झारखंड का परिचय | Jharkhand ka parichay

झारखंड का परिचय

झारखंड का परिचय – झारखंड के बारे में हर झरखंडी को अच्छे से पता होना चाहिए, खास कर के आज के वक्त में शिक्षा होना जरूरी है। झारखण्ड बहुत ही हरा भरा है चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली है। कुछ ही जगहे हैं जहाँ पर आपको खाई देखने को मिलेगी, कारण कि वहां से कोयला निकालने का काम चल रहा है। और ऐसे बहुत से जगहे है जहाँ से हर दिन बहुतायत मात्रा में कोयला निकाला जा रहा है। इसके बावजूद भी देखा जाये तो झारखण्ड इतना हरा भरा है इतना मनमोहक है जिसका कोई जवाब ही नहीं। झारखण्ड का सामान्य अर्थ झाड़ों का प्रदेश होता है। ऐतरेय ब्राह्मण में इसे ‘पुण्ड्र’ नाम से वर्णन किया गया है।

तो बात करें झारखण्ड की इतिहास कि तो झारखण्ड का इतिहास भी बहुत पुराना है। तो आज हमलोग शुरू में कुछ बेसिक जानकारी जानेंगे उसके बाद इतिहास की बात शुरू करेंगे। झारखंड से अंग्रेजों को भगाने के लिए कई सुर वीर क्रांति वीर आज भी इतिहास के पन्नों पर जिन्दा मिल जायेंगे। जिसने झारखण्ड से अंग्रेजों को भागने पर मजबूर कर दिया। उनमे अनगिनत नाम शामिल है- जैसे बिरसा मुंडा, सिद्धू-कान्हू, तिलका मांझी, वीर तेलंगा खड़िया, नीलांबर-पीतांबर आदि और कई नाम है।जिसने डटकर जेल जाने के बाद भी और जेल से निकलने के बाद अंग्रेजों से लड़ा और उसे झारखण्ड से मार भगाया।

बिहार से झारखंड 15 नवंबर 2000 को विभाजन हुआ जिसके पश्चात झारखंड भारत देश का 28वां राज्य बना। उसके बाद झारखंड विभाजन के बाद कुछ जिले बने यानि कई इलाके को अलग कर जिले में तब्दील किया। झारखंड विभाजन के समय झारखंड में 18 जिले थे, लेकिन बाद में ये बढ़कर 24 हो गए। जिसके नाम निम्नलिखित है-

झारखंड विभाजन के बाद बने नए जिलों के नाम – झारखंड का परिचय

  • 19वां जिला लातेहार बना जो पहले पलामू में शामिल था जिसको 3 अप्रैल 2001 को अलग किया गया।
  • 20वां जिला जामताड़ा बना जो पहले दुमका में मिला हुआ था जो 26 अप्रैल 2001 को दुमका से अलग हुआ।
  • 21वां जिला सिमडेगा बना ज गुमला में सम्मिलित था जो 30 अप्रैल 2001 को विभाजित हुआ।
  • 22वां सरायकेला खरसावाँ जिला बना जो पहले पश्चिमी सिंहभूम में शामिल था जो 30 अप्रैल 2001 को अलग हुआ।
  • 23वां जिला खूंटी बना जो पहले रांची में शामिल था जिसे 12 सितंबर 2007 को अलग किया गया।
  • 24वां जिला हजारीबाग से काटकर रामगढ़ को बनाया गया जिसे 12 सितंबर 2007 को अलग किया गया।

झारखंड का परिचय

झारखंड की स्थापना/गठन15 नवंबर 2000 (28वें राज्य के रूप में)
क्षेत्रफल79,714 वर्ग किलोमीटर (15 वां स्थान देश में) भारतीय सर्वेक्षण रिपोर्ट 2019 के अनुसार 79,716 वर्ग किमी.)
देश के कुल क्षेत्रफल का प्रतिशत2.42 %
ग्रामीण क्षेत्रफल77,922 वर्ग किलोमीटर (97.75)
शहरी क्षेत्रफल1,792 वर्ग किलोमीटर (2.25)
राजधानीरांची
उपराजधानीदुमका (प्रस्तावित – मेदिनीनगर, चाईबासा, गिरीडीह)
राज्य का विस्तारउत्तर से दक्षिण 380 किलोमीटर एवं पूर्व से पश्चिम 463 किलोमीटर
झारखंड से सटे अन्य राज्यउत्तर में बिहार, दक्षिण में उड़ीसा, पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में छतीसगढ़, और पश्चिम उत्तर में उत्तर प्रदेश
झारखंड के राज्यपालरमेश बैस (10 वें राज्यपाल) (14 जुलाई 2021 से अब तक)
मुख्यमंत्रीहेमंत सोरेन ( 11वें मुख्यमंत्री) (29 दिसम्बर 2019 से अब तक) ( अभी तक 6 व्यक्ति मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए)
विधानसभा अध्यक्षरवींद्र नाथ महतो (कार्यवाहक सहित 11वें अध्यक्ष )
राज्य में पहली बार राष्ट्रपति शासन19 जनवरी 2009
नेता प्रतिपक्षबाबू लाल मरांडी (भाजपा पार्टी से)
उच्च न्यायालयरांची (देश का 21वां उच्च न्यायालय )
मुख्य न्यायाधीशन्या. डॉ. रवि रंजन ( 13वें मुख्य न्यायाधीश )
विधानसभा सीट82 (निर्वाचित – 81 , मनोनीत – 1)
राज्यसभा सीट06
प्रमंडल05
प्रखण्ड263 (झरिया प्रखण्ड का धनबाद नगर निगम में विलय के बाद – झारखंड एकोनॉमिक सर्वे 2020-21)
अधिसूचित प्रखण्ड112
सर्वाधिक प्रखण्ड वाले जिलेपलामू (21), गढ़वा (20), रांची (18)
अनुमंडल45 (राज्य निर्माण के समय 33 अनुमंडल थे)
जिला24 (राज्य निर्माण के समय 18 जिले थे)
सर्वाधिक जिला वाला प्रमंडलउत्तरी छोटानागपुर
सबसे कम जिला वाला प्रमंडलपलामू और कोल्हान (03)
झारखंड गठन के बाद निर्मित जिला06 (रामगढ़, खूंटी, सिमडेगा, जामताड़ा, लातेहार, सरायकेला खरसावाँ)
जिला परिषद24
झारखंड में कुल गाँव32,620
शहरों की संख्या228
सबसे बड़ा शहरजमशेदपुर
प्रमुख औद्योगिक नगरधनबाद, बोकारो, जमशेदपुर, हजारीबाग
वार्ड1400
ग्राम पंचायत4403 (झारखंड एकोनॉमिक सर्वे 2020-21))
अधिसूचित पंचायत2071
पंचायत समिति212
नगर निगम09 (धनबाद, रांची, देवघर, चास, हजारीबाग, गिरीडीह, मेदिनीनगर, आदित्यपुर, मानगो)
रांची नगर निगम की स्थापना15 सितंबर 1979
नगर परिषद20 ( 31 दिसम्बर 2020 को गोमिया नगर परिषद के भंग होने के बाद)
नगर पंचायत20
अधिसूचित क्षेत्र समिति01 ( जमशेदपुर) झारखंड एकोनॉमिक सर्वे 2020-21)
छावनी बोर्ड (Cantonment Board)01 (रामगढ़)
झारखंड पुलिस का ध्येय वाक्यसेवा ही लक्ष्य
राज्य में पुलिस थानों कि संख्या427
डाकघरों की संख्या3097
1 से 10 लाख जनसंख्या वाले नगरीय जिले10 ( रामगढ़, बोकारो, देवघर, हजारीबाग, पालमू, गिरीडीह, साहेबगंज, सरायकेला खरसावाँ, कोडरमा, पश्चिमी सिंहभूम)
महानगरों की संख्या03 (रांची, धनबाद, जमशेदपुर)
राष्ट्रीय राजमार्ग3367 किमी. (झारखंड एकोनॉमिक सर्वे 2020-21))
राजकीय राजमार्ग1232 किमी. (झारखंड एकोनॉमिक सर्वे 2020-21))
विश्वविद्यालय32 (झारखंड एकोनॉमिक सर्वे 2020-21))
पहली राजकीय भाषाहिन्दी
अन्य बोली जाने वाली राजकीय भाषाखोरठा, उड़िया, बांग्ला, उर्दू, संथाली, मुण्डारी, हो, खड़िया, कुड़ुख, कुरमाली, पंचपरगरिया, नगपुरी, मगही, भोजपुरी, मैथिली, अंगिका
सबसे बड़ा संसदीय क्षेत्रपश्चिमी सिंहभूम
सबसे छोटा संसदीय क्षेत्रचतरा
अनुसूचित जनजाति32
आदिम जनजाति08
राज्य में केन्द्रीय कारागृह की संख्या (5)बिरसा मुंडा केन्द्रीय कारागृह,
दुमका कारागृह,
जय प्रकाश हजारीबाग कारागृह,
पलामू मेदिनीनगर कारागृह,
घागीडीह कारागृह जमशेदपुर

झारखंड का परिचय – झारखण्ड की स्थापना कब हुई?

झारखण्ड 15 नवम्बर साल 2000 को अस्तित्व में आया इससे पहले झारखण्ड बिहार का हिस्सा हुआ करता था। और बिहार ही कहलाता था, 15 नवम्बर  2000 को बिहार से अलग होने के बाद अलग झारखण्ड राज्य बना, झारखण्ड राज्य अलग होने के बाद झारखण्ड के पहले मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी जी बनते हैं। और पहला राज्यपाल श्री प्रभात कुमार जी बनते हैं। अगर देखा जाये तो झारखण्ड बिहार से अलग होने का मुख्य कारण झारखण्ड का खनिज संपदा थी। जिसकी मात्रा का अनुमान लगाना मुश्किल है, अगर झारखण्ड में सबसे ज्यादा खनिज संपदा देखा जाये तो वह है कोयला। एक तरह से देखा जाये तो झारखण्ड बिहार से अलग होकर बहुत ही अच्छा हुआ क्योंकि बिहार झारखण्ड जब मिला हुआ था। तब वह क्षेत्र बहुत बड़ा हुआ करता था।

जिसे कण्ट्रोल कर पाना किसी के लिए भी मुश्किल था, इसलिए झारखण्ड का बिहार से अलग होना बहुत जरुरी था।

झारखंड का राजकीय प्रतीक का इतिहास – झारखंड का परिचय

  • झारखंड का राजकीय वृक्ष साल है।
  • झारखंड का राजकीय पशु हाथी है।
  • झारखंड का राजकीय पुष्प पलाश है।
  • झारखंड का राजकीय कोयल है।
  • 14 अगस्त 2020 को रांची आर्यभट्ट सभागार में झारखंड राज्य के नए राजचिन्ह का अनावरण किया। तथा यह प्रतीक चिन्ह 15 अगस्त 2020 से प्रभावी हुआ।
  • प्रतीक चिन्ह का विन्यास चक्राकार/वृत्ताकार है जो राज्य की प्रगति का प्रतीक है।
  • प्रतीक चिन्ह में बताकर खंड में हरा रंग का प्रयोग किया गया है जो झारखंड के हरी भरी धरती एवं वनसंपदा को दर्शाती है।
  • सबसे ऊपर के वृत्ताकार खंड के बीच में हिंदी में झारखंड सरकार तथा अंग्रेजी में गवर्नमेंट ऑफ झारखंड लिखा मिलेगा।
  • दूसरे वृत्ताकार खंड के बीच 24 हाथी को अंकित किया गया है हातिम राज्य के ऐश्वर्य का प्रतीक होने के साथ-साथ राज्य के प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों एवं समृद्धि को दर्शाता है।
  • तीसरे वृत्ताकार खंड के बीच 24 पलाश के फूल को दर्शाया गया है। पलाश का फूल राज्य के अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य को दर्शाता है।
  • चौथी वृत्ताकार खंड के बीच सौर चित्रकारी के 48 नर्तकों को दर्शाया गया है। सौर चित्रकारी जनजातियों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती है।
  • अंतिम चक्र में 60 सफेद वृत्त का प्रयोग किया गया है।
  • राजचिन्ह के केंद्रीय भाग में राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ को दिखाया गया है। अशोक स्तंभ भारत के उत्तम सहकारी संघवाद इसमें झारखंड की सहभागिता एवं अद्वितीय भूमिका को दर्शाती है।

झारखण्ड का राजनितिक इतिहास

15 नवंबर 2000 को झारखण्ड भारत का 28 वां राज बना, झारखंड राज्य गठन के लिए बिहार पुनर्गठन विधेयक को लोकसभा ने 2 अगस्त 2000 को स्वीकृति दी। राज्यसभा ने 11 अगस्त 2000 को अपनी स्वीकृति दी, इसे अधिनियम के रूप दिया। बिहार से झारखंड के विभाजित होने के बाद 18 जिलों को मिलाकर झारखण्ड राज्य बनाया गया। झारखण्ड की विधानसभा में कुल 81 सदस्य हैं, जबकि प्रदेश से लोकसभा सीटों की संख्या 14 व राज्यसभा की सीटों की संख्या 6 है। झारखंड राज्य के प्रथम राज्यपाल श्री प्रभात कुमार ने प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में बाबु लाल मरांडी को पद एवं गोपयिता की शपथ दिलाई। झारखण्ड उच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश विनोद कुमार गुप्त ने राज्यपाल को शपथ दिलाई।

यूँ तो झारखंड में आजादी से पहले भी कई आंदोलन हो चुके थे औपनिवेशिक काल के दौरान आंदोलन मुख्यतः खेत और जमीन को लेकर होती थी। और आज भी होती है, 19 वीं शताब्दी के अंतिम दशक में जंगल से संबंधित समस्याओं को लेकर अकसर संघर्ष चलता रहता था। और आज भी चल रही है। 20वीं सदी में ये आन्दोलन राजनीतिक रूप लिया जब पृथक झारखण्ड का विचार सर्वप्रथम 1938 ईस्वी में जयपाल सिंह ने एक आदिवासी महासभा में व्यक्त की थी। 1950 ईस्वी में महासभा के स्थान पर जयपाल सिंह के नेतृत्व में झारखण्ड की स्थापना हुई और झारखण्ड आंदोलन की बागडोर इस पार्टी ने संभाल ली थी। 1952 के चुनाव में झारखण्ड पार्टी (चुनाव चिन्ह मुर्गा) ने 330 सदस्य बिहार विधानसभा में 32 स्थान प्राप्त कर एक सशक्त विपक्षी दल के रूप में सामने आई। 

बाद के चुनावों में इसकी लोकप्रियता में काफी कमी आई एवं इसके नेता जयपाल सिंह का झुकाव कांग्रेस की ओर हो रहा था, 20 जून 1963 को झारखण्ड पार्टी का विलय कांग्रेस में हो गया था।

झारखण्ड का प्राचीन इतिहास – झारखंड का परिचय

झारखण्ड पार्टी के कांग्रेस में विलय से कुछ क्षण के लिए अलग झारखण्ड राज्य की मांग को कागज के टुकड़े से ढक दिया गया। राज्य पुनर्गठन समिति ने भी 1954 से लेकर 1955 में पृथक झारखण्ड राज्य की मांग को अस्वीकार कर दिया गया था, किंतु अंदर ही अंदर अलग झारखण्ड राज्य की आग सुलगती रही। मृत प्राय झारखंड आंदोलन वर्ष 1968 में पुनः लोकप्रिय हुआ, अबकी बार इसकी बागडोर दल के हाथों में आ गई इस दल ने आदिवासियों की भूमि एवं अन्य संपत्ति हड़पने वालों के विरुद्ध आवाज उठाई, बिरसा सेवा दल के सशक्त अभियान से सरकार ने एक अध्यादेश के द्वारा 30 वर्षों के अंदर भूमि हस्तांतरण के मामले को स्थगित कर दिया। इस प्रकार इस अध्यादेश द्वारा आदिवासियों को उनकी हड़पी हुई जमीन पुनः प्राप्त हो गई।

1973 में झारखण्ड आंदोलन नेता शिबू सोरेन के नेतृत्व में पुनः आरंभ हुआ, शिबू सोरेन ने आदिवासियों के शोषण, पुलिस, अत्याचार, अन्याय, श्रम दोहन के विरुद्ध आवाज उठाई, शिबू सोरेन को कांग्रेसी नेता से घनिष्टता हो गई और श्रीमती इंदिरा गांधी के बीस सूत्री कार्यक्रम का समर्थन किया। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा पुनः बिखरने लगा, नेताओं की व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्धि की भावना ने झारखण्ड आंदोलन को काफी धूमिल कर दिया। 1980 में झारखण्ड आंदोलन पुनः उग्र रूप धारण कर लिया जब इसका नेतृत्व डॉ रामदयाल मुंडा का हाथों में गया। 9 अगस्त 1995 को रांची में झारखण्ड क्षेत्र स्वायत्तशासी परिषद का गठन हुआ।

इस परिषद में बिहार के 18 जिलों को सम्मिलित किया गया एवं नए वनांचल राज्य के गठन संबंधी विवाद के परिप्रेक्ष्य में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा सोरेन द्वारा राबड़ी देवी सरकार से वापसी के पश्चात राज्य सरकार ने 17 दिसंबर 1998 को झारखण्ड क्षेत्र स्वायत्त परिषद जैक ( JAC) को भंग कर दिया। जैक ( JAC) के गठन के पश्चात 7 बार इसके कार्यकाल को बढ़ाया गया, इसी बीच केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार सत्तासीन हुई जिसके चुनावों एजेंडो में अलग वनांचल राज्य के गठन का प्रावधान था और उसने अपेन चुनाव पूर्व किए गए वादे को राष्ट्रीय एजेंडे में रखकर पृथक राज्य के गठन का मार्ग प्रशस्त कर दिया।  

झारखण्ड की भौगोलिक परिस्तिथियाँ 

झारखण्ड राज्य में प्राकृतिक संसाधनों की इतनी मात्रा है  की लगता है कभी खत्म ही नहीं होगा। यह क्षेत्र खनिज संसाधन की दृष्टि से पुरे विश्व प्रसिद्ध है यहां की आदिवासी जनसंख्या अशिक्षित है जो इस क्षेत्र के विकास में सबसे बड़ी बाधा है या क्षेत्र और शिक्षा उग्रवाद उपेक्षा का पर्याय बनकर रह गया है। प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को हिंसा ग्रस्त उपेक्षित इस क्षेत्र की जनता को राहत देने व उसे प्रगति के मार्ग में अग्रसर करने की गंभीर चुनौती मिली थी।  उनकी प्राथमिक सूची में शिक्षा, संचार, मानव संसाधन विकास और बिजली शामिल थी। औद्योगिक विकास के लिए राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार की तत्काल आवश्यकता थी जिससे निजी निवेश को आकर्षित किया जा सके। राज्य की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए निवेश की काफी आवश्यकता थी।

सीमाएँ – उत्तर में बिहार, दक्षिणी में उड़ीसा, पूरब में पश्चिम बंगाल और पश्चिम में उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश।

भौतिक दशाएं – यह क्षेत्र मुख्यतः प्राचीन कठोर सिस्ट ग्रेनाइट चट्टानों से निर्मित भू रचना की दृष्टि से प्रदेश अधिकतर पठारी है जो धारवाड़ युग की चट्टानों से बना है। इस प्रदेश में विभिन्न ऊंचाई वाले अनेको पठार है, जिसकी  औसत ऊंचाई 1000 मीटर है झारखण्ड की सबसे ऊंची पहाड़ी पारसनाथ की पहाड़ी है जिसकी उन उंचाई 1366 मीटर है।

झारखंड का परिचय

जलवायु – कर्क रेखा इस प्रदेश के बीच से गुजरती है। इसका अधिकांश भाग उष्णकटिबंधीय में पड़ता है किंतु अपनी ऊंचाई के कारण यहां तापमान कभी ऊंचा नहीं रहता। ग्रीष्म ऋतु के आगमन के साथ तापमान में वृद्धि होने लगती है, मई महीने का औसत तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से 32 डिग्री सेल्सियस तक रहता है, जून के महीने में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के आगमन पर वर्षा ऋतु आरंभ हो जाती है। इस समय न्यून दाब के क्षेत्र पठार के दक्षिण की ओर खिसक जाते हैं तथा पवनें पूरब और दक्षिण-पूरब से चलने लगती है। अधिकतर वर्षा (80%) जून से सितम्बर के बीच होती है। औसत वार्षिक वर्षा की मात्रा 100 सेमी से 150 सेमी होती है। 

राँची में सामान्य वर्षा 150सेमी., हजारीबाग में 134 सेमी. और धनबाद में 130 सेमी. होती है। स्थानीय दृष्टि से वर्षा में आश्चर्यजनक भिन्नता पाई जाती है। नेतरहाट में 1000 सेमी. से अधिक वर्षा होती है। जनवरी में हजारीबाग का औसत तापमान विभिन 16.4° ओर रॉची का 17.3°C रहता है। इस ऋतु में पवनें की दिशा उत्तर-पश्चिम की ओर होती है।

व्रनस्पतियाँ : –  प्रदेश की लगभगं 30% भूमि पर वन है जिसमें अमलतास, सेमल, हरें, खैर, पलास, महुआ, सवाई घास, बास, साल, कत्था, तंदु की पत्ती, ऑवला आदि प्रमुख है।

झारखण्ड में मिट्टी के प्रकार

मिट्टी (Soils) : यह प्रदेश शैलों का प्रदेश है। इन शैलों की रचना तथा इनकी अपक्षय को प्रकृति के फलस्वरूप पठारी मिट्टियों में भौतिक रासायनिक और रचना प्रक्रिया के अंतर के साथ काफी भिन्नता पायी जाती है। इस क्षेत्र में निम्न किस्म की मिट्टियाँ पायी जाती है:-

लाल मिट्टी : – नीस और ग्रेनाइट चट्टानों से प्राप्त लाल मिट्टी अधिकांश भागों में पायी। जाती है। इस मिट्टी में साधारणत: नाइट्रोजन, फासफोरस और ह्यूमस की कमी रहती है। लौह खनिज तत्वों की कमी या आधिक्य के अनुसार इस मिट्टी का रंग लाल या पीलापन लिए हुए लालिमायुक्त होता है। छोटा नागपुर में दामोदर घाटी की गोंडवाना चट्टानों का क्षेत्र तथा ज्वालामुखी उद्भव के राजमहल उच्च भूमि को छोड़कर छोटानागपुर में सामान्यत: लाल मिट्टी ही देखने को मिलेगा है। इस प्रदेश की मिट्टियाँ ऊपरी क्षेत्र में पतली तथा कम उपजाऊ होती है किंतु नीचले भाग की मिट्मेंटियाँ गहरी और उपजाऊ होती है। इस मिट्टी में मुख्य्यंत: ज्वार, बाजरा, सरगुजा और कोदो जैसे मोटे अनाज पैदा होती हैं।

इस प्रदेश की मिट्टियाँ ऊपरी क्षेत्र में पतली तथा कम उपजाऊ होती है किंतु नीचले भाग की मिट्मेंटियाँ गहरी और उपजाऊ होती है। इस मिट्टी में मुख्य्यंत: ज्वार, बाजरा, सरगुजा और कोदो जैसे मोटे अनाज पैदा होती हैं।

2. अभ्रकमूल की लाल मिट्टी : –  अभ्रक की पट्टी कोडरमा, झुमरी तिलैया और बरकागाँव इलाके के चारों ओर फैली हुई है, इस मिट्टी का क्षेत्र है। यह मिट्टी रेतीली होती है जिसमें अभ्रक के छोटे-छोटे कण चमकते हैं। इस मिट्टी में कोदो, कुरथी, सरगुजा की ऊपज होती है।

3. काली मिट्टी: – ज्वालामुखी उद्भाव वाले राजमहल की पहाड़ी क्षेत्र में इस मिट्टी की अधिकता है। इस मिट्टी का निर्माण बैसाल्ट की चट्टानों के विघटन से हुआ है। देखने में काली एवं भूरे रंग की यह मिट्टी अत्यंत उपजाऊ होती है। इस मिट्टी में आर्द्रता बनाये रखने की अत्यधिक क्षमता होती है। काली मिट्टी में लोहा, चूना, मैग्नेशियम , अलोमिना के तत्व यथेष्ट मात्रा मे विद्यमान रहते हैं। इस मिट्टी में चना, मसूर, धान आदि की अच्छी फसल होती है।

4. रेतीली मिट्टी: – दामोदर घाटी में इस मिट्टी की प्रधानता है। इसें मुख्यत: गोंडवाना प्रकार की परतदार चट्टानें हैं जिसके कारण वहाँ की मिट्टी रवादार एवं रेतीली है। मिट्टी का रंग लालिमायुक्त, घूसर तथ पीला है। यहाँ मोटे अनाज की ऊपज होती है।

5. लेटराइट मिट्टी: – इस चट्टान के खनिज तवों में अल्युमीनियम, आयरन आक्साइड और मैगनीज आक्साइड की अधिकता होती है। यह मिट्टी कंकड़ीली और अम्लीय प्रकार की होती है। इस मिट्टी में उर्वरा शक्ति का अभाव रहता है। इसमें अरहर और अरंड की खेती होती है।

6. विषमजातीय मिट्टी: – सिंहभूम क्षेत्र में विषमजातीय मिट्टियाँ हैं जो विभिन्न प्रकार की विभिन्न मूल की चटटानों के अवशेष से निर्मित होती हैं।

कृषि (Agriculture) :  – इस प्रदेश की भूमि पठारी होने के कारण कृषि के लिए अधिक अनुकूल नहीं है, फिर भी लगभग 40% भाग पर खेती की जाती है। कुल जनसंख्या का लगभग 80% खेती पर निर्भर करता है कृषि कार्य सामन्यता पुराने ढंग से की जाती है अतः यह व्यवसायिक न होकर केवल भरण-पोषण के लिए ही की जाने वाली कृषि के रूप में अपनायी जाती है।    खेत घाटियों एवं पठारों के ढ़ालों पर सीढ़ी के आकार के बनाये जाते हैं। यहाँ की मुख्य फसलें चावल, मक्का, गेहँ, सब्जी और तेलहन आदि हैं।

अपवाह (Drainage) :  – इस प्रदेश में अनेक दिशाओं में होकर नदियाँ बहती है। दामोदर, स्वर्णरेखा, बराकर, उत्तरी कोयल, दक्षिणी कोयल आदि नदियों के बेसिन अधिक विस्तृत हैं।अजय, मोर, ब्राह्मणी गुरमाणी आदि नदियाँ राजमहल की पहाड़ियों से निकलकर समानान्तर बढ़ती हुई गंगा के मैदानी भाग में चली जाती है।

इस क्षेत्र के प्रमुख जलप्रपात

  • गौतमगढ़ (36 मी.),
  • घाघरी (42 मी.),
  • सदानीरा(60 मी.),
  • हुंडर (72 मी.),
  • जोहना और दासम (30 मी.),
  • हिरणी काकीलाट (24 मी.),
  • मोतीझार (45 मी.) आदि हैं।

इस प्रदेश की नदियों में जल का बहाव घटता-बढ़ता रहता है। मानसून काल में इनमें नियमित रूप से जल बहता है। किंतु शुष्क ऋतु में प्रायः ये सुख जाती है अधिक वर्षा के कारण नदियों में अचानक भयावह बाढ़े आती है किन्तु कुछ ही समय में पुनः समान्य हो जाता है।

प्रमुख विधुत परियोजनाएँ

  • पतरातू ताप विद्युत संयंत्र ,(हजारीबाग),
  • बोकारो ताप संयंत्र (हजारीबाग),
  • चन्द्रपुरा ताप संयंत्र (हजारीबाग),
  • स्वर्णरेखाजल विद्युत परियोजना आदि प्रमुख है।

खनिज पदार्थः

खनिज सम्पदा की दृष्टि से झारखंड अग्रणी भारतीय राज्यों में से एक है। इसे खनिज पदार्थों का भंडार (Store house of minerals) कहा जाता है। विभिन्न खनिज पदार्थो का  40% से 100% उत्पादन झारखण्ड से ही होता है।    ताँबे के उत्पादन का 98%, एपेराइट का 100%, कियेनाइट का 95%, कोयला, अभ्रक और बाक्साइट का 50% और लौह अयस्क का 40% झारखण्ड प्रदेश से ही प्राप्त होता है देश के कुल कोयला भंडारों का लघभग 80% भाग झारखण्यड में ही मौजूद है।

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ठाणे
ठाणे
2 years ago

झारखण्ड के इतिहास में वीर शहीद सिदो कान्हू भाइयों का कोई वर्णन नहीं है जो एक दुखद बिषय है
शिबू सोरेन के सहयोगी रहे बिनोद बिहारी महतो निर्मल महतो कों लेख में जिक्र नहीं किया जाना दुर्भाग्य पूर्ण

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