Rajiv Dixit Biography in hindi | राजीव दीक्षित का जीवनी 

राजीव दीक्षित का जीवन परिचय : Rajiv Dixit Biography

भारत के एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, वैज्ञानिक चिंतक, देशभक्त और स्वदेशी आंदोलन के जनक थे राजीव दीक्षित जी। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय भारतीय संस्कृति, आयुर्वेद, स्वदेशी उद्योग और औपनिवेशिक मानसिकता के विरोध में लोगों को जागरूक करने का काम किया। राजीव जी गजब के बोलते थे, गजब की ऊर्जा थी और वे जहाँ भी बोलते, वहाँ लोगों की हुजूम जमा हो जाती थी। सिर्फ इनकी फोटो लगाकर कंपनियों ने करोड़ों करोड़ों रुपये कमाया। दिल से स्वदेशी दिमाग से चाणक्य स्वर्गीय राजीव दीक्षित जिनको सोशल एक्टिविटीस मानते हैं सच्चा देशभक्त भी मानते हैं। कई लोग तो इनको स्वामी विवेकानंद भी मानते हैं। वो गरीब और जरूरतमंद भारतीयों के समर्थक थे।

Rajiv Dixit Biography in hindi

इनकी जिंदगी लंबी नहीं थी। लेकिन बड़ी जरूर थी। आज ये हमारे बीच नहीं है, लेकिन ऐसे लोगों का कभी मृत्यु नहीं होती है। ये तो हमेशा के लिए अमर हो होते हैं। इन्होंने स्वदेशी के साथ साथ आयुर्वेद पर बहुत जोर दिया। विदेशी मेडिसिन हो या विदेशी कानून हो खुलकर विरोध किया। 2004 से 2010 तक राजीव जी की पॉपुलरिटी इतनी चरम पर थी, कि जितने भी इनके सभाए होती थी, भीड़ खचाखच भरी होती थी।

राजीव दीक्षित आज भी युवाओं के लिए देशभक्ति, स्वदेशी और स्वावलंबन के प्रेरणास्रोत हैं। उनके भाषण लाखों लोगों को भारतीय संस्कृति अपनाने और विदेशी वस्तुओं से दूरी बनाने के लिए प्रेरित करते हैं। सिद्धू जी की पत्नी को स्टेज 4 का कैंसर था। डॉ ने जवाब दे दिया था लेकिन उन्होंने आयुर्वेद को अपनाया और मात्र 6 महीने में ठीक हो गया।

राजीव दीक्षित का जन्म, परिवार व शिक्षा : प्रारंभिक जीवन

राजीव दीक्षित का जन्म 30 नवंबर 1967 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के नाह गाँव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ। इनका पूरा नाम राजीव राधेश्याम दीक्षित, पिता का नाम राधेश्याम दीक्षित था। माताजी का नाम मिथिलेश कुमारी है। बचपन से ही पढ़ाई में तेज और जिज्ञासु स्वभाव के थे। स्कूली शिक्षा गाँव में हुई, अपने पिता के देख रेख में उन्होंने फिरोजाबाद जिले के गाँव में स्कूली शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद पी.डी. जैन इंटर कॉलेज से उन्होंने 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई की। उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई की शुरुआत 1984 में के. के. एम. कॉलेज से और जमुई बिहार से इलेक्ट्रॉनिक और संचार में बी. टेक की डिग्री ली।और आगे की पढ़ाई आईआईटी कानपुर में की, जहाँ उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। इसमे कुछ त्रुटियाँ हो सकती है।

ये बिटेक किए हुए थे, आलहाबाद यूनिवर्सिटी से, एम टेक आईआईटी कानपुर से किया। पीएचडी telicommunication में फ्रांस से, उस समय telicommunication में पीएचडी किया और scientist की तरह अब्दुल कलम जी के साथ काम भी किया। पूरी तरह से ब्राहचारी थे, कभी शादी करने की सोची ही नहीं। फ़्रीडम फाइटर के परिवार से थे। किसी ने इनसे एक बार पूछा कि आप बापू को इतना क्यों मानते। आप ब्रह्मचारी है लेकिन आपके बापू ने तो विवाह किया आप क्यूँ नहीं करते। बोले भैया मुझे एक ही जन्म मिला है और ये जीवन मैं देश को दूंगा। अपने परिवार को नहीं दूंगा। यह देश ही मेरा परिवार है, ऐसे क्रांतिकारी व्यक्ति के मन में क्रांति आई कहाँ से।

सीएसआईआर में एंटी ग्रैविटी पर रिसर्च पर काम किया था, और वो बताते है कि उनकी रिसर्च के लिए जर्मनी मैथ्स प्लांट इंस्टिट्यूट अरबों डॉलर देने के लिए तैयार हो गया था। लेकिन वो नहीं चाहते थे की उनकी रिसर्च किसी और देश के हाथ लगे इसलिए उन्होंने रिसर्च बेचने से इंकार कर दिया, हालांकि उके पास इस तरह का कोई पेपर मिला है और न ही किसी तरह का सबूत मिला है। साथ ही वे फ्रांस के दूर संचार क्षेत्र में भी वैज्ञानिक के तौर पर काम कर चुके थे।

राजीव दीक्षित का आंदोलन और विरोध: राजीव दीक्षित क्यों प्रसिद्ध हैं?

  1. स्वदेशी आंदोलन, कृषि को बढ़ावा
    • महात्मा गांधी के स्वदेशी सिद्धांत से बहुत ज्यादा प्रभावित थे।
    • विदेशी कंपनियों के वस्तुओं का बहिष्कार और भारतीय उत्पादों के उपयोग पर हमेशा जोर देते थे।
    • उन्होंने भारतीय स्वाभिमान आंदोलन” और स्वदेशी जागरण मंच जैसे अभियानों में प्रमुख भूमिका निभाई।
    • भारतीय उद्योग, हस्तशिल्प और कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने की अपील।
    • गाँवों को आत्मनिर्भर बनाने के सुझाव।
    • कृषि आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती पर विचार।
    • वर्षा जल संचयन और पारंपरिक जल प्रबंधन पद्धतियों का प्रचार, नदियों और तालाबों के संरक्षण की वकालत।
    •  उन्होंने कोका कोला, पेप्सी, यूनिलीवर और कोलगेट जैसी कम्पनी के खिलाफ़ लडाई लड़ी और शीतल पेय पदार्थों में विषैला होने की बात कही। इसके लिए उन्होंने लम्बी लड़ाई भी लड़ी और ये साबित भी कर दिया कि इन पेय पदार्थों में विषैला पदार्थ है। इन्हें पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
    • उन्होंने जनरल स्टोर की एक ऐसी श्रृंखला को खोलने के लिए आन्दोलन किया जहां सिर्फ़ भारतीयों द्वारा बनाये गए उत्पाद की बिक्री हो।
  2. स्वास्थ्य और आयुर्वेद प्रचार : प्राकृतिक चिकित्सा
    • आधुनिक (एलोपैथी ) चिकित्सा के दुष्प्रभावों और विदेशी दवाओं पर निर्भरता के खिलाफ बोले, लोगों को जागरूक किया।
    • आयुर्वेद और भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों को पुनर्जीवित करने के लिए लोगों को जागरूक किया।
    • रोगों का इलाज घरेलू नुस्खों और जड़ी-बूटियों से करने की सलाह पूरे देश को दिया।
  3. शिक्षा और विज्ञान
    • मातृभाषा में शिक्षा और कार्य पर जोर।
    • अंग्रेजी को श्रेष्ठ मानने की मानसिकता का विरोध।
    • मैकॉले द्वारा थोपे गए शिक्षा मॉडल की आलोचना।
    • भारतीय ज्ञान पर आधारित शिक्षा प्रणाली की वकालत।
    • विदेशी कर्ज और निवेश पर निर्भरता खत्म करने का सुझाव।
    • “लोकल इकॉनमी” की मजबूती पर बल।
    • कानूनों, अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में आम जनता को शिक्षित करना।
    • भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन किए।
  4. औपनिवेशिक मानसिकता के खिलाफ
    • अंग्रेजों द्वारा थोपे गए कानून, शिक्षा व्यवस्था और आर्थिक नीतियों के खिलाफ जागरूकता फैलाई।
    • भारतीय संस्कृति और गौरव को पुनर्स्थापित करने का आग्रह किया।
    • अंग्रेजों और पश्चिमी इतिहासकारों द्वारा विकृत किए गए इतिहास को उजागर करना।
    • प्राचीन भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियों का प्रचार।

1994 में राजीव दीक्षित दिल्ली में MNC ( Multi National Company) के खिलाफ बड़ा जबरदस्त विरोध (Protest) कर रहे थे। कह रहे थे अपने देश को बुलंदियों पर खड़ा करना है। सोने की चिड़ियाँ बनाना है। ऐसा ईकानमी बनाना है की अमेरिका और यूरोप को उखाड़ देना है। और उस विरोध में लोग निरंतर जुडते जा रहे थे। और भीड़ बहुत ज्यादा हो गई, सरकार घबरा गई और पुलिस ने राजीव को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया। तो किरण बेदी ने गिरफ्तार किया। राजीव जी को गिरफ्तार कर तिहाड़ में ले जाया गया। और सिपाहियों न उनसे बोला ए राजीव दीक्षित शरीर के आइडेनफकैशन मार्क्स के लिए अपने कपड़े उतारो, राजीव जी बोले कपड़े क्यों उतारूँ भाई, ऐसे ही पूछ लो। सिपाहियों ने कहा नहीं, ये नियम है कपड़े तुम्हें तो उतारने ही पड़ेगे।

राजीव जी जब जेल गए तब एक रोचक घटना घटी।

राजीव जी बोले कहाँ है नियम ये दिखाओ मेरे को, अब माहौल खराब होने लगा। अगल बगल और भी बहुत सारे कैदी खड़े हो गए। बात तो सही है, ये पहली बार किसी ने सवाल किया, हंगामा हुआ तो किरण बेदी जी को आना पड़ा। राजीव जी बोले एक कैदी को भी अपने अधिकार होते हैं। मेरे अधिकारों का हनन क्यों? ये कौन सा नियम है कि जिसके तहत मुझे नंगा किया जाएगा। किरण बेदी जी ने कहा कि भाई ये मैनुअल में लिखा हुआ है। कहते है पढ़ाओ मैनुअल, किरण बेदी जी जानती थी कि ये बिना पढे कुछ मानेंगे नहीं। अगले दिन मैनुअल ढूंढ के उनको पकड़ा दिया, राजीव जी ने पुलिस ऐक्ट 1861 का मैनुअल पढ़ा। खून खौल गया अंग्रेजों का मैनुअल, इंडियन पैनल कोड (ipc) 1860 का मैनुअल था, और ये अंग्रेजों के सख्त खिलाफ थे।

अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे इस कायदे कानून में हर तरीके से भारतीय को शोषित करने की व्यवस्था थी। जो राजीव जी को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। जब जेल से छूटे तो छूटते ही इन नियमों के बदलाव के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। ये हमेशा कहते थे कि पॉलिथीन बनाने वाली कंपनी पर केस क्यों नहीं करते, बेचारे पॉलिथीन में सब्जी बेचने वाले गरीब आदमी को क्यों तंग किया जाता है। तो कानून की व्यवस्था के इस तंत्र को बदलना चाहते थे। किसी को भी पता नहीं कि आनेवाले समय में टाइकून के लिए सबसे बड़े ब्रांड साबित होंगे, ये वो व्यक्ति बनेंगे, जिनके कारण ही टाइकून पैदा हुए।

1994 के भोपाल गैस त्रासदी के बारे में इन्होंने क्या कहा?

1994 में भोपाल गैस त्रासदी के बाद राजीव का नाम सुर्खियों में आना शुरू हुआ। उन्होंने यूनियन कार्बाइड कंपनी के खिलाफ प्रदर्शन किया। हालांकि उनका एक दावा ये भी था कि यूनियन कार्बाइड वाली घटना अमेरिका की सोची समझी एक साजिश थी। और इसे भारतीय पर एक्सपेरिमेंट के तौर पर अंजाम दिया गया। और यहाँ से राजीव जी विदेशी कंपनियों के खिलाफ एक मुहिम छेड़ दी, उन्होंने देशभर में घूमकर भाषण देने शुरू किए। इन भाषणों में वे भारतीय शिक्षा व्यवस्था, टैक्स सिस्टम, मॉडर्न मेडिसन विदेशी कंपनियों की आलोचना किया करते थे। वे कहते हैं कि भारत का वर्तमान लीगल सिस्टम अंग्रेजों के बनाए हुए कानून की फोटोकापी जैसा है। और इसे बदला जाना चाहिए।

ईएकोनामिक्स सिस्टम के बारे मे बोलते हैं है कि देश में टैक्सेशन सिस्टम decentralized कर दिया जाना चाहिए। क्योंकि यही देश में भ्रष्टाचार की जड़ है। 80% टैक्स नेताओं और beaurocates के हिस्से में जाता है। भारत का बजट सिस्टम को ब्रिटेन से प्रेतितबताने वाले राजीव 500 और 1000 के नोट बंद करने की सलाह देते थे। उनके हिसाब से libralization, privatization और globelization भारत के सबसे बड़े दुश्मन है। जो भारत को आत्मघाती स्थिति में ले जा रहे हैं। देश के विचारकों ने खेती के क्षत्रों में पर्याप्त काम किया ही नहीं है। जिसकी वजह से आज किसान खुदखुशी करने को मजबूर हैं। वे कहते हैं कि विदेशी कंपनियों ने अपना कारोबार बढ़ाने के लिए मॉडर्न मेडिसिन को बाढ़वा दिया, जिसके कारण लोग और बीमार हो हो रहे हैं।

और कंपनियां बस मोटा मुनाफा कमा रही है। वे आयुर्वेद को मॉडर्न मेडिसिन से बेहतर बताते थे। कि भारत का मेडिकल सिस्टम आयुर्वेद पर आधारित होना चाहिए। स्वदेशी का वकालत करते हुए उन्होंने ऐसे पर्ची बटवाएं जिस में लिखा होता था कि कौन सी कंपनी विदेशी है और और कौन से देशी। इन सब दावों ने उनकी प्रसिद्धि में खूब इजाफा किया और देशभर में लाखों समर्थक एकजुट हो गए।

राजीव दीक्षित को आयुर्वेद में रुचि कैसे हुई?

ये 1997 की बात है, झुकाव आयुर्वेद की तरफ कैसे बढ़ा, एक इतिहासकार धरमपाल जी, जो उस समय यूरोप में एक प्रोफेसर थे। धरम पाल जी इन्हे भारत की प्राचीन औषधि यानि कि उसकी विरासत के बारे में बताया। बोला आयुर्वेद के ऊपर ये किताबें पढ़ लो एक बार। चरक संहिता उन्होंने पढ़वाई इनको, और भी बहुत सी आयुर्वेद की किताबे इनको पढ़वाई। इतना आयुर्वेद पढ़ लिया आयुर्वेद इनके अंदर समा गया। राजीव जी कहने लगे इन बुक्स में ऐसी बाते लिखी है अगर जीवन में उतार लिया तो एक आदमी 100 वर्ष तक आराम से जी सकता है। यहाँ से ज्ञान प्राप्त करने के बाद राजीव जी पूरे देश में घूम घूम कर अब आयुर्वेद का प्रचार करना शुरू किया, आयुर्वेद इंडस्ट्री के क्रीऐटर बन गए। इन्होंने तो पैसा नहीं कमाया लेकिन लोगों ने बिलियन्स कमाया।

पतंजलि, डाबर हिमामी, हिमालया आज इतनी बड़ी कंपनी कैसे बनी?

पतंजलि आयुर्वेद 2007 में आई और आज देख लो 2024 तक केवल आयुर्वेद से 13000 करोड़ और पतंजलि फूड मिला दे तो 64000 करोड़ की कंपनी हो गई। डाबर जिस समय ये प्रचार कर रहे थे 2004 में, 1200 करोड़ और आज देख लो 1 लाख 10 हजार करोड़ की कंपनी बना दी। हिमालया 2004 में 200 करोड़ की थी लेकिन आज लगभग 4500 करोड़ की कंपनी है। इंनकी नीति और उससे खड़े हुए बड़े बड़े बिजनेसमेन, आज एक्सपोर्ट अर्निंग बढ़ गई हमारे देश की। इन सब चीजों का ग्रोथ का श्रेय सिर्फ राजीव जी को जाता है। उस समय 2004 में आयुर्वेद का हेल्थ क्षेत्र में सिर्फ 5 प्रतिशत का योगदान था। लेकिन आज 2025 में लगभग 25 से 28 प्रतिशत हो गया है। आयुर्वेद की इंडस्ट्री उस समय एक बिलियन थी जिस समय ये 2004 में प्रचार कर रहे थे। वही 20 साल में 2024 में एक बिलियन से 10 बिलियन डॉलर हो गई।

कैसे आगे चलकर इन्होंने एक बड़ा बदलाव लेकर आया, एक ilness से welness को बिल्ड किया। बोला बीमारी ठीक नहीं करनी है बीमार होना ही नहीं है। बोला पिम्पल पे ऑइन्ट्मन्ट नहीं लगाना है पूरा खून साफ कर दो जिससे पिम्पल ही न आए। एलोपैथी से आयुर्वेद का एक नया क्रांति राजीव दीक्षित देश भर में घूम घुम कर प्रचार प्रसार कर रहे थे। स्वदेशी आंदोलन पर 13000 से ज्यादा लेक्चर दिए। उस समय भी कहा करते थे की आयुर्वेद से बड़े बड़े रोगों का निवारण आसानी से हो जाएगा। उनकी बात आज सारे एक्सपर्ट मानते हैं, मेदांता के नरेश त्रेहान मानते हैं, नरेश त्रेहान एक बहुत ही बड़े कार्डियक सर्जन हैं। दवा सिर्फ कुछ समय तक राहत देता है साथ में इसके बहुत से साइड एफ़ेक्ट भी होते हैं, लेकिन आयुर्वेद बीमारी को जड़ से खतम कर देता है। साथ में शरीर में कोई साइड एफ़ेक्ट भी नहीं होता है।

डॉ आचार्य मनीष इनके हर हॉस्पिटल में 300 से ज्यादा आयुर्वेदिक प्रोडक्ट है, 125 आयुर्वेदिक हॉस्पिटल है। और उनके क्लिनिक है, 10 लाख से ज्यादा मरीज है। और करोड़ों मरीजों को आयुर्वेदिक दवा दे चुके हैं। और ठीक कर चुके हैं। इनकी 5000 करोड़ की कंपनी हो गई है।

राजीव जी ने एलोवेरा की तारीफ की डंडी तोड़ों उसको छीलो उसके रस को फेस पर लगा लो स्किन फ्रेश रहेगी। तो यहाँ पर अलग अलग कंपनियों ने ऑर्गनीक एलोवेरा का जेल बना कर मार्केट में सेल करना शुरू कर दिया। राजीव जी ने बोला आयुर्वेद से आपके बाल सफेद नहीं होंगे। टूटने झड़ने बंद हो जाएंगे, उसमे बस आपको ये – ये आयुर्वेदिक जड़ी बूटी मिलाकर तेल बना। उसके बाद क्या एमामी ने उन सब जड़ी बूटियों को मिलकर सेवन इन वन ऑइल बना दिया। केश किंग बना दिया, आज एमामी के पास बोरो प्लस, नवरतन हेयर ऑइल, फेयर & हैन्सम, झंडू बाम, केश किंग झंडू पंचारित जैसे अलग अलग केटेगरी में बहुत से प्रोडक्ट है। जब ये कंपनी शुरू हुई थी तब 1300 करोड़ की थी लेकिन आज 28000 करोड़ की कंपनी है।

राजीव जी की बाते सुन सुनकर बड़े बड़े कंपनियों ने इसका फायदा उठाया, बड़े बड़े लोगों ने इसकी बाते सुन सुनकर उसी तरह का प्रोडक्ट बनाकर बाजार में बेचना शुरू कर दिया। पहले जो कोलगेट हुआ करते थे वो सिर्फ सिम्पल हुआ करता था, जिसमे कुछ खास नहीं चीजे नहीं होती थी। उसमे आर्टफिशल शुगर थे कुछ और चीजे होती थी जो कैंसर के कारक होते थे। ये चीजे भी राजीव दीक्षित ने सबको बताया। एक अपने प्रचार देखा होगा की क्या आपके टूथ्पैस्ट में नमक है, उसके बाद तो मानो आयुर्वेद टूथ्पैस्ट की बाढ़ आ गई। हर टूथ्पैस्ट में आयुर्वेदिक जड़ी बूटी जैसे , लौंग, नीम, बबूल और भी बहुत सी जड़ी बूटी होती है। हर कंपनी ने आयुर्वेदिक टूथ्पैस्ट बना कर बाजार में बेचना शुरू कर दिया। डाबर का मार्केटकैप 10,000 करोड़ का हो गया है। इन सब का श्रेय राजीव दीक्षित को जाता है। इनके प्रचार से टूथ्पैस्ट की डिमांड बहुत बढ़ गई है।

राजीव जी कहते थे पत्ते का टैबलेट नहीं खाना है। नीम, तुलसी का पत्ता सीधे पेड़ से तोड़ के खाना है। पत्ते का टैबलेट नहीं खाना पड़ेगा, एक ऐसा पौधा जिसको 20 साल पहले खरपतवार के रूप में देखते थे और उगने पर उखाड़ कर फेंक देते थे। लेकिन उसी प्लांट की इतनी डिमांड है आज कि अपने आप में वो प्लांट बहुत बड़ा इंडस्ट्री बन गया है। जो कि हर ब्रांड में ये मिल जाता है, हर घर के बालकनी में मिल जाता है। खुद मेरे घर मे लगा हुआ है। और इस प्लांट का नाम है एलोवेरा, जिसका श्रेय राजीव दीक्षित जी को ही जाता है। जिसने इसके फायदे के बारे में पूरी दुनिया को बताया। इस एलोवेरा का इस्तेमाल इंसान आज कई सारी बीमारियों में करते हैं, 2004 से पहले एलोवेरा की एक भी कंपनी नहीं मिलेगी, आज इंडिया एलोवेरा का सबसे बड़ा निर्यातक देश है 80 प्रतिशत कब्जा है।

2004 में जो 200 करोड़ का एलोवेरा था, आज 15000 करोड़ का प्रोडक्ट सिर्फ एलोवेरा का है।

रजीव दीक्षित बाबा रामदेव से कब और कैसे मिले?

राजीव दीक्षित 2004 में स्वामी रामदेव से मिले, रामदेव योगा में माहिर और राजीव आयुर्वेद में माहिर। रामदेव योगा के प्रचार में लगे है राजीव जी आयुर्वेद के प्रचार में लगे है। राजीव दीक्षित रामदेव को गाइड करते थे, एक रिपोर्ट की माने तो राजीव रामदेव के सबसे करीबी सलाहकार थे। पतंजलि को राष्ट्रीय ब्रांड बनाने में राजीव जी का ही हाथ है। जब पतंजलि 2006 में शुरू हुई थी तो 51 करोड़ की थी राजीव की मौत तक 300-350 करोड़ की कंपनी बन गई। और 2019 तक FMCG ( तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता सामान) मार्केट में 65000 करोड़ के ऊपर की कंपनी है। राजीव ने 2009 में रामदेव को कहा की हम भारत को पूरी तरह स्वदेशी बनाएंगे। भारत स्वाभिमान आंदोलन शुरू करते हैं और पोलिटिकल पार्टी बनाते हैं।

काले धन के खिलाफ भारत स्वाभिमान आंदोलन नाम की मुहिम शुरू की। आंदोलन के तहत राजीव और रामदेव ने योजना बनाई की लोगों को अपने साथ जोड़ने के बाद 2014 में देश के सामने अच्छे लोगों की एक नई पार्टी बनाएंगे और लोकसभा चुनाव में दावेदारी पेश करेंगे। उस दौर में रामदेव आस्था और संस्कार के द्वारा जरिए योग का प्रचार करते थे। साथ में राजीव दीक्षित भी इन्ही चैनलों के माध्यमों से प्रचार करते थे। लेकिन ठीक एक साल बाद 2010 में उनका रहस्यमयी तरीके उनकी मौत हो गई, मतलब पार्टी बनाने से पहले और चुनाव लड़ने से पहले इनकी मौत हो जाती है। हार्ट अटैक था या मर्डर आज भी ये मिस्टरी है, उनको हार्ट की कभी किसी तरह की समस्या थी ही नहीं। न ही कभी किसी भी तरह की उनको बीमारी थी, कभी दवा खाई ही नहीं।

जुकाम से लेकर कैंसर तक सभी बीमारियों का इलाज के जो दावे रामदेव बाबा आज करते हैं, उनकी शुरुआत राजीव दीक्षित ने ही की थी। बीस सालों में वे कभी बीमार नहीं पड़े, अंगूठे पर मेथी का दाना बांधकर जुकाम ठीक कर लेते थे। उनके समर्थकों की माने तो अगर आज राजीव दीक्षित जिंदा होते तो भारत स्वदेशी और आयुर्वेदिक का सबसे बड़ा ब्रांड बन चुका होता।

राजीव दीक्षित के कुछ ऐसे दावे जिसका न कोई सर था न कोई पैर

  • उनका दावा था कि अमेरिका जम्मू कश्मीर को अपने कब्जे में करना चाहता है, और इसी वजह से वह पाकिस्तान को को पैसा देता है। ताकि पाकिस्तान आतंकवाद को पाल सके और कश्मीर मसले पर भारत के नाक में दम कर सके।
  • एक दावा ये था कि पंडित जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और एडविना एक ही कॉलेज में पढे थे, और एडविना से दोनों लगे हुए थे। एडविना इतनी चालाक महिला थी, कि दोनों को कंट्रोल करती थी। जिन्ना और नेहरू चरित्र के बेहद हल्के आदमी थे। एडविना के पास नेहरू की आपत्तिजनक तस्वीरें थी। जिनके आधार पर नेहरू को ब्लैक्मैल करके भारत का बंटवारा करवा दिया।
  • अमेरिका का 9/11 हमला खुद अमेरिका ने करवाया था।
  • एक शख्स जो कहता था की ममता बनर्जी beaf खाती है और beaf खाने की वजह से ही अटल बिहारी वाजपाई को धमकी दी कि अगर उन्होंने पश्चिम बंगाल में beaf बैन करवाया तो वाजपाई सरकार गिरा देगी। कहते कि अमिताभ बच्चन पेप्सी का ऐड इसलिए नहीं करते क्योंकि उनकी आंत पेप्सी पीने की वजह से खराब हो गई थी। हेमा मालिनी लक्स साबुन से नहीं बल्कि बेसन में मलाई डालकर नहाती है। और पूरे देश को ये बात नहीं बताती है। वरना पूरे देश की महिलए हेमा मालिनी की तरह खूबसूरत हो जाएगी।

राजीव दीक्षित का निधन कब और कैसे हुई?

स्वाभिमान आंदोलन के कुछ महीने के बाद ही को राजीव दीक्षित की मौत हो गई थी। राजीव दीक्षित की मृत्यु 30 नवंबर 2010 (उनके जन्मदिन पर ही) को हार्ट अटैक से हुआ, ऐसा डॉक्टरों का कहना है। जबकि उनका पोस्टमार्टम हुआ ही नहीं था। क्योंकि उनके परिवार वाले राजी नहीं थे, और जल्दी बाजी में उनका अंतिम संस्कार हरिद्वार में ही कर दिया गया। जबकि क्रिया क्रम उनका घर से किया जाना चाहिए। तो चलिए जानते हैं कि इनके मृत्यु से पहले ये कहाँ थे क्या कर रहे थे? तो नवंबर के आखिरी सप्ताह में वे छतीसगढ़ के दौरे पर थे, जहां पर उन्होंने अलग अलग जगहों पर लेक्चर देने शुरू किए। 26 से 29 नवंबर तक अलग अलग जगह पर भाषण के बाद जब वो 30 नवंबर को भिलाई पहुंचे। और दुर्ग जाने के दौरान कार में उनकी अचानक तबीयत खराब हो गई।

और उन्हे दुर्ग में रोका गया, उन्हे भिलाई के सरकारी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। और फिर वहाँ से अपोलो बी एस आर हॉस्पिटल शिफ्ट किया गया। जहां डॉक्टरों ने उन्हे मृत घोषित कर दिया, उसके बाद चारटेड विमान से राजीव दीक्षित जी को हरिद्वार लाया गया। राजीव दीक्षित के समर्थकों का कहना था की उस रोज राजीव का शव बैंगनी और नीला पड़ गया था। उसकी स्किन उधरी लग रही थी, नाक के आसपास काले नीले रंग का खून जमा हो गया था। यह देखकर वहाँ मौजूद लोगों को शक हुआ कि यह प्राकृतिक मौत नहीं है, हत्या हो सकती है। ये देखकर कई लोगों ने पोस्टमार्टम की मांग की लेकिन राजीव के परिवार वालों ने पोस्टमार्टम करवाने इंकार कर दिया। न जाने क्यों उसके परिवार वालों ने पोस्टमार्टम नहीं करवाने दिया।

भाई प्रदीप दीक्षित कहते हैं की भाई के जुबान पर सिर्फ स्वदेशी स्वदेसी स्वदेशी था। आरोप मैं तो किसी पर लगा सकता नहीं हूँ, मैं किसी को ज्यादा जानता नहीं।

अंत में राजीव का अंतिम संस्कार हरिद्वार में ही कर दिया गया। चूंकि शव का पोस्टमार्टम हुआ नहीं था, इसलिए आगे चलकर राजीव से जुड़े लोगों ने उनके हत्या की आशंका जताई। कई बार उँगलियाँ बाबा रामदेव पर भी उठी। लेकिन रामदेव इन आरोपों से इंकार करते रहे। बाबा रामदेव के अनुसार उन्होंने राजीव से बात कर उन्हे समझाने की कोशिश की थी, लेकिन वो एलोपैथी इलाज से इंकार कर रहे थे, एक मुद्दा ये भी उठा की राजीव के शव को वर्धा के ले जाने की बजाय हरिद्वार में रामदेव के पतंजलि आश्रम क्यों ले जाया गया।

एक किताब जिसको सरकार ने प्रकाशित ही नहीं करने दिया?

2017 में रामदेव बाबा से जुड़ी एक किताब भी आई थी, गॉडमैन टू टाइकून जिसमे राजीव की हत्या से जुड़े कई और सवालों को उठाया गया था। बाबा रामदेव इस किताब के खिलाफ कोर्ट गए। और दलील दी कि किताब में कई बातों से उनकी छवि को नुकसान हो सकता है। तो कोर्ट ने बाबा रामदेव के दावों को स्वीकार करते हुए, किताब पर बैन लगा दिया था। इसके बाद भी सालों से उसके समर्थक उनकी मौत में षड्यन्त्र का आरोप लगाते रहे हैं। इसी के चलते साल 2019 में प्रधानमंत्री कार्यालय के द्वारा इस केस को दोबारा खोलने का आदेश दिया गया, लेकिन राजीव की मौत का सच आज भी किसी को नहीं पता। लेकिन कहीं न कहीं किसी के पास राजीव दीक्षित की मौत का राज दफन है।

  • 13000 से ज्यादा इन्होंने भाषण दिए, हजारों घंटे के भाषण दिए, जो आज भी इंटरनेट पर उपलब्ध हैं।
  • भारतीय इतिहास, विज्ञान, संस्कृति, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर गहरी शोध आधारित व्याख्यान हैं इनका।
  • भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के राष्ट्रीय सचिव रहे।
  • विज्ञान और तकनीकी में गहरी जानकारी थी इनको।
  • अपने भाषणों में जटिल विषयों को सरल और रोचक तरीके से समझाते थे।
  • राजीव दीक्षित ने कई पुस्तकें लिखी और कई लेक्चर भी दिए जिनका संग्रह सीडी, एसडी कार्ड इत्यादि जैसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में स्टॉरिज किया हुआ है, जिन्हें अलग अलग ट्रस्टों के द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
  • ऑडियो रूप में उनकी 1999 में भारतीय राष्ट्रवाद और भारतीय अतीत की महानता पर ऑडियो कैसेट बनी थी। इसके अलावा ऑडियो में उनकी स्वास्थ्य कथा भी है।
  • उनकी याद में हरिद्वार में भारत स्वाभिमान बिल्डिंग का निर्माण किया गया, जिसका नाम राजीव भवन रखा गया है।

राजीव दीक्षित अभी जिंदा हैं क्या?

राजीव दीक्षित अभी जिंदा नहीं है, उनकी मृत्यु 30 नवम्बर 2010 को हुई।

राजीव दीक्षित का गांव कौन सा है?

अलीगढ़ के नाह गाँव

राजीव दीक्षित और रामदेव के बीच क्या संबंध है?

राजीव दीक्षित 2004 में स्वामी रामदेव से मिले, रामदेव योगा में माहिर, राजीव आयुर्वेद में माहिर। रामदेव योगा के प्रचार में लगे थे, राजीव आयुर्वेद के प्रचार में। राजीव दीक्षित रामदेव को गाइड करते थे, एक रिपोर्ट की माने तो रामदेव के सबसे करीबी सलाहकार थे। पतंजलि को राष्ट्रीय ब्रांड बनाने में राजीव का ही हाथ है।


राजीव दीक्षित को कैसे मारा गया था?

राजीव दीक्षित की मृत्यु 30 नवंबर 2010 (उनके जन्मदिन पर ही) को हार्ट अटैक से हुआ, ऐसा डॉक्टरों का कहना है। जबकि उनका पोस्टमार्टम हुआ ही नहीं था

Anshuman Choudhary

I live in Jharia area of ​​Dhanbad, I have studied till Intermediate only after that due to bad financial condition of home I started working, and today I work and write post together in free time............