Raahat Indauri best shayari | राहत ईंदौरी जी की 14 बेहतरीन शायरी

Rahat indori motivational shayari  in hindi

ईद मिलते सईद कर जाते

चाहे उसके बाद हम मर जाते 

घर तो किस्मत में अपने था ही नही

घर में रहने को किसके घर जाते 

ख़ैर से खुल गए थे मयखाने

शाम को वरना हम किधर जाते

देख लेते अगर ज़मीन का हाल

आसमाँ टूट कर बिखर जाते

चल दिये कैसे अच्छे अच्छे लोग

ज़िन्दा होते तो हम भी मर जाते 

मास्क पे लिख के मुबारकबाद

ईद को यादकर कर जाते

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आँखों में पानी रखों, होंठो पे चिंगारी रखो

जिंदा रहना है तो तरकीबे बहुत सारी रखो

राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें

रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो

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जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए

काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए

दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया

फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए

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गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या क्या हैं

में आ गया हु बता इंतज़ाम क्या क्या हैं

फ़क़ीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या क्या हैं

तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या हैं

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जवान आँखों के जुगनू चमक रहे होंगे

अब अपने गाँव में अमरुद पक रहे होंगे

भुलादे मुझको मगर, मेरी उंगलियों के निशान

तेरे बदन पे अभी तक चमक रहे होंगे 

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इश्क ने गूथें थे जो गजरे नुकीले हो गए

तेरे हाथों में तो ये कंगन भी ढीले हो गए

फूल बेचारे अकेले रह गए है शाख पर

गाँव की सब तितलियों के हाथ पीले हो गए

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रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं

चाँद पागल हैं अन्धेरें में निकल पड़ता हैं

उसकी याद आई हैं सांसों, जरा धीरे चलो

धडकनों से भी इबादत में खलल पड़ता हैं

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जुबा तो खोल, नज़र तो मिला,जवाब तो दे

में कितनी बार लुटा हु, मुझे हिसाब तो दे

तेरे बदन की लिखावट में हैं उतार चढाव

मैं तुझको कैसे पढूंगा,मुझे किताब तो दे

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तुफानो से आँख मिलाओ,सैलाबों पे वार करो

मल्लाहो का चक्कर छोड़ो, तैर कर दरिया पार करो

फूलो की दुकाने खोलो,खुशबु का व्यापार करो

इश्क खता हैं, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो

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उसकी कत्थई आंखों में हैं जंतर मंतर सब

चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां,ख़ंजर वंजर सब

जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं

चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब

मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है

फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब

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साँसों की सीढियों से उतर आई जिंदगी

बुझते हुए दिए की तरह, जल रहे हैं हम

उम्रों की धुप, जिस्म का दरिया सुखा गयी

हैं हम भी आफताब, मगर ढल रहे हैं हम

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इश्क में पीट के आने के लिए काफी हूँ

मैं निहत्था ही ज़माने के लिए काफी हूँ

हर हकीकत को मेरी, खाक समझने वाले

मैं तेरी नींद उड़ाने के लिए काफी हूँ

एक अख़बार हूँ, औकात ही क्या मेरी

मगर शहर में आग लगाने के लिए काफी हूँ

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इस दुनिया ने मेरी वफ़ा का कितना ऊँचा मोल दिया

बातों के तेजाब में, मेरे मन का अमृत घोल दिया

जब भी कोई इनाम मिला हैं, मेरा नाम तक भूल गए

जब भी कोई इलज़ाम लगा हैं, मुझ पर लाकर ढोल दिया

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फैसला जो कुछ भी हो, हमें मंजूर होना चाहिए

जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए

भूलना भी हैं, जरुरी याद रखने के लिए

पास रहना है, तो थोडा दूर होना चाहिए

 

 

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Dipu Sahani

I live in Jharia area of ​​Dhanbad, I have studied till Intermediate only after that due to bad financial condition of home I started working, and today I work and write post together in free time............