कोल विद्रोह के क्या क्या कारण थे?

1831–32 के छोटा नागपुर के कोल विद्रोह के कारण एवं स्वरूप की विवेचना करें

1831–32 ईसवी के कोल विद्रोह के क्या क्या परिणाम निकले? उसपर प्रकाश डाले।छोटानागपुर के कोल विद्रोह के स्वरूप की विवेचना करें क्या वह उनकी स्वतंत्रता का संग्राम था।

आज हम झारखंड में हुए कोल विद्रोह के बारे जानेंगे आखिर ये कॉल कोल विद्रोह क्या था? आज इस आर्टिकल में कोल विद्रोह के बारे में विस्तार से जानेंगे। 1831-32 ईस्वी में छोटानागपुर के कॉल आदिवासियों द्वारा प्रारंभ किया गया व्यापक विद्रोह कोल विद्रोह था। 1857 ईसवी के पूर्वी के छोटानागपुर के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है विभिन्न इतिहासकारों ने कोल विद्रोह के कारण एवं उसके स्वरूप का अपने ढंग से विश्लेषण किया है।

छोटानागपुर कोल विद्रोह का क्या क्या कारण थे

अत्यधिक लगान वृद्धि, बिना मज़दूरी के बलपूर्वक लोगो से काम करवाना, महाजनों द्वारा अत्यधिक सूदखोरी आदि, इस विद्रोह के कारण कृषि जीवन में व्याप्त आक्रोश मुख्य कारण था। लेकिन इस संबंध में जो तथ्य उपलब्ध है उसके विश्लेषण से मालूम होता है कि कोल विद्रोह के द्वारा यहां के लोगों ने अत्याचारी ब्रिटिश शासन से मुक्त होने का प्रयास कर रहे थे।

1831-35 ईस्वी के कोल विद्रोह के कारण का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत कर सकते हैं-

  • राजनीतिक कारण
  • प्रशासनिक कारण
  • आर्थिक कारण
  • सामाजिक तथा धार्मिक कारण
  • तत्कालिक कारण

राजनीतिक कारण

बंगाल में ब्रिटिश राज्य की स्थापना के बाद छोटानागपुर के सुदूर घने वनों से आच्छादित गुमनाम इलाकों में अंग्रेज अंग्रेजी तथा उनके कानून आ जानें से वहां पर पहले से स्थापित राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक जीवन में हड़कंप मच गई थी। 1831–32 ईसवी तक का जो कोल विद्रोह चला था इसी के कारण हुआ था, 1833 –32 ईस्वी के पूर्व छोटानागपुर के स्थानीय नागवंशी शासक और उनकी प्रजा का अंग्रेजों के साथ संबंध बहुत ही तनावपूर्ण था अंग्रेजों की राजस्व नीति ने स्थानीय शासकों का आर्थिक रुप से बर्बाद करके रख दिया था।

धीरे-धीरे अंग्रेजों ने उनके सभी अधिकार कर लगाने का अधिकार सिविल तथा पुलिस शासन का अधिकार उनसे छीन लिया गया।

इस प्रकार एक सोची-समझी योजना के तहत यहां के स्थानीय राजाओं, सरदारों तथा अन्य शासकों के सभी अधिकार एवं प्रभाव समाप्त कर उनको राजनीतिक आर्थिक रूप से समाप्त करने का प्रयास किया गया था। ताकि वे उनके स्थान पर अपने प्रभाव एवं शक्ति का विस्तार कर सकें, यहां का आदिवासी अपने शासकों की इस स्थिति से बहुत दुखी थे। कोल विद्रोह इन स्थानीय शासकों की सहमति एवं समर्थन से प्रारंभ हुआ था। स्थानीय शासक अंग्रेजी शासन में अपनी प्रजा उत्पीड़न से अनजान नहीं थे।

यदि उन्होंने कॉल एवं अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह के लिए भड़काया तो कोई आश्चर्य नहीं है। अंग्रेजों के सरंक्षण में उनके कर्मचारी तथा मैदानी इलाकों से आए हिंदू मुस्लिम सिख आदि उनका राजनीतिक, आर्थिक तथा नैतिक शोषण कर रहे थे।

प्रशासनिक कारण

कुछ प्रशासनिक कारणों की वजह से यहां के आदिवासियों को विद्रोह के लिए प्रेरित किया। बाहर से आए हिंदुओं, मुसलमानों, सिक्खों, व्यापारियों तथा कर्मचारियों ने आदिवासियों का आर्थिक शोषण किया। किंतु ब्रिटिश सरकार इसे रोकने के लिए तथा आदिवासियों की भलाई के लिए कुछ भी नहीं किया। ब्रिटिश शासन के पहले स्थानीय प्रशासन में पुलिस दरोगा आदि पदो पर आदिवासी अथवा स्थानीय व्यक्ति होते थे। किंतु अब इन सभी पदों पर बाहरी व्यक्तियों की नियुक्ति की जा रही थी।

ये स्थानीय भाषा रीति रिवाजो से अलग थे, तथा इन्हें आदिवासियों ने कभी पसंद नहीं किया। स्थानीय प्रबंध के आधार पर बनाए गए कानून पूर्णत: जमीदारों और बाहरी गैर आदिवासियों के पक्ष में थे। अंग्रेजों का न्यायिक शासन में आदिवासियों को कभी रास नहीं आई। कटबर्ट ने अंग्रेज उच्च अधिकारियों को पत्र भेजकर प्रस्ताव रखा था कि आदिवासियों के हितों के विरुद्ध कानूनों को हटा लिया जाए किंतु सरकार ने इसकी अवहेलना की और अंग्रेजी कानून से आदिवासियों को बहुत पीड़ा सहनी पड़ी।

आर्थिक कारण

आदिवासियों की आर्थिक ने 1831–32 ईस्वी के विद्रोह के लिए ठोस भूमि तैयार की। आदिवासियों का शोषण सभी लोगों ने किया, उनके अपने स्थानीय शासको (राजाओं, जागीरदारों, सामंतो, सरदारों इत्यादि शामिल थे) ने उनकी उपेक्षा की और उनका आर्थिक शोषण किया। कटबर्ट के अनुसार महाराजा और उनके छोटे सरदार रैयतो से जबरन बिना मज़दूरी के बलपूर्वक करवाया जाता था। तथा कई प्रकार से कर वसूला करते थे, सरकार के पदाधिकारियों के गांव आने पर उनका स्वागत सत्कार करने का भार गांव के आदिवासियों को ही उठाना पड़ता था।

यह भोले-भाले आदिवासियों को ठगकर कर या फिर डरा धमका कर उनका बकरा, भैंसें, मुर्गे आदि उठाकर ले जाते थे। अंग्रेजों के सरंक्षण में बाहरी गैर आदिवासी व्यापारी साहूकार तथा कर्मचारी धोखे से आदिवासियों की जमीन पर कब्जा करने लगे थे, परिणामस्वरूप असंतुष्ट आदिवासियों ने विद्रोह का सहारा लिया।

सामाजिक तथा धार्मिक कारण

छोटानागपुर के शांत प्रदेश में अंग्रजों के प्रवेश से यहां के आदिवासियों के सांस्कृतिक जीवन को भी काफी प्रभावित किया। यहां के स्थानीय शासक जो हिंदू धर्म स्वीकार कर चुके थे, बाहरी प्रभाव में आकर आदिवासियों की अवहेलना करने लगे और उन्हें हेय दृष्टि से देखने लगे। परिणामस्वरुप मैदानी संस्कृति के आदिवासियों के मन में आक्रोश पैदा हुआ, चूंकि इस पहाड़ी क्षेत्र में मैदान सांस्कृतिक के सरंक्षण अंग्रेज लोग थे। अत: इनका क्रोध अंग्रेजो की ओर उन्मुख हो गया आदिवासियों का धर्म धरती और धन सभी खतरे में था, अत: उन्होने इसकी सुरक्षा के लिए शस्त्र उठाने का निश्चय किया।

तत्कालिक कारणv

इस प्रकार उपयुक्त तथ्यों एवं परिस्थितियों ने छोटानागपुर एवं पलामू में कोल विद्रोह के लिए वातावरण एकदम तैयार हो चुका था। मात्र विस्फोट के लिए एक चिंगारी की आवश्यकता थी, ब्रिटिश सरकारी सूत्रों के अनुसार छोटानागपुर के महाराजा के भाई मानकी और मुंडाओं की जमीन को बाहरी गैर-आदिवासियों को दे दिया गया। इन आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल कर दिया गया, इतना ही नहीं मानकी सरदारों की बहनों के साथ इन बाहरी तत्वों ने और सम्मानजनक व्यवहार भी किया।

इस घटना ने सूखी लकड़ी की ढेर पर चिंगारी का कार्य किया। असंतुष्ट आदिवासी 11 दिसंबर 1831 ईस्वी को तमाड़ के निकट लंका में एकत्र हुए और विद्रोह का झंडा खड़ा कर दिया।

विद्रोह का स्वरूप

इस विद्रोह के स्वरूप के संबंध में विभिन्न विद्वानों ने अलग अलग मत दिए, कुछ लोगों के मतानुसार कोल लोगों का विद्रोह मूल रूप से स्थानीय अताताइयों (terrorists) के विरुद्ध और उनका आंदोलन राष्ट्रीय या राष्ट्रवाद से ओतप्रोत था। इसके विपरीत कुछ लोगों का कहना है कि बहुत हद तक कोल विद्रोह इस क्षेत्र में ब्रिटिश शक्ति और प्रभाव के विरुद्ध एक चुनौती था। यह वस्तुत: उनका स्वतंत्रता संग्राम था इतिहासकार थोंटर एवं मिल के अनुसार कोल विद्रोह ब्रिटिश व्यवस्था एवं कानून के विरुद्ध “जंगल का कानून” की पूर्ण स्थापना का प्रयास था।

कुछ विद्वानों ने इस विद्रोह का मूल कारण कृषि संबंधी अव्यवस्था में ढूंढने का प्रयास किया है, सरकारी दस्तावेजों के अध्ययन से स्पष्ट होता है यह विद्रोह पूर्णता अंग्रेजों के विरोध था। विद्रोह के द्वारा अंग्रेजी शासन से छुटकारा पाना चाहते थे चार्ल्स मेटकाफ्ट ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है।

कुछ विद्वानों के मतानुसार अंग्रेजों द्वारा अपने अधिकारों के हनन से असंतुष्ट छोटानागपुर के महाराजा ने कोलों को विद्रोह के लिए भड़काया था। यद्यपि अंग्रेज विद्वानों ने ही इस मत का खंडन किया था, विद्रोही कोलों द्वारा ब्रिटिश स्थानों पर आक्रमण इस बात का प्रमाण है कि वह अंग्रेजी शासन से अत्यंत असंतुष्ट थे और वे इसे हमेशा के लिए छुटकारा पाना चाहते थे।

कोल विद्रोह से क्या निष्कर्ष निकलता है

कहा जा सकता है कि 1831–32 ईसवी का कॉल विद्रोह ब्रिटिश शासन का असमान अक्षम एवं अन्यायपूर्ण स्वरूप के प्रतिवाद के रूप में प्रारंभ हुआ। किंतु बहुत शीघ्र यह एक लोकप्रिय मुक्ति आंदोलन के रूप में परिवर्तित हो गया। यद्यपि या विद्रोह दबा दिया गया किंतु या कोल विद्रोह व्यापक जन असंतोष का प्रदर्शन मात्र नहीं था वस्तुत: यह 1857 ईसवी के विद्रोह के पूर्व छोटानागपुर के जंगल निवासियों को स्वतंत्रता संग्राम था।

कोल विद्रोह का परिणाम

1831 32 ईसवी के कुल विद्रोह के गंभीर परिणाम हुए इस क्षेत्र के लोगों द्वारा विदेशी के विरुद्ध संभवत: यह प्रथम विद्रोह था। इस विद्रोह का परिणामस्वरूप धन जन की अपार क्षति हुई, आदिवासियों का आक्रमण से हजारों गैर आदिवासी मारे गए। व्यापारियों साहूकारों तथा सूदखोरों को चुन चुन कर मारा गया, चूड़िया, डोयसा, कोराम्बी, चुटिया तथा बड़कागढ में गैर आदिवासी व्यापारी और सूदखोरों का विशेष जनसंहार हुआ। पलामू, तरहशी, लेस्लीगंज, स्माहपुर, गढ़वा आदि इलाकों के थानों पर आक्रमण हुए तथा हजारों घर जला दिए गए।

सरकारी संपत्ति को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया गया सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 219 हिंदू, 76 मुस्लिम परिवार और 4086 घर 17058 पशु और हजारों मन अनाज कोल विद्रोह के भेंट चढ़ गए। कोल विद्रोह का फायदा उठाकर कई व्यापारियों और महाजनों को लूटा गया, विद्रोह के कारण हजारों मन अनाज नष्ट हो जाने से अनेकों गांव में भूखमरी की स्थिति पैदा हो गई। और अनेक गैर आदिवासी अन्न के अभाव से मरने लगे थे। विद्रोह इतनी तेजी से फैली कि सरकारी तंत्र इसे नियंत्रित करने में असफल हो रहा था।

इस विद्रोह में छोटानागपुर से लेकर बनारस तक आतंक पैदा कर दिया था, यह विद्रोह तो दबा दिया गया। लेकिन इससे अन्न क्षेत्र के आदिवासियों को अपने अधिकारों के रक्षार्थ शस्त्र उठाने के लिए प्रेरित किया गया। परिणाम स्वरूप 1832 ईसवी का भूमिज विद्रोह तथा 1855 ईसवी के संथाल विद्रोह हुआ।

अंग्रेजों ने भी आतंक का जवाब आतंक से दिया अत्यंत क्रूरतापूर्वक विद्रोह को दबा दिया गया। और हजारों आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया गया, लेकिन इसे साथ ही इस विद्रोह ने छोटानागपुर के राजनीतिक तथा आर्थिक स्थिति पर अंग्रेजों को सोचने तथा अपनी नीति पर पूर्व विचार करने के लिए विवश कर किया। इस पुनर्विचार के परिणामस्वरुप उत्तर पश्चिमी सीमांत का गठन किया गया। छोटानागपुर काश्तकारी कानून में सुधार करने का प्रयास शुरू किया 1908 का छोटानागपुर काश्तकारी कानून इस प्रयास की अंतिम कड़ी कही जा सकती है।

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