छोटानागपुर के नागवंशीय राजाओं की क्या-क्या उपलब्धियां थी विवेचना करें।
नागवंशीय राज्य की स्थापना कैसे हुई?
छोटानागपुर के इतिहास में नागवंशी राज्य की स्थापना एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना थी। वस्तुत: प्रथम शताब्दी से 19वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध तक का झारखंड का इतिहास नगवंशी शासन का इतिहास रहा है। जिसमें बिहार के विभिन्न भागों में बौद्ध एवं जैन धर्म का प्रचार चल रहा था। उस समय छोटानागपुर के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक राजवंशों की भी स्थापना हो रही थी। जैसे छोटानागपुर खास में नागवंश, पलामू में रक्सेल अंश तथा सिंहभूम में सिंह वंश इत्यादि थे।
1 मई 1787 ईस्वी को तत्कालीन नागवंशी से महाराजा दर्पनाथ शाह द्वारा भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल को एक कुर्सीनामा प्रेषित किया गया। इसके अनुसार नागवंश का संस्थापक फणि मुकुट राय पुंडरीक नाग एवं वाराणसी से ब्राह्मण कन्या पार्वती का पुत्र था,जिसे महरा मुंडा व अन्य राजाओं की स्वीकृति से राजा चुना गया था। नागवंशी परंपरा के अनुसार या घटना 104 ईसवी में घटी थी। इस प्रकार नागवंशी राजाओं के कुर्सीनामा के अनुसार इस राजवंश की स्थापना प्रथम शताब्दी में ही हो गई थी। किंतु इस तिथि पर विद्वानों में मतभेद हैं। क्योंकि कुषाण एवं गुप्तकालीन ऐतिहासिक स्रोतों में इस वंश का कहीं भी कोई उल्लेख नहीं मिलता है।
एक विद्वान के अनुसार इस वंश की स्थापना एक आर्मी शताब्दी में हुई थी, जे. रीड नामक अंग्रेज ने अपने सर्वे एवं सेटलमेंट रिपोर्ट में लिखा है कि नागवंशी राजा की स्थापना 10 वीं शताब्दी में हुई थी इसी काल में छोटानागपुर क्षेत्र में बाहर से बहुत बड़ी संख्या में हिंदुओं का आना शुरू हुआ था। इस आधार पर जे. रीड का अनुमान सही मालूम होता है।
फणि मुकुट राय – प्रथम नागवंशी राजा फनी मुकुट राय के राज्यरोहन के समय छोटानागपुर के अधिकांश जनता जनजातीय जाति की थी। किंतु इस क्षेत्र में ब्राह्मण राजपूत एवं अन्य हिंदू जातियों की संख्या भी लगातार बढ़ोतरी हो रही थी। नागवंशी राज्य के पूर्व में पंचेत का राज्य था, दक्षिण की ओर क्योंझर (उड़िसा) का राज्य था। फणि मुकुट राय का विवाह पंचेत के गोवंशी राजपूत घराने में हुआ था, उसने पंचेत के राजा की सहायता से क्योंझर के शासक को पराजित किया। बंता हज्जाम, बादम, रामगढ़, चंगुरिया, गोला, पलानी, टोरी, मानकेरी और बरवा उसके राज्य में शामिल थे।
उसने अपनी राजधानी सुतियाम्बें में रथ सूर्य मंदिर का निर्माण कराया, राजकीय ठाकुर बाड़ी की प्राण प्रतिष्ठा जगन्नाथपुरी पंडा द्वारा संपन्न कराई गई थी।। इस पंडा को सोरंडा और महुगांव नाम के गांव दिए गए थे, जहां वह बस गए थे। वस्तुतः एक गैर आदिवासियों को फणि मुकुट ने सादर निमंत्रित कर अपने राज्य में बसाया था। बेलकप्पी गांव का श्रीवास्तव कायस्थ पांडे भवराय नागवंशी राजा का दीवान था।
प्रताप राय : चौथा नागवंशी राजा प्रताप राय सुतियाम्बें से राजधानी बदलकर स्वर्णरेखा नदी के तट पर चुटिया ले गए। सुदूर काशी तक से लोगों को आमंत्रित कर राजधानी चुटिया में बसाया गया।नागवंशी राज्य में सर्वत्र सर्वव्यापी शांति एवं सुरक्षा थी और वहां का राज्य उत्तरोत्तर शक्तिशाली होता जा रहा था।
छोटानागपुर के नागवंशीय राजाओं की उपलब्धियां क्या क्या थी?
इस प्रकार लगभग 800 वर्षों तक (11वीं शताब्दी से लेकर 1857 ईसवी) नागवंशी शासकों ने छोटानागपुर के मुंडा प्रभुत्व वाले प्रदेश में अपना वर्चस्व स्थापित करके स्थानीय सभ्यता और संस्कृति को पहचान दिलाई। कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी उनका बहुत उल्लेखनीय योगदान रहा है। नागवंशी शासक स्वयं हिंदू थे और उन्होंने हिंदू धर्म तथा विधि विधानों को प्रश्रय दिया। शाकद्वीपी ब्राह्मण जो फणि मुकुट राय के समय से ही छोटानागपुर में आकर बसे हुए थे, बहुत निष्ठापूर्वक नागवंशियों के पुरोहित, गुरु, पुजारी की भूमिका निभा रहे थे।
इन ब्राह्मणों ने नागवंशियों की संस्कृति और उनके शारीरिक गुणों का अध्ययन करके यह घोषणा की कि नागवंशी क्षत्रिय हैं, उनके प्रयासों से ही नागवंशी राजाओं के संबंध कलिंग (उड़ीसा) महाकौशल तथा छत्तीसगढ़ के क्षत्रियों के साथ स्थापित हुए। नागवंशी शासकों की छत्रछाया में छोटानागपुर में अनेकों मंदिरों एवं देव स्थलों का निर्माण कराया गया है। इस प्रकार स्थापत्य कला की दृष्टि से भी नागवंशियों का काल बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है। 10वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गजहौंर ने हापामुनी नामक स्थान में महामाया मंदिर का निर्माण कराया गया।
नागवंशी राजा रघुनाथ शाह ने मराठागुरु ब्रह्मचारी हरीनाथ से प्रभावित होकर उनकी प्रेरणा से चुटिया में राधा वल्लभ मंदिर की स्थापना की। यह मंदिर उस काल के स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है जगन्नाथपुर (बड़ाका गढ़) में जगन्नाथ जी के मंदिर का निर्माण नागवंशी महाराजा के एक सामंत ठाकुर ऐनी शाह ने संवत 1748 (1691 ईस्वी) में कराया था। या मंदिर एक किले की शक्ल में है, फोड़ता के प्रसिद्ध मदन मोहन मंदिर का निर्माण में नागवंशी राजा रघुनाथ शाह ने ही 1665 ईस्वी में कराया था। नागवंशी राजाओं के शासनकाल में शैवायत का भी प्रचार एवं प्रसार जोर शोर से हुआ करता था।
तांगीनाथ का शिव पूजन स्थल उल्लेखनीय है 1095 ईस्वी में नागवंशी राजा भीमकर्ण ने सिसई क्षेत्र के महिरजान गांव में एक मंदिर का निर्माण कराया। मध्यकालीन गुमला क्षेत्र में नागवंशियो की राजधानी दोइसा में अनेक देव स्थलों एवं मंदिरों का निर्माण किया गया। रघुनाथ शाह द्वारा निर्मित जगन्नाथ मंदिर और उसके उत्तराधिकारी राम शाह द्वारा निर्मित कपिलनाथ मंदिर दोइसा में प्रस्तर स्थापत्य कला का सर्वश्रेष्ठ नमूना है। इसके पश्चात नई राजधानी पालकोट में प्राचीनतम धार्मिक संरचना 350 वर्ष प्राचीन सती मठ है। छोटानागपुर की स्थापत्य कला देव स्थलों के अतिरिक्त मुख्यत: कुछ किलो एवं राजप्रसादो में परिलक्षित होती है।
छोटानागपुर में खास में प्रारंभिक नागवंशी राजाओं ने अपना कोई महल बनवाया था भी या नहीं इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता है।
उनकी प्रथम राजधानी सुतियाम्बें में उनके आवास का एकमात्र स्मारक एक टिला है, बाद की राजधानियों चुटिया तथा खुखरा में भी किसी राजकीय आवास का कोई अवशेष नहीं दिखाई देता है। वस्तुतः उस काल तक नागवंशियों ने अपना कोई उल्लेखनीय महल नहीं बनवाया था। 1615 ईस्वी तक पहाड़ और घाटियां ही उनके आवास स्थल थे। किंतु दुर्जन शाल के जहांगीर के दरबार से लौटने के बाद 1627 ईस्वी को दोइसा को नई राजधानी बनाई। जिसे अनेक महलों मंदिरों से सुसज्जित किया गया, महलों में अब केवल नवरत्न गढ़ बचा हुआ है।
नागवंशी राजाओं के सरंक्षण में छोटानागपुर क्षेत्र में वाणिज्य एवं व्यवसाय की भी प्रगति हुई और बाहर से बड़ी संख्या में व्यापारियों का छोटानागपुर में प्रवेश हुआ।
अंग्रेजों के विरुद्ध इस क्षेत्र में संगठित विद्रोह करने का श्रेय यहां के नागवंशी शासकों को ही जाता है। तमाड़ के भोला ठाकुर ने कोल विद्रोह में भाग लिया था 1सन् 857 ईस्वी के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में जगन्नाथपुर के ठाकुर विश्वनाथ सहदेव एवं उसके दीवान पांडेय गणपत राय ने भाग लेकर इस क्षेत्र का गौरव मान बढ़ाया था। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि छोटानागपुर का लगभग 800 वर्षों का इतिहास वस्तुतः नागवंशी राजाओं का इतिहास रहा है, उसके उल्लेख के बिना इस क्षेत्र का इतिहास मानो अधूरा है।