Manoj Muntashir biography in hindi | मनोज मुंतशिर का जीवनी

मनोज मुंतशिर का जीवन परिचय

मनोज मुंतशिर बहुत ही बड़े कवि (Poet), गीतकार (Lyricist), Dialogue writer, shayar,और scriptwriter है जिनके लिखे गाने, शायरी लोगों को बहुत ही ज्यादा पसंद है। इनके लिखे गाने आज इतने हिट रहते हैं कि इनके सामने सब फीके नजर आते हैं, मनोज मुंतशिर द्वारा अक्षय कुमार कि फिल्म केशरी में लिखी गई एक बहुत ही बेहतरीन गाना तेरी मिट्टी में मिल जावा गुल बनके खिल जावा इतना सुपरहिट हुआ कि आज भी ये गाना लोगों कि जुबान पे रहता है। आज कि तारीख में मनोज मुंतशिर द्वारा बहुत से गाने लिखे गए जो सब हिट रहे। मनोज मुंतशिर की पैदाइशी अमेठी के गौरीगंज की जो उत्तर प्रदेश में पड़ता है जो उस समय एक छोटा सा कस्बा हुआ करता था आज कि तारीख में तो गौरीगंज शहर में तब्दील हो गया है।

Manoj Muntashir biography in hindi
Manoj Muntashir biography in hindi
मनोज मुंतशिर का असली नाममनोज शुक्ला
मनोज मुंतशिर का जन्म27 फरवरी सन्न 1976
जन्मस्थानअमेठी, गाँव – गौरीगंज (उत्तर प्रदेश)
उम्र46 साल (2022)
Height5 फुट 8 इंच
weightकरीब 70 से 75 kg
मनोज मुंतशिर के पिता का नामशिव प्रसाद शुक्ला
माताजी का नामस्कूल की शिक्षिका
मनोज मुंतशिर के पिता की पेशाकिसान
मनोज मुंतशिर का स्कूल का नाम
मनोज मुंतशिर का कॉलेज/यूनिवर्सिटीइलाहाबाद यूनिवर्सिटी
शिक्षास्नातक (Graduation) Bs.c – 1999
मनोज मुंतशिर की पेशाकवि, गीतकार, Dialogue writer, shayar और scriptwriter
वैवाहिक स्थितिशादीशुदा
मनोज मुंतशिर की पत्नी का नामनीलम मुंतशिर
Manoj Muntashir Affairs
मनोज मुंतशिर के बच्चेबेटा – आरू
Manoj Muntashir net worth4 अरब 90 हजार लगभग रिपोर्ट अनुसार
Manoj Muntashir salary

मनोज मुंतशिर का जन्म, परिवार व शिक्षा ( birth, family & Education)

मनोज मुंतशिर का जन्म 27 फरवरी सन्न 1976 को उत्तर प्रदेश राज्य के अमेठी के एक छोटा सा कस्बा गौरीगंज में हुआ। मनोज मुंतशिर का असली नाम मनोज शुक्ला है इन्होंने सिर्फ अपने नाम में मुंतशीर जोड़ा है धर्म परिवर्तन नहीं किया है और न ही शुरू से इनका नाम मनोज मुंतशीर था। वो तो शायर बनने के बाद इन्होंने सिर्फ सरनेम बदल लिया कुछ अलग करने के लिए। मनोज मुंतशिर के पिताजी का नाम शिव प्रसाद शुक्ला है, गौरीगंज से ही अपनी स्कूल की शिक्षा पूरी की। बचपन से ही पढ़ने लिखने में बहुत तेज थे। मनोज मुंतशिर के पिताजी ने जब काम छोड़ा तो मनोज की माताजी ने घर कि सारी जिम्मेवारियाँ उठाई। मनोज मुंतशिर कि माताजी ने स्कूल में पढ़ाने का काम करने लगी थी जिससे घर कि जरूरतों को पूरा किया जाता था।

मनोज मुंतशिर का जीवन इतना संघर्षपूर्ण रहा है शायद ही किसी इंसान ने इतना संघर्ष किया होगा, मनोज मुंतशिर ने बस एक ही लक्ष्य बना कर रखा कि ये आगे चलकर बड़ा होकर फिल्मों में गाना लिखेंगे। ये सुनकर हर कोई मजाक उड़ाता था, जब स्कूल में हर किसी से पूछा जाता था कि तुम बड़े होकर क्या करोगे क्या बनोगे? कोई कहता मैं इंजीनियर बनूँगा, कोई डॉक्टर बनेगा, लेकिन जब कोई मनोज शुक्ला पूछता था, तो ये सिर्फ कहता मैं तो फिल्मों में गाने लिखूँगा। जब इनकी शादी होनेवाली थी तो जब इनके ससुर ने पूछा क्या करते हो? आगे का क्या सोचा है? तो मनोज ने कहा मैं फिल्मों में गाने लिखूँगा। तो इनके होने वाले ससुर ने अपनी बेटी की शादी मनोक से करने से सीधा मना कर दिया। मनोज उस लड़की से बेहद प्यार भी करते थे लेकिन उनके पिताजी के ठुकरा देने के बाद लड़की से भी ब्रेकप हो गया।

मनोज शुक्ला से मनोज मुंतशिर कैसे बना अपना नाम क्यों बदला?

मुंतशीर का मतलब बिखरा हुआ होता है। मनोज मुंतशिर की किताब मेरी फितरत है मस्ताना के लेखक खुद मनोज मुंतशिर है मनोज मुंतशिर का वास्तविक नाम मनोज शुक्ला है तो फिर इन्होंने अपना नाम मनोज मुंतशिर क्यों रखा? मनोज शुक्ला से मनोज मुंतशिर नाम क्यों बदल लिया? इसके पीछे क्या वज़ह रही। उस समय इनका नाम मनोज शुक्ला हुआ करता था तो अपने शुक्ला सरनेम से इनको मजा नही आ रहा था। शायरी करने के बाद मनोज शुक्ला अपने सरनेम को लेकर चिंतित रहते थे इन्होंने अपने नाम के साथ कई सारे सरनेम जोड़ कर देखे लेकिन फिट नही बैठ रहे थे। मनोज शुक्ला जी चाय पीने के बड़े शौकीन थे। तो ठंड का मौसम था शाम को चाय की तलाश में निकले, एक चाय की टपरी मिली मनोज शुक्ल पहुंचता है बबलू की चाय की दुकान पर।

बबलू दुकान पर एक रेडियो टंगी हुई थी रेडियो पर विविध भारती पर मुशायरा चल रही थी। यह सुनकर मनोज शुक्ल ने बबलू से कहा कि थोड़ा रेडियो का साउंड बढ़ाओ। तो एक शायर साहब जी रेडियो पर शेर पढ़ रहे थे –


मुंतशिर हम है तो रुकसार पर शबनम क्यों है
मतलब – टूटा हुआ मैं हूं तो तुम्हारे आंखों में आसूं क्यों है
आईने तो टूटते रहते है तुम्हे गम क्यो है।

जब मनोज शुक्ला ने ये शेर सुना तो इनको यहां से एक आइडिया मिल गया और इस शायरी में से जब मुंतशिर का मतलब समझा तो मनोज शुक्ला ने तुरंत मुंतशिर शब्द को अपने नाम से शुक्ला हटाकर मनोज नाम के आखिर में मुंतशिर जोड़कर देखा गजब का मेल बैठा से मनोज और से मुंतशिर तो इन्होंने तुरंत फैसला कर लिया की आज से ये मनोज मुंतशिर ही मेरा नाम होगा। मनोज शुक्ला ने तुरंत बेगैर परिवार वालो को कुछ बताए अपने नाम से शुक्ला हटाकर सरनेम मुंतशिर रख लिया जो एकदम फिट बैठ रही थी। इसका मतलब भी थोड़ा हटके था, बिखरा हुआ यानि मनोज बिखरा हुआ था। और एक दिन इन्होंने खुद को ऐसा समेटा कि आधी दुनिया को इन्होंने समेट लिया।

मनोज के पिता घर के बाहर नेम प्लेट देखकर क्यों चिल्लाने लगे?

तो मनोज शुक्ला चाय पीकर घर लौटे घर का मरम्मत का काम चल रहा था साथ में उनके पिताजी का नेम प्लेट भी लग रहा था। तो मनोज शुक्ला ने अपने पिता से कहा कि पिताजी इस नेम प्लेट पर अपना नाम भी लिखवा लूं। तो पिताजी ने कहा बेटा लिखवा लो अपना नाम उसमे क्या है। तो मनोज शुक्ला ने नेम प्लेट पर अपना नाम मनोज शुक्ला की जगह मनोज मुंतशिर लिखवा दिया। जब इनके पिताजी सुबह दातुन करते हुए घर के बाहर निकला और जब नेम प्लेट पर नजर पड़ी तो हैरान रह गए। मनोज शुक्ला के पिताजी चिल्लाने लगे और कहते हैं कि फिर से राम ने नेम प्लेट गलत लगा दी। उसे एक पैसा नही दूंगा, यह सब सुनकर उनका पुत्र मनोज शुक्ला बाहर आए और अपने पिताजी से कहा पिताजी उसने नेम प्लेट सही लगाया है।


उनके पिताजी बोला यह क्या लिख दिया है मुंतशिर, तो मनोज ने कहा पिताजी मुंतशिर मैं ही हूं। पिताजी बहुत गुस्सा हुए सदमा लगा उनको, फिर मनोज शुक्ला ने पिताजी को किसी तरह समझाया बुझाया की पिताजी मैने सिर्फ पेन नेम बदला सरनेम बदला है धर्म या मजहब नहीं बदला है। मैं आज भी ब्राह्मण हूं, सनातनी हूं और मुझे इस पर गर्व है।

मनोज शुक्ला का संघर्ष, मुंबई में भिखारियों ने खाना खिलाया

इनका ब्रेकप हुआ शादी टूट गई, क्योंकि ये फिल्मों में गाना लिखना चाहते थे। जब मुंबई पहुंचे तो जगह ना होने पर फूटपाथ पर सोए। भिखारियों ने खाना खिलाया और किसी शराबी ने शराब के नशे मे इनके चेहरे पर पेशाब कर दिया। बस का किराया ना होने पर 10–10 किलोमीटर पैदल चलते थे। खाने के ज्यादा पैसे ना होने के कारण मनोज शुक्ला पारले जी बिस्कुट खाते थे और कई दिन ऐसे भूखे गुजार देते थे। मनोज शुक्ला जी ने म्यूजिक कंपनियों के इतने चक्कर काटे के जितने भी वहां के चौकीदार होते थे उनसे दोस्ती करली ताकि जब कभी भी वे वहाँ आए तो उसे डांट कर भगा न दे। मनोज मुंतशिर का संघर्ष लोगों के लिए बहुत बड़ा प्रेरणा है फ़िल्मों में गाना लिखने चाहते थे। जिसके कारण ब्रेकअप हुआ जिसकी वजह से इनकी शादी नहीं हुई।

इतना सब कुछ होने के बावजूद भी उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, वह मुंबई में ही टीके रहे। म्यूजिक कंपनियों के चक्कर लगाते रहे एक ना एक दिन उसे कोई मौका दें और अपनी काबिलियत को दिखा सके उन्होंने कभी नहीं सोचा कि वह गांव जाकर दोबारा वहीं पर कुछ काम धंधा कर ले।

मनोज शुक्ला ने अपनी काबिलियत कब पहचानी?

मनोज शुक्ला अपनी काबीलियत को मात्र 8 –9 साल में पहचान ली थी। एक दिन घर के संदूक में कवि दीवाने गालिब की किताब इनके हाथ लगी जो न हिंदी भाषा में थी। ना ही उर्दू या फारसी में थी वो दूसरी ही भाषा में थी जिसको समझ पाना मुश्किल था। तो 8–9 साल में इनको ये किताब इनके पापा के संदूक से मिली। उसे पढ़ना शुरू किया उस समय इनको कुछ समझ में नही आ रही थी। लेकिन उस समय इनको अहसास हो गया था कि इनके अन्दर कुछ है और इस भाषा को सिख कर ही रहेंगे और वक्त निकाल कर इस जुबान को अवश्य सीखूंगा। बात Bs.c 2nd year की हैं गौरीगंज से इलाहाबाद एक ही ट्रेन जाया करती थी उस वक्त, जिसका नाम पीआरएल थी जो बहुत ही धीमा चलती थी। 125 किलोमीटर की दुरी तय करने में करीब 5 घंटे लग जाती थी।

बीच में ही प्रतापगढ़ स्टेशन में इनकी ट्रेन खराब हो जाती हैं गार्ड ने कहा ट्रेन को बनने में अधिकतम 2 घंटे लगेगी। अब मनोज शुक्ला 2 घंटे करे तो करे क्या? तो मनोज शुक्ला ट्रेन से बाहर निकलकर प्लेटफार्म पर टहलने के लिए निकल पड़े। कुछ ही दूरी पर इनको एक बूक की स्टॉल यानी दुकान दिखती हैं तो ये वहां पहुंच जाते है और किताबे देखने लगते हैं। इनको वहां पर इनकी नजर एक किताब पर पड़ी जो प्रकाश पंडित जी के द्वारा एडिट की हुईं थी लोकप्रिय शायर साहिर लुधियानवी की किताब, जो उर्दू के लोकप्रिय शायर थे। मनोज शुक्ला ने किताब के पन्नो को पलटना शुरू किया जिसमे उनकी जीवनी के बारे मे लिखा हुआ था। थोड़ी सी ही पढ़ने के बाद मनोज शुक्ला बहुत प्रभावित हुए पीछे पलटा देखा कीमत 18 रुपए थी। उस समय 18 रुपये बहुत रकम हुआ करती थी।

अब मनोज शुक्ला सोचने लगे कि अगर मैने 18 रुपए की ये किताब खरीद ली तो मेरा 4 दिन का नाश्ता का जुगार नहीं हो पायेगा। चाय कैसे पीयूंगा बन मक्खन कैसे खाऊंगा करूँ तो करूँ क्या? मनोज शुक्ला चाय के बड़े शौकीन थे घर जाते समय इन्होंने 5 रुपये वाली चायपत्ती खरीदी जिस पर लिखा था सोने का सिक्का जीते लेकिन मनोज शुक्ला ने सोने के सिक्के के लालच में नहीं खरीदी थी। जब चायपत्ति कि पैकेट खरीद कर घर लौटे और पैकेट को खोला तो देखा कि उसके पैकेट से एक सोने का सिक्का निकला। मनोज शुक्ला को तो कुछ क्षण तक तो विश्वाश ही नहीं हुआ कि ऐसा भी होता है क्या? उसके बाद क्या सोनार की दुकान पर जाकर सोने के सिक्के को बेचा। बेचने पर उन्हे उस समय करीब 700 से 750 रुपए मिले थे। तो इनको ऐसा लग रहा था कि अब मुंबई इन्हे वापस जाने से रोक रहा हो।

मनोज ने जब अनूप जलोटा से मुलाकात की

एक दिन भटकते भटकते मनोज शुक्ला अनूप जलोटा के ऑफिस पहुंच गए। उसके मैनेजर से कहा अनूप जी से मिलना है, मैनेजर ने कहा अनूप जी से हजारों लोग मिलने आते हैं। एर भी लोग है जो बैठे थे आप भी बैठ जाइए। थोड़ी देर बैठा रहा लेकीन कुछ देर बाद मनोज शुक्ला ने कहा कि आप अनूप जलोटा जी से मिलाओगे की नही। मैनेजर ने कहा वो व्यस्त हैं, मनोज ने कहा बस उन्हे इतना बता दो की अमेठी से आया है। उसके बाद उसके मैनेजर भरत ने अनूप जलोटा जी फोन किया की आपसे अमेठी वाला कोई मिलना चाहता है। तो अनूप जलोटा बोले ठिक है भेजो उसे मनोज शुक्ला ऊपर गए और देखा की अनूप जलोटा जी के पैर में प्लास्टर बंधा हुआ था वो बैठे हुए थे। उसके पास जाकर बैठ गए वहां जाने का बस दो ही मकसद था की पहला कोइ काम मिल जाए और फ्री का चाय मिल जाए, और मेरे पैसे भी खर्च न हो।

तो अनुप जलोटा ने कहा की बताओ मनोज भाई क्या लिखते हो? यह सुनकर मनोज शुक्ला को लगा कि मैं तो गलत जगह पर आ गया। यह तो भजन गाते हैं मैं तो भजन भी नहीं लिख सकता मैं तो शायर शायर हूं मैं शायरी और गजल लिखता हूं। अब मनोज शुक्ला करे तो करे क्या? तो मनोज शुक्ला ने अनूप जलोटा से कहा कि मैं भजन लिखता हूं। मनोज शुक्ला ने यह बात झूठ बोली थी। मनोज शुक्ला ने कहा चाय मंगाइए, तब तक चाय आते हैं मनोज शुक्ला ने एक भजन लिख दिया ऑन द स्पॉट तुरंत, उसके अंदर यही एक टैलेंट थी लिखने की। मनोज शुक्ला ने भजन लिख दिया लेकिन अनूप जलोटा ने आज तक यह नहीं बताया कि मनोज ने भजन कितना अच्छा लिखा था। तब तक अनूप जलोटा मनोज का लिखा हुआ भजन देख रहे थे।

उधर मनोज शुक्ला चाय पीने में मग्न थे चलो अनूप जलोटा जी को भजन पसंद ना भी आए तो कोई फरक नहीं पड़ता कम से कम मुझे चाय पीने को तो मिल गई। उसके बाद अनूप जलोटा ने मनोज शुक्ला से पूछा कि क्या आपके पास बैंक अकाउंट है मनोज शुक्ला ने कभी बैंक अकाउंट का नाम सुना ही नहीं था। ये क्या होता है? मनोज शुक्ला ने कहा मेरे पास कोई बैंक अकाउंट नहीं है। तो इसमें अनूप जलोटा पूछा की आप चेक कैसे कैश करोगे?भंजाओगे कैसे? मनोज शुक्ला ने कहा कि चेक कौन दे रहा है अनूप जलोटा ने कहा कि मैं दे रहा हूं। मैं आपको बैरियर चेक दे रहा हूं मनोज शुक्ला ने यह भी नहीं सुना था कि यह बैरियर चेक होता क्या है। मनोज के साथ किसी भी तरह का बैंक अकाउंट नहीं था फिर भी जलोटा जी ने मनोज शुक्ला को बैरियर चेक दिया जो ₹3000 की थी।

बगल में ही नीचे एक बैंक थी जहां पर जाकर मनोज शुक्ला ने बैरियर चेक को कैश कराया। मनोज शुक्ला को बैंक से सौ-सौ की 30 नोट की हरी पत्ती बैंक से मिली। ये बात 1999 की रही होगी, इससे पहले मनोज ने कभी भी एक साथ ₹3000 नहीं देखे थे। बहुत खुश थे दादर से बांद्रा काफी दूर है उस दिन मनोज शुक्ला को सब्र नहीं हो रहा था कि वह अब बस का इंतजार करे या फिर ऑटो ले वह दौड़ते हुए बांद्रा के लिए निकल गए। उस समय के जितने भी गीतकार और राइटर जो थे गाने के लेखक को बहुत कम पैसे दिए जाते थे। और उसका नाम भी कहीं प्रदर्शित नहीं की जाती थी। क्योंकि उस वक्त अधिकांश लोगों को बस पैसे से मतलब होती थी। वो कितनी मेहनत कर रहे है परदे के पीछे वो जाहीर नहीं होना देना चाहते होंगे। क्योंकि कभी किसी राइटर में इस चीज के खिलाफ आवाज उठाई ही नहीं।

एक समय था जब लोग सिर्फ सिंगर और डायरेक्टर को ही जानते थे, जिसने इतनी मेहनत करके गाने लिखे हैं, कभी भी किसी गाने के नीचे गाने के राइटर का नाम नहीं होता था यूट्यूब के गाने फिर भी गाने के नीचे उस के राइटर का नाम नहीं होता था। जिसकी शुरुआत मनोज शुक्ला ने की इसके लिए उन्होंने आवाज उठाई तब जाकर उनका नाम राइटर के रूप में प्रदर्शित की गई। मनोज शुक्ला की फिल्म रुस्तम की एक गाना तेरे संग यारा जो बहुत ही सुंदर गाना था। जब ये गाना यूट्यूब पर प्रदर्शित की गई तो मनोज शुक्ला ने देखा कि इस गाने के नीचे उसका नाम है ही नहीं। तो इसके लिए मनोज शुक्ला ने आवाज उठाई पूरी टीम से बात की अक्षय कुमार से बात की तब जाकर तेरे संग यारा के लिरिक्स राइटर के रूप में मनोज शुक्ला का नाम लिखा गया।

मनोज शुक्ला को कुछ कास्ट के लोग ने कहा कि ऐसा नहीं होता गाने का लेखक का नाम नहीं लिखा जाता है। लेकिन मनोज शुक्ला ने कहा ऐसा नहीं होता मेरे गाने के नीचे तो मेरा नाम लिखना होगा चाहे जो हो। नही तो मेरा गाना हटा दो मैने भी मेहनत की है मैं भी गाने का हिस्सा हूं। उसके बाद लोगों ने उसकी टीम ने उसको सपोर्ट किया और उस गाने के नीचे मनोज शुक्ला का नाम लिखा गया और तब से लेकर आज तक किसी भी राइटर का गाना होता है उसका नाम लिरिक्स के रूप में लिखा जाता है। जिसकी शुरुआत मनोज मुंतशिर ने किया था जो आज चला रहा है पहले नहीं चल रहा था। जिसका फायदा आज हर गाने के लेखक को मिलता है हर गाने के नीचे गाने का लेखक का नाम लिखा जाता है।

5 साल उन्होंने टेलीविजन में काम किया, कई सारे कार्यक्रमों में स्क्रिप्ट लिखे, करोड़पति का स्क्रिप्ट भी लिखा ,जो पुरस्कार समारोह होते हैं। मनोज मुंतशिर ने बाहुबली वन और बाहुबली टू के हिंदी गाने लिखे और साथ में उसके डायलॉग भी लिखे। जो सुपर डुपर हिट रहे मनोज मुंतशिर कभी डायलॉग नहीं लिखते थे लेकिन इसकी शुरुआत उन्होंने बाहुबली फिल्म से कि वह भी फिल्म के डायरेक्टर के कहने पर जो उन्हे सफलता दिलाई। मनोज ने कभी सोचा नहीं था कि वह डायलॉग भी लिखेगें। मनोज को डायलॉग लिखने पर एसएस राजामौली ने मजबूर किया, उन्होंने मनोज को बुलाया, तो मनोज ने कहा की बताइए क्या लिखना है गाना, एस राजामौली ने कहा कि आपको बाहुबली के लिए लिखना है तो मनोज ने कहा कि ठीक है बताइए फिल्म में कितने गाने हैं। मनोज को कहा आप बाहुबली के लिए डायलॉग भी लिखें। मनोज ने कहा कि सर अपने गलत आदमी को बुला लिया है।

मैंने तो कभी डायलॉग लिखा ही नहीं है, तो एसएस राजामौली ने मनोज को कहीं पर बोलते हुए सुना था। जो उनको बहुत पसंद आ गया था उसको लग गया था कि यह कुछ लिख सकते हैं बाहुबली के लिए। मनोज जब गाने लिखते लिखते बोर होने लगते हैं तो मनोज डायलॉग लिखने लगते हैं। एक समय तो मनोज मुंतशिर साल भर के गाने लिख कर रखते थे लेकिन अब थोड़े कम कर दिए। 12वीं क्लास में मनोज अपनी गर्लफ्रेंड से बिछड़ गए थे अगर आपको बड़ा शहर बनना है तो अंदर से टूटना बहुत जरूरी है धोखा मिलना जरूरी है। आज मनोज कवि, गीतकार, Dialogue writer, shayar और scriptwriter है।

Anshuman Choudhary

I live in Jharia area of ​​Dhanbad, I have studied till Intermediate only after that due to bad financial condition of home I started working, and today I work and write post together in free time............