झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन | झारखंड राज्य का निर्माण कैसे हुआ था? | खरसावा गोली कांड क्यों हुआ था?

झारखंड राज्य निर्माण के दौरान हुए आंदोलन : झारखंड राज्य की स्थापना कब हुई? यह किन लोगों के संघर्ष का परिणाम था?

आज हम इस आर्टिकल में झारखंड राज्य निर्माण के बारे में जानेंगे, किसने झारखंड राज्य निर्माण की नींव रखी और झारखंड का बिहार से विभाजन क्यों हुआ ये भी जानेंगे।

झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन : झारखंड राज्य आंदोलन के संस्थापक कौन थे?

झारखंड राज्य में ब्रिटिश शासनकाल से ही अंगेजों के शोषणकारी नीतियों से परेशान होकर अंग्रेजों के विरूद्ध कई अलग अलग बहुत से आंदोलन हुए। और इसी आंदोलन के दौरान अलग झारखण्ड राज्य की मांग उठती रही। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान इारखण्ड बंगाल प्रांत का बाद में बिहार राज्य का (1912 में पृथक बिहर के निर्माण के बाद) हिस्सा बना। ढाका विद्यार्थी परिषद राँची शाखा के संचालक जे. बार्थोलमन को झारखण्ड आंदोलन का जनक माना जाता है।

झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन | झारखंड राज्य का निर्माण कैसे हुआ था?

क्रिश्चियन स्टूडेंट्स आगेंनाइजेशन (1912 ई.) गठन : झारखंड आंदोलन कब से कब तक हुआ था?

चाईबासा निवासी व एंग्लिकन मिशन से जुड़े, जे. बार्थोलमन ने साल 1912 ई. में ढाका में आयोजित विद्यार्थी परिषद कार्यक्रम से लौटने के बाद ‘क्रिश्चियन स्टूडेंट्स आर्गेनाइजेशन‘ की स्थापना की। इस संगठन का प्रारम्भिक मकसद गरीब ईसाई विद्यार्थियों को मदद करना था। बाद में यह संगठन झारखण्ड राज्य के सभी आदिवासियों के सामाजिक- आर्थिक उत्थान में लग गए। जे. बार्थोलमन संत कोलंबा महाविद्यालय, हजारीबाग में पढ़ते थे। बाद में वे संत पॉल स्कूल रांची के प्राध्यापक बने। क्रिश्चयन स्टूडेंट्स आर्गेनाइजेशन में बाद में शामिल हुए लोगों ने जे. बार्थोलमन को साल 1915 में इस संगठन से निकाल कर अलग कर दिया। और इस संगठन का नाम बदलकर ‘छोटानागपुर उन्नति समाज‘ कर दिया।

छोटानागपुर उन्नति समाज (1915 ई. ) गठन : झारखंड का निर्माण किसने किया?

साल 1915 ई. में एंग्लिकन मिशन के बिशप केनेडी की सलाह पर ‘क्रिश्चियन स्टूडेंट्स आर्गेनाइजेशन‘ का नाम बदलकर ‘छोटानागपुर उन्नति समाज‘ कर दिया। ‘छोटानागपुर उन्नति समाज’ की स्थापना जुएल लकड़ा, पॉल दयाल, बंदीराम उराँव व ठेबले उराँव के नेतृत्व में हुई थी। यह झारखण्ड का प्रथम अन्तर्जातीत आदिवासी संगठन था, तथा इसके सदस्य केवल आदिवासी ही हो होते थे। दूसरे किसी अन्य जाति को इसमे शामिल होने की अनुमति नहीं होती थी। इस संगठन की स्थापना करने का मूल उद्देश्य छोटानागपुर की प्रगति और आदिवासियों की सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक स्थिति में सुधार लाना था। साल 1915 ई. में छोटानागपुर उन्नति समाज द्वारा मुण्डारी भाषा में आदिवासी नामक पत्रिका का प्रकाशन किया गया।

साल 1928 में छोटानागपुर उन्नति समाज द्वारा बिशप बॉन ह्यूक एवं जुएल लकड़ा के नेतृत्व में साइमन कमीशन को एक मांग पत्र सौंपा गया था। इस मांग-पत्र में इस क्षेत्र के आदिवासियों के लिए विशेष सुविधाएँ प्रदान करने तथा इनके लिए एक पृथक प्रशासनिक इकाई के गठन की मांग की गई थी।

किसान सभा (1930 ई.) की स्थापना

साल 1930 ई. में छोटानागपुर उन्नति समाज से ही अलग होकर कुछ लोगों ने “किसान सभा” का गठन किया। इसके प्रथम अध्यक्ष ठेबले उराँव तथा प्रथम सचिव पॉल दयाल बने। इस सगठन की स्थापना का मुख्य मकसद झारखण्ड के किसानों को शोषण करने वाले जमींदारों के विरूद्ध एकत्रित करना था। साल 1935 में छोटानागपुर उन्नति समाज तथा किसान सभा दोनों आपस में विलय कर लिया ताकि राजनीतिक सत्ता को पा सके।

छोटानागपुर कैथोलिक सभा (1933 ई.) की स्थापना

साल 1933 ई. में आर्च बिशप सेबरिन की प्रेरणा से छोटानागपुर कैथोलिक सभा का गठन किया गया। छोटानागपुर कैथोलिक सभा के प्रथम अध्यक्ष बोनिफेस लकड़ा थे, तथा प्रथम महासचिव इग्नेस बेक थे। इस संगठन का उद्देश्य कैथोलिकों के हितों की रक्षा करना था।

आदिवासी महासभा (1938 ई.) का गठन

साल 1936 ई. में जब उड़ीसा, बिहार से अलग हुआ तब झारखण्ड आंदोलन से जुड़े दलों को लगा की अब उनको भी अलग झारखण्ड राज्य मिल जाएगा, कुछ उम्मीद जगी। परंतु ऐसा नहीं होने पर वे निराश हो गए। और साल 1937 में हुए प्रांतीय चुनाव के बाद गठित बिहार के मंत्रिमंडल में दक्षिणी बिहार से किसी भी कांग्रेसी नेता को शामिल न करने से झारखण्ड के लोगों को अपनी उपेक्षा (तिरस्कार, निरादर,) का एहसास हुआ। इन्हीं घटनाओं से प्रभावित होकर इग्नेस बेक ने झारखण्ड के सभी आदिवासी दलों को एकजुट किया। जिसके परिणामस्वरूप साल 1938 ई. में आदिवासी संगठनों ने मिलकर राँची नगरपालिका के चुनाव में 5 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा किया व 5 सीटों पर चुनाव जीत गए।

इसी पृष्ठभूमि में 31 मई, 1938 को रांची में आयोजित ‘छोटानागपुर उन्नति समाज की वार्षिक सभा में 5 आदिवासी संगठनों (छोटानागपुर उन्नति समाज, किसान सभा, छोटानागपुर कैथोलिक सभा, मुण्डा सभा एवं हो मालटो सभा) को मिलाकर ‘छोटानागपुर-संथाल परगना आदिवासी महासभा‘ की स्थापना की। इस नवगठित संगठन का प्रथम अध्यक्ष थियोडोर सुरीन, उपाध्यक्ष बंदराम उरॉव तथा सचिव पॉल दयाल को बनाया गया। जनवरी 1939 में इसका नाम बदलकर ‘आदिवासी महासभा‘ कर दिया गया। आदिवासी महासभा के प्रमुख नेताओं के आदेश पर जयपाल सिंह मुण्डा को 1939 ई. में आदिवासी महासभा के अध्यक्ष बनाया गया। जयपाल सिंह मुण्डा की अध्यक्षता में ही 20-21 जनवरी, 1939 को रांची में आदिवासी महासभा का दूसरा अधिवेशन आयोजन किया गया था। इस अधिवेशन के स्वागत समिति के अध्यक्ष सैम्यूल पूर्ति थे।

इस अधिवेशन के दौरान आदिवासियों द्वारा जयपाल सिंह मुण्डा को ‘मरंड गोमके‘ (बड़े गुरूजी) की उपाधि दी गयी। इस अधिवेशन के दौरान जयपाल सिंह मुण्डा ने ही पहली बार एक प्रस्ताव के द्वारा सरकार से भारत शासन अधिनियम की धारा-46 के तहत छोटानागपर – संथाल परगना क्षेत्र के रूप में एक अलग गवर्नर के प्रांत का निर्माण करने का आग्रह किया। जमशेदपुर के एन. एन. दीक्षित ने इस प्रस्ताव का मंजूरी दी तथा सर्वसम्मति से प्रस्ताव को पारित किया।

प्रस्तुत प्रस्ताव के आलोक में देवकी नंदन सिंह की अध्यक्षता में एक ‘पृथक्करण संघ’ के गठन का निर्णय लिया। जिसका प्रमुख कार्य नए प्रांत के निर्माण के लिए सुझाव देना था। फरवरी 1939 में आदिवासी महासभा की मांग पर रायबहादुर सतीश चंद्र सिन्हा द्वारा बिहार विधानसभा में बिहाए से अलग करके छोटानागपुर-संथाल परगना प्रांत के गठन का एक प्रस्ताव पेश किया। जिसे बिहार के तत्कालीन प्रधानमंत्री (मुख्यमंत्री का उस समय पदनाम हुआ करता था) श्रीकृष्ण सिंह ने ठुकरा दिया। मई 1939 में राँची एवं सिंहभूम के जिला बोर्ड के चुनाव में आदिवासी महासभा ने कांग्रेस को हरा दिया। आदिवासी महासभा ने रांची में 25 में से 16 सीटें जीती तथा सिंहभूम के 25 में से 22 सीटें जीती।

झारखण्ड में काग्रेस के घटते नियंत्रण (प्रभुत्व ) का कारण पता लगाने के लिए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने जयपाल सिंह्र से मुलाकात की। आदिवासियों की शिकायतों को दूर करने के लिए सुझाव मांगे। 5 जुलाई 1939 को आदिवासी प्रतिनिधिमंडल ने डॉ. श्रीकृष्ण सिंह से मिलकर अपनी मांगे उनके सामने रखीं लेकिन श्रीकृष्ण सिंह ने कोई कार्रवाई नहीं की। 31 अक्टूबर 1939 को द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने के बाद बिहार के कांग्रेसी मंत्रिमण्डल ने इस्तीफा दे दिया। जिसे आदिवासी महासभा ने ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाकर अपनी प्रसन्नता जाहीर की। आदिवासी महासभा ने द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन का साथ दिया जिसके परिणामस्वरूप युद्ध के बाद जयपाल सिंह मुण्डा को राँची का चीफ वार्डन तथा बाद में ईस्टर्न कमाण्ड सर्विसेज सेलेक्शन बोर्ड का सलाहकार बना दिया।

दिसंबर 1939 ई. में झारखण्ड प्रवास पर आये सुभाष चंद्र बोस ने जयपाल सिंह से कांग्रेस का समर्थन करने की अपील की। मार्च, 1940 में आदिवासी महासभा का तीसरा अधिवेशन राँची में आयोजित हुआ। जिसमें जयपाल सिंह मुण्डा ने ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादारी दिखाई तथा अलग छोटानागपुर-संथाल परगना प्रांत के गठन की मांग की। ৪-10 मार्च, 1940 को रॉँची में आदिवासी महासभा का चौथा अधिवेशन हुआ। जिसमें मुस्लिम लीग के नेताओं को भी बुलाया गया। ৪-9 मार्च, 1942 को रांची में आदिवासी महासभा का पाँचवा अधिवेशन हुआ। जिसमें बंगाल मुस्लिम लीग के नेताओं को भी बुलाया गया, तथा ब्रिटिश सरकार को समर्थन देने का संकल्प लिया गया।

मार्च, 1943 में रांची में आदिवासी महासभा का छठा अधिवेशन हुआ, जिसमें जयपाल सिंह मुण्डा ने ब्रिटिश सरकार द्वारा आदिवासियों की मांगों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया। उन्होनें ब्रिटिश सरकार से कहा कि यदि आदिवासियों की मांगों को नहीं माना गया तो आदिवासी महासभा को कांग्रेस में विलय कर देगा। जो ब्रिटिश सरकार के लिए नुकसानदायक है। अगस्त 1944 में मुस्लिम लीग के नेता रगीब एहसान ने पूर्वी पाकिस्तान एवं आदिवासिस्तान (छोटानागपुर – संथाल परगना व आसपास के अदिवासी बहुल क्षेत्र को मिलाकर) बंगेइस्लाम नामक एक परिसंघ बनाने का सुझाव दिया।

30 दिसंबर 1945 से 1 जनवरी, 1946 के बीच राँची में ‘झारखण्ड-छोटानागपर पाकिस्तान‘ कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। जिसे मुस्लिम लीग के कई प्रमुख नेताओं ने संबोधित किया। 2-3 फरवरी, 1946 को रांची में आयोजित ‘ आदिवासी महासभा‘ में जयपाल सिंह ने घोषणा की कि ‘मुसलमानों ने उनकी मांग बिना शर्त समर्थन कर दिया है। 1946 ई. के संसदीय चुनाव में आदिवासी महासभा ने भी भाग लिया तथा 3 सीटों पर जीत दर्ज की। जयपाल सिंह खूंटी से चुनाव लड़े, परन्तु गांधीवादी नेता व कांग्रेस के प्रत्याशी डॉ. पूर्णचंद्र मित्र से हार गए। इस चुनाव के दौरान आदिवासी महासभा एवं कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के बीच 2 मार्च, 1946 को हिंसक झड़प हुई, जिसमें आदिवासी महासभा के पांच आदिवासी सदस्य मारे गए।

चुनाव हारने के बाद 1946 में जयपाल सिंह मस्लिम लीग के सहयोग से संविधान सभा के सदस्य बनाए गए। इस प्रकार जयपाल सिंह मुण्डा ने संविधान सभा में छोटानागपर के आदिवासी नेता के रूप में प्रतिनिधत्व किया था। 16 अगस्त, 1946 को मुस्लिम लीग द्वारा आयोजित प्रत्यक्ष कार्यवाही के बाद जयपाल सिंह मुंडा ने मुस्लिम लीग से संबंध तोड़ दिया। 13 अप्रैल, 1946 को रांची में आयोजित आदिवासी महासभा के वार्षिक अधिवेशन में जयपाल सिंह ने पाकिस्तान के निर्माण का विरोध करने के साथ ही संविधान सभा का समर्थन किया। साथ ही उन्होंनें अलग झारखण्ड राज्य के गठन तक आंदोलन जारी रखने की घोषणा भी की।

सरदार पटेल की अध्यक्षता में अल्पसंख्यकों व आदिवासियों के लिए गठित मूलाधिकार समिति की एक आदिवासी उपसमिति में जयपाल सिंह को सदस्य बनाया गया। इस उपसमिति के अध्यक्ष ए. बी. ठक्कर थे।

खरसावा गोली कांड क्यों हुआ था? | खरसावा गोली कांड क्यों हुआ था? | 1 जनवरी 1948 को सरायकेला में क्या हुआ था?

भारत की अजादी के बाद छोटानागपुर कमिश्नर के अंतर्गत शामिल सरायकेला एवं खरसावां देशी रियासतों को 1 जनवरी, 1948 को उड़ीसा में मिलाने की घोषणा की गई। जिसके कारण इसका व्यापक तरीके से विरोध प्रदर्शन हुआ। आदिवासी महासभा ने 1 जनवरी, 1948 को इसके खिलाफ सिंहभूम के खरसावां हाट मैदान में एक विशाल जनसभा का आयोजन करवाया। इस जनसभा में ‘झारखण्ड अबुआ, उड़ीसा जारी कबुआ’ (झारखण्ड अपना है, उड़ीसा शासन नहीं चाहिए ) का नारा लगाकर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था। जनसभा में उड़ीसा पुलिस के द्वारा इस भीड़ पर गोली चलाने का ऑर्डर दे दिया गया। जिसमें करीब 100 से अधिक लोग मारे गए। तथा 400 से अधिक लोग घायल हो गए। इस घटना को खरसावां गोलीकांड के नाम से जाना जाता है।

बाद में भारत सरकार ने सरायकेला व खरसावां के देशी रियासतों का उड़ीसा में विलय प्रस्ताव को खारिज कर दिया। जिसके परिणामस्वरूप 1 जनवरी, 1948 से 18 मई, 1948 तक (139 दिन) यह क्षेत्र उड़ीसा के अधीन रहा तत्पश्चात सरायकेला व खरसावां के देशी रियासतों को बिहार में शामिल किया गया। सरायकेला-खरसावां को सिंहभूम जिला के अंतर्गत अनुमंडल का दर्जा दिया गया।

देश की आजादी के बाद आदिवासी महासभा का पहला वार्षिक अधिवेशन 28 फरवरी, 1948 को रांची में आयोजित किया गया। जिसकी अध्यक्षता जयपाल सिंह मुंडा कर रहे थे। इस सम्मेलन में जयपाल सिंह मुंडा ने खरसावां गोली कांड के लिए उड़ीसा सरकार को दोषी ठहराया ।

यूनाइटेड झारखण्ड पार्टी (1948 ई.) का गठन

साल 1948 ई. में जस्टिन रिचर्ड और जयपाल सिंह मुण्डा द्वारा यूनाइटेड पार्टी का गठन किया गया था। बाद में जयपाल सिंह मुण्डा ने झारखण्ड पार्टी का गठन किया।

झारखण्ड पाटी का (1950 ई.) गठन

31 दिसंबर से 1 जनवरी, 1950 तक जमशेदपुर में आयोजित आदिवासी महासभा के संयुक्त सम्मेलन में जयपाल सिंह मुंडा ने आदिवासी महासभा का नाम बदलकर “झारखण्ड पार्टीं” रख दिया। इस पाटी के पहले अध्यक्ष जयपाल सिंह मुण्डा बने। बाद में झारखण्ड पार्टीं में आदिवासियों के साथ-साथ गैर-आदिवासियों भी शामिल हुए। जुलाई, 1951 को झारखण्ड के दौरे पर आए जयप्रकाश नारायण से मिलकर झारखण्ड पाटी के नेताओं ने छोटानागपुर-संथाल परगना प्रांत के गठन के लिए सहयोग मांगा जिसका जयप्रकाश नारायण ने समर्थन दिया। 2 जनवरी, 1952 को देश के पहले आम चुनाव के लिए राँची के मोरहाबादी मैदान में आयोजित एक जनसभा में जवाहर लाल नेहरू अलग झारखण्ड राज्य के गठन का विरोध कर रहे थे।

1952 ई. के एकीकृत बिहार विधानसभा चुनाव में झारखण्ड पार्टी मुख्य विपक्षी दल के रूप में सामने आई। पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘मुर्गा’ था, चुनाव में 33 सीटें जीती। (1957 के चुनाव में झारखण्ड पार्टी को 32 और 1962 के चुनाव में 20 सीटें मिली थी।) 1952 ई. के आम चुनावों में इस पार्टी का नारा था – झारखण्ड अबुआ, डाकु दिकु सेनुआ’ (झारखण्ड हमारा है, डकैत दिकुओं को जाना होगा)। 1952 तथा 1957 के चुनाव में विपक्षी दल का दर्जा पाने वाली झारखण्ड पार्टी के नेता सुशील कुमार बागे बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता बने। 1957 के चुनाव में जयपाल सिंह के कहने पर बांबे के एक पारसी मीनू मसानी ने रांची से चुनाव में खड़ा हुआ और जीत गए।

झारखण्ड पार्टी द्वारा अलग झारखण्ड राज्य मांग को लोकसभा तथा बिहार विधानसभा के अंदर उठाया। 5 फरवरी, 1955 को रांची आए राज्य पुनर्गठन आयोग के सामने भी इस पार्टी ने अलग झारखण्ड राज्य निर्माण के लिए अपनी दलीले रखी। राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष 16 जिलों (बिहार के 7 जिले, उड़ीसा के 4, बंगाल के 3 और मध्य प्रदेश के 2 जिले ) को मिलाकर अलग झारखण्ड राज्य क गठन का प्रस्ताव रखा। झारखण्ड राज्य निर्माण आंदोलन के लिए इस पार्टी को आदिवासियों के साथ-साथ गैर आदिवासियों का भी समर्थन था। 10 फरवरी, 1961 को सीताराम जगतराम ने बिहार विधानसभा में पहली बार अलग झारखण्ड राज्य के गठन के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया। लेकिन यह प्रस्ताव बहुत चर्चाओं के बाद निरस्त कर दिया गया।

20 जून, 1963 ई. में बिहार के मुख्यमंत्री विनोदानंद झा की पहल पर झारखण्ड पार्टी को कांग्रेस में विलय कर दिया। विनोदानंद झा की सरकार में जयपाल सिंह मुंडा सामुदायिक विकास विभाग के मंत्री बने। परंतु एक महीने बाद ही उन्होनें इस्तीफा दे दिया। (जयपाल सिंह मुण्डा की पत्नी जहाँआरा इंदिरा गाँधी की मंत्रिपरिषद् में परिवहन एवं विमानन विभाग की उपमंत्री थीं। ) 30 मई, 1969 को जयपाल सिंह मुण्डा ने झारखण्ड पार्टी को पुनर्जीवित करने के मकसद से कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया।

छोटानागपुर संयुक्त संघ (1954 ई.) का गठन

छोटानागपुर संयुक्त संघ का गठन 7 फरवरी, 1954 को किया गया। जिसके प्रथम अध्यक्ष सुखदेव सिंह थे। बाद में राम नारायण सिंह को इस संगठन का अध्यक्ष बनाया गया। राम नारायण सिंह को ‘शेर-ए -छोटानागपुर’ भी कहा जाता है। कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन- 1940 के दौरान महात्मा गांधी ने इन्हें ‘छोटानागपुर केसरी’ की उपाधि दी थी। छोटानागपुर संयुक्त संघ के गठन से पहले 11 नवंबर, 1953 को लोहरदगा में ‘छोटानागपुर संयुक्त मोर्चा‘ की एक सभा का आयोजन किया गया था। परंतु 10 नवंबर, 1953 को ही इसके प्रमुख नेता राम नारायण खलखो, सत्यदेव साहु और मधुसूदन अग्रवाल के साथ साथ और भी कई लोगों को सुरक्षा कारणों के लेकर गिरफ्तार कर लिया।

छोटानागपुर संयुक्त संघ द्वारा 7 अप्रैल, 1954 को ‘छोटानागपुर सेपरेशन : “दि वनली सॉल्यूशन’ नामक” 36 पन्नों की एक पुस्तिका का प्रकाशन किया, जिसमें अलग राज्य के गठन का समर्थन किया गया था।

बिरसा सेवा दल (1965 ई.) का गठन

साल 1965 ई. में आदिवासियों के आंदोलन को मुखरता प्रदान करने के लिए ललित कुजुर द्वारा बिरसा सेवा दल का गठन किया गया। यह झारखण्ड का पहला छात्र संगठन था। जिसका गठन झारखण्ड पार्टी से अलग करके किया गया था।

अखिल भारतीय झारखण्ड पार्टी (1967 ई.), और झारखण्ड पार्टी (1969 ई.) का गठन

साल 1967 में इस आंदोलन को गति देने के लिए बागुन सुम्ब्रई द्वारा अखिल भारतीय झारखण्ड पार्टी का गठन किया गया। साल 1969 में अखिल भारतीय झारखण्ड पार्टी का विभाजन हुआ, और इससे टूटकर ‘झारखण्ड पार्टी‘ नामक एक अलग पार्टी का गठन हुआ। इस पार्टी का गठन साल 1969 में अखिल भारतीय झारखण्ड पार्टी से टूटकर हुआ। इस पार्टी के प्रथम अध्यक्ष एन. ई. होरो बने।

हुल झारखण्ड पार्टी (1969 ई.) का गठन

साल 1969 में हुल झारखण्ड पार्टी का गठन जस्टिन रिचर्ड ने किया। इसे ‘क्रांतिकारी झारखण्ड पार्टी‘ भी कहा जाता है। यह पार्टी संथाल परगना क्षेत्र में सक्रिय थी। साल 1970 में इस पार्टी का विभाजन कर दिया गया।

सोनोत (शद्ध) संथाल समाज (1970 ई.) का गठन

सोनोत संथाल समाज की स्थापना साल 1970 ई. में शिबू सोरेन द्वारा की गयी थी। सोनोत संथाल समाज का गठन संथाल जनजाति के सामाजिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक मूल्यों को संरक्षित करने के उद्देश्य से किया गया था। संथाल जनजाति भारत के झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम जैसे राज्यों में प्रमुख रूप से निवास करती है।

सोनोत संथाल समाज का गठन

सोनोत संथाल समाज का गठन संथाल जनजाति के सामाजिक संगठन को मजबूती देने के लिए किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य समाज में परंपराओं, रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखना था। यह समाज संथालों के धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक जीवन को संतुलित करने में सहायक होता है।

संथाल समाज की संरचना

संथाल समाज एक सुव्यवस्थित सामाजिक ढांचे के तहत कार्य करता है, जिसमें निम्नलिखित पदाधिकारी होते हैं:

  1. मांझी हाड़ाम (मुखिया/ग्राम प्रधान): गांव के प्रमुख, जो सामाजिक मामलों का निर्णय लेते हैं।
  2. जोग मांझी: कानून-व्यवस्था और समाज में अनुशासन बनाए रखने की जिम्मेदारी संभालते हैं।
  3. पाराणिक (पुरोहित): धार्मिक अनुष्ठान और पूजा-पाठ का कार्य करते हैं।
  4. गोड़ेट: सूचना देने और संदेशवाहक का कार्य करते हैं।
  5. नायक: विवाह, संस्कार और मृत्यु से जुड़े कार्यों का संचालन करते हैं।

सोनोत संथाल समाज का महत्व

  • यह समाज संथाल जनजाति की सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने का कार्य करता है।
  • सामाजिक एकता और अनुशासन बनाए रखने के लिए समाज के नियम-कानून बनाए गए हैं।
  • विवाह, जन्म, मृत्यु और अन्य सामाजिक कार्यों के आयोजन में सोनोत संथाल समाज महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

संथाल विद्रोह और सोनोत संथाल समाज

संथाल समाज का ऐतिहासिक महत्व तब अधिक बढ़ा जब 1855 के संथाल विद्रोह में समाज के नेताओं ने अंग्रेजों के शोषण और जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई थी। सोनोत संथाल समाज संथाल जनजाति की परंपराओं, संस्कृति और सामाजिक मूल्यों को संरक्षित करने का एक सशक्त संगठन है, जो उनकी पहचान को जीवंत बनाए रखता है।

झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (1973 ई.) का गठन: –

4 फरवरी, 1973 को विनोद बिहारी महतो तथा शिबू सोरेन के नेतृत्व में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (JMM) पार्टी का गठन धनबाद के गोल्फ मैदान किया गया। विनोद बिहारी महतो को इस संगठन का अध्यक्ष तथा शिबू सोरेन को इसका महासचिव बनाया गया। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के गठन में ए. के. राय का महत्वपूर्ण योगदान था। झामुमों के गठन से पहले विनोद बिहारी महतो ने शिवाजी समाज साल 1969 में गठन किया था। शिबू सोरेन ने सोनोत संथाल समाज 1970 में स्थापना की और ए. के. राय ने मार्क्सवादी समन्वय समिति 1971 में गठन किया था। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा द्वारा अलग झारखण्ड राज्य निर्माण के लिए संघर्ष, महाजनी प्रथा के खिलाफ, विस्थापितों के पुनर्वास जैसे आंदोलन करने का लक्ष्य बनाया।

साल 1978 में शिबू सोरेन और ए. के. राय ने झारखण्ड के समर्थन में शक्ति प्रदर्शन के लिए पटना में आदिवासियों का एक जुलूस निकाला। 6 – 7 मईं, 1978 को राँची में झारखण्ड क्षेत्रीय बुद्विजीवी सम्मेलन की गोष्ठी का आयोजन किया। जिसमें शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो, डॉ. निर्मल मिंज, डॉ. रामदयाल मुण्डा समेत कई लोगों ने हिस्सा लिया। साल 1978 में झामुमों द्वारा वन कानून के विरोध में जंगल काटो अभियान का संचालन किया। रांची के काग्रेसी नेता ज्ञानरंजन की पहल पर साल 1980 का विहार विधानसभा चुनाव में झामुमों ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया। जिसमें झामुमो ने 13 सीटें जीती।

ऑल झारखण्ड स्टूडेन्ट्स एसोसिएशन (1986 ई.) का गठन: –

22 जून, 1986 को झामुमो के निर्मल महतो एवं शिबू सोरेन के नेतृत्व में जमशेद्पुर में ऑल झारखण्ड स्ट्डेन्ट्स एसोसिएशन (आजसू) नामक संगठन की स्थापना की हुई। जिसमे सूर्यसिंह बेसरा ने ‘खून के बदले खुन’ की रणनीति की घोषणा की। आजसू का गठन असम के आसू की तज पर किया गया था। आजसू पार्टी के प्रथम अध्यक्ष प्रभाकर तिर्की को बनाया गया। इस पार्टी के प्रथम महासचिव सूर्यसिंह बेसरा जी को बनाया गया। इस पार्टी का गठन झारखण्ड मुक्ति मोचों के देखरेख में हुआ। साल 1987 ई. में आजसू पार्टी ने खुद को झामुमों से अलग कर लिया। साल 1991 में आजसू के सहयोगी पार्टी के रूप में ‘झारखण्ड पीपुल्स पाटीं’ का गठन किया गया था।

झारखण्ड समन्वय समिति (1987 ई.) का गठन: –

अलग झारखण्ड का समर्थन करने वाले 53 दलों को आपस में एक करने के उद्वेश्य से 11-13 सितम्बर, 1987 को रामगढ़ में एक संयुक्त सम्मेलन का आयोजन करवाया गया। इसी सम्मेलन के दौरान ‘झारखण्ड समन्वय समिति’ (जेसीसी) का गठन किया गया। डॉ० बिशेश्वर प्रसाद केसरी (बी, पी, केसरी ) को इस समिति का संयोजक मनोनीत किया गया। 10 दिसम्बर, 1987 में झारखण्ड समन्वय समिति ने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण को बिहार, प० बंगाल, उड़ीसा तथा मध्य प्रदेश के 21 जिलों को मिलाकर झारखण्ड राज्य के निर्माण सहित 23 सूत्री एक मांगपत्र सौपा गया।

झारखण्ड विषयक समिति (1989 ई.) का गठन –

केन्द्र सरकार द्वारा 23 अगस्त, 1989 को 24 सदस्यीय झारखण्ड विषयक समिति का गठन किया गया। जिसका संयोजक बी. एस. ल लाली (केनद्रीय गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव) को बनाया गया। इस समिति के सदस्यों में केन्द्र और बिहार सरकार के 9 अधिकारी तथा झारखण्ड आंदोलन से जुड़े 14 प्रतिनिधि को शामिल किया गया था। इस समिति द्वारा ‘झारखण्ड क्षेत्र विकास परिषद्’ के गठन की सिफारिश की गई।

झारखण्ड क्षेत्र स्वशासी परिषद् (1995 ई.) का गठन –

झारखण्ड क्षेत्र स्वशासी परिषद् के गठन से पहले 20 दिसंबर, 1994 को बिहार विधानमंडल के दोनों सदनो में ‘ झारखण्ड क्षेत्र स्वशासी परिषद विधेयक’ पारित किया गया। 7 अगस्त, 1995 की झारखण्ड क्षेत्र स्वशासी परिषद ((JAAC – जैक) के गठन की राजकीय अधिसूचना जारी की गई। तथा 9 अगस्त, 1995 को औपचारिक रूप से इसका गठन किया गया। शिबू सोरेन को जैक का अध्यक्ष तथा सूरज मंडल को इस परिषद् का उपाध्यक्ष बनाया गया। झारखण्ड क्षेत्र स्वायत्त परिषद् का गठन संथाल परगना तथा छोटानागपुर क्षेत्र के 18 जिलों को मिलाकर किया था।

राज्य गठन का अंतिम चरण : –

  • 22 जुलाई साल 1997 को बिहार विधानसभा द्वारा अलग झारखण्ड राज्य गठन के लिए संकल्प पारित कर उसे केन्द्र सरकार को भेजा गया। 1998 में केन्द्र सरकार ने बिहार विधानसभा द्वारा पारित संकल्प के आधार पर वनांचल राज्य से संबंधित बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक तैयार कर उसकी स्वीकृति के लिए बिहार सरकार को भेजा गया। जिसे बिहार विधानसभा ने अस्वीकार कर दिया। 25 अप्रैल, 2000 को बिहार सरकार द्वारा अलग झारखण्ड राज्य के लिए बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक, 2000 को स्वीकृति प्रदान की गई। 2 अगस्त, 2000 को लोकसभा तथा 11 अगस्त, 2000 को राज्यसभा द्वारा बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक को पारित कर दिया गया।
  • 25 अगस्त, 2000 को राष्ट्रपति के. अर, नारायणन ने बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक, 2000 पर हस्ताक्षर कर उसे अपनी स्वीकृति प्रदान की। 15 नवंबर, 2000 को बिहार के 18 जिलों को मिलकर (बिरसा मुण्डा के जन्मदिवस के अवसर पर) भारत देश के 28वे राज्य के रूप में बिहार से अलग करके झारखण्ड राज्य का दर्जा मिला।

कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

  • झारखण्ड पूरे बिहार का 46 प्रतिशत भूभाग से बना है। राज्य गठन के समय बिहार राज्य की मुख्यमंत्री राबड़ी देवी थीं।
  • साल 1928 ई. में साइमन कमीशन द्वारा झारखण्ड को अलग राज्य बनाने की अनुशंसा की गई थी। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, वर्ष 1929 में साइमन कमीशन द्वारा अलग झारखण्ड राज्य के गठन के लिए एक ज्ञापन प्रस्तुत किया गया था।
  • झारखण्ड राज्य गठन के समय भारत के राष्ट्रपति श्री के. आर. नारायणन थे। राज्य गठन के समय केन्द्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार थी। तथा भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थी।
  • धनबाद के कोयला क्षेत्र में ए, के, राय (अरूण कुमार राय) ने श्रमिक संघ आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे।
  • 1968 ई. में कार्तिक उराँव द्वारा अखिल भारतीय विकास परिषद् का गठन किया गया।
  • 1971 ई. में मार्क्सवादी को-आर्डिनेशन कमेटी द्वारा अलग राज्य की मांग रखी गयी थी। इस कमिटी के अध्यक्ष ए. के. राय थे।
  • 1988 ई. में भारतीय जनता पार्टी द्वारा वनांचल (वर्तमान झारखण्ड) प्रदेश की मांग की गयी थी।

झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन और प्रमुख संगठन के संस्थापक , झारखंड राज्य आंदोलन के संस्थापक कौन थे?

संगठन का नामस्थापना वर्षसंस्थापक/अन्य
क्रिश्चियन स्टूडेंट्स आगेनाइजेशन1912जे. बार्थोलमन
छोटानागपुर उन्नति समाज1915जुएल लकड़ा, पाल दयाल, बंदीराम उराँव व ठेबले उराँव
किसान सभा1930ठेबले उराँव
छोटनागपुर कथोलिक सभा1933बोनिफेस लकड़ा
छोटानागपुर -संथाल परगना आदिवासी महासभा1938थियोडोर सुरीन
आदिवासी महासभा1939छोटानागपुर-संथाल परगना आदिवासी महासभा का नाम परिवर्तित किया गया
यूनाइटेड झारखण्ड पार्टी1948जस्टिन रिचर्ड एवं जयपाल सिंह
झारखण्ड पार्टी1950जयपाल सिंह ( 1963 में कांग्रेस में विलय)
छोटानागपुर संयुक्त संघ1954सुखदेव महतो
बिरसा सेवा दल1965ललित कुजूर
अखिल भारतीय झारखण्ड पाटी1967बागुन सुम्ब्रई
झारखण्ड पार्टी1969एन. ई. होरो (अखिल भारतीय झाखण्ड पार्टी से अलग होकर निर्मित)
अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद्1968कार्तिक उराँव
हुल झारखण्ड पार्टी1969जस्टिन रिचर्ड
शिवाजी समाज1969विनोद बिहारी महतो
सोनोत संथाल समाज1970शिबू सोरेन
माक्सवादी समन्वय समिति1971ए, के, राय
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (झामुमो)1973विनोद बिहारी महतो व शिबू सोरेन
ऑल झारखण्ड स्टूडेन्ट्स यूनियन (आजसू)1986निर्मल महतो / शिब् सोरेन
झारखण्ड समन्वयक समिति198753 संगठनों का संयुक्त संगठन
झारखण्ड विषयक सरमिति1989भारत सरकार द्वारा गठित
झारखण्ड स्वशासी परिषद्1995बिहार सरकार द्वारा गठित

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Dipu Sahani

I live in Jharia area of ​​Dhanbad, I have studied till Intermediate only after that due to bad financial condition of home I started working, and today I work and write post together in free time............