अभिनेता प्राण का जीवन परिचय
प्राण साहब हिंदी सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित अभिनेताओं में से एक थे। उन्होंने अपनी दमदार खलनायक भूमिकाओं, सहायक किरदारों और चरित्र अभिनय से दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई। 1940 से 2007 तक, उन्होंने 350 से अधिक फिल्मों में काम किया और बॉलीवुड के सबसे यादगार कलाकारों में से एक बन गए।
व्यक्तिगत जीवन, जन्म परिवार व शिक्षा
- पूरा नाम: प्राण कृष्ण सिकंद
- जन्म: 12 फरवरी 1920
- जन्मस्थान: दिल्ली, ब्रिटिश इंडिया
- मृत्यु: 12 जुलाई 2013 (मुंबई, महाराष्ट्र)
- पिता: लाला केवल कृष्ण सिकंद
- पत्नी: शुक्ला सिकंद (विवाह 1945)
- बच्चे: अरविंद, सुनील, पिंकी
प्राण साहब का जन्म 12 फरवरी 1920 को पुरानी दिल्ली के बल्लीमारन इलाके में हुआ था। ये वही इलाका है, जो महान शायर मिर्जा गालिब की वजह से भी जाना जाता है। उनके पिताजी लाला केवल कृष्ण सिकंद एक सरकारी कॉन्ट्रैक्टर थे, इनका मुख्य काम सड़क और पुल बनवाने का था। देहरादून का कलसी नामक पुल का निर्माण उनके ही कार्यकाल में हुआ था। प्राण ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कपूरथला, उन्नाव, मेरठ और रामपुर में प्राप्त की। वे फोटोग्राफी के शौकीन थे और एक पेशेवर फोटोग्राफर बनना चाहते थे। लेकिन उनकी किस्मत ने उन्हें फिल्मों में आने का अवसर दिया।

उनके पिताजी का तबादले के कारण प्राण की पढ़ाई सही ढंग से नहीं हो पाई। जिस वजह से उनका पढ़ाई में मन भी सही से लग नहीं पा रहा था। लेकिन पढ़ने में अच्छे थे और सिर्फ 10वीं तक पढ़ाई कर छोड़ दी। इनको फोटोग्राफी का बहुत ज्यादा शौक था, और इसी क्षेत्र में अपना करिअर बनाने का फैसला लिया। और उसके बाद बहुत ही मेहनत से उन्होंने फोटोग्राफी की ट्रेनिंग ली। और सबसे पहले देहरादून उसके बाद दिल्ली फिर शिमला में बतौर फोटोग्राफर की नौकरी की। इनको सिर्फ एक फटोग्राफर बनने का ही सपना था, और कुछ नहीं बनना चाहते थे।
कभी भी फिल्मों में आने की इच्छा नहीं थी, लेकिन किस्मत जिसको जहां ले जाना चाहता है उसको वहाँ ले जाकर ही छोड़ता है। फोटोग्राफी के काम से आए दिन प्राण साहब को गीत संगीत, नृत्य नाटक, रामलीला के कार्यक्रमो में तस्वीर खींचने के लिए जाना ही पड़ता था। कुछ इन कार्यकर्मों का तो कुछ फोटोग्राफी का तो कुछ हर नौजवानों की तरह फिल्मे देखने का असर ही था जिसने इसे एक स्टाइलिश नौजवान बना दिया।
शुरुआती सफर ; फिल्मी करियर
(प्राण ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 1940 में पंजाबी फिल्म “यमला जट” से की। इसके बाद उन्होंने लाहौर में कुछ और फिल्मों में काम किया। लेकिन 1947 में भारत-पाक विभाजन के बाद वे मुंबई आ गए, जहां उन्हें संघर्ष करना पड़ा।)
उनका हर अंदाज उस जमाने सबसे अलग था लेकिन कभी भी फिल्मों में काम करने के बारे में नहीं सोचते थे। लेकिन कहते है न इंसान इस दुनिया में जिस काम के लिए आया है भाग्य उसको घुमा फिराकर उसी रास्ते पर लाकर खड़ा कर ही देता है। जिस राह पर आपकी मंजिल होती है। ऐसा ही घटना घटित हुआ प्राण साहब के साथ जब अचानक उन्हे रामलीला में सीता का किरदार निभाने का मौका मिला। ये वाक्या ऐसा है की जब प्राण साहब एक रामलीला में फोटोग्राफी करने के लिए गए हुए थे। संयोगवश उस रामलीला में सीता का रोल निभाने वाला कलाकार नहीं आया था।
सभी लोगों ने प्राण साहब को इस किरदार को निभाने की विनती की, प्राण साहब मान गए, और उन्होंने वो किरदार बहुत ही अच्छे ढंग से निभाया। सबसे बड़ी बात इस रामलीला में भगवान राम जी का किरदार निभाया था अभिनेता मदनपुरी शाहब ने, वो काम तो वहाँ खतम हो चुकी थी। उसके बाद से प्राण साहब दोबारा से अपने फोटोग्राफी के काम में लग गए। प्राण साहब को सिगरेट पीने की बहुत पुरानी आदत थी, वो अक्सर शाम को अपना काम खतम करने के बाद शिमला के के पान की दुकान पर जाया करते थे। और बड़े बेफिक्र होकर सिगरेट पीते थे, और आसमान में सिगरेट के धुएं के छल्ले उड़ाते थे।
एक शाम ऐसे ही स्टाइल से खड़े होकर धुएं के छल्ले उड़ा रहे थे तो उसी वक्त पंजाबी फिल्मों के पटकथा लेखक मो. बली वहाँ आ पहुंचे। प्राण साहब के ये अंदाज और स्टाइल देखकर बहुत ही प्रभावित हुए, उन्हे अपनी अगली फिल्म “यमला जट्ट” के लिए एक ऐसे ही लड़के की तलाश थी। और उन्हे अगले दिन मिलने के लिए बुलाया। प्राण साहब ने उस वक्त उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया। वो अगले दिन तो नहीं पहुंचे लेकिन कुछ दिनों बाद ही एक फिल्म देखने के दरमियान प्राण साहब की मुलाकात फिर से मो. बलि से हुई। इस बार प्राण साहब को उसकी बात माननी ही पड़ी, और उसका चयन हुआ फिल्म यमला जट्ट के लिए और मेहनताना 50 रुपये प्रति महीने देने का तय हुआ।
प्राण साहब ने एक शर्त रखा की वो खाली वक्त में वो अपना फोटोग्राफी का काम करेंगे। जिसको सब को मानना ही पड़ा, इसका एक बड़ा कारण यह भी था की वह नहीं चाहते थे की उनके पिताजी को उनके फिल्मों मे काम करने के बारे मे पता चले। 1940 में यमला जट्ट सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई और सफल भी रही, प्राण साहब के काम को दर्शकों ने खूब पसंद किया, और उसके बाद एक के बाद एक 20 से 22 हिन्दी और पंजाबी फिल्मे मिल गई। जिनमे से प्रमुख है 1942 में निर्माता दलसुख पंचोली की खानदान और इस फिल्म उन्होंने उस वक्र की जानीमानी अभिनेत्री और गायिका नूरजहां के साथ नायक का किरदार निभाया।
और अच्छा खासा अपनी एक पहचान बना चुके थे और अब उनके पिताजी को भी उनके फिल्मों में काम करने के बारे में पता चल चुका था। लेकिन उनके पिताजी ने कोई ऐतराज नहीं जताया, और उसके बाद साल 1945 में प्राण साहब जी की शादी हो गई। उनके यहाँ एक पुत्र का जन्म हुआ 11 अगस्त 1947 को अपने बेटे का पहला जन्मदिन मनाने लाहौर से इंदौर आए थे। क्योंकि उस वक्त उनकी पत्नी और बेटा वहीं थे, ये वही वक्त था जब देश का विभाजन के दंगों के आग से पूरा देश जल रहा था। जब प्राण साहब को पता चला की लाहौर में माहौल पूरी तरह से बिगड़ चुका है।
और अब वहाँ जाना उसके लिए खतरे से खाली नहीं है तो उन्होंने निर्णय लिया की अब लाहौर न जाकर मुंबई फिल्म जगत में ही प्रयास करेंगे। उन्हे विश्वास था की 20 – 22 फिल्मों में काम करने के बाद उन्हे मुंबई में आसानी से फिल्मों में काम मिल जाएगा। लेकिन यहाँ उल्टा हो गया इन्हे काम नहीं मिल रहा था, बहुत ही मुश्किलों का सामना करना पड़ा। एक सफल अभिनेता होने के बाद भी बहुत संघर्ष करना पड़ा। बहुत निश्चित होकर पूरा परिवार मुंबई गए, और एक बड़े होटल में रूम लिया। वक्त गुजरता गया और धीरे धीरे पैसा भी खतम होता जा रहा था, और एक समय ऐसा भी आया जब प्राण साहब को अपनी पत्नी के गहने तक बेचने पड़े।
कुछ दिन बाद पूरा परिवार होटल छोड़कर एक छोटे से लॉज में जाकर रहने लगा। छोटी मोटी जो भी काम मिलता चुपचाप कर लेते। और एक दिन उनकी मुलाकात हुई अपने पुराने साथी शहादत हसन मंटू से और साथ ही साथ अभिनेता श्याम से उन्होंने उनको बाम्बे टाकिज की अगली फिल्म जिद्दी के ऑडिशन के लिए सलाह दी। अब समस्या ये थी की वहाँ तक जाने के लिए प्राण साहब के पास लोकल ट्रेन के किराये तक के पैसे भी नहीं थे। लेकिन जाना भी जरूरी था, और इतना वक्त भी नहीं था कि पैसों का इंतेजाम कर सके, ऐसे में काम छिन जाने का भी डर था। उन्होंने निर्णय लिया कि भले ही पहले पहुंचकर मुझे वहाँ घंटों इंतजार करना क्यों न पड़े।
लेकिन ये काम मैं अपने हाथ से जाने नहीं दूंगा, उन्होंने एकदम सवेरे सवेरे वाली ट्रेन से वहाँ जाने का फैसला किया। क्योंकि उस वक्त ट्रेन में टिकट चेक करने के लिए कोई टीटी नहीं आता था। अगले दिन उन्होंने तय समय पर पहुंचकर ऑडिशन के लिए स्क्रीन टेस्ट दिया। उनके अभिनय में तो कोई कमी नहीं थी, उनका चयन न होता, सबको उनका अभिनय बहुत पसंद आया। और उस फिल्म के लिए उनका चयन हो गया, और 500 रुपये महीने पर बात तय हुई। जेब खाली होने के कारण उन्होंने कुछ पैसे अड्वान्स मांगे और उन्हे तुरंत 100 रुपये दिए। फिल्म जिद्दी साल 1948 में प्रदर्शित हुई उनके अभिनय को लोगों ने बहुत पसंद किया।
सफलता और खलनायक की पहचान
1948 में “जिद्दी” फिल्म (देव आनंद और कामिनी कौशल के साथ) से उन्हें हिंदी सिनेमा में पहचान मिली। इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों में खलनायक की भूमिका निभाई और 1950 व 1960 के दशक में बॉलीवुड के सबसे बड़े विलेन बन गए।
एक के बाद एक फिल्मों में खलनायक के किरदार को बखूबी निभाने के कारण प्राण साहब फिल्मी दुनिया के सबसे खतरनाक खलनायक बनके उभरे। एक वक्त ऐसा भी था जब वे परदे पर आते तो लोक उनको देखकर गालियां देने लगते लोगों ने अपने बच्चे का नाम प्राण रखना बंद कर दिया। रास्ते में भी अगर कोई देख लेता तो गुंडा बदमाश कहकर चिल्लाते, साहब ऐसी बातों को अपनी सफलता से जोड़कर देखा करते थे। उन्हे इस बात का यकीन हो जाता कि उन्होंने अपना किरदार सफलतापूर्वक निभाया है। और जो गालियां मिल रही है वह उन्हे नहीं बल्कि उसके किरदार को मिल रही है।
प्राण साहब को नकारात्मक भूमिकाएं ही ज्यादा पसंद थी, हालांकि उन्होंने बाद में कॉमेडी और बाकी अलग अलग बहुत से किरदार की भूमिकाएं भी की। जिसे लोगों ने खूब पसंद किया, मनोज कुमार की फिल्म उपकार से प्राण साहब ने अपनी छवि को एकदम बदल दिया। इनके अभिनय का जादू ही कहंगे जो उन्होंने एक फिल्म से लोगों के दिलों में बरसों से पल रही नफरत को प्यार में बदल दिया। प्राण साहब ने 6 दशकों तक तकरीबन 400 फिल्मों मने अभिनय किया। प्राण साहब की आखिरी फिल्म थी दोष जो साल 2007 में प्रदर्शित हुई थी। जिसमे संजय कपूर, गोबिन्द नामदेव, ओम पूरी, सदाशिव अमरापुरकर और भी कई कलाकार थे।
प्रमुख फिल्में
प्राण ने कई सुपरहिट फिल्मों में काम किया, जिनमें उनकी कुछ प्रमुख फिल्में हैं:
- मधुमती (1958)
- जिस देश में गंगा बहती है (1960)
- राम और श्याम (1967)
- उपकार (1967) – इस फिल्म में उन्होंने मलंग बाबा का किरदार निभाया, जिसने उन्हें सकारात्मक भूमिकाओं में भी लोकप्रिय बना दिया।
- जंजीर (1973) – शेर खान की भूमिका, जिसने उनकी छवि बदल दी और उन्हें एक महान चरित्र अभिनेता बना दिया।
- डॉन (1978)
- अमर अकबर एंथनी (1977)
- शराबी (1984)
- कुली (1983)
- अंधा कानून (1983)
खलनायक के तौर पर दिलिप कुमार के साथ उनकी प्रसिद्ध फिल्में हैं :
देवदास (1955), आजाद (1955), मधुमति (1958) , दिल दिया दर्द लिया (1966) और राम और श्याम (1967) ; राज कपूर के साथ जिस देश में गंगा बहती है (1960) ; देव आनंद के साथ जिद्दी (1948) , मुनिमजी (1955), जब प्यार किसी से होता है (1961), ये गुलिस्तां हमारा (1972) , इत्यादि।
1969-1982 के दौरान प्राण साहब चरित्र अभिनेता के रूप में अपने करियर के शीर्ष पर थे। एक के बाद एक फिल्में आती रहीं , सफलता प्राण साहब के कदम चूमती रहीं। इस दौर में इन्होंने मनोज कुमार, धर्मेंद्र, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, ऋषी कपूर जैसे प्रमुख नायकों के समर्पित प्रशंसकों की तरह उनके भी प्रशंसक थे। उस दौड़ में चरित्र अभिनेता के रूप में उनकी उपस्थिति फिल्म के हिट होने की लगभग गारंटी होती थी। अपने दमदार अभिनय से वे सारे फिल्मों में “प्राण” फूंक देते थे अथार्थ जान डाल देते थे। प्राण साहब फिल्मों के “प्राण” थे। चरित्र अभिनेता के तौर पर उनकी प्रसिद्ध फिल्में हैं : गुमनाम (1965), पत्थर के सनम (1967), उपकार (1967), ब्रह्मचारी (1968), विक्टोरिया नंबर 203 (1972), जंजीर (1973) , बॉबी (1973), मजबूर (1974), कसौटी (1974), अमर अकबर एंथोनी (1977), डॉन (1978), कर्ज (1980), क्रोधी (1981), कालिया (1981), शराबी (1984) , इत्यादि।
बदलती छवि और चरित्र भूमिकाएं
1970 के दशक के बाद, जब हिंदी सिनेमा में नए खलनायक आए, तो प्राण ने सकारात्मक भूमिकाएं निभानी शुरू कीं। वे एक मजबूत सहायक अभिनेता बनकर उभरे और कई फिल्मों में प्रेरणादायक भूमिकाएं निभाईं।
पुरस्कार और सम्मान
प्राण को उनके बेहतरीन अभिनय के लिए कई पुरस्कारों से नवाजा गया:
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार – “जिस देश में गंगा बहती है” (1961), “उपकार” (1967), “आंसू बन गए फूल” (1969)
- फ़िल्मफ़ेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड – 1997
- पद्म भूषण – 2001
- दादा साहेब फाल्के पुरस्कार – 2013 (भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान)
अपनी बेहतरीन अभिनय के लिए 3 बार फिल्म फेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। भारत सरकार ने साल 2001 में कला क्षेत्र में पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया। इसके अलावा इनको और भी बहुत से अवॉर्ड और सम्मान दिए गए।
अन्य कई पुरस्कारों के साथ महाराष्ट्र सरकार द्वारा लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार, फिल्मफेयर का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार इत्यादि से उन्हें नवाजा गया। 2000 में उन्हें “Villain of the Millennium” (सहस्त्राब्दी का महाखलनायक) का खिताब दिया गया। 2013 में भारत सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा सम्मान – दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड देकर उन्हें सम्मानित किया।
निधन और विरासत
93 साल की उम्र में 12 जुलाई 2013 को मुंबई के लीलावती अस्पताल में प्राण साहब ने अपने प्राण त्याग दिए। वे भले ही हमारे बीच न हों, लेकिन उनकी यादगार भूमिकाएं हमेशा अमर रहेंगी। उनकी संवाद अदायगी, हाव-भाव और प्रभावशाली व्यक्तित्व ने उन्हें हिंदी सिनेमा के सबसे प्रभावशाली अभिनेताओं में से एक बना दिया। 2016 में उनकी पत्नी शुक्ला सिकंद का भी निधन हो गया, तब वो 91 साल की थी। प्राण साहब के 3 बच्चे हैं दो बेटे सुनील सिकंद अरविन्द सिकंद और एक बेटी पिंकी सिकंद सुनील सिकंद ने तो दो फिल्मे भी डायरेक्ट की है।1991 में फिल्म लक्ष्मण रेखा और 1984 में आई फिल्म फरिश्ता।
निष्कर्ष
प्राण सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि एक युग थे। उनकी नकारात्मक भूमिकाओं से दर्शकों ने नफरत की, और सकारात्मक भूमिकाओं से प्यार। वे भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानित कलाकारों में से एक थे।
प्राण साहब की आखिरी फिल्म?
उनकी आखिरी फिल्म थी दोष जो साल 2007 में प्रदर्शित हुई थी। जिसमे संजय कपूर, गोबिन्द नामदेव, ओम पूरी, सदाशिव अमरापुरकर और भी कई कलाकार थे।