Jharkhand ke vanya jiv abhyaranya – झारखंड की वन्य जीव अभ्यारण्य और उद्यान

Animal forest of Jharkhand झारखंड की वन्य जीव और अभ्यारण्य

झारखंड की वन्य जीव अभ्यारण्य और उद्यान  जो बहुत ही सुन्दर है झारखंड
में देखा जाए तो यह एक पठारी क्षेत्र है और जंगलों हरा भरा राज्य है वन क्षेत्र देखा जाए तो करीब करीब 32 प्रतिशत वन क्षेत्र है। और इसको लेकर वन क्षेत्र को बढ़ाने के बहुत सारे योजनाएं भी चलायी जा रही है।


और जीव जंतु भी बहुत है, जिसकी सुरक्षा के लिए सरकारें ने बहुत सारी उद्यान और अभयारण्य बनाए हैं। 
जिसका सारा देख रेख सरकार के अधीनस्थ में आता है जिसमें से कुछ नीचे दी गई है

दलमा वन्य प्राणी अभयारण्य – 

दलमा अभयारण्य जो है वो पूर्वी सिंहभूम जिले के मुख्यालय जमशेदपुर से करीब करीब 16 से 21 किमी की दूरी पर है यह जो है लघभग 190 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली हुई है। दलमा वन्य जीव अभ्यारण्य की स्थापना 1978 में की गई। यहाँ कई जंगली जानवरें है। हाथियों की संख्या करीब करीब तीन सौ से अधिक है 

भगवान बिरसा जैविक उद्यान – 

भगवान बिरसा जैविक उद्यान जो कि रांची जिले से 17 किलोमीटर की दूरी पर है जो उत्तर में रांची पटना के रास्तें के किनारे सपही नदी के तट ओरमांझी प्रखंड के चकला गांव में झारखंड के दूसरे वन्य प्राणी उद्यान का उद्घाटन किया गया था। 


यह मुख्य मार्ग के दोनों ओर से फैले हुए हैं 104 हेक्टेयर भू-भाग में से 83 हेक्टेयर भूमि में वन्य प्राणी उद्यान है, जब किसी की सेक्टर भू भाग पर वनस्पति उद्यान बनाया गया है। यहां भेड़िया, गौर तथा जंगली कुत्ते के अध्ययन प्रजनन संस्थान हैं।

जवाहरलाल नेहरू जैविक उधान

बोकारो स्टील सिटी के जवाहरलाल नेहरू जैविक उद्यान 122 एकड़ में फैला हुआ है, तथा इसके विस्तार के लिए और 100 एकड़ भूमि के अधिग्रहण के प्रयास हो रही है। अब तक पूरे उधान क्षेत्र में 25 हजार से ज्यादा वृक्ष लगाए जा चुके है जिनमें से साल, शीशम, और सागौन प्रमुख पेड़ है।


14 जनवरी 1990 को एम. रामा. कृष्ण ने इसे जैविक उद्यान का उद्घाटन किया था, यहां देश-विदेश से मंगा कर तरह तरह के पशु पक्षियों को सुविधा पूर्ण वातावरण में रखा गया है।

सृष्टि उधान – 

दुमका जिले से 4 किलोमीटर दूर कुरुआ की तीन पहाड़ियों को सृष्टि उधान का नाम दिया गया है। जो 80 एकड़ में फैली हुई है, इस उद्यान में एक पहाड़ी पर ढेर सारे पौधों की किस्में है और दूसरी पर कैक्टस की किस्में, जबकि तीसरी पहाड़ी पर जड़ी बूटी की पौधे भी हैं।


पालकोट वन्य प्राणी अभयारण्य – 

गुमला में वन्य प्राणी अभ्यारण की स्थापना की घोषणा 1990 में हुई थी। 183 वर्ग किलोमीटर की क्षेत्र में फैली हुई है ।अभयारण्य के लिए जमीन अधिग्रहण की कार्रवाही की शुरुआत दिसंबर, 1992 को की गई थी। गुमला वन प्रमण्डल के विभिन्न क्षेत्र में पालकोट वन्य प्राणी आश्रयणी के नाम से अधिसूचित किया गया है।


झारखण्ड  जीवाश्म उद्यान

साहेबगंज जिले के 37 ऐसे गांव है जहां मुख्यरूप से  संथाल और पहाड़ी आदिवासी निवास करते हैं, जीवाश्म पाए जाते हैं। इनका यदि उचित संरक्षण और विकास कर आवश्यक सुविधाओं का विकास किया जा सके तो पर्यटकों और जीवाश्म का अध्ययन करने वालों के लिए यह एक अनमोल तोहफा साबित होगा। मंदार नेचर क्लब मंडोर में एक जीवाश्म विधान का विकास कर रहा है।


टाटास्टील जूलॉजिकल पार्क – 

यह जमशेदपुर में है। इसका उद्घाटन 3 मार्च, 1994 को हुआ।

मछलीघर – 

रांची का मछलीघर 1994 में बनाया गया है। जिसका डिजाइन भोपाल के मछली घर से ली गई है।


महुआडाड़ भेड़िया अभयारण्य

यह अभयारण्य डाल्टनगंज से लगभग 94 किलोमीटर दूर महुआडाड़ की छेछारी घाटी क्षेत्र में आती है है। इसकी स्थापना 1976 वन संरक्षक श्री एम.पी. शाही ने की थी। यह 63.26 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली हुई है।


बेताल नेशनल पार्क

बेताल पार्क एक राष्ट्रीय पार्क है, जो  कि झारखंड के पलामू जिले में आती है। बेताल नेशनल पार्क में सांभर हिरणों का समूह देखा जा सकता है।


पक्षी विहार

तिलैया पक्षी विहार तिलैया डैम बरही से 18 किलोमीटर दूर, राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 2,13 और 33 मेन सड़कों छूती हुई जाती है । यह कोडरमा से 19 किलोमीटर और हजारीबाग से 56 किलोमीटर की दूरी पर है। इस डेम को नदी के ऊपर बनाया गया है, जिसकी ऊंचाई 99 फीट और लंबाई 1200 फीट है।


तेनुघाट पक्षी विहार

तेनुघाट डैम एशिया का सबसे बड़ा मिट्टी का डैम है, जो बोकारो जिले में बनाया गया है और इसकी लंबाई 7 किलोमीटर है। जल संरक्षण के लिए 95 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफ़ल में बनाया गया है। पेटरवार, जो बोकारो के रामगढ़ के बीचो-बीच है, से छोटी-बड़ी गाड़ियां तेनुघाट के लिए मिलती है, जो यहां से 16 किलोमीटर की दूरी पर है। गोमिया स्टेशन से तेनुघाट 15 किलोमीटर की दूरी पर है, इससे बोकारो इस्पात कारखाने को जल मिलती है। यहां से बोकारो तक 40 किलोमीटर लंबी नहर बनी है, जिसमें 24 घंटे पानी रहता है।


चंद्रपुरा पक्षी विहार

डी.वी.सी. चंद्रपुरा ( बोकारो) स्थित रिज़र्वर (इंटेकवेल) लगभग हाफ किमी क्षेत्र में फैले वॉटर रिज़र्वर में हजारों की संख्या में चिड़ियों को देखा जा सकता है।


उधवा पक्षी विहार

यह पक्षी विहार साहेबगंज जिले में आता है। सन 1991 में इसे पक्षी विहार के रूप में मान्यता मिली थी । यह 5.5 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां पर पथोरा झील में वर्ष भर पानी रहता है तथा यह उधवा डैम के चलते गंगा नदी से जुड़ा है।


मूटा मगर प्रजनन केंद्र

रांची से 35 किलोमीटर दूर उत्तर में ओरमांझी प्रखंड में सिकीदरी से 6 किलोमीटर की दूरी पर 3 किलोमीटर पैदल चलनेके बाद मूटा मगर प्रजनन केंद्र आता है। मूटा के आसपास भेंड़ा नदी के कुल 15 दह जिसमें से 6 दहों में मगर पाए जाते हैं। जाड़े के दिनों में भेड़ नदी के किनारे धूप में बैठे मगर आसानी से देखने को मिल जाते हैं। यहां दर्जनों छोटे-बड़े मगरमच्छ है।

1. हजारीबाग नेशनल पार्क , हजारीबाग (1976)
2. पलामू अभ्यारण्य, लातेहार (1976)
3. मदुआ टांड़ भेड़िया अभ्यारण्य, पलामू (1976)
4. दालमा अभ्यारण्य, जमशेदपुर प. सिंहभूम,  (1976)
5. लबालौंग अभ्यारण्य, चतरा (1978)
6. तोपचाँची अभ्यारण्य, धनबाद (1978)
7. बेताल नेशनल पार्क, पलामू (1986)
8. लबालौंग अभ्यारण्य, चतरा (1978)
9. बेतला राष्ट्रीय उद्यान, लातेहार (1986)
10. डालमा अभ्यारण्य जमशेदपुर (
11. पारसनाथ अभ्यारण्य, गिरिडीह (1981)
12. पलामू राष्ट्रीय उद्यान (1986)
13. उधवा झील पक्षी आश्रयणी विहार, साहेबगंज (1991)
14. राजमहल फोसिल्स अभ्यारण्य, साहेबगंज
15. बिरसा भगवान जैविक उद्यान, रांची
16. बेतला वन्य जीव अभ्यारण्य डाल्टेनगंज
17. बोकारो चिड़ियाघर, बोकारो इस्पात नगर
18. कोडरमा जैविक उद्यान अभ्यारण्य, कोडरमा (1985)
19. बैम्बरु जैविक अभ्यारण्य, सिंहभूम
20. पालकोट अभ्यारण्य, गुमला (1990)
21. मगरमच्छ प्रजनन केंद्र रुक्का, राँची
22. बिरसा मृग बिहार काला माटी, राँची
23.  पलामू अभ्यारण्य, पलामू (1976)
24. गौतम बुद्ध अभ्यारण्य, कोडरमा (1976)

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