Rahat ji ki jabardast shayari | राहत इन्दौरी जी की शायरी हिंदी में

Rahat Indauri ji ki zindagi ki behtarin shayari

Rahat indauri ji ki jabardast shayari

तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो 
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो 

फूलों की दुकानें खोलो, ख़ुशबू का व्यापार करो
इश्क़ ख़ता है तो ये ख़ता एक बार नहीं सौ बार करो

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खड़े है मुझको खरीदार देखने के लिए मै 
घर से निकला था बाज़ार देखने के लिए 

हज़ार बार हजारो की सम्त देखते है 
तरस गए तुझे एक बार देखने के लिए 

कतार में कई नाबीना – ए – लोग शामिल है 
अमीरे – शहर का दरबार देखने के लिए 

जगाए रखता हूँ सूरज को अपनी पलकों पर 
ज़मीं को ख़्वाब से बेदार देखने के लिए 

अजीब शख्स है लेता है जुगनुओ से 
खिराज़ शबो को अपने चमकदार देखने के लिए 

हर एक हर्फ़ से चिंगारियाँ निकलती है 
कलेजा चाहिए अखबार देखने के लिए 

सम्त = तरफ, नाबीना = अँधा/नेत्रहीन, बेदार = जगा हुआ, खीराज़ = किराया/माल गुजारी

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अपना आवारा सर झुकाने को 
तेरी देहलीज देख लेता हूँ 

और फिर कुछ दिखाई दे न दे 
काम की चीज देख लेता हूँ

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नदी ने धुप से क्या कह दिया रवानी में 
उजाले पाँव पटकने लगे है पानी में 

इतनी सारी शबो का हिसाब कौन रखे 
बड़े शबाब कमाए गए जवानी में

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हम अपने आंसुओ को चुन रहे है 
सितारे किस लिए जल भुन रहे है 

कभी उसका तबस्सुम छु गया था 
उजाले आज तक सर धुन रहे हैं 

अभी मत छेडिये जिक्र ए मोहब्बत 
जलालुदीन अकबर सुन रहे है

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जवानियो में जवानी को धुल करते है 
जो लोग भूल नहीं करते भूल करते है 

अगर अनारकली है शबब बगावत का 
सलीम हम तेरी शर्ते काबुल करते है

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मेरी साँसों समाया भी बहुत लगता है
और वाही शख्स पराया भी बहुत लगता है

और उससे मिलाने की तम्मना भी बहुत है 
लेकिन आने जाने में किराया भी बहुत लगता है

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जिहलतो के अँधेरे मिटा के चल आया 
आज सारी किताबे जला के लौट आया

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शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं है हम 
आँधी से कोई कह दे के औकात में रहे

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ज़ुबाँ तो खोल नज़र तो मिला जवाब तो दे 
मैं कितनी बार लूटा हूँ मुझे हिसाब तो दे

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लोग हर मोड़ पे रूक रूक के संभलते क्यूँ है
इतना डरते है तो घर से निकलते क्यूँ है

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आँखों में पानी रखो होठों पे चिंगारी रखो 
जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

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एक ही नदी के है यह दो किनारे 
दोस्तो दोस्ताना ज़िन्दगी से, मौत से यारी रखो

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फूक़ डालूंगा मैं किसी रोज़ दिल की दुनिया 
ये तेरा ख़त तो नहीं है की जला भी न सकूं

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प्यास तो अपनी सात समन्दर जैसी थी
ना हक हमने बारिश का अहसान लिया

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नये किरदार आते जा रहे है 
मगर नाटक पुराना चल रहा है

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उस की याद आई है, साँसों ज़रा आहिस्ता चलो 
धड़कनो से भी इबादत में ख़लल पड़ता है

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मैं वो दरिया हूँ की हर बूंद भँवर है जिसकी
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके

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दो ग़ज सही ये मेरी मिल्कियत तो है 
ऐ मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया

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हर एक हर्फ का अन्दाज बदल रखा है 
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रखा है 
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया 
मेरे कमरे में भी एक ताजमहल रखा है

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ना हम सफ़र ना किसी हम नशीं से निकलेगा 
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा

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बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर 
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाय 

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रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है 
चाँद पागल है अंन्धेरे में निकल पड़ता है

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छू गया जब कभी ख़याल तेरा 
दिल मेरा देर तक धड़कता रहा

कल तेरा जिक्र छिड़ गया था 
घर में और घर देर तक महकता रहा

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कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं,
कभी धुए की तरह परबतों से उड़ते हैं

ये कैंचियाँ हमें उड़ने से ख़ाक रोकेंगी
के हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं
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Anshuman Choudhary

I live in Jharia area of ​​Dhanbad, I have studied till Intermediate only after that due to bad financial condition of home I started working, and today I work and write post together in free time............