खरवार जनजाति का इतिहास | Kharvar janjati ka itihas

खरवार जनजाति का इतिहास | Kharvar janjati ka itihas

खरवार जनजाति झारखंड के पांचवी सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति है। सिंह का मुख्य संकेंद्रण पलामू प्रमंडल में है इसके अलावा हजारीबाग, चतरा, रांची, लोहरदगा, संथाल परगना तथा सिंहभूम में भी खरवार जनजाति कि लोग पाए जाते हैं।

  • खेरीझार से आने के कारण इस जनजाति का नामकरण खेरवार हुआ।
  • पलामू एवं लातेहार जिला में इस जनजाति को अठारह हाजरी भी कहा जाता है। तथा यह स्वयं को सूर्यवंशी राजपूत हरिश्चंद्र रोहिताश्व का वंशज मानते हैं।
  • या एक बहादुर मार्शल (लड़ाकू) जनजाति माने जाते हैं।
  • सत्य बोलने के अपने गुण के कारण इस जनजाति की विशेष पहचान है। यह जनजाति सत्य है तू अपना सभी कुछ बलिदान करने के लिए माने जाते हैं और जिसके लिए ये प्रसिद्ध है।
  • खरवार जनजाति का संबंध द्रविड़ प्रजाति समूह से हैं।
  • इस जनजाति के लोग खेरवारी भाषा बोलते हैं जो ऑस्ट्रो एशियाटिक भाषा परिवार से संबंधित है।

खरवार जनजाति की संस्कृति – खरवार जनजाति वंश का इतिहास

  • संडार के अनुसार खरवार की 6 प्रमुख उपजातियां हैं – मंझिया, गंझू, दौलतबंदी, घटबंदी, सूर्यवंशी तथा खेरी।
  • खरवारों में सामाजिक स्तर का मुख्य निर्धारक तत्व भू संपदा होता है।
  • खरवारों में घूमकुरिया (युवा गृह) जैसी संस्था नहीं होती है।
  • इस जनजाति का परिवार पितृसत्तात्मक तथा पितृवंशीय होता है
  • खरवार जनजाति में बाल विवाह को श्रेष्ठ माना जाता है।
  • सामाजिक व्यवस्था से संबंधित विभिन्न नामकरण –
  • विधवा पुनर्विवाह सगाई
  • ग्राम पंचायत बैठकी
  • ग्राम पंचायत प्रमुख मुखिया बैगा
  • 4 गांव की पंचायत चट्टी
  • 5 गांव की पंचायत पचौरा
  • 7 गांव की पंचायत सतौरा
  • इस जनजाति के पुरुष सदस्य सामान्यता घुटने तक धोती बंडी एवं सिर पर पगड़ी पहनते हैं। तथा महिलाएं साड़ी पहनती है।
  • इस जनजाति के प्रमुख पर्व सरहुल,कर्मा, नवाखानी, सोहराई, जितिया, दुर्गा पूजा, दीपावली, रामनवमी, फाग आदि है।
  • इस जनजाति में सुबह के खाने को ‘लुकमा‘ दोपहर का भोजन को ‘बियारी‘ तथा रात के खाने को कालेबा कहा जाता है।

खरवार जनजाति की आर्थिक व्यवस्था

  • खरवार जनजाति का मुख्य पेशा कृषि है, इनका परंपरागत पेशा खैर वृक्ष से कथा बनाना था।

खरवार जनजाति की धार्मिक व्यवस्था

  • खरवार जनजाति के सर्व प्रमुख देवता सिंगबोंगा है।
  • खरवार जनजाति में पाहन या बैगा (धार्मिक प्रधान) की सहायता से बलि चढ़ाई जाती है।
  • घोर संकट और बीमारी के समय यह जनजाति ओझा या मति की सहायता लेती है यानी कि जादू टोने का।
  • इस जनजाति में जादू टोना करने वाले व्यक्ति को माटी कहा जाता है।
0 0 votes
Article Rating
0 0 votes
Article Rating

Leave a Reply

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x