झारखंड की कुछ धार्मिक आंदोलन
- बौद्ध तथा जैन धर्म का झारखंड राज्य पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा है।
धार्मिक आंदोलन
- जैन धर्म
- बौद्ध धर्म
जैन धर्म
- जैन ग्रंथों में भगवान महावीर के लोरे -ए – यदगा की यात्रा का संदर्भ है जिसका मुंडारी में अर्थ आंसुओं की नदी होता है।
पारसनाथ पहाड़ी (गिरीडीह)
- पारसनाथ पहाड़ी गिरिडीह जिला के अंतर्गत आता है।
- पारसनाथ की ऊंचाई 1365 मीटर यानी कि तकरीबन 4478 फीट है।
- यहां जैनियों के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का निर्वाण 717 ईसा पूर्व में हुआ था। यह पारसनाथ की पहाड़ी पर निर्वाण प्राप्त करने वाले अंतिम तीर्थंकर थे।
- जैन धर्म के 24 तीर्थकरो में से 20 तीर्थकरो ने इसी पहाड़ी पर निर्वाण प्राप्त किया था।
पारसनाथ में निर्वाण प्राप्त करने वाले तीर्थंकर
अजीत नाथ | विमल नाथ |
संभव नाथ | अनंत नाथ |
अभिनंदन नाथ | धर्म नाथ |
सुमति नाथ | शांति नाथ |
पद्म प्रभु | कुंथु नाथ |
सुपाश्र्वनाथ | अर्हनाथ, |
चंद्रप्रभु | मल्लिनाथ |
सुविधि नाथ | मुनि सुब्रतनाथ |
शीतल नाथ | नेमिनाथ |
श्रेयांस नाथ | पाश्वनाथ |
- यह पहाड़ जैन धर्मावलंबियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है, इसे ‘जैन धर्म का मक्का’ तक कहा जाता है।
छोटानागपुर का मानभूम (वर्तमान में धनबाद )
- यह जैन सभ्यता व संस्कृति का केन्द्र था।
दामोदर वा कसाई नदी
- दामोदर व कसाई नदियों की घाटी से जैन धर्म संबंधी अवशेष प्राप्त हुए हैं।
हनुमांड गाँव
- हनुमांड गाँव पलामू के अंतर्गत आता है, यहाँ से जैनियों के कुछ पूजास्थल प्राप्त हुए।
सिंहभूम
- सिंहभूम के बेनुसागर से 7वीं शताब्दी की जैन मूर्त्तियों प्राप्त हुई हैं।
- सिंहभूम के आरंभिक निवासी जैन धर्म को मानने वाले थे जिन्हें ‘सरक‘ कहा जाता था। ये गृहस्थ जैन मतावलंबी थे।
- सरक, श्रावक का बिगड़ा हुआ रूप है, हो जनजाति के लोगों ने इन्हें सिंहभूम से बाहर निकाल दिया था।
कोल्हुआ पहाड़
- यह चतरा जिले के अंतर्गत आता है, इसका संबंध बौद्ध एवं जैन धर्म दोनों से है।
- यहाँ पर जैन व बौद्ध धर्म की अनेकों मूर्तियों के अवशेष विद्यमान हैं।
- इस पहाड़ पर 10वें तीर्थकर शीतनाथ को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
- यहाँ पर नौ जैन तीर्थकरों की प्रतिमा है।
- इस पहाड़ के पत्थर पर एक पद्चिन्ह हैं जिसे जैन धर्म के अनुयायी पाश्र्वनाथ का पदचिन्ह मानते हैं।
बौद्ध धर्म
मूर्तिया गाँव
- यह पलामू के अंतर्गत आता है।
- यहाँ से एक सिंह शीर्ष मिला है जो सांची स्तूप के द्वार पर उत्कीर्ण सिंह शीर्ष से मेल खाता है।
करूआ गाँव
- यहाँ से बौद्ध स्तूप की प्राप्ति हुई है।
सूर्यकुण्ड
- यह हजारीबाग जिले के अंतर्गत आता है, यहाँ से बुद्ध की प्रस्तर मुर्ति मिली है।
बहोरनपुर
- यह हजारीबाग जिलाके अंतर्गत आता है, यहाँ से भगवान बुद्ध की 1200 वर्ष पुराने पालकालीन मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।
बेलवादाग
- यह खूँटी जिला के अंतर्गत आता है, यहाँ से बौद्ध विहार के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
कटुंगा गाँव
- यह गुमला जिले के अंतर्गत आता है, यहाँ से बुद्ध की एक प्रतिमा मिली है।
पटम्बा गँव
- यह जमशेदपुर के अंतर्गत आता है, यहाँ से बुद्ध की दो प्रतिमाएँ मिली है।
दियापुर-दालमी
- यह धनबाद जिला के अंतर्गत आता है, यहाँ से बौद्ध स्मारक प्राप्त हुए हैं।
- बुद्धपुर में बुद्धेश्वर मंदिर निर्मित है, यह बौद्ध स्थल दामोदर नदी के किनारे अवस्थित है।
घोलमारा
- यहाँ से प्रस्तर की एक खण्डत बुद्ध मू्ति मिली है।
ईचागढ़
- यह सरायकेला- खरसावां जिला में स्थित है, यहाँ से तारा की मूर्ति मिली है जो एक बौद्ध देवी हैं।
- इस मूर्ति को राँची संग्रहालय में रखा गया है।
सीतागढ़ पहाड़
- यह हजारीबाग जिले के अंतर्गत आता है, यहाँ से प्राप्त बौद्ध विहार का उल्लेख फाह्ययान द्वारा किया गया है।
- यहाँ से भगवान बुद्ध की चार आकृतियों वाला एक स्तूप मिला है।
अन्य तथ्य
- बंगाल में पाल शासकों के शासन के दौरान झारखण्ड में बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा विकसित हुई।
- झारखण्ड में ‘कुमार गुप्त‘ के प्रवेश के उपरांत बौद्ध धर्म का हास प्रारंभ हो गया।