संथाल जनजाति
संथाल जनजाति झारखंड की सबसे बड़ी जनजाति है और सर्वाधिक जनसंख्या (35%) वाली जनजाति है। झारखंड की जनसंख्या में जनजातियों की कुल जनसंख्या 35% है। संथाल जनजाति भारत की तीसरी सबसे अधिक जनसंख्या वाली जनजाति है। (पहली भील तथा दूसरी गोंड है)
उनका मुख्य भोजन चावल होता है यह मुंडा भाषा बोलते हैं। यह लोग कम वस्त्र इस्तेमाल करते हैं यह प्रकृति पूजक एवं अंधविश्वासी होते हैं। इसका व्यवसाय व्यवसाय आखेट है। इनका पारिवारिक ढांचा पितृसत्तात्मक होता है। संथाल वहिगोत्रीय विवाह करते हैं। ये सोहराई और सकरात नामक पर्व मनाती है। पंचायत के पांच अधिकारी होते हैं – परानिक, मांझी, जोभ मांझी, जोभ परानिक, तथा गोड़ाइत।
संथाल का क्या अर्थ है?
संथाल एक आदिवासी समुदाय से आते हैं, जो अधिकांश जंगलों में रहते हैं।
संथाल कहां से आए थे?
झारखंड में आने से पहले इनका निवास पश्चिम बंगाल में हुआ करता था, जहां इन्हें ‘सोओतार’ का जाता है। इस जाति का सर्वाधिक संकेंद्रण झारखंड के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में है। जिसके कारण इस क्षेत्र को संथाल परगना कहा जाता है। संथाल परगना के अतिरिक्त इस जनजाति का प्रमुख क्षेत्र सिंहभूम, बोकारो, चतरा, रांची, गिरिडीह, लातेहार, पलामू, हजारीबाग, धनबाद आदि जिले में पाये जाते हैैं। संथाल आस्ट्रलायड और द्रविड़ प्रजाति के हैं।
राजमहल पहाड़ी क्षेत्र उनके निवास स्थान को ‘दामिन-ए- कोह’ कहा जाता है। संथाल जनजाति का संबंध प्रोटो-आस्ट्रेलायड प्रजाति समूह से है। प्रजाति और भाषाएं दृष्टि से संथाल जनजाति ऑस्ट्रो एशियाटिक समूह से साम्यता रखती है। यह जनजाति बसे हुए किसानों के संघों से ताल्लुक रखते हैं।
राजमहल पहाड़ी क्षेत्र उनके निवास स्थान को ‘दामिन-ए- कोह’ कहा जाता है। संथाल जनजाति का संबंध प्रोटो-आस्ट्रेलायड प्रजाति समूह से है। प्रजाति और भाषाएं दृष्टि से संथाल जनजाति ऑस्ट्रो एशियाटिक समूह से साम्यता रखती है। यह जनजाति बसे हुए किसानों के संघों से ताल्लुक रखते हैं।
संथालों का संस्थापक
लुगू बुरु को संथालों का संस्थापक पिता माना जाता है। संथालों की प्रमुख भाषा संथाली है। जिसे साल 2004 में संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल किया गया। इसके लिए संसद में 92वां संविधान संशोधन 2003 पारित किया गया था। संथाली भाषा की लिपि ‘ओलचिकी‘ है जिसका अविष्कार रघुनाथ मुरमू द्वारा किया गया था।
संथाल कौन जाति में आता है?
संथाल हिन्दू जाति में ही आता है ये आदिवासी समुदाय की गिनती में आता है।
संथाल जाति में कितने गोत्र पाए जाते हैं?
संथाल जनजाति में 12 गोत्र (किली)पाए जाते हैं। इन 12 गोत्रों की उप–गोत्रों (खूट) की कुल संख्या 144 है।
सबसे ऊंचा गोत्र कौन सा है?
संथाल जनजाति का गोत्र और उनके प्रतीक
गोत्र/जाति | प्रतीक |
---|---|
मरांडी | माडरा घास |
हाँसदा | जंगली हंस |
मुर्मू | नीलगाय |
चोंडे | छिपकली |
हेम्ब्रम | पान पत्ता |
सोरेन | पक्षी |
तुडू | पक्षी |
बास्के/बास्की | नाग सांप |
पौड़िया | कबूतर |
बेदिया | भेड़ा |
बेसरा | बाज पक्षी |
किस्कु | – |
- संथाल एक अंतरजातीय विवाह समूह है तथा इनके मध्य सगोत्रीय विवाह निषिध्द होता है।
- संथाल जनजाति में बाल विवाह नहीं होता है।
संथाल समाज की संस्कृति
संथालो को चार वर्ग में विभाजित किया गया है –
- किस्कू हड (राजा)
- मुरमू हड ( पुजारी)
- सोरेन हड ( सिपाही)
- मरुंडी हड (कृषक)
संथाल जनजाति में विभिन्न प्रकार के विवाहों (बापला) का प्रचलन है –
- किरिंग बापला – मध्यस्थ के माध्यम से विवाह तय होता है।
- गोलाइटी बापला – गोलट विवाह
- टुनकी दिपिल बापला – ये गरीब परिवारों में प्रचलित है, कन्या को वर के घर लाकर सिंदूर दान करके विवाह किया जाता है।
- धरदी जावांय बापला – विवाह के बाद दमाद को घर जंवाई बनकर रहना पड़ता है।
- अपगिर बापला – लड़का लड़की में प्रेम हो जाने के बाद पंचायत समिति के मानने पर विवाह होता है।
- इतुत बापला – पसंद के लड़के से विवाह की अनुमति नहीं मिलने पर लड़के द्वारा किसी अवसर पर लड़की को सिंदूर लगाकर विवाह किया जाता है। बाद में लड़की के घरवालों द्वारा स्वीकृति दे दी जाती है।
- निर्बोलक बापला – लड़की द्वारा हटपूर्वक पसंद के लड़के के घर रहना तथा बाद में पंचायत के माध्यम से विवाह कराया जाता है।
- बहादुर बापला – लड़का लड़की द्वारा जंगल में भागकर प्रेम विवाह का प्रचलन है।
- राजा–राजी बापला – गांव वालों की सुकृति से प्रेम विवाह का प्रचलन है।
- सांगा बापला – विधवा/तलाकशुदा स्त्री का विधुर/परित्यक्त विवाह का प्रचलन है।
- किरिंग जवाय बापला – लड़की द्वारा शादी से पहले गर्भधारण कर लेना बाद में अपने इच्छुक व्यक्ति से विवाह करना प्रचलन में है।
- किरिंग बापला यह सर्वाधिक प्रचलन में है जिसके अंतर्गत माता-पिता द्वारा मध्यस्थ के माध्यम से विवाह तय करने का रिवाज है।
- संस्थालों में विवाह के वक्त वर पक्ष द्वारा वधू पक्ष को वधू मूल्य दिया जाता है जिसे पोन कहा जाता हैं।
- संथाल समाज के अपने समुदाय में सर्वाधिक कठोर सजा बिटलाहा सजा है। ये सजा तक दी जाती है जब कोई व्यक्ति किसी का का बलात्कार करता है। निषिद्ध यौन संबंधों का दोषी पाया जाता है। या एक प्रकार का सामाजिक बहिष्कार है।
संथाल शादी, झारखण्ड की संथाल जनजातियों में होने वाली विवाह के प्रकार
क्रय विवाह – क्रय विवाह में वर पक्ष के द्वारा वधू के माता-पिता या अभिभावक को धन दिया जाता है। जैसा कि वर्तमान समय में इसका उल्टा है लड़की पक्ष वाले लड़के पक्ष को धन के रूप में दहेज देते हैं। जो प्रमुख जनजातियां हैं – संथाल, उरांव, हो, खड़िया बिरहोर, कवर। संथाल जनजाति में इस विवाह को ‘सादाई बापला’ खड़िया जनजाति में ‘असली विवाह’ तथा बिरहोर जनजाति में सदर बापला कहा जाता है। मुंडा जनजाति में इस विवाह के दौरान दिए जाने वाले वधू मूल्य को ‘कुरी गोनोंग’ कहते हैं
सेवा विवाह – इस विवाह में वर द्वारा विवाह से पहले अपने सास-ससुर की सेवा करनी पड़ती है। जिनमें से प्रमुख जनजातियां शामिल है – संथाल, उरांव, मुंडा, बिरहोर, भूमिज कवर। संथाल जनजाति में इस विवाह को ‘जावांय बापला’ बिरहोर जाति में ‘किरिंग जवाई बापला’ कहा जाता है।
विनिमय विवाह – इस विवाह को गोलट विवाह या अदला-बदली विवाह कहा गया है। इस विवाह में एक परिवार के लड़के तथा लड़की का विवाह दूसरे परिवार की लड़की तथा लड़के के साथ किया जाता है इसका मतलब तो समझ ही गए होंगे।
झारखंड की लगभग सभी जनजातियों में प्रचलित हैं। संथाल जनजाति में इस विवाह को ‘गोलाईटी बापला’ बिरहोर जनजाति में ‘गोलहट बापला’ कहा जाता है।
हट विवाह – इस विवाह में एक लड़की जबरदस्ती अपने होने वाले पति के घर में आकर रहती है। जो इनमें प्रमुख जनजातियां है संथाल, मुंडा, हो और बिरहोर। हो जनजाति में इस विवाह को ‘अनादर विवाह’ तथा बिरहोर जनजाति में ‘बोलो बापला’ कहा जाता है।
हरण विवाह – इस विवाह में किसी लड़के द्वारा एक लड़की को अपहरण करके उससे विवाह किया जाता है। जो इनमें प्रमुख जनजातियां उरांव, मुंडा, हो, खड़िया, बिरहोर सौरिया, पहाड़िया, और भूमिज है। सौरिया पहाड़िया में इस विवाह का प्रचलन बहुत ज्यादा है।
सह-पलायन विवाह – इस विवाह में माता-पिता की अनुमति के बिना एक लड़का और लड़की भाग कर विवाह कर लेते। जो इनमें प्रमुख जनजातियों शामिल है मुंडा खड़िया बिरहोर।
विधवा विवाह – इस विवाह में किसी विधवा लड़की का विवाह किया जाता है। खासकर संथाल, उरांव, मुंडा, बंजारा बिरहोर जनजातियों में होती है।
संथाल के सामाजिक व्यवस्था से संबंधित विभिन्न नामकरण
संथाल जनजाति की सामाजिक व्यवस्था
युवागृह | घोटूल |
विवाह | बापला |
वधु मूल्य | पोन |
गाँव | आतों |
ग्राम प्रधान | माँझी |
उप-ग्राम प्रधान | प्रानीक/प्रामाणिक |
माँझी का सहायक | जोगमाँझी |
गाँव का संदेशवाहक | गुड़ैत/ गोड़ाइत |
- ग्राम प्रधान अर्थात मांझी के पास प्रशासनिक एवं न्यायिक अधिकार होता है।
- गांव में एक मांझी थान होता है जहां पर संथालो की पूरी गांव की पंचायतें बैठती है।
- इस जनजाति में महिलाओं का मांझी थान में जाने पर पाबंदी होती है।
- आषाढ़ के महीनों में संथालो के त्यौहार की शुरुआत होती है।
- बा-परब (सरहुल), करमा, ऐरोक (आषाढ़ महीने में बीज बोते समय) बंधना, हथियाड (सावन महीना में धान की हरियाली आने पर अच्छी फसल हेतु), जापाड, सोहरोई (कार्तिक अमावस्या को पशुओ के सम्मान में) , सकरात ( पुस महीनेमें घर परिवार की कुशलता हेतु), भागसिम ( माघ महीने में गांव के ओहदेदार को आगामी वर्ष हेतु ओहदे की स्वीकृति देने हेतु), बाहा ((फागुन महीने में शुद्ध जल से होने वाली होली) आदि संथालो के प्रमुख त्यौहार है।
- संथाल जनजाति के लोग चित्रकारी के कार्य में बहुत ही निपुण होते हैं अच्छे चित्रकारी करते हैं।
- इस जनजाति में एक विशेष चित्रकला पद्धति प्रचलित है। जिसे कॉम्ब-कट-चित्रकला (Comb-cut-painting) कहा जाता है। इस चित्रकारी में विभिन्न प्रकार के बर्तनों का चित्र बनाया जाता है।
- इस जनजाति में गोदना गोदवाने का प्रचलन प्रचलित है। पुरुषों के बाएं हाथ पर आमतौर पर सिक्का का चित्र का गोदना होता है। तथा बिना सिक्का के चित्र वाले पुरुष के साथ कोई लड़की विवाह करना पसंद नहीं करती है। ऐसा इन लोगों के संविधान में मान्यता है।
- इस जनजाति में माह को ‘बोंगा’ के नाम से जाना जाता है। तथा ‘माग बोंगा’ माह से वर्ष की शुरुआत मानी जाती है।
संथाल जनजाति में आर्थिक व्यवस्था तथा उनकी आय
संथाल जनजाति कौन सा कार्य करती है
- संथाली लोग मूल रूप से खेती है होते हैं या नहीं की खेती का काम करके अपना जीवन यापन करते हैं। जो आज के समय में धीरे-धीरे एक बड़ा कृषक का रूप उभर रही है।
- संथाली लोग चावल से बनने वाले शराब (स्थानीय मदिरा) का सेवन करते हैं। जिसे ‘हड़िया’ या ‘पोचाई’ कहा जाता है।
- संथाली जनजाति के लोग बुनाई के कार्य में अत्यंत निपुण व कुशल होते हैं।
संथालो की धार्मिक व्यवस्था, संथाल संस्कृति
संथाल का धर्म क्या है?
- संथालो का प्रधान देवता सिंगबोंगा या ठाकुर है जो सृष्टि का रचयिता माना जाता है।
- संथालो का दूसरा प्रमुख देवता मरांग बुरु है।
- संथालो का प्रधान ग्राम देवता जाहेर–एरा है, जिसका निवास स्थान जाहेर थान (सखुआ या महुआ के पेड़ों के झुरमुट के बीच स्थित) कहलाता है।
- संथालो के गृह देवता को ओड़ाक बोंगा कहते हैं।
- संथाल के गांव के धार्मिक प्रधान को नायके कहा जाता है।
- जादू टोना के मामले में संथाली स्त्रियां निपुण मानी जाती है।
- संथालो में शव को जलाने व दफनाने दोनों प्रकार की प्रथा चलती है।
संथालों का प्रसिद्ध नेता कौन था?
सिद्धू मुर्मू, कान्हू मुर्मू, चांद और भैरव मुर्मू थे ये चारों सगे भाई थे।
संथाल जनजाति में 12 गोत्र (किली)पाए जाते हैं। इन 12 गोत्रों की उप–गोत्रों (खूट) की कुल संख्या 144 है।