अंग्रेजों एवं छोटानागपुर के राजाओं के संबंध पर प्रकाश डालें।
अंग्रेजों एवं छोटानागपुर के राजाओं के बीच संबंध : पलामू की तुलना में छोटानागपुर खास के क्षेत्र (आज का रांची लोहरदगा और गुमला जिला) में अंग्रेजों का प्रवेश आसानी से हो गया था। उन दिनों छोटानागपुर खास का नागवंशी महाराज दर्पण नाथ शाह था। उसने उपयुक्त क्षेत्रों पर अपना शासन स्थापित कर लिया था। वस्तुत अंग्रेजों के छोटा एलनागपुर में प्रवेश करने से पहले कुछ वर्षों से उसने पॉलिसी राज्यों के साथ विस्तार वादी रवैया अपना रखा था।
इसी दृष्टिकोण से 1770 ईसवी के पूर्व से ही उसने कोल्हान के लड़ाका कोलो को अक्रांत करने का काफी प्रयास किया था। पोरहाट के राजा की सहायता एवं अपने 20000 आदमियों के साथ वह कोल्हान में प्रविष्ट हुआ था लेकिन लड़ाका कोल्हो ने भारी नुकसान पहुंचा तो उसे कोल्हान से खदेड़ दिया।
1770 ईस्वी में लगभग उतनी ही बड़ी खोज के साथ उसने पुणे कोल्हान पर विजय पाने की कोशिश की।
लेकिन इस बार भी उसे कोलो के हाथों मुंह की खानी पड़ी और उसके कई सौ लोग मारे गए और अनेक लौटते हुए भूख प्यास से मर गए। लड़ाका कोलों ने दर्पण नाथ की सेना का तब तक तक पीछा किया जब तक कि वह नागवंशी प्रदेश में प्रवेश न कर गई। लड़ाका कोलो नागवंशी प्रदेशों पर भी आक्रमण प्रारंभ कर दीए। उन्होंने कई वर्षों तक सोनपुर बेलसिया और बसियों को लूटा खसौटा कई गांवों की आबादी बिल्कुल नष्ट हो गई और नागवंशी राज्य का दक्षिणी भाग इन आक्रमणकारियों के कारण लगातार अशांत बना रहा।
रामगढ़ के राजा मुकुंद सिंह के विरोध के कारण दर्पण नाथ शाह की कठिनाई बढ़ गई।
पिछले कई दशकों से नागवंशी शासक पटना के मुस्लिम अधिकारियों को अपना सलाना कर रामगढ़ राजा के मार्फत दे रहे थे। बकाया कर की वसूली के नाम पर रामगढ़ का राजा मुकुंद सिंह नागवंशी इलाकों पर हमला करता रहता था। विषम परिस्थितियों के कारण संभवत पलामू के चेरो के खिलाफ अंग्रेजों की सफलता से प्रभावित होकर दर्पण नाथ शाह ने जैकब कैमक से मिलने के लिए अपने वकील को जयनगर भेजा था।
771 ईसवी में कैमक पलामू अभियान
फरवरी 1771 ईसवी में कैमक पलामू अभियान के क्रम में शिविर में था। पलामू अभियान में रशद तथा अन्य आवश्यक वस्तुएं जुटाकर कैमक की सहायता की। उसके प्रभाव तथा उसके रैयतो के प्रयास से कैमक की कठिनाइयां काफी कम हो गई थी। उसका एक अधीनस्थ, बुंडू का राजा पलामू अभियान के समय और पलामू पर कैमक की विजय के बाद भी सक्रिय रूप से अंग्रेजों की सहायता करता रहा था। पलामू किला के पतन के पश्चात जब छोटानागपुर क्षेत्र के विभिन्न राजा जमीदार कैमक से मुलाकात कर रहे थे स्वयं दर्पण नाथ शाह भी सतबरवा जाकर उससे मिला।
उसने कंपनी सरकार के अधीनता स्वीकार कर ली और ₹12000 चलाना कर के रूप में देना स्वीकार किया। उसने मराठों के विरूद्ध भी कंपनी को सहायता का वचन दिया। समझौते की पुष्टि के रूप में कैमक ने अपनी टोपी दर्पण नाथ शाह की पगड़ी से बदली। दर्पण नाथ शाह ने कैमक को कई पत्र लिखे कि उसे रामगढ़ राजा के मार्फत ना देकर अपना राजस्व सीधा कंपनी को देने का आदेश दिया जाए। कैमक के कहने पर पटना काउंसिल ने इस आशय का आदेश अगस्त 1771 ईस्वी में पारित किया।
दर्पनाथ शाह के साथ विधिवत समझौता किया गया और उसे 1771 से 1773 ईसवी से तक 3 वर्षों का पट्टा दिया गया। 3 वर्षों की मालगुजारी 36000र रुपए तय की गई। इसमें नजराना सलामी तथा अन्य सभी देय शामिल थे, यह मालगुजारी पटना के खजाने में देय थी। निर्धारित राजस्व की अदायगी में किसी प्रकार के टालमटोल अथवा बहानेबाजी की कोई गुंजाइश नहीं रखी गई थी।
कैमक दर्पनाथ शाह के समर्पण एवं उसकी मित्रता को अत्यंत महत्वपूर्ण मानता था, उसके अनुसार नागपुर के राजा की मित्रता के फलस्वरुप बंगाल तथा दक्षिण बिहार पर मराठों का सीधा आक्रमण नहीं हो सकता था। बदली हुई परिस्थिति में उसे आशा थी कि वह नागवंशी राजा और प्रणाम के लोगों की सहायता से रामगढ़ के राजा मुकुंद सिंह को आसानी से पराजित कर देगा।
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