लिलोरी स्थान कतरास धनबाद का इतिहास, लिलोरी स्थान मंदिर का इतिहास
झारखंड में प्रसिद्ध मंदिरों की बात जब की जाती है तो धनबाद के कई मंदिरों का जिक्र होता है लेकिन सबसे पहले जिक्र की जाती है कतरास स्थित माँ लिलोरी मंदिर की। उसके बाद इनमे और भी कई नाम शामिल है, तो पहले करेंगे धनबाद के कतरासगढ में स्थित मां लिलोरी स्थान (Lilori Sthan Katrasgarh Dhanbad) के बारे में। जो पूरे झारखंड में प्रसिद्ध है और लोगों को पूरा विश्वास है की उनकी मन की मुरादें यहां आने से पूरी होती है। और भी बहुत से लोग यहां हर रोज बड़ी तादात में अपना दुःख दर्द लेकर आते रहते हैं। जो यहां आने से दूर हो जाती है। झारखंड के अगल बगल के कई राज्यों से भी हर रोज मां लिलोरी स्थान दर्शन के लिए आते रहते हैं। लिलोरी स्थान कतरासगढ मे बहुत अधिक संख्या में शादी विवाह समारोह शादी के लग्न में होते रहते है।
धीरे धीरे यह स्थान और भी विकसित हो गया है लिलोरी स्थान मंदिर के आसपास आज के समय में बहुत से शादी समरोह के लिए छोटे छोटे धर्मशालाएं (लॉज) भी बन गए हैं। जहां पर लोग शादी से पहले धर्मशाला को बुक करके उसमे शादी समारोह का आयोजन करते हैं। माँ लिलोरी जी का मंदिर काफी पुराना तथा प्रसिद्ध मंदिर है इस मंदिर का जिक्र 800 वर्ष पूर्व हो चूका है यह एक अनूठी ,परम्परागत, रहस्यमय मंदिर है। ये मंदिर धनबाद जिले के कतरास क्षेत्र में स्थित है। माँ लिलोरी जी का मंदिर धनबाद रेलवे स्टेशन से तकरीबन 18-19 किलोमीटर दूर है। और झरिया से भी ये मंदिर तकरीबन यही दूरी है, क्योंकि मंदिर जाने के लिए दोनों जगह से रास्ते अलग अलग है लेकिन दूरिया लगभग एक सामान है।
आप वहाँ जाने के लिए बस टेम्पो, टोटों, अगर बाइक हहाई बाइक से जा सकते हैं, रिजर्व करके भी जा सकते हैं।

धनबाद के कतरास में स्थित माँ लिलोरी स्थान झारखंड के अलावा पड़ोसी के कई राज्यों में प्रसिद्ध है। और हर दिन माँ के मंदिर में आकर हजारों की तादाद में लोग दर्शन करते है और प्रसाद चढ़ाते है। कतरास में स्थित माँ लिलोरी स्थान का इतिहास बहुत ही पुराना है, और ये मंदिर बहुत ही प्राचीन है जिसके बारे में आप अच्छे से वहाँ के पुराने पुजारियों से भी जानकारी ले सकते हैं। आसपास के लोग तो पूजा के लिए जाते तो रहते ही है साथ में बहुत दूर दूर से भी हर दिन यहाँ पूजा करने आते रहते हैं
माँ लिलोरी स्थान मंदिर का इतिहास : lilori sthan mandir ka itihas
माँ लिलोरी मंदिर कतरासगढ़ के राजा की कुल देवी मंदिर है। वहाँ के पुराने पुजारी और लोगों के अनुसार 800 वर्ष पूर्व मध्यप्रदेश के रीवा के राज घराने के वंशज से ताल्लुक रखने वाले कतरासगढ़ के राजा सुजन सिंह ने कतरास के इस जंगल में माता जी की प्रतिमा स्थापित की थी। उस वक्त यह स्थान बहुत घनघोर जंगलों से घिरा हुआ था। |वहाँ के जाने माने पुजारी काजल प्रामाणिक जी कहते हैं कि उस समय से लेकर आज तक सबसे पहले पूजा इस मंदिर में यहाँ के राज परिवार के ही कोई सदस्य करते हैं। उसके बाद ही कोई दूसरे अन्य लोग इस मंदिर में पूजा करते हैं। लगभग हर दिन ऐसा कोई दिन नहीं होता है जिस दिन इस मंदिर के प्रांगण में बकरे कि बली नहीं होती है। रीवा राज घराने के राज परिवार के विशाल सिंह जी कहते हैं कि ये उनकी परिवार की 56वीं पीढ़ी चल रही।
जो आज भी उनके वंशज द्वारा शुरू की गई प्राचीन पूजा को ये लोग पारंपरिक तरीके से करते आ रहे हैं। और साथ में वहीं के कई पुजारियों का रोजगार इसी मंदिर से से चल रहा है। और साथ में आसपास के हजारों लोगों को अपना खुद का व्यापार करने का सुनहरा मौका मिला। और उससे अपने घर कि रोजी रोटी चलाने का दायित्व उठा पाया।
लिलोरी स्थान कतरासगढ धनबाद राजाओ की कूल देवी है। इन सभी के पुर्वज राजा पृथ्वी सिंह जी ने ही कूलदेवी माता लिलोरी जी को रीवा से साथ में लेकर आए थे। इनकी जिह्वा निकली हुई है, इन्ही लोगों के द्वारा बकरे कि बलि देने का रिवाज शुरू किया गया था। यहाँ किसी न किसी के द्वारा हर रोज बकरे की बलि दी जाती है। हर दिन यहाँ लोगों कि मुरादे पूरा होने पर लोग यहाँ आते हैं और उनके द्वारा बकरे कि बलि दी जाती है। राज परिवार वाले भी बकरे कि बलि देते रहते है।
माँ लिलोरी स्थान मंदिर का खुलने और बंद होने का समय
माँ लिलोरी स्थान मंदिर का खुलने का समय सुबह 8 बजे और शाम 6 बजे बंद हो जजाती है।

लिलोरी माता की ख्याति
- माँ लिलोरी स्थान मंदिर की ख्याति 800 वर्ष पूर्व से ही है जब माता लिलोरी की प्रतिमा को स्थापित की गई थी।
- माँ के बारे में राजघराने के लोग भली भांति परिचित है, कोई भी भक्त माँ के दरबार में दिल से अपनी मन्नतें मांगते है, तो माँ उनकी मन्नते जरूर पूरी करती है इसी कारण से काफी संख्या में श्रद्धालु लोग झारखण्ड के साथ साथ पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, ओडिशा से लोग आते रहते है।
- माँ लिलोरी के लिए लोगो में इतनी भक्ति तथा आस्था है कि पुरे भारत ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग माँ के दर्शन के लिए आते है।
- किसी ने नया गाड़ी ख़रीदी हो तो पूजा करवाने यहाँ आते हैं, बच्चे का मुंडन करवाना हो या जनेऊ का कार्यकर्म हो यहीं आते हैं।
विवाह कार्यक्रम के लिए प्रसिद्ध स्थल
शादी के लगन में विवाह स्थल के रूप में भी काफी प्रसिद्ध है ये मंदिर, यहाँ काफी दूर दूर से लोग विवाह का कार्यक्रम को पूरा करने के लिए आते है |मैं खुद कई दफा शादी में माता जी के मंदिर जा चुका हूँ। पहले यहाँ कुछ खास सुविधाये नहीं थी लेकिन आज वर्तमान समय में यहाँ पर अनेकों दुकान होटल, लॉज धर्मशाला खुल गए है। जिसमे वहाँ के स्थानीय लोगों का बड़ा हाथ है आज ये जगह अच्छा खासा स्थानीय लोगों का व्यापार का एक साधन बन चुका है। जिससे लोगों को बहुत शादी विवाह समारोह करने में सुविधा मिलती है। शादी लगन में यहाँ पर बहुत ही भीड़ होती है जबकि यह क्षेत्र बहुत बड़ा है, बावजूद जब शादियाँ होनी शुरू होती है तो यहाँ पैदल चलना मुश्किल हो जाता है। लगन के समय इतनी भीड़ रहती है की पैर रखने की भी जगह तक नहीं रहती है
माँ लिलोरी मंदिर के नजदीक ही कतरी नदी बहती है जो वहाँ का सौंदर्य को और बढ़ा देती है। श्रद्धालु इस नदी में स्नान कर सकते हैं, बहुत से लोग तो पहले से नहाने के सभी जुगाड़ ले जाते हैं, नहाने के बाद ही बहुत से लोग मंदिर में प्रवेश करते हैं। मंदिर के पास ही एक सुंदर पार्क बनाया गया है जो जिसकी लागत 3 से 4 करोड़ बताई जाती है। यह पार्क काफी बड़ा है तथा बच्चों के लिए टॉय ट्रैन, जमपिंग ट्रैक और भी बहुत कुछ है। शौचालय तथा पानी की व्यवस्था है। अभी छोटे बच्चों के लिए मंदिर के प्रांगण में इलेक्ट्रिकल गाड़ियां लाई गई है जिसमे बच्चे बैठकर मनोरंजन कर सकते है, जिसका किराया कुछ 50 रुपए के आसपास है शायद।
लिलोरी स्थान मंदिर के खुलने और बंद होने का समय
कतरास के राजपरिवार का संक्षिप्त में इतिहास
धनबाद और गिरिडीह जिले मे तीन राज परिवार, झरिया, कतरास और रामनगरगढ के राज परिवार 18वीं सदी मे रीवा मध्य प्रदेश से पालगंज गिरिडीह आए थे। यहाँ राजा पृथ्वी सिंह पालगंज मे ही रह गए, जबकि कुमार संग्राम सिंह कतरासगढ में रह गए, श्याम सिंह नवागढ रह गए और रघुनाथ सिंह झरिया रह गए। रघुनाथ सिंह के बाद झरिया के राजा रासबिहारी सिंह के पुत्र जयमंगल ( 2 बेटी थी – दुर्गा निसन्तान थे ) थे। तब कूल पुरोहित के सलाह से रासबिहारी ने चचेरे भाई जानकी प्रसाद के बेटे शिवप्रसाद सिंह को झरिया का राजा बना दिया। शिवप्रसाद सिंह ने ही आर. एस. पी. कॉलेज (R.S.P. Collage Jharia) झरिया की नींव रखी थी। शिवप्रसाद सिंह जी के पुत्र काली प्रसाद सिंदरी विधानसभा से सन्न 1950 ईस्वी में विधायक भी बने।
इसके बाद तारा प्रसाद सिंह बलियापुर से चुनाव लड़े लेकिन वे हार गए। इसी वंशज के सुजीत सिंह की धरम पत्नी माधवी जी राजनीति मे सक्रिय रह चुकी है। रामनगर गढ के राजा मदन मोहन सिंह सन्न 1968 ईस्वी मे जनसंघ से बाघमारा से विधायक रह चुके थे। इन्ही की पुत्रवधु अनुरागीनी सिंह महुदा तेलमच्चो से राजनीति मे सक्रिय रह चुकी है।कतरासगढ के राजा कामाख्या नारायण सिंह हुआ करते थे, इनकी पत्नी सुमेधा राज लक्ष्मी बाघमारा से भाजपा से सन्न 1982 के चुनाव हार गई। इन्ही का सुपुत्र सत्येन्द्र सिंह जी की पत्नी सुमेधा सिंह भी राजनीति में सक्रिय रह चुकी है। रीवा के राजा रामचँद्र के दरवार मे पंडित तानसेन हुआ रहते थे, राजा रामचँद्र को मुगल राजा अकबर ने जीत लिया और तानसेन को दरबारी संगीततज्ञ बना लिया गया जिनकी मृत्यु पाकिस्तान मे हुई।