महान कादर ख़ान का जीवनी : Actor, writer, director & Diologue writer Kadar Khan biography in hindi
कादर खान (Kadar Khan) के पिताजी का नाम अब्दुल रेहान खान था जो मूलतः अफगानिस्तान के कंधार रहने वाले थे, और उनकी पत्नी यानी कादर खान की माताजी इकबाल बेगम ब्रिटिश इंडिया पीशिन (Pishin) जो पाकिस्तान के बलूचिस्तान कैसा है का हिस्सा काम की तलाश में कादर खान के पिताजी काबुल में जाकर बस गए। वहां पर उनके चार बेटे हुए लेकिन जब बच्चे की उम्र 8 साल तक पहुंचती थी तो उनकी किसी बीमारी से मौत हो जाती थी ऐसा उनके तीन बेटों के साथ हुआ, उसके बाद कादर खान (Kadar Khan) की मां इस घटना से डर गई।
कादर खान का जन्म व परिवार
22 अक्टूबर 1937 को जन्मे अफगानिस्तान में कादर खान (Kadar Khan) अपने माता पिता के चौथे संतान थे। कादर खान के जन्म के बाद उनके माता ने फैसला किया कि सरो जमीं उनके बच्चे के लिए ठीक नहीं है। तो कादर खान के पिता जी को काबुल छोड़ कहीं और जाने को कहा, उसके बाद बहुत सोच विचार करने के बाद उनका परिवार मिलिट्री के गाड़ी से भारत के लिए रवाना हो गए और वह भारत आकर मुंबई में बस गए जहां जहां पर आकर बसे वहां का स्थिति बहुत ही खराब थी।
कादर खान का संघर्षपूर्ण कहानी
कादर खान के (Kadar Khan) पिताजी भूमि में जहां पर गए थे रुके थे वह मुंबई का बहुत ही खराब जगह थी गंदी थी। और उस व्यक्ति का नाम था कमाठीपुरा बहुत ही मुश्किल से कादर खान के पिताजी को वहां पर किराए पर दो कमरे मिलें। वहां की स्थिति ऐसी तिथि एक तरफ शराब बनती थी तो दूसरी तरफ वेश्या खाना थी, और तो और गुंडागर्दी तो वहां पर आम बात थी। कादर खान का बचपन उस माहौल में गुजर ना इतना आसान नहीं था इतना कुछ होने के बावजूद भी कादर खान उस माहौल से नहीं मिलें बल्कि उन्होंने कुछ हटके किया जो बिल्कुल भी उस बस्ती से मेल नहीं खाते।
उस दरमियान कादर खान (Kadar Khan) के परिवार की हालत बहुत ही दयनीय थी कई दिन तो पूरा परिवार भूखा ही रहते थे। कादर खान जब मात्र 1 साल के थे तो आर्थिक तंगी से आकर उनके पिताजी ने उनकी मां को तलाक दे दिया क्योंकि उनके पिता बेरोजगारी से तंग आकर और घर आर्थिक चीजों की पूर्ति नहीं कर पा रहे थे। आसपास के माहौल को देखते हुए और कादर खान के पिताजी का दबाव के कारण कादर खान की माता ने दूसरी शादी कर ली। कादर खान के पिताजी एक कारपेंटर थे जो अपने जिम्मेदारियों को निभाने में असमर्थ थे।
बस जिस दिन पैसे आते थे बस उसी दिन भूख मिटती थी और जिस दिन पैसे नहीं होते थे उस दिन पूरा दिन परिवार का भूखा रहना पड़ता था।
जब कादर खान (Kadar Khan) हो रहे बड़े हुए तो उनकी माताजी ने उनकी पढ़ाई के लिए नजदीक के एक मुंसिपल स्कूल में दाखिला दिलवा दिया। तो उसमें भी उनका परिवार का हालत ऐसी थी की कादर खान कभी-कभी पैसा मांगने अपने पहले पिताजी के पास चले जाते थे। पिताजी से तो कोई सहायता नहीं मिलती थी, लेकिन मुंबई के डोंगरी इलाके में स्थित एक मस्जिद जिसमें इमामशाहब थे, जो कादर खान को उस वक्त एक से ₹2 देते थे जिससे उनका घर का गुजारा चलता था। बहुत ही कम और मैं दोस्तों के कहने पर कादर खान (Kadar Khan) ने पढ़ाई छोड़कर काम करने के मकसद से मन बना लिया।
लेकिन माने कादर खान (Kadar Khan) को रोकते हुए कहा मुझे मालूम है कि तुम कहां जा रहे हो, 1- 2 रुपए कमा कर हमारे घर की स्थिति ठीक नहीं हो सकती। अगर घर की मुझसे बातें दूर करने हैं हैं तो मन लगा कर तू बस पढ़, बाकी की जितने भी मुश्किलें हैं वह तुम मुझ पर छोड़ दे मैं संभाल लूंगी। मां की यह सब बातें सुनकर कादर खान (Kadar Khan) के दिल में उतर गई, उसके तुरंत बाद कादर खान ने तय किया कि वह पढ़ाई करेंगे और उन्हें तुरंत कॉपी किताब उठाई और स्कूल की तरफ भागे।
कादर खान (Kadar Khan) की माता जी हमेशा कादर खान को मस्जिद भेजा करती थी, लेकिन कादर खान मस्जिद ना जाकर वही कुछ दूरी पर एक कब्रिस्तान थी वहां पर चले जाते थे अकेले, और अपना दिल का बोझ हल्का करने के लिए जोर जोर से चिल्लाते और वह कई घंटे बैठकर ही वक्त गुजारते।
और उस वक्त कादर खान (Kadar Khan) की स्थिति यह थी कि उनके पैरों में चप्पल भी नहीं हुआ करते थे और जब कादर खान घर पहुंचते थे तो उनकी मां पैरों को देखकर क्योंकि उनके पैरों में मिट्टी लगी होती थी, अंदाजा लगा ले तो तेरी आज भी उनका बेटा मस्जिद नहीं गया। और रात के वक्त भी कादर खान कब्रिस्तान चले जाते थे, एक रात जब कादर खान का भी स्थान में जोर-जोर से कुछ अकेले में बोल रहे थे तो एक अनजान इंसान ने उनके चेहरे पर टॉर्च से रोशनी मारी। और उस इंसान ने कदर काम से पूछा कि तुम इतनी रात को कब्रिस्तान में क्या कर रहे हो और कौन हो तुम?
तो इस पर कादर खान (Kadar Khan) ने कहा कि मैं जो दिन भर देखता हूं सुनता हूं वही चीज मैं यहां आकर अकेले में दोहराता हूं।
कादर खान (Kadar Khan) के यह बात सुनकर वह आदमी उससे बहुत प्रभावित हुआ, और कादर खान से कहा कि तुम नाटकों में काम क्यों नहीं करते। दरअसल वह आदमी नाटककार था और उसका नाम अशरफ खान था। उन दिनों नाटककार अशरफ खान एक छोटे कलाकार की तलाश में भी थे, जो पढ़ा लिखा भी हो और जिसकी जुबान भी साफ हो। तो वह नाटककार अशरफ खान कब्रिस्तान में ऐसे ही नहीं पहुंच गए थे किसी ने उन्हें यह जानकारी दी थी कि कोई एक लड़का है जो कब्रिस्तान में आकर अकेला ही पागलों की तरह चिल्लाता रहता है और कुछ बड़बड़ाता रहता है,
हो सकता है वह आपके काम का हो और इस यह सब सुनकर अशरफ खान उस दिन यूं ही घूमते घूमते कब्रिस्तान पहुंच गए थे।
वह लड़का उनके काम का भी निकला, अशरफ खान के कहने पर कादर खान (Kadar Khan) मान गए और वह एक्टिंग करने के लिए तैयार हो गए। बाद में कादर खान ने फिल्म मुकद्दर के सिकंदर में एक फिल्म का सीन खुद लिखा जिसे देखकर लोगों ने खूब पसंद किया था। कादर खान ने अपने पहले नाटक के में इतनी जबरदस्त अभिनय की कि वहां के दर्शकों ने कादर खान को अपने कंधे पर बिठा लिया। और नाचने लगे, और जब नाटक खत्म हुआ तो एक बुजुर्ग आदमी ने कादर खान (Kadar Khan) को इनाम के तौर पर ₹100 का नोट दिया।
उस वक्त ₹100 एक बड़ी रकम थी वह भी एक बच्चे के लिए, और कादर खान ने भी उस ₹100 को एक ट्रॉफी की तरह बहुत ही संभाल के रखा था।
दसवीं की पढ़ाई पूरी होने के बाद मुंबई के ही एक कॉलेज में दाखिला लिया, इस्माइल यूसुफ कॉलेज जो कि मुंबई यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड था, कॉलेज के कुछ दोस्तों के कहने पर उन्होंने एक नाटक का ऑडिशन दिया। वहां पर उनका एक कार्यक्रम हुआ उसमें कादर खान (Kadar Khan) अभिनय भी की है जहां पर उनका अभिनय देखकर उनके अभिनय को लोगों ने काफी पसंद भी किया। कादर खान को इस नाटक में एक फकीर का रोल दिया गया था जो उन्होंने बहुत ही बेहतर ढंग से निभाया।
नाटक करने से पहले जब उन्होंने नाटक स्क्रिप्ट पड़ा तो उन्हें स्क्रिप्ट में कुछ कमी नजर आई, और एक-दो दिन बाद बेझिझक होकर उन्होंने अपने डायरेक्टर को बता दी। तो डायरेक्टर को भी लगा कि हां इस स्क्रिप्ट में कुछ कमी है कुछ गड़बड़ है, और कादर खान से कहा कि तुम इसे ठीक कर सकते हो तो इसमें कादर खान ने कहा कि मैं कोशिश कर सकता हूं।
कादर खान (Kadar Khan) कैंटीन में बैठकर उस स्क्रिप्ट को चेंज किया उस में कुछ बदलाव किया और ठीक 4 घंटे के बाद उस स्क्रिप्ट को डायरेक्टर साहब को सौंप दिया। डायरेक्टर साहब को कादर खान का लिखने का अंदाज इतना पसंद आया कि उस नाटक को कादर खान के नाम कर दिया। ताश के पत्ते इस नाटक को कादर खान (Kadar Khan) अक्सर स्टेज पर किया करते थे।
उसके बाद कादर खान (Kadar Khan) इंजीनियरिंग में सिविल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन भी पूरी कर ली, और आश्चर्य के बाद दिया है अभी किस ग्रेजुएशन होने के बाद उन्होंने अपने ही कॉलेज में छात्रों को पढ़ाया भी था। और कादर खान ने उस सब्जेक्ट को पढ़ाया जिसमें वह कमजोर थे, पढ़ाई करने के बाद कादर खान को एक शाह कंस्ट्रक्शन कंपनी में नौकरी मिली थी, जिसमें कादर खान को महीने के मात्र 600 से ₹700 ही मिलते थे। उसके बाद शाह कंस्ट्रक्शन कंपनी ने उसे यह कह कर निकाल दिया क्या अभी इसमें अभी काम नहीं है हम आप को सैलरी नहीं दे सकते अब आप जा सकते हैं।
हैरान-परेशान कादर खान (Kadar Khan) अपने कॉलेज की सीढ़ियों पर जाकर बैठ गए, जो प्रिंसिपल की नजर कादर खान पर पड़ी उसके बाद कादर खान के प्रिंसिपल ने उन्हें ऑफिस में बुलाया और उनसे सारी बात पूछी। उसके बाद उसके प्रिंसिपल ने कहा कि जॉब में ऐसा होता रहता है, उसके बाद उसके प्रिंसिपल ने कादर खान को खाना खिलाया उनको ₹200 भी दिया। और और 11वीं की कक्षा लेने के लिए 2 महीने के लिए उन्हें ऑफर भी दे इसके लिए कादर खान भी राजी हो गए। हैरानी की बात तो यह थी कि कादर खान जिस सब्जेक्ट को भी पढ़ा रहे थे जिनमें वे फेल चुके थे।
लेकिन कादर खान (Kadar Khan) का पढ़ाने का तरीका इतना नहीं डाला था कि कुछ सप्ताहों के बाद ही कादर खान को बेस्ट टीचर ऑफ महाराष्ट्र से नवाजा गया। कुछ वक्त के बाद कादर खान उस कॉलेज के सबसे चहेते प्रोफेसर बन गए, और बहुत दिनों तक कॉलेज में कादर खान ने पढ़ाया, फ़िल्म लाईन में जाने के बाद भी कादर खान रात रात भर अपने छात्रों को पढ़ाया करते थे। और कादर खान के द्वारा पढ़े गए सारे छात्र फर्स्ट क्लास पास भी होते थे, कादर खान ने बताया कि फिल्म करने के दौरान उनके कुछ छात्रों के कहने पर बहुत रिक्वेस्ट करने पर 3 महीने तक रात के 12:00 बजे से लेकर सुबह 6:00 बजे तक अपने छात्रों को पढ़ाया।
पढ़ाई और फिल्म में काम करने के दौरान कादर खान (Kadar Khan) ने कभी भी नाटक लिखना नहीं छोड़ा था। और उस वक्त कादर खान नाटक लिखने के रॉयल्टी के तौर पर ₹50 लेते थे। जबकि उस वक्त बाकी के राइटर लिखने के ₹25 लेते थे, और उस वक्त का बरखा और नाटकों को डायरेक्ट करने के बदले ₹200 लिया करते थे। हालांकि कादर खान हर जगह नाटक है दर्द करने के लिए पहुंच नहीं पाते थे तो वहां पर उनके असिस्टेंट डायरेक्टर भरत कुमार शफी नामदार या फिर भी मुस्ताद मर्चेंट जाकर नाटक डायरेक्ट कर दिया करते थे। और उससे जो पैसे मिलते थे वापस में आधी आधी बांट लेते थे,
एक बार कादर खान (Kadar Khan) के कॉलेज में एनुअल फंक्शन में एक नाटक में फादर का का नाटक देखने के लिए अभिनेता दिलीप कुमार ने अपनी इच्छा जाता है। तू जब दिलीप कुमार ने कादर खान से बात की तो कादर खान नया दिलीप कुमार जी के साथ में दो या तीन शर्ते रखी जिसको दिलीप कुमार ने स्वीकार भी कर लिया वह सरते इस प्रकार थी – जावर खान में सबसे पहले कहां थी आप नाटक शुरू होने से पहले आना होगा और दूसरी जब तक यह नाटक खत्म नहीं होगी आप जा नहीं सकते हैं बीच में नाटक छोड़कर आपको पूरी देखनी होगी।
और जब दिलीप कुमार कादर खान (Kadar Khan) का नाटक दिखा दो दिलीप कुमार उससे बहुत प्रभावित हुए और कादर खान को अपने आने वाली दो फिल्मों में उन्हें काम करने का मौका दिया। दो उन फिल्मों का नाम था सगीना महतो और बैराग। हालांकि बतौर एक्टर कादर खान राजेश खन्ना की फिल्म 1973 में आई थी जिसका नाम है दाग से शुरू हो गई थी लेकिन इस फिल्म में बाद में रिलीज हुई। कादर खान एक अभिनेता तो थे ही साथ में एक बहुत बड़े राइटर भी थे सबसे पहले इन्हें राइटर के रूप में ही देखा जा रहा था। 1 दिन मुंबई में ड्रामा कंपटीशन शुरू हुआ, जिसमें उसके कॉलेज के लड़कों ने उन्हें उस में भाग लेने को कहा।
शुरु शुरु में तो कादर खान भाग लेने से मना कर रहे थे लेकिन कॉलेज के छात्रों द्वारा बहुत कहने पर मान गए।
जब कादर खान (Kadar Khan) को चला कि इस कंपटीशन में जितने वालों को ₹15000 मिलेंगे तो तब जाकर कादर खान ने कंपटीशन में भाग लिया। क्योंकि उस वक्त कादर खान को कॉलेज में फीस के तौर पर मात्र ₹300 मिलते थे। इस कंपटीशन में कादर खान का नाटक लोकल ट्रेन को पहला प्राइज तो मिला है साथ में बेस्ट राइटर बेस्ट डायरेक्टर और बेस्ट एक्टर के सभी अवॉर्ड भी मिले। यह कंपटीशन जीतने के बाद कादर खान के पास पहली बार एक साथ 1500 रुपए आए थे या एक बड़ी रकम थी। उस वक्त कादर खान का पैर कांपने लगे थे क्योंकि 300 महीना कमाने वाले एक साथ उनको 1500 रुपए मिले थे।
इस कंपटीशन में राइटर राजेंद्र सिंह बेदी, और उसके बेटे डायरेक्टर नरेंद्र बेदी और अभिनेत्री कामिनी कौशल मौजूद थे। खत्म होने के बाद डायरेक्टर नरेंद्र बेदी कादर खान (Kadar Khan) जी के पास आए और उनसे कहा कि वह एक फिल्म बना रहे हैं जवानी दिवानी जिसमें रणबीर कपूर और जया भादुरी है जिसे मैं चाहता हूं कि इस फिल्म का डायलॉग तुम लिखो तो इस पर कादर खान ने कहा फिल्मों के डायलॉग कैसे लिखते हैं मुझे लिखना नहीं आता है तो इस पर डायरेक्टर नरेंद्र मोदी जी ने कहा कि जैसे तुम नाटक के डायलॉग लिखते हो बस वैसे ही फिल्मों के डायलॉग तुम्हें लिखना है।
अगले दिन डायरेक्टर नरेंद्र बेदी अपने ऑफिस बुलाकर उनको फिल्म की स्टोरी सुनाई, और कहा कि इस फिल्म की 1 महीने के बाद शूटिंग है तब तक वह इसे लिख कर दे दे। उसके गांव खबर खराब है मुंबई के लोकल ट्रेन पकड़ी और एक मुंबई के एक फेमस क्रॉस मैदान में जाकर स्क्रिप्ट लिखना शुरु कर दी।
लिखने के दरमियान का बच्चे के द्वारा मैदान में फुटबॉल खेल रहे बच्चों के फुटबॉल से कई दफा आकर बॉल कादर खान को लग भी जाती थी। और मात्र तीन से 4 घंटे के अंदर कादर खान नए वर्ष के डायलॉग लिख डालें, उसके बाद कादर खान डायरेक्टर नरेंद्र बेदी क्या ऑफिस पहुंच गए। नरेंद्र बेदी को लगा कि कादर खान को कहानी समझ में नहीं आए हैं इसलिए इतनी जल्दी वापस लौट कर आ गए। हो सकता है वह कुछ पूछने जा रहे हैं तो इस पर डायरेक्टर नरेंद्र बेदी झल्लाते हुए अपने आप ही बुदगुदाने लगे तो इस चीज को कादर खान ने नोटिस कर लिया।
तो इस पर कादर खान (Kadar Khan) ने कहा कि सर आपने मुझे गाली दी है मैं दूर से ही किसी का भी लिप्स पढ़ सकता हूं। तो इस पर डायरेक्टर नरेंद्र बेदी ने कादर खान से कहा कि मैंने तुम्हें कहानी इतने अच्छे से समझाया तो तुम फिर मुझसे पूछने आ गया। इस पर कादर खान ने कहा कि सर मैंने तो सारे स्क्रिप्ट दी इस पर वहां पर मौजूद सारे लोग हैरान हो गए। और जब नरेंद्र बेदी ने जब उसके स्क्रिप्ट डायलॉग को पढ़ा तो कादर खान को गले से लगा लिया।
और जिस फिल्म को 1 महीने के बाद शूटिंग किया जाना था वह 1 हफ्ते के बाद ही शूटिंग शुरू हो गई। कादर खान को इस फिल्म के लिए ₹1500 दिए गए। साल 1972 में आए इस फिल्म में कादर खान के लिए आगे बतौर एक राइटर के तौर पर रास्ता खोल दिया। कुछ और स्क्रिप्ट लिखने के बाद कादर खान को साल 1974 में आने वाली फिल्म सुपरस्टार राजेश खन्ना की फिल्म रोटी के डायलॉग देखने का मौका मिला। उस वक्त कादर खान पर डायरेक्टर continues
I live in Jharia area of Dhanbad, I have studied till Intermediate only after that due to bad financial condition of home I started working, and today I work and write post together in free time............