Bandook kahan se kharide –
हथियार रखने के क्या क्या नियम और गाईड लाईन है
इंसान को हथियार रखने की आखिर क्या जरूरत पड़ती है –
पहली तो ये है कि कुछ लोग अपनी रक्षा ख़ुद करना चाहते हैं क्योंकि दुसरो से ज्यादा खुद पर ज्यादा विश्वास होता है, एक इन्सान दूसरे इंसान के लिए कब खतरा बन जाता है कुछ भी बताना बहुत ही मुश्किल है। जिसकी वज़ह से कुछ लोग वैध और अवैध दोनों तरीकों से (Legal and unlegal ) बंदूक जैसे कई तरह के हथियार अपनी सुरक्षा के लिए रखते हैं।
हमारे देश ऐसे बहुत से लोग है जो अवैध तरीके से गोला बारूद रखते हैं और उसका गलत तरीके से व्यापार तक करते हैं, आपने कभी कभी देखा होगा कि आज कल कहीं भी छोटा से छोटा और बड़ा से बड़ा वो चाहे मोहल्ले का हो फिर किसी छोटे मोटे राजनीतिक पार्टियों का हो अचानक से देशी कट्टा निकाल कर के फायरिंग शुरू हो जाती है और हवा में लहराने लगता है। और कहीं कहीं तो गोला बारूद जैसे बम भी देखने को मिल जाते है।
इसी वजह से ख़तरनाक हथियार बगैर लाइसेंस के रखने पर प्रतिबंध लगाया गया है। और पकड़े जाने पर जेल और जुर्माना दोनों हो सकती है।
हथियार रखने के नियम और गाईड लाईन –
- भारत का कोई भी नागरिक आत्मरक्षा के लिए यानी कि अपने ऊपर किसी तरह का खतरा महसूस होने पर अपनी रक्षा के लिए प्रशासन से हथियार के लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकते हैं। जिसके लिए आपका अपना पूरा ब्यौरा देना पड़ता है।
- हथियार के लाइसेंस के लिए एक जटिल प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है जिसमें आपका अपना पूरी जानकारी देनी पड़ती है।
- हथियार का लाइसेंस देने का अधिकार सिर्फ राज्य के गृह मंत्रालयों और ज़िला के अधिकारियों को शक्ति दी गई है।
- एक तय प्रक्रिया के तहत आवेदन देनी होती है, जिसके जांच उपरांत प्रक्रिया के तहत ग़र सब कुछ सही पाई जाती है तो लाइसेंस जारी कर दी जाती है।
- जहाँ कमिश्नर एक्ट लागू हो गए हैं वहां पुलिस कमिश्नर लाइसेंस जारी करते हैं, निशाने बाजी में जो खिलाड़ी होते हैं, जो रिटायर सुरक्षा बल के अफ़सर होते हैं इनको भी बंदूक लाइसेंस रखनी पड़ती है।
हथियार के लाइसेंस लेने की प्रक्रिया –
- सबसे पहले हथियार के लाइसेंस के लिए डिएम (DM) के ऑफिस मे आवेदन देनी पड़ती है।
- ग़र व इलाक़ा पुलिस कमिश्नर एक्ट के दायरे में आता है तो कमिश्नर को आवेदन देनी पड़ती है।
- इसमे सबसे पहले बंदूक रखने की वजह बतानी पड़ती है, जैसे कि ग़र तुम्हें जान का खतरा है, किसी भी प्रकार का लीगल बिजनेस है, कोई सार्वजानिक हस्ती है।
- डीएम (DM) के जांच उपरांत के बाद आवेदन एसपी (SP) के ऑफिस में भेज दिया जाता है, एसपी (SP) आवेदक के अपने क्षेत्र के थाने में आवेदन भेजा जाता है। उसके बाद वहाँ की लोकल पुलिस थाने को आवेदन मिलने के बाद वहाँ की लोकल पुलिस थाना आवेदक के वेरीफिकेशन करते हैं।
- जिसमें आवेदक का स्थाई पता, क्या काम काज का ब्यौरा देना पड़ता है, कोई आपराधिक रिपोर्ट तो नही है आदि की जांच की जाती है, ये सब जांच होने के उपरांत आवेदक का आवेदन जिला के क्राइम रिकार्ड ब्यूरो मे (Crime Record Beuro) भेजा जाता है, जहां पर आवेदक का पूरा हिस्ट्री खंगाला जाता की कोई पुराना आपराधिक मामला या किसी आपराधिक संगठन से किसी सम्बंध या कोई पुराना संपर्क तो नही रहा है ये सब जांच किया जाता है कि कोई पुराना आपराधिक रिकार्ड तो नही है।
- आवेदक का फिर बैकग्राउंड अच्छे से चेक किया जाता है, जांच के बाद रिपोर्ट फिर एसपी ( SP) के दफ्तर मे भेज दिया जाता है, उसके बाद जांच की अच्छे से पुष्टि कर फिर से डीएम (DM) ऑफिस भेज दिया जाता है, उसके बाद इंटेलिजेंस ब्यूरो (Intelligence Beuro) भी जांच करती है कोई ग़लत काम के लिए तो नही ले रहा है, या पहले से तो कोई गलत काम मे नहीं कर रहा है, फिर डीएम (DM) के रिपोर्ट के आधार पर लाइसेंस देने ना या देने का फैसला करती है कोई पुराना केस या कोई पुराना अपराध होने पर लाइसेंस नहीं मिलता है।
noc – एनओसी (no objection certificate)
सुरक्षा बलों से रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर को अपने संस्थान से एनओसी लेनी पड़ती है, उसके बाद वो डीएम (DM) से हथियार का लाइसेंस ले सकता है।