सैम बहादुर का जीवनी | Sam Manekshaw biography in hindi

सैम मानेकशॉ (फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ) का जीवन परिचय : Sam Bahadur Manekshaw Biography

सैम बहादुर, जिनका पूरा नाम सैम होरमुसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ था, भारतीय सेना के पहले फील्ड मार्शल थे। उन्हें भारत के सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानित सैन्य अधिकारियों में गिना जाता है। उनकी वीरता और नेतृत्व क्षमता ने भारतीय सेना को कई महत्वपूर्ण युद्धों में जीत दिलाई, विशेष रूप से 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का जन्म हुआ।

अगर एक सैनिक कहता है की उसे मौत से डर नहीं लगता है, या तो वो झुट बोल रहा है या फिर वो गोरखा है। ऐसे व्यक्ति जिनका नाम आते ही प्रेम और सम्मान आ जाता है। एक ऐसे आर्मी के ऑफिसर जिनके इरादे इतने मजबूत और बुलंद की दुश्मन भी इनके नाम से वाकिफ थे। माइक पसंद नहीं थ, इनको बिना माइक के बोलने वाला आदमी थे, बहुत ही बुलंद आवाज थी। हार्ड्वर्कींग इंटेलिजेंट dedicated कॉन्फिडेंट की वजह से इनको जीवन में बहुत से प्रमोशन मिले। इन्होंने मौत को कई बार मात दी। 27 जून 2008 को 94 साल की उम्र में निमोनियाँ के कारण तमिलनाडु के मिलेट्रि अस्पताल में निधन हो गया। 

40 सालों में 5 बड़े युद्ध लड़े, विश्व युद्ध-2, इंडिया पार्टिशन युद्ध, इंडो चाइना युद्ध, इंडिया पाकिस्तान युद्ध इंडिया east पाकिस्तान युद्ध, बांग्लादेश को जन्म देने वाले सैम मानेकशॉ है। पहले इंडियन आर्मी ऑफिसर जिनको प्रमोट किया गया, 5 स्टार रैंक वाले फील्ड मार्शल, आर्मी की सबसे ऊंची रैंक वाला पोस्ट है। ये चाहते थे की मुझे हर जीवन मिल जाए जो मैं देश को दे दूँ।इनका जो युद्ध प्लानिंग होता था न, वो बहुत ही जबरदस्त और यूनीक होता था। ये अपने आर्मी टीम पे पूरा विश्वास करते थे।

Sam Manekshaw biography in hindi

सैम मानेकशॉ का जन्म, परिवार व प्रारंभिक जीवन

  • पूरा नाम : सैम होरमुसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ
  • जन्म: 3 अप्रैल 1914
  • स्थान: अमृतसर, पंजाब (ब्रिटिश भारत)
  • पिता का नाम : होरमुसजी मानेकशॉ
  • परिवार: पारसी समुदाय से संबंध, उनके पिता एक डॉक्टर थे।
  • माताजी का नाम : हिल्ला मेहता

सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को पंजाब के अमृतसर में एक पारसी परिवार में हुआ। पिता का नाम होरमुसजी मानेकशॉ जो डॉ थे, जो बाद में आर्मी में जॉइन किए। माताजी का नाम हिल्ला  मेहता थी। सैम मानेकशॉ की प्रारंभिक शिक्षा शेरवुड कॉलेज, नैनीताल में हुई। 16-17 साल की उम्र में लंदन जाकर डॉक्टर की पढ़ाई करना चाहते थे और Gynaecologist बनना चाहते थे। लेकिन पिता ने मना कर दिया, उसके बाद दिल्ली चले गए इंडियन मिलेट्रि अकादेमी का परीक्षा दिया 1st रैंक के साथ 2nd लेफ्टिनेंट ब्रिटिश आर्मी के अंदर जो बाद में इंडियन आर्मी बनी।

सैम मानेकशॉ ने 22 अप्रैल 1939 को मुंबई में सिलू बोडे से शादी हुई। इनसे दो बेटियाँ हुई, शेरी और माया (बाद में माजा), जिनका जन्म 1940 और 1945 में हुआ। शेरी ने बाटलीवाला से शादी की, और उनकी एक बेटी है जिसका नाम ब्रांडी है। माया ब्रिटिश एयरवेज में एक परिचारिका के रूप में कार्यरत थी। और उसने पायलट दारूवाला से शादी की।

सैम मानेकशॉ का आर्मी ऑफिसर बनने की कहानी? सैम मानेकशॉ आर्मी में कब शामिल हुए थे?

सैम मानेकशॉ के पिता जो गुजरात के वलसाड में रहा करता थे। इनके पिता होरमुसजी मानेकशॉ के लाहौर में बहुत से दोस्त रहते थे। इसलिए वो लाहौर जाकर डॉक्टरी की प्रैक्टिस करना चाहते थे। इसलिए सन् 1903 में अपनी पत्नी हीराबाई / हिला मेहता के साथ वलसाड छोड़ लाहौर के लिए निकले। लेकिन जब इनकी ट्रेन अमृतसर पहुंची तो इनके पत्नी को लेबर पेन हुआ, जिसके कारण उनको अमृतसर में ही रुकना पड़ा। और यहीं पर स्टेशन मास्टर और अन्य लोगों की मदद से अस्पताल ले जाया गया। जहां पर सैम के बड़े भाई का जन्म हुआ। तो ऐसे हालत में वो कहीं जा नहीं सकते थे, तो कुछ समय के लिए वहीं अमृतसर में ही रुक गए।

और देखते ही देखते सप्ताह महीनों में और महीनों साल में बदल गए, और ये अमृतसर में ही बस गए। और होरमुसजी मानेकशॉ की प्रैक्टिस अमृतसर में ही शुरू हो गई। और प्रैक्टिस अच्छी चल रही थी, और यहीं पर पाँचवे बच्चे के रूप 3 अप्रैल 1914 को सैम मानेकशॉ का जन्म हुआ। और ये वही समय था जब पहला विश्व युद्ध शुरू हुआ था। और उसी समय सैम मानेकशॉ के पिता होरमुसजी मानेकशॉ ने भी ब्रिटिश इंडियन आर्मी के इंडियन मेडिकल सर्विस में कॅप्टन जॉइन किया। और बचपन से ही सैम भी चाहते थे की वो भी अपने पिता की तरह एक डॉ बने। और जब 16-17 साल के हुए और स्कूल की पढ़ाई पूरी कर ली तो वो अपने पिता से लंदन जाकर डॉ की पढ़ाई करने की इच्छा जाहीर की।

सैम मानेकशॉ आर्मी में कब शामिल हुए थे?

तो यहाँ पर उनके पिता ने सैम की इस बात को इनकार कर दिया। क्योंकि उस वक्त उनकी उम्र बहुत कम थी और पहले से ही उनके भाई लंदन में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। उसके बाद सैम ने अमृतसर के ही हिन्दू कॉलेज में दाखिल ले लिया। 1931 में फील्ड मार्शल Philip Chetwode की अध्यक्षता में बनी राष्ट्रीय इंडियन मिलेट्रि कॉलेज कमेटी ने भारत में भी मिलेट्रि अकादेमी की स्थापना करने की बात रखी। जहां इंडियंस को ब्रिटिश इंडियन आर्मी में as a ऑफिसर बनने की ट्रेनिंग दिया जाना था। और स्थापना के बाद entrance exam का संचालन किया गया, उसके बाद सैम मानेकशॉ ने IMA ( इंडियन मिलेट्रि अकादेमी ) देहरादून में के लिए अप्लाइ किया।

और जब 1 अक्टूबर 1932 को जब रिजल्ट आया तो 40 जो सिलेक्ट हुए थे उसमे से सैम मानेकशॉ 6th रैंक पे थे। और भारतीय सेना में शामिल होने वाले पहले बैच (1932) का हिस्सा बने। उसके बाद सैम मानेकशॉ का मिलेट्रि का सफर शुरू हुआ। अगर यहाँ मानकर चले की अगर इनके पिता उस दिन लाहौर चले गए होते और विभाजन के बाद सैम मानेकशॉ भारत न आकार पाकिस्तान चले गए होते क्योंकि वहाँ तो निर्णय उनके पिता लेते। तो क्या होता? क्या भारत देश को इतना महान सुरवीर कमांडर मिल पाता। और अगर उसे पढ़ने के लिए लंदन भेज दिया होता तो क्या होता? 


द्वितीय विश्व युद्ध (1942) में जब सैम मानेकशॉ को 9 गोलियां लगी?

  • द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा मोर्चे पर जापानियों से लड़ते हुए उन्हें गोलियां लगीं, लेकिन वे बच गए और अपनी वीरता के कारण मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित हुए।

दूसरे विश्व युद्ध के समय इनको 9 गोलियां लगी थी, जब ये ब्रिटिश आर्मी में थे। जपानीस सोल्जर से लड़ रहे थे वर्मा में, एक ही सोल्जर ने सैम मानेकशॉ के छाती में 9 गोलियां दाग दी। छाती में गोली लगने के बाद भी वो हंस रहे थे, और डेविड क्राउन ने अपना मिलेटरी क्रॉस उतार के सैम मानेकशॉ को पहना दिया। और ये बोला जिंदा आदमी को पहनाया जाता है। उन्हे लगा की अब ये जिंदा नहीं रह पाएगा। एक उसका बहुत ही करीबी सिपाही था शेर सिंह वो उनको अपने कंधे पर उठा कर आस्ट्रेलियन सर्जन के पास ले गया। इनको बचाना है उनकी हालत देखकर डॉ बोले ये नहीं बच सकता है। उस वक्त जब टेक्नॉलजी उतनी नहीं थी, और वो अस्पताल में नहीं थे।

उन्हे तो लोकल जंगल के मेडिकल कैम्प में ले गया था जहां छोटे मोटे डॉ हुआ करते थे। और मेडिकल के ज्यादा एकूपमेंट भी उस वक्त नहीं होते थे। तो वहाँ पे सर्जन ने उनका इलाज करने से मना कर दिया, क्योंकि उनको 9 गोलियां छाती पे लगी थी जिसे देखकर डॉ को लगा ये ज्यादा देर तक जीवित नहीं रह पाएगा। तो वहाँ पर ऐसे ही सर्जन ने सैम से पूछा क्या हुआ तुझे? सैम हँसे और सैम ने जवाब दिया हुआ तो कुछ नहीं बस गधे ने लात मार दी थी। आस्ट्रेलियन सर्जन सोचा यार ये क्या आदमी है 9 गोली लगने के बाद भी ये मजाक कर रहा है। उसके बाद आस्ट्रेलियन सर्जन इससे बहुत प्रभावित हुए और उनका इलाज शुरू किया और उनकी जान बचा ली।

इनकी सर्जरी के दौरान इनके पेट के अगनाशय का लास्ट हिस्सा निकाल दिया और उसके बाद उनका पेट में टांका लगा दिया आगे। इस सर्जरी के बाद से सैम मानेकशॉ बहुत सी चीज नहीं खा सकते थे। जैसे क्रन्ची सामान, फ्राइड, फाइबर, फैट, रॉ प्रोडक्ट, बीन्स और डायरी, कॉफी, सोडा जैसे कुछ भी नहीं खा सकते थे। और एक बार में एक कटोरी से ज्यादा नहीं खा सकते थे। 

भारत की स्वतंत्रता के बाद : सैम मानेकशॉ क्यों प्रसिद्ध है?

स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने भारतीय सेना में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। वे एक रणनीतिकार और दूरदर्शी सैन्य अधिकारी थे।

विभाजन के समय सैम मानेकशॉ को जब पाकिस्तान आर्मी जॉइन करने के लिए कहा गया?

सैम मानेकशॉ की युद्ध रणनीति इतनी शक्तिशाली होती थी की उसकी आर्मी टीम को हरा पाना मुश्किल है। विभाजन के समय पाकिस्तान की सरकार ने पूरा जोर लगा दिया सैम बहादुर (सैम मानेकशॉ ) को पाकिस्तान की आर्मी में शामिल करने के लिए। पाकिस्तान ने सैम बहादुर को कहा तुम मेरे देश आ जाओ मेरी आर्मी में तुम्हें जनरल बना दूंगा। सैम मानेकशॉ पाकिस्तान नहीं गए। बरहाल उनके दोस्त आग़ा मो. यहाया खान पाकिस्तान चले गए।

1971 का भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश की स्वतंत्रता

1971 में, जब पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में संघर्ष बढ़ा, तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैम मानेकशॉ से परामर्श किया।

  • उन्होंने युद्ध की तैयारी के लिए समय मांगा और पूरी योजना के साथ भारतीय सेना को जीत दिलाई।
  • उनकी रणनीति और नेतृत्व ने पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर किया, जिसके परिणामस्वरूप 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश का जन्म हुआ।

अप्रैल 1971 इंदिरा गांधी ने कैबिनेट मीटिंग बुलाई और सैम मानेकशॉ को बताया की असम, त्रिपुरा और बंगाल के मुख्यमंत्री मुझे पत्र लिख रहे है। और कह रहे की 9 लाख से ज्यादा शरणार्थी भारत में घुस चुके हैं। और वहाँ पर जीतने भारतीय नहीं है उससे कई ज्यादा बांग्लादेशी है। देश का माहौल खराब होने वाला है, आप इस विषय में क्या रहे हैं? आप क्या चाहती है की मैं क्या करूँ? इंदिरा गांधी जी कहती है उठो और अपनी आर्मी को लेकर पूर्वी पाकिस्तान घुस जाओ। और रोको सारे शरणार्थी को, तो सैम मानेकशॉ ने कहा ऐसे में तो युद्ध हो जाएगा। इंदिरा गांधी ने कहा युद्ध होने दो, तुम तैयार हो? सैम मानेकशॉ ने कहा लेकिन मैं अभी तैयार नहीं हूँ।

सैम मानेकशॉ ने कहा की मेरी आर्मी जो है वो पूरे देश में फैली हुई है। सैम ने कहा अगर युद्ध करनी है तो कुछ समय के लिए सभी सड़क, सभी रेल परिवहन, सारे आवागमन के रास्ते बंद करने पड़ेंगे। सारी आर्मी को इकट्ठा करना पड़ेगा। सारे रास्ते हमारे इस्तेमाल के लिए सिर्फ रहेगी। अभी अप्रैल का महिना है, अनाज लाने ले जाने का समय सीजन है। और साथ में एक बार हिमालय का बर्फ पिघल गया तो चाइना के लिए भी रास्ते खुल जाएंगे और उनको भारत में घुसने का मौका मिल जाएगा। तो ऐसे में पाकिस्तान और चाइना से एक साथ युद्ध करना संभव नहीं है। और अगर वहीं मानसून शुरू हो गया तो पूर्वी पाकिस्तान में बाढ़ आ जाएगा।

और हम सिर्फ सड़कों पर ही लड़ पाएंगे, और अगर कहती है तो जाता हूँ लेकिन हार कर आऊँगा। लेकिन अगर मेरी सुन लोगे स्वीटी तो मैं पूर्वी पाकिस्तान को हरा कर आऊँगा ये मेरी गारंटी है। अब बोलो क्या ऑर्डर है? उसके बाद इंदिरा गांधी ने मीटिंग खत्म किया सभी को जाने दिया और सैम मानेकशॉ को रुकने को कहा। सैम को लगा कुछ बोलेंगी तो उससे पहले ही मैं रिजाइन दे देता हूँ। तो इंदिरा गांधी जी कहती है गुस्सा क्यों हो रहे हो ये बताओ कितना समय चाहिए? सैम ने कहा समय मेरे हिसाब से दो जीत आपके हिसाब से होगी।

और कुछ महीनों की तैयारी के बाद सर्दी के समय 3 दिसम्बर 1971 को 93,000 हजार पाकिस्तानी सोल्जर को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया। और उसके बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ, जिसका श्रेय सैम मानेकशॉ और उसके आर्मी को जाता है। 


सम्मान और उपाधियाँ

मिलेट्रि क्रॉस अवॉर्ड मिला, पद्मा भूषण मिला, पद्म भिभूषण मिला लेकिन अभी तक भारत रत्न नहीं मिला। गैलन्ट्री अवॉर्ड लॉंग सर्विस मेडल, युद्ध मेडल मिला। मोदी जी ने उनके नाम पर अहमदाबाद में फ्लाइओवर बनवाया, Postage स्टाम्प जारी किया, हेड्कॉर्टर पुणे में स्टैचू बनवाया उनके नाम से ऊटी में ब्रिज बनवाया। 

1971 में सैम मानेकशॉ के नेतृत्व में मिली जीत की याद में हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस मनाया जाता है। 16 दिसंबर 2008 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने फील्ड मार्शल की वर्दी में मानेकशॉ को दर्शाते हुए एक डाक टिकट भी जारी किया था।

  • 1973 में, फील्ड मार्शल की उपाधि पाने वाले वे भारत के पहले सैन्य अधिकारी बने।
  • उन्हें पद्म विभूषण सहित कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
  • उनकी सैन्य रणनीतियों और नेतृत्व क्षमता को आज भी प्रेरणा के रूप में देखा जाता है।
Sam Manekshaw biography in hindi

सैम मानेकशॉ भारतीय सेना के इतिहास में एक महानायक के रूप में याद किए जाते हैं। उनकी ईमानदारी, साहस और व्यावहारिक बुद्धिमत्ता ने उन्हें एक युगद्रष्टा सेनानायक बना दिया।

सैम मानेकशॉ के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य, असली सैम बहादुर कौन थीं?

  • युद्ध के मैदान में कई बार मौत को मात दे के वापस जिंदा बचके आयें। ये वो सोल्जर में से थे जो 15-15 दिन तक बिना खाए मैदान में रह सकते थे।
  • सैम मानेकशॉ ही थे जो इंदिरा गांधी जी को स्वीटी कहकर बुलाते थे, और mrs प्राइम मिनिस्टर कहकर बुलाते थे। कभी भी इन्होंने मैडम कहकर नहीं बुलाया, ये चीज आपको फिल्म में भी अच्छे से देख सकते हैं, स्वीटी नाम से सैम और भी कई लोगों को बुलाते थे।
  • 1947 में जब युद्ध हुआ था विभाजन के समय, तो उस वक्त पाकिस्तान आर्मी में आग़ा मो. यहाया खान थे। ये इंसान दिल के बहुत अच्छे थे, बात ये विभाजन से पहले की है। सैम मानेकशॉ और यहाया खान दोनों एक ही बैच के आर्मी ऑफिसर थे और बहुत ही करीबी दोस्त भी थे। क्योंकि उस वक्त भारत पाकिस्तान एक था विभाजन नहीं हुआ था। आग़ा मो. यहाया खान जो बाद में चलकर पाकिस्तान का तख्तापलट कर तीसरे राष्ट्रपति भी बने।
  • इंडो चाइना युद्ध के आसपास इनके पर जांच बैठा दी की ये बिल्कुल अंग्रेजो की तरह बोलते हैं, रहते हैं, सब कुछ करते हैं। ये शायद आज भी अंग्रेजों से मिला हुआ है। और उस वक्त चाइना से युद्ध चल रहा था, और भारत की हालत खराब थी। तो वहाँ पर पंडित जी ने सैम मानेकशॉ को बुलवाया और ऑर्डर दिया की सैम तुम इंडो चाइना युद्ध को लीड करोगे। सैम ने कहा मैं तो सस्पेन्ड हूँ, तो पंडित जी ने कहा तुमहरी जांच खत्म और तुम जाकर लीड करोगे बस।
  • एक बार सैम मानेकशॉ जम्मू की आर्मी कमांड को संभाल रहे थे, तब उस वक्त के रक्षा मंत्री दौरे पर आए थे। तो बातचीत हो रही थी तो रक्षा मंत्री बी के मेनन ने पूछा आर्मी चीफ जनरल के बारे में तुम्हारी क्या राय है? तो वहाँ पर सैम मानेकशॉ ने कुछ भी बताने से सीधा इनकार कर दिया और कहा आज आप उनके बारे में पूछ रहे है कल आप मेरे बारे में मेरे आर्मी ऑफिसर से पूछेंगे ऐसे में तो आर्मी का अनुशासन ही खतम हो जाएगा। इसको लेकर मंत्री को गुस्सा भी आया लेकिन जाहीर नहीं किया। जिसके उपरांत बहुत से लोग नेता के मिलीभगत से उनपर जांच बैठा दी। लेकिन पंडित जी उन्हे बहुत मानते थे।
  • एक बार सैम मानेकशॉ को 1975 में अवॉर्ड सम्मेलन बुलाया गया जहां की हीरो अवॉर्ड देना था। सैम ने कहा ठीक है लेकिन बाद में सैम को पता चला की वो फिल्म फेयर अवॉर्ड था। जिसमे फिल्मों में काम करने वाले हीरो को अवॉर्ड देना था। तो यहाँ पर सैम मानेकशॉ ने वहाँ जाने से सीधा मना कर दिया। और कहा कि हीरो इस देश में सिर्फ एक ही है वो है आर्मी सोल्जर। 
  • बहुत हार्ड थे साथ में दिल के बड़े नरम भी थे, बहुत मददगार भी थे, जब ये कमांडर थे तब कोई नया जॉइन करता था। तो ये खुद उसे लेने के लिए जाता था। और उसका सामान लेकर उसके रूम तक छोड़ता था, और सैम मानेकशॉ को पहचान भी नहीं पाता था की ये कौन है? उसे लगा होगा कैम्प का ही कोई जवान होगा। तो उसने उससे पूछा की आप यहाँ क्या करते हैं तो उसने कहा खाली समय में नए ऑफिसर की मदद करता हूँ, सेवा करता हूँ। और वैसे मैं यहाँ का कमांडर हूँ, मतलब आप सैम मानेकशॉ है? उसने कहा हाँ उसने तुरंत उनको सैलूट मारा। 

सैम मानेकशॉ को बहादुर क्यों कहा गया?

1971 की बात है जब ये गोरखा रेजीमेंट को कमांड किया करते थे, तब एकदम एक नौजवान युवा आर्मी से पूछा की तुम मुझे जानते हो? गोरखा जवान ने कहा जी साब, सैम ने कहा मेरो नाम क्यो हो? वो घबरा गया सैम का पूरा नाम लंबा  होने की वजह से वो बता नही पा रहा था। और जल्दी बाजी में उसके मुंह से निकला सैम बहादुर साब। तो सैम मुस्कुराया उसको गले से लगाया और कहा की आज अपना नाम सैम बहादुर ही रखूँगा। तो सैम बहादुर नाम गोरखा रेजीमेंट के द्वारा दिया गया नाम है।

  • एक बार न्यूज रिपोर्टर ने सैम मानेकशॉ से पूछा की एक बार आपको पाकिस्तान ने पाकिस्तान की आर्मी को लीड करने के लिए बुलाया जा रहा था। और अगर आप पाकिस्तान चले जाते तो क्या होता? सैम ने कहा अगर मैं पाकिस्तान चला जाता तो स्वाभाविक सी बात है पाकिस्तान सारे युद्ध जीत जाता। सैम मानेकशॉ ने ये बात मजाक में की थी, तो कुछ नेताओ को दिल में लग गई? मजाक इसलिए कि सैम मानेकशॉ ऐसे इंसान थे जो कभी पाकिस्तान जा ही नहीं सकता था। क्योंकि आजादी के समय तो उनको पाकिस्तान सरकार ने उसको अपनी तरफ करने के लिए खूब कोशिश किया था। लेकिन वो नहीं गए। लेकिन उसका एक बहुत ही करीबी दोस्त था यहाया खान जो आजादी के बाद पाकिस्तान आर्मी में जा चुके थे और बाद मे पाकिस्तान के तीसरे राष्ट्रपति भी बने।
  • आगे चलकर सैम मानेकशॉ को वो सम्मान नहीं मिला जितना इनको मिलना चाहिए। न मिलने का सबसे बड़ा कारण ये है की सैम बहादुर भारत देश के लिए ही काम किया लेकिन बोलते बहुत थे लेकिन जो बोलते थे एकदम सही और सटीक बोलते थे। किसी नेता को तो ये तक बोल दिया कि आप अपने राजनीति से मतलब रखिए और मैं अपने आर्मी से मतलब रखूँगा

सैम मानेकशॉ ने जब अपनी बाइक अपने दोस्त यहाया खान को दिया

यहाया खान पाकिस्तान जाने से पहले कहा सैम अपनी दोस्ती अच्छी है और तुझसे अच्छी तेरी बाइक है। सैम मानेकशॉ ने कहा अच्छा एक काम कर 1000 रुपये में अपनी बाइक दे दे। तो सैम मान गए और कहा ठीक है यार ले जाओ, तो यहाया खान ने कहा कि अभी मेरे पास पैसे नहीं है तो मैं पाकिस्तान जाकर तुमको पैसे लौटा दूंगा। सैम ने कहा ठीक है कोई बात नहीं तु बाइक ले जा, यहाया खान बाइक लेकर चले गए पाकिस्तान, लेकिन वो 1000 रुपए कभी दिए नहीं।  यहाया खान से दोबारा मुलाकात तकरीबन 23-24 साल बाद 1971 के पाकिस्तान युद्ध के समय हुई।

सैम मजाकिया भी थे थोड़े और मजाकिया स्टाइल में कहा जब वहाँ  गए उनके सामने और कहा यहाया खान तुझे 1000 रुपये देने थे। तुमने हजार रुपये दिए नहीं उसके बदले तेरा आधा देश लिया हमने, (जो आज के समय में बांग्लादेश है ) इसके बाद से तु किसी और से पैसे न लियों। 

जब एक सिख ऑफिसर का प्रमोशन सैम मानेकशॉ ने रोक तो क्या हुआ?

एक बार सैम सिख बैच को कमांड कर रहे थे, उसमे एक 6 फुट 4 इंच का लंबा चौड़ा सिख सिपाही सोन सिंह था। और उसने अप्लाइ किया था नायक रैंक के लिए, उनका प्रमोशन होना था। सैम मानेकशॉ को प्रमोशन लेटर पर बस साइन करना था। लेकिन वहाँ पर सैम ने उसके लेटर क रिजेक्ट कर दिया। और कहा की अभी सोन सिंह को नायक नहीं बनाएंगे बाद में देखेंगे।और जब सोन सिंह को पता चला तो सोन सिंह ऐसे ही मजाक में बाहर सब से गुस्से में कहा होगा की इसको तो गोली मार दूंगा। तो सूबेदार नव सुन लिया और भागते भागते सैम के पास गया और बोला की सोन सिंह कह रहा है की आपको वो गोली मार देगा। 

तो सैम ने कहा की वो गोली मारेगा मेरे को, नायक नहीं बनाया तो वो गोली मारेगा वो मुझे। सैम मानेकशॉ ने कहा बुलाओ सोन सिंह को, सोन सिंह आया थोड़ा गार्डन झुका के आया। मैंने सुन तु मुझे गोली मारेगा, सोन सिंह ने कहा साहब गलती हो गई माफ कर मुझे माफ कर दो। मैंने ऐसे ही कह दिया था गुस्से में, मुझे माफ कर दो। सैम ने बंदूक निकाली और सोन सिंह को थमाया और कहा लो अभी गोली मुझे मारो। सैम ने एक थप्पड़ मारा सोन सिंह को, उसके बाद सोन सिंह चला गया। तीन घंटे बाद फिर सूबेदार भागता हुआ और कहा सोन सिंह कह रहा है इसको आज नहीं कल गोली मारूँगा।

उसके बाद दोबारा बुलाया उसे सोन क्या कह रहा मुझे कल मारेगा गोली, गुस्से में सैम ने कहा सोन सिंह आज तुम मेरे कमरे के बाहर पहरेदारी करोगे, और सुबह 5 बजे गरम चाय क साथ उठाने आओगे। 

जब इंदिरा गांधी को लगा सैम मानेकशॉ कहीं तख्तापलट न कर दे?

कुछ देशों में आपने सुना होगा की उस देश का तख्ता पलट हो गया। पाकिस्तान में आए दिन सुना होगा अभी कुछ समय पहले ही बांग्लादेश में भी तख्तापलट हुआ है। तो भारत देश में कुछ बड़े लोगों ने अपवाह फैला दी की सैम मानेकशॉ कहीं तख्त पलट न कर दे। और ये बात प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी के पास भी पहुँच गई। तो इंदिरा गांधी जी ने सैम मानेकशॉ को बुलवाया, और कहा की मैंने सुना की तुम तख्ता पलट करने वाले हो। तो यहाँ पर सैम ने इंदिरा गांधी से कहा की आपको किसने कहा? सैम ने कहा आपको क्या लगता है? इंदिरा गांधी ने कहा मुझे ऐसा लगता है की तुम ये नहीं कर पाओगे।

Sam Manekshaw biography in hindi

सैम मानेकशॉ ने कहा तख्ता पलट करने को तो मैं कर सकता है, लेकिन मैं करूंगा नहीं। मेरी नाक भी लंबी है और आपकी नाक भी लंबी है, अच्छा यही रहेगा की अपनी नाक दूसरे के काम में न लड़ाए। तुम अपनी राजनीति चलाओ मैं अपनी आर्मी चलाऊँगा। 

सैम मानेकशॉ का अनुशासन? : जब सैम मानेकशॉ पाकिस्तान दौरे पर गए?

दुश्मन को मार गिराओ लेकिन इंसानियत जिंदा रखो। ये अपनी आर्मी को अनुशासित रखते थे, और अपनी आर्मी से कहते थे की लड़ाई किसी से भी हो लेकिन अगर काही लाचार महिला दिख जाए तो तुम उसे कुछ नहीं करोगे और बच्चों को भी। वहीं पर पाकिस्तानी सेना पूर्वी पाकिस्तान के महिला के साथ रेप करते थे। और मार देते थे, जो 90 हजार पाकिस्तानी आर्मी सरेंडर किए गए थे उसको घर के अंदर सुलाते थे, और खुद की आर्मी को बाहर जमीन पर सुलाते थे। जब खाना बँटता था तब सबसे पहले पाकिस्तानी आर्मी को देते थे। उसके बाद जो बचता था अपने आर्मी को देते थे। और साथ में उनको पढ़ने के लिए उसके धर्म की कुरान दिया करते थे।

युद्ध जीतने के दो महीने बाद इसने पाकिस्तान का दौरा भी किया था। और जब पाकिस्तान पहुंचे तो वहाँ की सरकार ने उसका शानदार स्वागत किया। और जब मीटिंग खत्म हुई तो वहाँ के सरकार ने कहा की हमारे कुछ सैनिक है जो आपसे मिलना चाहते हैं। तो एक पाकिस्तानी सैनिक ने अपनी पगड़ी उतारी और सैम के पैर में अर्पण कर दिया। और सैम मानेकशॉ ने कहा मैं तो तुम्हें जानता भी नहीं हूँ, और पगड़ी उठाकर उसको पहना दी। उस सैनिक के आँखों में आँसू थे, सैम ने पूछा क्यों रो रहे हो? तो उस सैनिक ने कहा की सर मेरा 5 बेटा है। और पांचों के पाँच पाकिस्तानी आर्मी में है और आपने जिस तरह से उनको सही सलामत रखा है।

उनका मेरे पास खत आता है और आपके बारे में बताता है की आपने कैसे सब को ध्यान रखा है। उसको खाना दिया, पढ़ने के लिए कुरान दिया। अपने सैनिक को जमीन पे सुलाया और और हमारे सैनिक को बेड पर सुलाया, इतना महान है आप। इस कारण भारत देश के कुछ पुराने कांग्रेस नेता से इनके उतने अच्छे रिश्ते नहीं थे। जिसके कारण बाद में सैम मानेकशॉ को उतने इज्जत नहीं मिले, जितना इनको मिलना चाहिए।

जब सैम मानेकशॉ को फील्ड मार्शल बनाया गया

सैम मानेकशॉ को 1973 में फील्ड मार्शल बनाया गया, जो आर्मी की सबसे बड़ी पोस्ट होती है। लेकिन साथ में इनको वो फायदा और सम्मान नहीं मिला जो एक फील्ड मार्शल को मिलना चाहिए। जैसे ऑफिसियल कार, सरकारी घर, स्टाफ, अलग से एक ऑफिस तक नहीं दिया गया। साथ में फील्ड मार्शल की सैलरी की जगह मरते दम तक आर्मी जनरल की पेंशन ही दी गई। बहुत से लोग इस चीज को लेकर सरकार को गलत भी ठहराया। और साथ में सैम मानेकशॉ ने भी कभी इस चीज को लेकर किसी से शिकायत या आपत्ति तक नहीं जताई। लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी ने बीते 30 साल का बकाया दिया, लेकिन उससे पहले ही वो स्वर्ग सिधार गए।

27 जून 2008 के निमोनिया से उनका देहांत हो गया और उनका आखिरी शब्द भी वही पुराना था आई एम ओके। फील्ड मार्शल कभी भी रिटाइर नहीं होता है, बल्कि वो अपनी यूनिफॉर्म, फूल सैलरी, अफिशल रैंक पर मरते दम तक रहते हैं।  उनके देहांत के समय जीतने भी बड़े अफसर, नेता, Pm President, Defence minister, navy, air force chief कोई भी नहीं आए थे।


निष्कर्ष

सैम मानेकशॉ केवल एक कुशल सेनानायक ही नहीं, बल्कि एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व भी थे। उनकी स्पष्टवादिता, साहस और नेतृत्व क्षमता ने भारतीय सेना को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। वे आज भी भारतीय युवाओं और सैनिकों के लिए प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं।

सैम मानेकशॉ का पूरा नाम क्या है?

सैम होरमुसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ।

भारत का पहला फील्ड मार्शल कौन था?

सैम मानेकशॉ

सैम मानेकशॉ की रेजिमेंट क्या थी?

ब्रिटिश इंडियन आर्मी बाद में स्वतंत्र भारत के जेनरल और फील्ड मार्शल बने।

सैम मानेकशॉ को कितनी बार गोली मारी गई थी?

जब वो वर्मा में 2nd वर्ल्ड वार जापान से लड़ रहे थे।

सैम मानेकशॉ की मौत कैसे हुई थी?

27 जून 2008 को 94 साल की उम्र में निमोनियाँ के कारण तमिलनाडु के मिलेट्रि अस्पताल में निधन हो गया। 

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Dipu Sahani

I live in Jharia area of ​​Dhanbad, I have studied till Intermediate only after that due to bad financial condition of home I started working, and today I work and write post together in free time............