अंग्रेजों ने झारखंड में कब प्रवेश किया था?
तो आज हम इस आर्टिकल में जानेंगे की अंग्रेज झारखंड में कब और कैसे आए? अंग्रेज झारखंड में कब तक रहे कौन-कौन से क्षेत्रों को अपने कब्जे में किया उन्होंने क्या-क्या स्थापित किया कौन-कौन से उद्योग डालें। तो जानेंगे पूरे विस्तार से झारखंड में अंग्रेजों आगमन किस प्रकार हुआ और अगर झारखंड में आखिर क्यों आए थे।
सिंहभूम क्षेत्र
ढालभूम
- झारखण्ड में पहली बार अंग्रेजों ने प्रवेश 1767 ई. में सिंहभूम क्षेत्र में प्रवेश किया।
- अग्रेजों के झारखण्ड में पहली बार प्रवेश के समय झारखण्ड के कोल्हान क्षेत्र में हो शासक, पोरहाट क्षेत्र में सिंह शासक तथा धालभूम/ढालभूम क्षेत्र में ढाल शासकों का शासन था।
- 1760 ई. में ईस्ट इण्डिया कंपनी ने मिदनापुर क्षेत्र में अधिकार स्थापित किया।
- जनवरी 1767 ई. में अंग्रेजों ने फरगुसन को सिंहभूम पर आक्रमण हेतु भेजा था।
- 22 मार्च, 1767 ई. में अंग्रेजों ने घाटशिला के महल पर कब्जा किया था।
- 1767 ई. में जगन्नाथ ढाल के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरूद्ध ढाल विद्रोह किया गया था। इस विद्राह के बाद अंग्रेज़ों ने जगन्नाथ ढाल को ढालभुम का राजा बनाना स्वीकार कया तथा जगन्नाथ ढाल ने अंग्रेजों को 5500 रुपए सालाना कर देना मंजूर किया।
- 1768 में ढालभूम क्षेत्र में गड़बड़ी फैलने लगी जिसे रोकने हेतु अंग्रेजों ने लेफ्टिनेंट रूक के नेतृत्व में विद्रोही जगन्नाथ ढाल को पकड़ने का असफल प्रयास किया, जिसके बाद जगन्नाथ ढाल के भाई नीमू ढाल को बंदी बना लिया गया।
- अग्रेजों ने जगन्नाथ ढाल के स्थान पर नीम् ढाल को ढालभूम का राजा घोषित कर दिया। जगन्नाथ ढाल ने अपना विरोध जारी रखते हुए ढालभूम के अधिकांश क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया जिसके बाद 1777 ई. में अंग्रेजों ने जगन्नाथ ढाल को पुन: ढालभूम का राजा घोषित किया।
- 1783 ई. में लेफ्टिनेंट रूक ने ढालभूम क्षेत्र में सैनिक अभियान चलाया था।
1800 ई. में ढालभूम का वार्षिक कर 4267 रूपया तय किया गया।
पोरहाट
- 1767 ई. में पोरहाट के राजा जगन्नाथ सिंह चतुर्थ ने मिदनापुर के अंग्रेज रेजिडेन्ट से अपने भाई शिवनाथ सिंह के विरूद्ध सहायता मांगी। परंतु कटक के मामले में उलझे होने के कारण अग्रेजों ने सहायता से इनकार कर दिया।
- 1773 ई. में अंग्रेज अधिकारी कैप्टन फोरबिस ने कंपनी के व्यापारिक लाभ हेतु पोरहाट के राजा से एकसमझौता किया कि पोरहाट का राजा कंपनी क्षेत्र के व्यापारियों को अपने राज्य में शरण प्रदान नहीं करेगा।
- 1793 ई. में अंग्रेजों ने सरायकेला के कुँवर तथा खरसावां के ठाकुर के साथ भी इसी प्रकार की संधि की थी।
- 1809 ई. में पोरहाट के राजा ने सरायकेला व खरसावां के बढ़ते प्रभुत्व को संतुलित करने के उद्देश्य से कंपनी
से अपने राज्य को संरक्षण में लेने का आग्रह किया जिसे कंपनी ने अस्वीकृत कर दिया।
- 1818 ई. में तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध के पश्चात् कंपनी ने सिंहभूम को कपनी के नियंत्रण में लाने का निर्णय लिया।
- 1 फरवरी, 1820 ई. को अंग्रेज एजेंट कैप्टन रसेल से बातचीत के बाद पोरहाट के राजा घनश्याम सिंह ने कपनी की अधीनता स्वीकार करते हुए एक संधि पर हस्ताक्षर किया। कंपनी ने घनश्याम सिह को संरक्षण प्रदान करने तथा संपत्ति पर अधिकार बनाए रखने का आश्वासन दिया। इस संधि को लेकर कंपनी तथा घनश्याम सिंह दोनों के अपने- अपने उद्देश्य थे –
कंपनी का उद्देश्य-
- संबलपुर (उड़ीसा) व बंगाल के बीच सीधा संपर्क स्थापित करना।
- कटक व बनारस के बीच सीधा संपर्क स्थापित करना।
- विरोधियों द्वारा संरक्षण हेतु सिंहभूम क्षेत्र को नियंत्रित करना।
- विद्रोही कोलों पर नियंत्रण स्थापित करना।
घनश्याम सिंह का उद्देश्य-
- कंपनी के सहयोग से सरायकेला-खरसावां पर प्रभाव स्थापित करना।
- सरायकेला के शासक से अपनी कुल देवी ‘पौरी देवी ‘ की मूर्ति वापस पाना।
- कंपनी के सहयोग से हो लोगों पर सत्ता स्थापित करना।
इस संधि के पश्चात् अंग्रेजों ने घनश्याम सिंह के पहले प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, परंतु अन्य दोनों उद्देश्यों को पूरा करने में सहायता की। मेजर डब्ल्यू. आर. गिलबर्ट की ने सरायकेला के कुँवर अजम्बर सिंह को पौरी देवी की मूर्ति पोरहाट के राजा को वापस लौटाने हेतु बाध्य किया तथा 1821 ई. में अंग्रेजों ने हो लोगों का दमन कर उन्हें पोरहाट के राजा के अधीन आने हेतु विवश कर दिया।
कोल्हान
- सरायकेला राज्य की स्थापना विक्रम सिंह के द्वारा की गयी थी।
- 1793 ई. में सरायकेला तथा खरसावां के साथ अंग्रेजों ने एक संधि की थी।
- 1820 ई. में कोल्हान क्षत्र में मेजर रफसेज के कोल्हान क्षेत्र में प्रवेश के बाद रोरो नदी के तट पर अंग्रेज सेना तथा हो जनजाति के बीच युद्धर हुआ जिसमें अंग्रेज विजयी हुए।
- 1821 ई. में कर्नल रिचड्ड के नेतृत्व में अंग्रेजों ने ‘हो क्षेत्र’ में प्रवेश किया तथा हो लोगों को अग्रेजों की शअधीनता स्वीकार करने हेतु विवश कर दिया।
- 1831-32 कोे कोल विद्रोह को हो जनजाति का भी समर्थन प्राप्त था।
- 1836 ई. में टी. एस. विल्किसन की सलाह पर कंपनी द्वारा अग्रेजी सेना को कोल्हान क्षेत्र में भेजा गया, जहाँ हो जनजाति’ से इनका संघर्ष हुआ। फरवरी, 1837 ई. में ‘हो जनजाति’ के लोगों ने आत्मसमर्पण करते हुए कंपनी को सीधे कर देना स्वीकार किया।
- 1837 ई. में कोल्हान क्षेत्र को एक प्रशासनिक इकाई बनाकर उसे एक अंग्रेज अधिकारी के अधीन कर दिया गया तथा क्लीवलैंड नामक अग्रेज अधिकारी द्वारा पहाड़ी एसेंबली की स्थापना की गयी थी।
- अग्रेजों को कोल्हान क्षेत्र पर अधिकार करने में लगभग 70 वर्षों का समय लगा, जबकि शेष झारखण्ड पर उन्होनें 45 वर्षों में अधिकार स्थापित कर लिया था।