मध्य काल में झारखण्ड का इतिहास | झारखंड का प्राचीन इतिहास क्या है? | झारखंड में मुस्लिम साम्राज्य कैसे स्थापित हुआ?

मुगल काल में झारखंड का क्या नाम था? | झारखंड का पहला राजा कौन था? | झारखंड का अंतिम शासक कौन था? |
रामगढ़ का किला किसने बनवाया था?

आज हम भारत के मध्य काल इतिहास के दौरान झारखंड में हुए सारी गतिविधियों के बारे में विस्तार से जानेंगे। दिल्ली सल्तनत की स्थापना के बीच की अवधि को पूर्व मध्यकाल कहां जाता है। उस दौरान झारखंड के अलग अलग क्षेत्रों में उसका क्या क्या प्रभाव पड़ा उस पर नजर डालेंगे। इस इतिहास काल को हम दो भागों में विभाजित करके पढ़ेंगे।

  • पूर्व मध्य काल
  • उत्तर मध्य काल

पूर्व मध्य काल का इतिहास कब से कब तक था?

तो पूर्व मध्य काल का इतिहास हर्षवर्धन की मृत्यु और दिल्ली सल्तनत की स्थापना के बीच के समय को पूर्व मध्यकाल कहा गया है।

महामाया मंदिर (गुमला) – हापामुनि गांव का महामाया मंदिर इस बात का सबूत है कि झारखण्ड राज्य का संबंध पूर्व मध्यकाल से है। महामाया मदिर का निर्माण नागवंशी शासक गजघंट राय ने सन्न 908 ई. में किया था। सियानाथ देव ने इसमें विष्णु जी की मूर्ति स्थापित कराई थी। इस मंदिर का प्रथम प्रोहित द्विज हरिनाथ नामक एक मराठा एक ब्राह्मण था। यह गजघंट राय का धार्मिक गुरू भी था।

टांगीनाथ का मंदिर (गुमला) – यह मंदिर गुमला में स्थित है, इस मंदिर का निर्माण भी इसी काल में हुआ था।

छिन्नमस्तिका शक्तिपीठ (रामगढ़) – रजरप्पा का अष्ठभूजी छिन्नमस्तिका शक्तिपीठ (रामगढ़) भी पूर्व मध्यकाल को दर्शाता है। छिन्नमस्तिका बौद्ध ब्रजयोगिनी का ही हिन्दू प्रतिरूप (Modal) है।

माँ भद्रकालीईटखोरी (चतरा) – झारखण्ड के ईटखोरी (चतरा) से पाल शासक महेन्द्रपाल के समय के पत्थर पर लिखे शिलालेख मिले हैं। पाल काल में ही ईटखोरी में माँ भद्रकाली की मुर्ति का निर्माण हुआ था।

उत्तर मध्यकाल का इतिहास

बख्तियार खिलजी

सन् 1206 ई. (13वीं शताब्दी) में बख्तियार खिलजी ने झारखण्ड से होकर बंगाल के सेन वंशी के शासक लक्ष्मण सेन की राजधानी नादिया पर आक्रमण किया था। गुलाम वंश के इल्तुतमिश और बलबन के समय झारखण्ड इनके प्रभाव से मुक्त था। क्योंकि उस समय का नागवंशी राजा हरिकर्ण प्रभावशाली और शक्तिशाली था।

अलाउहीन खिलजी

अलाउद्दीन खिलजी ने सन् 1310 ई. में अपने सेनापति छज्जू मलिक को नागवंशी राज्य पर हमला करने के लिए भेजा था। और फतह करने बोल था। अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति छज्जू मलिक ने नागवंशी शासक को कर देने पर मजबूर कर दिया। अलाउद्दीन खिलजी का सेनापति मलिक काफूर दक्षिण भारत पर हमला के दौरान झारखण्ड के रास्ते से गुजरा था। नागवशी राजा बेणु कर्ण मजबूर होकर अलाउद्दन खिलजी के अधीन रहना स्वीकार किया था।

मोहम्पद बिन तुगलक

तुगलक वंश के शासक मोहम्मद बिन तुगलक का सेनापति मलिक बया हजारीबाग के चार्ई-चांपा तक पहुँच चुका था। जबकि संथाली स्रोत के अनुसार यह आक्रमण इब्राहिम अली के नेतृत्व में हुआ था। इस आक्रमण के दौरान इब्राहिम अली द्वारा बीघा के किले पर कब्जा के बाद संथाली लोग अपने सरदार के साथ यहां से भाग निकले। मलिक बया ने हजारीबाग को चाई किला को कब्जा कर फतेह खान दौरा को दिया था। मोहम्मद बिन तुगलक ने छज्जुदीन आजमुल मुल्क को सतगावां का शासकबना दिया। तुगलक के काल में नागवंशी राजा हरिकर्ण था।

फिरोजशाह तुगलक

फिरोजशाह तुगलक ने बंगाल के शासक शम्सीउद्दीन शाह को हराकर हजारीबाग के सतगाँवा को अपने अधीन में लिया था। और इसे अपने बाकी जीते हुए क्षेत्रों की राजधानी बना दिया।

लोदी वंश

लोदी वंश के सुल्तानों के प्रभाव से झारखण्ड लगभग आजाद था। इस काल में छोटानागपुर पर शासन करने वाले नागवंशी राजा प्रतापकर्ण, छत्रकर्ण और विराटकर्ण थे। लोदी वंश के समकालीन उड़ीसा के गजपति वंश का सामना झारखण्ड को करना पड़ा। कपिलेन्द्र गजपति (गजपति वंश का संस्थापक) उस समय दक्षिण-पूर्वी भारत एक शक्तिशाली शासक था। उसने संथाल परगना तथा हजारीबाग को छोड़कर नागवंशी राज्य के बहुत बड़े भू-भाग पर अपना प्रभाव स्थापित कर चुका था। 1494 ई. में सिकंदर लोदी के भय से जौनपुर के शासक हुसैन शाह सर्की ने झारखण्ड के साहेबगंज में छुपे हुए थे शरण मे थे।

आदिल शाह द्वितीय

खान देश का शक्तिशाली शासक आदिलशाह द्वितीय / आदिल खान द्वितीय ने अपने सैनिक दल को झारखण्ड भेजा। अतः उसे झारखण्डी सुल्तान के नाम से भी जाना जाता है।

शेरशाह (चेरो जाति का इतिहास क्या है?)

झारखण्ड में मुस्लिमों के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करने का श्रेय शेरशाह को ही जाता है। शेरशाह ने मुगलों के विरूद्ध संघर्ष के अपने विभिन्न अभियानों में झारखण्ड क्षेत्र का इस्तेमाल किया। 1534 – 37 ई. के अपने बंगाल अभियान के दौरान शेरशाह झारखण्ड से होकर गुजरे थे। इस अभियान के दौरान शेरशाह के पुत्र जलाल खाँ ने तेलियागढ़ी (राजमहल क्षेत्र) की नाकाबंदी कर दी थी। शेरशाह बंगाल अभियान के बाद मुगलों को चकमा देकर राजमहल (झारखण्ड) के रास्ते ही रोहतासगढ़ पहुंचा था और 1538 ई. में रोहतासगढ़ के किले को अपने कब्जे मे लिया। शेरशाह के शासनकाल में झारखण्ड में शाही सिक्कों का प्रचलन बहुत तेजी से हुआ। 1538 ई. में शेरशाह के सेनापति खवास खाँ ने दरिया खाँ के साथ मिलकर चेरो महाराजा महारथ चेरों को हराकर श्याम सुंदर नाम का एक हाथी ले लिया।

सन् 1539 में चौसा के युद्ध में शेरशाह ने मुगल शासक हुमायूं को हराकर रोहतास से वीरभूम तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया। इसके बाद लगभग 35 वर्षों तक राजमहल क्षेत्र पर शेरशाह व उनके वंशजों का अधिकार रहा।

हुमायूँ

मुगल – अफगान संघर्ष (1530-40 ई.) के दौरान एक बार हुमायूँ भुरकुंडा (हजारीबाग) तक आ गए थे।

अकबर

झारखण्ड के विषय में अकबर के शासनकाल को दो भागों में बाँटा जा सकता है, शासनकाल का पूर्वाद्ध (1556-76 ई.) (पहला आधा भाग ) और शासनकाल का उत्तराद्ध (1576-1605 ई.) (दूसरा आधा भाग )। अकबर ने अपने शासनकाल के पूर्वाद्ध में झारखण्ड क्षेत्र में सक्रिय अफगानों को हराकर उस पर विजय प्राप्त किया तथा उसके बाद उत्तरार्द्ध में क्षेत्रीय राजवंशों पर शासन स्थापित किया।

अकबर के शासनकाल का पूर्वार्द्ध – अफगानों पर विजय

अकबर के विरूद्ध अभियान में अफगानों ने झारखण्ड के क्षेत्रों का इस्तेमाल किया। सन् 1575 ई. के टकरोई की लड़ाई के बाद जुनैद कर्रानी ने बिहार जाने के दौरान रामपुर (वर्तमान) रामगढ़ में रूका था। जहाँ इसका पीछा करते हुए मुगलों की सेना भी आ पहुंची थी। यहाँ जुनैद कर्रानी व मुगलों की सेना के बीच हुए रामपुर की लड़ाई में मुगलों की जीत हुई।

अकबर के शासनकाल का उत्तरार्द्ध – क्षेत्रीय राजवंशों पर शासन

छोटानागपुर खास का नागवंश

अकबर नागवंशों की राजधानी कोकरह / खुखरा को अपने अधीन लेना चाहता था। इसका प्रमुख कारण दक्षिण भारत जाने के लिए या युद्ध में इस क्षेत्र का इस्तेमाल में लाने के लिए, साम्राज्य विस्तार, राजनीतिक कारण इस क्षेत्र की आर्थिक समृद्ध (आर्थिक कारण) आदि कई कारण थे।अकबर ने सन् 1585 ई. में शाहबाज खां को झारखण्ड को अपने कब्जा में लेने के लिए भेजा था। इस युद्ध में नागवंशी शासक मधुकरण शाह की हार हुई और मधुकरण शाह ने वार्षिक मालगुजारी देना स्वीकार कर लिया। बाद में मधुकरण शाह ने उड़ीसा के शासक कुतुल खाँ और उसके पुत्र निसार खाँ के विरूद्ध मुगल मनसबदार मान सिंह के अभियान (1590-92 ई.) में मुगलों का साथ दिया।

पलामू का चेरो वंश (चेरो जाति का इतिहास क्या है?)

सन् 1589 ई. में राजा मानसिंह को अकबर ने बिहार-झारखण्ड का सूबेदार बना दिया। मान सिंह ने 1590 ई. में पलामू के चेरो राजा भागवत राय को हराकर मुगलों की अधीन रहना स्वीकार कर लिया था। पलामू में मुगलों की सेना नियुक्त करके भगवत राय को राजा बना छोड़ दिया। 1605 ई. में अकबर के निधन के बाद चेरों ने मुगलों की सेना को मार भगाया और पलामू पर दोबारा से अपनी सत्ता स्थापित कर ली।

सिंहभूम का सिंह वंश

सन् 1592 ई. में उड़ीसा के एक अभियान के दौरान जाते समय मानसिंह सिंहभूम से होकर गुजरा था। उस समय सिंहभूम के पोरहाट में सिंहवंशी राजा रणजीत सिंह का शासन हुआ करता था। मानसिंह ने इस दौरान रणजीत सिंह को मुगलों की अधीन रहने के लिए विवश कर दिया। तथा उसे अपने अंगरक्षक दल में शामिल कर लिया। 1592 ई. में ही मानसिंह ने राजमहल (साहेबगंज) को बंगाल की राजधानी बना दिया। मानसिंह ने परकोटा व महल वाले नगरों का संयुक्त रूप से ‘अकबर नगर’ नामकरण किया।

मानभूम व हजारीबाग के राजवंश

सन् 1590-91 ई. में मानसिंह मिदनापुर के अभियान के दौरान जाते समय मानभूम से गुजरा था। उस दौरान उसने परा तथा तेलकूप्पी को मंदिरों का जीर्णोंद्धार करवाया था। ‘आइन-ए-अकबरी’ के अनुसार हजारीबाग के ‘छै’ और ‘चम्पा’ परगना बिहार सूबा में शामिल थे जिसकी वार्षिक मालगुजारी 15,500 रूपये निर्धारित की गयी थी।

जहाँगीर

झारखण्ड के संदर्भ में जहाँगीर के शासनकाल का संबंध छोटानागपुर खास के नागवंश, पलामू के चरो वंश, विष्णुपुर व पंचेत पर आक्रमण तथा शाहजहाँ (शाहजादा खुर्रम) क राजमहल आगमन से है।

छोटानागपुर खास का नागवंश

जहांगीर की आत्मकथा “तुजुक -ए -जहांगीरी’ में छोटानागपुर क्षेत्र से सोने की प्राप्ति का उल्लेख मिलता है। अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-जहागीरी’ में जहांगीर ने स्थानीय लोगों द्वारा शंख नदी से हीरे प्राप्त करने के तरीकों का भी वर्णन है। जहाँगीर इस क्षेत्र की नदियों से मिलने वाले हीरों के कारण इन पर अपना अधिकार करना चाहता था। जहाँगीर के समय कोकरह का शासक दुर्जनशाल (मधुकरण शाह का उत्तराधिकारी) था। जिसने मुगलों की अधीनता स्वीकार करने तथा मालगुजारी देने से इंकार कर दिया। जहाँगीर ने 1612 ई. में जफर खाँ को बिहार का नया सूबेदार बना दिया और उसे कोकरह क्षेत्र पर अपने कब्जे में लेने का आदेश दिया। परन्तु बीमारी के कारण जफर खाँ की मृत्यु हो गई तथा जहागीर की इच्छा अधूरी रह गयी।

जहाँगीर ने 1615 ई. में इब्राहिम खाँ को बिहार का सूबेदार बनाया तथा उसे कोकरह (झारखण्ड) को अपने कब्जे में लेने को कहा। इस दौरान इब्राहिम खाँ ने इस क्षेत्र पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया तथा हीरों के लिए प्रसिद्ध ‘शंख नदी’ को अपने कब्जे में ले लिया। इब्राहिम खाँं ने नागवंशी राजा दुर्जनशाल को मुगलों की अधीनता स्वीकार करने का आदेश दिया। मना करने पर दुर्जनशाल को 12 वर्षों तक (1615-27) ग्वालियर के किले में बंदी बनाकर रखा। इस अभियान से जुड़े सभी व्यक्तियों को इनाम दिया गया तथा इब्राहिम खाँ को’ फाथ जंग’ की उपधि प्रदान किया और चार हजारी मनसबदार बनाया गया।

1627 ई. में जहॉगीर के दरबार में एक हीरे की नकली असली को लेकर विवाद हो गया। इन हीरों को परखने के लिए दुर्जनशाल को ग्वालियर से शाही दरबार में लाया गया। दूर्जनशाल द्वारा हीरे की पहचान कर लेने के बाद जहांगीर ने खुश होकर दूर्जनशाल को शाह की पदवी देते हुए आजाद कर दिया। तथा उसका राज्य वापस कर दिया। इसके बदले दूर्जनशाल ने मुगल शासक जहाँगीर को 6,000 रूपये वार्षिक कर देना स्वीकार किया।

पलामू का चेरो वंश

1607 ई. में अबुल फजल के पुत्र अफजल खाँ को जहाँगीर ने बिहार का सूबेदार बना दिया। अफजल खाँ ने जहाँगीर के आदेश से पलामू के चेरो राजाओं के विरूद्ध एक सैन्य अभियान चलाया। उसके आक्रमण के समय पलामू का चेरवंशी शासक अनंत राय था। परन्तु आक्रमण के दो सप्ताह के अंदर किसी बीमारी से अफजल खाँ का निधन हो गया तथा यह अभियान असफल हो गया। सन् 1612 में अनंत राय की मृत्यु के बाद सहबल राय पलामू का शासक बना गया। इसने अपने राज्य का विस्तार सड़क-ए- आजम (जी. टी. रोड) पर चौपारण (हजारीबाग) तक कर लिया। सहबल राय बंगाल की ओर जाने वाले मुगल काफिलों को लूट लिया करता था। इससे शाहजहां नाराज हो गया तथा उसने सहबल राय को बंदी बनाकर दिल्ली लाने का आदेश दिया।

जहांगीर ने अपने मनोरंजन के लिए सहबल राय को एक बाघ से लड़वा दिया। इस लड़ाई में सहबल राय की मृत्यु हो गयी। सहबल राय की मृत्यु की खबर मिलते ही चेरों ने सीमावर्ती मुगल क्षेत्रों में उत्पात मचाना शुरू कर दिया, जिसका मुगल अधिकारियों ने दमन कर दिया।

3. विष्णुपुर व पंचेत पर आक्रमण

जहाँगीर के शासन काल में मुगल सेना ने मानभूम के विष्णुपुर पर आक्रमण कर अपने कब्जे में लिया। जहाँगीर द्वारा सन् 1607 ई. में अफजल खाँ को बिहार का सूबेदार बनाया गया। अफजल खॉ ने बंगाल के मुगल सूबेदार इस्लाम खाँ के साथ मिलकर पंचेत के जमींदार वीर हमीर को हरा दिया।

4. खुर्रम (शाहजहाँ) का राजमहल आगमन

खुर्रम जहाँगीर का पुत्र था और दक्षिण भारत का मुगल सूरबेदार था। खुर्रम ने 1622 ई. में मुगल बादशाह जहाँगीर के विरूद्ध विद्रोह कर दिया तथा वर्धमान होते हुए राजमहल आ गया। खुर्रम ने राजमहल क्षेत्र में बंगाल के मुगल सूरबेदार इब्राहिम खॉ को एक लड़ाई में मार गिराया तथा राजमहल को अपने कब्जे में लिया। बाद में मुगल बादशाह से सुलह होने के बाद खुर्रम पुनः दक्षिण भारत लोट गया।

शाहजहाँ

झारखण्ड के संदर्भ में शाहजहाँ के शासनकाल का संबंध छोटानागपुर खास के नाग वश, पलामू के चेरो वंश, सिंहभूम के सिंह वंश तथा अन्य क्षेत्रीय राजवंशों से है।

छोटानागपुर खास का नागवंश

जहाँगीर बंदी से मुक्त होकर दुर्जनशाल 1627 ई. में अपनी राजधानी कोकरह आया तथा 1640 ई. तक यहाँ शासन किया। दर्जनशाल ने सुरक्षा की दृष्टि से अपनी राजधानी कोकरह से दोसा स्थानांतरित कर दिया जो लगभंग 100 वर्ष तक नागवशियों की राजधानी रहा। दुर्जनशाल ने दोइसा में अनेक सुंदर भवनों का निर्माण करवाया, जिस पर मुगल स्थापत्य कला का स्पष्ट प्रभाव था। इन भवनों में नवरतनगढ़ नामक महल सर्वाधिक महत्वपूर्ण भवन था। इस भवन में मुगलों से प्रभावित झरोखा दर्शन की भी व्यवस्था थी। दुर्जनशाल की मृत्यु के बाद 1640 ई. में रघुनाथ शाह 1640 90 ई. तक नागवंशी शासक रहा। रघुनाथ शाह के शासनकाल में खानजादा (मुगल सैन्य अधिकारी) ने आक्रमण कर दिया जिसके परिणामस्वरूप रघुनाथ शाह ने मुगल बादशाह से संधि करके मालगुजारी भत्ता देना स्वीकार कर लिया।

पलामू का चेरो वंश

शाहजहाँ के शासनकाल के समय पलामू का शासक प्रताप राय (सहबल राय का उत्तराधिकारी) था। यह अत्यंत शक्तिशाली और समृद्ध शासक था। 1632 ई. में बिहार के मुगल सुबेदार अब्दुल्ला खाँ ने पलामू क्षेत्र की मालगुजारी को बढ़ाकर 1,36,000 रूपये कर दिया। जिसके कारण प्रताप राय ने लोगों से ज्यादा धन वसूलने का प्रयास करने लगा। मुगलों ने मालगुजारी की राशि निरंतर बढ़ाता रहा जिसके परिणामस्वरूप प्रताप राय ने मालगुजारी की राशि देना ही बंद कर दिया। शाहजहाँ ने शाइस्ता खाँ को बिहार का नया सूबेदार बनाया तथा पलामू पर अधिकार करने का आदेश दिया। शाइस्ता खॉँ ने 1641 में पलामू के चेरो राज्य पर आक्रमण कर दिया। प्रताप राय ने इस आक्रमण के बाद शाइस्ता खाँ से संधि करते हुए 80,000 मालगुजारी की राशि देने व पटना में हाजिरी लगाना स्वीकार किया।

80,000 रूपये प्राप्त करके शाइस्ता खॉ 1642 ई. में पटना लौट गया। 1642 ई. में प्रताप राय ने मुगल शासक को वार्षिक मालगुजारी नहीं दिया।1643 ई. में शाहजहाँ ने इतिकाद खाँ को बिहार का सूबेदार बनाया तथा पलामू के शासक के विरूद्ध कार्रवाई करने का आदेश दिया। इतिकाद खाँ ने जबरदस्त खाँ को पलामू पर आक्रमण करने के लिए भेजा। परंतु मुगलों की सेना को पलामू की और आता देख प्रताप राय ने संधि करने के लिए प्रस्ताव भेजा। इस प्रस्ताव में प्रताप राय ने 1 लाख रूपये व 1 हाथी देने के अतिरिक्त साथ पटना जाना स्वीकार किया। इतिकाद खाँ की सिफारिश पर 1644 ई. में शाहजहाँ ने प्रताप राय को 1,000 मनसब प्रदान किया तथा पलामू को उसी के अधिकार में देते हुए 1 करोड़ रूपये की सालाना मालगुजारी तय कर दी।

पलामू पर आक्रमण कर प्रताप राय को संधि के लिए विवश करने वाले जबरदस्त खाँ को दो हजारी मनसबदार बनाया गया। प्रताप राय की मृत्यु के बाद पलामू पर कुछ समय तक भूपाल राय तथा उसके बाद मेदिनी राय ने शासन किया। पुराना पलामू किला का निर्माण प्रताप राय के शासन काल में हुआ। बाद में मेदिनी राय ने यहाँ पर नया किला का निर्माण करवाया था।

3. सिंहभूम का सिंह वंश

शाहजहाँ के समय सिंहवंशी शासक उड़ीसा के मुगल सूबेदार के जरिए मालगुजारी दिया करते थे।

4. अन्य क्षेत्रीय राजवंश

शाहजहाँ के शासनकाल में पंचेत के राजा वीर नारायण सिंह मुगलों से हारने के बाद अपनी राजधानी ही बदल दी। 1639 ई. में बंगाल की राजधानी राजमहल हुआ करती थी। यहाँ पर मुगलों का एक टकसाल भी हुआ करता था। औरंगजेब के शासनकाल में बंगाल की राजधानी को राजमहल से बदल कर ढाका कर दिया गया था।

शाह शूजा

शाह शूजा शाहजहाँ का पुत्र था, यह बंगाल और उड़ीसा का गवर्नर था। इसने भी राजमहल को अपनी राजधानी बनाया था।

औरंगजेब

झारखण्ड के संदर्भ में औरंगजेब के शासनकाल का संबंध छोटानागपुर खास के नाग वंश, पलामू के चेरो वंश, सिंहभूम के सिंह वंश तथा अन्य क्षेत्रीय राजवंशों से था।

छोटानागपुर खास का नागवंश

नागवश शासक रघुनाथ शाह (1640-90 ई.) और रामशाह (1690-1715 ई.) औरंगजेब के समकालीन (Contemporary) थे। औरंगजेब के शासनकाल में अधिकांश समय तक कोकरा का नागवंशी राजा रघुनाथ शाह था। रघुनाथ शाह का धर्मगुरु ब्रह्मचारि हरिनाथ था। रघुनाथ शाह अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति और दानी स्वभाव के थे। रघुनाथ शाह के शासन काल में लक्ष्मी नारायण तिवारी ने मदन मोहन मंदिर (बोडेया, राँची) का निर्माण करवाया था। रघुनाथ शाह के शासनकाल में हरि ब्रह्यचारी ने रॉँची के चुटिया नामक स्थान पर राम – सीता मंदिर का निर्माण करवाया था।फ्रांसीसी यात्री टैवरनियर के अनुसार रघूनाथ शाह के राज्य पर केवल एक बार ही मुगलों ने आक्रमण किया था। जिससे रघुनाथ शाह को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था।

औरंगजेब के शासनकाल में ही पलामू के चेरोवंशी राजा मेदिनी राय ने रघुनाथ शाह की राजधानी दोइसा पर हमला कर व्यापक तरीके से लूटपाट किया था। इस लूटपाट में मेदिनी राय ने एक विशाल पत्थर का फाटक भी ले आया था। जिससे पलामू् के पुराने किले के समीप एक पहाड़ पर नया किला का निर्माण में विशाल फाटक के रूप में लगवाया। इस फाटक को नागपुर दरवाजा कहा जाता है। रघुनाथ शाह के बाद रामशाह नागवंश का शासक बना जिसका मुगल बादशाह औरंगजेब के साथ सौहा्द्रपूर्ण संबंध था। सन् 1692 ई. में रामशाह ने औरंगजेब को 9705 रूपये मालगुजारी के रूप में दिया। रामशाह ने पलामू, रीवा एवं सिंहभूम राज्यों पर आक्रमण किया। और रीवा व सिंहभूम के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किया।

रामशाह ने अपने पुत्र ऐनी शाह का विवाह रीवा के नरेश पुत्री से किया तथा अपनी दो बहनों का विवाह सिंहभूम के राजा जगन्नाथ सिंह के साथ किया था।

2. पलामू का चेरो वंश

औरंगजेब के शासन के प्रारंभिक काल में पलामू में चेरो के राजा मेदिनी राय का शासन हुआ करता था। मेदिनी राय (1658-74 ई.) चेरो वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। मेदिनी राय मुगलों की अधीनता स्वीकार करने तथा उन्हें कर देने से मना कर दिया था। इसके साथ ही वह सीमावर्ती मुगल राज्यों पर आक्रमण कर लूटपाट भी करता था। औरंगजेब ने अपने सूबेदार दाउद खाँ को 1660 ई. में पलामू पर आक्रमण करने व मेदिनी राय से कर वसूलने के लिए भेजा। 23 अप्रैल, 1660 को दाउद खाँ पटना से चले तथा सबसे पहले दाउद खाँ ने 5 मई, 1660 को कोटी किले तथा उसके बाद 3 जून, 1660 को कुंडा के किले पर हमला के अपने कब्जे में लिया। कुंडा के शासक चुनराय ने पराजित होने के बाद इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। इससे नाराज होकर मेदिनी राय के कहने पर सुरवर राय (चुनराय के भाई) ने चुनराय की हत्या कर दी।

25 अक्टूबर, 1660 को दाउद खां चेरो राज्य की राजधानी की ओर हमला करने के लिए बढ़ा तथा 3 नवंबर 1660 को तरहसी पहुँचा। मेदिनी राय ने अपने मंत्री सूरत सिंह के माध्यम से तरहसी पहुँचे दाउद खाँ को संधि का प्रस्ताव भेजा। दाउद खाँ ने संधि के इस प्रस्ताव की सूचना औरंगजेब को भेजी तथा बादशाह का उत्तर आने तक युद्ध विराम की घोषणा कर दी थी। इसी बीच पलामू के राजा के कुछ लोगों ने मुगलों के एक काफिले को लूट लिया। इससे नाराज होकर दाउद खाँ पलामू पर आक्रमण करने के लिए राजधानी तक आ पहुंचा। मेदिनी राय युद्ध की तैयारी करने लगा। इसी दौरान औरंगजेब ने मेदिनी राय को इस्लाम धर्म स्वीकारने और एक निश्चित दर से कर देने के लिए प्रस्ताव भेजा। इसे स्वीकार करने पर मेदिनी राय को उसके पद पर बने रहने देने का प्रस्ताव था।

लेकिन मेदिनी राय ने औरंगजेगब का यह प्रस्ताव ठुकरा दिया तथा युद्ध की घोषणा कर दी। औरंगजेगब नदी के तट पर स्थित नये किले के समीप मुगलों की सेना तथा मेदिनी राय के बीच युद्ध शुरू हुआ। इसमें मुगलों की सेना भारी पड़ी तथा मेदिनी राय की सेना कमजोर पड़ने लगी। मेदिनी राय ने किले से किमती सामान देकर महिलाओं व बच्चों को जंगल में भेज दिया तथा स्वयं नये किले में ही रूक गया। मुगल सेना द्वारा नये किले पर आक्रमण करने के बाद मेदिनी राय भी जंगल की ओर भाग गया। बाद में मेदिनी राय ने सरगुजा में शरण ली। इस प्रकार पुराने व नये किले सहित चेरो राज्य पर मुगलों ने कब्जा कर लिया। कुछ समय बाद साहसी चेरों ने पुन: देवगन के किले के पास मुगलों से युद्ध किया, परंतु दाउद खॉ के एक सेनापति शेख शफी ने उन्हें हर दिया और किले पर भी कब्जा कर लिया।

दाउद खॉ ने पलामू पर विजय प्राप्त करने के बाद यहाँ प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित करके मनकली खाँं को यहाँ का फौजदार नियुक्त कर दिया तथा स्वयं पटना लौट गए। दाउद खाँ ने पलामू विजय स्मृति में पलामू किला में एक मस्जिद का निर्माण करवाया। दाउद खाँ पटना लौटते समय पलामू किले का ‘सिंह द्वार’ अपने साथ ले गया तथा उसे दाउदनगर की अपनी गढ़ी में लगवाया। इस अभियान की सफलता से खुश होकर मुगल बादशाह औरंगजेब ने दाउद खाँ को पुरस्कार के रूप में 50,000 रूपये की मोतियों की माला दी तथा औरंगाबाद स्थित अमछा मनोस व गोह नामक स्थान उसके अधीन कर दिया। 22 अगस्त, 1666 को पलामू को बिहार के सूबेदार के अधीन करते हुए मनकली खाँ को स्थानांतिरित कर दिया गया।

मनकली खां के जाने के बाद मेदिनी राय सरगुजा से पुन: पलामू लौट आया तथा अपने राज्य पर अधिकार कर लिया। मेदिनी राय ने अपनी बुद्धिमतापूर्ण नीति के द्वारा शीघ्र ही पलामू राज्य की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया। मेदिनी राय को ‘न्यासी राजा’ की संज्ञा दी जाती है तथा मेदिनी राय के शासनकाल को ‘चेरो शासन स्वर्ण युग’ की कहा जाता है। 1674 ई. में मेदिनी राय निधन के बाद पलमु पर क्रमश: रूद्र राय (1674-80 ई.), दिकपाल राय (1680-97 ई. ) एवं साहेब राय (1697-1716 ई.) का शासन रहा।

3. अन्य क्षेत्रीय राजवंश

औरंगजेब के शासनकाल में हजारीबाग क्षेत्र में पाँच प्रमुख राज्य थे – रामगढ़, कुंडा, छै, कंदी एवं खड्गडीहा। रामगढ़ सर्वाधिक महत्वपूर्ण राज्य था। उस समय व इसके बाद (1667-1724 तक) रामगढ़ का राजा दलेल सिंह था। 1670 ई. में दलेल सिंह ने अपनी राजधानी को बादम से बदलकर रामगढ कर दिया। क्योंकि बादम मुस्लिम आक्रमणकारियों के मार्ग के बीच में पड़ता था। दलेल सिंह ने चाय के शासक मगर खान को हराकर उसकी हत्या कर दी। रामगढ़ राज्य के उत्तर-पूर्वी भाग में खडगड़ीहा अवस्थित था तथा यह हमेशा औरंगजेब के आक्रमण से बचा रहा। कुंडा राज्य की स्थापना औरंगजेब के एक अधिकारी राम सिंह ने की थी। 1669 ई. में औरंगजेब ने राम सिंह को मराठों-पिंडारियों से रक्षा के लिए बाबलतार, पिंभुरी, बरवाडीह व नाग दर्रा की जिम्मेदारी दी थी।

केंदि राज्य वर्तमान चतरा जिले में स्थित है जिसके पूर्व में छै राज्य अवस्थित था। औरंगजेब द्वारा बंगाल की राजधानी को राजमहल से ढाका स्थानांतरित करने के बाद 1695-96 में मिदनापुर (बंगाल) के शोभा सिंह व उड़ीसा के अफगान रहीम खों ने राजमहल क्षेत्र में लूटपाट की तथा इस पर कब्जा कर लिया। 1697 ई. में जबरदस्त खाँ ने इसे पुनः मुक्त कराया। मराठा के आक्रमण के परिणामस्वरूप झारखण्ड पर से मुगलों का प्रभाव समाप्त हो गया। झारखण्ड में धनबाद एकमात्र ऐसा क्षेत्र था जो मुस्लिम आक्रमणों से पूर्णत: बचा रहा।

अन्य तथ्य

  • इल्तूतमिश तथा बलबन के समय झारखण्ड में शक्तिशाली नागवंशी राजा हरिकृर्ण का शासन था।
  • पाल शासकों के काल में झारखण्ड में बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा का विस्तार हुआ।
  • उड़ीसा के राजा नरसिंहदेव द्वितीय ने 12वीं सदी में स्वयं को झारखण्ड का राजा घोषित कर दिया।
  • गुलाम वंश के समय झारखण्ड की सीमा में मुस्लिम सेनाओं की छावनियाँ स्थापित की गयी थी।
  • इल्तूतमिश तथा बलबन के शासनकाल में झारखण्ड गुलाम वश के प्रभाव से मुक्त रहा था।
  • कोकरह के नागवंशी शासकों को मुगलकालीन ग्रंथों में ‘जमींदार-ए-खों-अलामा’ (हीरों के खान का मालिक) से संबोधित किया गया है।

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Dipu Sahani

I live in Jharia area of ​​Dhanbad, I have studied till Intermediate only after that due to bad financial condition of home I started working, and today I work and write post together in free time............