बिनोद बिहारी महतो का जीवन परिचय : binod bihari mahato jivani
बिनोद बिहारी महतो जी एक बहुत प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, समाज में फैली बहुत सी कुरीतियों और अन्धविश्वासों के खिलाफ लड़ाई कि शुरुआत करने का श्रेय सबसे पहले इन्हे ही जाता है। ब्रहामंवादी विचारो पर भी आवाज उठाते थे, भले आज हमारे बीच बिनोद बिहारी महतो जी नहीं है, लेकिन आज उनके द्वारा बनाए गए बहुत सी चीजे मौजूद है जिसे किसी भी हालात में नहीं भुलाया जा सकता। बिनोद बिहारी महतो जी कितने नीचे तबके से उठकर लोगों का मसीहा बने किसी को पता ही नहीं चला। इनके पिता बहुत ही छोटे मोटे किसान थे थोड़े बहुत अनाज ही उगा पाते थे।

बिनोद बिहारी महतो जी के पिताजी ज्यादा अनाज न उगाने कारण कुछ समय मजदूरी भी करते थे। साथ में गाय, बकरी चराना, हल चलाना, मुर्गी पालन करना, साथ में मछली मारना आदि कई सारे काम करते थे। ज्यादा कमाई न होने कि वजह से अपने बच्चों को पढ़ा तक नहीं पाते थे। उस जमाने में गाँव में किसी तरह पढ़ाई कि व्यवस्था तक नहीं थी। बिनोद बिहारी महतो जी के पिताजी पढे लिखे नहीं थे लेकिन पढ़ाई का महत्व इन्हे जरूर पता थी। घर की आर्थिक स्थिति खराब रहने के बावजूद बिनोद बिहारी महतो ने प्राइमेरी स्कूल कि पढ़ाई बलियापुर से की।
बिनोद बाबू महतो जी हर दिन कई किलोमीटर पैदल पढ़ने के लिए जाते थे। बीच में कई दफा बिनोद बिहारी महतो जी को पढ़ाई छोड़नी पड़ जाती थी। गाँव से स्कूल की दूरी करीब 15 किलोमीटर थी, जो जंगल के रास्ते से होकर गुजरती थी। विनोद बिहारी महतो जी इन रास्तो से कभी साइकिल से तो कभी पैदल ही चलते थे। ऐसे कई सारे कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए बिनोद बिहारी महतो जी इतना आगे बढ़े जिसका मुकाबला आज भी कोई नहीं कर सकता है।
बिनोद बिहारी महतो का जन्म, परिवार व जीवनयापन
बिनोद बिहारी महतो का जन्म | 23 सितंबर सन्न 1923 |
जन्मस्थान | बड़ादहा (बलियापुर – धनबाद) |
बिनोद बिहारी महतो के पिता का नाम | स्व. महेंद्र नाथ महतो (माहिन्दी महतो) |
बिनोद बिहारी महतो की माता का नाम | स्व. मंदाकिनी देवी |
बिनोद बिहारी महतो के भाई | श्रीनाथ महतो |
बिनोद बिहारी महतो की पत्नी का नाम | स्व. फुलमनी देवी |
बिनोद बिहारी महतो के पुत्र | राज किशोर महतो, नील कमल महतो, चंद्र शेखर महतो, प्रदीप सुमेर महतो, और अशोक कुमार महतो |
बिनोद बिहारी महतो की बेटी | चंद्रवती देवी और तारावती देवी |
बिनोद बिहारी महतो की जाति | कुरमी |
पेशा | धनबाद कुशल वकील और राजनीतिज्ञ |
बिनोद बिहारी महतो की मृत्यु | 18 दिसंबर 1991 ((सिर्फ 68 वर्ष कि उम्र में दिल्ली में) |
राजनीतिक दल | भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा |
बिनोद बिहारी महतो का जन्म 23 सितंबर सन्न 1923 धनबाद ज़िले के बलियापुर प्रखण्ड के एक छोटे से गाँव बड़ादाह में हुआ। बड़ादहा गाँव आज भी धनबाद के बलियापुर प्रखण्ड के अंतर्गत आता है और ये गाँव आज भी मौजूद है। और बहुत से लोग यहाँ रहते हैं। बिनोद बाबू के पिता का नाम महेंद्र नाथ महतो है, और माता का नाम मंदाकिनी देवी है। इनके भाई का नाम श्रीनाथ महतो है। बिनोद बिहारी महतो जी की पत्नी का नाम फुलमनी देवी है। इनकी पत्नी पास के ही गाँव निपनिया बन्दरचुआ की ही रहने वाली थी। इनकी पत्नी कुछ खास पढ़ी लिखी नहीं थी इनके पांच पुत्र हुए और दो पुत्रियाँ हुई।
- सबसे बड़े पुत्र राज किशोर महतो जी जो इंजिनियर बने लेकिन कुछ समय बाद अपनी पिता के पेशे वकालत में आ गए।
- दुसरे पुत्र नीलकमल महतो जी जो डॉक्टर बने।
- तीसरे पुत्र चंद्रशेखर महतो जी जो वकील ही बने।
- चौथे पुत्र प्रदीप सुमार महतो जिनकी मृत्यु पढाई के दौरान हो गई थी – इन्होंने सन्न 1987 में आत्महत्या कर ली।
- पांचवे पुत्र अशोक कुमार महतो जो एक व्यवसायी बने।
- इनकी दो पुत्रिया हुई चन्द्रावती देवी जो स्नातक की, इनके पति शैलेन्द्र कुमार राय महतो जी जो एक डॉक्टर थे।
- दूसरी पुत्री तारावती देवी जो स्वयं एक डॉक्टर बनी, इनके पति अजित कुमार चौधरी वो भी एक डॉक्टर ही थे।
बिनोद बिहारी महतो जी अपने दो बड़े पोते रजनीश और राजेश से बहुत ही स्नेह था।
बिनोद बिहारी महतो जी के भाई शैलेन्द्रनाथ महतो और तीन बहने थी, इन्होने अपने भाई के बच्चो को तक को पढाया लिखाया। उन सभी का शादी भी बिनोद बिहारी महतो जी ने ही करवाया, इनके भाई पढ़े लिखे नहीं थे वे गाँव में ही रहते थे। बिनोद बिहारी महतो जी ने फिर भी अपने भाई का साथ काभी नहीं छोड़ा। जितना हो सके उसकी मदद की, बिनोद बाबू ने भाई के लिए धनबाद और बलियापुर में जमीने लेकर दी। इन्होने अपने जीवनकाल के दौरान अपने मित्रो और रिश्तोदारो की भी पूरी मदद की। बिनोद बिहारी महतो जी ने अपने गाँव की सारी संपति तथा बलियापुर की संपति अपने भाई को दे दी।
बिनोद बाबू जी अपने माता पिता से बहुत ही प्यार करते थे, अपनी माता मन्दाकिनी के नाम से पश्चिमी बरवा में हाई स्कूल बनवाया। तथा पिता महेन्द्रनाथ महतो जी के नाम से पूर्वी बरवा में एक हाई स्कूल बनवाया। एक बार इनके पिता एक क़त्ल के जुर्म में अभियुक्त हो गए थे। इनके मुक़दमे को लड़ने के लिए वे साईकिल से पुरुलिया कोर्ट चले जाते थे, क्योंकि उस वक्त धनबाद जिला पुरुलिया जिला का एक सब डिविजन हुआ करता था। अपने पारिवारिक जीवन में बिनोद बाबू ने कई बड़े सदमों का सामना किया, उन्हें सबसे बड़ा सदमा तब लगा जब उनके चौथे पुत्र प्रदीप कुमार महतो जो बहुत ही होशियार थे जिसने आत्महत्या कर ली यह घटना 1987 की है।
इस घटना से बिनोद बिहारी महतो जी के दिल को बहुत बड़ा ठेस लगा। इसके बाद एक और बड़ा सदमा लगा जब इसी घटना के कुप्रभाव से पांचवे पुत्र अशोक महतो जी अपनी मानसिक संतुलन खो बैठ उसे मानसिक आरोग्य शाला में भर्ती कराया, यह उनकी मृत्यु से करीब एक वर्ष पहले 1990 की बात होगी। बिनोद बाबू जी अपने सामाजिक कामो, राजनैतिक उलझनो में उलझे रहते थे।
बिनोद बिहारी महतो जी स्वभाव व रहन सहन कैसा था?

कुछ लोग तो रात में मिलने तक आ जाते थे, बिनोद बाबु जी को लोगो ने कभी भी मंदिर जाते हुए नहीं देखा था। विनोद बाबू जी का बहुत ही परम मित्र था जिसका नाम आलमगीर खां था। जो बचपन का ही दोस्त था, इन दोनों के बीच इतनी गहरी दोस्ती थी की आलमगीर रिटायर्ड होने के बाद विनोद बाबू जी के बैठक में ही अपना डेरा डाल लिया था। दिन रात वही रहते थे खाते वहीं थे पीते वहीं थे। यहाँ तक की आलमगीर खां ने आखिरी सांस भी वहीं ली, जबकि उनके सारे पुत्र ऊँचे ओहदों पर विराजमान थे। तथा इनका स्वयं का घर परघा, जामाडोबा और झरिया में था।
बिनोद बिहारी महतो का शिक्षा (Education)
बिनोद बिहारी महतो जी के पिताजी महेंद्र महतो जी के पास इतने पैसे नहीं होते थे कि वो अपने बच्चों को पढ़ा सके। उस जमाने में गाँव में पढने की किसी तरह की व्यवस्था तक नहीं थी। बिनोद बिहारी महतो जी के पिताजी पढ़े लिखे नहीं थे। लेकिन पढ़ाई का महत्व जरूर पता था। लेकिन घर कि आर्थिक स्थिति खराब होने कि वजह से अपने बच्चों को पढ़ाने में बहुत मुश्किलों का सामना कर रहे थे। किसी तरह बिनोद बिहारी महतो जी ने प्राथमिक शिक्षा प्राइमरी स्कूल बलियापुर से पूरी की। हर दिन बिनोद बाबू जी कई किलोमीटर पैदल ही चलकर पढ़ने के लिए जाते थे।
किसी तरह प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद बिनोद बाबू जी ने झरिया के डी. ए. वी. स्कूल से (D. A. V. School Jharia) पढ़ाई पूरी की। ये स्कूल आज भी चालू है, उसके बाद धनबाद हाई स्कूल से। हाई स्कूल की शिक्षा धनबाद म्युनसिपैलिटी के द्वारा संचालित स्कूल से प्राप्त की। बिनोद बाबू के गाँव से स्कूल की दूरी लगभग 15 किलोमीटर थी जो जंगल के रास्ते से होकर गुजरती थी। बिनोद बाबू इन रास्तो से कभी साइकिल से तो कभी पैदल ही चलकर स्कूल जाते थे। बाद में बिनोद बाबू जी ने धाँगी/ डांगी बस्ती के अपने मौसा – मौसी के यहाँ ही रहने लगे। यहाँ से स्कूल करीब 4 किलोमीटर पड़ता था।
पढ़ाई के दौरान बिनोद बाबू जी ने कई बार पढाई तक छोड़ दी थी। क्योंकि पढाई का खर्चा उठाना मुश्किल हो रहा था। ऊपर से घर का सारा काम भी बिनोद बाबू जी को ही देखना पड़ता था। इनका एक भाई श्रीनाथ महतो तथा तीन बहने थी घर के बड़े होने के नाते सारी जिम्मेवारियां बिनोद बाबू जी पर ही थी। इनकी जो माँ थी मंदाकिनी देवी बिनोद बाबू के हर कदम में साथ देती थी। किसी भी तरह इनकी माँ खेत में सब्जी उगा कर उन्हे बेचकर बिनोद बाबू जी को पढ़ाया करती थी। आर्थिक तंगी को मात देकर इनकी माताजी ने बिनोद बाबू जी को पढ़ाया। किसी तरह बिनोद बाबू ने सन्न 1941 में मैट्रिक की परीक्षा पास की, इसके बाद बिनोद बाबू को पढ़ाई छोड़नी पड़ गई।
धनबाद के समाहरणालय में सप्लाई विभाग में इनको किरानी की नौकरी मिली। किसी तरह परिवार के लोगो की देखभाल करते हुए कई वर्ष ऐसे ही बीत गए। चूंकि इनका विवाह पहले ही हो चुका था, और उस वक्त इनके दो पुत्र थे। घर की आर्थिक स्थिति ख़राब होने की वजह से बिनोद बाबू जी ने धनबाद के न्यायालय में लेखन का काम शुरू किया। और साथ में शिक्षक के रूप में भी काम किया। उसके बाद उन्हें धनबाद में क्लर्क की नौकरी मिली। एक बार किसी वकील ने उससे कहा कि वह होशियार है तुम इससे भी अच्छा काम कर सकते हो। ऐसी प्रतिभा है तुम्हारे अंदर लेकिन फिर भी एक क्लर्क का काम करना चाहते हो?
बिनोद बिहारी महतो वकील कैसे बने?
एक बार ऐसी घटना घटी जिसमे इनके आत्मसम्मान को गहरी चोट लगी। एक दिन काम के दौरान एक वकील ने इन्हें कह दिया की तुम कितना भी होशियार और चालाक क्यों न बनो। रहोगे तो आखिर एक किरानी ( दफ़्तर में लिखानेवाले – लिपिक) ही। तो उस घटना के बाद से उसके बातों से बहुत प्रभावित हुए बिनोद बाबू वकील बनने का फैसला किया। सात वर्षो तक नौकरी करने के बाद बिनोद बाबू नौकरी छोड़ दी। वह भी सप्लाई विभाग की, ये अच्छे अंग्रेजी बोल लिख सकते थे। अंग्रेज जिलाधीश इन्हें बहुत मानते थे, बड़े बड़े लोग इनके आगे पीछे घूमते रहते थे।
इन्होने इंटर की परीक्षा पास करने के लिए पी. के. राय मेमोरियल कॉलेज धनबाद (P.K. Roy Memorial Collage Dhanbad) में जो उस वक्त कतरास में हुआ करता था। उसमे दाखिल लिया, जहाँ से इन्होंने इंटर पास किया। फिर रांची कॉलेज से इन्होने स्नातक (Gragutaion) की डिग्री हासिल की। फिर पटना ल़ा कॉलेज पटना से 1955 में कानून की डिग्री हासिल की। इस प्रकार इन्होने बड़ी मुश्किल से काफी समय के पश्चात् इन्होने अपनी पढाई पूरी की। उसके बाद से बिनोद बाबू ने सन्न 1956 में धनबाद में ही वकीली शुरू की। बिनोद बाबू का वकील बनने का सफरनामा सन 1956 से धनबाद जिला कचहरी से शुरू हुई।
शुरू शुरू में बिनोद बिहारी महतो जी के लिए वकालत करना उतना आसान नहीं था। उस वक्त धनबाद के कचहरी में बंगाली वकीलों का दबदबा कब्ज़ा हुआ करता था। और ये जिस जाति से ताल्लुक रखते थे उस वक्त इनके बिरादरियों को हमेशा अपना नीचे रखने की कोशिश करते थे। उन्हें नीचा दिखाने में कोई कसर तक नहीं छोड़ते थे। जिस बिरादरी से बिनोद बिहारी महतो आते थे उस वक्त उस बिरादरी से एक मात्र वकील थे। शुरू में स्व.अवनींदनाथ सिन्हा जी इनके सीनियर हुआ करते थे। शुरू में इन्हें बहुत कठिनाईयों से रेंट पर एक घर मिला था जो उनके अभिभावक स्वरूप स्व. द्विजपदो चक्रवती ने दिलवाया था।
जो मुकुंदा के ही रहने वाले थे, देखा जाये तो अपनी वकील के पेशे में बिनोद बाबू बड़े माहिर निकले। इनके पास जमीन से सबंधित मामले काफी आने लगे। और मामलो को बहुत ही सरल तरीके सुलझाते थे, जमीन से सबंधित मामलो के माहिर माने जाने लगे थे। धनबाद, बोकारो, हजारीबाग, गिरिडीह, रांची, पलामू के भवनाथपुर तक जमीन मामलो को बिनोद बिहारी महतो जी ने ही लड़ा।
झारखण्ड बिहार के इतिहास में ये ऐसे वकील के रूप में प्रचलित हुए जिन्होंने हजारो की तादात में विस्थापितों की तरफ से मुक़दमे लड़े। तथा विस्थापितों को उचित बाजार मूल्य पर मुआवजा दिलाने का काम किया। इन्होने पंचेत मैथन परियोजन, बोकारो इस्पात कारखाना, भारत कोकिंग कोल लिमिटेड, सेंट्रल कोल फील्ड लिमिटेड, दामोदर घाटी परियोजना ऐसे कई अन्य भी परियोजना थी। जिससे लोग विस्थापित होने की कगार पर थे। लेकिन बिनोद बाबू ने विस्थापितों की तरफ से सारे मुक़दमे लड़े, विस्थापितों की तरफ से मुकदमा लड़ने के एक पैसा तक नहीं लिए। मुकदमा जीतने के बाद ही बिनोद बाबू जी अपनी फीस लेते थे, वो भी जो अपनी खुशी से देते थे और जो देने में सामर्थ्य थे।
इनके पास इतने केस आते थे की जिसकी कोई गिनती ही नहीं होती थी। पूरी भीड़ लगी रहती थी, किसी को पैरवी की जरुरत ही नहीं पड़ती थी। देखा जाये तो वकील के पेशे में बिनोद बाबू जी ईमानदारी से उस वक्त बहुत इज्जत कमाई जो आज तक बनी है। और साथ में अगले वंश के लिए अच्छे खासे पैसे भी कमा लिए थे। बिनोद बाबू ने अन्य वकीलों की भी मदद की, कितनो को तो पढने लिखने तक में मदद की। कितनो वकीलों को अपने साथ रखा करते थे उन्हें सिखाते थे। कितनो को शुरुआती दिनों में रहने तक की व्यवस्था तक करायी। किसी को कोट सिलवा के दिए, बहुतो को आर्थिक मदद की। इन्होने कितनो ही गरीब तबके के वकीलों को आगे बढाया है। वो सबके प्रिय बन चुके थे सब उन्हे बहुत अच्छे से पहचानने लगे थे।
इन्होने अपनी कमाई से अपने परिवार की हालात सुधारी, धनबाद में घर बनाया। थोड़ी बहुत जमीने खरीदी बिनोद बाबू जी ने अपने गाँव बड़ादाह तथा बलियापुर प्रखंड में भी जमीने खरीदी एवं उस जमीन पर घर बनवाया। जब वकालत के पेशे में आये थे तो उस वक्त चारू चट्टोपाध्याय के यहाँ किराये के घर में रहते थे। चारू चट्टोपाध्याय भी एक वकील थे,और वे बगल में ही एक बड़ी कोठी में रहते थे। कुछ समय के बाद बिनोद बाबू जी ने चारू चट्टोपाध्याय की आधी जायदाद खरीद ली और वो आज बिनोद मार्केट के नाम से महशूर है।
लोगों के अधिकार के लिए बिनोद बाबू जी खड़े हुए
बिनोद बाबू जी ने भारत कोकिंग कोल लिमिटेड, सेंट्रल कोलफील्ड्स, बोकारो स्टील प्लांट, पंचेट डैम, मैथन डैम जैसे कई कारण से विस्थापित हुए बहुत से असहाय लोगों के लिए खड़े हुए। और उसके अधिकार के लिए सरकार से लड़ा फ्री में केस लड़ा और उन्हें न्याय तक भी दिलाया। कई जगहों से विस्थापित हुए हजारों लोगों का केस बिनोद बाबू जी कई कोर्ट और कचहरियों में लड़ रहें थे। इनके अचानक निधन से सारे कोर्ट-कचहरियों के मामले समझो ठहर सी गई थी। धनबाद, बोकारो आदि कई ऐसे जिलें थे जो भू-अर्जन अधिनियम के तहत हजारों केस बिनोद बिहारी महतो जी ने कोर्ट में दायर किए थे।
बहुत से शिक्षण संस्थाओं का भविष्य भी खतरे में पड़ता नज़र आ रहा था। जो उनके द्वारा स्थापित किए गए थे, और जो संचालित किए जा रहे थे।
बिनोद बिहारी महतो को संस्कृति और खेल से लगाव
बिनोद बाबू जी झारखंड की संस्कृति के बहुत बड़े प्रेमी थे। उन्होंने हमेशा झारखंड के लोक गीतों, त्योहारों और संस्कृतियों को बढ़ावा देने का हमेशा प्रयास किया है। वह झारखंड के लोक नृत्यों को बढ़ावा देने के लिए प्रतियोगिता का आयोजन तक करवाते थे। वह कर्मा, जितिया, मनसा पूजा, गोहल पूजा, टुसू, सोहराई और अन्य जैसे कई त्योहारों में भाग लिया करते थे। उन्होंने झारखंड की भाषाओं विशेषकर कुरमाली भाषा, कुड़मी महतो भाषा को बढ़ावा देने के लिए काम भी किया था। उन्होंने कुरमाली भाषा को बढ़ावा देने के लिए विद्वानों, बुद्धिजीवियों को प्रोत्साहित भी किया। उसको कुरमाली भाषा को ज्यादा से ज्यादा सब तक पहुंचाने की कोशिश भी की।
उन्होंने “कुड़माली साहित्य और व्याकरण” के लेखक लक्ष्मीकांत महतो को भी प्रोत्साहित किया। खोरठा भाषा के लेखक और कवि श्रीनिवास पुनेरी उनके बहुत ही प्रिय मित्र थे। इन सब प्रयासों के वजह से रांची विश्वविद्यालय में कुरमाली भाषा का अध्ययन भी शुरू करवाया गया। जिस गाँव में भी सभा के लिए बिनोद बाबू जी जाते थे वहाँ के लोग इनके खातिरदारी में लग जाते थे। नगाड़ा, मांदर, बजाते हुए स्वागत करते थे। गाँव में इनके पैर धोये जाते थे, जब बिनोद बाबू गाँव से जाते थे तो गाँव वाले कुछ न कुछ अवश्य देते थे। नटुआ नाच कुड़मी जाति का एक विशेष नृत्य होता है, इसे योध्याओं का नृत्य भी कहा जाता है। इसमें हाथो में जल – तलवार तथा पैरो में घुंघरू बांध कर नृत्य करते है।
यह एक प्रकार का मार्शल आर्ट होता है, आत्मरक्षा के लिए, नृत्य करने वाले को नटुआ कहा जाता है। इस खेल में झारखंडी नेता शिवा महतो जी ( शेरे शिवा ) पारंगत रहे है। और साथ में अन्य नौजवानों को सिखाते थे, बिनोद बाबू का पसंदीदा खेल फुटबॉल हुआ करता था। वह फुटबाल भी खेला करते थे। अपने वकालत के दिनों में कभी काभी कचहरी से ही सीधे धनबाद रेलवे मैदान में फुटबॉल मैच देखने पहुँच जाते थे। वो भी वकील के पोशाक में। जमीन पर बैठ कर मूंगफली खाते हुए बड़े आराम से मैच देखते थे। गाँव के नौजवानों को आगे लाने के लिए गाँव के टीम के खिलाड़ियों के बीच जर्सी दान करके युवाओं को प्रोत्साहित भी करते थे। और मैच भी आयोजित करवाते थे।
फुटबाल क्लबो को समय समय पर आर्थिक मदद भी करते थे। एक बार वे विधानसभा की समिति के साथ गोवा गए थे। उन्हें पता चला की फुटबाल मैच चल रह है, तो जरुरी मीटिंग छोड़कर पैदल ही मैदान की तरफ निकल पड़े। उनकी रुचि पारंपरिक तीरंदाजी के खेल में भी था। वह तीरंदाजी प्रतियोगिता का भी आयोजन करवाते थे। प्रति वर्ष शीतकालीन पर्व कुड़मी समुदाय का मकर संक्राति होता है। बाउंडी पर्व होता है इस अवसर पर गाँव के लोग तीर धनुष लेकर जंगलों में शिकार के लिए जाते हैं।
बिनोद बाबू जी के योगदान
बिनोद बाबू ने हमेशा शिक्षा को बढ़ावा दिया है, जिसके लिए प्रचार – प्रसार भी किया था। उन्होंने लड़ना है पढ़ना सीखो का नारा भी दिया है। उन्होंने कई स्कूलों की स्थापना में भी बड़ा योगदान दिया, और कई कॉलेजों की स्थापना के लिए दान भी दिया। आज कि तारीख में भी बिनोद बिहारी महतो जी के नाम से कई स्कूल और बड़े बड़े कॉलेज मौजूद है। बलियापुर, राजगंज, चंदनकियारी, चास सहित कई अन्य जगहों पर लोगों को जागरूक करके दर्जनों स्कूल और कॉलेज खोलवाये। समाज में व्याप्त शराबखोरी, अंधविश्वास के खिलाफ आंदोलन चलाया। इसी बीच प्रसिद्ध मजदूर नेता एके राय व शिबू सोरेन के संपर्क में आया और धीरे धीरे नजदीकियां बढ़ती रही।
बिनोद बिहारी महतो जी का पढो और लड़ो आन्दोलन
बिनोद बाबू जी को हमेशा एक शिक्षा प्रेमी के रूप में ही नहीं बल्कि झारखण्ड क्षेत्र में शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए हमेशा याद किया जाता है। इनके शिक्षा प्रेम को आप इसी से समझ सकते है की जब ये स्वंय विधार्थी थे। तब भी गर्मियों की छुटियो में खाली समय में गाँव आया करते थे। तो गाँव के बच्चे को इकट्ठा कर उन्हे स्लेट पेन्सिल दिया करते थे। तथा बैठाकर पढाया तक करते थे। अपनी आमदनी का ज्यादातर पैसा बिनोद बाबु जी ने स्कूल एवं कॉलेज बनवाने में दान कर दिया। उनकी मृत्यु के पश्चात् जब उनके द्वारा स्थापित और संचालित शिक्षण संस्थाओ की सूची बनाई गई तो यह देखकर आश्चर्य हुआ।
कि न सिर्फ धनबाद जिले में बल्कि पुरे झारखण्ड में बिनोद बिहारी महतो जी ने शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिए स्कूल एवं कॉलेज बनवाए तथा बनाने में मदद की। झारखण्ड के बाहर भी इन्होने दान दिया तथा छात्रो के लिए छात्रावास बनवाने में भी मदद की। एवं दान भी दिया, इनके अलावा भी कई संस्थान ऐसे है जिनमे उन्होंने दान दिया। लेकिन गुप्तदान दिया बेगैर किसी को बताए दिया। जिनकी जानकारी नहीं है, क्योंकि ये दान करते थे पर घरवालो या दुसरो को भी जानकारी नहीं देते थे।
नीचे कुछ स्कूल और कालेजों के नाम है जिसमे बिनोद बाबू जी का बहुत बड़ा योगदान रहा है –
स्कूल/कॉलेज | वर्ष | दान धनराशि | अध्यक्ष | सचिव |
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बलियापुर हाई स्कूल बलियापुर | 1958 | ₹50,000 | शशिभूषण सरकार | धरमचंद सरखेल |
आर.एस. मोर कॉलेज, गोविन्दपुर | 1958 | ₹1,50,000 | ||
शिवाजी हाई स्कूल बेनागड़िया | 1970 | ₹51,000 | बिनोद बिहारी महती | चूड़ामणि महतो |
सर्वोदय हाई स्कूल पिन्द्रजोरा चास, (बोकारो) | 1970 | ₹16,000 | पार्वती चरण महतो | चंद्रदेव महतो |
जनता हाई स्कूल पोखरिया | 1971 | ₹45,000 | बिनोद बिहारी महतो | अंकुर मंडल |
मन्दाकिनी उच्च विधालय, पश्चिम बरवा | 1971 | ₹4,00,000 | बिनोद बिहारी महतो | फूलचंद मंडल |
जनता हाई स्कूल पुंडरन, चास (बोकारो) | 1971 | ₹1,50000 | बिनोद बिहारी महतो | पदमलोचन सिंह |
प्राथमिक बिरसा बालिका हाई स्कूल हिकिमाड़ाल, निरसा | 1971 | ₹50,000 | बिनोद बिहारी महतो | रसिक लाल टुडू |
महेन्द्रनाथ उच्च विधालय, पूर्वी बरवा गोविन्दपुर | 1972 | ₹50000 | बिनोद बिहारी महतो | राजकिशोर महतो |
तिलैया हाई स्कूल, तिलैया | 1972 | ₹1,50000 | हरिप्रसाद महतो एवं बिनोद बिहारी महतो | ऋषिकेश महतो |
प्रधानघंटा हाई स्कूल बलियापुर | 1972 | ₹1,50000 | छूबलाल महतो | सुरेश महतो |
श्रमिक उच्च विधालय, टुपकाडीह (बोकारो) | 1972 | ₹1,50000 | जगदीश महतो तथा उपेन्द्रनाथ मिश्रा | चन्द्रिका दुबे |
डुमराव विस्थापित मदरसा हाई स्कूल, सीवनडीह, (बोकारो) | 1972 | ₹90000 | अब्दुल रहमान | पयारी अंसारी |
गोंगा हाई स्कूल, ईचागढ (पूर्वी सिंहभूम) | 1980 | ₹25,000 | ||
सिल्ली कॉलेज, सिल्ली (रांची) | 1980 | ₹80,000 | ||
पटमदा कॉलेज पटमदा (पूर्वी सिंहभूम) | 1980 | ₹25000 | ||
विधि विधालय धनबाद | 1982 | 5,00,000 (और जमीन) | धनबाद उपायुक्त सचिव | बिनोद बिहारी महतो |
बी.बी.महतो हाई स्कूल कुर्रा भंडारी (बोकारो) | 1982 | ₹1,75,000 | बिनोद बिहारी महतो तथा शिव प्रसाद महतो | प्रो.चंडी चरण महतो |
राजगंज कॉलेज, राजगंज | 1982 | ₹60,000, फिर 2 लाख | रामेश्वर मुंशी | बिनोद बिहारी महतो |
बी.बी.एम.कॉलेज बलियापुर (बिनोद बिहारो महतो कोलेज) | 1983 | ₹3,00,000 | बिनोद बिहारी महतो | आनंद महतो एवं दयाल चन्द्र महतो |
कुसमाटाड़ हाई स्कूल बलियापुर | 1983 | ₹50,000 | बिनोद बिहारी महतो | दुर्योधन महतो |
खेदाडीह हाई स्कूल चन्दनक्यारी (बोकारो) | 1983 | ₹15,000 | समरेश सिंह | अमूल्य रतन महतो |
झारखण्ड कॉमर्स कॉलेज डुमरी (गिरिडीह) | 1983 | ₹1,00,000 | बिनोद बिहारी महतो | शिवा महतो |
चन्दनक्यारी महाविधालय चाँदडा., चन्दनक्यारी | 1984 | ₹21,000 | बिनोद बिहारी महतो | हारन रजवार |
प्राथमिक आदर्श हाई स्कूल जामकूदर | 1988 | ₹25,000 | बिनोद बिहारी महतो | छुटुलाल महतो |
कसमार महाविधालय (गिरिडीह) ( बी.बी. महतो स्मारक महाविधालय बाद में नामकरण | 1990 | ₹20,000 | बिनोद बिहारी महतो | |
झाड़ग्राम हाई स्कूल, (पश्चिम बंगाल) | गुप्तदान | |||
बी. बी. महतो हाई इंग्लिश स्कूल सिधवाड़ा (गोमिया) | गुप्तदान | |||
बी. बी. महतो हाई स्कूल (बगोदर) | गुप्तदान | |||
सरदार पटेल छात्रावास (पट | गुप्तदान | |||
बी. बी. महतो उच्च विधालय, नवाडीह (गिरिडीह) | गुप्तदान | |||
अजित धनंजय उच्च विधालय इचागढ (पूर्वी सिंहभूम) | गुप्तदान |
इसके आलावा भी अनेक संस्थानों में दान किया अभी तक जिसकी सूची अभी तक पूरी नहीं बनी, इसके अलावा कई प्राइमरी स्कूल एवं रात्रि पाठशालाए आदिवासी क्षेत्रो में खोली एवं चलाई। जब सत्तर के दशक में कोयलांचल के बड़े व्यवसायी रुपया छापने में लगे थे। उस क्षेत्र के कोलयरी के मालिक, बड़े ठेकेदार, बड़े वकील जब इस क्षेत्र में इस दिशा में पहल नहीं कर रहे थे तो बिनोद बिहारी महती जी ने अपनी लगभग कमाई का पैसा गाँव देहात के लोगो को शिक्षित करने के लिए पानी की तरह बहा रहे थे। उन्होंने समाज में परिवर्तन लाने के लिए शिक्षा का होना अत्यंत आवश्यक समझा एवं अपने विचारो को सर–जमीन पर उतारा।
बिनोद बिहारी महतो जी ने पढो और लड़ो का नारा बुलंद किया, इसके आलावा मेधावी छात्रो को प्रोत्साहित किया। कई गरीब पर कुशाग्र बुध्दि के छात्रो को अपने खर्चे से पढाया, उनके बच्चे को डॉक्टर एवं इंजिनियर तक बनाया। सबसे अहम् बात यह है की बिनोद बाबू जी ने शिक्षण संस्थान एकदम सुदूर गाँव पिछड़े इलाको में खोले जहाँ एकदम पढाई का साधन नहीं था। इन संस्थानों का स्वरुप व्यावसायिक नहीं बल्कि इनकी फ़ीस इतनी कम रखी गई, कि इन्हें चलाने के लिए अपनी जेब से ही पैसे खर्च करने पड़ते थे, तथा समय समय पर संस्थानों को आर्थिक सहयाता करती थी।
गरीबो का इसमें बहुत भला हुआ, जिनके लिए स्कूल कॉलेज की शिक्षा पाना बस एक सपना हुआ करता था। वे भी शिक्षित होने लगे, इन कारणों से बिनोद बिहारी महतो जी हमेशा आर्थिक तंगी से गुजरते थे।
शिवाजी समाज एवं अन्य
बिनोद बिहारी महतो जी ने झरिया से 1952 के चुनाव में खड़ा भी हुए थे। लेकिन चुनाव जीत नहीं पाए। बिनोद बिहारी महतो जी ने जब 1956 में वकील का पेशा शुरू किया था, तब उसकी मुलाकात कुछ कुड़मी महतो लोगों से हुई। जो कुड़मी मुख्य रूप से जो किसान थे। वे सरल थे और दूसरों से आसानी से प्रभावित हो जाते थे। समाज में शिक्षा की कमी थी, कुड़मी की अपनी रस्में और संस्कृति थी और आज भी हैं। परंपरागत रूप से, कुडुमी ब्राह्मण के बिना अपने स्वयं के ये अपना एक अलग अनुष्ठान करते हैं।
कुड्मी, महतो जाति होने के कारण तथा इस जाति से प्रथम वकील उस जिले में होने के कारण स्वजाति लोगो से इस पेशे में जान पहचान बढ़ने लगी। यह जाति झारखण्ड क्षेत्र में बहुतायत में है, यह खासकर कृषक जाति है, खेती करना इसका एकमात्र उस समय पेशा था। लेकिन आज भी बहुत से क्षेत्रों में खेती ही करते है। ये स्वाभाव से एकदम सीधे व भोले होते है, दूसरों की बातो पर बहुत जल्दी विश्वाश तक लेते है। इस समुदाय में शिक्षा का अभी भी अभाव है, यह समुदाय आज भी अपने सामाजिक रीती रिवाजो से संचालित होता रहा है।
समय के साथ साथ इन रीती रिवाजो में कुरीतियों का भी समावेश हो रहा था। ब्रह्मवादी सभ्यता संस्कृति समाज में प्रवेश कर रही थी। हावी हो रही थी, कुड्मी महतो समाज होनेवाली शादी विवाह के अवसर पर ब्राहमणों से मंत्रोचार नहीं कराया करते थे। समाज के पांच गणमान्य व्यक्ति ही विवाह मंडप में साक्षी होते थे। अपनी परंपरागत विधियों से शादी होती थी। आज भी ऐसा ही होता है, इस समाज को दिग्भ्रमित करने के लिए कई प्रकार के हथकंडे अपनाये गए थे। कभी इन्हें क्षत्रिय बनाने के लिए इन्हें जनेऊ पहनाने का षड्यंत्र किया गया तो कभी यह कहा गया की इन्हें ब्राह्मणों से दीक्षा लेनी चाहिए।
कभी कोई इन्हें वैश्यो की श्रेणी में रखने की बात करते थे। इन सारी उलझनों में उलझ कर यह समाज काफी बर्बाद हुआ था। बाल विवाह, बहु विवाह का प्रचलन आदि तक शुरू हो गई थी। तिलक, दहेज़ जो इस समाज में कहीं थी ही नहीं, इसकी प्रथा शुरू हो गई थी। शराब खोरी तक बढ़ गई इस समाज में लड़के वाले लड़की ढूंढने निकलते थे, न की लड़की वाले। लड़का ढूढने, स्त्री जाति को काफी मान सम्मान एवं बराबरी का दर्जा दिया जाने लगा था। पर ब्रहामंवादी विचारो से प्रभावित होकर यह समाज भी बर्बाद होने लगा।इन सब चीजों से बिनोद बिहारी महतो जी बहुत चिंतित थे। और इन्होने 1967 में शिवाजी समाज नाम का एक जातीय संगम को जन्म दिया।
कुड्मी जाति के किसान सूदखोरों महाजनों के चंगुल में फंसते जा रहे थे। इन सभी कुरितियो एवं शोषण से बचने के लिए स्वयं इसने लड़ने के लिए शिवाजी समाज का गठन किया गया। स्त्रियों पर अत्याचार बढ़ रहा था और बाल्तकार की घटनाये बढ़ती जा रही थी। पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी करना पत्नी को मामूली बात पर घर से बाहर निकल देना आम बात हो गई थी।
उन दिनों ब्राह्मणकाल कुड़मी संस्कृति में प्रवेश कर रहे थे, कई कुड़मी बिनोद बिहारी महतो के पास अपनी समस्या लेकर आने लगे थे। इन समस्याओं को हल का समाधान करने के लिए 1967 में बिनोद बिहारी महतो जी ने “शिवाजी समाज” नामक एक संगठन का गठन किया और समस्याओं को हल करने का प्रयास शुरू किया। कुडुमी को धन-उधार दाताओं से बचाने के लिए और सामाजिक बुराई से लड़ने के लिए शिवाजी समाज शुरू की गई। समाज की समस्याओं को हल करने और दोषियों को दंडित करने के लिए कई बैठकें भी की जाती थी। बहुत जल्द यह संगठन बहुत बड़ा हो गया, बिनोद बाबु सीधी कार्यवाही करने में विश्वास रखते थे।
बहु विवाह करने वाले तथा पत्नी को छोड़ने वालो को पकड़ा जाता था समाज की पंचायत बुलाई जाती थी। उसमे उस गाँव एवं आसपास के लोग शामिल होते थे। अपनी बिरादरी अपनी जाति के लोग बैठ कर फैसला करते थे। और उन्हे सजा दिया जाता था, दोषी व्यक्तियो को दंड में शारीरिक दंड के साथ आर्थिक दंड भी दिया जाता था। कुरीति फ़ैलाने वालो को अपमानित किया जाता था।इन्हें सभी के सामने लाठी से पीटा जाता था, या फिर कभी कभी सर मुंडवा कर मुंह पर कालिख पोतवाकर पूरा गाँव घुमाया जाता था। इसके अलावा इस संस्था के द्वारा महाजनो द्वारा शोषण, सूदखोरी के खिलाफ भी जंग छेड़ा गया।
जिन जमीनों को सूदखोरों महाजनों ने हड़प कर रखा था। इन जमीनों पर कब्ज़ा किया जाने लगा, हल चलाकर सामंतो को उनकी नाजायज जमीनों से बेदखल किया जाने लगा। सूदखोरों को गाँव से भगाया जाने लगा था। जुल्म एवं शोषण के खिलाफ इस कुड्मी जाति के लोग गोलबंद होने लगे, बड़े बड़े हथियारबंद जुलूस निकलते शराबखोरी के खिलाफ अभियान चलते थे। शराब की भट्टिया को नष्ट किया जाने लगा और नशेड़ियों को पीटा जाने लगा।
स्त्रियो को जागरूक किया जाने लगा ताकि वे भी अपने नशेड़ी पतियों के खिलाफ मोर्चा निकाल सके। श्री टेकलाल महतो, तोपचांची, मानतांड जिला धनबाद शिवाजी समाज के अग्रणी नेता बने। बिनोद बाबु जी के निर्देशानुसार उनके नेतृत्व में बहुत बड़ा सामाजिक आन्दोलन उठ खड़ा हुआ था। इस संगम से कुड्मी जाति के महतो समाज में बहुत बड़ा सामाजिक परिवर्तन आया एवं राजनैतिक सामाजिक चेतना का जन्म हुआ। यह आन्दोलन जिला धनबाद, बोकारो, गिरिडीह और हजारीबाग में बहुत जुझारू रूप से सामने आया। शिवाजी समाज ने सामंतवाद, जमींदारी शोषण मुखियागिरी के खिलाफ सीधी लड़ाई लड़ी।
इस संगठन का प्रभाव पश्चिम बंगाल के पुरुलिया आदि जिलो में भी पड़ा। इसकी गूंज रांची में सुनाई देने लगी, इस जाति में एकता का विकाश हुआ। उन्हें यह अहसास कराया गया की उन्हें स्वंय स्वावलंबी बनना है। अपने पैरो पर खड़ा होना है, भीख मांगने की आदत यानि दूसरों के भरोसे पर अब नहीं रहना है। वो आदत छोड़नी है, एक नया आत्मविश्वास इस समुदाय में जगा। यही कारण है की इस संगठन के उभरने के बाद पुरुलिया, रांची, गिरिडीह धनबाद, बोकारो, हजारीबाग, सिंहभूम आदि जिलो में तथा उड़ीसा के कुड्मी बहुल क्षेत्रो में इस जाति के कई नेता बनकर उभरे।
अपनी जाति का पूर्ण समर्थन मिला, चाहे वे वीरसिंह महतो जी हो चित्रों महतो हो ( पुरुलिया सांसद ) या रामटहल चौधरी ( रांची सांसद ) हो या कामरेड आनंद महतो ( सिंदरी विधायक ) या शैलेन्द्र महतो ( जमशेदपुर सांसद ) या टेकलाल महतो ( मांधे विधायक ) अर्जुन राम ( रामगढ़ विधायक ) शिवा महतो ( डुमरी विधायक ) लाल चाँद महतो ( डुमरी विधायक ) कमलेश महतो ( विधायक ) छत्रुराम महतो ( गोमिया विधायक ) पार्वती चरण महतो ( चन्दन क्यारी विधायक ) आदि नेता भी इस समाज के कामों से प्रभावित होकर उभरे। इसके आलावा कई नौजवान आगे आये और आज नामी नेता या कार्यकर्त्ता है जो समाज के प्रति समर्पित है।
शिवाजी समाज कई रैलियों का आयोजन भी किया करती थी। जिसमें पिछड़ी जातियां और श्री कर्पूरी ठाकुर (बिहार के मुख्यमंत्री) की पिछड़ी जातियों के लोग रैलियों में शामिल हुआ करती थी। शिवाजी समाज से प्रभावित होकर शिबू सोरेन जी ने सोनोट संथाल समाज का गठन किया। और फिर मंडल और तेली समाज का भी गठन किया गया। और सन्न 1967 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी विभाजित हो गई। वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सदस्य थे। फिर मंडल समाज तथा तेली समाज आदि भी गठन देखा देखी शिवाजी समाज से प्रेरित हुआ। इन्होने भी अपने समाज की कुरितियो से लड़ने के लिए संगठन का निर्माण किया।
इसके अंतर्गत झारखण्ड के बाहर से आये कुड़मी जाति के लोग भी इकठ्ठा हुए। और इनमे भाई चारा बढ़ा, इनमे प्रमुख थे झरिया के राम सकल सिंह, बलदेव सिंह, तेज नारायण महतो, राम जनम सिंह, बोकारो, राम सूरत सिंह, बोकारो प्रो.बी.बी. शर्मा लक्ष्मण सिंह आदि थे। शिवाजी समाज के आन्दोलन को एक आतंकवादी संगठन का नाम दिया जाने लगा। शोषककर्ता और शासक वर्ग के लोगो को दलितों एवं पिछडो का सामाजिक उत्थान अच्छा नहीं लगा। फलस्वरुप शासक शोषककर्ता वर्ग ने षडयंत्र करके इस संघठन को बदनाम करना शुरू किया। कार्यकर्ताओं नेताओं पर केस मुकदमे किये जाने लगे। जय समाज के लोग गांव में पंचायत करते, अपना फैसला स्वयं करते।
झगड़े का निपटारा गांव में बैठकर पंचों से करवाते, जब लोग थाना पुलिस के पास नहीं जाने लगे तो कहा जाने लगा कि यह शिवाजी समाज एक समांतर सरकार चला रही है। बिनोद बाबू जी को आतंकवादी नेता कहा जाने लगा। सीधी लड़ाई सामंतो सूदखोरो महाजनो के खिलाफ लड़ी जाने लगी। क्योंकि थाना पुलिस प्रशासन हमेशा गरीबों का शोषण करते थे। उनकी मदद करने की बजाय उस पर सूदखोरों की ओर से जुल्म ढाते थे। जवाब दो आंदोलन जोर पकड़ने लगा तो शोषित दलित निर्भय होकर घूमने लगे एवं शोषण का जवाब देने लगे। इस हालत में इस आंदोलन को कुचलने के लिए इसे आतंकवादी संगठन करार दिया गया तथा दबाया जाने लगा।
पुलिस और सरकार की फाइलों में इसके नेताओं एवं कार्यकर्ताओं पर सैकड़ों आरोप लगे। विनोद बाबू के खिलाफ मोटी फाइल बनाई गई। जवाब दो आंदोलन जोर पकड़ने लगा तो शोषित दलित निडर होकर घूमने लगे एवं शोषण का जवाब देने लगे। इस हालत में इस आंदोलन को कुचलने के लिए इसे आतंकवादी संगठन करार दिया गया। तथा दबाया जाने लगा। पुलिस और सरकार की फाइलों में इसके नेताओं एवं कार्यकर्ताओं पर सैकड़ों आरोप लगे। बिनोद बाबू जी के खिलाफ मोटी फाइल बनाई गई। कितने ही झूटे अपराधिक मामले लादे गए उनके ऊपर पर इससे बिनोद बाबू जरा सा भी नहीं घबराए।
शिवाजी समाज नाम रखने के पीछे का कारण ये था कि विनोद बाबू जी को छत्रपति शिवाजी बड़े अच्छे लगते थे। वे मानते थे कि शिवाजी कुर्मी जाति के थे। महाराष्ट्र के शिवाजी ने कभी घुटने नहीं टेके शिवाजी भी जंगल झाड़ी से घिरे प्रदेश में रहकर औरंगजेब साम्राज्यवाद अत्याचारों के विरुद्ध लड़ाई लड़े। कम सैनिक होने पर भी किस प्रकार अधिक संख्या के सैनिकों वाले दुश्मनों से लड़े। उसे कैसे हराया जाए इस विद्या का अच्छा ज्ञान शिवाजी को था। बाद में इसे गोरिल्ला युद्ध कहा जाने लगा। बिनोद बाबू झारखंड के दूसरे शिवाजी माने जाने लगे थे। इन्होंने झारखंड क्षेत्र के शिथिल उदास शोषित दलित लोगों में नई प्रेरणा दी।
इस प्रकार बिनोद बिहारी महतो जी एक महान समाज सुधारक बन गए। और लोगों के प्रिय बन चुके थे। कालांतर में यही शिवाजी समाज झारखंड आंदोलन की रीड बन गई। तब इस समाज तथा सोनोत संथाल समाज का विलय कर झारखंड मुक्ति मोर्चा नामक संगठन का निर्माण किया गया।
शिवाजी समाज के प्रमुख नेताओ एवं कार्यकर्ताओ के कुछ नाम
श्री टेकलाल महतो | तोपचांची मानतांड |
श्री शिवा महतो | डुमरी विधायक |
काशीनाथ महतो मास्टर जी | मनईटांड़, धनबाद |
गुरुचरण चौधरी एवं उनके चाचा श्री यदु नंदन चौधरी | गलागी बस्ती |
हीरामन महतो | कुलगो डुमरी |
अखिल चन्द्र महतो | मुखिया जी निमियाघट |
जगदीश महतो | मुखिया जी रामाकुंडा |
नन्दलाल महतो | मास्टरजी सिंहडीह |
शंकर किशोर महतो | लाठ तांड राजगंज |
अमर शैड शक्तिनाथ महतो, शहीद बिरजू महतो, यादु महतो | सराईढेला धनबाद |
मोतीलाल महतो झारखंडी | मधुवन |
धुव्र महतो | पोदु गोडा |
कैलाश महतो | प्रमुख कसमार (पुटकी) |
पुनीत महतो | गोमो |
सुशील कुमार महतो मंजूर शशि भूषण महतो | साधोबाद |
अमलेश्वर महतो | नगड़ी |
रामधनी महतो, रतिलाल महतो | लोहापट्टी |
सीताराम महतो, चंद्रदेव महतो, जगरनाथ महतो घास | चन्दनक्यारी |
गोविन्द महतो जंगली | हजारीबाग |
गोविन्द राम महतो | बाली डीह बोकारो |
शशिभूषण महतो | पुरुलिया |
बिनोद बिहारी महतो जी का धनबाद लोकसभा चुनाव में खड़ा होना
1971 में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादियों) के टिकट पर धनबाद लोकसभा चुनाव में खड़ा हुए और दूसरा स्थान प्राप्त किया। 1970 से 1972 में पोखरिया और उसके आसपास के इलाको में विनोद बाबु और शिबू सोरेन के नेतृत्व में जमीन वापस दिलाने का आन्दोलन जोरो पर चल रहा था। तालबद्ध एवं लयबद्ध चाल चलते आदिवासी की लम्बी लम्बी कतारे थी। तीर धनुष, फारसा, लाठी डंडा आदि लिए हुए थे, और टुंडी के जंगलो में सबसे आगे चलते श्यामलाल मुर्मू , सबकी हड़पी गई जमीने वापस तो मिल गई, पर खेती नहीं कर पाए। आदिवासियों पर कर्ज पहले की तरह फिर से चढ़ गया, इन लोगो की जमीने फिर से हाथ से निकल गई। झारखंड छात्र संघ की सभा 22 दिसंबर 1970 की अध्यक्षता उन्होंने के. के कॉलोनी रांची में किया।
इसमें देवेंद्र नाथ महतो (पूर्व सांसद पुरुलिया), श्री पार्वती चरण महतो (पूर्व विधायक), डॉ भुनेश्वर महतो (चाईबासा), डॉक्टर कनाई राम महतो, प्रोफ़ेसर विष्णु चरण महतो (उपप्राचार्य लॉ कॉलेज रांची), श्री फटीक चंद्र हैरम, श्री विष्णु पद सोरेन, श्री डोमन सिंह राठौड़, श्री जयराम मार्डि, श्री पशुपतिनाथ महतो, श्री चंडी चरण महतो, श्री विश्वनाथ महतो श्री गया दत्त महतो प्रफुल्ल कुमार महतो आदि प्रमुख व्यक्ति मौजूद थे। बिनोद बाबू ने छोटानागपुर कुर्मी महासभा का प्रमुख अधिवेशन रामगढ़ में किया। इस अधिवेशन में डॉक्टर रामराज प्रसाद (तत्कालीन शिक्षा मंत्री बिहार सरकार) मुख्य अतिथि थे। इसके अलावा उन्होंने अखिल भारतीय कुर्मी महासभा में भी शिरकत मुंबई में किया था।
समय के साथ-साथ शिवाजी समाज झारखंड आंदोलन की रीढ़ बन गई थी। फिर शिवाजी समाज और सोनोट संथाल समाज ने आपस में विलय कर झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया। सन्न 1973 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का गठन हुआ। और बिनोद बिहारी महतो जी इसके अध्यक्ष बने। 1970 के दशक में बिनोद बिहारी महतो जी एके राय एवं शिबू सोरेन की अगुवाई में लाल-हरा मैत्री जिंदाबाद नारा के साथ धनबाद की धरती से जो झारखंड आंदोलन की शुरूआत हुई। काफी कम समय में ही पूरे झारखंड में फैल गई। झारखंड मुक्ति मोर्चा के बैनर तले ही झारखंड अलग राज्य के लिए कई आंदोलन चलाए गए थे। उनके सामने झारखण्ड आन्दोलन का लक्ष्य था और उसकी बागडोर उनके ही हाथ में थी। परिवार के लिए कम समय निकाल पाते थे।
दूसरा पुत्र नीलकमल से मनमुटाव चल रहा था और वह उनसे अलग रहने लगे थे। इससे इनको भी पीड़ा होती थी। यहीं पर हर गम को सहते हुए आगे बढ़ते रहे। अपने बड़े पुत्र पर उन्हें बड़ा नाज था और उन पर पूरा विश्वाश था। पर उनके बड़े पुत्र भी 1978 से उनसे दूर रांची रहने लगे थे। बावजूद इसके प्रत्येक सप्ताह मिलने धनबाद अवश्य आते थे।
1994 को शिबू सोरेन झारखण्ड स्वायत्तशासी परिषद् के अध्यक्ष बने। और उसी दिन बिहार के उपमुख्यमंत्री का पदनाम भी मिला था। वे जहाज से पटना से धनबाद आये थे और राजधानी से दिल्ली के लिए रवाना हो रहे थे।धनबाद स्टेशन पर इतनी ठसाठस भीड़ थी की अनुमान लगाना मुश्किल था, माला पहनाने वालो की भीड़ में पोखरिया का श्याम लाल मुर्मू शामिल नहीं थे, उसकी हत्या कर दी गई थी। ढांगी बस्ती का सरकार मांझी स्टेशन से बाहर एक किनारे खड़ा था। अपनी टूटी हुई टांग के कारण भीड़ में आगे नहीं जा पा रहा था। झारखण्ड बंदी के दौरान 1990 में पुलिस की लाठी से टांग टूटी थी, जहाँ आज शहीद रणधीर वर्मा चौक है। गोधर कुर्मीडीह का रसिक हांसदा भी शहीद हो चुका था। पर उसका बेटा महादेव हांसदा भी स्टेशन नहीं गया था।
धनबाद के सराईढेला गाँव का लाठी खाने वाला एवं लाठी मारने वाला जादू महतो आन्दोलन का अगुआ भी वहां नहीं आया था। माला पहनाने वालों की भीड़ में होटल मालिक, ठेकेदार, सादा पायजामा कुर्ता पहने हुए लोग, कोयला चोर, लोहा चोर, आदि लोग आये हुए थे
बिनोद बिहारी महतो जी को जब जेल में डाला गया
बिनोद बिहारी महतो जी को कई बार जेल जाना पड़ा था। आपातकाल के लागू होने के पहले वे इतने ज्यादे उलझे हुए थे कि उन्हे “मिसा” के तहत 1974 में गिरफ्तार करके जेल में बंद कर दिया गया था। पहले उन्हें भागलपूर सेंट्रल जेल में बंद कर रखा था। बाद में उन्हें फ़िर बाँकीपुर पटना सेंट्रल जेल में ट्रांसफर कर दिया गया था। राज किशोर महतो जी को छोड़कर बाकी सभी भाई – बहन पढ़ाई कर रहें थे। बड़ी मुश्किल वक़्त से इन लोगों कि जीवन बसर हो रही थी। बड़े बेटे राज किशोर महतो जी का कोलियरी में आना जाना लगा रहता था। ये सब कामों से परेशान होकर राज किशोर महतो जी हमेशा के लिए कोलियरी छोड़ दिया। वहीं पर रहकर छोटा मोटा कारोबार शुरू कर घर पर ही रहने लगे। अपने पिताजी के मुकदमा पटना हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक राज किशोर महतो जी को लड़ना पड़ा रहा था।
मीसा कानून क्या हैं?
इस दौरान राज किशोर महतो जी कोर्ट कचहरी तथा जेलों के ना जाने कितने चक्कर लगाने पड़े थे। मिसा कानून के तहत बगैर कोई कारण बगैर कोई रोक के बगैर कोई केस के कैसा भी झुटा केस बना के किसी के ऊपर इल्ज़ाम लगाए बेवजह जेल में बंद कर देना ऐसी थी मिसा कानून, जो आपातकालीन के दौरान लागू की गई थी।
बिनोद बाबू के सुपुत्र राज किशोर महतो जब वकील बने
केस को हार जाने के बाद राज किशोर महतो जी ने वकील बनने का फैसला किया। और सन्न 1971 में उन्होंने लॉ कॉलेज छोटानागपुर, राँची में दाखिला लिया। किसी कारणवश परीक्षा सन्न 1975 में दे पाए। इस प्रकार सन्न 1977 में राज किशोर महतो जी धनबाद, गिरिडीह, हजारीबाग जिलों में झमुमो के आन्दोलन के साथ जुड़े रहे। राज किशोर महतो जी सन्न 1973 में धनबाद के म्यूनिसिपैलिटी (Municipality) के चुनाव में उतरे। बिनोद बाबू, कॉमरेड राय इनके साथ तो थे, पर राज किशोर महतो जी अपने ढंग से काम कर रहे थे। राज किशोर महतो जी अपने साथियों का बहुमत प्राप्त कर लिया था। काँग्रेस के नेता वी. पी. सिन्हा, शंकर दयाल सिंह जैसे प्रभावशाली नेताओं के प्रतिरोध के बावजूद भी राज किशोर महतो जी ने बहुमत हासिल किया।
राज किशोर महतो जी सन्न 1978 में राँची चले आए, उस दौरान भी राज किशोर महतो जी राजनीति में किसी ना किसी तरह सक्रिय थे। राँची जिले में उस वक़्त झारखंड मुक्ति मोर्चा का कोई संगठन नहीं था। उस समय तक झामुमो का संगठन सिर्फ़ उत्तरी छोटानागपुर तथा संथाल परगना तक ही सीमित था। दक्षिणी छोटानागपुर में झारखंड नामधारी जैसे अन्य दल उस वक़्त मौजूद थे। राज किशोर महतो जी ने अधिवक्ता श्री इन्द्रनाथ महतो, त्रिदीप घोष, बिरसा उराँव, भाई हॉलेन कुजूर, मानवघोष दस्तीदार, शिव नन्दन महतो आदि कुछ गिने चुने लोगों के साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन राँची में भी किया। सन्न 1980 में हिनू मे राज किशोर महतो जी के एक साथी एतवा उराँव आदिवासी जमीन बचाने के विवाद में जमीन – माफियाओं के द्वारा मार दिया गया।
तब झामुमो के आन्दोलन ने जोर पकड़ लिया। कई सहकारी समितियों के जमीनों पर राज किशोर महतो जी ने हरा झंड़ा गाड़कर उनके कार्यो को रोका, तथा कई जगहों पर विस्थापित आन्दोलन की शुरूआत की। इसके बाद सिंहभूम जिलों से कई साथी आए एवं राज किशोर महतो जी से मिले। इस बीच राज किशोर महतो जी ने कई कार्यक्रमों में बिनोद बाबू एवं ए. के. राय एवं शिबू सोरेन को शिरकत करवाया। सघनू भगत (बाद में मंत्री) भी पार्टी में शामिल हुए। राज किशोर महतो जी के सिफारिश पर सन्न 1980 में भाई हॉलेन कूजूर को झामुमो तथा मासस ने विधान परिषद् का सदस्य बनवाया। अर्जुन महतो (बाद में विधायक) राज किशोर महतो जी के कहने पर झामुमो में आए, राज किशोर महतो जी उन्हें बिनोद बाबू के पास भेज दिया।
बिनोद बाबू के चुनावों मे राज किशोर महतो जी ही चुनाव प्रभारी हुआ करते थे। और तब क्षेत्रों का दौरा भी किया करते थे। पर धीरे-धीरे राज किशोर महतो जी वकालत करने में मशगुल हो गए। लेकिन फिर भी राज किशोर महतो जी राजनीति से अलग नहीं हुए वे जुड़े रहे। फिर भी बिनोद बाबू के चुनावों मे राज किशोर महतो ही चुनाव प्रभारी हुआ करते थे। और तब क्षेत्र का दौरा करते थे। आनन्द महतो, कॉमरेड राय को राज किशोर महतो जी चुनावों में जाकर मदद किया करते थे, एक फायदा तो वकालत से ही हो जाती थी इनको, विभिन्न राजनैतिक दलों के लोग जो राज किशोर महतो जी के पिताजी से संबंध रखते थे। वो राज किशोर महतो जी के पास उसके अपने जान पहचान वाले के बहुत से मुकदमें की पैरवी करने लोग आते थे। इसके अलावा राज किशोर महतो जी राँची मे ही रहने रहने लगे थे और धीरे धीरे राँची में ही बस गए।
बिनोद बाबू के निधन के बाद बेटे राज किशोर महतो जी का राजनीति में आना
लगभग झारखंड के लोग राज किशोर महतो जी के पास ही मुकदमें लेकर आते थे। राज किशोर महतो जी के पिता बिनोद बिहारी महतो जी का 18 दिसंबर 1991 को सांसद कार्यकाल के दौरान ही दिल्ली राममनोहर लोहिया अस्पताल में हृदय गति रुक जाने से निधन हो गया। अचानक मृत्यु से राज किशोर महतो जी को बड़ी असमंजस की स्थिति मे डाल दिया था। परिस्थिति ऐसी पैदा हो गई थी कि राज किशोर महतो जी अपने सरकारी वकील का पद छोड़कर राजनीति मे वापस आना पड़ा। तेरह वर्षो की कड़ी मेहनत के बाद राज किशोर महतो जी सरकारी वकील बने थे। अपना करिअर बनाया अपनी एक पहचान बनाई। भविष्य मे हाईकोर्ट जज के पद पर जा सकता था, पर जहाँ से चला वहीं आकर फिर से खड़ा हो गए।
पहले ही एक कैरियर माइनिंग इंजीनियर का पद छोड़ चुका था तो दूसरा भी छूट गया था। राजनीति में वर्चस्व की लड़ाई में अक्सर मुद्दे पीछे छूट जाते थे। राज किशोर महतो जी झारखंड आन्दोलन को आगे बढ़ाने तथा पृथक झारंखड राज्य बनाने के मुद्दे के साथ राजनीति में आए। पर राज किशोर महतो जी को बहुत आश्चर्य हुआ कि उनके पिता बिनोद बिहारी महतो जी के निधन से पूरे बिहार की राजनीति एवं अन्य चीजों पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा। बिनोद बिहारी महतो की मृत्यु के बाद राजनैतिक महत्वाकांक्षा ने व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा का रूप ले लिया था। कॉमरेड ए. के. राय तथा शिबू सोरेन व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को पूरा करने में लग गये थे। अलग राज्य का मुद्दा भूला दिया गया। न सिर्फ भूला दिया गया था, वरन् इसके विरूद्ध कॉमरेड राय तथा शिबू सोरेन दोनों ने मुहिम छेड़ दिया।
इस महत्वाकांक्षा की लड़ाई में काँग्रेस ने शिबू सोरेन को पटक कर बिहार से लालू प्रसाद की सरकार को गिराने का प्रयास शुरू कर दिया। पुनः काँग्रेस को बिहार की गद्दी में बैठने के लिए शिबू सोरेन सक्रिय हो गये। केन्द्र में काँग्रेस शिबू सोरेन के सांसदों को अपने पक्ष में करने का प्रयास करने लगी। बिनोद बाबू जी के बेटे राज किशोर महतो जी झारखंड आन्दोलन के साथ शुरू से ही जुड़े थे। तथा अपने पिता के प्रशंसक भी रहे वो अपने पिताजी की नक्शे क़दम पर ही चल रहे थे। बिनोद बिहारी महतो जी 25 साल तक कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य रहे। उन्हें अखिल भारतीय दलों में विश्वाश नहीं था।
बहुतों ने तो शिवाजी संगठित समाज को आतंकवादी संगठन का नाम भी दिया, नेताओं के खिलाफ कई मामले भी दर्ज हो चुकी थी। जबकि यह कुडुमी की भाषा, त्योहार और संस्कृति को बढ़ावा देने का काम करता था। औरंगजेब के अत्याचार के खिलाफ जैसे लड़ाई लड़ी थी, उसी प्रकार बिनोद बिहारी महतो जी भी एक समाज सुधारक थे।अपने पिता बिनोद बिहारी महतो के आकस्मिक निधन के बाद उसके स्थान पर गिरिडीह से जून 1992 में उपचुनाव जीतकर राज किशोर महतो जी लोकसभा में पहुंचे। सन्न 1993 में झारखण्ड कोलियरी श्रमिक यूनियन के अध्यक्ष बने। तथा अगस्त 1992 से 1998 तक झारखण्ड मुक्ति मोर्चा माडी ) के महासचिव रहे, और सन 1998 से समता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव भी रहे। साथ ही अखिल भारतीय रेल यात्री समिति के अध्यक्ष भी रहे,
राज किशोर महती जी कितने ही शिक्षण संस्थाओ (संस्थानों) स्कूलो और कालेजो से जुड़े हुए है जिनमे से कुछ विधि विद्यालय भी है। जब झारखण्ड राज्य अलग बना तब बिनोद बिहारी महतो जी की तस्वीर झारखण्ड विधानसभा में लगाई थी। इसके बाद से झारखण्ड में कई स्थलों पर बिनोद बिहारी महतो जी की मूर्तियाँ स्थापित की गई। इसके बाद से बिनोद बाबू जी जन्मदिन और पुण्यतिथि मनाया जाने लगा श्रधांजलि सभाए हर वर्ष इनकी पुण्यतिथि पर की जाने लगी।