मगध से दक्षिण भारत की ओर जाने वाला व्यापारिक मार्ग झारखंड से होकर जाता था। अतः मौर्यकालीन झारखंड का अपना राजनीतिक आर्थिक एवं सामाजिक महत्व था।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में इस क्षेत्र को कुकुट/कुकुटदेश नाम से चिन्हित किया गया है।
कौटिल्य के अनुसार कुकुटदेश में गणतंत्रतात्म शासन प्रणाली स्थापित थी।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य ने आटविक नामक एक पदाधिकारी की नियुक्ति की थी। जिसका उद्देश्य जनजातियों का नियंत्रण करना, मगध साम्राज्य तो उनका प्रयोग तथा पशु सेन के गठबंधन को रोकना था।
इंद्रनावक नदियों की चर्चा करते हुए कौटिल्य ने लिखा है कि इंद्रनावक की नदियों से हीरे प्राप्त किए जाते थे। इंद्रनावक संभवत: ईब और शंख नदियों का इलाका था।
चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल के दौरान सेना के प्रयोग हेतु झारखंड से हाथी मंगवाया जाता था।
अशोक
अशोक के 13वें शिलालेख में समीपवर्ती राज्यों की सूची मिलती है। जिसमें से की एक आटवीक/आटाव/आटवी प्रदेश (बघेलखंड से उड़ीसा के समुंद्र तट तक विस्तृत) भी थी। और झारखंड क्षेत्र में इस प्रदेश में शामिल था।
अशोक झारखंड की जनजातियों पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण था।
अशोक के पृथक कलिंग शीलालेख – II में वर्णित हैं कि – इस क्षेत्र की अविजित जनजातियों को मेरे धम्म का आचरण करना चाहिए, ताकि वे लोक और परलोक प्राप्त कर सकें।
अशोक ने झारखंड में बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु रक्षित नमक अधिकारों को भेजा था।
मौर्योत्तर
मौर्योत्तर काल में विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में अपने अपने राज्य स्थापित किए इसके अलावा भारत का विदेशों से व्यापारिक संबंध स्थापित हुआ जिसके प्रभाव झारखंड में भी दिखाई देते हैं।
सिंहभूम
सिंहभूम से रोमन साम्राज्य के सिक्के प्राप्त हुए हैं, जिसमें झारखंड के वैदेशिक संबंधों की पुष्टि होती है।
चाईबासा
चाईबासा से खण्डों – सिथियन सिक्के प्राप्त हुए।
रांची
रांची से कुषाण कालीन सिक्के प्राप्त हुए जिससे मालूम पड़ता है कि यह क्षेत्र कनिष्क के प्रभाव में था।
गुप्त काल
गुप्त काल में अभूतपूर्व सांस्कृतिक विकास हुआ, अतः इस काल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है।
हजारीबाग के मदुही पहाड़ से गुप्तकालीन पत्थरों को काटकर निर्मित मंदिर प्राप्त हुए हैं।
झारखंड में मुंडा पाहन महतो तथा भंडारी प्रथा गुप्त काल की देन माना जाता है।
समुद्रगुप्त
गुप्त वंश का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक समुद्रगुप्त रहा है इसे भारत का नेपोलियन भी कहा जाता है।
इसके विजयों का वर्णन प्रयाग प्रशस्ति (इलाहाबाद प्रशस्ति) में मिलता है। प्रयाग प्रशस्ति के लेखक हरिसेन है, इन विजयों में से एक आटवीक विजय भी थी।
झारखंड प्रदेश इसी आटवीक प्रदेश का हिस्सा था, इससे स्पष्ट होता है कि समुद्रगुप्त के शासनकाल में झारखंड क्षेत्र के अधीन था।
समुद्रगुप्त के पुण्डवर्धन को अपने राज्य में मिला लिया था जिसमें झारखंड का विस्तृत क्षेत्र शामिल था।
समुद्रगुप्त के शासनकाल में छोटानागपुर को मुरूण्ड देश कहा गया है।
समुद्रगुप्त के प्रवेश के पश्चात हर क्षेत्र में बौद्ध धर्म का पतन प्रारंभ हो गया था।
चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य
चंद्रगुप्त द्वितीय का प्रभाव झारखंड प्रदेश में भी था।
इसके काल में चीनी यात्री फाह्यान 405 ईस्वी में भारत आया था जिसने झारखंड क्षेत्र को कुक्कुटलाड कहा है।
गुप्तकालीन पुरातात्विक अवशेष
स्थान
जिला
प्राप्त अवशेष
मदुही पहाड़
हजारीबाग
पत्थरों को काटकर बनाए गए 4 मंदिर
सतगांवां
कोडरमा
मंदिर के अवशेष (उत्तर गुप्त काल से संबंधित)
पिठोरिया
रांची
पहाड़ी पर स्थित कुआं
गुप्तोत्तर काल
शशांक
गौड़ (पश्चिम बंगाल) का शासक शशांक इस काल में एक प्रतापी शासक था।
शशांक के साम्राज्य का विस्तार सम्पर्ण झारखण्ड, उड़ीसा तथा बंगाल तक था।
शशांक ने अपने विस्तृत साम्राज्य को सूचारू रूप से चलाने के लिए दो राजधानियाँ स्थापित की:- 1.संथाल परगना का बड़ा बाजार और 2. दुलमी
प्राचान काल के शासकों में यह प्रथम शासक था जिसकी राजधानी झारखण्ड क्षेत्र में थी।
शशांक शैव धर्म का अनुयायी था तथा इसने झारखण्ड में अनेक शिव मंदिरों का निर्माण कराया।
शशांक के काल का प्रसिद्ध मंदिर वेणुसागर है जो कि एक शिव मंदिर है। यह मंदिर सिंहभूम और मयूरभंज की सीमा क्षेत्र पर अवस्थित कोचांग में स्थित है।
शशांक ने बौद्ध धर्म के प्रति असहिष्यणुता की नीति अपनायी, जिसका उल्लेख ह्नेनसांग ने किया है।
शशांक ने झारखण्ड के सभी बौद्ध केन्द्रों को नष्ट कर दिया। इस तरह झारखण्ड में बौद्ध-जैन धर्म के स्थान पर हिन्दू धर्म की महत्ता स्थापित हो गयी।
हर्षवर्धन
वर्धन वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक हर्षवर्धन था। इसके साम्राज्य में काजांगल (राजमहल ) का कुछ भाग शामिल था।
काजांगल (राजमहल) में ही हर्षवर्धन ह्नेनसांग से मिला। ह्नेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में राजमहल की चर्चा की है।
अन्य तथ्य
हर्यक वंश का शासक बिंबिसार झारखण्ड क्षेत्र में बौद्ध धर्म का प्रचार करना चाहता था।
नंद वश के समय झारखण्ड मगध साम्राज्य का हिस्सा था। नंद वंश की सेना में झारखण्ड से हाथी की आपूर्ति की जाती थी। इस सेना में जनजातीय लोग भी शामिल थे।
झारखण्ड में दामोदर नदी के उद्गम स्थल तक मगध की सीमा का विस्तार माना जाता है।
झारखण्ड के ‘पलामू’ में चंद्रगुप्त प्रथम द्वारा निर्मित मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
कन्नौज के राजा यशोवर्मन के विजय अभियान के दौरान मगध के राजा जीवगुप्त द्वितीय ने झारखण्ड में शरण ली थी।
13वीं सदी में उड़ीसा के राजा जय सिंह ने स्वियं को झारखण्ड का शासक घोषित कर दिया था।
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