मेजर ध्यानचंद (Major Dhyanchand) जी को भला कौन नही जानता! इनके बारे में लोग अच्छे से वाकिफ हैं और सब को पता है कि ये पुरे विश्व के महान हॉकी खिलाड़ी हैं, जिन्हे हॉकी का जादूगर भी कहा जाता है। लेकीन लोगों को इनके संघर्ष के बारे में पता नहीं होगा, हां कुछ लोगों को जरूर पता होगी। तो आज हम मेजर ध्यानचंद जी के जीवनी के बारे में पुरे विस्तार से वर्णन करेंगे।
पूरा नाम
ध्यानचंद सिंह (Dhyanchand Singh)
निक नेम
हॉकी का जादूगर, द विजर्ड, हॉकी विजर्ड
जन्म
29 अगस्त सन् 1905
जन्म स्थान
इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश)
जाति
राजपूत
पिता का नाम
समेश्वर दत्त सिंह (आर्मी में)
माता का नाम
शारदा सिंह
ध्यानचंद का भाई
दो – मूल सिंह( हवलदार), रूप सिंह (हॉकी खिलाड़ी)
ध्यानचंद की पत्नी का नाम
जानकी देवी
ध्यानचंद के बेटे
6- सोहन सिंह, बृजमोहन सिंह, अशोक सिंह, उमेश सिंह , देवेन्द्र सिंह, और बीरेंद्र सिंह
बेटी
एक भी नहीं थी
डैब्यू
न्यूजीलैंड (1926)
कोच
बाला तिवारी, पंकज गुप्ता
निधन
3 दिसम्बर 1979 (दिल्ली)
पहला ओलंपिक 1928 की घटना
सन् 1928 जगह नीदरलैंड पहला ओलंपिक भारतीय हॉकी टीम पहली बार हिस्सा लेने जा रही थी। और उस हॉकी टीम में मेजर ध्यानचंद (Major Dhyanchand) थे। उस वक्त देश के हालात बहुत ही अलग थे, चारों तरफ बस गुलामी थी। छोटी-छोटी बातों पर अत्याचार हो रहे थे, चारों तरफ हीन भावना थी, अंग्रेज मानते थे कि हिंदुस्तानी उनके सामने खड़े नहीं हो सकते हैं। जब भारतीय हॉकी टीम निकली तो वहां ओलंपिक में मात्र 3 टीमें ही थी। यह देखकर ध्यानचंद को बहुत दुख हुआ कि ओलंपिक में इतनी कम टीमें खेलने के लिए आई है।
लेकिन 26 मई 1928 स्टेडियम में तकरीबन 20000 दर्शक थे, और यह 20000 लोग सिर्फ मेजर ध्यानचंद (Major Dhyanchand) जी को देखने आए थे। उनकी ख्याति पूरी दुनिया में फैल चुकी थी, 3–0 से विपक्षी टीम को ध्यानचंद की टीम ने मात दी। 2 गोल मेजर ध्यानचंद ने मारे, उसे पूरे टूर्नामेंट में ध्यानचंद ने 14 गोल मारे। और उस वक्त हिंदुस्तान को ऐसा लगा कि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम जीत लिया हो। जब अंग्रेज भारतीय हॉकी टीम से गले मिल रही थी उनकी तारीफ कर रही थी, उनको सलाम कर रहे थे उनको बराबरी का दर्जा दे रहे थे।
और 20000 दर्शक क्यों आए, क्योंकि ध्यानचंद की हॉकी स्टिक को इतिहास में पहली बार छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ कर देखा गया, कि कहीं उसमें कोई चुंबक तो नहीं है। आखिर खिलाड़ी इतनी देर तक अपने हॉकी स्टिक में गेंद को कैसे चिपका कर रख सकता है। और उनके दिमाग में कॉमनसेंस भी होना चाहिए कि उसके लिए गेंद भी लोहे की होनी चाहिए। और जब मैच खेल कर वापस आए तो उनके नाम के आगे एक नया टाइटल जुड़ चुका था वह था द मैजिशियन ऑफ हॉकी मेजर ध्यानचंद।
राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम क्यों बदला गया
हाल में ही राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद पुरस्कार रखा गया। इस बदलाव को लेकर बहुत से लोगों को आपत्ति भी हुई। लेकिन जो हुआ वह सही हुआ क्योंकि राजीव गांधी कोई महान खिलाड़ी नहीं थे उन्होंने किसी भी तरह का खेल में योगदान नहीं था। जिसकी वजह से उनका किसी खेल से नाम जुड़ा होना चाहिए। मेजर ध्यानचंद इतने महान खिलाड़ी थे कि खेल के जीतने भी अवार्ड्स हैं उनके नाम से होना चाहिए, वो भी उनके लिए कम ही होंगे।
पद्म विभूषण मेजर ध्यानचंद हिंदुस्तान के इतिहास के सबसे बड़े खिलाड़ियों में से एक हैं। मेजर ध्यानचंद (Major dhyanchand) ने एक नहीं दो नहीं तीन ओलंपिक गोल्ड मेडल भारत को दिलवाएं। और जिस वजह से 29 अगस्त को पूरा देश राष्ट्रीय खेल दिवस (National Sports day) के रूप में मानते है। 400 गोल मारने वाले इस महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद जी के नाम डाक टिकट जारी किया गया। इनके नाम से दिल्ली का कैपिटल नेशनल स्टेडियम मेजर ध्यान चंद स्टेडियम बना।
ऐसा जवाब दिया हिटलर भी हिल गया, कैसे ओलंपिक में देश का नाम ऊंचा किया। ध्यानचंद हिटलर ने क्या की हिटलर भी भौचक्क रह गया। आखिर ध्यानचंद ओलंपिक में ऐसा क्या किया कि पूरी दुनिया इनकी गुण गा रही है। इतनी गरीबी में पलने वाले बढ़ने वाले इतनी प्रतिभाशाली खिलाड़ी कैसे बने।
मेजर ध्यानचंद का जन्म व परिवार (Major Dhyanchand Birth & Family)
ध्यानचंद का जन्म इलाहबाद (उत्तरप्रदेश) में 29 अगस्त सन् 1905 को हुआ। ध्यानचंद राजपूत परिवार से ताल्लुक रखते हैं। ध्यानचंद के पिता का नाम समेश्वर सिंह था, जो ब्रिटिश शासन में इंडियन आर्मी में एक सूबेदार के रूप में थे। और हॉकी भी खेला करते थे। ध्यानचंद 2 भाई थे, मूल सिंह एवं रूप सिंह. रूप सिंह भी ध्यानचंद की तरह हॉकी खेलते थे, जो एक अच्छे खिलाड़ी के तौर पर जाने जाते थे।
मेजर ध्यानचंद का कैरियर (Major Dhyanchand’s career)
क्यों हर रात ध्यानचंद करते थे चांद का इंतजार! ध्यानचंद (Major Dhyanchand)के पास पैसा नहीं था, सुविधा नहीं थी बैंकिंग नहीं थी एजुकेशन भी नहीं था, पिताजी इनके आर्मी में थे जिसकी वजह से इनका इधर-उधर हमेशा ट्रांसफर होता रहता था। मेजर ध्यान चंद्र मात्र छटवीं कक्षा तक ही स्कूल जा सके, आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए। और बचपन में उनको किसी भी तरह का खेल में इंटरेस्ट नहीं था। हॉकी तो एकदम नहीं खेलते थे। और न ही कम उम्र से हाॅकी खेला करते थे। उन्हे रेसलिंग पसंद थी, 16 साल की उम्र में मेजर ध्यानचंद ने परिवार की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए आर्मी में जाना पड़ा।
यह सब को पता है कि आर्मी में आर्मी शेड्यूल कितना सख्त होता है। लेकिन बीच-बीच में ध्यानचंद कुछ समय निकालकर हॉकी खेला करते थे। हॉकी की शुरुआत इन्होंने अपने दोस्तों के साथ की थी, तब ध्यानचंद पेड़ के डंडों को काटकर हॉकी स्टिक बनाकर खेलते थे। और पुराने कपड़ों से बाल बनाया करते थे, 14-15 साल की उम्र में ध्यानचंद अपने पिता के साथ हॉकी का मैच देखने गया था। उस मैच में एक हॉकी टीम हार रही थी, ध्यानचंद ने अपने पिताजी से कहा कि मैं हारने वाले तुम की तरफ से खेलना चाहता हूँ और मैच आर्मी टीम के बीच हो रही थी, पिता ने हॉकी मैच खेलने की इजाजत दे दी।
मेजर ध्यानचंद ने हारती टीम की तरफ से खेली और अकेले उस मैच 4 गोल ठोक डाले, उसका खेल देखकर आर्मी ऑफिसर बहुत खुश हुए और ध्यानचंद को आर्मी में शामिल होने को कहा। सन् 1922 में मात्र 16 साल कि उम्र में ध्यानचंद पंजाब के रेजीमेंट में एक सिपाही का पद मिला। आर्मी में आने के बाद ध्यानचंद अब हॉकी और भी अच्छे से खेलने लगा, उसी आर्मी में उनसे बड़े पद के सिपाही थे, जिनका नाम बाला तिवारी जो उनके कोच बने। और ध्यानचंद को और भी अच्छे से हॉकी सिखाया।
मेजर ध्यान चंद रात को आसमान की तरफ टक – टकी लगाकर देखते रहते थे। क्यों देखते थे पता है कि चांद कब आएगा और चांद की रोशनी धरती पर कब आएगी। क्योंकि उस जमाने में उतनी लाइट नहीं हुआ करती थी और ना कोई और व्यवस्था थी। चांद का इंतजार करना पड़ता था और जब चांद की रोशनी पूरी तरह धरती पर आ जाती थी तब ध्यानचंद (Major Dhyanchand) की हॉकी अपना रंग दिखाती थी। और पता है उसके दोस्तों ने उनका नाम क्या रख दिया चांद। उनको हर कोई चंद नाम से पुकारता था। और जब आप जी जान से मेहनत करते हैं तो भगवान खुद आपके लिए गुरु भेज देता है।
और वहां पर मेजर ध्यानचंद को पहले गुरु मिले बाला तिवारी जी जिन्होंने इनको इनकरेज करना शुरू किया। यह जंग अभी यहां खत्म नहीं हुई, लोग सीमाओं के जंग लड़ते हैं ध्यानचंद की जंग अपने आभावों से थी अपनी तकलीफों से थी।
मेजर ध्यानचंद के पास कपड़े नहीं थे तो न्यूजीलैंड में क्या किया?
ध्यानचंद इंडियन आर्मी में एक सिपाही था रैंक भी बहुत ही छोटा था। ऑफिसर से कह नहीं पाते थे कि मुझे हॉकी टूर्नामेंट खेलने जाना है। मेजर ध्यानचंद (Major Dhyanchand) सोचते रहते थे कि उनको मौका मिलेगा कि नहीं। और एक दिन कमांडिंग ऑफिसर ने मेजर ध्यानचंद को बुला कर कहा मेजर ध्यानचंद न्यूजीलैंड जाना है, तैयारी कर लो। मेजर ध्यानचंद का खुशी का ठिकाना नहीं रहा और दौड़ते दौड़ते अपने सिपाही दोस्तों के पास गया और उनसे कहा कि तुझे पता है कि मैं कहां जा रहा हूं न्यूजीलैंड।
और अचानक एक ने धीरे से कहा वो तो ठीक है लेकिन कपड़े वपड़े तो है तेरे पास। अब मेजर ध्यानचंद का कपड़ों को लेकर टेंशन शुरू। क्योंकि उस वक्त आर्मी में सैलरी उतनी नहीं हुआ करती थी और ध्यानचंद की भी सैलरी बहुत ही कम थी। खाने पीने का जुगाड़ हो जाए वही बहुत बड़ी बात है। कपड़े की तो बहुत दूर की बात है, खुशी तो थी लेकिन दूसरी तरफ बहुत सारे सवाल। और अब उन्होंने तय किया कि वह मिलिट्री आउटफिट में ही जाएगा, पूरे इंग्लैंड में वह मिलिट्री आउटफिट में घूमते रहे। और लोग आश्चर्य से उन्हे देखते रहे और ध्यानचंद (Major Dhyanchand) अपने मग्न में घूमते रहे।
हॉकी टूर्नामैच
21–18 से न्यूजीलैंड का टूर्नामेंट जीतकर आए और आते ही साथ उनका प्रमोशन हो गया Lance Naik नायक बना दिया गया 1947 से पहले। ध्यानचंद (Major Dhyanchand) को यहां पर थोड़ी जान में जान आई की अगली बार कम से कम दो जोड़ी कपड़े तो ले पाऊंगा।
पैसों के लिए खेले हर पोर्ट पर मैच
2nd ओलंपिक गोल्ड मेडल
दूसरा ओलंपिक गोल्ड मेडल के दौरान पूरे देश का माहौल बहुत ही खराब था। यह वह समय था जब वर्ल्ड वार हो रहा था। भारतीय हॉकी टीम यह ओलंपिक खेलने जाना चाहती थी। पैसे नहीं थे, आईएचएफ (IHF- इंडियन हॉकी फेडरेशन) ने सबसे पैसे मांगे रॉयल फैमिली के पास गए गवर्नर के पास गए दूसरे इंडस्ट्रीज के पास गए लोन लिया। सबके पास गए लेकिन पैसे जमा नहीं हुआ। यहां तक कि हिंदुस्तान के अलग-अलग बड़े शहरों में एग्जीबिशन मैच खेले। और उनकी टिकट से पैसा इकट्ठा किया जा रहा था किसी तरह ओलंपिक तक पहुंचा जाए। और जब शिप के लिए पैसे जमा हुए तो शिप से निकल पड़े।
यू.स. को जब 24–1 से पराजित
लेकिन अभी समस्या खत्म नहीं हुई थी तनाव अभी भी था यूएस में ओलंपिक था। जाकर क्या करेंगे वहां के खर्च कैसे निकालेंगे। रास्ते में पोर्ट पर जहां-जहां शिप रुकती थी, वहां वहां उनकी हॉकी की टीम उतरती थी, मैच खेलती थी और मैचों से पैसे इकट्ठा करती थी। ताकि यू.स. पहुंचकर यू.स. का खर्चा निकल सके। और उसके बाद किसी तरह यू.स. पहुंच गये, और जब u.s. पहुंचे तो वहां पर एक नई चुनौती आई। जहां पर ज्यादा टीमें नहीं आई थी दुनिया भर से मात्र 3 टीमें ही खेल रही थी। यू.स. जापान और इंडिया, यूएस को 24–1 से पराजित कर दिया।
आप सोच सकते हैं 24 गोल जिसमें से 8 गोल सिर्फ मेजर ध्यानचंद (Major Dhyanchand) ने मारी पूरी दुनिया हिल गई थी। 10 गोल रूप सिंह, गुरमीत सिंह 5 गोल किए। लगातार मैचों में जीत दर्ज करने के बाद अचानक से डोमेस्टिक हॉकी मैच में दिल्ली की टीम ने इंडियन टीम को 4-1 से हरा दिया। और उस वक्त ध्यानचंद कप्तान थे और ध्यानचंद (Major Dhyanchand) अंदर ही अंदर सोच रहे थे कि मेरी कप्तानी में शायद मेरी टीम हार ना जाए। और अंदर ही अंदर बहुत तनाव में थे, हफ्तों की जर्नी थी और वहां पहुंचते पहुंचते ध्यानचंद(Major Dhyanchand) की टीम की खिलाड़ी बीमार पड़ गए।
हिटलर का खुशी का ठिकाना नहीं रहा
यू.स. पहुंचते ही जर्मनी के खिलाफ हुए पहला वार्म मैच भारतीय हॉकी टीम 4-1 से हार गई। और वहां पर हिटलर का खुशी का ठिकाना नहीं रहा। क्योंकि उन्हें ध्यानचंद कि ख्याति पता थी, पता था कि जो भारतीय हॉकी टीम के खिलाड़ी ध्यानचंद (Major Dhyanchand) है वह हॉकी के जादूगर हैं और ध्यानचंद की टीम मैच हार चुकी थी। जब वार्म अप मैच में जर्मनी टीम ने भारतीय हॉकी टीम को हरा दिया तो सारे के सारे जर्मनी के अखबार के पहले पन्ने पर कुछ ऐसा छापा की ध्यानचंद उसके सामने कुछ भी नहीं। उसके बाद बाकी का मैच शुरू हुआ और ध्यानचंद खेलना शुरु किया।
हिटलर मैच के बीच से ही क्यों चले गए
जब इनका जादुई स्टिक चलनी शुरु हुई और 2–4 मैचों के बाद सब कुछ बदल गया। उसके बाद जर्मन अखबार क्या छापते की ओलंपिक कंपलेक्स में आईए क्योंकि वहां पर मैजिक शो चल रहा है। यह तो ध्यानचंद का जलवा और महानता है। ओलंपिक मैच कहां हो रहा था बर्लिन में, वार्म अप मैच किसने जीता था जर्मनी ने। फाइनल किसके साथ था वो भी जर्मनी के साथ था। मैच देखने कौन आया था दुनिया का सबसे बड़ा तानाशाही हिटलर क्योंकि उनको लगा कि हम मैच आसानी से जीतेंगे। और मैच के फर्स्ट हाफ में ध्यानचंद (Major Dhyanchand) जर्मन के गोलकीपर से भीड़ गए जिसमे उनका दांत टूट गया।
जिसकी वजह से उन्हें मैदान से बाहर जाना पड़ा और खेलने की स्थिति में नहीं थे। बावजूद इसके ध्यानचंद (Major Dhyanchand) वापस हॉकी खेलने के लिए मैदान में आए और उस दिन इतिहास रचा दिया। उनके लीडरशिप में 8-1 से जर्मन टीम को हरा दिया और ध्यानचंद ने अकेले 6 गोल ठोंक डाले। और आप सोच नहीं सकते हैं कि हिटलर इतना गुस्सा हो गए की मैच को बीच में छोड़कर वहां से चले गए। ध्यानचंद जादू दिखाते हुए 1-2 नहीं पूरे 6 गोल अकेले ठोक दिए। विजेता टीम को पुरस्कार हिटलर का हाथों से मिला था लेकिन वह बीच में ही मैच छोड़ के जा चुके थे।
क्योंकि वह अपने हार को बर्दाश्त नहीं कर सकते थे वह अपने आंखों के सामने अपने हॉकी टीम को हारते हुए नहीं देख सकते थे इसलिए वह बीच में हॉकी का मैच छोड़कर चले गए थे।
हिटलर ने ध्यानचंद को अकेले में क्यों बुलाया
अगले दिन तानाशाही हिटलर ने ध्यानचंद (Major Dhyanchand) को अकेले में बुलाया जब ध्यान चंद को बुलाया गया तो ध्यानचंद बहुत घबरा हुआ था। क्योंकि ध्यानचंद को पता था कि हिटलर कैसा इंसान है न जाने वह मेरे साथ क्या करेगा यह सोचकर वह बहुत घबरा रहे थे। न जाने मेरे साथ वह क्या करेगा मैंने उनके खिलाफ छह गोल मारे। उसके बाद ध्यानचंद हिटलर के पास पहुंचे, हम देखिए असली देशभक्त क्या होता है? हिटलर ने ध्यानचंद से कहा इंडिया में तुमको जो भी मिलता है, उससे सैकड़ो गुणा ज्यादा तुमको मैं दूंगा। हिंदुस्तान में तुम्हारा जो भी पद है, उससे बहुत बड़ा पद तुमको मैं दूंगा। यहीं जर्मनी में रहो, जर्मनी टीम के लिए खेलो और जर्मन खिलाड़ियों को सिखाओ।
गुलामी की जंजीर थी भारत अंग्रेजों के अधीन में था, अगर ध्यानचंद (Major Dhyanchand) चाहते तो भारत छोड़कर एक हाई-फाई लग्जरी जीवन जी सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। और ध्यानचंद ने हिटलर से कहा कि मैं अपने वतन देश के लिए खेलना चाहता हूं। मैं अपने वतन और संस्कृति में वापस लौटना चाहता हूं। जब हिटलर ने ध्यानचंद (Major Dhyanchand) को घूर कर देखा तो आसपास लोगों भी हक्की-बक्की बंद हो गई न जाने हिटलर ध्यानचंद के साथ क्या करेगा यह सब लोग देख रहे थे। लोगों को लगा कि आज ध्यानचंद यहां से जिंदा वापस नहीं जाएगा। लेकिन यहां पर हिटलर ने ध्यानचंद को छोड़ दिया और सच्ची देशभक्ति दिखाते हुए हिंदुस्तान का नाम विश्व में स्वर्ण अक्षरों में लिख दिया।
आखिरी दिनों में मेजर ध्यानचंद के साथ क्या हुआ
ध्यानचंद (Major Dhyanchand) सिर्फ एक अच्छे खिलाड़ी ही नहीं थे बल्कि एक अद्भुत असाधारण इंसान भी थे। बहुत कम बोलना दुनिया में किसी से कुछ नहीं मांगना। यहां तक जो हो सकता था जितना हो सकता था इनका सामर्थ्य था उतना लोगों की मदद भी करता था। क्योटा में भूकंप आया था तकरीबन 50000 लोग मार गए। उस वक्त ध्यानचंद के पास पैसे भी नहीं थे उसके लिए उन्होंने अपने ऑटोग्राफ को बेच बेच करके फंड जमा किया, और भूकंप से प्रभावित लोगों की मदद की।
लेकिन अफसोस की बात क्या है? ऐसे महान इंसान के साथ आखिर में क्या हुआ? आज का छोटा-छोटा कोई भी खिलाड़ी भले वह कोई भी खेल खेलते हो? इतना पैसा कमाता है खेल से अलग-अलग विज्ञापनों से अलग-अलग एंडोर्समेंट से। और हर खिलाड़ी एक रईस लाइफ जीता है। उनका एक ब्रांड होता है और तो सोशल मीडिया से भी आज छोटे-छोटे सेलिब्रिटी लाखों करोड़ो रुपए कमा रहे हैं। लेकिन वह वक्त ऐसा नहीं था, मेजर ध्यानचंद (Major Dhyanchand) अपने जीवन के अंतिम क्षणों में उनकी स्थिति इतनी खराब हो गई थी उनके पास बिल्कुल भी पैसे नहीं थे।
जब ध्यानचंद (Major Dhyanchand) लिवर कैंसर हुआ उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया जनरल वार्ड में भर्ती कराया देश को तीन ओलंपिक देने वाला खिलाड़ी को देश ने भुला दिया। उनके बेटे ने बस दो सब का इस्तेमाल करते हैं टोटल नेगलेक्ट (Neglect)
असल में मेजर ध्यानचंद कौन थे?
मेजर ध्यानचंद (Major Dhyanchand) स्वतंत्रता सेनानी थे वह तो बाद में खिलाड़ी थे। जिन्होंने उस वक्त हमें इन भावनाओं से आजादी दिलवाई। और हिंदुस्तानियों को यह संदेश दिया कि तुम किसी से कम नहीं हो। आज के वक्त समय तो ध्यानचंद के बारे में कोई अच्छे से जानता भी नहीं है बस कुछ लोगों को पता है कि वह हॉकी प्लेयर है वह एक हॉकी के जादूगर है लेकिन उसे वक्त की दौड़ में उन्होंने जो भारत को पहचान दिलाई वह शायद किसी ने दिलाई होगी।
इनके जीवनी को विस्तार से स्कूलों की किताबों कॉलेज के किताबों में जगह मिलनी चाहिए और उसकी पढ़ाई होनी चाहिए। ताकि लोगों को उनके बारे में पता चले। बच्चों को इनके संघर्ष के बारे में पता चले जिससे लोग बहाने और तकलीफें भूलकर उपलब्धियां के लिए लड़ें। ताकि इसको देखने के बाद पढ़ने के बाद सुनने के बाद हिंदुस्तान का बच्चा बच्चा भाव की बात करना गरीबी की बात करना हल्के एजुकेशन की बात करना मैं गांव में पैदा हुआ हूं। मेरे पास सुविधाएं नहीं मिली। यह सारे कमजोर डायलॉग बोलना छोड़ दे और अपना मैक्सिमम पोटेंशियल बिना किसी बहाने के बिना किसी एक्सक्यूज के करने अचीव के लिए आगे बढ़े।
इतनी सारी कमियां होने के बावजूद भी ध्यानचंद (Major Dhyanchand) इतनी बड़ी मुकाम हासिल कर लिया आज के वक्त में तो आपके पास सारी सुख सुविधाएं हैं तो उस हिसाब से तो आप उससे भी बड़ी मंजिल पा सकते हैं तो आप अभी तक किस इंतजार में हैं।
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