पंकज त्रिपाठी का जीवन परिचय : Pankaj Tripathi biography
पंकज त्रिपाठी की बायोग्राफी क्या है?
पंकज त्रिपाठी (Pankaj Tripathi) जी का नाम भला किसने नहीं सुना होगा खासकर जाब बात गैंग्स ऑफ वासेपुर की होती है। ऐसा जबरदस्त ऐक्टिंग नैच्रल ऐक्टिंग करते हैं की सब इनके कायल हो जाते हैं। पंकज त्रिपाठी जी पब्लिसिटी में नहीं सिम्प्लिसिटी में में विश्वास करते है, सिल्वर स्क्रीन हो या ओटीटी प्लाटफ़ार्म आज हर फिल्म की पहली चॉइस वासेपुर के कुरैशी और मिर्जापुर के कालीन भैया पंकज त्रिपाठी को ही लेना चाहते हैं। लोग कहानी भूल जाते हैं लेकिन इनका करेक्टर नहीं भूल पाते। कोई ऐसे ही पंकज त्रिपाठी नहीं बन जाता है। एक वक्त था जब पत्नी के जन्मदिन पर केक खरीदने के लिए इनके पास सिर्फ दस रुपये थे। और आज की तारीख में एक एक फिल्म के लिए 10 – 10 करोड़ रुपये फीस ले लेते है।
इनके गाँव में पढ़ने तक की सुविधा नहीं थी, पेड़ के नीचे बैठकर पढे हैं। घर में टीवी नहीं था, पर इन्होंने एक चीज देखी कि फिल्म देखने के लिए सिनेमाघरों मे जाने के लिए लोग दो घंटे के मनोरंजन के लिए 10 – 10 किलोमीटर पैदल चले जाते थे। खुद फिल्म नहीं देखी लेकिन मन में आया, यार ऐसा क्या होता है ऐक्टिंग क्या मैं भी ऐक्टर बन सकता हूँ क्या? तो वहाँ से सवाल शुरू हुआ इनके मन में। 20 साल तक तो इन्होंने कोई फिल्म ही नहीं देखी, पहली फिल्म इन्होंने 1994 में देखी थी। इनके गाँव में जब मंच पर रामलीला होती थी तो ये सीता का रोल में नाटक किया करते थे, लोगों ने खूब मजाक उड़ाया। बचपन में फिल्म नहीं देख पाए लेकिन फिल्म के हीरो बनना चाहते थे।
पंकज त्रिपाठी का जन्म, परिवार व शिक्षा

पंकज त्रिपाठी का जन्म 5 सितंबर 1976 को बिहार के गोपालगंज जिले के बेलसंड गांव में एक हिंदू ब्राह्मण साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित बनारस तिवारी एक किसान और पुजारी थे, मां का नाम हेमवंती देवी जो एक गृहिणी थीं। चार भाई-बहनों में पंकज त्रिपाठी सबसे छोटे थे, पंकज का बचपन सादगी भरा था। पंकज त्रिपाठी की पत्नी का नाम मृदुला त्रिपाठी है। बचपन से ही वे पढ़ाई के साथ-साथ खेती-बाड़ी और पारिवारिक कामों में हाथ बँटाते थे। और गांव किसी भी तरह के त्योहार के आयोजनों में नाटकों में हिस्सा बनते थे। जहां उन्होंने 12 साल की उम्र में लड़की के वेश बदलकर नाटक करते थे। विद्यालय के वक्त में वे नाटक और रंगमंच में हिस्सा लिया करते थे। शुरू में उनका सपना डॉक्टर बनने का था, लेकिन बाद में उनका झुकाव अभिनय की ओर हो गया।
उन्होंने अपने गांव में बिजली न होने के कारण पेड़ की छांव में पढ़ाई की। शुरुआती दिनों में बेरोजगारी के कारण उनके परिवार का खर्च उनकी पत्नी मृदुला देवी जी कि कमाई से चलता था। पंकज त्रिपाठी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गोपालगंज के डी.पी.एच. स्कूल से पूरी की। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें पटना भेज दिया। जहां उन्होंने पटना कॉलेज में पढ़ाई की और बायोलॉजी से इंटर पास किया। पढ़ाई के साथ-साथ, वे कॉलेज की राजनीति में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के साथ सक्रिय रहे। बाद में, उन्होंने हाजीपुर के इंस्टिट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट में दाखिला लिया और दो साल तक पटना के होटल मौर्य में कुक के रूप में काम किया।
पंकज त्रिपाठी का लव स्टोरी
पंकज त्रिपाठी एक शादी समारोह में गए थे वहाँ साल 1993 में मृदुला मुलाकात से हुई थी। और दोनों को पहली नजर में प्यार हो गया। लड़की उस समय नौवीं कक्षा में थीं। जबकि पंकज ग्यारहवीं में थे। उनकी शादी में रुकावटें आ रही थी क्योंकि उनकी बहन की शादी मृदुला के भाई से हुई थी। जो उनकी जाति की परंपरा के खिलाफ था। फिर भी दोनों ने परिवार को मनाया और 15 जनवरी 2004 को शादी कर ली। शादी के बाद वे मुंबई चले गए, और 2006 में उनकी बेटी आशी त्रिपाठी का जन्म हुआ। मृदुला एक शिक्षिका हैं और गोरेगांव, मुंबई में पढ़ाती हैं।
पंकज त्रिपाठी का फिल्मी सफर
पंकज त्रिपाठी का असली नाम क्या है? तो पंकज त्रिपाठी का असली नाम पंकज तिवारी है इन्होंने अपने और अपने पिता का सरनेम तिवारी से त्रिपाठी बदल लिया था। क्योंकि उन्हें लगता था कि यह उनके अभिनय करियर के लिए बेहतर होगा। एक्टिंग के प्रति जुनून ने उन्हें दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) में दाखिला लेने के लिए प्रेरित किया, जहां से उन्होंने 2004 में एक्टिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की। पंकज त्रिपाठी का संघर्षपूर्ण करियर 2004 से मुंबई में शुरू हुआ। शुरुआत में छोटे-छोटे रोल मिले, लेकिन उन्होंने हर किरदार को गंभीरता से निभाया। पंकज त्रिपाठी ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत 2004 में फिल्म रन से की, जिसमें उन्होंने अभिषेक बच्चन और भूमिका चावला के साथ एक छोटा सा किरदार निभाया। इसके लिए इनको मात्र 8000 रुपये मिले थे। कुछ कुछ लोगों को याद ही होगा।
इसके बाद उन्होंने ओमकारा (2006) और अग्निपथ (2012) जैसी फिल्मों में छोटा मोटा रोल किया था। टेलीविजन में भी उन्होंने पाउडर (2010) और पहली टीवी सीरियल गुलाल (2010) जैसे शो में काम किया। उनका बड़ा ब्रेक 2012 में अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर से मिला। सुल्तान के किरदार से पहचान मिली जहां उन्होंने सुल्तान कुरैशी का किरदार निभाया। इस फिल्म के लिए उनका ऑडिशन 8 घंटे तक चला, और उनकी परफॉर्मेंस ने उन्हें रातों रात कुछ ज्यादा ही फेमस कर दिया। गैंग्स ऑफ वासेपुर में काम करने के बाद हर प्रडूसर और डायरेक्टर इनके साथ काम करना चाहते थे। इसके बाद उन्होंने बहुत सी फिल्मों में काम किया
- फुकरे (2013)
- मसान (2015)
- निल बटे सन्नाटा (2016)
- बरेली की बर्फी (2017)
- न्यूटन (2017)
- स्त्री (2018)
- लूडो (2020)
- गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल (2020)
- 83 (2021)
- OMG 2
इन सब फिल्मों में शानदार अभिनय किया। पंकज ने वेब सीरीज में भी जबरदस्त अभिनय किया एक नया मुकाम हासिल किया। मिर्जापुर (2018) में कालीन भैया, सेक्रेड गेम्स (2018) में खन्ना गुरुजी, और क्रिमिनल जस्टिस में माधव मिश्रा के किरदार ने उन्हें घर-घर में मशहूर किया। उन्होंने तमिल सिनेमा में भी 2018 की फिल्म काला से कदम रखा।
पंकज त्रिपाठी को मिले अवॉर्ड और सम्मान
- फिल्मफेयर ओटीटी अवॉर्ड्स – Mirzapur और Criminal Justice
- न्यूटन (2017) के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार – विशेष उल्लेख
- मिमी (2021) के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का IIFA अवॉर्ड (2022)
- दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और एक फिल्मफेयर अवॉर्ड
पंकज त्रिपाठी की कुल कितनी संपत्ति है?
पंकज त्रिपाठी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
वे मिर्जापुर के कालीन भैया के किरदार के लिए इतने मशहूर हुए कि लोग उन्हें असल जिंदगी में भी इस नाम से बुलाने लगे। पंकज त्रिपाठी को “सादगी का अभिनेता” कहा जाता है। इनका लगभग हर फिल्म में एक स्टाइल होता है गर्दन हिलाने का। जोकि अभिनय में मैच भी करता है।
जब पंकज त्रिपाठी 1993 में ये कॉलेज में पढ़ते थे, मधुबनी में छात्र पर गोलियां चलाई गई थी, तो उस समय के जो मुख्यमंत्री थे लालू प्रसाद, के खिलाफ आंदोलन करने लगे। सड़कों पर उतार गए, तो पुलिस ने पंकज त्रिपाठी को पटना के बेउर नाम के जेल में कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया। 8 बाइ 8 के कमरे के बंद जेल में उसी में खाना, उसी में हगना, पूछताछ के नाम पर पीटते भी थे। राजनीति आंदोलन से जुड़े थे जिस कारण इनको अकेले में रखा था, ताकि जेल में भी ये ग्रुप न बना ले। पंकज त्रिपाठी ने फैसला किया कि जेल के दौरान वे हर तरह के कैदियों से मिलेंगे, तो इसने जेल के ऑफिसर से जाकर कहा कि मुझे के दिन में सिर्फ एक घंटा के लिए उम्रकैद की सजा काट रहे सबसे बड़ा अपराधी से मिलने दे।
पंकज त्रिपाठी उनसे मिलके उनके चरित्र को समझना चाहते थे। जेल ऑफिसर को कुछ समझ नहीं आ रहा था, पुलिस कहता है भईया ऐसे अपराधी से तुम काहे और किस लिए मिलोगे। वो अलग अलग अपराधी से मिलके उनके चरित्र को समझने की कोशिश करना चाहते थे। तो जेल ऑफिसर ने मिलने की आज्ञा दे दी, शराबी से, ठग से माफिया से लेकर बड़े बड़े अपराधी से मिलना शुरू किया। उस वक्त पंकज त्रिपाठी बहुत ही सीधा और सरीफ़ किस्म के थे। असल जिंदगी में आज भी बहुत ही सीधा और शरीफ ही है। हर कैदी को करेक्टर समझने लगे, जो ड्रामा स्कूल में सिखाया जाता है पंकज त्रिपाठी वो चीज जेल मे रहकर वास्तविक जीवन से सिख रहे थे।
1999 की एक कहानी है, पटना की एक मौर्या होटल है, तो पंकज त्रिपाठी वहाँ काम करते थे। एक दिन उनको पता चला की उस होटल में मनोज वाजपाई जी आए हुए हैं। पंकज त्रिपाठी ने अपने सब दोस्त से कहा कि इस कमरे से अगर ऑर्डर आएगा तो देने मैं ही जाऊंगा, तुम लोग मत जाना। तो मनोज वाजपाई ने सेब ऑर्डर किया, लाल लाल सेब लेकर पहुँच गए। अगले दिन होटल से चेकाउट करके मनोज वाजपाई निकल गए। इनको पता नहीं चला बहुत देर बाद पता चला कि मनोज वाजपाई अपनी चप्पल जो है वो गलती से छोड़ गए। हवाई चप्पल थी जो बाथरूम जाने के दौरान पहनते थे। बहुत निवेदन करके इन्होंने वो चप्पल होटल के ऑफिसर से कहा मुझे दे दो।
उन्होंने अपने पास उस चप्पल को रख लिया। ये उनको अपना गुरु मानते थे, भले इन्होंने इन्होंने उनसे ऐक्टिंग नहीं सीखी, तो कई साल के बाद इन्होंने ये बात आम लोगों को बताई। पंकज त्रिपाठी का मनोज वाजपाई के साथ अपनी जिंदगी का सबसे पहली हिट फिल्म दी थी। फिल्म “गैंग्स ऑफ वासेपुर” मनोज वाजपाई ने पंकज त्रिपाठी को एक इंटरव्यू में बेस्ट ऐक्टर तक बताया।
1994 में हम आपके हैं कौन इन्होंने पहली फिल्म देखी थी। उसके बाद से इन्होंने NSD में भर्ती होने की ठान ली। दो बार गए ड्रामा स्कूल गए लेकिन रिजेक्ट हो गए। 2001 में तीसरे बार गए तो इस बार इनकी भर्ती हो गई। तो पहली बार जब ऐक्टिंग करने के लिए मुंबई आए 2003 में, अपनी ड्रामा ट्रेनिंग के बाद इनको 5000 रुपये का एक रोल मिला, एक्शन सीन था, चार पाँच रीटैक किए लेकिन एक्शन डायरेक्टर परेशान हो गए। और बोला किसको पकड़ कर ले आए। पंकज त्रिपाठी को बहुत भला बुरा कहा, और धक्का मारके बाहर निकल दिया। तो जो वहाँ सीनियर ऐक्टर था वो उनसे पूछ लिया 5000 के लिए इतनी गाली सुनके गुस्सा नहीं आता है।
5000 रुपये के लिए इतनी गाली काहे सुन रहे हो, पंकज त्रिपाठी ने कहा देखना यही आदमी एक दिन मेरी डेट मांगेगा। जो आज मेरे लिए गाली दे रहा है एक दिन मेरे लिए ताली बजाएगा। 8 साल बाद वही हुआ इनकी एक बड़ी फिल्म की स्क्रीनिंग हो रही थी, उस स्क्रीनिंग में बॉलीवुड के बहुत से लोग आए हुए थे साथ में वो एक्शन डायरेक्टर भी आया हुआ था। खत्म होते ही एक्शन डायरेक्टर ने तालियाँ बजाई, और बोला वाह सर क्या काम किया आपकी कोई डेट मिल जाएगी क्या? वही समय आ गया था जिस दिन के लिए पंकज त्रिपाठी ने भविष्यवाणी किया था। बड़े ही आराम से कहा की असिस्टेंट से डेट ले लीजिएगा।
2012 मे इनके पास बहुत ही छोटी कार हुआ करती थी, छोटी गाड़ी होने कारण फिल्मसिटी का गार्ड गेट नहीं खोलता था उसको लगता था कोई होगा छोटा मोटा आदमी लेकिन उसमे पंकज त्रिपाठी होते थे। और इनके जो जूनियर आर्टिस्ट होते थे वो महंगी महंगी गाड़ियां ले के आते थे। जिससे उसके लिए तुरंत दरवाजा खोल देते थे। ऐसा कई बार इनके साथ हुआ हार्न बजा रहा है लेकिन गार्ड सुनने का नाम ही नहीं लेता था। बहुत कहने पर खिड़की से निकालकर आवाज देने पर गार्ड आते थे और कहते थे ओ .. आप हैं। फिल्मसिटी के बाहर 2014 एक दिन ऐसे ही इनकी गाड़ी को पीछे कार दिया और पहले बड़े बड़े महंगे वीआईपी गाड़ियों को जाने दे रहा था। शाम को पहुंचना था सन्सेट के समय इनकी शूटिंग होना था, लेकिन ये सीन उस समय शूट ही नहीं कर पाए ये बहुत देर से पहुंचे।
उस दिन उन्हे ये एहसास हुआ, उस समय गाड़ी की इसकी जिंदगी में कोई अहमियत नहीं हुआ करती थी। रोज रोज गार्ड से बहस न करना पड़े, टाइम वेस्ट न करना पड़ा। सिर्फ उसके इन्होंने 2014 में जाकर इन्होंने लग्जरी गाड़ी खरीदी और आज तक वही चला रहे हैं। जरूरत नहीं थी फिर भी मजबूरी के चलते इनको लग्जरी गाड़ी खरीदनी पड़ी। आज भी बहुत सामान्य खादी कपड़े पहनना पसंद करते हैं, महंगे नहीं पहनते हैं। छुट्टी मनाने के लिए विदेश नहीं जाते हैं ये अपना गाँव जाते हैं। वहाँ के बच्चों को अच्छे अच्छे संस्कार भी देते हैं, फिल्मी पार्टी में न के बराबर ही जाते हैं, सिम्पल रहना ज्यादा पसंद करते हैं।