सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) के बारे में बच्चे बच्चे जानते हैं। उनके द्वारा लगाये गए नारे आज भी हर किसी के जुबान पर रहती है। इन्होने नारे ही कुछ ऐसे दिए थे कि हर किसी के जुबां पर उनका लफ्ज आना स्वाभाविक है। तुम मुझे खून दो मैं तुझे आजादी दूंगा, जो किसी को भी उत्साहित कर सकता है। भारत की आजादी में ऐसे ऐसे कई महान स्वतंत्रता सेनानी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। जिसकी वजह से आज हमलोग आजाद है। सुभाष चंद्र बोस जी का भारत की स्वतंत्रता में कुछ अलग ही किरदार है… । कैसे सुभास चंद्र बोस देश के लोगों की तकलीफों को समझा और और देश के लोगों के हक़ के लिए देश की सबसे बड़ी नौकरी ICS (Indian Civil Service) की पद से इस्तीफा देकर लन्दन से अपने देश भारत लौट आये।
देश को पूर्ण स्वतंत्रता दिलाने के लिए सुभाष चंद्र बोस ने अपनी पूरी जिंदगी देश के लिए झोंक दी। और अपनी एक अलग ही छाप छोड़ गए। सुभाष चंद्र बोस पढने में इतने तेज थे की 4 साल की कोर्स सिर्फ 7 से 8 महीने में ही पूरा कर लिया और साथ में टॉप भी किया।
सुभाष चंद्र बोस जी का पूरा नाम | सुभाष चंद्र बोस |
निकनेम | नेताजी |
सुभाष चंद्र बोस का जन्म | 23 जनवरी 1897 |
जन्मस्थान | कटक (उड़ीसा) |
उम्र | 48 साल |
पेशा | ICS (Indian Civil Service) ऑफिसर, राजनीतिज्ञ, मिलिट्री नेता, स्वतंत्रता सेनानी |
सुभाष चंद्र बोस का स्कूल | प्रेसीडेंसी कॉलेज (उडीसा), |
शिक्षा | B.A ( बैचलर ऑफ़ आर्ट्स) |
सुभाष चंद्र बोस के पिता का नाम | जानकीनाथ बोस |
माताजी का नाम | श्रीमती प्रभावती देवी |
सुभाष चंद्र बोस की पत्नी का नाम | एमिली ( Emile Schenkl) से 1937 में हुई |
सुभाष चंद्र बोस की बेटी का नाम | अनीता बोस |
सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु | 18 अगस्त 1945 (ताइपाई, जापान में) |

सुभाष चंद्र बोस का जन्म, परिवार व शिक्षा
सुभाष चंद्र बोस जी का जन्म 23 जनवरी सन् 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था, Subhash Chandra Bose के पिताजी का नाम जानकीनाथ बोस और इनकी माता जी नाम श्रीमती प्रभावती देवी। इनके पिताजी एक बैरिस्टर थे यानि एक बड़े वकील ही थे, सुभाष जी 10वीं की परीक्षा में 2nd डिवीज़न से पास किए थे। उसके बाद सुभाष बॉस 1913 में Presidency Collage में दाखिला ली। लेकिन 1916 में सुभाष चन्द्र जी को किन्ही कारणों से collage से निकाल दिया जाता है। जिसके बारे में मैं आपको आगे बताउंगा तभी आपको बेहतर ढंग से समझ में आएगा।
सुभाष चंद्र बोस को देश के प्रति देशप्रेम की शुरुआत
सुभास चंद्र बोस जब कॉलेज में पढाई कर रहे थे तो उसी दौरान देश में हैजा, मलेरिया जैसी अन्य बहुत सी बिमारियों ने अपना पैर पसार लिया था। लोग बीमार पड़ रहे थे, हर तरफ मौत का मंजर छाया हुआ था, किसी का बेटा तो किसी की बेटी तो किसी के ऊपर से बाप का साया उठ गया। लोग बिलख बिलख रो रहे थे, ये सब सुभाष चंद्र बोस जी से देखी नहीं जा रही थी। उस वक्त ब्रिटिश सरकार भी भारत के लोगो पर कुछ ध्यान नहीं दे रही थी। स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था एकदम खराब थी, कौन मर रहा है? कौन जी रहा है? अंग्रेजो को कोई मतलब ही नहीं था। ब्रिटिश हुकूमत सीधे कह देता हमारे पास कोई दवाई नहीं दवाई खत्म हो गई। लोग मर रह थे लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। और यहाँ पर सुभाष चंद्र बोस लोगो की मदद करना चाहते थे।
और उस समय करीब देश में 2 से ढाई लाख के आसपास लोग मारे गए। देश में एक महामारी सी फ़ैल गई थी, बोस एक समय के लिए घबरा गए थे। लेकिन उन लोगों की मदद की, उसके बाद खुद सुभाष चन्द्र जी कई लाशो को ले जाकर अंतिम संस्कार तक किया। और उसी समय प्रतिज्ञा लिया कि देश की ख़राब परिस्थितियों को ठीक करके ही मानेंगे।
सुभाष चंद्र बोस को कॉलेज से क्यों निकाल दिया गया था?
सुभाष चंद्र बोस भारत को लोगों के लिए उसके सपनो का भारत बनाना चाहते थे। कॉलेज की पढाई चल रही थी साथ में लोगो की मदद भी कर रहे थे। एक तरह से सुभाष चन्द्र जी समाज सेवा कल्याण का काम भी कर रहे थे। और साथ में सुभाष चन्द्र बोस एक अच्छे लीडर के रूप में धीरे धीरे उभर रहे थे। और एक समय ऐसा आता है कि सुभाष चंद्र बोस को Presidency College के स्टूडेंट कौंसिल के हेड लीडर बना दिया जाता है। उस वक्त कॉलेज में अधिकांश टीचर और प्रोफेसर अंग्रेज ही हुआ करते थे। जो भारतीय छात्रों को बेवजह परेशान किया करते थे। कभी कभी तो छात्रो को पीट भी देते थे, जब ये बात स्टूडेंट कौंसिल के लीडर सुभाष चन्द्र बोस को पता चली तो उन्होंने तुरंत एक्शन लिया।
सुभाष चन्द्र बोस ये मुद्दा लेकर कॉलेज के प्रधानाध्यापक के पास पहुँच गए, और कहा ये अंग्रेज प्रोफ़ेसर बेवजह सिर्फ भारतीय छात्रों को ही परेशान और पिट क्यों रहे हैं ? सुभाष चन्द्र बोस ने कहा की प्रोफ़ेसर से कहो की वो छात्रो से माफ़ी मांगे तो प्रिंसिपल ने कहा की क्यों माफ़ी मंगवा रहे हो? डिपार्टमेंट का हेड है ये चीज यहीं रफा दफा करो ये सब होता रहता है। बोस ने कहा अगर उसने माफ़ी नहीं मांगी मैं स्ट्राइक करूँगा।प्रोफेसर ने माफी नहीं मांगी उसके बाद क्या होना? था सुभाष चन्द्र बोस ने स्ट्राइक कर दी। जब सुभाष चंद्र बोस ने स्ट्राइक की तो ये मुद्दा खबरों में आ गई। अखबारों तक में आ गई, उसके बाद जब ये मुद्दा धीरे धीरे बड़ा हुआ ये देख कॉलेज के अंग्रेज प्रोफ़ेसर ने माफ़ी मांगना स्वीकार किया।
लेकिन कुछ समय के बाद फिर वही नौटंकी फिर से प्रोफेसर छात्रों को परेशान करने लगे पीटने लगे। लेकिन अबकी बाजी उल्टी पड़ गई, और छात्रो ने ही मिलकर अंग्रेज प्रोफ़ेसर को कूट दिया। जब ये बात प्रिंसिपल के पास पहुंची तो प्रिंसिपल ने कहा तुम लोगो ने पीठ पीछे हमला किया है। तो यहाँ सुभाष चंद्र बोस ने कहा नहीं हमने तो सामने से वॉर किया है, हम कोई कायर नहीं है। ना ही किसी से बेवजह लड़ते है और न ही पिटते हैं। उसके बाद इस मुद्दे को लेकर एक कमीशन बैठाई गई, कमीशन ने कहा कि चलो एक बार तुम लोगो को मौका देता हूं। माफ़ी मांग कर इस मुद्दे को यहीं खत्म करो। लेकिन सुभाष चंद्र बोस ने यहाँ पर माफी मांगने से सीधा इंकार कर दिया। और कहा कि गलत के आगे कभी हम झुकते नहीं है और सच से मुँह कभी मोड़ते नहीं है।
और इस घटना के बाद से सुभाष चंद्र बोस के जीवन में बदलाव आता है। और धीरे अपने पोलिटिकल करियर को और बेहतर बनाना शुरू करता हैं। नेताजी का मानना था की सबसे बड़ा अपराध, अपराध नहीं है, अपराध से बड़ा अपराध अन्याय को सहने वाला है और गलत के साथ समझौता करने वाला है। सुभाष चंद्र बोस के पिताजी चूँकि एक वकील थे, तो उन्होंने सुभाष चन्द्र जी को वापस बुलाया और कहा कि जो हो गया सो गया अब तुम लंदन जाकर ICS (Indian Civil Service) की तैयारी करो उस समय का सबसे बड़े रैंक की Civil नौकरी थी।
सुभाष चंद्र बोस जब ICS करने लंदन गए
सुभाष चंद्र बोस अपने पिताजी की बात मानकर ICS की पढाई करने 4 साल के लिए लंदन चले गए। सुभाष चंद्र बोस इतने बुद्धिमान इंसान थे। कि 4 साल का कोर्स की पढ़ाई इन्होंने सिर्फ 7 से 8 महीने में ही पूरी कर ली। और साथ में ही civil service में सुभाष चंद्र बोस को 4th रैंक भी मिला। उसके बाद इन्होने जॉब तो की लेकिन इन्हें कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। और सोचा कि अंग्रेज मेरे देश को लूट रहा है। अन्दर ही अन्दर देश को खोखला कर रहा है और मैं उसी के साथ में रहकर मौज करूँ, ये जायज नहीं है, और 1921 में ICS की नौकरी छोड़ दी।
सुभाष चंद्र बोस ने ICS की नौकरी क्यों छोड़ दी?
जब सुभाष चंद्र बोस ने ICS की सबसे बड़ी नौकरी सिर्फ अपने देश के लोगो की सेवा के लिए छोड़ी थी। तो ये खबर पूरे देश में जंगल की आग की तरह फैल चुकी थी। हर अखबारो में बस सुभाष चंद्र बोस की ही चर्चे थे, और उसके बाद अंग्रेज भी बड़े हैरान हुए अरे भाई ये पहला इंसान है जिसने ICS की नौकरी को लात मार दिया। किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था, पहले कभी भी किसी ने नहीं छोड़ी थी। इनके पिता इनके बड़े भाई ने बहुत समझाया लेकिन सुभाष चंद्र बोस नहीं माने क्योंकि इनके दिल में देशप्रेम था। सुभाष चंद्र बोस ने कहा कि मेरा जन्म देश को लूटने के लिए नहीं बल्कि देश के लिए कुछ करने के लिए हुआ है। तो लोग हैरान हो गए, लोग उनसे करीब से मिलना चाहते थे उन्हें सुनना चाहते थे उनके विचारों को जानना चाहते थे।
की अखिर वो इंसान कौन है, जो हमारे जीवन को बेहतर बनाने के लिए अपने ऐश्वा आराम की जिंदगी को ठोकर मार दिया। और देश के लोगों की सेवा करने आ रहे हैं। जब सुभाष चंद्र बोस पानी के जहाज से मुंबई पहुंचे तो उनसे मिलने बंदरगाह पर हज़ारों की भीड़ जमा हो चुकी थी। सिर्फ सुभाष चंद्र बोस मिलने के लिए देखने के लिए सुनने के लिए। आखिर कौन है ये आदमी जिसने ICS की नौकरी छोड़ दी, मुंबई में हजारों लोगों की भीड़ देखकर सुभास चंद्र बोस को एक बात समझ में आ गई कि एक छोटी सी ICS की नौकरी छोड़ने पर, जब इतने लोगों ने विश्वाश किया अगर मैंने मेहनत की तो पूरे देश को मैं इकठ्ठा कर सकता हूँ। 1928 के दौरान कांग्रेस एक मजबूत संगठन बन चुकी थी।
सुभास चंद्र बोस और महात्मा गाँधी के विचार मिलते नहीं थे, दोनों के सोच अलग अलग थे। सुभास चंद्र बोस गाँधी जी को अपना गुरु मानते थे, उन दिनों भारत के वायसराय लार्ड इरविन हुआ करते थे।
वायसराय लार्ड इरविन का Dominion Status क्या था?
भारत के वायसराय लार्ड इरविन उस वक्त गाँधी जी को बहला फुसला कर कनवेंस कर लिया था। लार्ड इरविन ने कहा कि मैं आपको अर्ध स्वतंत्र/भारत अधीराज्य (Dominion Status) दे देता हूँ। ये भी एक आजादी है आप आजाद हो जाओगे, अपनी सरकार बना सकते हो अपने इलेक्शन कर सकते हो। और इस प्रस्ताव को कलकाता अधिवेशन में प्रस्तुत किया था और कहा की आप अपना Dominion Status ले लो।लेकिन यहाँ सुभास चंद्र बोस को ये बात बिल्कुल भी पसंद नहीं आई और कहा की हमलोगों की Dominion Status नही चाहिए हमलोगों को पूर्ण स्वतंत्रता चाहिए। पूर्ण स्वतंत्रता के लिए सुभास चंद्र बोस ने बहुत झगड़ा किया बहस हुई।
सुभास चंद्र बोस ने गाँधी जी को Dominion Status के बारे में अच्छे से समझाया की आजादी मिल तो जाएगी। लेकिन बहुत सी चीजों के लिए हमे ब्रिटिश सरकार से ही परमिशन लेनी पड़ेगी। पूर्ण स्वतंत्रता का मतलब है आप कुछ भी लीगल तरीके से अपने देश में कर सकते हैं। सरकार अगर भारतीय चलाएगी और policy ब्रिटिश हुकूमत सरकार देगी। तो फिर Dominion Status का क्या फायदा? सरकार चलाने और policy बनाने का अधिकार दोनों भारतीय के पास होना चाहिए। उस तरह का आजादी चाहिए हमलोगों को, Dominion Status का एक ही मतलब है की आप खुद से कोई भी Decisions नहीं ले सकते। डिफेंस पे, कम्युनिकेशन पे, फॉरेन सबंध पे और वहीं अगर पूर्ण स्वतंत्रता मिल जाएगी तो हम सारे फैसले खुद ले सकते है।
Dominion Status में भारत खुद से सैन्य शक्ति पर काम नहीं कर सकता है, भारत किसी दुसरे देश के साथ व्यापारिक संबंध बना रहा है। तो वो नहीं बना सकता है। उसके लिए ब्रिटिश असेंबली से परमिशन लेनी पड़ेगी Dominion Status हमे पूर्ण स्वतंत्रता नहीं दे सकती है।

सुभास चंद्र बोस सफा कह चुके थे की हमें पूर्ण स्वतंत्रता चाहिए। जब भारत अपनी मर्जी से खुद से किसी तरह का कानून ही नहीं बना सकता है। और ब्रिटिश सरकार जब चाहे किसी को चाहे निकाल सकता है जेल में डाल सकता है। तो फिर आजादी लेकर हम भला क्या करेंगे हमे तो बस पूर्ण स्वतंत्रता चाहिए। यहाँ पर सुभास चंद्र बोस ने गाँधी और नेहरु दोनों को को कनवेंस कर लिया और नतीजा देश में पहली बार 1930 में पूर्ण स्वतंत्रता के लिए लाहौर अधिवेशन में झंडा फरा दिया। और कहा हमलोगों को पूर्ण आजदी चाहिए तो चाहिए लोग भी नेता जी से सहमत थे। धीरे धीरे सुभास चंद्र बोस की लोकप्रियता बढती जा रही थी ।जिससे गाँधी जी को अच्छा नहीं लग रहा था, नाखुश थे। क्योंकि सुभास चंद्र बोस थोड़े गर्म दल वाले बन गए थे अपना काम हिंसक तरीके से करना चाहते थे।
और गाँधी जी नरम दल वाले थे। गाँधी जी अहिंसा तरीके से देश को आजाद करना चाहते थे, किसी भी तरह का बात विवाद लड़ाई झगड़ा नहीं करना चाहते थे। सुभास चंद्र बोस का कहना था कि बाकि दुनिया जब अपने देश के लिए युद्ध कर रहे हैं तो हमें भी अपने देश के लिए अब लड़ना ही चाहिए।
सुभास चंद्र बोस से जब गाँधी जी ने इस्तीफा माँगा
द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होना वाला था और इस समय अंग्रेज फ़ौज भी कमजोर हो जाएगी। क्यों न उस समय अंग्रेजों पर हमला कर किया जाये। यहाँ महात्मा गाँधी जी ने कहा नहीं मुझे आपका ये तरीका बिलकूल भी पसंद नहीं है। गांधी जी ने कहा क्यों न इसके लिए इलेक्शन कराया जाये। तब अध्यक्ष पद (Presidency) के लिए इलेक्शन कराया जाता है। और यहाँ गाँधी जी नें क्या किया? सुभास चंद्र बोस चुनाव में न जीते इसके लिए गाँधी जी ने कांग्रेस से एक अपना कैंडिडेट खड़ा कर दिया सीता रमैया को जो साउथ साइड का था। और देश के सभी कांग्रेस वोर्किंग कमिटी का जो लीडर था। सब से कह दिया कि सीता रमैया मेरा आदमी थोड़ा उसका प्रोमोशन पे ध्यान देना। और कहा की अगर सीता रमैया जीता तो समझो कि मैं जीता, और सीता रमैया के लिए खुद कैम्पन शुरू किया।
(इलेक्शन 1939 ) और इधर सुभास चंद्र बोस जीत की कामना लिए गाँधी जी का आशीर्वाद भी लिया। जब चुनाव का नतीजा आया तो सब हैरान रह गए सीता रमैया को 1375 सीटें मिले जबकि वहीं सुभास चंद्र बोस को 1580 सीटें मिली। सुभास चंद्र बोस प्रेसीडेंसी का चुनाव जीत चुके थे।सुभास चंद्र बोस का जीतने का कारण था उनकी लोगो के बीच अच्छी खासी लोकप्रियता थी। और लोगो के लिए सुभास चंद्र बोस ने बहुत कुछ किया भी था। लोग गाँधी जी से ज्यादा अब सुभास चंद्र बोस को पसंद करने लगे थे। गाँधी जी इस चीज से बेहद ही नाखुस थे। सीता रमैया का हार मतलब की मेरी हार वो नहीं चाहते थे कि सुभास चंद्र बोस ये चुनाव जीते। चूँकि बोस से नाराजगी नहीं थी दोनों के विचार अलग अलग थे बाकि वैसा कुछ भी नही था गाँधी जी भी चाहते थे की वो रहे लेकिन मेरे मुताबिक मेरे विचार धारा से चले।
चूँकि अब सुभास चंद्र बोस चुनाव जीत चुके थे तो अब तो उसके मुताबिक चलना चाहिए था। लेकिन यहाँ गाँधी जी ने कहा कि हमारा दुश्मन मुसीबत में हैं। अंग्रेज द्वितीय विश्व युद्ध करने जा रहा है अभी उस पर हमला नहीं करना चाहिए, सुभास चंद्र बोस बोले ये क्या बात हुई। जब पूरी दुनिया अपने देश के लिए लड़ रही तो आप क्यों पीछे क्यों हट रहे हैं। यही तो मौका है हम अपने देश को अंग्रेजो से मुक्त करा सकते हैं। लेकिन यहाँ गाँधी जी बोस पर दबाव बनाता है। और बड़े प्यार से कहता है कि तुम अपने पद से इस्तीफा दे दो। भले दोनों के विचार मेल नहीं खाते थे, आपस में बनती नहीं थी। लेकिन बोस गाँधी जी को अपना आदर्श मानते थे। गाँधी जी की बात को बोस टाल भी नहीं सकते थे अपने गुरु जी की बात मानकर त्यागपत्र दे दिया।
उसके बाद सुभास चंद्र बोस कहा की भले हमारे रास्ते अलग अलग है, लेकिन मंजिल एक ही है। सुभास चंद्र बोस को कोई पार्टी सपोर्ट नहीं कर रही थी और उस समय उतनी पार्टी भी नही थी।
सुभास चंद्र बोस को जब जेल हई
सुभास चंद्र बोस को करीब 12 बार जेल हुई जिसके बाद अंग्रेज सुभास चंद्र बोस को बहुत तंग किया करते थे। जब बोस जेल से बाहर आये तो उनके पीछे अंग्रेज CID लगा दी यहाँ तक की उसके घर के बाहर भी CID लगा दी। हर पल पल की जानकारी लेते कि सुभास चंद्र बोस क्या क्या करते है? कहीं हमारे खिलाफ कोई साजिश तो नहीं करे रहे हैं। सुभास चंद्र बोस ने कहा अब मेरी यहाँ नहीं चलने वाली है, मेरी यहाँ कोई सुनता ही नही खासकर के जिसको सुनना चाहिए। मेरी दाल अब देश में रहकर नहीं गल सकती थी।
सुभास चंद्र बोस हिटलर से क्यों मिलने गए?
सुभास चंद्र बोस ने कांग्रेस से कहा जैसा आप कर रहे हैं आप करते रहिये, आप गाँधी को सपोर्ट करते रहिये उसके तरीके से। सुभास चंद्र बोस शुरू से ही बहुत बुद्धिमान थे कुछ बड़ा प्लान करने के लिए सोचा क्यों न देश से ही बाहर चला जाये। बाहर देश घूरकर ग्लोबल Alliance Build करूँ। उस समय द्वितीय विश्व युद्ध में दो तरह की लड़ाइयाँ चल रही एक थी। Axis Alliance और दूसरी तरफ Allied Power, Axis Alliance में जर्मनी, इटली और जापान थे। प्रथम विश्व युद्ध में पहले ही हार चुके थे, द्वितीय विश्व युद्ध में फिर से एक साथ आ गए। जबकि वहीं Allied Power में USA (यूनाइटेड स्टेट अमेरिका), इंग्लैंड, फ़्रांस, पोलैंड, और सोवियत संघ ये एक साथ थे। Allied Power प्रथम विश्व युद्ध जीत चुके थे और फिर से एक साथ सब युद्ध के लिए तैयार था।
सुभास चंद्र बोस ने सोचा द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गई है, और भारत के विरुद्ध है ब्रिटिश, और ब्रिटिश है Allied Power में, तो यहाँ पर क्यों न Axis Alliance में किसी से मदद ली जाये। ये सही मौका है दुश्मन उलझा हुआ है, कमजोर है मुझे बाहर निकल जाना चाहिए बैकग्राउंड सपोर्ट के लिए, दुश्मन के दुश्मन को दोस्त बनाने के लिए।
सुभास चंद्र बोस धनबाद होते हुए कहाँ जा रहे थे? सुभास चंद्र बोस जब हिटलर से मिला
अब देश से बाहर कैसा निकला जाये गोरो ने सालो मेरे पीछे CID लगा रखा है, उसके लिए सुभास चंद्र बोस ने प्लान बनाया। इनके एक घनिष्ट मित्र थे मियां अकबर शाह जो पेशावर रहते थे। उनको टेलीग्राम भेजा और पेशवर से कोलकाता बुलाया। आज पेशावर पाकिस्तान में पड़ता हैं, और मियां अकबर शाह से कहा तुम मुझको भाई किसी तरह काबुल ले जाओ। और मैं वहां से किसी तरह काबुल के रास्ते रूस निकल जाऊंगा। उनके अपने भतीजे शिशिर थे उनकी मदद से एक गाड़ी जुगाड़ा किया। CID से किसी तरह बचते बचाते खुद को गाड़ी के पिछली सिट के छिपा लिया। कोलकाता से उन्होंने सुभास चंद्र बोस को धनबाद छोड़ा फिर धनबाद से काबुल के लिए निकल गए, फिर काबुल से मास्को जाना था। और किसी तरह बोस हिटलर से मिलने के लिए जर्मनी पहुँच गए।
सुभास चंद्र बोस ने हिटलर से मिलने के लिए अपॉइंटमेंट के लिए बहुत कोशिश की बहुत मुश्किल से इन्हें अपॉइंटमेंट मिला। और जब इन्तेजार में वहां बैठे थे तो हिटलर आया और बोला हेलो मैं हिटलर हूँ और हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढाया तो बोस ने कहा मेरा नाम सुभास चंद्र बोस है मैं भारत से आया हूँ और मैं आपसे नहीं हिटलर से मिलने आया हूँ। हिटलर हैरान हो गए और कहा कि मैं ही तो हिटलर हूँ। जी नहीं आप हिटलर जी को भेजिए मैं उनसे ही मिलने के लिए आया हूँ। फिर वो वापस चले गए और अन्दर से फिर से एक हुबहू हिटलर के ही जैसा आदमी आया और कहा हेलो मैं हिटलर हूँ। फिर सुभास चंद्र बोस खड़े हो गए और कहा की नमस्कार मैं सुभास चंद्र बोस हूँ और भारत से आया हूँ। और मैं आपसे नहीं हिटलर से मिलने आया हूँ।
उसके बाद सब हैरान रहा गए ये क्या चक्कर है भाई हिटलर तो आये हैं मिलने के लिए, सुभास चंद्र बोस ने बात करने से इंकार कर दिया। सुभास चंद्र बोस ने कहा मैं हिटलर से मिलने आया हूँ इस तरह 3 से 4 हुबहू हिटलर के जैसे ही नकली हिटलर आये और सब को सुभास चंद्र बोस ने पहचान लिया की ये असली नहीं है। तो यहाँ पर हिटलर ने अपने जैसे दिखने वाले 4 पांच लोग रखे थे उसे अपनी जान का बहुत खतरा रहता था। और जब असली हिटलर को ये बात पता चली तो उसका सर चकरा गया। और उसके बाद असली हिटलर बाहर आये उनके लिए ये पहली बार हुआ कि पूरे world में कि किसी ने हिटलर के डुप्लीकेट/हमशकल को बड़े आसानी से पहचान लिया। असली हिटलर आकर कुछ दुरी पर खड़ा हो गए और देखने लगे और सोचने लगे ये कि ये क्या चक्कर है ये मेरे डुप्लीकेट को पहचानता कैसे है?
उसके बाद सुभास चंद्र बोस खड़ा हुए तो हिटलर ने कहा बताइए क्या बात है? क्यों मिलना चाहते हैं? और तभी सुभास चंद्र बोस मुस्कुरा कर आगे बढे और कहाँ मैं सुभास चंद्र बोस हूँ और मैं भारत से आया हूँ मैं आपको बहुत धन्यवाद करना करना चाहता हूँ। आपने मुझसे मिलने का अवसर दिया। उसके बाद हिटलर फिर हैरान हो गया और कहा की अब मुझे ये कैसे पहचान लिया? और उसके बाद हिटलर ने कहा भाई पहले ये बता की मुझे तुमने पहचाना कैसे? आज तक जिसके डुप्लीकेट को पूरी दुनिया नहीं पहचान सकी ये जो मेरे डुप्लीकेट है यही पूरी दुनिया भर में घूमकर आ जाते हैं। और तो और सारा काम भी कर आते हैं और तुमने मेरे डुप्लीकेट को कैसे पहचान लिया?
तब सुभास चंद्र बोस ने कहा की मैं आपसे मदद मांगने के लिए आया हूँ। और आपका स्वाभाव थोड़ा गर्वात्मक होना चाहिए था थोड़ा गर्व होना चाहिए। उसके चेहरे पर वो गर्व नहीं दिख रहा था। वो सही से कॉपी नहीं कर पा रहा था, आप पहले आकर हाथ आगे बढ़ा देते थे और कहते थे मैं हिटलर हूँ बताइए क्या काम है? तो मैं इसी से समझ जाता था। हिटलर ने कहा की इससे पहले आज तक मैंने इतना बुद्धिमान (intelligent) इन्सान नहीं देखा और हिटलर सुभास चंद्र बोस के बुद्धिमानी से बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ था….