ब्रिटिश काल में झारखण्ड में रेलवे का विकास तथा अन्य परिवहन के कौन-कौन से साधन थे?

झारखण्ड में रेलवे का इतिहास –
एक समय ऐसा था कि झारखण्ड में कहीं भी आने जाने के लिए किसी भी तरह का साधन नहीं थी। हर तरफ सिर्फ कच्चे रास्ते थे, फिर फिर धीरे जैसे जैसे समय बदला वैसे वैसे यातायात के नए नए साधन विकसित हुए। सबसे पहले तो लोग पैदल ही सफर करते थे जैसे 2019 और 2020 में Corona को लेकर यातायात साधन बंद कर दी गई थी। सड़क पर गाड़ियों का नामोनिशान नहीं था कुछ उसी प्रकार लोग एक समय दूर दूर तक का सफर पैदल तय कर रहे थे। फिर धीरे धीरे गाय, बैल, गधा, घोड़ा हाथी आदि जैसे जानवरों को आने जाने के लिए इस्तेमाल होने लगा।
फिर उसके बाद समय बदला लोग बदले, लोगों के बुद्धी विकसित हुई और धीरे धीरे गाड़ियों का अविष्कार हुआ। समय के साथ रेल्वे का अविष्कार हुआ जो सबसे बड़े अविष्कारों में से एक था क्योंकि ये सस्ता भी था इसमे एक साथ बहुत से लोग सफर कर सकते थे, जो आगे चलकर Rail हर किसी की लिये बहुत उपयोगी साबित हुई। जलमार्ग और का इस्तेमाल ज्यादा नहीं होता था, जिससे लोगों को आने जाने में बहुत दिक्कतें आती थी। लोगों को कहीं दूर जाने में महीने 2 महीने सिर्फ आने जाने में समय लग जाता था, यात्रा करने के दिन महीने खपत हो जाते थे।
मार्गो को यातायात के रूप में व्यवस्थित करने का काम ब्रिटिश शासनकाल में ही शुरू हुआ था। अंग्रेजो ने अच्छे से सर्वेक्षण करवाया उसके बाद आवश्यकतानुसार मार्गों को विस्तारीकरण का काम नियोजित ढंग से शुरू किया गया।
सबसे पहले झारखण्ड में सड़कों का निर्माण कब हुआ?
झारखंड में सबसे पहले आंशिक रूप से सड़क का निर्माण शेरशाह सूरी के शासनकाल में हुआ। जब ग्रैंड ट्रंक सड़क का निर्माण किया गया तो उस रोड का कुछ हिस्सा झारखंड राज्य से होकर भी गुजरता था। झारखंड में खनिजों की मात्रा अधिक होने की वजह से यहां भी यातायात के साधनों की आवश्यकता महसूस की जाने लगी थी। सन् 1857 ईसवी के बाद सड़क निर्माण की प्रक्रिया में तेजी आई। रांची, लोहरदगा, चतरा, रांची, नेतरहाट, चंदवा, डाल्टनगंज सड़कों का निर्माण सन् 1910 ईस्वी तक पूरा हो गया था।
झारखण्ड में रेल्वे का का आगमन और विस्तारीकरण
वहीं ग़र झारखण्ड में Rail का विकास देखा जाए तो ब्रिटिश शासन काल के दौरान जितना हो सकता था उतना रेलमार्ग की लाइनें बिछाई गई थी। जो कोयला खानों से कोयला को लाने और ले जाने मे सबसे सस्ता और बहुत ही उपयोगी साबित हुआ। यही कारण था कि सबसे पहले धनबाद के कोयला क्षेत्रों के समीप Railway की पटरियों को बिछायी गई जिससे कोयला व्यवसाय में कोयला को निर्यात करने में आसानी हुई, जिससे लाभ में बढ़ोतरी भी हुई। सन् 1902 ईस्वी में वारूण से राजहरा तक रेलमार्ग की लाइनें बिछायी गई। ताकि बाहर से आवश्यकतानुसार जरूरी अनाज का आयात करवा सके।

सन् 1907 ईस्वी में रांची पुरुलिया रेलमार्ग का उद्घाटन बंगाल के गवर्नर सर एंड्रयू फ्रेजर ने किया था। तो इस तरह झारखण्ड का पश्चिम बंगाल से रेल संपर्क कर rail के माध्यम से जोड़ा गया। रांची लोहरदगा रेल मार्ग का निर्माण सन् 1911 ईस्वी में किया गया था, उस वक्त झारखंड में मात्र 4 ही बड़े स्टेशन थे धनबाद, बराकर, गोमो और हजारीबाग रोड शामिल थे। मधुपुर से गिरिडीह तक लंबी रेल लाइन बिछाई गई थी। कई रेल लाइनें है झारखंड राज्य में प्रवेश कर दूसरे राज्य को जाती है। हावड़ा से मुंबई तक रेल मार्ग झारखंड सिंहभूम में स्थित चाकुलिया स्टेशन के समीप प्रवेश करती थी तथा सरायकेला से होकर राज्य से बाहर चली जाती थी।

धीरे धीरे रेल यातायात का विकास होता गया, रेल यातायात के प्रमुख साधन के रूप में लोगों के दिनचर्या का अंग बन गई थी। इसी से सामानों का आयात निर्यात करने में सुविधा होने लगी, वर्तमान में झारखंड की राजधानी रांची देश के प्रमुख स्थानों से जोड़ दिया गया इस तरह रेल यातायात का उत्पत्ति ब्रिटिश शासन में हुआ समय के साथ रेल में कई बदलाव हुए और आज के वक़्त में आने जाने का प्रमुख साधन बन चुका है जो बेहद ही सस्ता और सुगम है। तो कुछ तरह रहा झारखण्ड में रेलवे का विस्तारऔर आज के वक्त में रेलवे को थोड़ा बस डिजिटलीकरण किया गया है।
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