कवि, गीतकार, Dialogue writer, shayar और scriptwriter
Manoj Muntashir marital status
शादीशुदा
Manoj Muntashir wife’s name
नीलम मुंतशिर
Manoj Muntashir Affairs
Manoj Muntashir childrens
बेटा – आरू
Manoj Muntashir net worth
4 अरब 90 हजार लगभग रिपोर्ट अनुसार
Manoj Muntashir salary
कवि, गीतकार, Dialogue writer, shayar और scriptwriter का जीवनी
आज मनोज मुंतशिर को कौन नहीं जानता भला वो आज किसी चीज के लिए मोहताज नहीं है, हाँ वे लोग नहीं जानते होंगे जो ज्यादा फिल्मे नहीं देखते और ये नहीं जानते कि उस फिल्म के जो सुपरहिट गाने है उसके पीछे किसका हाथ है। आखिर फिल्मों के गाने कौन लिखते है उसके बारे में एक समय में लोग ज्यादा नहीं जानते थे क्योंकि गीतकार को ज्यादा क्रेडिट नहीं दिया जाता था, उसके बारे में लोगों को नहाई बताया जाता था क्योंकि जितने भी हिट गाने होते हैं उसके पीछे गीतकार का बड़ा हाथ होता है बहुत सी फिल्मे तो गाने कि वजह से ही हिट होते है।
मनोज मुंतशिर बहुत ही बड़े कवि (Poet), गीतकार (Lyricist), Dialogue writer, shayar,और scriptwriter है जिनके लिखे गाने, शायरी और लोगों को बहुत ही ज्यादा पसंद है। इनके लिखे गाने आज इतने हिट रहते हैं कि इनके सामने सब फीके नजर आते हैं, मनोज मुंतशिर द्वारा अक्षय कुमार कि फिल्म केशरी में लिखी गई एक बहुत ही बेहतरीन गाना तेरी मिट्टी में मिल जावा गुल बनके खिल जावा इतना सुपरहिट हुआ कि आज भी ये गाना लोगों कि जुबान पे रहता है। आज कि तारीख में मनोज मुंतशिर द्वारा बहुत से गाने लिखे गए जो सब हिट रहे।
मनोज शुक्ला की पैदाइशी अमेठी के गौरीगंज की जो उत्तर प्रदेश में पड़ता है जो उस समय एक छोटा सा कस्बा हुआ करता था आज कि तारीख में तो गौरीगंज शहर में तब्दील हो गया है।
मनोज मुंतशिर का जीवन इतना संघर्षपूर्ण रहा है शायद ही किसी इंसान ने इतना संघर्ष किया होगा, मनोज मुंतशिर ने बस एक ही लक्ष्य बना कर रखा कि ये आगे चलकर बड़ा होकर फिल्मों में गाना लिखेंगे ये सुनकर हर कोई मजाक उड़ाता था, जब स्कूल में हर किसी से पूछा जाता था कि तुम बड़े होकर क्या करोगे क्या बनोगे कोई कहता मैं इंजीनियर बनेगा कोई डॉ बनेगा लेकिन जब कोई मनोज मुंतशिर पूछता था ये सिर्फ कहता था मैं तो फिल्मों में गाना लिखूँगा। जब इनकी शादी होनेवाली थी तो जब इनके ससुर ने पूछा क्या करते हो आगे का क्या सोच है तो मनोज ने कहा मैं फिल्मों में गाने लिखूँगा।
तो इनके होने वाले ससुर ने अपनी बेटी की शादी मनोज शुक्ला से शादी करने स सीधा इनकार कर दिया, और उस लड़की से बेहद प्यार भी करते थे लेकिन उनके पिताजी के ठुकरा देने के बाद लड़की से भी ब्रेकप हो गया।
मनोज मुंतशिर का जन्म, परिवार व शिक्षा ( Manoj Muntashir birth & family)
मनोज मुंतशिर का जन्म 27 फरवरी सन्न 1976 को उत्तर प्रदेश राज्य के अमेठी के एक छोटा सा कस्बा गौरीगंज में हुआ, मनोज मुंतशिर का असली नाम मनोज शुक्ला है इन्होंने सिर्फ अपने नाम में मुंतशीर जोड़ा है धर्म परिवर्तन नहीं किया है और न ही शुरू से इनका नाम मनोज मुंतशीर था वो तो शायर बनने के बाद इन्होंने सिर्फ सरनेम बदल लिया कुछ अलग करने के लिए। मनोज मुंतशिर के पिताजी का नाम शिव प्रसाद शुक्ला है, गौरीगंज से ही अपनी स्कूल की शिक्षा पूरी की। बचपन से ही पढ़ने लिखने में बहुत तेज थे मनोज के पिताजी ने जब काम छोड़ा तो मनोज की माताजी ने घर कि सारी जिम्मेवारियाँ उठाई।
मनोज मुंतशिर कि माताजी ने स्कूल में पढ़ाने का काम करने लगी थी जिससे घर कि जरूरतों को पूरा किया जाता था।
मनोज शुक्ला से मनोज मुंतशिर कैसे बना अपना नाम क्यों बदला?
मुंतशीर का मतलब बिखरा हुआ होता है मनोज मुंतशिर की किताब मेरी फितरत है मस्ताना के लेखक खुद मनोज मुंतशिर है मनोज मुंतशिर का वास्तविक नाम मनोज शुक्ला है तो फिर इन्होंने अपना नाम मनोज मुंतशिर क्यों रखा? मनोज शुक्ला से मनोज मुंतशिर नाम क्यों बदल लिया? इसके पीछे क्या वज़ह रही होगी आज इस पर भी चर्चा करेंगे।
उस समय इनका नाम मनोज शुक्ला ही हुआ करता था तो अपने शुक्ला सरनेम से इनको मजा नही आ रहा शायरी करने के बाद मनोज शुक्ला अपने सरनेम को लेकर चिंतित रहते थे इन्होंने अपने नाम के साथ कई सारे सरनेम जोड़ कर देखे लेकिन फिट नही बैठ रही थी, मनोज शुक्ला जी चाय पीने के बड़े शौकीन थे। तो ठंड का मौसम था शाम को चाय की तलाश में निकले एक चाय की टपरी मिली मनोज मुंतशिर पहुंचता है बबलू की चाय की दुकान पर, बबलू दुकान पर एक रेडियो टंगी हुई थी रेडियो पर विविध भारती पर मुशायरा चल रही थी यह सुनकर मनोज मुंतशिर ने बबलू से कहा कि थोड़ा रेडियो का साउंड बढ़ाओ।
तो एक शायर साहब जी शेर पढ़ रहे थे मुंतशिर हम है तो रुकसार पर शबनम क्यों है मतलब – टूटा हुआ मैं हूं तो तुम्हारे आंखों में आसूं क्यों है आईने तो टूटते रहते है तुम्हे गम क्यो है।
जब मनोज शुक्ला ने ये शेर सुना तो इनको यहां से एक आइडिया मिल गया और इस शायरी में से जब मुंतशिर का मतलब समझा तो मनोज शुक्ला ने तुरंत मुंतशिर शब्द को अपने नाम से शुक्ला हटाकर मनोज नाम के आखिर में मुंतशिर जोड़कर देखा गजब का मेल बैठा म से मनोज और म से मुंतशिर तो इन्होंने तुरंत फैसला कर लिया की आज से ये मनोज मुंतशिर ही है। मनोज शुक्ला ने तुरंत बेगैर परिवार वालो को कुछ बताए अपने नाम से शुक्ला हटाकर सरनेम मुंतशिर रख लिया जो एकदम फिट बैठ रही थी।
इसका मतलब भी थोड़ा हटके था, बिखरा हुआ यानि मनोज जी बिखरा हुआ था और एक दिन इन्होंने खुद को ऐसा समेटा कि आधी दुनिया को इन्होंने समेट लिया और इसके कायर हो गए लड़किया इनकी दीवानी हो गई।
तो मनोज शुक्ला चाय पीकर घर लौटे घर का मरम्मत का काम चल रहा था साथ में उनके पिताजी का नेम प्लेट भी लग रहा था तो मनोज शुक्ला जी ने अपने पिताजी से कहा कि पिताजी इस नेम प्लेट पर अपना नाम भी लिखवा लूं। तो पिताजी ने कहा बेटा लिखवा लो अपना नाम उसमे क्या है। तो मनोज शुक्ला ने नेम प्लेट पर अपना नाम मनोज शुक्ला की जगह मनोज मुंतशिर लिखवा दिया, जब इनके पिता जी सुबह दातुन करते हुए घर के बाहर निकला और जब नेम प्लेट पर नजरपड़ी तो हैरान रह गए मनोज शुक्ला जी के पिताजी चिल्लाने लगे और कहते हैं कि फिर से राम ने नेम प्लेट गलत लगा दी।
उसे एक पैसा नही दूंगा, यह सब सुनकर उनका पुत्र मनोज शुक्ला बाहर आए और अपने पिताजी से कहा पिताजी उसने नेम प्लेट सही लगाया है। उनके पिताजी बोला यह क्या लिख दिया है मुंतशिर तो मनोज ने कहा पिताजी मुंतशिर मैं ही हूं, पिताजी बहुत गुस्सा हुए सदमा लगा उनको, फिर मनोज शुक्ला ने पिताजी को किसी तरह समझाया बुझाया की पिताजी मैने सिर्फ पेन नेम बदला सरनेम बदला है धर्म या मजहब नहीं बदला है। मैं आज भी ब्राह्मण हूं, सनातनी हूं और मुझे इस पर गर्व है।
मनोज मुंतशिर का जीवन सफर मुंबई में भिखारियों ने खाना खिलाया
इनका ब्रेकप हुआ शादी टूट गई नही हुईं क्योंकि ये फिल्मों में गाना लिखना चाहते थे, जब मुंबई पहुंचे तो जगह ना होने पर फूटपात पर सोए दिन और रात गुजारे। भिखारियों ने खाना खिलाया और किसी शराबी ने शराब के नशे मे इनके चेहरे पर पेशाब कर दिया। बस का किराया ना होने पर 10–10 किलोमीटर पैदल चलते थे, खाने के ज्यादा पैसे ना होने के कारण मनोज शुक्ला पारले जी बिस्कुट खाते थे और कई दिन ऐसे भी थे भूखे गुजर जाते थे।
मनोज शुक्ला जी ने म्यूजिक कंपनी के इतने चक्कर काटे के जितने भी वहां के चौकीदार होते थे उनसे दोस्ती करली ताकि जब कभी भी वे वहाँ आए तो उसे डांट कर भगा न दे।
मनोज मुंतशिर का संघर्ष लोगों के लिए बहुत बड़ा प्रेरणा है फ़िल्मों में गाना लिखने चाहते थे जिसके कारण ब्रेकअप हुआ जिसकी वजह से इनकी शादी नहीं हुई। मनोज मुंतशिर का संघर्ष लोगों के लिए बहुत बड़ा प्रेरणा है, इतना सब कुछ होने के बावजूद भी उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा वह मुंबई में ही टीके रहे, म्यूजिक कंपनियों के चक्कर लगाते रहे एक ना एक दिन उसे कोई मौका दें और अपनी काबिलियत को दिखा सके उन्होंने कभी नहीं सोचा कि वह गांव जाकर वहीं पर कुछ काम धंधा कर ले।
मनोज शुक्ला ने अपनी काबिलियत को कब पहचानी?
मनोज शुक्ला अपनी काबीलियत को मात्र 8 –9 साल में पहचान ली थी, घर के संदूक में कवि दीवाने गालिब की किताब इनके हाथ लगी जो न हिंदी भाषा में थी ना ही उर्दू या फारसी में थी वो दूसरी ही भाषा में थी जिसको समझ पाना मुश्किल था। तो 8–9 साल में इनको ये किताब इनके पापा के संदूक से मिली, उसे पढ़ना शुरू किया उस समय इनको कुछ समझ में नही आ रही थी। लेकिन उस समय इनको अहसास हो गया था कि इनके अन्दर कुछ है और इस भाषा को सिख कर ही रहेंगे और वक्त निकाल कर इस जुबान को अवश्य सीखूंगा।
बात Bs.c 2nd year की हैं गौरीगंज से इलाहाबाद एक ही ट्रेन जाया करती थी उस वक्त, जिसका नाम पीआरएल थी जो बहुत ही धीमा चलती थीं 125 किलोमीटर की दुरी तय करने में करीब 5 घंटे लग जाती थी। बीच में ही प्रतापगढ़ स्टेशन में इनकी ट्रेन खराब हो जाती हैं गार्ड ने कहा ट्रेन को बनने में अधिकतम 2 घंटे लगेगी। अब मनोज शुक्ला 2 घंटे करे तो करे क्या? तो मनोज शुक्ला ट्रेन से बाहर निकलकर प्लेटफार्म पर टहलने के लिए निकल पड़े। कुछ ही दूरी पर इनको एक बूक की स्टॉल यानी दुकान दिखती हैं तो ये वहां पहुंच जाते है और किताबे देखने लगते हैं।
इनको वहां पर इनकी नजर एक किताब पर पड़ी जो प्रकाश पंडित जी के द्वारा एडिट की हुईं थी लोकप्रिय शायर साहिर लुधियानवी की किताब, जो उर्दू के लोकप्रिय शायर थे। मनोज शुक्ला ने किताब के पन्नो को पलटना शुरू किया जिसमे उसकी जीवनी के बारे मे लिखा हुआ था, थोड़ी सी ही पढ़ने के बाद मनोज शुक्ला बहुत प्रभावित हुए पीछे पलटा देखा कीमत 18 रुपए थी उस समय 18 रुपये बहुत रकम हुआ करती थी। अब मनोज शुक्ला सोचने लगे कि अगर मैने 18 रुपए की ये किताब खरीद ली तो मेरा 4 दिन का नाश्ता का जुगार नहीं हो पायेगा चाय कैसे पीयूंगा बन मक्खन कैसे खाऊंगा करूँ तो करूँ क्या?
मनोज शुक्ला जी चाय के बड़े शौकीन थे घर जाते समय इन्होंने 5 रुपये वाली चायपत्ती खरीदी जिस पर लिखा था सोने का सिक्का जीते लेकिन मनोज शुक्ला ने सोने के सिक्के के लालच में नहीं खरीदी थी। जब चायपत्ति कि पैकेट खरीद कर घर लौटे और पैकेट को खोला तो देखा कि उसके पैकेट से एक सोने का सिक्का निकला। मनोज शुक्ला को तो कुछ क्षण तक तो विश्वाश ही नहीं हुआ कि ऐसा भी होता है क्या? उसके बाद क्या सोनार की दुकान पर जाकर सोने के सिक्के को बेचा बेचने पर उन्हे उस समय करीब 700 से 750 रुपए मिले थे। तो इनको ऐसा लग रहा था कि अब मुंबई इन्हे वापस जाने से रोक रहा हो।
मनोज ने जब अनूप जलोटा से मुलाकात की
एक दिन भटकते हुए मनोज शुक्ला अनूप जलोटा के ऑफिस पहुंच गए, उसके मैनेजर से कहा अनूप जी से मिलना है, मैनेजर ने कहा अनूप जी से हजारों लोग मिलने आते हैं। अनूप जी से मिलने और भी तो बाकी लोग बैठे थे आप भी बैठ जाइए, थोड़ी देर बैठा रहा लेकीन कुछ देर बाद मनोज शुक्ला ने कहा कि आप अनूप जलोटा जी से मिलाओगे की नही मैनेजर ने कहा वो व्यस्त हैं अभी मनोज ने कहा बस उन्हे इतना बता दो की अमेठी से आया है। उसके बाद उसके मैनेजर भरत जी ने अनूप जलोटा जी फोन किया की आपसे अमेठी वाला कोई मिलना चाहता है।
तो अनूप जलोटा जी बोले ठिक है भेजो उसे मनोज शुक्ला ऊपर गए और देखा की अनूप जलोटा जी के पैर में प्लास्टर बंधा हुआ था वो बैठे हुए थे। उसके पास जाकर बैठ गए वहां जाने का बस दो ही मकसद थे की पहला कोइ काम मिल जाए और फ्री का चाय मिल जाए, और मुझे पैसे भी खर्च नही पड़े। तो अनुप जलोटा ने कहा की बताओ मनोज भाई क्या लिखते हो? यह सुनकर यह सुनकर मनोज शुक्ला जी को लगा कि मैं तो गलत जगह पर आ गया यह तो भजन गाते हैं मैं तो भजन भी नहीं लिख सकता मैं तो शायर शायर हूं मैं शायरी और गजल लिखता हूं।
अब मनोज शुक्ला जी करे तो करे क्या तो मनोज शुक्ला जी ने अनूप जलोटा से कहा कि मैं भजन लिखता हूं मनोज शुक्ला ने यह बात झूठ बोली थी। मनोज शुक्ला जी ने कहा चाय मंगाइए, तब तक चाय आते हैं मनोज शुक्ला ने एक भजन लिख दिया ऑन द स्पॉट तुरंत, उसके अंदर यही एक टैलेंट थी लिखने की। मनोज शुक्ला ने भजन लिख दिया लेकिन अनूप जलोटा ने आज तक यह नहीं बताया कि मनोज जी ने भजन कितना अच्छा लिखा था। तब तक अनूप जलोटा जी मनोज का लिखा हुआ भजन देख रहे थे।
उधर मनोज शुक्ला चाय पीने में मग्न थे चलो अनूप जलोटा जी को भजन पसंद ना भी आए तो कोई फरक नहीं पड़ता कम से कम मुझे चाय पीने को तो मिल गई।
उसके बाद अनूप जलोटा जी ने मनोज शुक्ला जी से पूछा कि क्या आपके पास बैंक अकाउंट है मनोज शुक्ला जी ने कभी बैंक अकाउंट का नाम सुना ही नहीं था। ये क्या होता है? मनोज शुक्ला ने कहा मेरे पास कोई बैंक अकाउंट नहीं है तो इसमें अनूप जलोटा पूछा की आप चेक कैसे कैश करोगे?भंजाओगे कैसे? मनोज शुक्ला ने कहा कि चेक कौन दे रहा है अनूप जलोटा ने कहा कि मैं दे रहा हूं। मैं आपको बैरियर चेक दे रहा हूं मनोज शुक्ला ने यह भी नहीं सुना था कि यह बैरियर चेक होता क्या है।
मनोज के साथ किसी भी तरह का बैंक अकाउंट नहीं था फिर भी जलोटा जी ने मनोज शुक्ला जी को बैरियर चेक दिया जो ₹3000 की थी। बगल में ही नीचे एक बैंक थी जहां पर जाकर मनोज शुक्ला जी ने बैरियर चेक को कैश कराया, मनोज शुक्ला को बैंक से सौ सौ की 30 नोट की हरी पत्ती बैंक से मिली। ये बात 1999 की इससे रही होगी इससे पहले मनोज ने कभी भी एक साथ ₹3000 नहीं देखे थे, बहुत खुश थे दादर से बांद्रा काफी दूर है उस दिन मनोज शुक्ला को सब्र नहीं हो रहा था कि वह अब बस का इंतजार करे या फिर ऑटो ले वह दौड़ते हुए बांद्रा के लिए निकल गए।
उस समय के जितने भी गीतकार और राइटर जो थे गाने के लेखक को बहुत कम पैसे दिए जाते थे, और उसका नाम भी कहीं प्रदर्शित नहीं की जाती थी। क्योंकि उस वक्त अधिकांश लोगों को बस पैसे से मतलब था, वो कितनी मेहनत कर रहे है परदे के पीछे वो जाहीर नहीं होना देना चाहते होंगे। क्योंकि कभी किसी राइटर में इस चीज के खिलाफ आवाज उठाई ही नहीं। एक समय था जब लोग सिर्फ सिंगर और डायरेक्टर को ही जानते थे जिसने इतनी मेहनत करके गाने लिखे हैं डायलॉग लिखे हैं उसको कोई जानता ही नहीं था इस चीज की शुरुआत मनोज शुक्ला जी ने की।
कभी भी किसी गाने के नीचे गाने के राइटर का नाम नहीं होता था यूट्यूब के गाने फिर भी गाने के नीचे उस के राइटर का नाम नहीं होता था जिसकी शुरुआत मनोज शुक्ला जी ने की इसके लिए उन्होंने आवाज उठाई तब जाकर उनका नाम राइटर के रूप में प्रदर्शित की गई दिन की शुरुआत मनोज शुक्ला की फिल्म रुस्तम की एक जाने से की गई गाने का नाम है तेरे संग यारा जो बहुत ही सुंदर गाना था।
जो पुस्तम फिल्म का गाना तेरे संग यारा यूट्यूब पर प्रदर्शित की गई तो मनोज शुक्ला ने देखा कि इस गाने के नीचे उसका नाम है ही नहीं तो इसके लिए मनोज शुक्ला ने आवाज उठाई पूरी टीम से बात की अक्षय कुमार से बात की तब जाकर तेरे संग यारा के लिरिक्स राइटर कान्हा के रूप में मनोज शुक्ला जी का नाम लिखा गया जितने भी गाने के लेखक आज होते है लिरिक्स के लेखक के नाम लिखे जाते हैं। जब मनोज शुक्ला ने आवाज उठाई कि उसके जाने के नीचे उस गाने का लेखक के रूप में उनका नाम होना चाहिए तो होना चाहिए
लेकिन कुछ कास्ट के लोग ने कहा कि ऐसा नहीं होता गाने का लेखक का नाम नहीं लिखा जाता है लेकिन मनोज शुक्ला जी ने कहा ऐसा नहीं होता मेरे गाने के नीचे तो मेरा नाम लिखना होगा चाहे जो हो। नही तो मेरा गाना हटा दो मैने भी मेहनत की है मैं भी गाने का हिस्सा हूं।
उसके बाद लोगों ने उसकी टीम ने उसको सपोर्ट किया और उस कान्हा के नीचे मनोज शुक्ला जी का नाम लिखा गया और तब से लेकर आज तक किसी भी गाने का जो राइटर होता है उसका नाम उसका ने सुनी से लिरिक्स का नाम लिखा जाता है जिसकी शुरुआत मनोज मुंतशिर ने किया था जो आज चला रहा है पहले नहीं चल रहा था। जिसका फायदा आज हर गाने के लेखक को मिलता है हर गाने के नीचे गाने का लेखक का नाम लिखा जाता है।
15 साल उन्होंने टेलीविजन में काम किया कई सारे कार्यक्रमों ने लिखे करोड़पति का स्क्रिप्ट भी लिखा जो पुरस्कार समारोह होते हैं यह भी उन्होंने लिखा या इनको पता भी है कि किस तरह होता है कैसे खरीदे जाते हैं।
मनोज मुंतशिर में बाहुबली1 और बाहुबली टू के हिंदी गाने लिखे और साथ में उसके डायलॉग भी लिखे जो सुपर डुपर हिट रहे मनोज मुंतशिर कभी डायलॉग नहीं लिखते थे लेकिन इसकी शुरुआत उन्होंने बाहुबली फिल्म से कि वह भी फिल्म के डायरेक्टर के कहने पर जोया और भी सफलता दिलाई। मनोज मुंतशिर ने कभी सोचा ही नहीं था कि वह डायलॉग भी लिखे हैं उनको डायलॉग लिखने का शौक बनाए तो वह तो बस गाने लिखते थे लेकिन किस्मत मैं जो लिखा होता वह तो होता ही है।
मनोज मुंतशिर को डायलॉग लिखने पर एसएस राजामौली ने मजबूर किया, उन्होंने मनोज मुंतशिर को बुलाया बिठाया तो मनोज मुंतशिर ने कहा की बताओ यह कैसा क्या लिखना है गाना एस राजामौली ने कहा कि आपको बाहुबली के लिए देखना है तो मनोज मुंतशिर ने कहा कि ठीक है बताइए के फिल्म में कितने गाने हैं हैं तू उसके घर जाने का विचार चाहते हैं कि आप दोनों तो लिखी रहे हैं साथ में आप बाहुबली के लिए डायलॉग भी लिखें। मनोज मुंतशिर नया कहा कि सर ने गलत आदमी को बुला लिया है
मैंने तो कभी डायलॉग लिखा ही नहीं है, तू एसएस राजामौली ने मनोज मुंतशिर को कहीं पर बोलते हुए सुना था जो उनको बहुत पसंद आ गया था उसको लग गया था कि यह कुछ लिख सकते हैं बाहुबली के लिए।
मनोज मुंतशिर जब गाने लिखते लिखते बोर होने लगते हैं तो मनोज मुंतशिर डायलॉग लिखने लगते हैं और डायलॉग प्लीज प्ले लिखते अगर बोर होने लगते हैं तो वह गाने लिखने लगते हैं एक समय तो मनोज मुंतशिर साल भर के गाने लिख कर रखते थे लेकिन अब थोड़े कम कर दिए।
12वीं क्लास में मनोज मुंतशिर अपनी गर्लफ्रेंड से बिछड़ गए थे अगर आपको बड़ा शहर बनना है तो अंदर से टूटना बहुत जरूरी है धोखा मिलना जरूरी है।
मनोज शुक्ला 12वीं में थे बीएससी कर रहे थे जब इन से इसकी दोस्त पूछा करते थे कि तुम आगे चलकर क्या करोगे तो मनोज मुंतशिर बस यही कहते थे की मैं फिल्मों में बगाने लिखूंगा एकमात्र ऐसे जो कहते थे कि गाने लिखूंगा बाकी के दोस्त कहते थे मैं डॉक्टर बनूंगा मैं इंजीनियर बनाऊंगा वगैरा बनाऊंगा मनोज मुंतशिर कभी झूठ नहीं बोलते थे।
मनोज मुंतशिर की जो पहली गर्लफ्रेंड थी उनके पिताजी ने भी जब पूछा कि तुम क्या करोगे क्या करते हो तो मनोज मुंतशिर ने कहा कि मैं फिल्म में गाने लिखूंगा। तो गर्लफ्रेंड के पिताजी ने सीधा मना कर दिया, बार बार ठुकराया गया। मनोज मुंतशिर को तीन बार ऐसी ऐसी जगह पर ठुकराया गया जहां पर मनोज मुंतशिर ने कहा कि मैं फिल्मों के गाने लिखूंगा।