झारखण्ड के मेले : All the fairs held all over Jharkhand
श्रावणी / श्रावण मेला (वैद्यनाथ धाम, देवघर) – ये मेला देवघर में श्रावण महीने में पूरे महीना भर लगता है। इसमें शिव जी के मनोकामना ज्योतिर्लिंग पर जल चढ़ाया जाता है। यह शिव जी के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह विश्व का सबसे बड़ा वार्षिक मेला है।
बुढ़ई मेला (देवघर) – ये मेला अगहन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नवान पर्व के रूप मे आयोजित किया जाता है। नवान पर्व के बाद बुढ़ई पहाड़ पर स्थित बूढ़ेश्वरी मंदिर में 3 –5 दिनों तक पूजा अर्चना होती है।
रथयात्रा मेला (जगन्नाथपुर, रांची) – आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय को रथयात्रा तथा एकादशी को घूरती रथयात्रा का आयोजन किया जाता है। जगन्नाथपुर में भगवान जगन्नाथ का ऐतिहासिक मंदिर है। जो बिलकुल उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर का अनुसरण करते हुए निर्माण किया गया था। रथयात्रा के मकसद से यहां जगन्नाथ मंदिर से कुछ दूरी पर मौसी बाड़ी का निर्माण किया गया।
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ जो श्री कृष्ण जी का हु रूप है। उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा की प्रतिमाओं को विशाल रथ जुलूस यात्रा द्वारा मौसी बाड़ी तक ले जाया जाता है। जहां पर 9 दिनों तक रखा जाता है। इसे ही रथयात्रा कहा जाता है। 9 दिनों के बाद एकादशी को इस रथ की वापस से यात्रा होती है, जिसे घूरती रथयात्रा कहा जाता है। इसी रथ यात्रा के अवसर पर रथयात्रा का मेला का आयोजन होता है।
नवमी डोला मेला (टाटीसिल्वे, रांची) – ये मेला चैत माह के कृष्ण पक्ष की नवमी को लगता है। यहां राधा और कृष्ण जी की मूर्तियों को अच्छे से सजाकर एक डोली में रखकर झुलाया जाता हैं। और इनकी पूजा की जाती है। यह मेला होली के ठीक 9 दिनों के बाद प्रति वर्ष आयोजित की जाती है। इस मेले में आदिवासियों की प्राचीन संस्कृति और परंपराओं का प्रदर्शन किया जाता है।
मुड़मा जतरा मेला ( मुड़मा, रांची) – ये मेला रांची से करीब 28 किलोमीटर दूर मुड़मा में दशहरा के दस दिन बाद लगता है। आदिवासी द्वारा इसे जतरा मेला का नाम दिया गया है। इस मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होता है। इस दौरान जतरा खूंटा की पूजा की जाती है। और मुर्गे की बलि दिया जाता है।
हथिया पत्थर मेला ( फुसरो, बोकारो) – ये मेला बोकारो के फुसरो में मकर संक्रांति आसपास लगता है। इस मेले के अवसर पर सामूहिक रूप से स्नान करने की परंपरा है।
नरसिंह स्थान मेला (हजारीबाग) – ये मेला हजारीबाग में कार्तिक पूर्णिमा को लगता है। ये एक प्रकार का शहरी मेला है।
सूर्यकुण्ड मेला (हजारीबाग) – ये मेला हजारीबगा में मकर संक्रांति से आने वाले 10 दिनों तक लगाया जाता है।
मंडा मेला (हजारीबगा, रामगढ़, बोकारो) ये ये मेला बैसाख जेठ और आषाढ़ महीने में हजारीबाग, रामगढ़ और बोकारो में लगता है। इस मेले में श्रद्धालु आग के अंगारों की नाली में नंगे पैर चलकर अपनी आस्था भाव को प्रकट करते हैं। जिस रात ये लोग आग के अंगारों पर चलते हैं, उसके अगले दिन से ही मेले का आयोजन हो जाता है। इस अवसर पर भगवान महादेव जी की पूजा पाठ की जाती है।
कुंडा मेला ( प्रतापपुर, चतरा) – कुंडा मेला चतरा के प्रतापपुर में फागुन (शिवरात्रि) में लगता है। इस मेले में पशुओं का तादात ज्यादा होता है। इस मेला का आयोजन पशु मेला के रूप में भी होता है।
रामरेखा धाम मेला ( सिमडेगा) – ये मेला कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर 3 दिनों के लिए लगाया जाता है। एक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम जी को दंड मिलने बाद जाने के क्रम में रामरेखा पहाड़ पर कुछ दिन ठहरे थे। जिस वजह से इस मेले का आयोजन होता आ रहा है। इस मेले में झारखंड के अलावा छत्तीसगढ़, उड़ीसा और मध्य प्रदेश के लोग भी इस मेले में शामिल होते हैं।
हिजला मेला ( दुमका) – ये मेला दुमका में बसंत ऋतु (फरवरी –मार्च) के बीच में लगती है। जो करीब एक सप्ताह तक चलती है। ये मेला मयूराक्षी नदी के किनारे लगती हैं। इस मेले की शुरुआत सन् 1890 ईस्वी में संथाल परगना के उस वक्त के तत्कालीन उपायुक्त कास्टैयर्स द्वारा किया गया था।हिजला शब्द हिजलोपाइट नामक एक खनिज है उसका संक्षिप्त रूप है। ये खनिज संथाल परगना की पहाड़ियों पर बहुत अधिक मात्रा में मिलती है। इस मेले का संथाल जनजाति में बहुत ही ऐतिहासिक महत्व है।
बिंदुधाम मेला (बिंदुधाम शक्तिपीठ साहेबगंज) – ये मेला चैत्र माह में रामनवमी से लेकर एक सप्ताह तक साहेबगंज में लगता है। यहां मां विंध्यवासिनी का बहुत ही प्राचीन शक्तिपीठ है।
- गांधी मेला – सिमडेगा
- तुर्की मेला – चाईबासा
- जतराही मेला – चतरा
- उर्स मेला – गुमला, धनबाद