झारखंड भूमि संबंधी अधिनियम, झारखंड के भूमि से संबंधित कानून

झारखंड भूमि संबंधी अधिनियम – Jharkhand Land Related Act

आज हम झारखंड भूमि संबंधी अधिनियम के बारे में जानेंगे‌ पहले क्या थी और अब क्या है? अंग्रेजों के समय भूमि से संबंधित क्या-क्या अधिनियम थे। और अब लोकतंत्र के समय भूमि से संबंधित अधिनियम क्या है? विस्तार पूर्वक जानेंगे। ब्रिटिश शासन के दौरान विभिन्न प्रकार के कानून बनाकर अंग्रेजों ने प्रशासनिक व्यवस्था को अपने अधीन करने का षड्यंत्र किया। ब्रिटिश सरकार का मुख्य उद्देश्य अपने राजस्व में वृद्धि करना था। इसी क्रम में न्यायालयों का उपयोग कर स्थानीय जमीदारों, जागीरदारों एवं रैयतों की भूमि की नीलामी करना शुरू कर दिया।

नीलामी से बचने हेतु जमींदारों एवं जागीरदारों ने कठोरता से लगाना सुनना शुरू कर दिया परिणाम यह निकला कि रैयतों स्थिति बेहद ही खराब होती चली गई। इस स्थिति में रैयतों ने अन्य किसी विकल्प के न होने के कारण अंग्रेजों एवं जमीदारों के विरुद्ध क‌ई विद्रोह भी किए।

  • ब्रिटिश शासनकाल के दौरान जमींदारों की नियुक्ति तथा उन्हें हटाने का अधिकार सिर्फ जिला कलेक्टर को दिया गया था।
  • 1765 ईस्वी में छोटानागपुर प्रक्षेत्र ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आया करता था।
  • सन् 1765 ईस्वी में झारखंड क्षेत्र में सबसे पहले मालगुजारी व्यवस्था को लागू किया गया था।
  • सन् 1793 ईसवी में रामगढ़ के पहाड़ी क्षेत्रों में स्थाई बंदोबस्त रेग्यूलेशन एक्ट लागू किया गया था।
  • झारखंड में सन् 1824 इसमें पहली बार रैयतों के अधिकारों को परिभाषित करते हुए उनकी सुरक्षा का प्रावधान किया गया था।
  • 1831 – 32 ईसवी का कोल विद्रोह तथा 1895 – 1900 में का बिरसा उलगुलाल विद्रोह प्रमुख था। इन विद्रोह के परिणाम स्वरूप अंग्रेजी शासन सरकार समझ गए थे कि जनजातीय समस्याओं का समाधान किए बिना शांति पूर्वक ढंग से प्रशासन चलाना संभव नही हो सकता है।
  • जनजातियों की इन समस्याओं (जिसमें भूमि संबंधी समस्याएं सर्वाधिक महत्वपूर्ण है) के समाधान के लिए सरकार ने समय-समय पर कई सारे सुधार के प्रयास भी किया था। इस दरमियान सन् 1862 ईस्वी में बाबू रखलदास हलधर के नेतृत्व में भुईहरी भूमि एवं स्थानीय जमीदारों की मझियस भूमि को चिन्हित करने के लिए भुईहरी सर्वे प्रारंभ किया गया था। जो 1869 ईसवी तक चला। जनजातियों की भूमि को संरक्षित करने हेतु सरकार की ओर से उठाया गया यह पहला सराहनीय और प्रभावी कदम था।

  • 1834 ईस्वी में छोटानगपुर क्षेत्र में विल्किंसन कानून लागू किया गया था।
  • राँची के आसपास 1869 ईस्वी में बाबू राखलदास हलधर के नेतृत्व में 2482 गाँवों का भुईहरी सर्वे किया गया था।
  • टवर्स सर्वे, थाकवस्त सर्वे एवं कैडस्ट्रल सर्वे आदि का संबंध भूमि सर्वेक्षण से है।
  • छोटानागपुर भूधृति अधिनियम, 1869 के द्वारा लगान संबंधी विवादों की सुनवाई का अधिकार जिला कलक्टर
    के स्थान पर दीवानी अदालतों को दे दिया गया ।
  • चुटिया नागपुर के क्षेत्र में 1879 ई. में छोटानागपुर एवं काश्तकारी प्रक्रिया अधिनियम को लाग किया गया।
  • ब्रिटिश सरकार ने छोटानागपुर के तत्कालीन कमिश्नर फारबेस (फोर्बस) की सिफारिश पर लिस्टर एवं जॉन रीड
    को गँची जिले में भमि की पैमाईश और 1902 में बन्दोबस्ती का काम सौंपा। यह कार्य 1902 से 1910 ई. तक चला जिसके बाद मुण्डा जनजातियों की जमीन से संबंधित खतियान (रिकार्ड ऑफ राइटस) तैयार किया गया।
    • मुण्डारी खूँटिकट्टीदारी प्रथा को 1903 ई. में मान्यता प्रदान की गयी।
    • बिहार भूमि सुधार अधिनियम को 1950 ई. में लागू किया गया था।
    • इस प्रक्रिया में सरकार द्वारा उठाये गये कुछ अन्य महत्वपूर्ण कदम निम्न हैं-
    • छोटानागपुर भूधूृति अधिनियम – 1869
      (Chhotanagpur Tenures Act)
    • छोटानागपुर भूस्वामी एवं काश्तकारी प्रक्रिया अधिनियम – 1879
      (Chota Nagpur Landlord and Tenant Procedures Act)
    • बंगाल काश्तकारी अधिनियम – 1897
      (Bengal Tenancy Act)
    • 1902 में छोटानागपुर में मौजावार सर्व का प्रारंभ। इसके अंतर्गत खेवट एवं खतियान का निर्माण किया जाना था।
    • 1903 में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम के प्रारूप का निर्माण हुआ।
    • छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम – 1908
      (Chotanagpur Tenancy Act)
    • संताल परगना काश्तकारी अधिनियम – 1949
      (Santal Pargana Tenancy Act)
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