गया का इतिहास _ गया क्यों प्रसिद्ध है?_Gaya Ka itihas
आज हम जानेंगे गया का इतिहास (Gaya Ka itihas) के बारे में, गया का इतिहास इतना पुराना है। गया धार्मिक नगरी के लिए प्रसिद्ध है, तो गया बिहार और झारखंड
आज हम जानेंगे गया का इतिहास (Gaya Ka itihas) के बारे में, गया का इतिहास इतना पुराना है। गया धार्मिक नगरी के लिए प्रसिद्ध है, तो गया बिहार और झारखंड
यहाँ का विष्णुपद मंदिर जो पर्यटकों के बीच बहुत प्रसिद्ध है। पुराण के अनुसार भगवान विष्णु जी के पैर के निशान मिले जहां पर आज विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया गया है। हिंदू धर्म में इस मंदिर का अहम स्थान प्राप्त है। गया पितृदान के लिए भी प्रसिद्ध है कहा जाता है कि यहां पर फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से मृत व्यक्ति को बैकुंठ की प्राप्ति होती है। हिन्दू पौराणिक कथा (mythology) के अनुसार काशी, हरिद्वार और गया को मोक्ष का द्वार कहा जाता है। गया के 45 जगहों पर पिंडदान किया जाता है, और 8 जगहों पर श्राद्ध होता है। इस शहर में हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म और जैन धर्म का भी महत्व है। एवं महाबोधि मंदिर के साथ, वैशाली, नालंदा, राजगृह, एवं कुशीनगर भी महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल हैं। जो इस क्षेत्र की संस्कृति और धर्म के विरासत को प्रकट करते हैं।
1787 में महारानी अहिल्या बाई ने विष्णु पद मंदिर का पुननिर्माण करवाया था।
गया में पिंडदान के लिए सबसे प्रमुख मंदिर विष्णुपद मंदिर है। गया को विष्णु नगरी तथा मोक्ष भूमि भी कहा जाता है। हर साल लाखों लोग अपनी पूर्वजों के मोक्ष के लिए गया धाम में पिंडदान के लिए आते है। हिंदू धार्मिक ग्रंथ के अनुसार, भगवान राम लगभग 12 लाख साल पहले त्रेता युग के दौरान अपने पिता दशरथ के लिए पिंडदान करने के लिए गया जी आए थे। गया में पिंडदान के लिए हर साल मानसून के मौसम (सितंबर-अक्टूबर) के दौरान 18 दिनों के लिए पितृ पक्ष मेला (समारोह) का आयोजन किया जाता है।
गया का इतिहास (Gaya Ka itihas) बौद्ध धर्म के उदय के समय से ही जुड़ा हुआ है। यहां पर बौद्ध धर्म के महात्मा बुद्ध के निर्वाण के स्थान के रूप में भी माना जाता है। गया में महाबोधि मंदिर नामक स्थान पर बुद्ध के निर्वाण के बाद का स्थल स्थित है। गया का ऐतिहासिक महत्व बहुत प्राचीन है। इसे महाबोधि मंदिर के पास स्थित बोधगया के रूप में भी जाना जाता है। जो बौद्ध धर्म के महात्मा बुद्ध के निर्वाण के स्थान के रूप में प्रसिद्ध है। यहां पर भगवान बुद्ध ने महत्वपूर्ण धार्मिक शिक्षाएं दी थीं, जिनका महत्व बौद्ध धर्म में अत्यधिक है।
साथ ही, गया में कई प्राचीन मंदिर, पार्क्स, और पर्यटन स्थल हैं, जो इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल बनाते हैं। इसके अलावा, गया का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी इसे एक अद्वितीय स्थान बनाता है। गया का इतिहास अत्यंत रोमांचक और सांस्कृतिक धरोहरों से भरपूर है। यहां कई प्राचीन मंदिर, गया के पास स्थित आगमकुआ अशोक स्तूप, और सांस्कृतिक स्मारक हैं जो इस शहर को विश्व पर्यटन का केंद्र बनाते हैं। गया के इतिहास में उल्लेखनीय घटनाएं, संस्कृति के विकास, और धर्म के महत्वपूर्ण पर्वों का अद्भुत संग्रह है। इसके अतिरिक्त, गया एक अत्यंत प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है, जहां हिंदू धर्म के अनुसार पितृ तर्पण के रूप में विशेष महत्व है। लोग यहां अपने पितृगणों के आत्मा को श्राद्ध करते हैं, जो उनके शांति और मोक्ष के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
इस प्रकार, गया का इतिहास और संस्कृति अत्यंत रोमांचक है और इसे भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
Gaya Ka itihas – कहा जाता है कि त्रेतायुग में गया नामक एक सुर हुआ करता, तो गया सुर का वध करते समय विष्णु भगवान ने यहां पर अपने पद चिन्ह छोड़े थे। जो आज भी विष्णु पद मंदिर में मौजूद है और उस पद चिन्ह को आसानी से देखा जा सकता है। गया को मुक्ति धाम के रूप में भी देखा जाता है। मुक्तिधाम के रूप में प्रसिद्ध गया तीर्थ स्थल को केवल गया न कहकर आदर पूर्वक गया जी कहते हैं। इसके पीछे भी बहुत बड़ी पौराणिक इतिहास है जिसके बारे आज आपको हम विस्तार से बताएंगे। गया का उल्लेख महाकाव्य वाल्मीकि रामायण में भी देखने को मिलता है। गया मौर्य काल में एक महत्वपूर्ण नगर था, खुदाई के दौरान सम्राट अशोक से संबंधित आदेश पत्र पाया गया है। मध्य काल में बिहार मुगल सम्राटों के अधीन था।
गया शहर अपने प्राचीनतम मंदिरों, स्तूपों, और विभिन्न धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर गौतम बुद्ध के निर्वाण के स्थल पर बने महाबोधि मंदिर के अतिरिक्त, बहुत सारे प्राचीन मंदिर और विशेष स्थल हैं। जो इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक और पर्यटन स्थल बनाते हैं। गया का इतिहास अविस्मरणीय और उत्कृष्ट है। यहां के स्थलों में सम्मिलित हैं साप्तपर्णी गुफा, आगमकुआ अशोक स्तूप, महाकाली गुफा, एवं वैशाली स्थल जो भगवान बुद्ध के धर्म दीप्ति से सम्बंधित हैं। इसके अलावा, गया का इतिहास उसके अत्यंत प्राचीन और प्रसिद्ध विशालकाय बोधगया स्तूप के साथ भी जुड़ा है।
विष्णुपद मंदिर – फल्गु नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित विष्णुपद मंदिर पर्यटकों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण विष्णु जी के पद चिन्हों पर करवाया गया है। यह मंदिर तकरीबन 30 मीटर ऊंचा है और इसमे 8 खंभे हैं इन खंभों पर चांदी के परतें चढ़ाई गई हैं। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान विष्णु जी के 40 सेंटीमीटर लंबे पांव के निशान हैं। इस मन्दिर को 1787 में इंदौर (बुंदेलखंड) की महारानी अहिल्याबाई ने नवनिर्माण करवाया था। पितृपक्ष के अवसर पर विष्णुपद मंदिर में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ जुटती है।
रामानुज मठ (भोरी) –
बाबा सिद्धनाथ, बराबर – बराबर पर्वत पर सिद्धनाथ तथा दशनाम परंपरा के नगाओं के प्रमुख आस्था का केंद्र है सिद्धनाथ मन्दिर है।
जामा मस्जिद – जामा मस्जिद जो दिल्ली में है वो अलग है, ये बोधगया मंदिर के पीछे स्थित हैं ये तक़रीबन 200 साल के आसपास पुरानी है। जिसमे एक साथ 1000 लोग के आसपास नमाज अदा कर सकते हैं।
बिथो शरीफ – मुख्य नगर से तकरीबन 10 किलोमीटर दूर गया पटना मार्ग पर स्थित एक एक पवित्र धार्मिक स्थल है।
बानाबर (बराबर) पहाड़ – गया से तकरीबन 20 किलोमीटर उत्तर की तरफ बेलागंज से 10 किलोमीटर पूर्व मे स्थित है। इसके ऊपर शिवजी का प्रसिद्ध मंदिर है, जहाँ हर वर्ष हजारों श्रद्धालु सावन के महीने में जल चढ़ाने के लिए आते हैं। कहते हैं कि इस मंदिर को बानासुर ने बनवाया था, उसके बाद फिर से सम्राट अशोक ने मरम्मत करवाया था। इसके नीचे सतघरवा नामक गुफा है जो प्राचीन कला का एक नमूना है। इसके पूर्व में फल्गु नदी है, गया से लगभग 25 किलोमीटर पूर्व में टनकुपा प्रखण्ड में ज्वार नामक एक गाँव हैं। जो गया जिले की एक अलग ही विशेषता रखता है। इस मंदिर में शिव जी को जितना भी जल क्यों न चढ़ाए आज तक इसका पता नहीं लग पाया। और इस गाँव में खुदाई के दौरान बहुत प्राचीन ईस्ट धातु कि मूर्तियाँ और चांदी के सिक्के बरामद हुए।
इस गाँव में एक ताड़ का पेड़ जो बहुत ही अतभूत है इस ताड़ पेड़ कि विशेषता ये है कि इस पेड़ में 3 डाल यानि शाखाएं है। जो भगवान शिव जी के त्रिशूल के आकार की है।
सूर्य मंदिर : सूर्य मंदिर गया के प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर 20 किलोमीटर उत्तर कि तरफ और रेलवे स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर स्थित है। भगवान सूर्य को समर्पित ये मंदिर सोन नदी के किनारे स्थित है। दीपवाली के 6 दिन बाद बिहार के लोकप्रिय पर्व छठ के अवसर पर यहाँ पर श्रद्धालुओं कि जबरदस्त भीड़ होती है। इस अवसर पर यहाँ मेला भी लगता है।
ब्राहमयोनी पहाड़ : इस पहाड़ के छोटी पर चढ़ने के लिए 440 चिढ़ियों को पार करना पड़ता है। इसके शिखर पर शिव जी का मंदिर है, यह मंदिर विशाल बरगद पेड़ के नीचे है। जहाँ पिंडदान किया जाता है, इस स्थान का उल्लेख रामायण काल मे भी मिलता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार पहले फाल्गु नदी का उद्गम स्थल यही से था। यानि यहीं से बहती थी लेकिन सीता माता जी की श्राप से अब ये पहाड़ी के नीचे से बहती है। ये पहाड़ी हिन्दुओ के लिए पवित्र तीर्थ स्थानों मे से एक है।
मंगला गौरी : पहाड़ पर स्थित ये मंदिर माँ शक्ति (दुर्गा ) को समर्पित है, ये स्थान 18 महाशक्ति पीठों मे से एक हैं। माना जाता है कि जो भी यहाँ पूजा करते हैं उसकी मन की इच्छा पुरी होती है। इसी मंदिर के परिवेश में माँ काली, गणेश, हनुमान तथा भगवान शिव जी के भी मंदिर भी स्थित है।
बराबर गुफा : ये गुफा गया से 20 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा मे स्थित है, इस गुफा तक पहुँचने के लिए 7 किलोमीटर पैदल और 10 किलोमीटर रिक्शा या टांगा से चलना पड़ता है। ये गुफा बौद्ध धर्म के लिए महत्वपूर्ण है, इस गुफा का निर्माण अशोक सम्राट और उसके पोते दशरथ के द्वारा कि गई है। इस गुफाओं में से 7 गुफ़ाएं भारतीय पुरातत्व विभाग कि देखरेख में है।
संत कारुदास मंदिर (कोरमत्थू) : गया कि एक कहावत प्रसिद्ध है कोरमत्थू जहाँ जमुना किनारे भगवान राम जी गए। जाते समय विश्राम किया था तथा एक शिवलिंग कि स्थापना कि थी। वहीं शिवलिंग जिसकी खोज में सिद्ध बाबा कारुदास हिमालय छोड़ कोरमत्थू के चैत्यवन आ पहुँचे।
माँ तारा मंदिर, केसपा :
माँ मंगला गौरी मंदिर जो माँ दुर्गा को समर्पित है,
बोधगया : बोधगया बौद्ध धर्म कि राजधानी है जिस पीपल वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ था।
रामशीला पहाड़ी : दक्षिण-पूर्व की ओर स्थित रामशिला पहाड़ी को सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भगवान राम जी ने पहाड़ी पर पिंडदान किया था, पहाड़ी का नाम भगवान राम से जुड़ा है।
पुराणों के अनुसार गया में एक गयासुर नामक एक राक्षस हुआ करता था, गयासुर को एक वरदान मिला था। जो उन्हे कड़ी तपस्या के बाद मिला था। वरदान ये था कि जो उसे देखेगा या स्पर्श करेगा उसे यमलोग नहीं जाना पड़ेगा। वो सीधे विष्णु लोक जाएगा। यमलोक के देवता यमराज को जब यह बात पता चली तो वो बहुत चिंता में पड़ गए। यमराज जी ने ब्रह्म, विष्णु और शिव जी से कहा कि गयासुर के कारण अब पापी लोग भी विष्णुलोक जाने लगे हैं। यमराज की ये बाते सुनकर ब्रह्म जी ने गयासुर से कहा कि तुम पवित्र हो तुम बहुत ही पवित्र हो। देवता तुम्हारे ऊपर बैठकर यग करना चाहता हैं। गयासुर के ऊपर सभी देवता गण और गद्दा धारण करके विष्णु जी विराजमन हो गए। गयासुर के ऊपर एक बड़ी सी शीला रखी गई थी, इस शीला को आज परिशिला कहा जाता है।
गयासुर के इस समर्पण से विष्णु जी वरदान दिया था कि इस स्थान पर जहाँ तुम्हारे शरीर पर यग हुआ है। बड़े आदर के साथ गया जी के नाम से जाना जाएगा। श्राद्ध और पिंड करने वालों को पुण्य प्राप्त होगा, और जिसका श्राद्ध हुआ उसको मुक्ति मिल जाएगी। कहा जाता है कि गयासुर का वध करते समय भगवान विष्णु जी का पद चिन्ह यहाँ पर पड़े थे। जो आज विष्णुपद मंदिर में देख सकते हैं।
पुराणों में भी सीता माता जी के द्वारा गया धाम में दशरथ जी के पिंडदान की चर्चा मिलती है। कहते हैं कि यहाँ पर बहने वाली फल्गु नदी का जल सीता माता जी के श्राप के कारण ही सूखा है। और अगर पानी आएगा भी तो ज्यादा दिन तक उसमे नहीं रहेगा।
गया स्टेशन से बोधगया उत्तर दिशा की तरफ तकरीबन 16 से 17 किलोमीटर की दूरी पर है। जो बौद्ध तीर्थ स्थल है जो बौद्ध तीर्थ स्थल के लिए प्रसिद्ध है जहाँ प्रतिदिन सैकड़ों हजारों लोग टुरिस्ट के रूप में आते हैं। यहीं पर बोधि वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। पूरे दुनिया भर के लिए बौद्ध अनुयायियों के लिए एक बहुत बड़ा पवित्र स्थल है। बोधि वृक्ष के नीचे बुद्ध भगवान जी ने 7 दिन तक आत्म ध्यान लगाया था।
गया शहर की मुख्य भाषा मगही और भोजपुरी है, गया स्टेशन में 9 platform है। 3 ऑक्टोबर 1865 में गया जिला की स्थापना हुई थी। वर्ष 1976 में गया जिला के 2 अनुमंडलों को काटकर औरंगाबाद और नवादा जिला बनाया गया था। एक बार फिर से वर्ष 1988 को जहानाबाद अनुमंडल को गया जिला से अलग करके एक अलग जिला जहानाबाद बनाया गया। गया जिला का क्षेत्रफल 4976 वर्ग किलोमीटर है,और 2011 के जनगणना के अनुसार गया की जनसंख्या (आबादी) 43,89363 है। साक्षरता दर देखा जाए तो 66.35% है और अनुपात 932/1000 का है। उत्तर में जहानाबाद, पूर्व में नवादा जिला पश्चिम में औरंगाबाद और दक्षिण कि तरफ हजारीबाग है, इसमे 4 उपमंडल, 23 ब्लॉक 1685 गाँव 1 लोकसभा और 10 विधानसभा निर्वाचित क्षेत्र है। मुगल काल के पतन के बाद गया पर अंग्रेजों ने राज किया।
कुछ समय तक तो यहाँ हवाई मार्ग से आना जाना संभव नहीं था लेकिन आज आप कहीं से भी सड़क, रेल या हवाई मार्ग के माध्यम से आसानी से आ जा सकते हैं। गया मे नवनिर्मित गया अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा सीधा थाईलैंड से जुड़ा हुआ है।
3 ऑक्टोबर 1865 में गया जिला की स्थापना हुई, वर्ष 1976 में गया जिला के 2 अनुमंडलों को काटकर औरंगाबाद और नवादा जिला बनाया गया। एक बार फिर से वर्ष 1988 को जहानाबाद अनुमंडल को गया जिला से अलग करके एक अलग जिला जहानाबाद बनाया गया।
देखा जाए तो गया में बहुत चीज फेमस है, सबसे पहले देखा जाए तो पहले धार्मिक जगहों पर नजर डालते हैं। पहला सबसे धार्मिक स्थान जो प्रसिद्ध है वो है। विष्णुपद मंदिर जो गया का सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और प्राचीन और ऐतिहासिक है। पुराण के अनुसार भगवान विष्णु जी के पद चिन्ह यहाँ मिले जहाँ जिस वजह से यहाँ विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया गया। पितृपक्ष के अवसर पर यहाँ हजारों भक्त और श्रद्धालु पिंडदान करने लिए आते हैं। गया को हिंदू धर्म में पितृतर्पण का सर्वोत्तम स्थान माना गया है। जहां लोग अपने पितृगणों के आत्मा को शांति के लिए श्राद्ध करवाते हैं। फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से मृत व्यक्ति को बैकुंठ की प्राप्ति होती है।
इस शहर में हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म और जैन धर्म का भी बहुत महत्व है। और महाबोधि मंदिर के साथ, वैशाली, नालंदा, राजगृह, एवं कुशीनगर भी महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल हैं। जो इस क्षेत्र की संस्कृति और धर्म के विरासत को प्रकट करता है। साथ ही, गया में बहुत से प्राचीन मंदिर, पार्क्स, और पर्यटन स्थल हैं, जो इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल बनाते हैं।
फल्गु/फाल्गु नदी है जो भारत के गया (बिहार) में बहती है, हिंदुओं और बौद्धों के लिए ये पवित्र नदी है। भगवान विष्णु जी का मंदिर विष्णुपद मंदिर फल्गु नदी (निरंजना नदी) के तट पर स्थित है।
गया में पिंडदान करने के पीछे कई सारे रहस्य है जो मैं आज आपको बताऊँगा। गया के फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से मृत व्यक्ति को बैकुंठ की प्राप्ति होती है, स्वर्गलोक एवं ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। हिन्दू पौराणिक कथा (mythology) के अनुसार काशी, हरिद्वार और गया को मोक्ष का द्वार कहा जाता है। गया के 45 जगहों पर पिंडदान किया जाता है, और 8 जगहों पर श्राद्ध होता है। और कालांतर समय से गया में पितरों का पिंडदान हो रहा है। पुराणों में भी सीता माता जी के द्वारा गया धाम में दशरथ जी के पिंडदान की चर्चा मिलती है। कहते हैं कि यहाँ पर बहने वाली फल्गु नदी का जल सीता माता जी के श्राप के कारण ही सूखा है। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम और सीता मैया ने फल्गु नदी के तट पर अपने पिता दशरथ जी का पिंडदान किया था।
मान्यता है कि उनके इस पिंड के बाद ही राजा दशरथ को स्वर्ग की प्राप्ति हुई। गया में पिंडदान के लिए हर साल मानसून के मौसम (सितंबर-अक्टूबर) के दौरान 18 दिनों के लिए पितृ पक्ष मेला (समारोह) का आयोजन किया जाता है।
गया के 45 जगहों पर पिंडदान किया जाता है, और 8 जगहों पर श्राद्ध होता है। और कालांतर समय से गया में पितरों का पिंडदान हो रहा है।
गया एक बहुत ही पवित्र और धार्मिक स्थल है, हिंदू धर्म में गया का विष्णुपद मंदिर का अहम स्थान प्राप्त है। हिन्दू गया इसलिए जाते हैं क्योंकि यहाँ पितृपक्ष के अवसर पर हजारों भक्त और श्रद्धालु पिंडदान करने लिए आते हैं। गया को हिंदू धर्म में पितृतर्पण का सर्वोत्तम स्थान माना जाता है। जहां लोग अपने पितृगणों के आत्मा को शांति दिलाने के लिए श्राद्ध करते हैं। और ये करने से मनुष्य को पुण्य की प्राप्ति होती है।
तो गया का प्रसिद्ध मंदिर विष्णुपद मंदिर जो फाल्गु नदी के तट पर स्थापित है। जिसे इंदौर की महारानी अहिल्या बाई द्वारा पुननिर्माण करवाया गया। और भी कई सारे मंदिर है जो प्रसिद्ध है, गया में कई प्राचीन मंदिर, पार्क्स, और पर्यटन स्थल हैं, जो इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल बनाते हैं। गया का इतिहास अत्यंत रोमांचक और सांस्कृतिक धरोहरों से भरपूर है। यहां कई प्राचीन मंदिर, गया के पास स्थित आगमकुआ अशोक स्तूप, और सांस्कृतिक स्मारक हैं जो इस शहर को विश्व पर्यटन का केंद्र बनाते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार वनवास के दौरान राम, लक्ष्मण और सीता मैया जी गया में पिता दशरथ का श्राद्ध करने गए थे। श्रीराम जी और लक्ष्मण जी श्राद्ध की सामग्री (सामान ) लाने के लिए चले गए। रामजी और लक्ष्मण जी को आने में थोड़ा बिलम्ब हो गया। तो उधर सीता मैया जी ने दशरथ जी का श्राद्ध कर्म अकेले ही कर दिया। सीता मैया जी ने फल्गु नदी की रेत (बालू) से पिंड बनाया और पिंडदान दिया। इस पिंडदान का साक्षी (गवाह) सीता मैया जी ने वहां मौजूद फल्गु नदी, तुलसी मैया, गौमाता, वटवृक्ष और एक ब्राह्मण को बनाया। जब श्रीराम जी और लक्ष्मण जी सामग्री लेकर लौटे तो सीता मैया जी ने श्राद्ध की सारी बात बताई। लेकिन राम जी को यकीन नहीं हुआ तो उन्होंने समस्त साक्षी गण से पुछवाया।
लेकिन यहाँ पर वटवृक्ष को छोड़कर सभी साक्षी गण झूठ बोल गया की नहीं श्राद्ध कर्म नहीं हुआ है। फल्गु नदी ने भी झूठी गवाही दे दी। जिससे सीता मैया जी ने क्रोधित हो कर फल्गु नदी को श्राप दिया कि वह सदा के लिए सूखी रहेगी। और अगर जल आएगा भी तो ज्यादा दिन तक नहीं ठहर पाएगा।
गया में 9 प्रसिद्ध पर्वत हैं, सबसे ऊँचा और सबसे प्रमुख पर्वत डाबाओ हिल है।
गया जिले में कुल 2,886 गॉव हैं।
हाँ महिलायें गया जा सकती है विष्णुपद मंदिर भी जा सकती है और बोधगया मंदिर भी जा सकती है। साथ में कोई जानकार आदमी का होना बहुत जरूरी है, हाँ अगर साथ बहुत सारी महिलायें है तो कोई दिक्कत नहीं होती है दिन में। विष्णुपद मंदिर के अंदर गर्भगृह में किसी भी तरह का मोबाईल या कैमरा ले जाना सख्त मना है। मोबाईल को आप मंदिर के बगल में जमा कर सकते है है उसके लिए स्पेशल से काउन्टर बना हुआ है।
विष्णु जी
यहाँ एक गयासुर नामक राक्षस हुआ करता था जिसके नाम से रखा गया है।
गया जी
अपने प्राचीनतम मंदिरों, स्तूपों, और विभिन्न धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। यहां गौतम बुद्ध के निर्वाण के स्थल पर बने महाबोधि मंदिर के अतिरिक्त, बहुत सारे प्राचीन मंदिर और विशेष स्थल हैं। जो इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक और पर्यटन स्थल बनाते हैं।
3 ऑक्टोबर 1865 में गया जिला की स्थापना हुई,
फाल्गु नदी
विष्णुपद मंदिर, बोधगया में महाबोधि मंदिर और रबर डैम ( माँ सीता सेतु डैम)
गया के फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से मृत व्यक्ति को बैकुंठ की प्राप्ति होती है,स्वर्गलोक एवं ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। हिन्दू पौराणिक कथा (mythology) के अनुसार काशी, हरिद्वार और गया को मोक्ष का द्वार कहा जाता है।
गया के 45 जगहों पर पिंडदान किया जाता है, और 8 जगहों पर श्राद्ध होता है। पिंडदान करने का सबसे प्रमुख जगह विष्णुपद मंदिर फल्गु नदी का घाट है।