शहीद निर्मल महतो की जीवनी, झारखंड के कौन है | Nirmal Mahato biography in hindi

शहीद निर्मल महतो का जीवन परिचय : Nirmal Mahato biography

निर्मल महतो (Nirmal Mahato) जी झारखंड के महान क्रांतिकारियों मे से एक थे। निर्मल महतो एक ऐसे सच्चे क्रांतिकारी थे जो बिना किसी पद के बिना किसी शक्ति पद के सिर्फ लोगों के हित के बारे में सोचते थे। लोगों के हर एक छोटे से छोटे मसलों पर उसकी समस्याओं पर निर्मल महतो जी हमेशा खड़ा रहते थे। उसके लिए हर किसी से लड़ जाते थे, उसके खिलाफ आवाज उठाने से कभी भी नहीं कतराते नहीं थे। जितनी उम्र में ये शहीद हुए उससे कहीं ज्यादा समय लोगों के साथ हर मुश्किल की घड़ी में खड़े रहते थे। आज हमारे बीच भले निर्मल महतो जी नहीं हैं लेकिन इनके याद के तौर पे बहुत कुछ है।

Nirmal Mahato biography in hindi

आज भी इन्हे झारखंड में बड़े गर्व के साथ याद किया जाता है। और जन्मदिन और पुण्यतिथि बड़े आदर सत्कार के साथ हर साल झारखण्ड के हर नेता, उसके करीबी और चाहनेवाले लोग आदरसहित मानते हैं।

Nirmal Mahato Birth, family & Education : निर्मल महतो का जन्म, परिवार व शिक्षा

निर्मल महतो (Nirmal Mahato) जी का जन्म 25 दिसम्बर 1950 को पूर्वी सिंहभूम जिले के उलियान गांव में हुआ था। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उस वक़्त झारखंड बिहार एक था जो कि बिहार कहलाता था। निर्मल महतो जी के पिता जी का नाम श्री जगबंधु महतो था। और इनके माता जी का नाम श्रीमती प्रिया महतो था। निर्मल महतो (Nirmal Mahato) 9 भाई बहन थे जिसमें एक बहन भी थी। Tata Workers Union High School Jamshedpur से निर्मल महतो जी ने अपनी सेकेंडरी की पढ़ाई और मैट्रिक परीक्षा दी थी। फिर उसके बाद निर्मल महतो जी ने Co-operative College Jamshedpur से Graduation पूरी की। निर्मल महतो जी पढ़ने में भी बहुत तेज थे वे बच्चों को पढ़ाने का काम भी करते थे। जिससे थोड़ी बहुत घर की मदद ही जाती थी।

इनके घर की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी जिसके कारण बच्चो को पढ़ाने का काम किया करते थे।

Nirmal Mahato photo

निर्मल महतो राजनीति से कैसे जुड़े

निर्मल महतो (Nirmal Mahato) जी जब पढ़ाई करते थे तो उसी समय से धीरे धीरे राजनीति कार्यक्रमों से जुड़ने लगे थे। जिसके कारण धीरे धीरे निर्मल जी राजनीति को बेहतर ढंग से समझने लगे थे। राजनीति में निर्मल महतो जी सिर्फ लोगों की समस्याओं को दूर करने और उसका समाधान करने के लिए आना चाहते थे। उन्हें किसी भी पद का लोभ नहीं था वो बस लोगों के हित के लिए उसकी हर मदद करने की बस कोशिश रहती थी। जब निर्मल महतो धीरे धीरे लोगों के बीच एक प्रेरणादायक, एक सच्चा नेता बनके उभरने लगे। तब उसके ऊपर किसी ने हमला करवा दिया जिसके बाद निर्मल महतो जी को बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर हो गए। उसके बाद निर्मल जी छात्रों के यूनियन के आन्दोलन में शामिल होकर उसका नेतृत्व करने लगे और उसके बाद झारखंड के आंदोलन में सम्मिलित हो गए।

उसके बाद निर्मल महतो जी ने झारखण्ड पार्टी में शामिल हो गए, और खुद को एक बेहतर जुझारू नेता के रूप में काम करना शुरू किया। झारखण्ड पार्टी में रहकर निर्मल महतो जी लोगों की भलाई करने का काम कर रहे थे। और सन् 1980 में बिहार में हुए विधानसभा चुनाव में बाकायदा खड़े भी होते हैं लेकिन बदकिस्मती से हार का सामना करना पड़ता है। लेकिन धीरे धीरे कुछ समय पश्चात झारखण्ड पार्टी कमजोर होती जा रही थी। लोगों में उसके प्रति एक जरा भी विश्वाश नहीं था, सब विश्वास झारखण्ड पार्टी खोती जा रही थी। तत्पश्चात निर्मल महतो जी शैलेन्द्र महतो की प्रेरणा से निर्मल महतो (Nirmal Mahato) 15 दिसंबर 1980 को झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (JMM) में शामिल हो जाते हैं। 18 जुलाई 1981 को जमशेदपुर में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने एक सम्मलेन आयोजित किया था।

निर्मल महतो जी कब झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष बने?

निर्मल महतो (Nirmal Mahato) को उस मोर्चा का जिला उपाध्यक्ष भी बनाया गया था। धनबाद जिला में 1 और 2 जनवरी 1983 को झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का पहला केन्द्रीय महाधिवेशन था। और निर्मल महतो (Nirmal Mahato) जी के काम करने के तरीके से बहुत ज्यादा प्रभावित होते हैं और उसी वक़्त निर्मल महतो जी को केंद्रीय कार्यकारिणी समिती का सदस्य बना दिया जाता है। बोकारो में 06 अप्रैल 1984 को झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की केन्द्रीय समिति की बैठक हुई थी। जिसमें समिति के सभी सदस्यों की सहमति से निर्मल महतो जी (Nirmal Mahato) को अध्यक्ष बना दिया गया था। बहुत ही कम समय में इन्होंने जो लोगों से और पार्टी से विश्वास जीता था। अब तक ये काम कोई नहीं कर सका था, साल 1984 में निर्मल महतो (Nirmal Mahato) जी रांची लोकसभा से चुनाव लड़े लेकिन हार गए।

उसके बाद साल 1985 में निर्मल (Nirmal Mahato) जी ईचागढ़ से चुनाव लड़े। लेकिन अफसोस उसमे भी उनकी जीत नहीं हुई। जब फिर से झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का दूसरा केंद्रीय महाधिवेशन हुआ तो फिर से निर्मल महतो जी को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया।

जब झारखंड में अकाल पड़ी, क्यों पड़ी?

जब निर्मल महतो जी झारखण्ड मुक्ति मोर्चा पार्टी में सम्मिलित हुए थे तभी से एक आन्दोलन चल था। वह था झारखंड अलग राज्य का आंदोलन जो उस समय का सबसे बड़ा आंदोलन बन गया था। और एक बड़ी मांग थी, और उसी साल 1982 में छोटानागपुर क्षेत्रों में भयावह अकाल पड़ गई और भूखमरी की भयावह स्थिति बन गई। लेकिन खबर के मुताबिक खाने के लिए बहुत अनाज था। जमाखोरों ने बड़े पैमाने पर बड़े बड़े गोदामों में अनाज छुपा कर रखा था। और जमाखोरों की वजह से ही ये भुखमरी जैसी स्थिति बन गई थी। या फिर उस वक़्त के सरकार ने ही जानबूझ ऐसी स्थिति बना दी थी। कि जब लोगों के पास खाने के लिए कुछ रहेगा ही नहीं तो भला भूखे पेट आंदोलन कैसे करेगा? और लोग झारखंड के अलग राज्य को लेकर आंदोलन भी कैसे करेंगे।

इसमे जमाखोरों, सरकार और प्रशासन की मिली भगत भी बताई गई थी। उसके बाद से लोग प्रशासन के मिली भगत को लेकर झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने सभी प्रखंड मुख्यालयों के समाने धरना देना शुरू कर दिया था। और इसी साल 21 अक्टूबर सन् 1982 को अकाल राहत के लिए सुवर्ण रेखा नदी पर बनाए जा रहे डैम (चांडिल) से विस्थापित परिवारों को पुनर्वास एवं नौकरी समेत 21 मांगों को लेकर क्रांतिकारी छात्र युवा मोर्चा द्वारा तिरुलडीह स्थित ईचागढ़ प्रखंड कार्यालय के सामने प्रदर्शन कर रहे थे। तब पुलिस ने अचानक प्रदर्शन कर रहे लोगों पर लाठीचार्ज तो किया ही साथ में गोलियां तक चला थी। जिससे प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों में से दो प्रदर्शनकारी जो चांडिल कॉलेज के ही छात्र थे। अजीत महतो और धनंजय महतो को गोली लगी और वहीं उसकी मृत्यु हो गई थी।

जिससे लोग और भी भड़क गए गुस्सा हो गए, और झारखण्ड आन्दोलन और भी उग्र ही गया। यह आन्दोलन निर्मल महतो (Nirmal Mahato) जी के नेतृत्व में चल रही थी।

आजसू पार्टी निर्माण में निर्मल महतो का सहयोग

अब झारखण्ड आन्दोलन में ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जोड़ कर और भी बड़ा आन्दोलन बनाने के लिए 1 जून साल 1986 को झारखंड मुक्ति मोर्चा की एक केंद्रीय समिति की बैठक बनाई की गई। और उन्होंने ऑल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियन (AJSU – आजसू) का गठन किया। और 19, 20 और 21 अक्टूबर साल 1986 को जमशेदपुर अखिल झारखण्ड छात्र एवं एक सम्मलेन का आयोजन कर आजसू को थोड़े ही दिनों में राष्ट्रीय स्तर पर लाकर खड़ा कर दिया था। उन्होंने झारखण्ड अलग राज्य आंदोलन को और तेज किया और स्कूल और कॉलेज के छात्रों को एकत्रित कर उन्हें इस आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। छात्रों और नवयुवकों को विश्वास दिलाया कि सिर्फ नवयुवक की शक्ति से ही झारखंड अलग राज्य का निर्माण किया जा सकता है।

निर्मल महतो ने सूर्य सिंह बेसरा को झारखंड मुक्ति मोर्चा का जनरल सेक्रेटरी बनाया था। और इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने का आदेश दिया, जब झारखण्ड अलग राज्य आंदोलन अपने चरम सीमा पर थी। तब एक बहुत बड़ी घटना घट जाती है। जिससे लोगों में मायूसी और लोगों में दुःख की शौक की लहर दौड़ गई थी।

Nirmal Mahato की हत्या कब, कैसे और किसने की?

निर्मल महतो (Nirmal Mahato) जी और साथ में सूरज मंडल और पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ 8 अगस्त 1987 की सुबह को जमशेदपुर के चमरिया, बिस्टुपुर स्थित टिस्को गेस्ट हाउस से बाहर निकल रहे थे। उसी समय कुछ घात लगाए बैठे निर्मल महतो जी के कुछ दुश्मन एक अंबेसडर कार से पांच लोग उतरते हैं। उसके साथी सूरज मंडल को जैसे ही किसी अनहोनी होने का शक हुआ। तो उन्होंने निर्मल महतो जी से तुरंत अंदर जाने के लिए कहा, इसी बीच एक हमलावर ने निर्मल महतो जी के कालर को पकड़ लिया। उसके बाद सूरज मंडल ने जाकर छुड़ाया भी और फिर से अंदर जाने को कहा। इसी बीच सोनारी वासी वीरेंदर सिंह नामक एक व्यक्ति ने निर्मल महतो जी (Nirmal Mahato) पर तीन गोलियां दाग दी।

एक गोली उनके मुँह पर लगी दूसरी गोली उनके पीठ पर लगी तथा तीसरी गोली उनके छाती में लगी। जिसके कारण घटना स्थल पर ही निर्मल महतो जी की मृत्यु हो गयी। और एक क्रांतिकारी झारखंड अलग राज्य की मांग करते-करते शहीद हो गए।और झारखण्ड आन्दोलन का सबसे बड़ा उभरता हुआ एक सच्चा नेता हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन जाते जाते लोगों में उससे कहीं ज्यादा झारखंड अलग राज्य आंदोलन के लिए लोगों को एकजुट कर दिया था। जाने के बाद और भी लोग इस आंदोलन में शामिल हो गए। आज झारखंड में रह रहे लोगों को मालूम होगा या फिर मालूम होना चाहिए कि जो आज झारखण्ड है और जो बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बना है। उसमे शहीद निर्मल महतो जी (Nirmal Mahato) का बहुत बड़ा योगदान हैं या मानो फिर इनका शहीद होने के कारण ही झारखण्ड अलग राज्य बन पाया है।

निर्मल महतो जी (Nirmal Mahato) की हत्या एक राजनितिक साज़िश के अंतर्गत की गई थी। लेकिन उस समय के तत्कालीन बिहार सरकार ने ये मनाने से इंकार कर दिया। सरकार ने यह कहकर केस को रफा-दफा कर दिया कि ये उसकी ये आपसी किसी पार्टी मतभेद हो सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक झारखण्ड के अलग राज्य बनने के बाद भी किसी सरकार ने निर्मल महतो हत्या के पीछे की वजह, कारण का पता लगाने की एक जरा सी भी कोशिश नहीं की। अगर निर्मल महतो जी के केस की अच्छी से छानबीन होती तो शायद कई बड़े नेताओं के हाथ में हथकड़ी लग जाती। लेकिन उस समय तत्कालीन बिहार सरकार ने ऐसा होने ही नहीं दिया।

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