का प्रतीक माना जाता है। यह पूजा व्यक्ति को अपनी आत्मा की शुद्धता की दिशा में मार्गदर्शन करती है और सूर्य की ऊर्जा से उसकी आत्मा को बचाने की कला सिखाती है।समापन:
छठ पूजा एक ऐसा उत्कृष्ट त्योहार है जो समृद्धि, एकता, और प्राकृतिक संरक्षण के संदेश के साथ भारतीय समाज में मनाया जाता है। इस पूजा के दौरान लोग आपसी सम्बंधों को मजबूती से जोड़ते हैं और सूर्य देवता की श्रद्धा भावना के साथ अपने आत्मा को पवित्र करते हैं। छठ पूजा से जुड़े रिवाज और परंपराएं इसे एक अद्भुत सांस्कृतिक आयोजन बनाती हैं, जो समृद्धि और खुशियों के साथ भरा होता है।
आज हम इस आर्टिकल में झारखंड राज्य निर्माण के बारे में जानेंगे, किसने झारखंड राज्य निर्माण की नींव रखी और झारखंड का बिहार से विभाजन क्यों हुआ ये भी जानेंगे।
झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन
झारखंड राज्य में ब्रिटिश शासनकाल से ही अंगेजों की शोषणकारी नीतियों के विरूद्ध विभिन्न आंदोलन संचालिय होते रहे हैं। इसी पृष्ठभूमि में झारखण्डियों द्वारा अलग राज्य की मांग की जाती रही है।
ब्रिटिश शासनकाल के दौरान इारखण्ड, बंगाल प्रांत का तथा बाद में बिहार प्रात का (1912 में पृथक बिहाए के निर्माण के बाद) अंग बना।
ढाका विद्यार्थी परिषद की राँची शाखा के संचालक जे, बार्थोलमन को झारखण्ड आंदोलन का जनक माना जाता है।
क्रिश्चियन स्टूडेंट्स आगेंनाइजेशन (1912 ई.)
चाईबासा के निवासी व एंग्लिकन मिशन से जुड़े जे. बाथोलमन ने 1912 ई. में ढाका विद्यार्थी परिषद (ढाका में आयोजित) से लौटने के बाद ‘क्रिश्चियन स्टूडेंट्स आर्गेनाइजेशन’ की स्थापना की थी।
इस संगठन का प्रारंभिक उद्देश्य गरीब इसाई विद्यार्थियों को मदद था। बाद में यह संगठन झारखण्ड राज्य के सभी आदिवासियों के सामाजिक- आर्थिक उत्थान में संलग्न हो गया।
जे. बार्थोलमन संत कोलंबा महाविद्यालय, हजारीबाग के छात्र थे। बाद में वे संत पॉल स्कूल रॉची के प्राध्यापक भी रहे।
क्रिश्चयन स्टूडेंट्स आर्ेनाइजेशन में बाद में शामिल लोगों ने ही जे. बार्थोलमन को इस संगठन से अलग कर दिया तथा इस संगठन का नाम परिवर्तित करके ‘छोटानागपुर उन्नति समाज’ कर दिया।
छोटानागपुर उन्नति समाज (1915 ई. ) ( झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन )
1915 ई. में एंग्लिकन मिशन के बिशप केनेडी की सलाह पर ‘क्रिश्चियन स्टूडेंट्स आग्गनाइजेशन’ का नाम परिवर्तित करके ‘छोटानागपुर उन्नति समाज ‘ कर दिया गया।
‘छोटानागपुर उन्नति समाज’ की स्थापना जुएल लकड़ा, पॉल दयाल, बंदीराम उराँव व ठेबले उराँव * के नेतृत्व में की गयी थी।
यह झारखण्ड का प्रथम औंतर्जातीय आदिवासी संगठन था तथा इसके सदस्य केवल आदिवासी ही हो सकते थे।
इस संगठन की स्थापना का मूल उद्देश्य छोटानागपुर की प्रगति एवं आदिवासियों की सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक स्थिति में सुधार करना था।
1915 ई.* में छोटानागपुर उन्नति समाज द्वरा मुण्डारी भाषा में आदिवासी नामक पत्रिका का प्रकाशन किया गया था।
1928 ई. में छोटानागपुर उन्नति समाज द्वारा बिशप बॉन ह्यूक एवं जुएल लकड़ा के नेतृत्व में साइमन कमीशन को एक मांग पत्र सौंपा गया था। इस मांग-पत्र में इस क्षेत्र के आदिवासियों हेतु विशेष सुविधाएँ प्रदान करने तथा इनके लिए एक पृथक प्रशासनिक इकाई के गठन की मांग की गयी थी।
किसान सभा (1930 ई.)
1930 ई. में छोटानागपुर उन्नति समाज से ही अलग होकर कछ सदस्यों ने किसान सभा का गठन किया था।
इसके प्रथम अध्यक्ष ठेबले उराँव तथा प्रथम सचिव पॉल दयाल थे।
इस सगठन को स्थापना का प्रमुख उद्देश्य झारखण्ड के किसानों को शोषण करने वाले जमींदारों के विरूद्ध संगठित करना था।
1935 में छोटानागपुर उन्नति समाज तथा किसान सभा का विलय किया गया तथा राजनीतिक स्ता की प्राप्त की जा सके।
छोटानागपुर कैथोलिक सभा (1933 ई.)
1933 ई. में आर्च बिशप सेबरिन की प्रेरणा से छोटानागपुर कैथोलिक सभा का गठन किया गया थो।
छोटानागपुर कैथोलिक सभा के प्रथम अध्यक्ष बोनिफेस लकडा थे तथा प्रथम महासचिव इग्नेस बेक थे।
इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य कैथोलिकों के हितों की रक्षा करना था।
आदिवासी महासभा (1938 ई.) (झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन)
1936 ई. में उड़ीसा के बिहार से अलग होने के बाद झारखण्ड आंदोलन से जुड़े संगठनों को पृथक झारखण्ड बनने की उम्मीद जगी, परंतु ऐसा नहीं होने पर वे निराश हो गये। साथ ही 1937 ई. में हुए प्रांतीय चुनाव के बाद गठित बिहार के मंत्रिमंडल में दक्षिणी बिहार से किसी भी कांग्रेसी नेता को शामिल न किये जाने से झारखण्ड के लोगों को अपनी उपेक्षा का एहसास हुआ।
इन्हीं घटनाओं से प्रेरित होकर इग्नेस बेक ने झारखण्ड के सभी आदिवासी संगठनों को एकजुट करने का प्रयास किया जिसके परिणामस्वरूप 1938 ई. में आदिवासी संगठनों ने मिलकर राँची नगरपालिका के चुनाव में 5 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा किया व सभी पर विजयी हुए।
इसी पृष्ठभूमि में 31 मई, 1938 को रॉँची में आयोजित ‘छोटानागपुर उन्नति समाज’ की वार्षिक सभा में 5 आदिवासी संगठनों (छोटानागपुर उन्नति समाज, किसान सभा, छोटानागपुर कैथोलिक सभा, मुण्डा सभा एवं हो मालटो सभा) को मिलाकर ‘छोटानागपुर-संथाल परगना आदिवासी महासभा’ की स्थापना की गयी।
झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन
इस नवगठित संगठन का प्रथम अध्यक्ष थियोडोर सुरीन, उपाध्यक्ष बंदराम उरॉव तथा सचिव पॉल द्याल को चुना गया।
जनवरी, 1939 में इसका नाम परिवर्तित करके ‘आदिवासी महासभा’ कर दिया गया।
आदिवासी महासभा के प्रमुख नेताओं के आग्रह पर जयपाल सिंह मुण्डा 1939 ई. में आदिवासी महासभा के अध्यक्ष पद पर आसीन हुए।
जयपाल सिंह मुण्डा अध्यक्षता में ही 20-21 जनवरी, 1939 को रॉची में आदिवासी महासभा का दूसरा अधिवेशन आयोजित किया गया। इस अधिवेशन के स्वागत समिति के अध्यक्ष सैम्यूल पूर्ति थे।
इसी अधिवेशन के दौरान आदिवासियों द्वारा जयपाल सिंह मुण्डा को ‘मरंड गोमके’ (बड़े गुरूजी) की उपाधि दी गयी थी।
इसी अधिवेशन के दौरान जयपाल सिंह मुण्डा ने ही पहली बार एक प्रस्ताव के द्वारा सरकार से भारत शासन अधिनियम की धारा-46 के तहत छोटानागपर – संथाल परगना क्षेत्र के रूप में एक पृथक गवर्नर के प्रांत का निर्माण करने का आग्रह किया था। जमशेदपुर के एन. एन. दीक्षित ने इस प्रस्ताव का अनुमोदन किया तथा सर्वसम्मति से प्रस्ताव को पारित कर दिया गया था।
प्रस्तत प्रस्ताव के आलोक में देवकी नंदन सिंह की अध्यक्षता में एक ‘पृथक्करण संघ’ के गठन का निर्णय लिया गया जिसका प्रमुख कार्य नवीन प्रांत के निर्माण हेतु सुझाव देना था।
फरवरी, 1939 में आदिवासी महासभा की मांग पर रायबहादुर सतीश चंद्र सिन्हा द्वारा बिहार विधानसभा में बिहाए से पृथक करके छोटानागपुर-संथाल परगना प्रांत के गठन का एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया, जिसे बिहार पांतन के तत्कालीन प्रधानमंत्री (मुख्यमंत्री का उस समय पदनाम ) श्रीकृष्ण सिंह ने अस्वीकृत कर दिया।
मुई 1939 ई. में राँची एवं सिंहभूम के जिला बोर्ड के चुनाव में आदिवासी महासभा ने कांग्रेस को पराजित कर दिया। आदिवासी महासभा ने रॉँची के 25 में 16 सीटों पर तथा सिंहभूम के 25 में से 22 सीटों पर जीत दर्ज की।
झारखण्ड में काग्रेस के घटते प्रभुत्व के कारणों का पता लगाने हेतु डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने जयपाल सिंह्र से मुलाकात करक आदिवासियों की शिकायतों को दूर करने हेतु सुझाव मांगे। 5 जुलाई, 1939 को आदिवासी प्रतिनिधिमंडल ने डॉ. श्रीकृष्ण सिंह से मिलकर अपनी मांगे उनके समक्ष रखीं जिस पर श्रीकृष्ण सिंह ने कोई कार्रवाई नहीं की।
31 अक्टूबर, 1939 ई. को द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रारभ होने के बाद बिहार के कांग्रेसी मंत्रिमण्डल ने इस्तीफा दे दिया जिसे आदिवासी महासभा ने ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की।
आदिवासी महासभा ने द्वितीय विश्वयुद्ध में खुलकर ब्रिटेन का साथ दिया जिसके परिणामस्वखूप युद्ध के बाद जयपाल सिंह मुण्डा को राँची का चीफ वार्डन तथा बाद में ईस्टर्न कमाण्ड सर्विसेज सेलेक्शन बोर्ड का सला हकार बनाया गया।
दिसंबर, 1939 ई. में झारखण्ड प्रवास पर आये सुभाष चंद्र बोस ने जयपाल सिंह से कांग्रेस का समर्थन करने की अपील की।
मार्च, 1940 में आदिवासी महासभा का तीसरा अधिवेशन राँची में आयोजित किया गया जिसमें जयपाल सिंह मुण्डा ने ब्रिटिश सरकार के प्रति वर्फादारी की घोषणा की तथा पृथक छोटानागपुर-संथाल परगना प्रांत के गठन की मांग की।
৪-10 मार्च, 1940 को रॉँची में आदिवासी महासभा का चौथा अधिवेशन आयोजित किया गया जिसमें मुस्लिम लीग के नेताओं को भी आमंत्रित किया।
৪-9 मार्च, 1942 को रॉँची में आदिवासी महासभा का पाँचवा अधिवेशन आयोजित किया गया जिसमें बंगाल मुस्लिम लीग के नेताओं को भी आमंत्रित किया गया तथा ब्रिटिश सरकार को समर्थन देने का संकल्प लिया गया।
मार्च, 1943 में रॉची में आदिवासी महासभा का छठा अधिवेशन आयोजित किया गया जिसमें जयपाल सिंह मुण्डा ने ब्रिटिश सरकार द्वारा आदिवासियों की मांगों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया। उन्होनें ब्रिटिश सरकार से कहा कि “यदि आदिवासियों की मांगों को नजरअंदाज किया गया तो आदिवासी महासभा का कांग्रेस में विलय कर दिया जाएगा, जो सरकार के लिए नुकसानदायक होगा।”
अगस्त, 1944 मं मुस्लिम लीग के नेता रगीब एहसान ने पूर्वी पाकस्तान एवं आदिवासिस्तान (छोटानागपुर – संथाल परगना व अासपास के अदिवासी बहुल क्षेत्र को मिलाकर) बंगेइस्लाम नामक एक परिसंघ बनाने का सुझाव दिया।
30 दिसंबर से 1 जनवरी, 1946 के बीच राँची में ‘झारखण्ड-छोटानागपर पाकिस्तान’ कांफ्रेंस का आयोजन किया गया जिसे मुस्लिम लीग के कई प्रमुख नेताओं ने संबोधित किया।
2-3 फरवरी, 1946 को रॉँची में आयोजित ‘ आदिवासी महासभा’ में जयपाल सिंह ने घोषणा की कि ‘मुसलमाना ने उनकी मांग का बिना शर्त समर्थन कर दिया है।
1946 ई. के संसदीय चुनाव में आदिवासी महासभा ने भी भाग लिया तथा 3 सीटों पर विजय प्राप्त का। जयपाल सिंह खूंटी से चुनाव लडे, परन्तु गांधीवादी नेता व कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. पूर्णचंदर मित्र से पराजित हो गये। इस चुनाव के दौरान आदिवासी महासभा एवं कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के बीच 2 मार्च, 1946 को हिसक
संघर्ष हो गया जिसमें आदिवासी महासभा के पांच आदिवासी मारे गये।
चुनाव हारने के बाद 1946 में जयपाल सिंह मस्लिम लीग के सहयोग से संविधान सभा के सदस्थ निवोचित हुए।
इस प्रकार जयपाल सिंह मुण्डा ने संविधान सभा में छोटानागपर के आदिवासी नेता के रूप में प्रतिनिधत्व किया था।
16 अगस्त, 1946 को मुस्लिम लीग द्वारा आयोजित प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस के बाद जयपाल सिंह ने मुस्लिम लीग से संबंध तोड़ लिये।
13 अप्रैल, 1946 को रॉँची में आयोजित आदिवासी महासभा के वार्षिक अधिवेशन में जयपाल सिंह ने पाकिस्तान के निर्माण का विरोध करने के साथ ही संविधान सभा का समर्थन किया। साथ ही उन्होंनें पृथक झारखण्ड राज्य के गठन तक आंदोलन जारी रखने की घोषणा भी की।
सरदार पटेल की अध्यक्षता में अल्पसंख्यकों व आदिवासियों के लिए गठित मूलाधिकार समिति की एक आदिवासी उपसमिति में जयपाल सिंह को सदस्य बनाया गया। इस उपसमिति के अध्यक्ष ए. बी. ठक्कर थे।
खरसावां गोलीकांड ( झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन)
देश की अजादी के बाद छोटानागपुर कमिश्नर के अंतर्गत शामिल सरायकेला एवं खरसावां देशी रियासतों को 1 जनवरी, 1948 को उड़ीसा में मिलाने की घोषणा की गयी जिसके बाद इसका व्यापक विरोध प्रारंभ हो गया।
आदिवासी महासभा ने 1 जनवरी, 1948 को इसके खिलाफ सिंहभूम के खरसावां हाट मैदान में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया।
इस जनसभा में ‘झारखण्ड अबुआ, उड़ीसा जारी कबुआ’ (झारखण्ड अपना है, उड़ीसा शासन नहीं चाहिए ) का नारा लगाकर विरोध प्रदर्शन किया गया।
जनसभा में उड़ीसा पुलिस द्वारा इस भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दे दिया गया जिसमें 100 से अधिक लोग मारे गए तथा 400 से अधिक लोग घायल हुए।
इस घटना को खरसावां गोलीकांड के नाम से जाना जाता है।
बाद में भारत सरकार ने सरायकेला व खरसावां के उड़ीसा में विलय का प्रस्ताव खारिज कर दिया जिसके परिणामस्वरूप 1 जनवरी, 1948 से 18 मई, 1948 तक (139 दिन) यह क्षेत्र उड़ीसा के अधीन रहने के बाद बिहार प्रांत में मिला दिया गया।
सरायकेला-खरसावां को सिंहभूम जिला के अंतर्गत अनुमंडल का दर्जा प्रदान किया गया।
देश की आजादी के बाद आदिवासी महासभा का पहला वार्षिक अधिवेशन 28 फरवरी, 1948 को रॉँची में आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता जयपाल सिंह ने की। इस सम्मेलन में जयपाल सिंह ने खरसावां गोली कांड के लिए उड़ीसा सरकार को दोषी माना।
यूनाइटेड झारखण्ड पा्टी (1948 ई.)
1948 ई. में जस्टिन रिचर्ड तथा जयपाल सिंह मुण्डा द्वारा यूनाइटेड पार्टी का गठन किया गया था।
बाद मैं जयपाल सिंह मुण्डा द्वारा झारखण्ड पार्टी का गठन किया गया।
झारखण्ड पाटी (1950 ई.) (झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन)
31 दिसंबर से 1 जनवरी, 1950 को जमशेदपुर में आयोजित आदिवासी महासभा के संयुक्त सम्मेलन में जयपाल লरी आदिवासी महासभा का नाम परिवर्तित करके झारखण्ड पार्टीं कर दिया गया। इस पाटी के पहले अध्यक्ष जयपाल सिंह मुण्डा को बनायां गया।
আাद में झारखण्ड पार्टीं में आदिवासियों के साथ-साथ गैर-आदिवासियों को भी शामिल किया गया।
जलाई, 1951 को झारखण्ड के दौरे पर आए जयप्रकाश नारायण से मिलकर झारखण्ड पाटी के नेताओं ने ভायानागपुर-संथाल परगना प्रात के गठन हेतु सहयोग मांगा जिसका जयप्रकाश नारायण ने समर्थन किया।
2 जनवरी, 1952 को देश कोे पहले आम चुनाव हेतु राँची के मोरहाबादी मैदान में आयोजित एक जनसभा में पाडत जवाहर लाल नेहरू ने पृथक झारखण्ड राज्य के गठन का पुरजोर विरोध किया था।
1952 ई. के एकीकृत बिहार विधानसभा चुनाव में झारखण्ड पार्टी मुख्य विपक्षी दल के रूप में सामने आयी।
इस पार्टी का चुनाव चिह्ह ‘मुर्गा’ था। इसे 33 सीटें प्रप्त हुई थी। (1957 के चुनाव में झारखण्ड पार्टी को 32 जबकि 1962 के चुनाव में 20 सीटों पर विजय मिली थी।)
1952 ई. के आम चुनावों में इस पा्टी का नारा था – झारखण्ड अबुआ, डाकु दिकु सेनुआ’ (झारखण्ड हमारा है, डकैत दिकुओं को जाना होगा)।
1952 तथा 1957 के चुनाव में विपक्षी दल का दर्जा पाने वाली झारखण्ड पा्टीं के नेता सुशील कुमार बागे बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता बने।
1957 के चुनाव में जयपाल सिंह के कहने पर बांबे के एक पारसी मीनू मसानी ने रॉँची से चुनाव लड़ा तथा विजयी हुए।
झारखण्ड पाटी द्वारा अलग राज्य निर्माण संबंधी अपनी मांग को लोकसभा तथा बिहार विधान सभा के समक्ष उठाया गया।
5 फरवरी, 1955 को रॉँची आए राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष भी इस पार्टी ने पृथक राज्य निर्माण हेतु अपनी सिफारिशें रखी थीं।
राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष 16 जिलों (बिहार-7, उड़ीसा-4, बंगाल-3 एवं मध्य प्रदेश-2) को मिलाकर झारखण्ड राज्य क गठन का प्रस्ताव रखा गया था।
झारखण्ड राज्य निर्माण आंदोलन हेतु इस पार्टी को आदिवासियों के साथ-साथ गैर आदिवासियों का भी समर्थन प्राप्त था।
10 फरवरी, 1961 को बिहार विधानसभा में सीताराम जगतराम द्वारा पहली बार पृथक झारखण्ड राज्य के गठन हेतु एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया। परन्तु यह प्रस्ताव विभिन्न चर्चाओं के बाद निरस्त हो गया।
20 जून, 1963 ई. में बिहार के मुख्यमंत्री विनोदानंद झा की पहल पर झारखण्ड पाररटी का कांग्रेस में विलय हो गया।
> विनोदानंद झा की सरकार में जयपाल सिंह सामुदायिक विकास विभाग के मंत्री थे, परंतु मात्र एक माह बाद ही उन्होनें इस्तीफा दे दिया। (जयपाल सिंह मुण्डा की पत्नी जहाँआरा इंदिरा गाँधी की मंत्रिपरिषद् में परिवहन एवं विमानन विभाग की उपमंत्री थीं। )
30 मई, 1969 को जयपाल सिंह मुण्डा ने झारखण्ड पार्टी को पुनर्जीवित करने के उ्देश्य से कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया।
छोटानागपुर संयुक्त संघ (1954 ई.)
छोटानागपुर संयुक्त संघ का गठन 7 फरवरी, 1954 को किया गया था।
इसके प्रथम अध्यक्ष सुखदेव सिंह थे। बाद में राम नारायण सिंह इस संगठन के अध्यक्ष बने। (राम नारायण सिंह को ‘शेर-ए -छोटानागपुर’ भी कहा जाता है। कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन- 1940 के दौरान महात्मा गाधा ने इन्हें ‘छोटानागपुर केसरी’ की उपाधि दी थी।)
छोटानागपुर संयुक्त संघ के गठन से पूर्व 11 नवंबर, 1953 को लोहरदगा में ‘छोटानागपुर संयुक्त मोच्चो’ की एक सभा का आयोजन किया गया। परंतु 10 नवंबर, 1953 को ही इसके प्रमुख नेता राम नारायण खलखा, सत्यदेव साहु व मधुसूदन अग्रवाल सहित कई लोगों को सुरक्षा कारणों से गिरफ्तार कर लिया गया था।
छोटानागपुर संयुक्त संघ द्वारा 7 अप्रैल, 19s4 को ‘छोटानागपुर सेपरेशन : दि वनली सॉल्यूशन’ नामक 36 पृष्ठों की एक पुस्तिका का प्रकाशन किया गया था, जिसमें पृथक राज्य के गठन का समर्थन किया गया था।
बिरसा सेवा दल (1965 ई.)
1965 ई. में आदिवासियों के आंदोलन को मुखरता प्रदान करने हेतु ललित कुजुर द्वारा बिरसा सेवा दल का गठन किया गया।
यह झारखण्ड का पहला छात्र संगठन था।
इसका गठन झारखण्ड पार्टी से विभाजित होकर किया गया था।
अखिल भारतीय झारखण्ड पार्टी (1967 ई.)
1967 ई. में इस आंदोलन को तीव्रता प्रदान करने हेतु बागुन सुम्ब्रई द्वारा अखिल भारतीय झारखण्ड पार्टी का गठन किया गया।
1969 ई. में अखिल भारतीय झारखण्ड पार्टी का विभाजन हो गया तथा इससे टूटकर ‘झारखण्ड पार्टी’ नामक एक अलग पाटी का गठन कििया गया।
झारखण्ड पाटी (1969 ई.)
इस पार्टी का गठन 1969 में अखिल भारतीय झारखण्ड पाटी से टूटकर हुआ था।
इस पार्टी के प्रथम अध्यक्ष एन. ई. होरो थे।
हुल झारखण्ड पाटी (1969 ई.)
सन् 1969 में हुल झारखण्ड पार्टी का गठन जस्टिन रिचर्ड द्वारा किया गया।
इसे ‘क्रांतिकारी झारखण्ड पार्टी’ भी कहा जाता है।
यह पार्टी संथाल परगना क्षेत्र में सक्रिय थी।
1970 ई. में इस पार्टी का विभाजन हो गया।
सोनोत (शद्ध) संथाल समाज (1970 ई.)
सोनोत संथाल समाज की स्थापना सन् 1970 ई. में शिबू सोरेन द्वारा की गयी थी।
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (1973 ई.) (झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन)
4 फरवरी, 1973 को विनोब बिहारी महतो तथा शिबू सोरेन के नेतृत्व में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा नामक का गठन किया गया। इसका गठन धनबाद के गोल्फ मैदान में किया गया था।
विनाद बिहारी महतो को इस संगठन का अध्यक्ष तथा शिब् सोरेन को इसका महासोचिव नियुक्त किया गगा झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के गठन में ए. के. राय ने भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
झामुमों के गठन से पूर्व विनोद बिहारी महतो ने शिवाजी समाज (1969 ई. में), शिबू सोरेन ने सोनोत संथक समाज (1970 ई. में) तथा ए, के, राय ने माव्सवादी समन्वय समिति (1971 ई. में) का गठन किया थ
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा द्वारा अलग राज्य निर्माण हेतु संघर्ष, महाजनी प्रथा की खिलाफत, विस्थापितों के पनर्वा जैसे आदोलन का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
1978 ई. में शिब् सोरेन एवं ए. के. राय ने झारखण्ड के समर्थन में शक्ति प्रदश्शन हेतु पटना में आदिवासियं का एक जुलूस निकाला।
6-7 मईं, 1978 को राँची में झारखण्ड कषेत्रीय बुद्विजीवी सम्मेलन की गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो, डॉ. निर्मल मिंज, डॉ. रामदयाल मुण्डा समेत कई लोगों ने भाग लिया।
1978 ई. में झामुमों द्वारा वन कानून के विरोध में जंगल काटो अभियान का संचालन किया गया।
रॉँची के काग्रेसी नेता ज्ञानरंजन की पहल पर 1980 का विहार विधानसभा चुनाव में झामुमों ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया जिसमें इझामुमो को 13 सीटों पर जीत मिली।
ऑल झारखण्ड स्टूडेन्ट्स एसोसिएशन (1986 ई.)
22 जून, 1986 को झामुमो के निर्मल महतो एवं शिबू सोरेन के नेतृत्व में जमशेद्पुर में ऑल झारखण्ड स्ट्डेन्ट्स एसोसिएशन (आजसू) नामक संगठन की स्थापना की गयी। सूर्यसिंह बेसरा ने ‘खून के बदले खुन’ की रणनीति की घोषणा की थी।
आजसू का गठन असम के आसू की तज पर किया गया था।
आजसू पाटी के प्रथम अध्यक्ष प्रभाकर तिकी थे।
इस पार्टी के प्रथम महासचिव सूर्यसिंह बेसरा थे।
इस पाटी का गठन इझारखण्ड मुक्ति मोचों की छत्रछाया में किया गया था।
1987 ई. में आजसू पाटी ने खुद को झामुमों से पूरी तरह अलग कर लिया।
1991 ई. में आजसू के सहयोगी पार्टी के रूप में ‘झारखण्ड पीपुल्स पाटीं’ का गठन किया गया था।
झारखण्ड समन्वय समिति (1987 ई.) (झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन)
पृथक झारखण्ड का समर्थन करने वाले 53 दलों को आपस में संगठित करने के उद्वेश्य से 11-13 सितम्बर, 1987 ई. को रामगढ़ में एक संयुक्त सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसी सम्मेलन के दौरान ‘झारखण्ड समन्वय समिति’ (जेसीसी) का गठन किया गया।
डॉ० बिशेश्वर प्रसाद केसरी (बी, पी, केसरी ) को इस समिति का संयोजक मनोनीत किया गया था।
10 दिसम्बर, 1987 में झारखण्ड समन्वय समिति ने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण को बिहार, प० बंगाल, उड़ीसा तथा मध्य प्रदेश के 21 जिलों को मिलाकर इझारखण्ड राज्य के निर्माण सहित 23 सूत्री एक मांगपत्र सौपा।
झारखण्ड विषयक समिति (1989 ई.) (झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन )
केन्द्र सरकार द्वारा 23 अगस्त, 1989 को 24 सदस्यीय झारखण्ड विषयक समिति का गठन किया गया जिसका संयोजक बी, एस. ल लाली (केनद्रीय गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव) को बनाया गया।
इस समिति के सदस्यों में केन्द्र और बिहार सरकार के 9 अधिकारी तथा झारखण्ड आंदोलन से जुड 14 प्रातः निधि शामिल थे।
इस समिति द्वारा ‘झारखण्ड क्षेत्र विकास परिषद्’ के गठन की सिफारिश की गयी थी।
झारखण्ड क्षेत्र स्वशासी परिषद् (1995 ई.)
इसके गठन से पूर्व 20 दिसंबर, 1994 को बिहार विधानमंडल के दोनों सदनो में ‘ झारखण्ड क्षेत्र स्वशासी परिषद्वि धेयक’ पारित किया गया था।
7 अगस्त, 1995 की झारखण्ड क्षेत्र स्वशासी परिषद ((JAAC -जैक) के गठन की राजकीय अधिसूचना जारी की गयी तथा 9 अगस्त, 1995 * को औपचारिक रूप से इसका गठन किया गया।
शिबू सोरेन को जैक का अध्यक्ष तथा सूरज मंडल को इस परिषद् का उपाध्यक्ष मनोनीत कियां गया।
झारखण्ड क्षेत्र स्वायत् परिषद् का गठन संथाल परगना तथा छोटानागपुर क्षेत्र के 18 जिलों को मिलाकर किया गया था।
राज्य गठन – अंतिम चरण
22 जुलाई, 1997 को बिहार विधानसभा द्वारा अलग झारखण्ड राज्य गठन हेतु संकल्प पारित कर उसे केन्द्र सरकार को भेजा गया।
1998 में केन्द्र सरकार ने बिहार विधानसभा द्वारा पारित संकल्प के आधार पर वनांचल राज्य से संबंधित बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक तैयार कर उसकी स्वीकृति हेतु बिहार सरकार को भेजा जिसे बिहार विधानसभा से नामंजूर कर दिया गया।
25 अप्रैल, 2000 को बिहार सरकार द्वारा अलग झारखण्ड राज्य हेतु बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक, 2000 को स्वीकृति प्रदान की गई।
2 अगस्त, 2000 को लोकसभा तथा 11 अगस्त, 200o* को राज्यसभा द्वारा बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक को पारित कर दिया गया।
25 अगस्त, 2000 को राष्ट्रपति के. अर, नारायणन ने बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक, 2000 पर हस्ताक्षर कर उसे अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी।
15 नवंबर, 2000 को (बिरसा मुण्डा के जन्मदिवस के अवसर पर) देश के 28वे राज्य के रूप में भारत के मानचित्र पर झारखण्ड नामक पृथक राज्य का चित्र अकित हो गया। इसमें बिहार के 18 जिलों को शामिल किया गया था।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
झारखण्ड संयुक्त बिहार का 46 प्रतिशत भू-भाग है।
1928 ई. में साइमन कमीशन द्वारा झारखण्ड को पृथक राज्य बनाने की अनुशंसा की गयी थी जिसे कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई। वर्ष 1929 में साइमन करमीशन द्वारा पृथक झारखण्ड राज्य के गठन हेतु एक ज्ञापन प्रस्तुत किया गया था।
झारखण्ड राज्य गठन के समय भारत के राष्ट्रपति श्री के, आर. नारायणन थे।
राज्य गठन के समय केन्द्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार थी तथा भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थी।
राज्य गठन के समय बिहार राज्य की मुख्यमंत्री राबड़ी देवी थीं।
धनबाद के कोयला क्षेत्र में ए, के, राय (अरूण कुमार राय) ने श्मिक संघ आंदोलन का नेतृत्व किया था।
1968 ई. में कार्तिक उराँव द्वारा अखिल भारतीय विकास परिषद् का गठन किया गया था।
विनोद बिहारी महतो ने शिवाजी समाज की स्थापना की थी।
1971 ई. में माक्संवादी को-आर्डिनेशन कमिर्ी के द्वारा अलग राज्य की मांग रखी गयी थी। इस कमिटीी के अध्यक्ष ए., के. राय थे।
1988 ई. में भारतीय जनता पार्टी द्वारा वनांचल (वर्तमान झारखण्ड) प्रदेश की मांग की गयी थी।
झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन : प्रमुख संगठन
संगठन का नाम
स्थापना वर्ष
संस्थापक/अन्य
क्रिश्चियन स्टूडेंट्स आगेनाइजेशन
1912
जे. बार्थोलमन
छोटानागपुर उन्नति समाज
1915
जुएल लकड़ा, पाल दयाल, बंदीराम उराँव व ठेबले उराँव
किसान सभा
1930
ठेबले उराँव
छोटनागपुर कथोलिक सभा
1933
बोनिफेस लकड़ा
छोटानागपुर -संथाल परगना आदिवासी महासभा
1938
थियोडोर सुरीन
आदिवासी महासभा
1939
छोटानागपुर-संथाल परगना आदिवासी महासभा का नाम परिवर्तित किया गया
यूनाइटेड झारखण्ड पार्टी
1948
जस्टिन रिचर्ड एवं जयपाल सिंह
झारखण्ड पार्टी
1950
जयपाल सिंह ( 1963 में कांग्रेस में विलय)
छोटानागपुर संयुक्त संघ
1954
सुखदेव महतो
बिरसा सेवा दल
1965
ललित कुजूर
अखिल भारतीय झारखण्ड पाटी
1967
बागुन सुम्ब्रई
झारखण्ड पार्टी
1969
एन. ई. होरो (अखिल भारतीय झाखण्ड पार्टी से अलग होकर निर्मित)