वासेपुर को किसने बसाया? अस्तित्व में कैसे आया? वासेपुर का इतिहास क्या है? | History of Wasseypur

वासेपुर की कहानी क्या है? वासेपुर कहां हैं? वासेपुर किस लिए प्रसिद्ध है? वासेपुर का डॉन कौन था?

कुछ साल पहले एक फ़िल्म आई थी Gangs of Wasseypur, इसमें जो लफ़्ज़ वासेपुर है, उसका इतिहास आपमें से बहुत कम लोगों को पता होगा। तो आज हम वासेपुर के इतिहास के बारे में जानेंगे, कि आखिर धनबाद के वासेपुर को किसने बसाया? कैसे अस्तित्व में आया? पहले वासेपुर कैसा था? अब कैसा है? अब यहाँ माहौल कैसा है? आखिर वासेपुर का नाम सुनकर लोग पहले घबरा क्यों जाते थे? तो कुछ पुराने लोग बताते हैं कि असल में वासेपुर की नींव दो सगे भाइयों ने डाली थी, जो रांची से आए थे। जिसका नाम एम. ए. जब्बार और एम. ए. वासे था।

History of Wasseypur

वासेपुर का इतिहास रांची के दो बड़े उद्योगपति एम.ए. जब्बार और एम. ए. वासे से शुरू होती है। वासेपुर की छवि ख़राब करने में फ़िल्मों का बड़ा हाथ रहा है। फिल्मों किसी भी चीज को बढ़ा चढ़ाकर दिखाने की पुरानी प्रवृत्ति है, नहीं दिखाएंगे तो फिर पैसा कैसे कमाएंगे?

वासेपुर का इतिहास : Wasseypur ka itihas

पहले पूरा वासेपुर जंगल हुआ करता था और वहाँ सिर्फ मांझी लोग रहा करता था और अब भी कुछ मांझी लोग वहाँ मौजूद है। मांझी लोगों के नाम से ही एक बहुत पुराना मांझी कुआं भी है, जो वासेपुर के मटकुरिया कॉलोनी रोड में हैं। वहाँ सिर्फ मुस्लिम आबादी नहीं है वहाँ हिन्दू लोग भी रहते हैं। और आज भी बड़े बड़े माड़वारी व्यापारी मेन रोड पर ही रहते हैं। जैसे ही भूली मोड़ पहुंचते हैं वहाँ पर मेन रोड पर ही एक पुरानी हिन्दू मंदिर भी है। साथ में वासेपुर के भट्टा मोहल्ला में भी हिन्दू परिवार रहते हैं और वहाँ पर भी एक बहुत ही पुरानी काली मंदिर है।

ये कहानी है  वासेपुर के दो सबसे बड़े और प्रसिद्ध उद्योगपतियों की जो सगे भाई थे। जो पहले रांची में रहा करते थे, धनबाद के इस इलाके को बसाने वाले दो प्रसिद्ध भाई थे, जिनका नाम एम. ए. वासे और एम. ए. जब्बार था। ये दोनों भाई रांची के प्रसिद्ध वकील सैयद अनवर हुसैन के मौसेरे भाई, और वकील सैयद मोहिउद्दीन अहमद ऊर्फ बन्नू बाबू के भांजे थे। इन दोनों भाईयों ने 1940 की के आसपास में रांची से आकार धनबाद में बस गए थे। शुरू शुरु में इन दोनों भाइयों ने मिलिट्री कैंटीन के कॉन्ट्रैक्ट से अपने व्यापार शुरू किया था।

धीरे धीरे जब व्यापार आगे बढ़ा सफ़लता मिली तो कोयला कंपनियों से बड़े बड़े कॉन्ट्रैक्ट मिलने लगे। जिसके तहत इन्होंने धनबाद भूली में बी. सी. सी. एल. के लिए एक विस्तृत हाउसिंग टाउनशिप का निर्माण किया। साथ ही साथ मैथन डैम की हाउसिंग सोसाइटी के भी निर्माण किया। ये उनके प्रोजेक्ट्स के दो उत्कृष्ट नमूने थे जिस की वजह से उनको ये प्रसिद्धि मिली।

एस.एम. जब्बार भाईयों ने वासेपुर इलाक़े की सारी ज़मीन ख़रीद ली और बाहर से कोयला खदानों और कंपनियों में काम करने के लिए आए मजदूरों में आबंटित कर दिया। इस तरह धीरे धीरे वासेपुर, धनबाद में एक अलग पहचान के साथ उभरा। प्रारंभ में इस एरिया का नाम कुछ दिनों के लिए जब्बार नगर ही था। लेकिन बाद में छोटे भाई ने इस का नाम बदल कर अपने बड़े भाई वासे साहब के नाम पर वासेपुर कर दिया। हालांकि वासेपुर में जब्बार साहब के नाम पर आज भी जब्बार कैंपस मौजूद है। जब्बार साहब की बनवाई हुई जब्बार मस्जिद वासेपुर की अनोखी पहचान है, जो आज भी  मौजूद है।

दोनों भाईयों के पास संपत्ति बहुत थी, इन्होंने वासेपुर में एक आलीशान कोठी भी बनवाई, जो अब भी मौजूद है। समस्त कोठी सेंट्रलाइज्ड एयर कंडीशंड थी। 1963 में एक भाई के पास डॉज, तो दूसरे भाई के पास प्लायमाउथ जैसी गाडियां थीं। जब्बार साहब, वासे साहब,  दोनों भाईयों की पत्नियां जब्बार मस्जिद के समीप क़ब्रिस्तान में दफ़न हैं।

वासेपुर का डॉन कौन था?

असल ज़िंदगी में भी धनबाद (झारखंड) का वासेपुर इलाका कोयला माफ़िया और गैंगवार की वजह से मशहूर रहा है। असल में यहाँ कई बड़े नाम रहे हैं, जिनमें से दो सबसे ज़्यादा चर्चित थे।

  1. शेख शहाबुद्दीन (Shahbuddin / शहाबुद्दीन) – इन्हें वासेपुर का असली डॉन कहा जाता था। ये कोयला कारोबार और इलाके में दबदबे की वजह से जाने जाते थे।
  2. फहीम खान (Faheem Khan) – ये भी वासेपुर के बड़े माफ़िया डॉन माने जाते हैं। इनका गैंग काफी ताकतवर था और इनके ऊपर हत्या, रंगदारी, लूटपाट जैसी कई धाराओं में केस चले।

“वासेपुर का डॉन” कहें तो ज्यादातर लोग फहीम खान का नाम लेते हैं, क्योंकि उन पर ही फिल्म “Gangs of Wasseypur” के किरदार “रामाधीर सिंह और सुल्तान” जैसे रोल ढीले तौर पर आधारित माने जाते हैं।

फहीम खान वासेपुर के एक चर्चित गैंगस्टर थे, जिनकी कहानी अपराध, बदला, और सत्ता की लड़ाई से भरी है। उनकी जिंदगी और वासेपुर की गैंगवार को अनुराग कश्यप की फिल्म *गैंग्स ऑफ वासेपुर* ने व्यापक रूप से लोकप्रिय बनाया, हालांकि फिल्म में कुछ काल्पनिक तत्व भी जोड़े गए हैं। इनके बारे में अच्छे से विस्तार से अगले आर्टिकल में जानेंगे।

Anshuman Choudhary

I live in Jharia area of ​​Dhanbad, I have studied till Intermediate only after that due to bad financial condition of home I started working, and today I work and write post together in free time............