जिसके बारे में आज हम बताने जा रहे वो हमारे निषाद वंशज का एक महान सुपुत्र है। जिसे लोग आज Son of Mallah Mukesh Sahani के नाम से जानते हैं। ये वो शख्सियत है जिसे आज लघभग हर कोई जानता है, आज मैं आपको Mukesh Sahani जी के बारे में बताउंगा। बहुत ही निचले स्तर से उठकर आज बिहार के पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री है, लेकिन Mukesh Sahani जी का बचपन जैसा रहा है शायद ही अब तक किसी का ऐसा रहा होगा। मुकेश साहनी जी का कोई पुराना राजनितिक इतिहास भी नहीं है और न ही इनका कोई परिवार कभी राजनीतिक में आया था। Mukesh Sahani अपने भाई बन्धुओं को अपना हक़ दिलाने के लिए राजनीति में आये हैं। नहीं तो Mukesh Sahani जी का मुंबई में अच्छा खासा फिल्म के सेट बनाने का कार्य चल रहा था और आज भी चल रहा है।
मुकेश साहनी (Mukesh Sahani) मात्र 8 वीं तक पढ़े हैं क्योंकि जब ये बच्चे थे इनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही ख़राब थी। जिस कारण से Mukesh Sahani जी ज्यादा नहीं पढ़ पाए। और बहुत ही कम उम्र में कमाने के लिए घर छोड़ करके कुछ दोस्तों के साथ मुंबई भाग गए थे। वहां उन्होंने ने धीरे धीरे हुनर सीखा और धीरे धीरे फिल्म इंडस्ट्री के सेट बनाने की दुनिया में घुस गए। ये सफ़र इतना आसान भी नहीं रहा है इनके लिए उन्होंने कई सालो तक मेहनत की तब जा के इन्हें एक प्लेटफार्म मिला। जो आज एक इनकी पहचान बन चुकी है, इनका मुंबई में कई ऑफिस है जहाँ सैकड़ो लोग आज भी इनके अंडर काम करते हैं।
Mukesh Sahani जी एक मछुआरा समुदाय से तालुक रखते है। और आज Son of Mallah के नाम से प्रचलित है। मल्लाहो को समय के साथ अन्य नामो से भी जाना गया, जिनमे से कुछ निम्न है – तो सबसे पहले सतयुग में केवटराज और मल्लाह के नामों से पुकारा जाता था। इसके साथ साथ अन्य प्रचलित नाम जैसे साहनी, निषाद, केवट, बिंद, धीवर, चौधरी, कश्यप, आदि और भी कई अन्य नामों से भी जाना जाने लगा।
Mukesh Sahani जी का जन्म और परिवार
Mukesh Sahani birthday (DOB)
31 मार्च 1981
Mukesh Sahani Birth Place
बिहार राज्य के सुपौल जिला में
Mukesh Sahani education qualification
Mukesh Sahani Wife name
Kavita Sahani
Mukesh Sahani Daughter
1
Mukesh Sahani Party Name
VIP ( विकासशील इंसान पार्टी)
Mukesh Sahani net worth
Son of Mallah Mukesh Sahani Mobile Number
मुकेश साहनी जी का जन्म 31 मार्च 1981 को बिहार राज्य के सुपौल जिले के एक छोटे से गाँव में एक बेहद ही गरीब मछुआरा के परिवार में हुआ। जिस कारण इनका बचपन भी बहुत से अभावो में गुजरा, जिस कारण मुकेश साहनी जी उस वक्त ज्यादा पढाई लिखाई नहीं कर पाए। क्यूंकी इनके परिवार में उतनी इनकम थी नहीं कि घर भी चलाया जाये और बच्चों को पढाया भी जाये दोनों एक साथ संभव नहीं था।
Mukesh Sahani का शिक्षा (Education)
Son of Mallah Mukesh Sahani जी की घर की आर्थिक स्थिति ख़राब होने की वजह से पढाई के दौरान ही पैसा कमाने के लिए मुंबई भाग गए थे। Mukesh Sahani मात्र क्लास 8 वीं तक पढ़े हैं लेकिन जो उस वक्त की पढाई थी वो अलग थी आज की पढाई से तुलना की जाये तो 8 वीं इंटरमीडिएट से कम नहीं है। भले मुकेश साहनी जी 8 वीं तक पढ़े है लेकिन अपने मेहनत और बुद्धि से आज करोड़ो के मालिक है और मेहनत से आज बिहार के मंत्री भी बन चुके हैं।
Mukesh Sahani जी का संघर्षपूर्ण सफ़र कैसा रहा? मुंबई का सफर
बचपन से ही Mukesh Sahani ने अपने समाज और समाज के लोगो को पीछे जाते हुए देखा है। बात 1999 की है जब मुकेश साहनी जी के कुछ क़रीबी दोस्त मुंबई भागने की तैयारी कर रहे थे। और उसने मुकेश साहनी जी को भी अपने साथ जाने को कहा तो अपनी खराब परिस्थितियों को देखते हुए उसे भी ये कदम उठाना पड़ा। मुकेश साहनी उसके साथ जाने को तैयार हो गए थे। फ़िर क्या था मुंबई के लिए रवाना हो गए, उस वक़्त मुकेश साहनी की उम्र करीब करीब 16 से 17 के आसपास रही होगी। किसी नए शहर में बगैर किसी पहचान के बगैर किसी सहयाता लिए अपनी पहचान बनाना ये सिर्फ कोई काबिल इन्सान ही कर सकता था। और मुकेश साहनी में कुछ करने की काबलियत थी और साथ में मुकेश साहनी जी घर की सारी जिम्मेवारियां अपने सर पे के चले थे।
कहते हैं न अगर सच्चे मन से कोई भी काम करने का लालसा हो तो वो अवश्य पूरी होती है। मुंबई पहुँचने के बाद भी मुकेश साहनी जी को बहुत कठिनाइयों से गुजरना पड़ा भटकना पड़ा। रात दिन काम की तलाश करते रहे फिर भी कुछ हासिल नहीं हुआ। लेकिन मेहनत करने वालो की कभी हार नहीं होती है अपनी लगातार कोशिश जारी रखी। और कुछ वक्त के बाद मुकेश साहनी जी को एक शीशे के फ्रेम बनाने की एक दुकान में काम मिला। और धीरे धीरे Mukesh Sahani शीशे का फ्रेम बनाना सिखा और आगे चलकर इनकी ये कला बहुत काम आई। मुकेश साहनी जी फिल्म इनुस्ट्री के सेट निर्माण की दुनिया में घुस गए। जिसकी शुरुआत Mukesh Sahani ने शाहरुख़ खान की फिल्म देवदास सेट के निर्माण से की।
फिल्म के सेट बनाने का सफर
तो Mukesh Sahani को देवदास सेट निर्माण का काम कैसे मिला? जब फिल्म देवदास की शूटिंग चल रही थी। तो अचानक फिल्म सेट में एक शीशा काटने वाला मिस्त्री की जरुरत पड़ी। तो सेट के कुछ लोग निकले मिस्त्री लाने के लिए गए और वह पहुँच गया उसी दुकान में जहाँ Mukesh Sahani जी काम करते थे। तो वहां के बॉस ने उस काम को करने के लिए Mukesh Sahani को भेज दिया। और मुकेश साहनी जी इसी तरह आगे भी फिल्मो के सेट निर्माण में लगे रहे। मुकेश साहनी जी ने आगे चलकर खुद का फिल्म, टी.वी. सीरियल शोज़, विज्ञापन आदि के सेट निर्माण के लिए एक कंपनी खोली। जिसका नाम ”मुकेश फिल्म वर्क्स प्राईवेट लिमिटेड” (Mukesh Film Work Pvt. Ltd. ) जो मुंबई में ही स्थित है। इसके अलावा इवेंटस और माल ब्रांडिंग भी करते।
इस तरह से खुद को लायक बनाया की आज दूर दूर से लोग मुकेश साहनी जी सिर्फ मिलने आते है। ये मुकाम हासिल करने के बाद इन्होने कुछ करने की सोची और अपने गाँव लौटने का फैसला किया। जब Mukesh Sahani जी अपने गाँव सुपौल आये। तो गाँव की हालात बहुत ही खराब थी, जब वे 1999 गाँव छोड़ कर भागे थे उस वक्त भी वैसी थी। और जब 15 – 16 साल के बाद लौटे तो भी कुछ नहीं बदला था। और आज अपने परिवार और अपने समाज के प्रति इतना स्नेह रखते है की लोग मिलने के बाद फुले नहीं समाता कुछ इस कदर छाये है। और इतना ही नहीं अपने परिवार का ख्याल तो रखते ही हैं अपने पिछड़े समाज का भी इतना ख्याल रखते है। की लोग उनके हर कदम पर साथ रहते है और समाज के लोगो की आवश्यकताओ को पूरा भी करते है।
Mukesh Sahani जी का राजनीतिक में प्रवेश
Mukesh Sahani जी पहले समाज में रहकर समाज की समस्याओं को करीब से देखा परखा। उसके बाद मुकेश साहनी ने ये पाया की समाज के लोग अभी भी शहर के मुकाबले कहीं साल पीछे है। समाज के लोग अभी भी अपने मूल अधिकारों से वंचित है। जिससे लोग सिर्फ दो वक्त की रोटी ही जुटा पा रहे है, लोग ज्यादा पढ़े लिखे न होने की वजह से अपने मूल अधिकारों से अंजान बेखबर हैं। बस प्रतिदिन मेहनत मजदूरी करके थोड़ी बहुत आमदनी से सिर्फ अपने परिवार का भरन पोषण ही कर पा रहे है। अपने परिवार के भविष्य सुनिशित और सुरक्षित नहीं कर पा रहे हैं, इसके लिए उन्हें जागरूक करना अति आवश्यक है। ये हालात करीब करीब हर तबके की है जिसने बड़ा करने की कभी सोची ही नहीं है, देखा जाये तो गरीब और गरीब होता जा रहा है।
क्योंकि जिस तरह मंहगाई और आबादी बढती जा रही जिस पर कंट्रोल करना मुश्किल होता जा रहा है। बस लोगो का इस्तेमाल में लाया जा रहा है और लोग इस चीज को समझ ही नहीं पा रहे हैं। इसी चीज को समझाने और उसके अधिकार दिलाने के लिए आज मुकेश साहनी जी बिहार चुनाव 2020 में उतरे। और चुनाव भी जीता, चुनाव से पहले ही मुकेश साहनी जी लोगो की मदद में लगे हुए थे। लोगो के बीच में जाकर बाते करते है उनके अधिकारों को लेकर कई जागरूगता अभियान भी चलाये। इससे फायदा भी बहुत हुआ जिससे की लघभग बिहार के समाज लोग एकत्रित भी हुए। और साथ में अपने अधिकारों के लेकर जागरूक भी हुए और आज लगभग पूरा बिहार Son of Mallah Mukesh Sahani जी करीब से जानते है।
इसी दरमियान मुकेश साहनी जी ऐसे स्थानों पर भी गए जहाँ पर आने जाने के लिए लोगो के पास आवागमन के साधन तक नहीं थे। समाज की ऐसी परिस्थिति देखकर बहुत दुखी हुए। 2014 में दरभंगा के राज मैदान में मुकेश साहनी जी ने प्रमंडलीय निषाद समाज अधिकार सम्मेलन का आयोजन किया। जिसमे निषाद समाज के बहुत से लोग और दुसरे समाज के लोग भी आये नतीजन बिहार के समाज आज मुकेश साहनी जी के साथ है। ये सिर्फ कुछ सालो का नतीजा है की आज बिहार का पूरा समाज खास कर निषाद समाज एकजुट हुए है। अपने अधिकारों को समझा और अपने हक़ को सरकार के समक्ष रखा। खास करके बिहार और यूपी वाले, कभी कोई सोचा भी नही था कि कभी ये सब भी करना पड़ेगा। ये खुद मुकेश साहनी भी कभी नहीं सोचे थे लेकिन क्या कर सकते हैं,
जिस तरह मुकेश साहनी ने अपना जीवन यातनाओं से भरी बिताई है। उस तरह से अपने समाज़ को भला कब तक देख सकते हैं इसलिए आज उन्हें राजनीति में आना पड़ा। काश ये लोग समझ पाते लेकिन आज की जनता को ये सब कहाँ दिखती है, आज की जनता तो सिर्फ बिकती है। दो कौड़ी के लोग भी एक कौड़ी में कुछ लोगो को खरीद जाते हैं, ये आज से चला नही आ रहा है। जब से अंग्रेज गए हैं ये राजनेता और उसके वंशज अपने आप को देश का राजा समझ बैठे हैं। एक मुकेश साहनी जी है जो किसी भेद भाव के सभी की मदद करते आ रहे हैं। Mukesh Sahani जी ने इसके लिए एक अपनी संस्था भी बनाई है जिसकी स्थापना 2016 में निषाद विकास संघ के नाम से की, इनका कार्यालय कई अन्य जगहों पर भी खोला गया।
मुकेश साहनी जी का उद्देश्य हमेशा से सिर्फ समाज के हित में ही रहा है। देश में करीब 70 प्रतिशत साक्षरता होने के बावज़ूद भी लोग अपने अधिकारों से अंजान और वंचित है। खास करके मछुआरा समुदाय के लोग वो आज भी सिर्फ़ निषाद समुदाय के लोग अपना जीवनयापन मछली पकड़ने और उसे बेचने में गुजार रहें हैं। क्या इसी को ज़िन्दगी कहते हैं, ये सब मुकेश साहनी जी बचपन से देख रहे है। आज जो राजनीति में मुकेश साहनी जी उतरे हैं उसकी वजह सिर्फ यही है, अपने समाज को वो हक दिलाये जो मूल अधिकार है। जिसका वो पूरा हक़दार है, आज Mukesh Sahani जी की लड़ाई आज पुरे बिहार में पूरे निषाद समाज लड़ रहें हैं। पूरे समाज की आवाज़ मुकेश साहनी जी बने है, देखने से लगता है कि देश बहुत तरक्की कर रहा है। लेकिन ऐसा कुछ भी नही है।
बस समय के साथ जो बदलाव होता है, बस थोड़ा बहुत वही सब हुआ है बाकि सब वहीं का वहीं धरा है। आप बाकि देशो को देखकर अंदाजा लगा सकते है की हमारा देश अभी भी बहुत पीछे है। पीछे रहने का मुख्य कारण एक ही है की हमारे देश में हर जगह इतना भ्रष्टाचारी (Corruption) है। कि आज 90 प्रतिशत सिस्टम इसमें शामिल है, तो तरक्की होगा कहाँ से तरक्की तो सिर्फ उन लोगो का ही होता है जो इसमें शामिल है। जब मैं सोचता हूँ तो एक ही ख्याल आता है की ये कैसे हो सकता है ये मेरा देखा हुआ है जब तक किसी के द्वारा आपकी सिफारिश नहीं कि जाती तब तक आपका कुछ नहीं हो सकता।
चाहे वह किसी क्षेत्र में हो आज जिस प्रकार मुकेश साहनी जी ने बिहार के लोगो की मदद करने की ठानी है और जिस प्रकार कर रहे है वैसा शायद कोई इन्सान होगा। जब से कोरोना वायरस हमारे देश में दस्तक दी है उस वक्त से मुकेश साहनी जी दूर बसे नदी पार तक के लोगो तक खुद जाकर खाने पीने की वस्तुएं पहुंचा रहे थे। यहाँ तक बाढ़ पीड़ितों लोगो की मदद की है ऐसी ऐसी जगह पर मुकेश साहनी जी गए हैं जहाँ पैदल चलना तक मुश्किल था। फिर भी मुकेश साहनी जी गए और कई जगह तो जाने के लिए सिर्फ नाव ही एक मात्र साधन था। फिर वहां के लोगो की मदद के लिए खुद से नाव चलाकर नदी पार करके लोगो की मदद की राशन तक पहुँचाया।
आज की राजनीति की रणनीति कैसी है?
बात करे आज की राजनीति की रणनीति कि तो ऐसा कोई ऐसा नेता है ही नहीं जिसपर भरोसा किया जा सका। कब कौन नेता किसके पार्टी में शामिल हो जाये किसी का कोई भरोसा नहीं। नेता बनने से पहले हर नेता बहुत कुछ कहता है लेकिन कोई भी नेता 100 प्रतिशत खरा उतरे ये हो ही नहीं सकता है। और न ही 100 % कभी काम कराया हो तो बताना। आज हमारे देश में राजनेताओ की कमी नहीं है। लेकिन उसमे से सिर्फ गिने चुने ही नेता काम के है जो काम करते है बाकी के नेता सिर्फ नाम के है। यानि कि अपने और अपनों के लिए ही काम करते है बाकि काम तो सिर्फ कागजो में पूरा करते है। सबको झूटा ख्वाब दिखा के ये राजनेता से कब अभिनेता बन जाते है पता ही नही चलता।
ये बहकाने का कार्य आज नया नही शुरू हुआ है ये तब से शुरू है, जब से अंग्रेज हमारा देश छोड़ के गए गए है। लुट तो तब सी ही शुरू है देश के नेता ऐसे ऐसे है की विश्वाश नहीं होता। की जो पढ़ लिखकर कुछ नहीं कर पाते और 7वीं और 8वीं पास और फेल नेता बनके देश चलाने की कोशिश करते हैं। और जो मेहनत करके डी. एस. पी. आई. जी. डीसी, एस.आई. न जाने इससे भी बड़े बड़े पोस्ट पर पहुँचते है। वो अफसर 7वीं और 8वीं फेल नेता के आगे पीछे घूमना पड़ता है। जो सिर्फ पैसा की बदौलत और लोगो को बेवकूफ बना कर बना है। नेता चुनने का काम लोगो का होता है लेकिन अब ये लोग नोट लेकर ये काम करते है।
निषादों, मल्लाहों का इतिहास
बात करे निषादो की तो निषादों का इतिहास बहुत ही पुराना रहा है। और निषाद देखा जाए तो हर राज्य हर जिला हर कस्बा में बड़े आसानी से मिल जाते हैं। और रही निषादों की उत्पति की तो निषादों का इतिहास इतना पुराना है। कि जिसका जिक्र कई ग्रंथो में आसानी से देखने और पढने को मिल जायेंगे। खास कर के रामायण और महाभारत में, इससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है की निषाद वंश का इतिहास कितना पुराना है। अगर शुरुआत में देखा जाए तो इनका मुख्य पेशा मछली पकड़ने का रहा है और इसी से इन लोगों का जीवनयापन होता था। और साथ में अपनी नईया से लोगो को नदी पार कराने का भी काम करते हैं।
सत्ययुग में तो केवटराज (मल्लाह ) नें राम लक्ष्मण, सीता जी को अपनी नईया पर बैठा कर नदी भी पार करायी थी। इसी से सिद्ध हो जाता है कि निषादों का इतिहास कितना पुराना है।