Jaun elia shayari in urdu word
कौन कहता है उमर भर निबाह कीजिए
बस आइये, बैठिए, फ़ना कीजिये
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ऐलान उसका देखिए कि मजे में है
या तो कोई फ़कीर है या फ़िर नशे में है
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हम वो हैं जो खुदा को भूल गए
तुम मेरी जान किस गुमान में हो
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देख लो मैं क्या कमाल कर गया हूं
जिंदा भी हूं और इंतकाल कर गया हूं
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तुम पे मरने से कहीं बेहतर था
हम किसी हादसे में मर जाते
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किस लिए देखती हो आईना
तुम तो खुद से भी खूबसूरत हो
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अजब था उसकी दिलज़ारी का अन्दाज़
वो बरसों बाद जब मुझ से मिला है
भला मैं पूछता उससे तो कैसे
मताए-जां तुम्हारा नाम क्या है?
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साल-हा-साल और एक लम्हा
कोई भी तो न इनमें बल आया
खुद ही एक दर पे मैंने दस्तक दी
खुद ही लड़का सा मैं निकल आया
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दौर-ए-वाबस्तगी गुज़ार के मैं
अहद-ए-वाबस्तगी को भूल गया
यानी तुम वो हो, वाकई, हद है
मैं तो सचमुच सभी को भूल गया
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रिश्ता-ए-दिल तेरे ज़माने में
रस्म ही क्या निबाहनी होती
मुस्कुराए हम उससे मिलते वक्त
रो न पड़ते अगर खुशी होती
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दिल में जिनका निशान भी न रहा
क्यूं न चेहरों पे अब वो रंग खिलें
अब तो खाली है रूह, जज़्बों से
अब भी क्या हम तपाक से न मिलें
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शर्म, दहशत, झिझक, परेशानी
नाज़ से काम क्यों नहीं लेतीं
आप, वो, जी, मगर ये सब क्या है
तुम मेरा नाम क्यों नहीं लेतीं
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कोई ताल्लुक़ ही ना रहे
जब कि सबब भी बाकी हो
क्य़ा मैं अब भी ज़िन्दा हूँ
क्य़ा तुम अब भी बाकी हो