झारखंड का इतिहास | Jharkhand ka itihas

झारखंड का इतिहास, प्रगैतिहासिक काल का समय, प्रमुख जनजातियाँ

आज हम झारखंड का इतिहास काल के बारे में जानेंगे और शुरू से जानने की कोशिश करेंगे कि झारखंड में किन-किन राजाओं ने झारखंड पर शासन किया और उसके शासनकाल में क्या क्या प्रगति हुई। झारखंड के जनजातियों के बारे में भी जानेंगे झारखंड में कौन कौन सी जनजाति के लोग बसे हैं। झारखंड प्रदेश का सर्वप्रथम साहित्यक उल्लेख ऐतरेय ब्राह्मण में मिलता है। झारखंड शब्द का प्रथम पुरातात्विक प्रमाण 13वीं सदी के तामपत्र में मिलता है।

विभिन्न कालक्रम में झारखंड का इतिहास को अलग अलग कई नामों से जाना जाता है: –

झारखंड का इतिहास कालनामकरण
ऐतरेय ब्राह्मणपुंड्र या पुंड
ऋग्वेदकीकट प्रदेश
अथर्ववेदव्रात्य प्रदेश
वायु पुराणमुरण्ड
समुन्द्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्तिमुरुंड
विष्णु पुराणमुण्ड
भागवत पुराणकीकट प्रदेश
महाभारत (दिग्विजय पर्व में)पुण्डरीक/पशुभूमि/ कर्क खंड/ अर्क खंड
पूर्वमध्यकालीन संस्कृत साहित्यकलिंद देश
13वीं सदी के तामपत्र मेंझारखंड
तारीख -ए – फिरोजशाहीझारखंड
तारीख -ए – बांग्लाझारखंड
सियार-उल- मुतखरीनझारखंड
कबीर के दोहे मेंझारखंड
जायसी द्वारा (पद्मावत में)झारखंड
अकबरनामाझारखंड
नरसिंहदेव द्वितीय के तामपत्र मेंझारखंड
आईने अकबरीकॉकरा /खांकराह
कॉटिल्य का अर्थशास्त्रकुकुट/कुकुटदेश
टॉलमी द्वारामुंडल
फ़ह्यन द्वाराकुकुट लाड
हेनसांग द्वाराकी-लो-ना-सु-का-ला-ना/कर्ण-सुवर्ण
मुगल कालखोखरा/कुकरा/कोकराह
तुजुक-ए-जहाँगिरीखोखरा
ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकल मेंछोटानागपुर

जनजातियों की अधिकता के कारण झारखंड को करके खंड भी कहा जाता है।

  • प्राचीन काल में गुप्त शासकों एवं गौड़ शासक शशांक ने झारखण्ड क्षेत्र में सर्वाधिक समय तक शासन किया था। मध्यकाल में झारखण्ड में क्षेत्रीय राजवशों का शासन हुआ करता था।
  • ह्वेनसांग ने राजमहल क्षेत्र के लिए ‘कि-चिंग-कारई- लॉ’ तथा इसके पहाड़ी क्षेत्र के लिए ‘दामिन-ए-कोह’
    शब्द का प्रयोग किया था।
  • कैप्टन टैनर के सर्वेक्षण के आधार पर 1824 ई. में दामिन-ए-कोह की स्थापना हुई थी।
  • प्राचीन काल में संथाल परगना क्षेत्र को नरीखंड तथा बाद में कांकजोल नाम से संबोधित किया गया था।
  • 1833 ई. में दक्षिण- पश्चिमी फ्रांटियर एजेंसी की स्थापना के बाद इस एजेंसी का मुख्यालय विल्कंसनगंज या किसुनपुर के नाम से जाना जाता था। जिसे बाद में रांची के नाम से जाना गया।

झारखंड में आदिवासियों का प्रवेश

जनजाति
असुरझारखंड की प्राचीनतम जनजाति में से एक है। जो मुख्यता रांची लोहरदगा और गुमला में पाए जाते हैं।
बिरजीया, बिरजहोर और खड़ियासंभवत कैमूर की पहाड़ियों से होकर छोटा नागपुर में प्रवेश किया।
मुंडा, उरांव, होमुंडाओं ने नागवंश की स्थापना में नागवंशी की मदद की थी। उरांव झारखंड में राजमहल तथा पलामू नामक दो शाखाओं में बसे थे।
चेरो, खरवार, संथाल1000 ईस्वी पूर्वी तक चेरो, खरवारों और संस्थालों को छोड़कर झारखंड में पाई जाने वाली सभी जनजातियां छोटानागपुर क्षेत्र में बस चुकी थी। पूर्व मध्यकाल में संथाल हजारीबाग में बसे हैं और ब्रिटिश काल में संस्थानों का विस्तार संथाल परगना क्षेत्र में हुआ।
कोरवाये जनजाति झारखंड के पलामू जिले में पाए जाते हैं। ये जनजाति कोलोरियन जनजाति से संबंधित है
  • वैदिक साहित्य में झारखंड की जनजातियों के लिए असुर शब्द का प्रयोग किया गया है वेदों में असुरों की वीरता और कर्तव्य का उल्लेख किया गया है।
  • ऋग्वेद में असुरों लिंगपूजक या शिश्नों का देव कहा गया है।
  • इतिहासकार बुकानन ने बनारस से लेकर वीरभूम तक के पठारी क्षेत्र को झारखंड के रूप में वर्णित किया है।
  • महाभारत काल में झारखंड वृहद्रथवंशी सम्राट जरासंध के अधिकार क्षेत्र में था।
  • झारखंड के छोटानागपुर क्षेत्र को ‘कर्ण सुवर्ण’ के नाम से भी जाना जाता है।

झारखंड का इतिहास में प्रागैतिहासिक काल

यह वह काल था जिसका कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नही है। बल्कि पूर्ण रूप से पुरातात्विक साक्ष्यों पर निर्भर है, उसे प्रागैतिहासिक काल कहते हैं। मुख्य रूप से प्रागैतिहासिक काल को तीन भागों में खंडित किया गया है। और उसके बाद एक काल को फिर से 3 भाग में विभाजित किया गया है जिसके बारे में मैं आपको आगे बताने वाला हूं।

प्रागैतिहासिक काल – 1. पुरापाषाण काल 2. मध्यपाषाण काल, 3.नवपाषाण काल।

नवपाषाण काल – 1.ताम्र पाषाण युग, 2.कांस्य युग, 3.लौह युग

पुरापाषाण काल का इतिहास

पुरापाषाण काल 25 लाख इस्वी पूर्व से 10 हजार ईस्वी पूर्व तक माना जाता है। पुरापाषाण काल में लोग आखेटक (शिकार) एवं खाद्य संग्राहक थे। इस काल में कृषि का ज्ञान लोगों को नहीं था और इस काल में पशुपालन भी नहीं हुआ करता था। यानी कि पशुओं को नहीं पालते थे इन सब चीजों के बारे में नहीं पता थी। इस काल के लोगों को आग की जानकारी तो थी। लेकिन उसका उपयोग किस तरह और किस लिए करना है यह इस काल के लोगों को नहीं पता थी। झारखंड में इस काल के अवशेष हजारीबाग, बोकारो, रांची, देवघर, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम आदि क्षेत्रों से प्राप्त हुए थे। हजारीबाग जिले से पाषाण कालीन समय के मानव द्वारा निर्मित पत्थर के औजार मिले थे।

मध्यपाषाण काल का इतिहास

मध्यपाषाण काल का समय 10000 ईसा पूर्व से 4000 ईसा पूर्व तक आंका गया है। इस काल में पशुपालन की जानकारी इन लोगों को हुई थी और पशुपालन की शुरुआत हुई। झारखंड में इस काल के अवशेष दुमका, पलामू, धनबाद, रांची, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम आदि क्षेत्रों से प्राप्त हुए थे।

नवपाषाण काल का इतिहास

नवपाषाण काल का समय 10000 ईस्वी पूर्व से 1000 ईस्वी पूर्व माना गया है। इस काल में कृषि की शुरुआत हुई थी। इस काल में आग के उपयोग तथा को मक्कारी का आरंभ हुआ था। झारखंड में इस काल के अवशेष रांची, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम आदि क्षेत्रों से प्राप्त हुए थे। छोटानागपुर प्रदेश में इस काल के 12 हस्त कुठार पाए गए थे।

ताम्र पाषाण युग का इतिहास

ताम्र पाषाण काल 4000 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व तक माना गया है। यह काल हड़प्पा पूर्व काल, हड़प्पा काल हड़प्पा पश्चात काल तीनों से संबंधित है। इस काल में पत्थर के साथ-साथ तांबे का प्रयोग होने के कारण इस काल को ताम्र पाषाण काल कहा गया। मानव द्वारा इस्तेमाल में लाई गई सबसे पहली धातु तांबा थी। झारखंड में इस काल का केंद्र बिंदु सिंहभूम था। इस काल में असुर, बिरजिया तथा बिरहोर जनजातियां तांबा गलाने तथा उससे संबंधित उपकरण बनाने की कला से परिचित हुए थे। झारखंड के कई इलाकों से तांबा की कुल्हारी तथा हजारीबाग से बाहरगंडा से तांबे की 49 खानों के अवशेष प्राप्त हुए।

इस युग में तांबा से निर्मित उपकरणों का प्रयोग शुरू हुआ। इस युग में असुर, बिरजिया, बिरहोर जनजाति के द्वारा तांबा के खानों से अयस्क, निकालकर वा उसे आग में गलाकर विभिन्न उपकरणों का निर्माण करना शुरू हुआ।

कांस्य युग का इतिहास

इस युग में तांबे में टीन मिलाकर कांसा का निर्माण किया गया, तथा उससे बने उपकरणों का प्रयोग किया जाने लगा। छोटानागपुर क्षेत्र के असुर, (झारखंड की प्राचीनतम जनजाति) तथा बिरजिया जनजाति को कांस्ययुगीन औजारों का प्रारंभकर्ता मानागया। ‌

लौह युग का इतिहास

इस युग में लोहा से बने उपकरणों का प्रयोग शुरू हुआ। झारखंड के असुर तथा बिरजिया जनजाति को ही लौह तत्व से निर्मित औजारों का प्रारंभ करता माना गया है। असुर तथा बिरजिया जनजातियों ने उत्कृष्ट लौह तकनीक का विकास किया गया। इस युग में झारखंड का संपर्क सुदूर विदेशी राज्य से भी हुआ। झारखंड में निर्मित लोहे को इस युग में मेसोपोटामिया तक भेजा जाने लगा। जहां दश्मिक में इस लोहे से तलवार का निर्माण किया जाता था।

झारखंड के विभिन्न स्थानों से प्राप्त पुरातात्विक अवशेष

स्थानपुरातात्विक अवशेष
इस्को (हजारीबाग)पूर्वी बड़े पत्थरों पर आदिमानव द्वारा निर्मित चित्र, खुला सूर्य मंदिर, शैल चित्र दीर्घा।
सीतागढा़ पहाड़ (हजारीबाग)6वीं शताब्दी में निर्मित बौद्ध मठ के अवशेष (विशेष रूप से बुध की 4 आकृतियों से युक्त एक स्तूप तथा काले भूरे बलुआ पत्थर की सुंदर स्त्री की खंडित प्रतिमा।) चीनी यात्री फाह्यान द्वारा भी इसका उल्लेख मिलता है।
दूधपानी ( हजारीबाग)आठवीं शताब्दी के अभिलेख
दुमदुमा (हजारीबाग)शिवलिंग
भवनाथपुर (गढ़वा)आखेट (शिकार) के चित्र जिनमें हिरन, भैंसा आदि पशुओं के चित्र है। प्रागैतिहासिक काल की गुफाएं वशैल चित्र भी मिले हैं।
पांडू (पलामू)चारपाई वाली पत्थर की चौकी (इसे पटना संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। मिट्टी की दीवार।, मिट्टी के कलश व तांबे के औजार।
पलामू किला(लातेहार)भगवान बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रा में एक मूर्ति।
पलामू प्रमंडलतीनों पाषाण काल के औजार।
बारूडी (सिंहभूम)पाषाण कालीन मृदुभांड के टुकड़े, पत्थर के हथौड़ी, पक्की मिट्टी के मटके आदि।
बेनूसागर (सिंहभूम)सातवीं शताब्दी की जैन मूर्तियां।
बोनगरा (सिंहभूम)हाथ से बने मृदुभांड, पत्थर के मनके, कुल्हाड़ी वलय प्रस्तर (Ring stone)
बानाघाट (सिंहभूम)नवपाषाण कालीन पत्थर, काले रंग का मृदुभांड
लोहरदगाप्रागैतिहासिक कालीन कहां से का प्याला।
नामकुम (रांची)तांबे एवं लोहे के औजार तथा बान के फलक
मुरदतांबे की सीकड़ी (चैन) तथा कांसे की अंगूठी।
लूपगढीकब्रगाह के अवशेष, कब्रगाह के अंदर से तांबे के आभूषण व पत्थर के मनके।
छोटानागपुर के पठारी क्षेत्रआदिमानव के निवास के साक्ष्य।

Anshuman Choudhary

I live in Jharia area of ​​Dhanbad, I have studied till Intermediate only after that due to bad financial condition of home I started working, and today I work and write post together in free time............