कहते हैं। वहीं पर उर्दू भाषा की लिपि देखा जाए तो उसकी लिखावट दाएं से बाएं तरफ लिखा जाता है जिसे खरोंचटी कहते हैं। रोमन लिपि की लिखावट उपर से नीचे तरफ लिखा जाता है। तो संस्कृति, भाषा, लिपि, धर्म, जाति के आधार पर अल्पसंख्यक को संस्थान से शिक्षा लेने से नही रोक सकते हैं।

तो यहां एक झमेला हो गया और यहां बहस हो गया डॉ भीमराव अंबेडकर और बी एन राव के बीच में। भले हम अल्पसंख्यकों को कितना भी आधिकार क्यों न दे दे उन्हे एक हजारों के बीच Okword ( घबराहट) महसूस करेंगे। 

अनुच्छेद ( 30 )  

  • अल्पसंख्यक अपनी शिक्षण संस्थान खोल सकते हैं, सरकार भी उन्हे धन उपलब्ध कराएगी और अल्पसंख्यक शिक्षक को सैलरी देने की जिम्मेवारी सरकार की है। और यहां पर अल्पसंख्यक अपनी संस्कृत (Cultyre), भाषा की पढ़ाई कर सकता है। 

संपति का अधिकार

अनुच्छेद 19 ( f ) – संपाति खरीदने की स्वतंत्रता – संरक्षित की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 (6) मे भी था। 

अनुच्छेद ( 31 ) 

–  इसमें आपकी संपति से कोई भी वंचित नही रख सकता है। आपकी संपति को कोई नही छीन सकता है। 

  • संपति का अधिकार का चर्चा भाग 3 अनुच्छेद 12 – 35 के बीच में किया गया है अगर इसके बीच संपति का अधिकार रहा तो कुछ नही हो सकता है, लोग अपनी जमीनें देने को तैयार ही नहीं होंगे इस मूल अधिकार अधिनियम के तहत। 

लेकीन ये विकास में बाधा आ रही थी, लोग अपनी जमीन सरकारी काम मे नही दे रहे थे। कॉलेज खोलना है कोई जमीन ही नही देता था रेल मार्ग बिछाना है कोई जमीन देने को राजी ही नही था । तो यहां ये समस्या आ रही थी कि देश का विकास कैसे होगा। तो सरकार को यहां थोड़ा सख्ती भी बरतना जरूरी हो गया। तो यहां पर प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई ने 44वां संविधान संशोधन कर दिया। और 44वां संविधान संशोधन 1978 मे किया ।और इसमें कह दिया कि संपति का अधिकार अब मूल अधिकार में नही रहेगा।  

अनुच्छेद 300 ( क )

तो यहां पर बहुत सोच विचार करने के बाद और उन्हे सलाह भी दिया गया की अगर ये संपति का अधिकार अनुच्छेद 12 से 35 के बीच रहा तो वो उसके लिए मूल अधिकार ही रहेगा, और हम उसके मूल अधिकार के खिलाफ कुछ नही कर सकते है। तो इस संपति के मूल अधिकार को संविधान के किसी और अनुच्छेद में शिफ्ट कर दे। तो यहां पर अनुच्छेद ( 31 ) संपति के मूल अधिकार को अनुच्छेद 300 (क) मे शिफ्ट कर दिया, अब ये मूल अधिकार नही रहा। 

सरकार जमीन तो ले लेती थी लेकीन मुवाबजा बहुत कम देती थी। इससे लोगो को बहुत नुकसान होता था तो उसके बाद भूमि अधिग्रहण बिल पारित हुआ। जिसके अंतर्गत जिसकी भी जमीन को सरकार अब लेगी उसको बाजार के भाव से जमीन मालिक को भुगतान करना पड़ता था। 

लेकीन अगर सरकार के अलावा कोई और उसके जमीन पर कब्जा करने की कोशिश करता है तो यहां पर सरकार उनकी मदद करेगी। 

अनुच्छेद ( 32 )

संवैधानिक का उपचार (भीम राव अंबेडकर ने इसे संविधान की आत्मा कहा था ) 

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