Jharia Coal Field ke sadko se log Behal
झरिया और बलियापुर सड़कों का कई दशकों से हालात गंभीर
ये जो आप सड़क देख रहे हैं क्षमा चाहता हूँ ये जो आप गड्ढे देख रहे हैं, एक तरह से से देखा जाए तो इसे गड्डा भी नही कह सकते है इसे तो हम तालाब कहेंगे।
ये जो आप बीच सड़क पर तालाब देख रहे हैं ये हमारे झरिया के घनुआडीह के पास एक सरकारी डी. ए. वी. स्कूल है ठीक उसके कुछ क़दम की दूरी पर ये तालाब है। ठीक उसके कुछ दूरी पर घनुआडीह ओ. पी. थाना है। ये रास्ता सीधे बंगाल से जोड़ती है और बहुत सी बड़ी गाडियां बंगाल से आती जाती है लेकिन कभी भी बड़ी गाड़ियों का चेकिंग नही किया जाता है, चेकिंग करेगा तो सिर्फ लोकल बाइक वालों का। कभी रात में घर जाते समय तो कभी सुबह काम के वक़्त जाते समय, वाह! इनलोगो क्या चेकिंग करने समय निर्धारित की इन लोगों ने।
इस बीच सड़क मे बने तालाब के कारण हर रोज ना जाने कितनी गाडियां फंस जाती है कारण यही है कि जिन लोगों को पता होता है वो आसानी से निकल जाता है जिसको पता नही होता है वो सीधे बीच तालाब में जा कर फंस जाते हैं नौबत यहां तक आ जाती है कि उसे धकेल कर निकालना पड़ता है कुछ लोग तो बस तमाशा देखते हैं और फोटो भी खिंचते है लेकिन कुछ लोग है जो मदद कर देते हैं। भला गंदे पानी मे कौन घुसना चाहेगा। फिर कुछ इंसान आ जाते हैं।
करीब करीब 7 से 8 किलोमीटर तक सड़कों की हालात ऐसी है कि ग़र आप बाइक से हर रोज़ का आना जाना है तो गाड़ी तो गन्दा होता ही है साथ में पैर का पूरा निचला हिस्सा कीचड़ से ओत पोत हो जाता है। मतलब यही है कि बाइक से जाने पर भी हर दिन बाइक को धोना पड़ता है बाइक तो साफ हो जाती है और हर दिन कपड़ों को धोना और धोने के बावजूद भी कपडों से दाग नही जाना इतनी महंगाई मे भला 80/100 रुपये देकर कपड़ों को लॉन्ड्रिंग मे देकर साफ करवाना आसान नहीं है।
लघभग 4 से 5 महीनों तक ऐसे ही बरसात में कीचड़ो से भरे गड्डो को झेलना पड़ता है। उसके बाद आता है मौसम ठंड का कीचड़ सूखने के बाद रह जाता है गड्डा जिसमें मिट्टी और पत्थरों से भरकर ढकने की कोशिश की जाती है इसके बावजूद भी छुपा नहीं पाता है, ये सड़क और भी पथरीले हो जाते हैं जिसकी वजह से ना जाने कितने लोग अंधेरे मे गिर जाते हैं ये आँखों देखा हाल है। कुछ तो मेरे जान पहचान वाले ही गिरे है।
और इसके अगल बगल के क्षेत्र से जहरीले गैस का रिसाव भी होता है खासकर के ये प्रक्रिया बरसात मे होती है जिसे आँखों से भी आसानी से देखा जा सकता है।
और गर्मियों मे तो इतने गर्दे उड़ते हैं कि आँखों का खराब होना भी स्वाभाविक हो जाता है और तो और इस सड़क पर कोयला से लदे हाईवा गाडियां चलती है इसकी वजह से भी और धूल कण उड़ते हैं ऐसे तो धूल कण लघभग मौसम में उड़ते हैं जो आँखों के लिए बहुत ही खतरनाक है। जिसकी वजह से लोगों की आंखे इतनी जल्दी खराब हो जाती है कि कम उम्र में ही आधी ज़िन्दगी आँखों के इलाज में चला जाता है।
मेन मुद्दा तो ये सड़के है और इनके आस पास के इलाके में बसे मज़बूर मज़दूर है जो यहाँ रहने को मजबूर है क्योंकि ये लोग इस जगहे को छोड़ कर जा भी नहीं सकते क्योंकि ये आखिर छोड़ कर जाएंगे कहाँ कुछ लोगों के पास कोयला चोरी करके बेचने का हुनर है तो कुछ को ये सब रास नही आती है तो छोटा मोटा काम करके अपना जीवनयापन करते हैं। कुछ लोगों को दूसरी जगह बसाया जा चुका है लेकिन भ्रष्टाचारी की वजह से कहीं ना कहीं इन लोगों का भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है।
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और ये सड़क जो आप देख रहे हैं ये दुमका और देवघर के बीच का है अब इसके बारे में क्या कहना बस एक गड्डा है जो सड़क पर है उसमे पानी है, हो सकता है किसी ने मछली छोड़ने के लिए बनाई होगी इसलिए कोई उसकी शिकायत भी नही कर रहा है।
तो ये हाल है हमारे देश के सड़कों का।