लेटर ऑफ क्रेडिट (LoC) क्या होता है? लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (LoU) क्या होता है? | What is a letter of credit? What is a letter of undertaking?

लेटर ऑफ क्रेडिट (LoC) क्या होता है?

लेटर ऑफ क्रेडिट (Letter of Credit – LoC) एक वित्तीय दस्तावेज होता है, जिसे बैंक या वित्तीय संस्थान जारी करता है। यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार में खरीदार और विक्रेता के बीच भुगतान की गारंटी के रूप में काम करती है। LoC यह सुनिश्चित करता है कि विक्रेता को भुगतान समय पर मिलेगा, बशर्ते वह दस्तावेजों और शर्तों को पूरा करे, और खरीदार को यह आश्वासन देता है कि भुगतान तभी होगा जब सामान या सेवाएँ शर्तों के अनुसार डिलीवर होगा।

What is a letter of credit? What is a letter of undertaking?

लेटर ऑफ क्रेडिट कैसे काम करता है?

  • खरीदार और विक्रेता एक व्यापारिक अनुबंध पर सहमत होते हैं, जिसमें भुगतान LoC के माध्यम से होता है।
  • खरीदार अपने बैंक से LoC जारी करने का अनुरोध करता है। इसके लिए खरीदार को क्रेडिट सीमा या कोलैटरल प्रदान करना पड़ता है।
  • खरीदार को बैंक LoC जारी करता है और इसे विक्रेता के बैंक को भेजता है। LoC में भुगतान की राशि, शिपमेंट की समय सीमा, और दस्तावेज (जैसे बिल ऑफ लैडिंग, इनवॉयस), और अन्य शर्तें शामिल होती हैं।
  • विक्रेता माल को शिप करता है और LoC में उल्लिखित दस्तावेज (जैसे शिपिंग दस्तावेज, गुणवत्ता प्रमाणपत्र) अपने बैंक को प्रस्तुत करता है।
  • विक्रेता का बैंक दस्तावेजों को LoC की शर्तों के अनुसार जाँचता है और उन्हें खरीदार के बैंक को भेजता है।
  • दि दस्तावेज सही हैं, तो खरीदार का बैंक, विक्रेता के बैंक को भुगतान करता है। खरीदार बाद में अपने बैंक को भुगतान करता है, जो पहले से तय शर्तों (जैसे क्रेडिट या तत्काल भुगतान) पर आधारित होता है।
  • खरीदार दस्तावेजों का उपयोग करके माल प्राप्त करता है।

उदाहरण

मान लीजिए, भारत की कंपनी A दुबई की कंपनी B से 1 करोड़ रुपये के हीरे खरीदना चाहती है। कंपनी A अपने बैंक (जैसे SBI) से LoC जारी करवाती है, जिसमें लिखा होता है कि कंपनी B को 1 करोड़ रुपये का भुगतान तभी होगा, जब वह शिपिंग दस्तावेज और गुणवत्ता प्रमाणपत्र देगी। कंपनी B माल भेजती है, दस्तावेज प्रस्तुत करती है, और SBI कंपनी B के बैंक को भुगतान करता है। कंपनी A बाद में SBI को भुगतान करती है।

लेटर ऑफ क्रेडिट के लाभ

  • विक्रेता के लिए – भुगतान की गारंटी, जिससे गैर-भुगतान का जोखिम कम होता है। विश्वसनीयता स्तर बढ़ती है, खासकर नए खरीदारों के के लिए।
  • खरीदार के लिए – माल की डिलीवरी सुनिश्चित होती है, क्योंकि भुगतान दस्तावेजों पर निर्भर करता है। व्यापार में विश्वास बढ़ता है।
  • बैंकों के लिए – शुल्क और ब्याज से आय होती है और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सुगम बनाने में अहम भूमिका निभाती है।

लेटर ऑफ क्रेडिट के प्रकार

  1. रिवोकेबल LoC: इसे जारीकर्ता बैंक, बिना विक्रेता की सहमति के रद्द या संशोधित कर सकता है (बहुत कम उपयोगी)।
  2. इर्रिवोकेबल LoC: इसे रद्द या संशोधित करने के लिए सभी पक्षों की सहमति चाहिए। यह सबसे आम प्रकार है।
  3. कन्फर्म्ड LoC: विक्रेता के बैंक या तीसरा बैंक भुगतान की अतिरिक्त गारंटी देता है।
  4. साइट LoC: भुगतान तुरंत नहीं, बल्कि एक निश्चित अवधि (जैसे 90 दिन) बाद होता है।
  5. ट्रांसफरेबल LoC: विक्रेता LoC के लाभ को तीसरे पक्ष (जैसे आपूर्तिकर्ता) को हस्तांतरित कर सकता है।
  6. रिवॉल्विंग LoC: एक निश्चित अवधि में कई बार उपयोग किया जा सकता है, आमतौर पर नियमित लेनदेन के लिए।
  7. फॉरेन लेटर ऑफ क्रेडिट (FLC): यह विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए उपयोग होता है, जैसा कि मेहुल चोकसी के PNB घोटाले में देखा गया।

निष्कर्ष

लेटर ऑफ क्रेडिट अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भुगतान की सुरक्षा और विश्वास सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह खरीदार और विक्रेता दोनों को जोखिम से बचाता है, लेकिन इसकी जटिलता और दुरुपयोग की संभावना (जैसे PNB घोटाले में) इसे सावधानीपूर्वक उपयोग करने की आवश्यकता को दर्शाती है। PNB घोटाले में फर्जी LoUs और FLCs ने बैंकिंग सिस्टम की कमजोरियों को उजागर किया, जिसके बाद RBI ने LoUs को प्रतिबंधित कर दिया और सख्त नियम लागू किए।

लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (LoUs) क्या होता हैं?

लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (LoU) एक वित्तीय दस्तावेज है, जिसे बैंक द्वारा अपने ग्राहक (आमतौर पर आयातक या व्यापारी) के लिए से जारी किया जाता है। यह एक प्रकार की बैंक गारंटी है, जो विदेशी बैंकों या आपूर्तिकर्ताओं को भुगतान की गारंटी देता है, विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अल्पकालिक ऋण (short-term credit) के लिए। LoU का उपयोग मुख्य रूप से आयात-निर्यात व्यवसाय में किया जाता है, ताकि खरीदार को सामान खरीदने के लिए तत्काल धन उपलब्ध हो और विक्रेता को भुगतान की सुरक्षा मिले।

ये क्या होता हैं? कि अगर हमें किसी भी दूसरे देश लोन लेना है, किसी देश से किसी कंपनी को लोन लेना होता है। कोई अगर विदेश से लोन लेता है तो वह आसानी से भाग भी सकता है। तो जब कोई किसी दूसरे देश लोन लेना चाहता है तो उसके लिए भी बैंक गारंटर बनती हैं। कि हां इस व्यापारी को आप लोन दे दीजिए अगर ये नहीं चुका पाया तो बदले मे हम चुकाएंगे। इसके तहत बैंक अपने ग्राहक के नाम लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (LoUs) जारी करता है।

लेटर ऑफ अंडरटेकिंग की परिभाषा

  • LoU में बैंक यह वचन देता है कि वह अपने ग्राहक की ओर से एक निश्चित राशि का भुगतान करेगा, बशर्ते शर्तें (जैसे दस्तावेजों की प्रस्तुति) पूरी हों।
  • यह आमतौर पर 90 से 180 दिनों की अवधि के लिए जारी किया जाता है और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में विदेशी बैंकों से ऋण प्राप्त करने के लिए उपयोग होता है।
  • LoU को लेटर ऑफ क्रेडिट (LoC) का एक सरल रूप माना जा सकता है, लेकिन यह LoC से कम औपचारिक और अधिक लचीला होता है।

LoU कैसे काम करता है?

  • ग्राहक (उदाहरण के लिए, एक आयातक) अपने बैंक से LoU जारी करने का अनुरोध करेगा। इसके लिए ग्राहक को क्रेडिट सीमा, कोलैटरल, या मार्जिन मनी प्रदान करनी पड़ सकती है।
  • बैंक LoU जारी करता है, जिसमें राशि, अवधि, और भुगतान की शर्तें (जैसे दस्तावेजों की आवश्यकता) शामिल होती हैं। यह दस्तावेज विदेशी बैंक या आपूर्तिकर्ता को भेजा जाता है।
  • विदेशी बैंक LoU के आधार पर ग्राहक को अल्पकालिक ऋण प्रदान करता है, जिसका उपयोग सामान खरीदने के लिए किया जाता है।
  • ग्राहक या विक्रेता LoU में उल्लिखित दस्तावेज (जैसे बिल ऑफ लैडिंग, इनवॉयस) प्रस्तुत करता है।
  • LoU की अवधि समाप्त होने पर, जारीकर्ता बैंक (ग्राहक का बैंक) विदेशी बैंक को भुगतान करता है। ग्राहक बाद में अपने बैंक को यह राशि चुकाता है, जिसमें ब्याज या शुल्क शामिल हो सकता है।
  • यदि ग्राहक भुगतान करने में विफल रहता है, तो बैंक अपने कोलैटरल या क्रेडिट सीमा से राशि वसूल करता है।

    LoU की विशेषताएँ

    • अल्पकालिक: LoU आमतौर पर 90-180 दिनों के लिए होता है, जो आयात के लिए त्वरित वित्तपोषण प्रदान करता है।
    • अंतरराष्ट्रीय व्यापार: यह मुख्य रूप से विदेशी आपूर्तिकर्ताओं या बैंकों के साथ लेनदेन के लिए उपयोग होता है।
    • सुरक्षा: LoU विक्रेता को भुगतान की गारंटी देता है और खरीदार को क्रेडिट सुविधा प्रदान करता है।
    • शुल्क: बैंक LoU जारी करने और प्रबंधन के लिए शुल्क लेता है, जो लेनदेन की राशि पर निर्भर करता है।

    LoU और लेटर ऑफ क्रेडिट (LoC) में अंतर

    LoU और LoC में मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं:-

    पहलूलेटर ऑफ अंडरटेकिंग (LoU)लेटर ऑफ क्रेडिट (LoC)
    परिभाषाबैंक द्वारा जारी गारंटी पत्र, जो भुगतान का वचन देता है।अधिक औपचारिक दस्तावेज, जो विशिष्ट दस्तावेजों पर भुगतान की गारंटी देता है।
    औपचारिकताकम औपचारिक, सरल प्रक्रिया।अधिक औपचारिक, सख्त दस्तावेजीकरण।
    उपयोगमुख्य रूप से अल्पकालिक ऋण के लिए, विशेष रूप से आयात।व्यापक उपयोग, जिसमें आयात, निर्यात, और दीर्घकालिक लेनदेन शामिल हैं।
    दस्तावेजकम दस्तावेजों की आवश्यकता।सख्त दस्तावेजीकरण (बिल ऑफ लैडिंग, इनवॉयस आदि)।
    जोखिमबैंक और ग्राहक के लिए जोखिम अधिक, यदि दुरुपयोग हो।कम जोखिम, क्योंकि शर्तें सख्त होती हैं।

    PNB घोटाले में LoU की भूमिका

    जैसे की मेहुल चोकसी और नीरव मोदी ने पंजाब नेशनल बैंक (PNB) के घोटाले में फर्जी LoUs का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया।

    • फर्जी LoUs: PNB की मुंबई की ब्रैडी हाउस शाखा के कर्मचारियों (जैसे गोकुलनाथ शेट्टी) ने चोकसी और मोदी की कंपनियों (गीतांजलि जेम्स, फायरस्टार डायमंड आदि) के लिए 165 फर्जी LoUs और 58 फॉरेन लेटर ऑफ क्रेडिट (FLCs) जारी किए।
    • कोलैटरल की अनुपस्थिति: ये LoUs बिना किसी कोलैटरल, क्रेडिट सीमा, या 100% कैश मार्जिन के जारी किए गए, जो बैंकिंग नियमों का उल्लंघन था।
    • SWIFT सिस्टम का दुरुपयोग: LoUs को PNB के कोर बैंकिंग सिस्टम (CBS) में दर्ज नहीं किया गया, और SWIFT मैसेजिंग सिस्टम का उपयोग करके विदेशी बैंकों (जैसे इलाहाबाद बैंक, एक्सिस बैंक) को भेजा गया।
    • मनी लॉन्ड्रिंग: इन LoUs के आधार पर विदेशी बैंकों से प्राप्त धन (लगभग 13,850 करोड़ रुपये) को शेल कंपनियों के माध्यम से सर्कुलर लेनदेन में घुमाया गया। इसका उपयोग पुराने LoUs को चुकाने, संपत्ति खरीदने, और व्यक्तिगत लाभ के लिए किया गया।
    • परिणाम: 2011 से 2017 तक 1,212 LoUs में से केवल 53 वैध थे। इस धोखाधड़ी का खुलासा जनवरी 2018 में हुआ, जब PNB ने CBI में शिकायत दर्ज की।

    PNB घोटाले के बाद LoU पर प्रतिबंध

    PNB घोटाले ने भारतीय बैंकिंग सिस्टम में LoUs की कमजोरियों को उजागर किया, विशेष रूप से अनधिकृत और अपारदर्शी जारी करने की प्रक्रिया को। इसके परिणामस्वरूप:

    • मार्च 2018 में प्रतिबंध: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने सभी बैंकों को LoUs और लेटर ऑफ कम्फर्ट (LoC) जारी करना बंद करने का निर्देश दिया।
    • वैकल्पिक व्यवस्था: बैंकों को आयात-निर्यात के लिए लेटर ऑफ क्रेडिट (LoC) और बैंक गारंटी जैसे अधिक औपचारिक और पारदर्शी उपकरणों का उपयोग करने को कहा गया।
    • सख्त नियम: SWIFT सिस्टम को CBS के साथ एकीकृत करना अनिवार्य किया गया, और बिना कोलैटरल के LoUs जारी करने पर रोक लगा दी गई।

    LoU के लाभ

    • विक्रेता के लिए: भुगतान की गारंटी, जो जोखिम को कम करता है।
    • खरीदार के लिए: अल्पकालिक क्रेडिट सुविधा, जिससे तत्काल आयात संभव होता है।
    • बैंकों के लिए: शुल्क और ब्याज से आय।

    LoU की कमियाँ और जोखिम

    • धोखाधड़ी का जोखिम: जैसा कि PNB घोटाले में देखा गया, कर्मचारियों की मिलीभगत से फर्जी LoUs जारी हो सकते हैं।
    • कम पारदर्शिता: LoUs की प्रक्रिया LoC की तुलना में कम सख्त होती है, जिससे दुरुपयोग आसान हो जाता है।
    • बैंक के लिए जोखिम: यदि ग्राहक भुगतान नहीं करता, तो बैंक को नुकसान उठाना पड़ता है, खासकर बिना कोलैटरल के।
    • जटिलता: विदेशी बैंकों के साथ समन्वय और दस्तावेजों की जाँच में समय लग सकता है।

    उदाहरण

    मान लीजिए, भारत की कंपनी A दुबई से 50 लाख रुपये के हीरे आयात करना चाहती है। कंपनी A अपने बैंक (जैसे PNB) से 90 दिनों के लिए LoU जारी करवाती है। PNB LoU को दुबई के बैंक को भेजता है, जो कंपनी A को 50 लाख रुपये का ऋण देता है। कंपनी A इस धन से हीरे खरीदती है। 90 दिनों बाद, PNB दुबई के बैंक को 50 लाख रुपये (ब्याज सहित) का भुगतान करता है, और कंपनी A बाद में PNB को यह राशि चुकाती है। PNB घोटाले में, चोकसी और मोदी ने ऐसे LoUs का उपयोग किया, लेकिन कोई वास्तविक आयात नहीं हुआ, और धन को मनी लॉन्ड्रिंग के लिए घुमाया गया।

    निष्कर्ष

    लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (LoU) अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अल्पकालिक ऋण प्राप्त करने और भुगतान की गारंटी देने का एक उपयोगी उपकरण था, लेकिन इसकी कमजोर प्रक्रिया ने PNB घोटाले जैसे बड़े पैमाने पर दुरुपयोग को जन्म दिया। चोकसी और नीरव मोदी ने फर्जी LoUs के जरिए 13,850 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की, जिसके बाद RBI ने LoUs पर प्रतिबंध लगा दिया। अब बैंकों को अधिक सुरक्षित विकल्प, जैसे लेटर ऑफ क्रेडिट, का उपयोग करना पड़ता है।

    कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (CBS) सिस्टम बैंकिंग क्या है?

    कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (Core Banking Solution – CBS) एक एकीकृत बैंकिंग सॉफ्टवेयर सिस्टम है, जो बैंकों को अपनी विभिन्न सेवाओं और संचालन को डिजिटल और केंद्रीकृत तरीके से प्रबंधित करने में सक्षम बनाता है। यह बैंकों के लिए एक रीढ़ की हड्डी (backbone) की तरह काम करता है, जो ग्राहक खातों, लेनदेन, ऋण, जमा, और अन्य वित्तीय सेवाओं को एक ही प्लेटफॉर्म पर संचालित करता है। CBS का मुख्य उद्देश्य बैंकिंग प्रक्रियाओं को स्वचालित, कुशल, और पारदर्शी बनाना है, साथ ही ग्राहकों को बेहतर सेवाएँ प्रदान करना है।

    साधारण भाषा में समझे तो सीबीएस जो सिस्टम होता है कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (CBS) बैंकिंग सिस्टम की रीड कहा जाता है। हम जब भी किसी को अपने अकाउंट में पैसा जमा करते हैं तो बैंक उसे एक सॉफ्टवेयर में एंट्री करती हैं। जिसे CBS कहते हैं, जिससे पता चलता है कि मेरे अकाउंट में कितना पैसा आया, और जब हम निकालते हैं तो उसे भी CBS में में एंट्री किया जाता हैं। और यह सेंट्रलाइज मशीनरी सिस्टम होती है कोई भी कहीं से बड़े अधिकारी चेक कर सकता है। इसी cbs सिस्टम में कोई कितना लोन लिया है उसको एंट्री किया जाता है।

    CBS काम कैसे करता है?

    1. केंद्रीय सर्वर: सभी बैंकिंग डेटा (ग्राहक जानकारी, खाता विवरण, लेनदेन) एक केंद्रीय सर्वर पर संग्रहीत यानि एकट्ठा होता है।
    2. शाखा कनेक्टिविटी: बैंक की सभी शाखाएँ (बैंक), ATM, और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म इस सर्वर से इंटरनेट या सुरक्षित नेटवर्क के माध्यम से जुड़े होते हैं।
    3. लेनदेन प्रक्रिया:
      • जब कोई ग्राहक लेनदेन करता है (जैसे पैसे ट्रांसफर), यह अनुरोध CBS सिस्टम में रीयल-टाइम में संसाधित होता है।
      • सिस्टम खाता बैलेंस, लेनदेन सीमा, और अन्य नियमों की जाँच करता है, फिर लेनदेन को अपडेट करता है।
    4. डेटा सुरक्षा: CBS सिस्टम में डेटा एन्क्रिप्शन, फायरवॉल, और मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन जैसे सुरक्षा उपाय होते हैं।
    5. इंटीग्रेशन: CBS अन्य सिस्टम, जैसे SWIFT (अंतरराष्ट्रीय लेनदेन के लिए), UPI, और KYC डेटाबेस, के साथ एकीकृत होता है।

    CBS के प्रमुख कार्य

    • ग्राहक खाता प्रबंधन: बचत खाता, चालू खाता, FD, और ऋण खातों का प्रबंधन।
    • लेनदेन प्रबंधन: नकद जमा/निकासी, NEFT/RTGS, चेक क्लियरिंग, और ऑनलाइन ट्रांसफर।
    • ऋण प्रबंधन: ऋण स्वीकृति, EMI गणना, और रिकवरी ट्रैकिंग।
    • ट्रेड फाइनेंस: लेटर ऑफ क्रेडिट (LoC), लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (LoU), और बिल डिस्काउंटिंग।
    • रिपोर्टिंग: दैनिक लेनदेन, बैलेंस शीट, और RBI अनुपालन के लिए रिपोर्ट।
    • KYC और AML: ग्राहक सत्यापन और मनी लॉन्ड्रिंग रोधी (Anti-Money Laundering) निगरानी।

    PNB घोटाले के बाद CBS में सुधार

    PNB घोटाले ने CBS और बैंकिंग सिस्टम की कमजोरियों को उजागर किया, जिसके बाद निम्नलिखित सुधार किए गए:

    1. SWIFT-CBS एकीकरण: RBI ने बैंकों को SWIFT सिस्टम को CBS के साथ पूरी तरह एकीकृत करने का निर्देश दिया, ताकि सभी लेनदेन रिकॉर्ड हों।
    2. LoU पर प्रतिबंध: मार्च 2018 में, RBI ने LoUs और लेटर ऑफ कम्फर्ट को प्रतिबंधित कर दिया, क्योंकि इनका दुरुपयोग आसान था।
    3. ऑटोमेटेड ऑडिट: CBS में स्वचालित ऑडिट और अलर्ट सिस्टम लागू किए गए, जो असामान्य लेनदेन (जैसे बिना कोलैटरल के LoUs) को चिह्नित करते हैं।
    4. सख्त अनुपालन: बैंकों को KYC, AML, और RBI दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन करने के लिए कहा गया।
    5. कर्मचारी प्रशिक्षण: धोखाधड़ी रोकने के लिए कर्मचारियों को CBS सिस्टम के उपयोग और निगरानी के लिए प्रशिक्षित किया गया।

    CBS के लाभ

    1. ग्राहक सुविधा: ग्राहक किसी भी शाखा, ATM, या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से सेवाएँ प्राप्त कर सकते हैं।
    2. कुशलता: लेनदेन और प्रक्रियाएँ तेज और स्वचालित होती हैं, जिससे समय और लागत बचती है।
    3. पारदर्शिता: सभी लेनदेन केंद्रीकृत डेटाबेस में दर्ज होते हैं, जिससे ऑडिट और निगरानी आसान होती है।
    4. स्केलेबिलिटी: CBS नए उत्पादों (जैसे डिजिटल वॉलेट, UPI) को आसानी से एकीकृत कर सकता है।
    5. रेगुलेटरी अनुपालन: RBI और अन्य नियामक आवश्यकताओं को पूरा करना आसान होता है।

    CBS की चुनौतियाँ

    1. उच्च लागत: CBS को लागू करने और बनाए रखने के लिए बड़े निवेश की आवश्यकता होती है।
    2. साइबर सुरक्षा: केंद्रीकृत सिस्टम हैकिंग और डेटा उल्लंघन के जोखिम के प्रति संवेदनशील है।
    3. तकनीकी निर्भरता: सिस्टम डाउनटाइम या तकनीकी खराबी से सेवाएँ बाधित हो सकती हैं।
    4. प्रशिक्षण: कर्मचारियों को जटिल CBS सॉफ्टवेयर का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
    5. धोखाधड़ी का जोखिम: जैसा कि PNB घोटाले में देखा गया, कर्मचारियों की मिलीभगत या सिस्टम की कमियों से धोखाधड़ी हो सकती है।

    उदाहरण

    मान लीजिए, आप PNB में एक खाता धारक हैं। आप दिल्ली की शाखा में पैसे जमा करते हैं, और यह लेनदेन तुरंत CBS सिस्टम में अपडेट हो जाता है। आप मुंबई में ATM से पैसे निकाल सकते हैं, और आपका बैलेंस रीयल-टाइम में अपडेट होता है। यदि आप NEFT के माध्यम से किसी को पैसे भेजते हैं, तो CBS सिस्टम लेनदेन को प्रोसेस करता है और RBI के नियमों के अनुसार इसे रिकॉर्ड करता है। PNB घोटाले में, चोकसी और नीरव मोदी के फर्जी LoUs को CBS में दर्ज नहीं किया गया, जिससे धोखाधड़ी छिपी रही।

    निष्कर्ष

    कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (CBS) आधुनिक बैंकिंग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो केंद्रीकृत, रीयल-टाइम, और स्वचालित सेवाएँ प्रदान करता है। यह ग्राहकों और बैंकों दोनों के लिए सुविधाजनक है, लेकिन PNB घोटाले जैसे मामलों ने इसकी कमजोरियों, जैसे अपर्याप्त एकीकरण और निगरानी की कमी, को उजागर किया। घोटाले के बाद, RBI ने CBS और संबंधित प्रक्रियाओं को मजबूत करने के लिए कई सुधार लागू किए, ताकि भविष्य में ऐसी धोखाधड़ी को रोका जा सके।

    Anshuman Choudhary

    I live in Jharia area of ​​Dhanbad, I have studied till Intermediate only after that due to bad financial condition of home I started working, and today I work and write post together in free time............