Shibu Soren biography in hindi | शिबू सोरेन का जीवनी, जन्म परिवार, शिक्षा, निधन और राजनीतिक सफर

शिबू सोरेन का जीवन परिचय: Shibu Soren biography

तो आज हम बात करेंगे झारखंड के पूर्व राजनेता और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और अध्यक्ष रहे शिबू सोरेन जी के बारे में। जानेंगे उनके राजनीतिक सफर के बारे में, लेकिन आज बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है की दिशोम गुरु शिबू सोरेन जी अब हमारे बीच नहीं रहे। सोमवार 4 अगस्त 2025 को 81 वर्ष की आयु में दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में लंबी बीमारी से जूझते हुए उनका निधन हो गया। उम्र बढ़ने के साथ शिबू सोरेन जी को किडनी की समस्या हो गई थी और सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। और साथ में उन्हें ब्रेन स्ट्रोक भी हुआ था। 2025 में तबीयत बिगड़ने पर उन्हें दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां जून 2025 से उनका इलाज चल रहा था। झारखंड के राजनीतिक का एक युग आज समाप्त हो गया है।

लेकिन उनकी यादें, उनके विचार और उनका संघर्ष आज भी जिंदा है।

Shibu Soren biography in hindi

शिबू सोरेन को झारखंड में आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा नेता माना जाता है। उनके नेतृत्व में JMM ने झारखंड की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे एक समाज सुधारक, आंदोलनकारी और राजनेता के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने आदिवासियों के हक और झारखंड की अस्मिता के लिए जीवनभर संघर्ष किया। उनके निधन पर झारखंड और देशभर में शोक की लहर छा गई।

शिबू सोरेन का जन्म, परिवार व शिक्षा

शिबू सोरेन का जन्म झारखंड (पहले बिहार) के हजारीबाग जिले (अब रामगढ़ जिला) के नेमरा गांव में एक संथाल आदिवासी परिवार में 11 जनवरी 1944 को हुआ था। शिबू सोरेन पिता के नाम सोबरन मांझी था जो एक शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्होंने हजारीबाग के नेमरा गांव में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और मैट्रिक तक पढ़ाई की। पिता की हत्या के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और सामाजिक कार्यों में जुट गए। उन्हें “दिशोम गुरु” के नाम से भी जाना जाता था, जिसका अर्थ संथाली भाषा में “देश का गुरु” है। उन्होंने झारखंड के आदिवासी समुदाय के अधिकारों और अलग झारखंड राज्य के लिए लंबे समय तक संघर्ष किया।

उनकी शादी रूपी किस्कू से हुई, जिनसे उनके चार बच्चे हुए। तीन बेटे (दुर्गा, हेमंत, और बसंत सोरेन) और एक बेटी (अंजलि)। उनका बड़ा बेटा दुर्गा सोरेन का निधन हो चुका है। हेमंत सोरेन वर्तमान में झारखंड के मुख्यमंत्री हैं। 2020 के राज्यसभा नामांकन के अनुसार, उनकी कुल संपत्ति लगभग 7.50 करोड़ रुपये थी।… जिसमें उनकी पत्नी रूपी के पास अधिक नकदी थी। उनके पास एक लाइसेंसी पिस्टल भी थी।

शिबू सोरेन का प्रारंभिक जीवन

शिबू सोरेन परिवार की कहानी की शुरुआत होती है 1957 से उस वक्त शिबू सोरेन अपने भाई राजा राम के साथ रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड के स्कूल में रहकर पढ़ाई किया करते थे। शिबू सोरेन के पिता सोबरन सोरेन उस वक्त के पढ़े लिखे युवाओं में से एक थे, पेशे से एक शिक्षक थे। उस वक्त उनके इलाके में सूदखोरों और महाजनों का आतंक हुआ करता था। महाजन और सूदखोर जरूरत पड़ने पर गरीबों को कर्ज देते थे और फसल काटने पर डेढ़ गुना वसूलते थे। इतना ही नहीं अगर कोई गरीब उसे न चुका पाता तो वह जोर जबरदस्ती उससे खेत अपने नाम करवा लेता। बताया तो यह भी जाता है कि उस दौरान सोबरन सोरेन जी की बुलंद आवाज के चलते महाजनों और सूदखोरों में डर बना रहता था। एक बार तो एक महाजन को सरेआम पीट भी दिया था। 

महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन –

यही वह वजह थी कि महाजनों की आंखों की किरकिरी बन गए थे एक दिन सोबरन सोरेन अपने बेटे के लिए राशन लेकर हॉस्टल जा रहे थे। दिन था 27 नवंबर 1957, को उनके पिता की निर्मम हत्या कर दी गई, जिससे शिबू सोरेन जी के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। पिता की हत्या के बाद शिबू सोरेन जी ने महाजनों के खिलाफ “धनकटनी आंदोलन” शुरू किया। महाजनों के खिलाफ उनके बेटे शिबू सोरेन की लड़ाई शुरू होती है। आंदोलन में महिलाओं के हाथ में हसिया रहती है और पुरुषों के हाथ में तीर धनुष। महिलाएं जमींदारों के खेतों से फसल काट कर ले जाती। जबकि पुरुष खेतों से दूर तीर कमान लेकर रखवाली करते। ऐसे में जमीनदरों ने कानून व्यवस्था की मदद ली। इस आंदोलन में कई लोग मारे भी गए, इस वजह से शिबू सोरेन को पारसनाथ के घने जंगलों में भागना पड़ा और छिपे रहे।

हालांकि आंदोलन बंद नहीं किया। शिबू सोरेन पारस के घने जंगलों में छिपकर प्रशासन को खूब चकमा दिया। उस समय महाजन आदिवासियों को कर्ज देकर उनकी जमीन हड़प लिया करते थे। शिबू सोरेन ने आदिवासियों को शिक्षा और उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने का कार्य शुरू किया।

इसी धनकटी आंदोलन के जरिए शिबू सोरेन ने भूमि अधिकारों, मजदूर वर्ग के अधिकारों और सामाजिक न्याय की बात की।  बाद में आंदोलन कई इलाकों में फैल गया। धनकटी आंदोलन न केवल आदिवासियों के आत्मसम्मान को देने वाला था बल्कि उन्हें अपने हक के लिए लड़ने का साहस भी देने वाला था। आदिवासी संस्कृति और पहचान की रक्षा का भी प्रयास किया और इसी धनकटी आंदोलन ने शिबू सोरेन को आदिवासियों के नेता भी बना दिया। और बाद में इसी के चलते ही आदिवासियों ने उन्हें दिशाेम गुरु की उपाधि दी। दिशाेम का मतलब होता है जंगल या भूमि, दिशाेम गुरु मतलब हुआ जंगल या जमीन का नेता। अकाल के समय महाजन आदिवासियों को तलाश करते और उन्हे अनाज या मामूली से कुछ पैसे जैसे 10-20 रुपये देकर मदद के नाम पर उनका जमीन पर कब्जा कर लेते थे।

महाजनों का यह दौर 1965-70 के बीच बहुत तेजी से फैला। कुछ पुराने जानकार बताते हैं कि कुछ लोग आदिवासियों को शराब पिलाकर उसका जमीन, अंगूठा लगाकर अपने नाम कर लेता था। साथ में उसके गाय बकरी जैसे जानवरों को भी जबरदस्ती बिना पैसे दिए लेकर चले जाते थे। उस वक्त महाजनों के इस अत्याचार से बचने का उपाय किसी के पास था ही नहीं। तब एक जानकार ने बताया कि शिबू सोरेन जी कुछ कर सकते हैं। जिसके बाद टुंडी, धनबाद और आसपास जिले के ग्रामीणों ने शिबू सोरेन जी सहयाता मांगी। और टुंडी के जंगल में जनसभा किया। यह वह समय था जब झारखंड में महाजनों के खिलाफ आदिवासी एकजुट हुए और बाद में यह आंदोलन पूरे राज्य में विस्तार हुआ।

राजनीतिक करियर (लोकसभा और राज्यसभा)

झारखंड मुक्ति मोर्चा : 1970 के दशक में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की और अलग झारखंड राज्य के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया। यह आंदोलन 2000 में झारखंड के गठन के साथ सफल हुआ।

अब बात बागी शिबू सोरेन की राजनीत में इंट्री की। धनकाती आंदोलन के जरिए महाजनी शोषण के खिलाफ बगावत शुरू करने वाले शिबू सोरेन बांग्लादेश की आजादी आंदोलन से खूब प्रभावित हुए 4 फरवरी 1972 को शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो और कॉमरेड ए के राय तीनों विनोद बिहारी के घर पर मिले। इस बैठक में तीनों ने सर्व समिति से तय किया कि की बांग्लादेश मुक्ति वाहिनी की तर्ज पर झारखंड मुक्ति मोर्चा नाम के एक राजनीतिक दल का गठन किया जाएगा। जो अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर संघर्ष करेगा हालांकि झारखंड राज्य के लिए पहले भी मांग होती रही थी।‌ लेकिन झामुमो के गठन के बाद इसमें तेजी आई। 1977 के चुनाव हुए पहली बार लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन ने दुमका सीट से भाग्य आजमाया लेकिन उनके हाथ असफलता लगी।

इस चुनाव में भारतीय लोकसभा के बटेश्वर हेंब्रम से शिबू सोरेन हार गए। मगर यह हार लंबी नहीं टिक्की, 1980 में भी पहली बार शिबू सोरेन दुमका से सांसद बने इसके बाद उन्होंने साल 1986, 89, 91, 96 में लगातार जीत हासिल की। 1998 के लोकसभा चुनाव में उन्हें भाजपा के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी से हार का सामना करना पड़ा। ‌ जिसके चलते शिबू सोरेन ने अगले चुनाव में अपनी पत्नी रूपी सोरेन को चुनाव लड़वाया। लेकिन उन्हें भी बाबूलाल मरांडी से हार का सामना करना पड़ा। साल 2004, 2009, 2014 में फिर से वह दुमका संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीतने में सफल हुए। इस प्रकार कुल मिलाकर आठ बार शिबू सोरेन दुमका से लोकसभा का चुनाव जीतने में कामयाब रहे।

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शिबू सोरेन का सांसद रिश्वत कांड

शिबू सोरेन का विवादों से भी लंबा नाता रहा है। ऐसा एक विवाद था सांसद रिश्वत कांड, कहानी यह थी कि 90 के दशक तक शिबू सोरेन राष्ट्रीय राजनीति में आ चुके थे। 1995 में खुलासा हुआ है की झामुमो के सांसदों ने पीवी नरसिम्हा राव की सरकार बचाने के एवज में रिश्वत ली थी। इस वजह से झामुमो के सांसदों पर मुकदमा हुआ। इस बात का खुलासा तब हुआ जब झामुमो सांसद शैलेंद्र महतो ने भाजपा ज्वाइन की। उसके बाद वह सरकारी गवाह बन गए। इतना ही नहीं 1 अप्रैल 1997 को जब दिल्ली की एक अदालत में उसे मामले की सुनवाई हुई। शैलेंद्र महतो ने कहा की 28 जुलाई 1993 को पीवी नरसिम्हा राव के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में वोट देने के लिए उन्हें बतौर रिश्वत 40 लख रुपए मिले थे।

इसमें से 39 लाख 80 हजार रुपए है उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक की नौरोजी नगर स्थित शाखा में जमा कर दिए। बाकी के ₹20,000 अपने व्यक्तिगत खर्च के लिए निकाल लिए। मेरे बैंक खाते में जमा रिश्वत की राशि सरकार जप्त कर सकती है। उनके इस बयान के चलते निचली अदालत से सबको सजा हुई। मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और वहां से बरी हो गए, दूसरा विवाद तब हुआ जब एक केंद्रीय मंत्री भगोड़ा घोषित हुआ था। दरअसल 17 जुलाई 2004 को जामताड़ा उप विभागीय न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने शिबू सोरेन पर गैर जमानती वारंट जारी किया था। तब शिबू सोरेन मनमोहन की सरकार में कोल मिनिस्टर थे। इस पूरे मामले को समझने के लिए हम आपको 30 साल पीछे ले लेकर चलेंगे।

नरसंहार का क्या मामला था ? –

13 मई 2004 यह चुनाव के नतीजों का दिन था, 14वीं लोकसभा चुनवा का। ताल ठोंकने उतरी भाजपा अपने घुटनों पर आ गई थी। 15 दलों का गठबंधन बनाकर कांग्रेस ने सरकार बनाने का दावा तो पेश कर दिया था। लेकिन सरकार बनते ही गठबंधन के दल कांग्रेस के लिए मुसीबत का सबब बन गया था। 22 मई 2004 को डॉ मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। जानेमाने अर्थशास्त्री और साफ सुथरी छवि वाले डॉक्टर साहब की सरकार ने 2 महीने भी पूरे नहीं किए थे कि कैबिनेट मिनिस्टर के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी हो गया। यह वारंट किसी छोटे-मोटे अपराध का नहीं था 11 लोगों के नरसंहार के मामले मैं जारी हुआ था। पुलिस दिल्ली के मंत्री महोदय के घर पहुंची तो पता चला कि मंत्री घर पर है ही नहीं।

यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं थी। भारत सरकार का एक मंत्री लापता था कानून की भाषा में कहे तो वारंट जारी होने के बाद वह फरार थे। चारों तरफ सरकार की किरकिरी हो रही थी। तो 7 दिन बाद यानी 24 जुलाई को मंत्री जी के इस्तीफ़े की खबर आई। और मंत्री जी आए 30 जुलाई को। मीडिया से बात करते हुए सरेंडर करने की घोषणा की। बाद में वही मंत्री दोबारा केंद्रीय मंत्री भी बने और आगे चलकर नए-नए बने राज्य के मुख्यमंत्री भी बने। वही राज्य जिसके लिए कई दशक तक संघर्ष किया गया। लेकिन मुख्यमंत्री बने तो सरकार 10 दिन भी नहीं चला पाए। आगे फिर से दो बार और मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का मौका मिला। लेकिन दोनों ही बार 5 महीने से ज्यादा कार्यकाल नहीं रहा।

लेकिन हार मानना जैसे इस नेता ने सिखा ही नहीं था। संघर्ष और प्रतिरोध का जज्बा विरासत में मिला था। जिस शख्स की हम बात कर रहे हैं वह है झारखंड के तीसरे मुख्यमंत्री शिबू सोरेन जी।

11 लोगों के नरसंहार का क्या मामला था ? – चिरूडीह कांड : 23 जनवरी 1975 को जामताड़ा जिले के चिरूडीह गांव में “दिकू” (बाहरी लोगों) के खिलाफ हिंसक आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए शिबू सोरेन पर हत्या का आरोप लगा। इस घटना में 11 लोग मारे गए थे, जिसके कारण उन्हें बाद में कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ा। 1975 के इस मामले में उन्हें और 68 अन्य लोगों पर हत्या का आरोप लगा। 2004 में गिरफ्तारी वारंट जारी होने पर वे अंडरग्राउंड हो गए थे।

  • शशिनाथ झा हत्या : 1994 में उनके निजी सचिव शशिनाथ झा की हत्या के मामले में उन्हें दोषी ठहराया गया, लेकिन बाद में बरी कर दिया गया।

दरअसल 23 जनवरी 1975 को बांसपहाड़ी,रजैया, चिरुड़ी तरिणी मुचियाडीह  रसियाभीटा तथा अन्य जगहों पर नदी के किनारे लोग घातक हथियार एवं बंदूक से लैस होकर जमा हुए थे इस नहर नरसंहार में 11 लोगों की हत्या कर दी गई थी। इस नरसंहार के बाद कई आरोपी फरार हो गए थे इसमें एक नाम शिबू सोरेन का भी बताया जाता है। 17 जुलाई 2004 को जब जामताड़ा उप विभागीय की न्यायिक मजिस्ट्रेट ने शिबू सोरेन पर गैर जमानती वारंट जारी किया था। तब वह अंडरग्राउंड हो गए थे। इसके बाद उनको झारखंड हाई कोर्ट में सरेंडर करने का आदेश दिया था तब जाकर वह 30 जुलाई को मीडिया के सामने हाजिर हो गए। फिर 2 अगस्त 2024 को जहां झामुमो प्रमुख शिबू  सोरेन ने जामताड़ा जिला सत्र न्यायालय के सामने आप समर्पण किया था।

इसी के चलते हैं उनको अपना मंत्री पद भी गंवाना पड़ा था। हालांकि इस दिन उनको झारखंड हाई कोर्ट सशक्त जमानत दे दी थी। इस विवाद के चलते शिबू सोरेन से मंत्री पद जरूर छीना मगर एक नया दरवाजा खुलना अभी बाकी था। वेझारखंड आंदोलन के अगुआ से झारखंड के मुख्यमंत्री बनने वाले थे। साल 2005 में झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो बीजेपी और जेडीयू के गठबंधन को 36 सिटे मिली। जो बहुमत के आंकड़े से पांच काम थे। जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के गठबंधन को 26 सिटें मिली। इस चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। ऐसे में खंडित जनादेश मिलने के बाद भी राज्यपाल सैयद सिप्ते रजी ने तत्कालीन केंद्रीय कोयला मंत्री शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री पद शपथ दिला दी लेकिन वह बहुमत साबित करने में नाकाम रहे। लिहाजा 10 दिनों के भीतर ही कुर्सी छोड़नी पड़ी

और उनकी जगह बीजेपी के नेता अर्जुन मुंडा को सीएम बनाया गया। उसके बाद दूसरी बार शिबू सोरेन 2008 में मुख्यमंत्री बने, लेकिन जब मुख्यमंत्री बने तो उसे वक्त वह विधायक नहीं थे। ऐसे में शिबू सोरेन तमाड़ सीट से विधायक का चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें निर्दलीय उम्मीदवार राजा पीटर के हाथों हार का सामना करना पड़ा। इस वजह से उन्हें सीएम की कुर्सी छोड़ने पड़ी। साल 2009 में तीसरी बार भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से फिर से मुख्यमंत्री बने। लेकिन इस बार भाजपा से अंदरूनी खींचतान के चलते उन्हें कुछ ही महीनों के भीतर मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। मुख्यमंत्री वह कई बार बने मगर चैन से लंबे वक्त तक कुर्सी पर बैठ नहीं पाए। फिलहाल उनके बेटे हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री हैं।

लेकिन यह एक विडंबना ही कही जाएगी कि जिस नेता ने झारखंड राज्य की लड़ाई सबसे मजबूती से लड़ी उसे कभी पूर्ण कार्यकाल के लिए सीएम बनने का मौका नहीं मिल सका। खैर या मौका हेमंत सोरेन को जरूर मिला बीच में कुछ वक्त जेल में रहने का हटा दिया जाए तो ऐसा कहां जा सकता है और यह वही हेमंत सोरेन है जो शुरुआत में राजनीति से दूर थे क्योंकि पढ़ लिखकर इंजीनियर बनना चाहते थे। यहां तक कि उनका एडवांस कोर्स करने के लिए विदेश में एडमिशन भी फाइनल हो गया था। लेकिन उनके पिता शिबू सोरेन ने उन्हें नहीं जाने दिया। वह चाहते थे कि हेमंत उनकी मदद करें बाद में हेमंत सोरेन ने 2003 में छात्र राजनीति से अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया था। जबकि उनके बड़े भाई दुर्गा सोरेन पहले से ही पार्टी को आगे बढ़ा रहे थे।

साल 2009 में दुर्गा के असामयिक निधन के कारण पार्टी और परिवार की पूरी जिम्मेदारी हेमंत सोरेन पर आ गई। इधर बीमारी और बढ़ती उम्र ने शिबू सोरेन को राजनीति से किनारा करने मजबूर कर दिया। इसके बाद साल 2013 हेमंत सोरेन कांग्रेस और आरजेडी की मदद से राज्य के पांचवें सीएम बने। खैर परिवार को एकजुट रख पाना हेमंत सोरेन के लिए आसान नहीं रहा। शिबू सोरेन 1984 में जामा विधानसभा से विधायक रहे वहां से विधायक उनकी बड़ी बहू सीता सोरेन झामुमो छोड़ चुकी है। मार्च 2024 में सीता सोरेन ने भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन कर ली।

  • शिबू सोरेन ने दुमका लोकसभा सीट से 1980, 1989, 1991, 1996, 2002, 2004, 2009 और 2014 में जीत हासिल की। वे 2002 में पहली बार राज्यसभा सदस्य बने और बाद में 2020 में फिर से चुने गए। वे झारखंड के तीसरे मुख्यमंत्री बने
  • 2005 : 2 मार्च से 12 मार्च तक (10 दिन)।
  • 2008 – 2009 : 27 अगस्त 2008 से 19 जनवरी 2009 तक
  • 2009 – 2010 : 30 दिसंबर 2009 से 31 मई 2010 तक
  • उनके कार्यकाल अक्सर विवादों या विधानसभा उपचुनाव में हार के कारण छोटे रहे।
  • केंद्रीय मंत्री : 2004 में मनमोहन सिंह की सरकार में वे कोयला मंत्री बने, लेकिन चिरूडीह कांड के कारण 24 जुलाई 2004 को इस्तीफा देना पड़ा। वे 2004-2005 और 2006 में भी कोयला मंत्री रहे।

शिबू सोरेन का निधन कैसे हुआ?

शिबू सोरेन जी की उम्र हो चुकी थी और उम्र बढ़ने के साथ साथ कई बीमारियाँ भी घर कर जाती है। शिबू सोरेन को किडनी की समस्या हो गई और सांस लेने में तकलीफ होने लगी थी। 2025 में उनकी तबीयत बिगड़ने पर उन्हें दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती किया गया था, जहां जून 2025 से उनका इलाज चल रहा था। बाद में उन्हें ब्रेन स्ट्रोक भी हुआ। सोमवार 4 अगस्त 2025 को 81 वर्ष की आयु में दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में उनका निधन हो गया। उनके बेटे, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनके निधन की पुष्टि की।

Shibu Soren death photo

शिबू सोरेन का निधन

सोमवार 4 अगस्त 2025 को 81 वर्ष की आयु में दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में उनका निधन हो गया।

शिबू सोरेन का जन्म कहाँ हुआ था?

शिबू सोरेन का जन्म झारखंड (पहले बिहार) के हजारीबाग जिले (अब रामगढ़ जिला) के नेमरा गांव में एक संथाल आदिवासी परिवार में हुआ था।

शिबू सोरेन का धर्म

आदिवासी

शिबू सोरेन के पिता का नाम क्या है?

सोबरन मांझी

शिबू सोरेन का कितना बेटा है?

तीन (दुर्गा, हेमंत, और बसंत सोरेन)

शिबू सोरेन कौन हैं?

झारखंड के राजनेता और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और अध्यक्ष, जिन्होंने आदिवासियों के हक और झारखंड की अस्मिता के लिए जीवनभर संघर्ष किया।

Anshuman Choudhary

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