मल्लाह, धीवर, केवट, निषादराज जातियों की शुरुआती जीवन,मल्लाह जाति का इतिहास, Nishad caste
Mallah Jati Ka itihas _आज मैं आपको मल्लाह जाति (Mallah Jati Ka itihas) केवट राज जाति के इतिहास के बारे में बताऊँगा। जिसका इतिहास सत्ययुग यानी कि जब धरती पर देवी देवता रहते थे तब से चला आ रहा है। मल्लाह जाति धरती पर सबसे पुरानी जातियों में से एक है, जिसके बारे में शायद ही किसी को पता न हो। मल्लाह जातियों का इतिहास बहुत ही पुराना है जिसका अनुमान लगाना मुश्किल है, क्योंकि मल्लाह जातियों का वर्णन रामायण, महाभारत काल से किया जा रहा है। और मल्लाह जातियों का जिक्र कई ग्रंथो में बड़े आसानी से पढ़ने और देखने को मिल जाता है, आखिर मल्लाह जाति धरती पर कब से वास कर रहे हैं आज इसी विषय पर चर्चा करेंगे। फिर भी देखा जाए तो मल्लाह जाति धरती पर सत्ययुग से रह रहा है।
क्योंकि जितने भी पुराने धार्मिक ग्रंथ है उसमे मल्लाह जाति का ज़िक्र कहीं ना कहीं होता रहा है। लाखों साल पहले दुनिया के इतिहास में केवटराज जी (मल्लाह) ने भगवान श्री राम जी को वनवास काल के दौरान अपनी नईयां से नदी पार कराई थी। और सतयुग से लेकर आज तक अभी भी बहुत से मल्लाहों का जीवनयापन नाव चला कर और मछली मार कर ही हो रहा हैं। मैंने खुद आज के वक्त में बहुत से मल्लाहों को नाव चलाते हुए और छोटे-मोटे नदी तालाबो में मछली मार कर जीवन व्यतीत करते हुए देखा है।
मल्लाह जाति का उपनाम : निषाद की उप जाति क्या है? निषाद का दूसरा नाम क्या है? mallah caste category
मल्लाह केवटराज, निषादराज, धीवर, बिंद, चौधरी, साहनी, कश्यप, महागीर, मांझी, मछुआरा, आदि कई और अन्य जातियां मल्लाहों में ही गिनती की जाती है, सभी एक ही जाति से संबंध रखते हैं, बस सब का गोत्र अलग अलग है। इस धरती पर और भी बहुत से गोत्र हैं, शुरू में गोत्रों की संख्या 5 से 6 थी।
मल्लाह जाति का सबसे पहले ज़िक्र कहाँ हुआ?
Mallah Jati Ka itihas_ मल्लाहों और केवटराज का जिक्र खासकर कर के देखा जाए तो महाभारत मे सबसे ज्यादा देखने को मिलेगा। फिर रामायण में तो राम जी लक्ष्मण जी और सीता जी को केवट ने ही गंगा पार कराया था, इसके उपर कई धारावाहिक भी बनाई गई है जिसे आप आजकल टी.वी मे भी देख सकते हैं। वनवास के दौरान जब राम जी लक्ष्मण जी और सीता जी गंगा जी के तट पर पहुंचते हैं तो उनके साथ अयोध्या से महाराज दशरथ के आठ कूटनीतिक मंत्रियों में से एक सुमन्त्र थे। जो अयोध्या से राम जी लक्ष्मण जी और सीता जी को रथ से गंगा तट तक छोड़ने के लिए आए थे। गंगा नदी को पार जाने के लिये राम जी अपने भक्त केवट से नाव मांगते हैं, लेकिन इसके लिए केवट तैयार नहीं होते है।
केवट अपना संदेह (संशय) प्रकट करते हुए कहते हैं कि कहीं आपकी चरणरज का स्पर्श पाकर मेरी नाव भी नारी ना बन जाए। जिस तरह पत्थर की शिला अहिल्या नारी बन गई थी। इसलिए नाव में बैठने से पूर्व केवट बडे़ भाव से राम, लक्ष्मण और सीता के चरण धोते हैं। तब भगवान राम जी अपने हाथ केवट के सिर पर रखकर उन्हें आशीष देते हैं। गंगा पार उतरने के बाद राम जब केवट को उसकी मजदूरी देने की चेष्ठा करते हैं तो केवट मजदूरी लेने से इंकार कर देते हैं और कहते हैं कि हम एक ही जाति के हैं। मल्लाह कभी मल्लाहों से मजदूरी नहीं लेते, वह कहते हैं कि आज आप मेरे घाट पर आए हैं तो मैंने आपको पार उतारा है और जब मैं आपके घाट आऊं तो आप मुझे भवसागर से पार लगा देना।
भक्त केवट के यह विचार सुनकर भगवान राम जी हर्षित हुए और केवट राज को आशीर्वाद देते हुए आगे बढ जाते हैं।
किस किस नाम से मल्लाह जाति के लोग धरती पर रहते हैं?
Mallah Jati Ka itihas_आज जितने भी मल्लाह जाति के लोग है जो आज धरती पर अलग अलग सरनेम यानी कि अपना उपनाम बदल कर रह रहे हैं। जिसका सम्बंध एक ही जाति से है, जैसे कि पहला तो मल्लाह है ही एवं अन्य उपनाम जैसे केवट राज, निषाद राज, बिंद, धीवर, साहनी, चौधरी, आदि नामों से भी जाना जाता है। ख़ासकर कर के उत्तर प्रदेश मे देखा जाए तो वहाँ के लोग निषाद उपनाम का उपयोग ज्यादा करते हैं बिहार मे देखा जाए तो साहनी, निषाद दोनों उपनामों का प्रयोग करते हैं, पंजाब चंडीगढ़, हरियाणा, लुधियाना राजस्थान आदि जगहों पर चौधरी उपनामों से रहते हैं। बात करे झारखंड की तो यहां के अधिकार मल्लाह जाति के लोग निषाद, साहनी, धीवर, चौधरी आदि उपनामों से रहते हैं।
सभी लोग एक ही जाति के लोग है बस जिस जगहे पर आज कल लोग रह रहे हैं वहाँ के प्रचलन और अपने शुरू से चले आ रहे वंश के हिसाब से चल रहा है।
मल्लाह जातियों के शुरुआती जीवनयापन
Mallah Jati Ka itihas_मल्लाह जाति शुरू शुरू में नदियों के किनारे खाली पड़ी जमीन में तरबुज, ककड़ी, कद्दू आदि की खेती करते थे। और वहीं कुछ मल्लाह जाति के लोग नदी में मछली पकड़ने का भी काम करता था। और उसी से उसके परिवार का जीवनयापन चलता था, और सभी के शादियों मे यानी जब कहीं भी अगल बगल में किसी के यहाँ उस वक़्त लड़की की शादी होती थी तब मल्लाह ही उस डोली को उठाने का काम करता था। और उसे दूल्हे के घर तक पहुंचाता था, डोली उठाने के इस कार्य में मल्लाह करीब 700 से 800 साल लगे रहे। मल्लाहों ने ना जाने कितने ही डोली उठा के दूल्हे के घर तक पहुंचाया लेकिन इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी मल्लाह (कहार) के द्वारा डॉली लुटा गया हो। मल्लाह डोली उठाना जैसे काम कर कर अपना गुजारा करते थे।
और राजा कि सेना को कभी कभी किसी काम या युद्ध के समय उसको नदी पार कराता था। कभी कभी किसी व्यापारी का माल लाना ले जाना मल्लाहों का ही काम था। उसके बाद मुगलों के राज में पीपत के प्रथम युद्ध के दौरान तालिबान से बहादुर शाह अब्दाली की सेना यमुना नदी पार नहीं कर पा रही थी रूक गयी थी। अब्दाली द्वारा खानी बश्ती (वर्तमान रामडा-तहसील) कराना जनपद शामली (मुजफ्फरनगरउत्तर प्रदेश) मल्लाह बस्ती में मल्लाह तैराकों की मदद से सेना के लिए रास्ता बनाने का काम करती थी। युद्घ जीतने के पाश्चात अब्दाली ने मल्लाहों के लिए रेत-खनन, नाव घाट, मछली पकड़ने, जमीन कर मुक्त कर फ्री खेती कर घाट लगाना आरक्षित कर दिया जो कि अब्दाली के द्वारा लिखित में दिया गया था। अंग्रजों के शासन काल के दौरान मल्लाह जाति की मांग बढी।
अंग्रेजों द्वारा पानी के जहाजों का कार्य लगभग मल्लाहों के हाथ में था। कितने मल्लाह तो बड़े बड़े post पे थे, करीब 150 वर्ष पूर्व उ. प्र. में मवी हैदरपुर गांव बुन्डा मल्लाहों की बहादुरी के किस्से दूर दूर तक मशहूर थे। बुन्डा मल्लाह अपने दौर के बतरीन निशानेबाज थे जिस कारण अंग्रेज सरकार उन्हें मजिस्ट्रेट की पदवी दी थी। 12 ग्राम इनाम में दे दिया था इस दौर में भी मल्लाह जाति की बहुत इज्जत थी।
देश की आजादी में मल्लाहों का योगदान
देश की आजादी में मल्लाहों का भी बड़ा हाथ रहा है, उत्तर प्रदेश मुजफ्फरनगर नगर के ग्राम रामडा पूर्व में मल्लाह बश्ती के बरकत मल्लाह आदि अन्य ने पंडित जवार लाल नहरू, लाल बहादुर शास्त्री को अपनी नाव से नदियों कराया। to be continue
निषाद को सभी जाति का पिता क्यों कहा जाता है ?
Mallah Jati Ka itihas_ सभी जातियों का पिता निषाद समुदाय को ही कहा जाता क्योंकि निषादों का हर युग मे वर्णन मिलता है। निषादों ने जल, जंगल, जमीन पर राज किया वो था निषाद। हड़प्पा को बसाने वाले भी लोग निषाद ही थे , इसके साथ साथ निषाद में से अनेक धर्म के जाति निकल कर आए। जिसमे करीब 578 जातियाँ सम्मिलित है और इसमें भी गौंड उपजाति की 705 शाखाएं है। रामायण महाभारत जैसे ग्रंथो में निषादों का जिक्र बड़े आसानी से मिल जाता हैम, इसीलिए निषाद को सभी जाति का पिता कहा जाता है।
I live in Jharia area of Dhanbad, I have studied till Intermediate only after that due to bad financial condition of home I started working, and today I work and write post together in free time............